11. कृतघ्नी पुत्र | जीने की राह


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एक व्यक्ति के दो पुत्र थे। फौज से सेवानिवृत्त था। पैंशन बनी थी। पुत्र अलग-अलग हो गए। छोटे पुत्र ने माता को अपने घर पर रख लिया क्योंकि बच्चे छोटे थे। माता उनकी देखरेख के लिए चाहिए थी। बड़े के बाँटे पिता आ गया। पिता ने कहा कि मैं पैंशन के रूपये उसको दूँगा जिसमें रोटी खाऊँगा। छोटा बेटा कहता था कि आधी-आधी पैंशन बाँट दिया कर। पिता ने मना कर दिया तो एक दिन पिता के सिर में लाठी मारी। पिता तुरंत मर गया। लड़के को आजीवन कारावास की सजा हो गई। व्यक्ति को पुत्र प्राप्त होने के कारण उसके दर्शन शुभ माने जाते थे जिसके साथ अशुभ हो गया। अब आध्यात्मिक तराजू (Balance) में तोलकर देखते हैं कि बिना संतान वाले के दर्शन शुभ हैं या अशुभ? जैसे इसी पुस्तक में ऊपर स्पष्ट किया है कि परिवार संस्कार से बनता है। कोई कर्ज उतारने के लिए पिता-पुत्र, पत्नी, माता-पिता, बहन-भाई आदि के रूप में जन्म लेकर परिवार रूप में ठाठ से रहते दिखाई देते हैं, परंतु कई युवा अवस्था में मर जाते हैं। कई विवाह होते ही मर जाते हैं। ये सब अपना ऋण पूरा होते ही अविलंब शरीर त्याग जाते हैं। जिनको संतान नहीं हुई है, उनका कोई लेन-देन शेष नहीं है। वे यदि पूर्ण गुरू से दीक्षा लेकर भक्ति करें तो उन जैसा सौभाग्यवान कोई नहीं है। न किसी के जन्म की खुशी, न मृत्यु का दुःख। उन बिना औलाद वालों का दर्शन तो अति शुभ है। यदि भक्ति नहीं करते तो चाहे औलाद (संतान) वाले हों, चाहे बेऔलादे (बिना संतान वाले) दोनों ही अपना जीवन नष्ट कर जाते हैं। यदि भक्ति करते हैं तो दोनों के दर्शन शुभ हैं।


 

FAQs : "कृतघ्नी पुत्र | जीने की राह"

Q.1 एक एहसान फरामोश बेटे की क्या पहचान है?

एक एहसान फरामोश बेटा अपने माता पिता के प्रेम, पालन पोषण, त्याग की कभी कद्र नहीं करता। बल्कि अपने माता पिता का अनादर और उनके साथ बुरा व्यवहार करता है।

Q.2 क्या संतान न होना खुशकिस्मती का प्रतीक माना जाता है?

जी हां, आध्यात्मिक दृष्टिकोण से संतान न होना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। ऐसा इसलिए माना जाता है क्योंकि उस दंपति पर किसी का पिछले जन्म का कोई ऋण बाकी नहीं होता। इस तरह उनके मोक्ष मार्ग में ऐसे पिछले संस्कार कोई बाधा नहीं करते।

Q. 3 आध्यात्मिकता के अनुसार परिवार कैसे बनते हैं?

आध्यात्मिक दृष्टि से परिवार पिछले संस्कारों के कारण ही यहां बनते हैं। फिर जिन व्यक्तियों ने आपस में ऋण लिया होता है वह उसी परिवार में जन्म लेते हैं। इस तरह परिवार बनते हैं।

Q.4 क्या सुबह-सुबह किसी निःसंतान का मुख देखना अपशगुन माना जाता है?

जी नहीं, यह एक गलत धारणा है। सुबह-सुबह किसी निःसंतान का मुख देखना अपशगुन नहीं होता। जबकि निःसंतान दंपति को आध्यात्मिक दृष्टि से पुण्य आत्मा माना जाता है क्योंकि इन्होंने पिछले जन्मों में किसी से किसी प्रकार का ऋण नहीं लिया होता। इस तरह इस प्रकार के लोग आध्यात्मिक दृष्टि से मोक्ष प्राप्त करने के ज्यादा योग्य माने जाते हैं। इसके अलावा निःसंतान लोगों को ईश्वर पुण्य आत्मा मानते हैं।


 

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Shivam

मैं एक निःसंतान हूं। इसलिए लोग मुझे बदकिस्मत समझते हैं और मुझसे मुख मोड़ लेते हैं। मुझे ग्लानि होती है, मैं क्या करूं?

Satlok Ashram

आपको अनमोल पुस्तक 'जीने की राह' पढ़नी चाहिए। फिर आपको पता चलेगा कि आध्यात्मिक दृष्टि से निःसंतान को सौभाग्यशाली माना जाता है क्योंकि उन पर किसी का पिछले जन्म से कोई कर्ज़ नहीं होता है। इसके अलावा मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य तो सतभक्ति करके मोक्ष प्राप्त करना है। हम सभी यहां एक-दूसरे से संस्कारवश जुड़े हैं। हमारा यहां परिवार भी हमारे पुराने जन्म के संस्कार के कारण बना है। आप विस्तार से इसकी जानकारी प्राप्त करने के लिए संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचन सुनें।

Mona Kumari

मेरा बेटा-बहू दोनों ही मेरे पति और मेरे साथ बुरा व्यवहार करते हैं। इतना ही नहीं वह हमें वृद्धाश्रम भी भेजने की तैयारी कर रहे हैं। दोनों ही एहसान फरामोश हैं। ऐसे में हमें क्या करना चाहिए?

Satlok Ashram

देखिए आज जो आपके साथ बुरा व्यवहार हो रहा है वह आपके पिछले जन्मों में किए गए कर्मों का फल है। यदि आप सतभक्ति करेंगे तो आपके शुभ कर्मों में बढ़ोतरी होगी। परमात्मा आपकी रक्षा करेंगे और आपको अपने वर्तमान, भविष्य और भूतपूर्व में किए गए कर्मों को समझने में मदद मिलेगी। आपका बेटा-बहू आपके साथ ऐसा बर्ताव न करें इसके लिए आपको पूर्ण संत से नाम दीक्षा लेनी चाहिए और अनमोल पुस्तक 'जीने की राह' पढ़नी चाहिए। जिसके बाद आप एक खुशहाल और शांति पूर्ण जीवन व्यतीत कर सकते हैं। आप अपने परिवार के सदस्यों से भी जीवन को बदल देने वाली इस अनमोल पुस्तक को पढ़ने के लिए प्रार्थना करें तथा पूर्ण संत का सत्संग सुनें। इस पुस्तक को पढ़ने और इसके अनुसार चलने से आप और आपका परिवार भी खुशहाल बन सकता है।