एक शुकदेव ऋषि थे। वे श्री वेदव्यास के पुत्र थे। एक दिन वे दीक्षा लेने के उद्देश्य से राजा जनक जी के पास मिथिला नगरी में गए। राजा जनक ने कहा कि शुकदेव कल सुबह नाम दूँगा। उनके ठहरने की व्यवस्था अलग भवन में कर दी। एक सुंदर युवती को ऋषि जी की सेवा में परीक्षा लेने के उद्देश्य से भेजा। युवती शुकदेव जी के पलंग पर पैरों की और बैठ गई। ऋषि जी ने पैर सिकोड़कर और मोड़ लिए। युवती ऋषि जी की ओर निकट हुई तो उठकर खड़े हो गए। कहा कि हे बहन! आप अच्छे घर की बेटी दिखाई देती हो। कृपा कमरे से बाहर जाऐं, नहीं तो मैं चला जाता हूँ। लड़की चली गई। राजा जनक से बताया कि सुच्चा व्यक्ति है। ऐसे-ऐसे हुआ। सुबह राजा जनक जी ने ऋषि शुकदेव जी से पूछा कि आपसे मिलने स्त्री आई थी, आपने उसे अंगिकार न करके अच्छे संयम का प्रदर्शन किया है। आप संयमी व्यक्ति हैं। धन्य हैं आपके माता-पिता।
कबीर परमेश्वर जी के विचार इनसे भी उच्च तथा श्रेष्ठ हैं। वे कहते हैं कि ऋषि शुकदेव भी आत्मज्ञानी नहीं था क्योंकि जब युवती शुकदेव के पलंग पर बैठी तो शुकदेव ने उसे स्त्री समझकर अपने शरीर से छूने नहीं दिया और खड़ा होकर बाहर जाने की तैयारी कर दी। इससे स्पष्ट है कि शुकदेव जी को आत्म ज्ञान नहीं था। विचार करें कि यदि युवती के स्थान पर युवक बैठ जाता तो शुकदेव जी क्या करते? वे उससे कुशल-मंगल पूछते और पलंग छोड़कर खड़े नहीं होते। कहते कि भईया! पलंग एक ही है, आप पलंग पर विश्राम करो, मैं नीचे पृथ्वी पर आसन लगा लेता हूँ। यदि युवक सभ्य होता तो कहता कि नहीं ऋषि जी! आप पलंग पर विराजो, मैं पृथ्वी पर विश्राम करूंगा। परंतु युवती होने के कारण ऋषि शुकदेव को
काम दोष के कारण भय लगा।
कबीर परमेश्वर जी ने बताया है कि स्त्री तथा पुरूष आत्मा के ऊपर दो वस्त्र हैं। जैसे गीता अध्याय 2 श्लोक 22 में कहा कि अर्जुन! जीव शरीर त्यागकर नया शरीर धारण कर लेता है, इसे मृत्यु कहते हैं। यह तो ऐसा है जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र त्यागकर नए पहन लेता है। इसलिए आत्म तत्व को जान।
उदाहरण:- एक गाँव में सांग (स्वांग) मण्डली आई। कई दिन सांग किया। पुराने जमाने में सांग के नाटक में पुरूष ही स्त्री का अभिनय किया करते थे। एक लड़का अपने साथी के साथ पहली बार सांग देखने गया। सांग में एक लड़के को लड़की के वस्त्र पहना रखे थे। छाती भी युवा लड़की की तरह बना रखी थी। प्रथम बार गए लड़के ने अपने साथी (जो कई बार सांग देख चुका था) से कहा कि देख! कितनी सुंदर लड़की है। साथी बोला, यह लड़की नहीं लड़का है। परंतु प्रथम बार गया लड़का मानने को तैयार नहीं। उसको अपने मित्र की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था। सांग के समाप्त होने के पश्चात् सांगी अपने उस स्थान पर गए जहाँ ठहरे हुए थे। दोनों लड़के भी उनके साथ वहीं गए। उस लड़के ने जो लड़की का स्वांग बनाए हुए था, अपने स्त्री वाले वस्त्र उतारकर खूंटी पर टाँग दिये। छाती से बनावटी दूधी उतारकर बैग में डाल दी। कच्छे-कच्छे में स्नान करने चला गया। यह देखकर नए दर्शक को विश्वास हुआ कि वास्तव में यह लड़का है। अगले दिन उस लड़के दर्शक को वह लड़की के वेश में लड़के में लड़की वाली मलीन वासना दिल में नहीं आई। उसे लड़का दिखाई दे रहा था। इसी प्रकार यदि शुकदेव ऋषि को अध्यात्म विवेक से आत्म ज्ञान होता तो उससे स्त्री नहीं आत्मा रूप में पुरूष समझकर कहता कि आप पलंग पर विराजो, मैं पृथ्वी पर विश्राम करता हूँ। साधु, संत, फकीर इस विचारधारा से जीवन जीते हैं। साधना करके मोक्ष प्राप्त करते हैं।
FAQs : "चरित्रवान की कथा | जीने की राह"
Q.1 सद्गुणी व्यक्ति किसे कहा जा सकता है?
सद्गुणी व्यक्ति वह होता है जिसमें आत्म-अनुशासन, ईमानदारी, सदाचार, व्यवहार कुशलता, सभी प्रकार के नशे से दूर रहता हो और एक परमात्मा की भक्ति पर आश्रित हो आदि जैसे नैतिक गुण हों। वह उस एक ईश्वर की सच्चे मन से मर्यादा में रह कर पूजा करता हो और पाप से बचने के लिए वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान को आधार बनाकर चले। इसी सच्चे ज्ञान के सहारे वह मोक्ष प्राप्त करने योग्य होता है।
Q.2 राजा जनक ने ऋषि शुकदेव की क्या परीक्षा ली थी?
राजा जनक ने ऋषि शुकदेव की पवित्रता की परीक्षा ली थी। इसके लिए उन्होंने एक सुंदर युवती को उनके कमरे में भेजा जिसका उद्देश्य उन्हें लुभाना था। इस तरह राजा जनक शुकदेव का आचरण देखना चाहते थे।
Q. 3 ऋषि शुकदेव जी ने राजा जनक द्वारा ली परीक्षा को कैसे पास किया?
ऋषि शुकदेव जी ने गजब का आत्म-संयम दिखाया और उस युवती को तुरंत अपने कमरे से बाहर जाने का आदेश दिया। ताकि वह उसकी सुंदरता के कारण उत्पन्न होने वाले भाव से बच सकें।
Q.4 जब ऋषि शुकदेव जी परीक्षा में सफल हुए तो राजा जनक की क्या प्रतिक्रिया थी?
राजा जनक ने ऋषि शुकदेव जी के असाधारण संयम और पवित्रता की प्रशंसा की और उन्हें एक अच्छा व्यक्ति माना।
Q.5 परमेश्वर कबीर जी ने ऋषि शुकदेव जी के बारे में क्या बताया है?
परमेश्वर कबीर जी ने ऋषि शुकदेव जी की आलोचना करते हुए कहा है कि उनके पास सच्चा अध्यात्मिक ज्ञान नहीं था। जिसके कारण उन्होंने स्त्री को स्त्री के रूप में देखा। परमेश्वर कबीर जी के अनुसार सच्चा पवित्रता वह है जो प्रत्येक व्यक्ति के अंदर की आत्मा को समदृष्टि देखता है यानि कि सभी एक ही ईश्वर की संतान हैं। फिर चाहे उस व्यक्ति का लिंग कोई भी क्यों न हो।
Q.6 क्या कोई व्यक्ति जन्म से ही गुणी हो सकता है?
जी नहीं, ऐसा असंभव है। गुणी बनने के लिए व्यक्ति को अच्छे कर्म करने पड़ते हैं, मजबूत नैतिक चरित्र बनाना होगा, सर्वशक्तिमान ईश्वर की पूजा करनी होगी और ईमानदारी से उनके बताए सतमार्ग पर चलना पड़ेगा।
Q.7 सच्ची पुण्यात्मा किसे कहते हैं?
सच्ची पुण्यात्मा उस व्यक्ति को कहते हैं जो तत्वदर्शी संत से दीक्षा प्राप्त करता है। फिर उनके बताए सतमार्ग पर चलता है। इतना ही वह पूर्ण मोक्ष प्राप्त करने के लिए सर्वशक्तिमान ईश्वर की भक्ति में तन मन धन से लगा हो।
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Neelkamal Sharma
देखिए मुझे यह लेख बहुत ही दिलचस्प और उपयोगी लगा। इसमें प्रस्तुत ज्ञान ने मुझे अनमोल आंतरिक शांति प्रदान की है। मैं बहुत सी बुराइयों का सामना रोज़ाना करता हूं और जिससे मैं परेशान हो जाता हूं। जिनमें से सबसे अधिक जो मुझे परेशानी है वो यह कि मेरे विचारों में वासना बहुत हावी है। जिससे मुझे महिलाओं के पास बैठने और उनसे सीधे बातचीत करने में भी कठिनाई होती है। इस समस्या के चलते कार्यालय में मेरी महिला सहकर्मियों के साथ मेरे संबंधों में भी खटास पैदा हो गई है क्योंकि वासना के अत्यधिक प्रभाव के कारण मैं अच्छे ढंग से संवाद नहीं कर पाता। मैंने बहुत सी आध्यात्मिक पुस्तकें भी पढ़ीं और विभिन्न स्रोतों से सकारात्मक विचार भी पढ़े। लेकिन अब तक इस समस्या का कोई समाधान नहीं खोज पाया हूं।
Satlok Ashram
नीलकमल जी, हमें यह जानकर बहुत अच्छा लगा कि आपको हमारा यह लेख उपयोगी लगा। आपकी बुराई का निवारण आध्यात्मिक ज्ञान से संभव है। आपको एकमात्र सच्चे संत से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करके उनसे नाम दीक्षा लेकर और उनके बताए अनुसार जीवन व्यतीत करना होगा। हम आपको निवेदन करते हैं कि कृपया आप संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचन प्रतिदिन सुनें और अनमोल पुस्तक "जीने की राह" पढ़ें। इसको पढ़ने के बाद निश्चित रूप से आपकी सभी समस्याएं हल हो जाएंगी और आपको जीवन में आगे सकारात्मक रूप से बढ़ने में मदद मिलेगी।