पूरा संसार चाहे कोई भी धर्म हो भक्ति की सही विधि से परे है, गुमराह है। बहुत से धर्मो के अनुयायियों के बीच मे; जहाँ हर एक भक्त अपनी भक्ति विधि को सही मानता है; सही भक्ति विधि को आंकना, यह मुश्किल बन जाता है। अज्ञानता के कारण, सभी इस कसाई जो ब्रम्ह-काल कहलाता है, जो धोखेबाज है, की पूजा करने को प्रतिबंधित हैं। उसने अपनी पत्नी माया(अष्टनगी/दुर्गा) के साथ मोह माया का जाल फैलाया और साधको को भ्रमित किया। लोगो का आज तक पूजा करने का एकमात्र उद्देश्य; उस दिव्य शक्ति को प्रसन्न करके भौतिकवादी सुखों जैसे- सामाजिक स्तिथि में उत्थान, सेहत और धन में समृद्धि को प्राप्त करने तक ही सीमित रहता है, जिन्हें यह जाने बिना ही कि भगवान/अल्लाह/गॉड कौन है, भिन्न भिन्न नामो से पुकारा जाता है जैसे- 'भगवान', 'रब', 'खुदा', 'अल्लाह', 'गॉड', 'ईश'। वह कैसा दिखता है? वह कहाँ रहता है?
निम्नलिखित को समझाने में इस लेखन को ध्यान में रखा जाएगा
- भक्ति का अर्थ क्या है?
- क्या भक्ति केवल भयंकर बीमारी या धन/भौतिक लाभ प्राप्ति के उद्देश्य से की जानी चाहिए?
- भक्ति करने का उद्देश्य क्या है?
- किसकी भक्ति करनी चाहिए? पूजनीय भगवान कौन है?
- सही भक्ति की विधि क्या है?
भक्ति का अर्थ क्या है?
किसी विशेष देवता के प्रति श्रद्धा भाव होना भक्ति है। भक्ति का मतलब है भगवान की कृपा अर्जित करने के लिए गहरा सम्बन्ध स्थापित करके खुद को दिव्य/परम् शक्ति पर समर्पित कर देना है। भक्ति सर्वशक्तिमान को उनके आशीर्वाद के लिए आदर और धन्यवाद करना है जो उन्होंने प्रकृति, हमारे प्यारे परिवार के सदस्य और सभी करीबी और प्यारे लोगो के रूप में हमे दिया है, जो भोजन और जल उन्होंने दिया है और भी बहुत कुछ।
क्या भक्ति केवल भयंकर बीमारी या धन/भौतिक लाभ प्राप्त करने के लिए की जानी चाहिए?
श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 7 मन्त्र 20-23
ब्रम्ह-काल ने योद्धा अर्जुन को बताया कि 'अज्ञानता के कारण जिसकी बुद्धि भौतिक लाभ प्राप्त करने के लिए चुराई गयी है; केवल वही मूर्ख लोग देवी देवताओं की भक्ति करते हैं जो उन्हें उपयोगी लाभ प्रदान नही कर सकते क्योंकि उनकी भक्ति साधना उन्हें पूर्ण मोक्ष नही दिला सकती।
अधिक जानकारी के लिए पढ़े मूर्ख लोग ब्रम्हा, विष्णु और शिव की भक्ति करते हैं।
अतः भक्ति केवल घातक बीमारी को ठीक करवाने और भौतिक लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से नही की जानी चाहिए।
तो भक्ति करने का उद्देश्य क्या है?
भक्ति करने का उद्देश्य क्या है?
मनुष्य जन्म का एकमात्र उद्देश्य भौतिकवादी सुखों को प्राप्त करना नही है बल्कि सच्ची भक्ति करना है; मनुष्य जन्म का अंतिम उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति और जन्म तथा पुनःजन्म के दुष्चक्र से छुटकारा पाना है।
तो भक्त समाज के लिए महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि 'किसकी पूजा करनी चाहिए'?
किसकी पूजा करनी चाहिए?
कुछ लोग श्री कृष्ण जी और रामचंद्र जी की पूजा करते हैं जो भगवान विष्णु के अवतार हैं, कुछ देवी दुर्गा की पूजा करते हैं, बाकी भगवान शिव की पूजा करते हैं, कुछ लोग देवताओं की पूजा करते हैं जैसे गणेश जी, हनुमान जी और भी बहुत। फिर ईसाई धर्म जैसे अन्य धर्म हैं जो जीसस या माँ मैरी की पूजा करते हैं और कहते है 'भगवान निराकार है'। इस्लाम जैसे धर्म अदृश्य भगवान अल्लाह-हु-अकबर की पूजा करते हैं। वे कहते है कि अल्लाह 'बेचून' (निराकार) है। जैनी तीर्थंकरों को सर्वोत्तम परमात्मा मानते हुए उनकी पूजा करते हैं। बात यह है कि ब्रम्हा, विष्णु (राम, कृष्ण), शिव, दुर्गा, हनुमान जी, गणेश जी और अन्य देवताओं की पूजा पवित्र शास्त्रों यानी श्रीमद्भागवत गीता, वेद, क़ुरान और बाइबिल के अनुसार नही है।
अतः यह भक्ति/पूजा मनमानी है और किसी काम की नही है यानी यह साधना साधक को मोक्ष/मुक्ति प्रदान करने वाली नही है।
पूजनीय भगवान कौन है?
शास्त्रों के अनुसार ; कबीर साहेब जी सर्वोत्तम परमात्मा है। इसलिए भक्ति साधना को सफल करने के लिए सर्वशक्तिमान कबीर परमात्मा की भक्ति करनी पड़ेगी जिसके बारे में श्रीमद्भागवत गीता प्रमाण प्रदान करती है, वेद आदेश देते हैं, क़ुरान शरीफ, पवित्र बाइबिल और गुरु ग्रंथ साहिब भी प्रमाणित करते हैं।
पढ़े सर्वोत्तम परमात्मा कौन है और वह कैसा दिखता है?
अंतिम पर कम नही; इस लेख को पढ़ने के बाद भक्तों को खुद से जांच करनी चाहिए।
- क्या उनकी भक्ति साधना पवित्र शास्त्रों के अनुसार निषेध/मना है? यदि नही, तो दूसरा विचार किये बिना; तो यह सुझाव दिया जाता है कि कृप्या मनमाना आचरण छोड़ दें। देवी देवताओं की पूजा करना बन्द करें।
- वास्तविक सन्त की शरण मे जाकर भक्ति की सही विधि अपनाओ, और सच्ची साधना से आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करो।
- सही भक्ति करने से व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर सकता है, भगवान को प्राप्त कर सकता है।
आगे बढ़ते हुए हम स्पष्ट करेंगे कि भक्ति की सही विधि क्या है!
भक्ति की सही विधि क्या है?
यह ध्यान में रखते हुए प्रत्येक भक्त को उनके द्वारा की जाने वाली भक्ति से उम्मीदे हैं; यह समझना जरूरी हो जाता है, यह सुनिश्चित कैसे किया जाए कि भक्ति की सही विधि क्या है जो साधको को लाभ प्रदान करती है?
पवित्र शास्त्रों से प्रमाण यह प्रमाणित/सिद्ध करता है कि तत्वदर्शी सन्त जिसकी पहचान गीता अध्याय 15 मन्त्र 1-4 में वर्णित की गई है सच्ची भक्ति प्रदान करता है; जिसे करते हुए आत्मा शैतान; ब्रम्ह-काल के जाल से मुक्त हो जाती हैं। यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्र 26 में लिखा है कि वह तत्वदर्शिता/तत्वदर्शा दिन में तीन बार की जाने वाली भक्ति प्रदान करता है।
उस सच्चे आध्यात्मिक गुरु द्वारा बताये गए निर्देशों का पालन करते हुए जैसे कि नशीले पदार्थों के सेवन पर निषेध (यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्र 30) और मनमानी पूजा को त्यागना आदि और सच्ची साधना के नियमो में रहते हुए साधक अपनी वर्तमान जीवन में सभी लाभों को प्राप्त करता है और साथ ही इस नाशवान मनुष्य शरीर को छोड़कर असीम शांति को प्राप्त करता है। धन और सामाजिक लाभ और इसी तरह के लाभ सच्ची साधना के साथ मिलने वाले उत्पाद हैं; उनकी जरूरत नही हैं।
इसलिए, भक्ति का सही तरीका है, तत्वदर्शी सन्त की शरण ग्रहण करना और गीता अध्याय 17 मन्त्र 23, यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्र 25 और क़ुरान शरीफ सुरह शूरा 42 आयत 1 में उल्लिखित है कि मोक्ष के सही मन्त्रो का अंतिम स्वांस तक निर्देशानुसार नियमो में रहते हुए जाप करें।
निष्कर्ष:
आज की तारीख में सन्त रामपाल जी तत्वदर्शी सन्त है; जो शास्त्रोनुसार भक्ति प्रदान कर रहे हैं। आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने के लिए भक्ति करने के लिए चार अनुक्रमिक मूल शर्ते है जो पूरी करनी जरूरी है।
- सन्त रामपाल जी महाराज द्वारा दिये गए ज्ञान को समझें।
- इस तथ्य में पूर्ण विश्ववास बनाये कि कबीर साहेब जी सर्वोत्तम परमात्मा हैं।
- सन्त रामपाल जी महाराज जी से दीक्षा ले और सन्त रामपाल जी के आदेशानुसार भक्ति करें।
- सन्त रामपाल जी महाराज द्वारा बताए गए नियमो का सख्ती से पालन करें।
यदि ऊपर बताये गए चार बिंदुओं का पालन किया जाए केवल तभी साधक को लाभ प्राप्त होते हैं।
पवित्र व्याख्यान / वर्णन पर ध्यान दे!
सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी अपनी पूण्य आत्माओं को जगाते हैं और उन्हें भगवान पहचानने और भक्ति करने के लिए प्रेरित करते हैं।
आजा बंदे शरण राम की, फिर पीछे पछतायेगा |
दिया लिया तेरे संग चलेगा, धरा ढका रह जाएगा |
आ यम तेरे घट ने घेरे, तू राम कहन ना पावेगा ||
FAQs : "पूजनीय कबीर परमात्मा की सतभक्ति की सही विधि"
Q.1 इस लेख के अनुसार सच्ची पूजा और नकली पूजा में क्या अंतर होता है?
सच्ची पूजा की विधि का मतलब होता है शास्त्र आधारित भक्ति करना जिसका प्रमाण गीता जी के अध्याय 4 श्लोक 34 में बताया गया है। पवित्र गीता जी में बताए अनुसार सच्ची भक्ति विधि तत्वदर्शी संत द्वारा प्रदान की जाती है। तत्वदर्शी संत की पहचान गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में बताई गई है। तत्वदर्शी संत पवित्र शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान होता है। वह मोक्ष प्रदान करने का भी अधिकारी संत होता है।
Q.2 इस लेख के अनुसार सच्ची पूजा और नकली पूजा में क्या अंतर होता है?
सच्ची पूजा हमारे पवित्र शास्त्रों के अनुसार होती है, जिसे करने से हमें भौतिक सुख और मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते हैं। जबकि नकली पूजा हमारे पवित्र शास्त्रों के विरुद्ध होती है और ऐसी पूजा करने वाले साधक को कोई लाभ प्राप्त नहीं होता और जो लाभ प्राप्त हो रहा होता है वह पिछले जन्मों में किए गए पुण्यों के कारण मिल रहा होता है। इस का प्रमाण गीता जी अध्याय 16 श्लोक 23-24 में भी है।
Q. 3 ईश्वर को किस प्रकार की पूजा करके खुश किया जा सकता है?
ईश्वर को हमारे पवित्र शास्त्रों के अनुसार भक्ति करके खुश किया जा सकता है। सही मार्गदर्शन केवल तत्वदर्शी संत ही प्रदान कर सकता है।
Q.4 इस लेख में वर्णित सच्ची पूजा में क्या शक्ति होती है?
सच्ची पूजा में इतनी गज़ब की शक्ति होती है कि इसके आगे तो साइंस भी फेल है। इसे करने से सांसारिक लाभ और मोक्ष दोनों ही मिलते हैं। इसके अलावा सच्ची भक्ति करने से गंभीर बीमारियों भी दूर हो सकती हैं और साधक की आयु भी बढ़ सकती है। इस का प्रमाण यजुर्वेद अध्याय 5 श्लोक 32 में भी है।
Q.5 सच्ची पूजा करने का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
गीता जी के अध्याय 7 श्लोक 20-23 में यह प्रमाण है कि जो लोग केवल सांसारिक लाभ चाहते हैं, वे देवताओं की पूजा करते हैं, लेकिन ऐसी पूजा करने से मोक्ष प्राप्त नहीं होता। सच्ची पूजा करने का मुख्य उद्देश्य पूर्ण मोक्ष प्राप्त करना है। इससे सभी प्रकार के सांसारिक लाभ भी प्राप्त होते हैं।
Q.6 इस लेख के अनुसार सच्ची पूजा की विशेषताएं क्या हैं?
इस लेख में निम्नलिखित सच्ची पूजा करने की विशेषताएं बताई गई हैं:
- गीता जी के अध्याय 15 श्लोक 1 और अध्याय 4 श्लोक 34 में वर्णन है कि किसी अधिकारी संत से नाम दीक्षा लेनी चाहिए।
- पवित्र वेदों के अनुसार प्रतिदिन निर्धारित तीन समय पूजा करनी चाहिए।
- सच्ची पूजा में सांसारिक लाभ प्रदान करने और गंभीर बीमारियों को ठीक करने की क्षमता होती है।
- सच्ची पूजा करने से भक्त की आयु भी बढ़ सकती है।
- सच्ची पूजा का मुख्य लाभ मोक्ष प्राप्ति है।
Q.7 इस लेख के अनुसार क्या हमें अन्य देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए?
गीता जी के अध्याय 7 श्लोक 22-23 में कहा गया है कि देवता केवल सीमित लाभ ही प्रदान कर सकते हैं। गीता जी के अध्याय 15 श्लोक 17 में यह वर्णन है कि एक सर्वशक्तिमान ईश्वर की पूजा करनी चाहिए। उस पूर्ण परमेश्वर को परम अक्षर ब्रह्म या कबीर साहेब जी भी कहा जाता है और वह ईश्वर साधक को सभी लाभ प्रदान करता है।
Q.8 ईश्वर की पूजा करने से क्या लाभ मिलता है?
अधिकारी संत से नाम दीक्षा लेकर भक्ति करने से साधक को ईश्वर की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है और उसे हर तरह के लाभ मिलने शुरु हो जाते हैं। इसके अलावा सच्ची साधना करने से साधक को मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
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Kartik Saini
मुझे तो लगता है कि "मोक्ष" प्राप्त करना बहुत कठिन काम है। मोक्ष के लिए तो लोग सतयुग या प्राचीन काल से ही प्रयास करते आ रहे हैं। लेकिन अब मोक्ष की प्राप्ति असंभव सी लगती है क्योंकि वर्तमान में ज़्यादातर लोग स्वास्थ्य, प्रगति और भौतिक लाभ के लिए ही ईश्वर की पूजा करते हैं।
Satlok Ashram
कार्तिक जी, आप जी ने हमारे लेख को पढ़कर अपने विचार व्यक्त किए, उसके लिए आपका आभार। देखिए ईश्वर और मोक्ष का संबंध किसी युग या समय से नहीं है। मानव शरीर मिलने का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होना है। 84 लाख प्राणियों की जुनियों में से मानव शरीर को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। इसका उद्देश्य केवल भोग-विलास करना और पारिवारिक जीवन जीना ही नहीं है क्योंकि ऐसा जीवन तो जानवर भी व्यतीत करते हैं। मानव शरीर अनमोल है और मोक्ष प्राप्त करना ही इसका एकमात्र मुख्य उद्देश्य है। अधिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के अनमोल प्रवचन यूट्यूब चैनल पर सुनिए। इसके अलावा आप "ज्ञान गंगा" पुस्तक भी पढ़ सकते हैं।