गाँव-बेरी (जिला-झज्जर, प्रान्त-हरियाणा) में एक हरलाल नाम का जाट किसान था जो धार्मिक प्रवृत्ति का था। उसका सर्व परिवार धार्मिक विचारों वाला था। भगवा वेश में एक व्यक्ति गाँव-बेरी की चौपाल में रूका। उसने कुछ दिन सत्संग किया। भक्त हरलाल जी ने उनका परिचय पूछा तो पता चला कि उसके घर पर कोई नहीं है। माता-पिता बचपन में चल बसे थे। भक्ति के लिए घर छोड़ा है। भक्त हरलाल जी ने निवेदन किया कि आप हमारे घर पर रहो। हमें संत की सेवा मिलेगी। आपको भक्ति का पूरा समय मिलेगा। भगवा वेशधारी ने हाँ कर दी। भक्त हरलाल जी के दो मकान थे। एक में स्त्रियाँ रहती थी। दूसरा कुछ दूरी पर था जिसमें पशु बाँधते थे तथा पुरूष सदस्य रहते थे जिसे घेर या पौली कहते हैं। इस पौली के ऊपर एक चौबारा था। उसमें उस साधु को रहने के लिए आग्रह किया। पूरा परिवार उसकी सेवा करता। दोनों-तीनों समय भोजन कराता। कुछ वर्षों के पश्चात् वह संत शरीर त्याग गया। उसका अंतिम संस्कार करके उसकी यादगार अपने खेत में बना दी।
श्री हरलाल जाट जी बैलगाड़ी के द्वारा व्यापारियों का सामान एक मण्डी से दूसरी मण्डी में किराए पर लाता-ले जाता था। जैसे वर्तमान में ट्रक या कैंटर आदि से भाड़े पर माल एक मण्डी से दूसरी मण्डी में लाते-ले जाते हैं। सन् 1750 के आसपास का समय था। जब बैलगाड़ियों द्वारा शक्कर, बूरा, चावल, गेहूँ, ज्वार, गुड़-बाजरा, गवार आदि-आदि को भाड़े पर ढ़ोते थे। बेरी से नजफगढ़ की मण्डी का रास्ता गाँव छुड़ानी से होकर जाता था। श्री हरलाल जी का एक बैल गोरे रंग का था जो कामचोर था। गाड़ी में चलते-चलते कुछ देर बाद बैठ जाता। उसको डण्डों से मारपीट करके उठाया जाता। कुछ दूरी पर फिर बैठ जाता। यह सिलसिला चलता रहा। एक दिन गर्मियों के मौसम में सुबह के लगभग 4 बजे श्री हरलाल जी नजफगढ़ की मण्डी से गाड़ी भरकर लौट रहा था। गाँव छुड़ानी के पास एक कूंए से कुछ दूरी पर वह बैल बैठ गया। हरलाल जी उसको डण्डा मारने लगा। उस कूंए पर गाँव छुड़ानी के संत गरीबदास जी स्नान कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हे हरलाल! मत मार, गऊ का जाया है। संत गरीबदास जी जाट किसान थे। साधारण वेशभूषा जो हरियाणा की थी, धोती-कुर्ता पहनते थे। हरलाल जी बोले, भाई! इसनै मेरा खून पी राख्या है। आधा मील चलता है, बैठ जाता है। संत गरीबदास जी उस बैल के पास गए और उसके कान में कुछ बोला। उसी समय वह गोरा बैल तुरंत खड़ा हो गया। संत गरीबदास जी बोले, अब यह बैल ठीक चलेगा। श्री हरलाल जी को विश्वास नहीं हुआ। गाड़ी लेकर चल पड़ा। वह गोरा बैल दूसरे बैल से भी तेज गति से चलने लगा। छुड़ानी गाँव से बेरी तक बैठा भी नहीं तो श्री हरलाल जी के आश्चर्य तथा खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने घर पर अपने परिवार वालों से बताया तो उनको भी यकीन नहीं हो रहा था। उसके पश्चात् हरलाल जाट गाँव छुड़ानी में गया। उससे गलती यह लगी थी कि उसने उस स्नान करने वाले का नाम नहीं पूछा था। उल्टे पाँव गाँव छुड़ानी को चल पड़ा। विचार किया था कि शायद प्रतिदिन उसी समय स्नान करने आता होगा। इसलिए सुबह 4 बजे उसी कूंए पर पहुँचा तो संत गरीबदास जी ने पूछा कि हे हरलाल भाई! उस बैल के बारे में जानने आए हो क्या? हरलाल जी ने कहा कि आपसे कुछ नहीं छुपा है। मैं आपसे यही जानने आया हूँ कि आपने क्या जादू कर दिया? वह बैल तो दूसरे से भी तेज चलता है। संत गरीबदास जी ने पूछा कि यह बता, आपके चौबारे में एक साधु रहता था, उसका क्या हाल है? मैं एक दिन उससे मिलकर आया था। उस दिन आप गाड़ी लेकर कहीं गए हुए थे। हरलाल जी ने बताया कि वह तो चार वर्ष पहले चोला त्याग गया। उसकी यादगार (मैण्डी) भी बना रखी है। संत गरीबदास जी ने कहा कि यह गोरा बैल वही पाखण्डी बाबा है। मैंने उससे ज्ञान चर्चा की थी। उसको समझाया था कि आपकी भक्ति गलत है। आप भक्ति भी नहीं करते हो, खाते हो और सो जाते हो। परमात्मा के दरबार में जब लेखा होगा, तब आपको पता चलेगा। जो खा रहे हो, यह देना पड़ेगा।
गरीब, नर से फिर पशुवा कीजै, गधा-बैल बनाय।
छप्पन भोग कहाँ मन बोरे, कुरड़ी चरने जाय।।
गरीब, तुमने उस दरगाह का महल ना देखा। धर्मराज कै तिल-तिल का लेखा।।
परंतु वह नाराज हो गया और बोला, तू ग्रहस्थी है, मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ। आप जाईये। एक साधु को शिक्षा देने आया है।
कबीर, राम नाम से खिज मरैं, कुष्टि हो गल जाय।
शुकर होकर जन्म ले, नाक डूबता खाय।।
भावार्थ:- कबीर जी ने कहा है कि अभिमानी व्यक्ति राम नाम की चर्चा से खिज जाता है। फिर कोढ़ (कुष्ट रोग) लगकर गलकर मर जाता है। अगला जन्म सूअर का प्राप्त करके गंद खाता है। सूअर की नाक भी गंद में डूबी रहती है। इस प्रकार का कष्ट वह प्राणी उठाता है जो भक्ति नहीं करता या नकली संत बनकर जनता में फोकट महिमा बनाता है।
हे हरलाल! मैंने उसके कान में बताया था कि वह दिन याद कर, मैंने क्या कहा था, आप माने नहीं थे। हे जीव! आपको इस किसान का कर्ज उतारना पड़ेगा। लठ खाकर उतार, चाहे राजी-खुशी उतार। वैसे पीछा नहीं छुटेगा। उस बैल शरीरधारी नकली बाबा के बात समझ में आ गई है। यह पहले किसी जन्म में परमेश्वर कबीर जी का शिष्य बना था। परंतु फिर गिरी पंथ में चला गया था। जिस कारण से यह सूमार्ग त्यागकर जन्म-मरण का कष्ट भोग रहा है। अब यह कभी नहीं बैठेगा। हरलाल जी गरीबदास जी के चरणों में गिर गए और कहा कि हे संत महाराज! मुझे अपना शिष्य बना लो। मैं तो घर-बार त्यागकर आपके साथ रहूंगा। मेरी तो आँखें खुल गई। भक्ति बिना जीव कितना कष्ट उठाता है। संत गरीबदास जी ने यह वाणी बोली:-
गरीब, गाड़ी बाहो घर रहो, खेती करो खुशहाल।
सांई सिर पर राखिये, सही भगत हरलाल।।
भावार्थ:- परमात्मा प्राप्ति के लिए घर त्यागने की आवश्यकता नहीं है। अपना खेती का कार्य तथा गाड़ी बाहने (ट्रांसपोर्ट) का कार्य खुशी-खुशी करो। घर पर रहो। परमात्मा की भक्ति जो मैं बताऊँ, वह करते रहो। आप सही भक्त कहलाओगे।
गरीब, नाम उठत नाम बैठत, नाम सोवत जाग रे।
नाम खाते नाम पीते, नाम सेती लाग रे।।
यही प्रमाण यजुर्वेद अध्याय 40 के मंत्र 15 में है कि:-
वायु अनिलम् अथइदम् अमृतम् भस्मन्तम् शरीरं।
ओम् (om) कृतु स्मर किलवे स्मर कृतम् स्मर।।
भावार्थ:- संत गरीबदास जी ने कहा कि जो सत्य साधना के सत्य मंत्र मैं आपको दूँगा, उनका जाप खाते-पीते-जागते समय यानि सुबह सोकर उठो, कुछ समय जाप करो। सोने से पूर्व कुछ समय जाप करो। बैठते समय, फिर उठते समय परमात्मा का नाम जाप करो। इस प्रकार घर का कार्य भी होता है, स्मरण भी। जैसे गाँव में देखते हैं कि लोग सारा-सारा दिन ताश खेलते हैं। हुक्के पर वक्त जाया करते हैं। राजनीति की बातें या किसी व्यक्ति की निंदा की चर्चा या सांग-सिनेमा देखने में समय नष्ट करते हैं। उस समय को परमात्मा की भक्ति तथा सत्संग चर्चा सुनने में सदुपयोग करें तो मोक्ष सम्भव है।
श्री हरलाल जाट जी दीक्षा लेकर घर आया। घरवालों को सब बात बताई। उस नकली बाबा की यादगार (समाधि) तोड़ फैंकी और पूरे परिवार को छुड़ानी ले गए। संत गरीबदास जी से दीक्षा दिलाई। अपना तथा अपने परिवार का कल्याण कराया। संत गरीबदास जी के आदेश से उस गोरे बैल को कभी गाड़ी या हल में नहीं जोता। उसको सब पशुओं से भिन्न कमरे में बाँधकर अच्छा चारा खिलाया। संत गरीबदास जी ने बताया कि यह भक्त था। कर्म बिगड़ने से पशु बना है। इससे काम ना लें। वह बैल पाँच वर्ष जीया। भक्त हरलाल जी ने उसकी भक्त मानकर सेवा की। परमात्मा कबीर जी ने अपने भूले-भटके भक्त की पशु जीवन में सहायता की। उसको फिर कभी मानव जन्म मिला तो और आगे उसके भाग्य में कोई पूरा गुरू मिला तो मुक्ति है, अन्यथा फिर चौरासी लाख योनियों में कष्ट तैयार हैं। भक्त हरलाल की संतान बेरी में आज भी इस घटना की साक्षी हैं।
FAQs : "हरलाल जाट की कथा | जीने की राह"
Q.1 कर्म का ऋण क्या हैं?
कर्म के ऋण का अर्थ है कि व्यक्ति को अपने कर्मों को भुगतना ही पड़ता है। फिर चाहे वह अच्छे कर्म हों या बुरे वह अपने अगले जन्म में या भविष्य में भुगतने ही पड़ते हैं। सूक्ष्मवेद के अनुसार अगर कोई व्यक्ति इस जीवन में किसी से एक रुपया भी उधार लेता है, तो उसे अपने अगले जन्म में इसे उसका हज़ार गुना चुकाना पड़ता है।
Q.2 सही विधि से पूजा न करने के क्या परिणाम हैं?
सही विधि से पूजा न करने से वर्तमान जीवन और उसके बाद के जीवन दोनों में दुख प्राप्त होते हैं। पूजा की गलत विधि के कारण व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसा रहता है। इससे व्यक्ति को 84 लाख विभिन्न जीवों की योनियां भोगनी पड़ती हैं। इसके अलावा पृथ्वी पर जान बूझकर या अनजाने में किए गए पाप व्यक्ति के लिए नुकसानदायक होते हैं और जिससे उसे परलोक में भी दुख उठाना पड़ता है।
Q. 3 क्या मोक्ष प्राप्ति के लिए सभी भौतिक सुखों का त्याग करना पड़ता है?
सूक्ष्मवेद के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के लिए अपने परिवार और सांसारिक सुखों का त्याग करना आवश्यक नहीं है। आपको ऐसे बहुत से संतों के उदाहरण मिल जाएंगे जिन्होंने अपने सांसारिक कार्य करते हुए मोक्ष प्राप्त किया। घर पर रहकर सतभक्ति करते हुए भी मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि सच्चे गुरू से मोक्ष मंत्र लेकर उनके बताए अनुसार भक्ति मार्ग पर चलें।
Q.4 क्या गृहस्थ जीवन जीते हुए मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है?
जी हां बिलकुल, सच्चे गुरु से नाम दीक्षा लेकर और जीवनभर उनके बताए मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए घर त्यागने की आवश्यकता नहीं, बल्कि सांसारिक कार्य करते हुए आसानी से जन्म – मृत्यु के चक्र से निकला जा सकता है।
Q.5 हरलाल जाट की कहानी से मुख्य शिक्षा क्या मिलती है?
हरलाल जाट की कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें दूसरों का अनुचित लाभ नहीं उठाना चाहिए क्योंकि व्यक्ति को हर तरह के कार्यों के परिणाम स्वयं ही भोगने पड़ते हैं।इसके अलावा इस लेख में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है कि वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान के बिना जीवन व्यर्थ है। इसलिए यह ज़रूरी है कि पूर्ण गुरु से नाम दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त किया जाए क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य है।
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Swaroop Verma
इस लेख को पढ़ने के बाद मेरे मन में यह प्रश्न आया है कि कहीं मैं दूसरों के भोलेपन का दुरूपयोग तो नहीं करता रहता हूं। इतना ही नहीं मैं भी अपनी सभी जिम्मेदारियों को पूरा करता हूं और दूसरों का अच्छा ही करने की कोशिश करता हूं। क्या ऐसा करने से मैं पशु के रूप में पुनर्जन्म से बच जाऊंगा? जबकि मैं कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं करता।
Satlok Ashram
सवरूप जी , हमें यह जानकर बहुत खुशी हो रही है कि हमारा लेख लोगों को अपने कर्मों के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर रहा है। देखिए अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करना, दूसरों के लिए अच्छा करना और उनके साथ अच्छा व्यवहार करना आदि मानवीय कर्तव्य हैं। जबकि संतों और भगवान की शिक्षाओं के अनुसार जिन लोगों में नैतिक गुणों की कमी होती है वह जानवर के समान होते हैं। मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है। मनुष्य जन्म पाने के लिए तो देवता भी तरसते हैं। वह भी मोक्ष प्राप्त करने के लिए मानव जीवन और पूर्ण गुरु की तलाश करते रहते हैं। जो व्यक्ति ईश्वर की पूजा (शास्त्रों अनुसार) नहीं करता है वह व्यक्ति 84 लाख योनियों में जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसा रहता है। इसलिए जीवन के इन कष्टों से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को पूर्ण गुरु द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना चाहिए। इसकी विस्तृत जानकारी के लिए आप "जीने की राह" पुस्तक पढ़ सकते हैं और संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचन भी सुन सकते हैं।