एक समय दिल्ली के बादशाह ने कहा कि कबीर जी 13 (तेरह) गाड़ी कागजों को ढ़ाई दिन यानि 60 घण्टे में लिख दे तो मैं उनको परमात्मा मान जाऊँगा। परमेश्वर कबीर जी ने अपनी डण्डी उन तेरह गाड़ियों में रखे कागजों पर घुमा दी। उसी समय सर्व कागजों में अमृतवाणी सम्पूर्ण अध्यात्मिक ज्ञान लिख दिया। राजा को विश्वास हो गया, परंतु अपने धर्म के व्यक्तियों (मुसलमानों) के दबाव में उन सर्व ग्रन्थों को दिल्ली में जमीन में गडवा दिया। कबीर सागर के अध्याय कबीर चरित्र बोध ग्रन्थ में पृष्ठ 1834-1835 पर गलत लिखा है कि जब मुक्तामणि साहब का समय आवेगा और उनका झण्डा दिल्ली नगरी में गड़ेगा। तब वे समस्त पुस्तकें पृथ्वी से निकाली जाएंगी। सो मुक्तामणि अवतार (धर्मदास के) वंश की तेरहवीं पीढ़ी वाला होगा।
विवेचन:- ऊपर वाले लेख में मिलावट का प्रमाण इस प्रकार है कि वर्तमान में धर्मदास जी की वंश गद्दी दामाखेड़ा जिला-रायगढ़ प्रान्त-छत्तीसगढ़ में है। उस गद्दी पर 14वें (चौदहवें) वंश गुरू श्री प्रकाशमुनि नाम साहेब विराजमान हैं। तेरहवें वंश गुरू श्री उदित नाम साहेब थे जो वर्तमान सन् 2013 से 15 वर्ष पूर्व 1998 में शरीर त्याग गए थे। यदि तेरहवीं गद्दी वाले वंश गुरू के विषय में यह लिखा होता तो वे निकलवा लेते और दिल्ली झण्डा गाड़ते। ऐसा नहीं हुआ तो वह तेरहवां पंथ
धर्मदास जी की वंश परंपरा से नहीं है।
फिर ‘‘कबीर चरित्र बोध‘‘ के पृष्ठ 1870 पर कबीर सागर में 12 (बारह) पंथों के नाम लिखे हैं जो काल (ज्योति निरंजन) ने कबीर जी के नाम से नकली पंथ चलाने को कहा था। उनमें सर्व प्रथम ‘‘नारायण दास‘‘ लिखा है। बारहवां पंथ गरीब दास का लिखा है। वास्तव में प्रथम चुड़ामणि जी हैं, जान-बूझकर काँट-छाँट की है।
उनको याद होगा कि परमेश्वर कबीर जी ने नारायण दास जी को तो शिष्य बनाया ही नहीं था। नारायण दास तो श्री कृष्ण जी के पुजारी थे। उसने तो अपने छोटे भाई चुड़ामणि जी का घोर विरोध किया था। जिस कारण से श्री चुड़ामणि जी कुदुर्माल चले गए थे। बाद में बाँधवगढ़ नगर नष्ट हो गया था। ‘‘कबीर चरित्र बोध‘‘ में पृष्ठ 1870 पर बारह पंथों के प्रवर्तकों के नाम लिखे हैं। उनमें प्रथम गलत नाम लिखा है। शेष सही हैं। लिखा है:-
1. नारायण दास जी का पंथ 2. यागौ दास (जागु दास) जी का पंथ 3. सूरत गोपाल पंथ 4. मूल निरंजन पंथ 5. टकसारी पंथ 6. भगवान दास जी का पंथ 7. सतनामी पंथ 8. कमालीये (कमाल जी का) पंथ 9. राम कबीर पंथ 10. प्रेम धाम (परम धाम) की वाणी पंथ 11. जीवा दास पंथ 12. गरीबदास पंथ।
फिर ‘‘कबीर बानी‘‘ अध्याय के पृष्ठ 134 पर कबीर सागर में लिखा है किः-
‘‘वंश प्रकार‘‘
- प्रथम वंश उत्तम (यह चुड़ामणि जी के विषय में कहा है।)
- दूसरे वंश अहंकारी (यह यागौ यानि जागु दास जी का है।)
- तीसरे वंश प्रचंड (यह सूरत गोपाल जी का है।)
- चौथे वंश बीरहे (यह मूल निरंजन पंथ है।)
- पाँचवें वंश निन्द्रा (यह टकसारी पंथ है।)
- छटे वंश उदास (यह भगवान दास जी का पंथ है।)
- सातवें वंश ज्ञान चतुराई (यह सतनामी पंथ है।)
- आठवें वंश द्वादश पंथ विरोध (यह कमाल जी का कमालीय पंथ है।)
- नौवें वंश पंथ पूजा (यह राम कबीर पंथ है।)
- दसवें वंश प्रकाश (यह परम धाम की वाणी पंथ है।)
- ग्यारहवें वंश प्रकट पसारा (यह जीवा पंथ है।)
- बारहवें वंश प्रकट होय उजियारा (यह संत गरीबदास जी गाँव-छुड़ानी जिला-झज्जर, प्रान्त-हरियाणा वाला पंथ है जिन्होंने परमेश्वर कबीर जी के मिलने के पश्चात् उनकी महिमा को तथा यथार्थ ज्ञान को बोला जिससे परमेश्वर कबीर जी की महिमा का कुछ प्रकाश हुआ।)
- तेरहवें वंश मिटे सकल अंधियारा {यह यथार्थ कबीर पंथ है जो सन् 1994 से प्रारम्भ हुआ है जो मुझ दास (रामपाल दास) द्वारा संचालित है।}
दामाखेड़ा वाले धर्मदास जी के वंश गद्दी वालों ने वास्तविक भेद छुपाने की कोशिश की तो है, परंतु सच्चाई को मिटा नहीं सके।
कबीर सागर के अध्याय ‘‘कबीर बानी‘‘ के पृष्ठ पर 136:-
द्वादश पंथ चलो सो भेद
द्वादश पंथ काल फुरमाना। भूले जीव न जाय ठिकाना।।
तातें आगम कह हम राखा। वंश हमारा चुड़ामणि शाखा।।
प्रथम जग में जागु भ्रमावै। बिना भेद वह ग्रन्थ चुरावै।।
दूसर सुरति गोपाल होई। अक्षर जो जोग दृढ़ावै सोई।।
(विवेचन:- यहाँ पर प्रथम जागु दास बताया है जबकि वाणी स्पष्ट कर रही है कि वंश (प्रथम) चुड़ामणि है। दूसरा जागु दास। यही प्रमाण ‘‘कबीर चरित्र बोध‘‘ पृष्ठ 1870 में है। दूसरा जागु दास है। अध्याय ‘‘स्वसमवेद बोध‘‘ के पृष्ठ 155 (1499) पर भी दूसरा जागु लिखा है। यहाँ प्रथम लिख दिया। यहाँ पर प्रथम चुड़ामणि लिखना उचित है।)
तीसरा मूल निरंजन बानी। लोक वेद की निर्णय ठानी।।
चौथे पंथ टकसार (टकसारी) भेद लौ आवै। नीर पवन को संधि बतावै।।
(यह चौथा होना चाहिए)
पाँचवां पंथ बीज को लेखा। लोक प्रलोक कहै हम में देखा।।
(यह भगवान दास का पंथ है जो छटा लिखना चाहिए था।)
छटा पंथ सत्यनामी प्रकाशा। घट के माहीं मार्ग निवासा।।
(यह सातवां पंथ लिखना चाहिए।)
सातवां जीव पंथ ले बोलै बानी। भयो प्रतीत मर्म नहीं जानी।।
(यह आठवां कमाल जी का पंथ है।)
आठवां राम कबीर कहावै। सतगुरू भ्रम लै जीव दृढ़ावै।।
(वास्तव में यह नौवां पंथ है।)
नौमें ज्ञान की कला दिखावै। भई प्रतीत जीव सुख पावै।।
(वास्तव में यह ग्यारहवां जीवा पंथ है। यहाँ पर नौमा गलत लिखा है।)
दसवें भेद परम धाम की बानी। साख हमारी निर्णय ठानी।।
(यह ठीक लिखा है, परंतु ग्यारहवां नहीं लिखा। यदि प्रथम चुड़ामणि जी को मानें तो सही क्रम बनता है। वास्तव में प्रथम चुड़ामणि जी हैं। इसके पश्चात् बारहवें पंथ गरीबदास जी वाले पंथ का वर्णन प्रारम्भ होता है। यह सांकेतिक है। संत गरीबदास जी का जन्म वि.संवत् 1774 (सतरह सौ चौहत्तर) में हुआ था। यहाँ गलती से सतरह सौ पचहत्तर लिखा है। यह प्रिन्ट में गलती है।)
संवत् सतरह सौ पचहत्तर (1775) होई। ता दिन प्रेम प्रकटें जग सोई।।
आज्ञा रहै ब्रह्म बोध लावै। कोली चमार सबके घर खावै।।
साखि हमारी ले जीव समझावै। असंख्य जन्म ठौर नहीं पावै।।
बारहवें (बारवै) पंथ प्रगट होवै बानी। शब्द हमारै की निर्णय ठानी।।
अस्थिर घर का मर्म नहीं पावै। ये बार (बारह) पंथ हमी (कबीर जी) को ध्यावैं।।
बारहें पंथ हमहि (कबीर जी ही) चलि आवैं। सब पंथ मिटा एक ही पंथ चलावैं।।
प्रथम चरण कलजुग निरयाना (निर्वाण)। तब मगहर मांडो मैदाना।।
भावार्थ:- यहाँ पर बारहवां पंथ संत गरीबदास जी वाला स्पष्ट है क्योंकि संत गरीबदास जी को परमेश्वर कबीर जी मिले थे और उनका ज्ञान योग खोल दिया था। तब संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी की महिमा की वाणी बोली जो ग्रन्थ रूप में वर्तमान में प्रिन्ट करवा लिया गया है। विचार करना है। संत गरीबदास जी के पंथ तक 12 (बारह) पंथ चल चुके हैं। यह भी लिखा है कि भले ही संत गरीबदास जी ने मेरी महिमा की साखी-शब्द-चौपाई लिखी है, परंतु वे बारहवें पंथ के अनुयाई अपनी-अपनी बुद्धि से वाणी का अर्थ करेंगें, परंतु ठीक से न समझकर संत गरीबदास जी तक वाले पंथ के अनुयाई यानि बारह पंथों वाले मेरी वाणी को ठीक से नहीं समझ पाएंगे। जिस कारण से असंख्य जन्मों तक सतलोक वाला अमर धाम ठिकाना प्राप्त नहीं कर पाऐंगे। ये बारह पंथ वाले कबीर जी के नाम से पंथ चलाएंगे और मेरे नाम से महिमा प्राप्त करेंगे, परंतु ये बारह के बारह पंथों वाले अनुयाई अस्थिर यानि स्थाई घर (सत्यलोक) को प्राप्त नहीं कर सकेंगे। फिर कहा है कि आगे चलकर बारहवें पंथ (संत गरीबदास जी वाले पंथ में) हम यानि स्वयं कबीर जी ही चलकर आएंगे, तब सर्व पंथों को मिटाकर एक पंथ चलाऊँगा। कलयुग का वह प्रथम चरण होगा, जिस समय मैं (कबीर जी) संवत् 1575 (ई. सन्
1518) को मगहर नगर (उत्तर प्रदेश) से निर्वाण प्राप्त करूँगा यानि कोई लीला करके सतलोक जाऊँगा।
परमेश्वर कबीर जी ने कलयुग को तीन चरणों में बाँटा है। प्रथम चरण तो वह जिसमें परमेश्वर लीला करके जा चुके हैं। बिचली पीढ़ी वह है जब कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष बीत जाएगा। अंतिम चरण में सब कृतघ्नी हो जाएंगे, कोई
भक्ति नहीं करेगा।
मुझ दास (रामपाल दास) का निकास संत गरीबदास वाले बारहवें पंथ से हुआ है। वह तेरहवां पंथ अब चल रहा है। परमेश्वर कबीर जी ने चलवाया है। गुरू महाराज स्वामी रामदेवानंद जी का आशीर्वाद है। यह सफल होगा और पूरा विश्व परमेश्वर कबीर जी की भक्ति करेगा।
संत गरीबदास जी को परमेश्वर कबीर जी सतगुरू रूप में मिले थे। परमात्मा तो कबीर हैं ही। वे अपना ज्ञान बताने स्वयं पृथ्वी पर तथा अन्य लोकों में प्रकट होते हैं। संत गरीबदास जी ने ‘‘असुर निकंदन रमैणी‘‘ में कहा है कि
‘‘सतगुरू दिल्ली मंडल आयसी। सूती धरती सूम जगायसी।
दिल्ली के तख्त छत्रा फेर भी फिराय सी। चौंसठ योगनि मंगल गायसी।‘‘
संत गरीबदास जी के सतगुरू ‘‘परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी‘‘ थे।
परमेश्वर कबीर जी ने कबीर सागर अध्याय ‘‘कबीर बानी‘‘ पृष्ठ 136 तथा 137 पर कहा है कि बारहवां (12वां) पंथ संत गरीबदास जी द्वारा चलाया जाएगा।
संवत् सतरह सौ पचहत्तर (1775) होई। जा दिन प्रेम प्रकटै जग सोई।।
साखि हमारी ले जीव समझावै। असंख्यों जन्म ठौर नहीं पावै।।
बारहवें पंथ प्रगट हो बानी। शब्द हमारे की निर्णय ठानी।।
अस्थिर घर का मर्म ना पावैं। ये बारा (बारह) पंथ हमही को ध्यावैं।।
बारहवें पंथ हम ही चलि आवैं। सब पंथ मिटा एक पंथ चलावैं।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने स्पष्ट कर दिया है कि 12वें (बारहवें) पंथ तक के अनुयाई मेरी महिमा की साखी जो मैंने (परमेश्वर कबीर जी ने) स्वयं कही है जो कबीर सागर, कबीर साखी, कबीर बीजक, कबीर शब्दावली आदि-आदि ग्रन्थों में लिखी हैं। उनको तथा जो मेरी कृपा से गरीबदास जी द्वारा कही गई वाणी के गूढ़ रहस्यों को ठीक से न समझकर स्वयं गलत निर्णय करके अपने अनुयाईयों को समझाया करेंगें, परंतु सत्य से परिचित न होकर असँख्यों जन्म स्थाई घर अर्थात् सनातन परम धाम (सत्यलोक) को प्राप्त नहीं कर सकेंगे। फिर मैं (परमेश्वर कबीर जी) उस गरीबदास वाले पंथ में आऊँगा जो कलयुग में पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष पूरे होने पर यथार्थ सत कबीर पंथ चलाया जाएगा। उस समय तत्त्वज्ञान पर घर-घर में चर्चा चलेगी। तत्त्वज्ञान को समझकर सर्व संसार के मनुष्य मेरी भक्ति करेंगे। सब अच्छे आचरण वाले बनकर शांतिपूर्वक रहा करेंगे। इससे सिद्ध है कि तेरहवां पंथ जो यथार्थ कबीर पंथ है, वह अब मुझ दास (रामपाल दास) द्वारा चलाया जा रहा है। कृपा परमेश्वर कबीर जी की है। जब परमेश्वर कबीर जी ‘‘तोताद्रि‘‘ स्थान पर ब्राह्मणों के भण्डारे में भैंसे से वेद-मंत्र बुलवा सकते हैं तो वे स्वयं भी बोल सकते थे। समर्थ की समर्थता इसी में है कि वे जिससे चाहें, अपनी महिमा का परिचय दिला सकते हैं। शायद इसीलिए परमेश्वर कबीर जी ने अपनी कृपा से मुझ दास (रामपाल दास) से यह 13वां (तेरहवां) पंथ चलवाया है।
FAQs : "तेरह गाड़ी कागजों को लिखना | जीने की राह"
Q.1 इस लेख में बताया गया है कि दिल्ली के राजा ने पवित्र ग्रंथों को ज़मीन में दफना दिया था इसका कारण क्या था?
दिल्ली के राजा ने कुछ धार्मिक समूहों के दबाव के कारण पवित्र ग्रंथों को ज़मीन में दफना दिया था क्योंकि उन धार्मिक समूहों ने परमेश्वर कबीर जी द्वारा लिखित अनमोल बाणियों का विरोध किया था।
Q.2 मुक्तामणि जी कौन थे और दिल्ली में उनका झंडा क्यों फहराया जाता है?
मुक्तामणि जी एक आध्यात्मिक व्यक्ति थे। यह माना जाता है कि दिल्ली में उनका झंडा फहराने से दफन किए गए ग्रंथ फिर से प्राप्त हो जाएंगे। इसका वर्णन पवित्र कबीर सागर में भी है जो कि इसमें मिलावट के फलस्वरूप है। (कबीर सागर के अध्याय कबीर चरित्र बोध ग्रन्थ में पृष्ठ 1834-1835 पर गलत लिखा है।
Q. 3 इस लेख के अनुसार वंश कितने प्रकार के होते हैं?
वंश 13 प्रकार के होते हैं । इनका वर्णन पवित्र ग्रंथ कबीर सागर में भी है।
Q.4 इस लेख के अनुसार कलयुग को कितने चरणों में बांटा गया है?
परमेश्वर कबीर जी ने कलयुग को तीन चरणों में बांटा है। पहला चरण वह था जब कबीर साहेब स्वयं अपने वास्तविक नाम से काशी में प्रकट हुए थे। दूसरा चरण बीच की पीढ़ी है जो कलयुग के पांच हज़ार पांच सौ पांच वर्ष बीतने के बाद शुरु हुई, जो कि वर्तमान में चल रही है। इसके अलावा तीसरा और अंतिम चरण वो होगा जिसमें सभी प्राणी कृतघ्नी हो जाएंगे और कोई भी भक्ति करने में विश्वास नहीं रखेगा।
Q.5 इस लेख में परमेश्वर कबीर जी की कौन सी असाधारण योग्यता बताई गई है?
परमेश्वर कबीर जी में पवित्र ग्रंथों में आध्यात्मिक गूढ़ रहस्यों को असाधारण तरीके से लिखने की योग्यता है, यही उनको सबसे सक्षम बनाता है।
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Abhishek Patel
देखिए इस बात की तो कल्पना करना भी मुश्किल है कि कोई इतने कागज़ों पर लिख भी सकता है। मैंने केवल परियों की कहानियों में ऐसी चीजें होती सुनी हैं, हकीकत में ऐसा कुछ नहीं होता।
Satlok Ashram
अभिषेक जी, आपने हमारे लेख को पढ़ा और उसमें अपनी रूचि दिखाई, इसके लिए आपका धन्यवाद। देखिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर कबीर जी के लिए कुछ भी करना असंभव नहीं है, वह हर असंभव कार्य को संभव कर सकते हैं। 13 गाड़ियों में लदे कागज़ों पर लिखना उनके लिए बहुत छोटी और साधारण सी बात है। यहां तक कि वे तो एक कागज़ पर एक सैकंड से भी कम समय में पूरी दुनिया को अंकित कर सकते हैं। परमेश्वर की शक्तियां अद्भुत और अलौकिक हैं, जिसकी मनुष्य कल्पना भी नहीं कर सकता। परमेश्वर की करनी को असंभव और मामूली मानना मनुष्य की सबसे बड़ी मूर्खता है। परमात्मा सब कुछ कर सकता है बस उन पर विश्वास होना चाहिए। अधिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को यूट्यूब चैनल पर सुनिए। इसके अलावा आप "जीने की राह" पुस्तक पढ़कर सर्वशक्तिमान परमेश्वर कबीर जी के चमत्कारों के बारे में गहराई से जान सकते हैं।