36. अब भक्ति से क्या होगा? आयु तो थोड़ी-सी शेष है। | जीने की राह


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जिला जींद में गाँव ‘मनोरपुर’ में भक्त रामकुमार जी के घर तीन दिन का पाठ तथा सत्संग हो रहा था। गाँव में पुरूष सत्संग को पाखण्ड मानते हैं क्योंकि पुराने जमाने में सत्संग का आयोजन वृद्ध स्त्रियां करती थी। रात्रि में सत्संग करती थी, दिन में पुत्रवधु को भाई-भतीजों की गालियों से कोसती (बद्दुआ देती) थी। कोई-कोई तो दूसरे के बिटोड़े से गोसे (उपले) तक चुरा लेती थी। कभी पकड़ी जाती थी तो बदनामी होती थी। इसी तरह की घटनाओं से सत्संग नाम से लोगों को एलर्जी थी। भक्त रामकुमार जी के पूरे परिवार ने दीक्षा ले रखी थी। उनको पता था कि यह सत्संग भिन्न है। जब रामकुमार जी के पिता जी को पता चला कि हमारे घर में बड़ा बेटा सत्संग करा रहा है तो बहुत बेइज्जती मानी और सोचा कि गाँव क्या कहेगा? इसलिए वह वृद्ध तीन दिन तक अपने बड़े बेटे के घर पर नहीं आया। छोटे बेटे के घर चौबारे में रहा। दिन में खेतों में चला जाए, रात्रि में चौबारे में हुक्का पीवे और दुःख मनावै कि ये कैसे दिन देख रहा हूँ।

रात्रि में दास (लेखक) ने सत्संग किया। लाऊड स्पीकर लगा रखा था। रामकुमार के लड़के को पता था कि दादा जी ऊपर चौबारे में है। उसने एक स्पीकर का मुख दादा जी के चौबारे की ओर कर दिया। सत्संग का वचन सुनना वृद्ध की मजबूरी बन गई। दो दिन सत्संग सुनकर वृद्ध तीसरे दिन पाठ के भोग पर रामकुमार जी के घर आ गया। रामकुमार जी की पत्नी ने बताया कि मैंने सोचा था कि बूढ़ा बात बिगाड़ने आया है। महाराज जी को गलत बोलेगा। पाठ का भोग लगने के पश्चात् रामकुमार जी के पिता जी मेरे सामने बैठ गए और कहने लगे, महाराज जी! मैं तो इस सत्संग से घना नाराज था, परंतु दो दिन आपकी बात सुनी, मेरे को झंझोड़कर रख दिया। मैंने तो मनुष्य जीवन का पूरा ही नाश कर दिया। मैंने आठ एकड़ जमीन और मोल ली, दोनों बेटों को पाला-पोसा, दिन-रात खेती के काम में लगा रहा। आपके विचारों से पता चला है कि मैंने तो जीवन नाश कर दिया। अब 75 वर्ष की आयु हो चुकी है। अब भक्ति से क्या बनेगा? यह बात कहकर वह वृद्ध रोने लगा। हिचकी लग गई। मैंने उसे सांत्वना देते हुए कहा कि आप विश्वास करो अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है। एक उदाहरण जो गुरू जी से इस दास (रामपाल दास) ने सुना था। बताया कि जैसे कूंए में बाल्टी छूट गई हो और उसकी नेजू (रस्सी जो बाल्टी से बाँधी जाती है, जिससे बाल्टी द्वारा कूंए से पानी निकाला जाता है। पुराने समय में कूंए लगभग 100-150 फुट गहरे होते थे।) भी कूंए में जा रही हो। यदि दौड़कर नेजू को पकड़ने की कोशिश करने से नेजू की पूँछ (अंतिम सिरा) भी हाथ में आ जाए तो कुछ भी नहीं गया। बाल्टी भी मिल गई और पानी भी प्राप्त हो गया। यदि यह विचार करे कि बाल्टी तो गई, जाने दे तो मूर्खता है। इसी प्रकार आपकी आयु रूपी नेजू की पुछड़ी (End) बची है। अब दीक्षा लेकर सर्व नशा त्यागकर मर्यादा में रहकर साधना करो, मोक्ष हो जाएगा। उसी समय उस भक्तात्मा ने दीक्षा ली और पूरी लगन के साथ भक्ति की। वह 85 वर्ष की आयु में शरीर त्यागकर गया। जीवन सफल किया। वह हुक्का पीता था। उसी दिन त्याग दिया और आजीवन हाथ भी नहीं लगाया। रामकुमार के छोटे भाई के परिवार ने भी नाम लिया। वृद्ध भक्त उनको स्वयं लेकर सत्संग आता था। भक्ति करने को कहता था। गाँव मनोरपुर के लोग आश्चर्यचकित थे कि इतना हुक्का पीने वाले ने कैसे हुक्का छोड़ दिया? हुक्का पीने वालों के पास भी नहीं बैठता।

एकै चोट सिधारिया जिन मिलन दा चाह।

हरियाणवी कहावत है कि:-

घाम का और ज्ञान का चमका-सा लाग्या करै।

शब्दार्थ: भावार्थ है कि भादुआ के महीने में धूप (घाम) का जोर अधिक होता है। खेत में काम करने वालों को घाम मार जाता है। (घाम मारना = धूप से शरीर में हानि होना, जिस कारण से शरीर में गर्मी बढ़ जाती है, ज्वर हो जाता है। इसको कहते हैं घाम मार गया।) वह व्यक्ति वैद्य को कहता था कि मुझे तो पता भी नहीं चला कब घाम मार गया। वैद्य कहता था कि घाम का तो चमका-सा लगता है यानि अचानक प्रभाव पड़ जाता है। इसी प्रकार जिनको ज्ञान का प्रभाव होना हो तो एक-दो बिंदु पर ही ज्ञान हो जाता है, भक्ति पर लग जाता है।


 

FAQs : "अब भक्ति से क्या होगा? आयु तो थोड़ी-सी शेष है। | जीने की राह"

Q.1 इस लेख में सत्संग और पाठ कार्यक्रम के बारे में क्या जानकारी बताई गई है?

इस लेख में जींद जिले के मनोरपुर नामक गांव में आयोजित सत्संग और पाठ कार्यक्रम के विषय में बताया गया है। वहां पर भक्त रामकुमार जी के परिवार ने तीन दिवसीय आध्यात्मिक समागम का आयोजन अपने घर पर ही करवाया था। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य लोगों में आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार करना और भक्ति के महत्त्व को समझाना था।

Q.2 पहले गांव वाले सत्संग को पाखंड क्यों मानते थे?

पहले गांव वाले सत्संग को पाखंड इसलिए मानते थे क्योंकि बुजुर्ग महिलाएं जो दिन में तो सत्संग का आयोजन करती थीं लेकिन बाद में घर वालों और दूसरों के साथ बुरा व्यवहार करती थीं। जैसे कि अपनी बहुओं से झगड़ा करना और दूसरों के गोबर के उपले चुराना आदि। इन्हीं कारणों से गांव में सत्संग के प्रति गलत धारणा ने जन्म ले लिया क्योंकि सत्संग का व्यक्ति के व्यवहार पर बहुत गहरा असर पड़ता है। परंतु गांव की औरतों के व्यवहार में बदलाव नहीं नज़र आ रहा था।

Q. 3 रामकुमार जी के घर जो सत्संग आयोजन किया गया था, वह अन्य सत्संगों से भिन्न कैसे था?

रामकुमार जी के घर पर आयोजित हुआ सत्संग अन्य सत्संगों से इसलिए भिन्न था क्योंकि उसका उद्देश्य सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान और भक्ति को बढ़ावा देना था। रामकुमार जी के परिवार ने भी नाम दीक्षा ली थी। जिससे पता चलता है कि उनकी सत्संग के प्रति गहरी आस्था थी।

Q.4 सत्संग सुनने से रामकुमार जी के पिता जी का दृष्टिकोण कैसे बदला?

पहले तो रामकुमार जी के पिता अपने घर में हो रहे सत्संग से बहुत परेशान थे। लेकिन जब उन्होंने दो दिन तक संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचन सुने तो उनके मन पर आध्यात्मिक ज्ञान का गहरा प्रभाव पड़ा। फिर उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने तो अपना सारा जीवन सांसारिक कामों में ही बर्बाद कर दिया है। उन्हें अपने पिछले कर्मों पर बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने संत रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षा ली।

Q.5 जब रामकुमार जी के पिता ने नाम दीक्षा ली तब उनकी आयु कितनी थी?

जब रामकुमार जी के पिता ने नाम दीक्षा ली थी तब वह 75 साल के थे।

Q.6 जब रामकुमार जी के पिता जी ने अपनी उम्र और पिछले कर्मों की परेशानी को आध्यात्मिक गुरु संत रामपाल जी महाराज जी को बताया तो उन्होंने क्या सलाह दी?

संत रामपाल जी महाराज जी ने रामकुमार जी के पिता को ईश्वर पर विश्वास रखने और नाम दीक्षा लेने की सलाह दी थी। फिर उन्होंने समझाया कि जैसे गलती से कुएं में बाल्टी गिर जाए और रस्सी का एक आखिरी हिस्सा (नेचू) पकड़ में आ जाए तब भी बाल्टी को कुएं में गिरने से बचाया जा सकता है। अगर वह बचा हुआ आखिरी हिस्सा भी पकड़ लिया तो पूरी बाल्टी पानी समेत बाहर खींची जा सकती है। ठीक इसी प्रकार बुढ़ापे में भी भक्ति शुरु करने से कल्याण हो सकता है। उन्होंने रामकुमार जी के पिता को सभी नशीले पदार्थों को छोड़ने और भक्ति के नियमों का पालन करने के लिए कहा। उन्होंने उन्हें विश्वास दिलाया कि इस उम्र में भी भक्ति करके मोक्ष पाना संभव है।

Q.7 रामकुमार जी के पिता जी को भक्ति के प्रति समर्पण करने से क्या लाभ हुआ?

रामकुमार जी के पिता जी हुक्का पीने के आदी थे। लेकिन संत रामपाल जी से नाम दीक्षा लेने के बाद उन्होंने धूम्रपान करना छोड़ दिया और भक्ति के प्रति अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने 85 वर्ष की आयु में अपने निधन तक भक्ति की थी। जिससे उनका जीवन भी सफल हुआ।

Q.8 लेख में वर्णित हरियाणवी कहावत "घाम का और ज्ञान का चमका-सा लाग्या करे" का क्या मतलब है?

हरियाणवी कहावत, "घाम का और ज्ञान का चमका-सा लाग्या करे," का अर्थ है कि जिस तरह अचानक से सूरज की चमक लू का कारण बन सकती है। उसी तरह ज्ञान होने से व्यक्ति का आंतरिक मन बदल सकता है। यह कहावत व्यक्ति के जीवन में आध्यात्मिक ज्ञान के गहन प्रभाव को दर्शाती है।


 

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Lata Tiwari

मेरे दादाजी पिछले छह महीनों से संत रामपाल जी महाराज जी के प्रवचन सुन रहे हैं। वह संत रामपाल जी महाराज जी के ज्ञान से बहुत प्रभावित हैं। उन्होंने हमें बताया कि उन्होंने संत रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षा लेने का मन बना लिया है। लेकिन वह काफी वृद्ध हैं और उन्हें चलने में भी कठिनाई होती है। इसलिए उनकी शारीरिक परेशानियों के कारण हमने उन्हें नाम दीक्षा लेने से मना कर दिया है।

Satlok Ashram

लता जी, हमें यह जानकर बहुत अच्छा लगा कि आपके दादा जी को संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक ज्ञान में रूचि है। देखिए भक्ति मार्ग पर चलने के लिए कोई निश्चित आयु-सीमा नहीं होती। जब भी किसी व्यक्ति को आध्यात्मिक ज्ञान समझ आ जाता है तब ही तुरंत सच्चे संत से नाम दीक्षा ले लेनी चाहिए क्योंकि मानव जीवन का कोई भरोसा नहीं इसलिए इस मनुष्य जीवन के अवसर का लाभ उठाना चाहिए। हमें यह जानकर भी बहुत खुशी हुई है कि आपके दादा जी ने इस आध्यात्मिक ज्ञान को समझ लिया है और वह संत रामपाल जी से नाम दीक्षा लेना चाहते हैं। हम आपको नज़दीकी नाम दीक्षा केंद्र का पता दे सकते हैं और आपके दादा जी की नाम दीक्षा की प्रक्रिया में सहायता कर सकते हैं। फिर ईश्वर की कृपा से ही वह भक्ति कर सकते हैं। हम आपको सलाह देते हैं कि आप "जीने की राह" पुस्तक पढ़िए और संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को सुनिए।

Simran Joshi

मेरी ईश्वर में गहरी आस्था है। आध्यात्मिक ज्ञान से ही अज्ञानता से ऊपर उठा जा सकता है। संत रामपाल जी महाराज जी के प्रवचनों को सुनने के बाद मेरे अंदर ईश्वर से जुड़ने की इच्छा और बढ़ गई है। लेकिन युवावस्था में होने के कारण मैं सांसारिक जीवन का आनंद लेना चाहता हूं। इसलिए मैंने सोचा है कि मैं बुढ़ापे में भक्ति करूंगा।

Satlok Ashram

हमें खुशी है कि आप संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचन सुनते हैं क्योंकि सत्संग सुनने से ही मनुष्य को अपने मनुष्य जीवन के मुख्य उद्देश्य का ज्ञान होता है। हमें कबीर साहेब जी के अधिकारी संत, संत रामपाल जी के ज्ञान से ही पता चला है कि मानव जीवन अनिश्चित है। सभी मनुष्यों को संत रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षा लेकर अपने जीवन को सुरक्षित और सफल करना चाहिए। यह बहुत अच्छी बात है कि आपने आध्यात्मिक ज्ञान को समझ लिया है और आप आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए तैयार भी हैं। लेकिन आपको यह कार्य वृद्धावस्था तक नहीं टालना चाहिए क्योंकि कोई नहीं जानता कि कब, यहां किसी की मृत्यु का समय आ जाए। इसलिए तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेकर ईश्वर से जुड़ना ज़रूरी है। नाम दीक्षा लेने से हमारे पिछले कर्मों के पापों का बोझ भी हल्का होता है और फिर उससे दुख रूपी कांटे भी कटते हैं। हम आपसे निवेदन करते हैं कि आप संत रामपाल जी महाराज जी की आध्यात्मिक शिक्षाओं को अच्छी तरह से समझें। उनके द्वारा लिखित पुस्तक "जीने की राह" को पढ़िए। इस पुस्तक को पढ़ने से आपको जीवन का सही मार्ग पता चलेगा जिस पर चलकर आपका कल्याण हो सकता है।