34. चोर कभी धनी नहीं होता | जीने की राह


thief-never-becomes-rich-hindi-photo

कबीर परमेश्वर जी अपने विधानानुसार एक नगर के बाहर जंगल में आश्रम बनाकर रहते थे। कुछ दिन आश्रम में रहते थे, सत्संग करते थे। फिर भ्रमण के लिए निकल जाते थे। उनका एक जाट किसान शिष्य था जो कुछ ही महीनों से शिष्य बना था। किसान निर्धन था। उसके पास एक बैल था। उसी से किसी अन्य किसान के साथ मेल-जोल करके खेती करता था। दो दिन अन्य का बैल स्वयं लेकर दोनों बैलों से हल चलाता था। फिर दो दिन दूसरा किसान उसका बैल लेकर अपने बैल के साथ जोड़कर हल जोतता था। किसान अपने कच्चे मकान के आँगन में बैल को बाँधता था। एक रात्रि में चोर ने उस किसान के बैल को चुरा लिया। किसान ने देखा कि बैल चोरी हो गया तो सुबह वह आश्रम में गया। गुरूदेव जी से अपना दुःख सांझा किया। गुरूदेव जी ने कहा कि बेटा! विश्वास रख परमात्मा पर, दान-धर्म-भक्ति करता रह, आपको परमात्मा दो बैल देगा। जो चुराकर ले गया है, वह पाप का भागी बना है। परमेश्वर की कृपा से बारिश अच्छी हुई। किसान भक्त की फसल चौगुनी हुई। भक्त किसान ने दो बैल मोल लिये और उनको अच्छी खुराक खिलाई। बैल खागड़ों (सांडों) जैसे ताकतवर हो गए। गाँव में उसके बैलों की चर्चा होती थी। एक वर्ष पश्चात् वही चोर उसी क्षेत्र में चोरी करने आया। कहीं दाँव नहीं लगा। उसने विचार किया कि जिसका बैल चुराया था, उसके घर देखता हूँ, हो सकता है कोई बैल ले आया हो। देखा तो दो बैल खागड़ों जैसे बँधे थे। चोर ने दोनों चुरा लिए। किसान जागा तो बैल चोरी हो चुके थे। गुरू जी से बताया तो गुरू जी ने कहा कि बेटा! तेरे घर चार बैल देगा भगवान। चोर कभी सेठ नहीं हो सकता। पाप-पाप इकट्ठे करता है। रजा परमात्मा की, आशीर्वाद गुरूदेव का, बारिश ने किसानों की मौज कर दी। भक्त किसान के पास जमीन पर्याप्त थी, परंतु बारिश के अभाव से खेती थोड़े क्षेत्र में करता था। बारिश अच्छी हो गई। दो बैल मोल लिए, दो कर्जे पर लिए, खेती अधिक जमीन में की। एक नौकर हाली रखा। एक वर्ष में सब कर्ज भी उतर गया। बैल चार हो गए खागड़ों जैसे मोटे-मोटे, तगड़े-तगड़े। मकान भी पक्का बना लिया। चोर दो वर्ष के पश्चात् उधर गया और पहले उसी किसान की स्थिति देखने गया। चोर ने देखा कि चार बैल सांडों जैसे बैठे थे और चोर के पास दो दिन का आटा शेष था। अधिक निर्धन हो गया था। चोर ने किसान को रात्रि में नींद से उठाया तो किसान बोला, कौन हो आप? चोर ने कहा कि मैं चोर हूँ जिसने तेरे तीन बैल चुराए थे। किसान बोला, भाई! मेरी नींद खराब ना कर, तू अपना काम कर। परमात्मा अपना कर रहा है, मुझे सोने दे। चोर ने पैर पकड़ लिए और बोला, हे देवता! मेरे से अब चोरी नहीं हो रही। एक बात बता, आपका चोर आपके सामने खड़ा है, आप पकड़ भी नहीं रहे हो। हे भाई! तेरा एक बैल मैंने चुराया, तेरे घर अगले वर्ष दो बैल खागड़ों जैसे बँधे थे, वे दोनों भी मैं चुरा ले गया। आज दो वर्ष पश्चात् आपके आँगन में चार बैल खागड़ों जैसे बँधे हैं। मेरा सर्वनाश हो चुका है। बालक भी भूखे रहते हैं। मुझे मार चाहे छोड़, मुझे तेरे विकास का राज बता। मैं भी जाट किसान हूँ, जमीन भी है। निर्धनता बेअन्त है। भक्त किसान ने उसको कहा कि आप स्नान करो, खाना खाओ। चोर ने वैसा ही किया। फिर भक्त उस चोर को आश्रम में लेकर गया। गुरूदेव से सब घटना बताई। गुरू देव ने चोर को समझाया। सात-आठ दिन भक्त किसान ने अपने घर पर रखा और प्रतिदिन गुरू जी से मिलाकर सत्संग सुनाया। चोर ने दीक्षा ली। गुरू जी ने कहा कि भक्त बेटा! नए भक्त को एक बैल दे दे उधारा। खेती करेगा, तेरे पैसे लौटा देगा। भक्त ने कहा, गुरूजी! ठीक है। भक्त किसान ने नए भक्त को एक बैल दे दिया। नया भक्त प्रति महीना सत्संग में आता था। पूरे परिवार को नाम (दीक्षा) दिला दिया। दो वर्ष में वित्तीय स्थिति अच्छी हो गई। एक बैल तीन पहले वाले (चोरी वाले) बैलों के रूपये लेकर चोर भक्त उस किसान भक्त के घर आया। उसके बच्चे भी साथ थे। किसान भक्त से उस चोर भक्त ने सब पैसे देकर कहा कि मुझे क्षमा करना। आपका उपकार मेरी सात पीढ़ी भी नहीं उतार पाएगी। पुराना भक्त बोला कि हे भाई! यह सब गुरूदेव जी की कृपा है। उनका वचन फला है। आप यह सब रूपये गुरू जी को दान रूप में दो। मेरे को तो उन्होंने पहले ही कई गुणा बैलों की पूंजी दे दी थी। मेरे काम की नहीं। दोनों भक्त गुरू जी के पास गए और सर्व दान राशि चरणों में रख दी। गुरू जी ने भोजन-भण्डारा (लंगर) में लगा दी, सत्संग किया। इस प्रकार चोरी का धन मोरी में जाता है। भक्त सदा फलता-फूलता है।

‘‘संस्कार छूत के रोग की तरह फैलते हैं’’:-

अच्छे तथा बुरे संस्कार संक्रमण रोग की तरह फैलते हैं जैसे भक्त के हाथ से बोये गए बीज में भी भक्ति संस्कार प्रवेश होते हैं। जो उस अन्न को खाता है, उसमें भी भक्ति की प्रेरणा होती है।

यदि कोई नशा करने वाला तथा किसी प्रकार के अन्य विचारों को मन में मंथन करता हुआ हाली बीज बोता है तो उस बीज में भी उसके विचार प्रवेश होते हैं जो उस अन्न को खाने वाले को प्रभावित करते हैं।

उदाहरण:- एक बहन ने गुरू दीक्षा ले रखी थी। उसके घर पर गुरू जी आए तथा साथ में एक शिष्य भी था। उस बहन की बहन भी किसी कार्यवश उसी दिन आ गई।

उसका दामाद मृत्यु को प्राप्त हो गया था। लड़की के छोटे-छोटे बच्चे थे। वह बहुत चिंतित थी। रह-रहकर विचार उठ रहे थे कि बेटी का निर्वाह कैसे होगा? बेटी तो उजड़ गई। देवर-जेठ किसी के नहीं होते। बच्चो को कौन पालेगा? हे भगवान! यह क्या बनी? कौन-से जन्म का पाप आड़े आ गया? उपदेशी बहन भोजन बनाने लगी तो उसकी बहन उसकी सहायता करने लगी। अधिक भोजन उस बहन ने बनाया जिसका दामाद मर गया था। संत-भक्त खाना खाकर सो गए। सुबह भक्त ने गुरू देव जी से कहा कि हे गुरूदेव! आज रात्रि में निंद्रा के दौरान मन बहुत दुःखी रहा। जैसे मेरा दामाद मर गया। बेटी के छोटे-छोटे बच्चे हैं। उनकी बेहद चिंता सताती रही। इनका क्या होगा? कैसे निर्वाह होगा? गुरू जी ने अपनी शिष्या से पूछा कि बेटी! रात्रि का भोजन किसने बनाया था? उसने उत्तर दिया कि मेरी छोटी बहन आई है, उसने बनाया था। संत ने पूछा कि उसको कोई कष्ट है क्या? शिष्या ने उत्तर दिया कि गुरूदेव! कष्ट तो बहुत ज्यादा है। लड़की के छोटे-छोटे बच्चे हैं। दामाद की मृत्यु हो गई है। सारा-सारा दिन मेरी बहन इसी चिंता में रहती है। दिन में कई-कई बार यह कहती रहती है कि बेटी का क्या होगा? कैसे बच्चों का पालन करेगी?


गुरू जी ने शिष्य को बताया कि उस बेटी के विचार भोजन में प्रविष्ट हुए और खाने वाले को प्रभावित किया। मेरे को भी यही परेशानी सारी रात रही थी। इसी प्रकार यदि भक्ति नाम-स्मरण या आरती या संतों की वाणी का मनन करते-करते भोजन बनाया जाए तो खाने वाले में वे सुसंस्कार अच्छी प्रेरणा करते हैं। भक्ति की रूचि बढ़ती है। कोई हाली गाने-रागनी गाता हुआ बीज बोता है या खाना बनाने वाली गाने या रागनी गाती हुई भोजन बनाती है तो उस अन्न में वे संस्कार प्रवेश हो जाते हैं। उसे खाने वाले का स्वभाव भी उसी प्रकार बकवाद करने को प्रेरित होता है जिसका परिणाम वर्तमान (1997 के आसपास) में दिखाई दे रहा है। अच्छाई में कम बुराई में अधिक सँख्या में मानव लगा है।


यदि संतों की वाणी-पाठ-आरती-स्मरण करने वालों की सँख्या अधिक हो जाएगी तो वातावरण भक्तिमय हो जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति के मन में भक्त जैसे भाव उपजेंगे। उस वातावरण को बनाने के लिए घर-घर में आरती, रमैणी तथा नित्य-नियम चलना चाहिए। गुरू से दीक्षा लेकर नाम का स्मरण करना चाहिए जिससे वातावरण में भक्ति के विचारों के तत्व अधिक भर जाएंगे तथा बुरे संस्कारों वाले विचार ऊपर उठ जाएंगे। भक्ति संस्कार ऑक्सीजन जानों तथा बुरे विचार कार्बन डाइ ऑक्साइड समझें। ऑक्सीजन रूपी भक्ति संस्कार के सिलेंडर के सिलेंडर खोलने पड़ेंगे यानि सद्ग्रन्थ साहिब के पाठ पर पाठ करने पड़ेंगे तथा तीनों समय की संध्या (नित्य कर्म) करने होंगे। स्मरण करना होगा। भक्ति करने वालों की सँख्या बढ़ेगी तो भक्ति के विचार भी पृथ्वी पर अधिक फैलेंगे जिनसे प्रत्येक के मन में शांति का आभास होगा। सत्संग करने किसी के घर जाते थे तो पहले दिन तो हमारा भी मन अशांत-सा हो जाता था। फिर प्रत्येक भक्त अपनी-अपनी रमैणी, सुबह के नित्य-नियम, शाम की आरती तथा स्मरण करते, फिर सत्संग सुनाता, तब उस घर से बुरे विचार (कुसंस्कार) निकल जाते। सुसंस्कारों की अधिकता होने से मन शांत होता। जब हम सत्संग या पाठ करके अगले गाँव जाने लगते थे तो पूरा परिवार रोने लग जाता था। उनको इतनी शांति संत व भक्तों के संग में मिलती थी। उन संस्कारों का प्रभाव महीनों रहता है। यदि नाम लेकर प्रतिदिन की तीनों संध्या व स्मरण परिवार के लोग करने लग जाऐं तो वह शांति सदा बनी रहती है।

जो बीड़ी-हुक्का में तमाखू (तम्बाकू) पीता है और वह बीज बोता है तो उस अन्न में भी तमाखू की वासना (सूक्ष्म तत्व) प्रवेश कर जाते हैं। उस अन्न को खाने वाले में भी तमाखू सेवन करने की प्रेरणा बन जाती है। जिस कारण से नशा तेजी से युवाओं में बढ़ रहा है। जब तक बच्चे हैं, तब तक तो पिता-चाचा-ताऊ, दादा जी के डर से तम्बाकू सेवन नहीं करते, परंतु युवा होते ही वे संस्कार प्रबल हो जाते हैं और नशे की आदत शीघ्र पड़ जाती है। मेरा उद्देश्य है कि मानव समाज से नशा तथा अन्य सर्व बुराई जड़ से समाप्त करके धरती पर स्वर्ग बनाऊँ। परमात्मा कबीर जी का कहा वचन साकार हुआ देखना चाहता हूँ। उन्हीं की प्रेरणा व शक्ति से यह अनमोल कार्य सफल हो सकता है। यह दास तथा मेरे अनुयाई सच्ची नीयत से इस मिशन की सफलता के लिए प्रयत्नशील हैं। सफलता की पूरी आशा है।


 

FAQs : "चोर कभी धनी नहीं होता | जीने की राह"

Q.1 क्या कोई व्यक्ति चोरी करके अमीर बन सकता है?

जी बिल्कुल नहीं, चोरी करके कोई भी व्यक्ति कभी अमीर नहीं बन सकता। चोरी करना अनैतिक और असंवैधानिक है। चोरी करने पर व्यक्ति को भयानक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं जैसे चोरी करके पकड़े जाने पर कानूनी सज़ा भी भुगतनी पड़ती है।

Q.2 जो एक बार चोरी कर लेता है वह हमेशा चोर ही कहलाता है। इस कथन का क्या मतलब है?

इसका मतलब यह है कि जो लोग चोरी करते हैं और वह चोरी करना छोड़ते नहीं। उनके लिए चोरी करना एक बुरी लत के समान है। अधिकतर यह बुराई आदतवश भी की जाती है।

Q. 3 चोर की मानसिकता क्या होती है?

चोर की मानसिकता यह होती है कि चोरी करके भी वह अपना गुज़ारा कर सकते हैं और धन संग्रहित कर सकते हैं। लेकिन यह धारणा गलत है क्योंकि गलत कामों के गलत ही परिणाम भुगतने पड़ते हैं। इसके अलावा परमेश्वर का भी यही विधान है कि मनुष्य को अपने किए कर्मों का फल भोगना पड़ता है।

Q.4 चोरी जैसी बुराई को कैसे रोका जा सकता है?

चोरी जैसी व्यक्तिगत बुराई पर रोक लगाने के लिए तत्वदर्शी संत से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। फिर सच्चे संत के बताए अनुसार जीवन व्यतीत करने से ही बुराईयों से बचा जा सकता है क्योंकि पूर्ण संत ही मनुष्य को नैतिकता सिखा सकता है।


 

Recent Comments

Latest Comments by users
यदि उपरोक्त सामग्री के संबंध में आपके कोई प्रश्न या सुझावहैं, तो कृपया हमें [email protected] पर ईमेल करें, हम इसे प्रमाण के साथ हल करने का प्रयास करेंगे।
Manju Yadav

मेरा मानना है कि अच्छे कर्मों का अच्छा परिणाम मिलता है। मैं अपने जीवन में ईमानदार हूं और दूसरों को कोई कष्ट नहीं देती हूं। लेकिन फिर भी मुझे कष्टों का सामना करना पड़ता है। जबकि मेरे पड़ोसी गलत काम भी करते हैं और दूसरों का शोषण करने के बावजूद सुखी दिखाई देते हैं। मुझे यह बात बहुत हैरान करती है। क्या आप इसका कारण समझाने में मेरी मदद कर सकते हैं?

Satlok Ashram

मंजू जी, आपने हमारे लेख में रूचि दिखाई इसके लिए हम आपके आभारी हैं।आध्यात्मिक ज्ञान के अनुसार हम पिछले जन्म के कर्मों के कारण ही वर्तमान में मौजूदा परिस्थितियों का सामना करते हैं। हमारी वर्तमान स्थिति हमारे पिछले जन्मों के कर्मों की औसत के अनुसार तैयार होती है। आपको शायद यकीन न हो लेकिन अच्छे कर्म तुरंत अच्छे परिणाम नहीं देते। लेकिन यह बात भी याद रखनी चाहिए कि भक्ति और पूजा इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अगर बात करें आपके पड़ोसियों की तो वह अपने पिछले जन्मों के अच्छे कर्मों को भोग रहे हैं। लेकिन उनके वर्तमान कर्मों के कारण उन्हें भविष्य में बुरे परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। विस्तृत जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचन सुनिए और "जीने की राह" पुस्तक भी पढ़िए।

Ramsharan Shukla

मैं संसार में अच्छे विचार पैदा करने वाली शक्ति को स्वीकार करता हूं। लेकिन दुख की बात है कि वर्तमान समय में अच्छे विचारों के व्यक्तियों का मिलना कठिन है। वर्तमान समय में लोग अश्लील संगीत सुनते हैं और बुरी चीज़ों से जल्दी प्रभावित हो जाते हैं। जब मैं उन लोगों के बारे में सोचता हूं जिन्होंने मेरे साथ गलत किया तो मैं खुद भी बुरे विचारों में डूब जाता हूं। अब ऐसी स्थिति में कोई अच्छे विचार कैसे रख सकता है?

Satlok Ashram

यह जानकर बहुत अच्छा लगा कि आपने हमारे लेख को पढ़ा और इसके लिए हम आपके आभारी भी हैं। वर्तमान में लोग बुरे कर्मों को करने और अश्लीलता की तरफ जल्दी अग्रसर हो रहे हैं। लेकिन इस पर भी स्थायी रूप से रोक लगाई जा सकती है। बहुत से लोगों ने ऐसी स्थिति से छुटकारा पाया है। लोगों ने संत रामपाल जी महाराज जी की आध्यात्मिक शिक्षाओं से प्रेरित होकर बुराईयों को त्याग दिया है। वह लोग अब संत रामपाल जी महाराज जी के द्वारा दिए हुए मंत्रों का जाप करते हैं, ईश्वर की स्तुति करने और आध्यात्मिक ज्ञान सुनने में खुद को व्यस्त रखते हैं। जिससे उनकी मानसिकता साफ और दिल नेक हो जाता है। हम चाहते हैं कि आप "जीने की राह" पुस्तक पढ़ें और संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को सुनें क्योंकि संत रामपाल जी महाराज जी एकमात्र ऐसे संत हैं जो सभी बुराईयों से निपटने का सही मार्ग बताते हैं।