काम (sex) प्रक्रिया को विशेष विवेक के साथ समझें। पति-पत्नी मिलन को समाज मान्यता देता है कि आप दोनों परस्पर संतान उत्पन्न करो। सबके माता-पिता ने संतानोत्पत्ति की प्रक्रिया की जिसे संभोग कहते हैं। जिससे अपना तथा अपने भाई-बहनों का जन्म हुआ। तो विचार करें कि यह क्रिया कितनी पवित्र तथा अच्छी है जिससे अपने को अनमोल मानव शरीर मिला है। कोई डाॅक्टर बना, कोई सैनिक, कोई मंत्री तो कोई इन्जीनियर बना है। कोई किसान बना है जिसने सबको अन्न दिया। कोई मजदूर बना जिसने आपके महल खड़े किए। कोई कारीगर बना। मानव शरीर में हम भक्ति-दान-धर्म के कर्म करके अपने जीव का कल्याण करा सकते हैं। संभोग क्रिया यह है। इसको कितना ही बकवाद करके रागनी गाकर, फिल्मी गाने गा-सुनाकर मलीन वासना रूप दें, बात इतनी ही है। यह पर्दे में करना सभ्यता है। पशु-पक्षी प्रजनन क्रिया करते हैं जो खुले में करते हैं जो अच्छा-सा नहीं लगता। मानव सभ्य प्राणी है। उसको पर्दे में तथा मर्यादा में रहकर सभ्यता को बनाए रखना है।
उपरोक्त विचार पढ़कर आपमें किसी भी बहन-बेटी-बहू की ओर देखकर अश्लील विचार उत्पन्न नहीं हो सकते। यही क्रिया दादा-दादी ने की जिससे अपने पिता जी का जन्म हुआ। नाना-नानी ने की, जिससे माता जी का जन्म हुआ। जिन माता-पिता ने अपने को उत्पन्न किया, पाला-पोसा। कितने अच्छे हैं अपने माता-पिता जिनकी उत्पत्ति भी काम क्रिया से हुई। तो यह क्या अश्लील है? इसको खानाबदोश लोग अश्लीलता से पेश कर अश्लील रंग देकर समाज में आग लगाते हैं।
देश के संविधान में प्रावधान है कि यदि कोई पुरूष किसी स्त्री से छेड़छाड़ करता है तो उसे तीन वर्ष की सजा दी जाती है। यदि किसी स्त्री से रेप करता है तो दस वर्ष की सजा होती है। कानून का ज्ञान होने से इंसान बुराई-दुराचार से डरता है। कानून का ज्ञान होना आवश्यक भी है। इस तरह के पाप काल ब्रह्म करवाता है। काल कौन है? जानें सृष्टि रचना में इसी पुस्तक के पृष्ठ 254 पर।
फिल्म नहीं देखनी है:- फिल्म बनावटी कहानी होती है जिसे देखते समय हम भूल जाते हैं कि जो इसके पात्र हैं, वे रोजी-रोटी के लिए धंधा चला रहे हैं। करोड़ों रूपये एक फिल्म में काम करने के लेते हैं। भोले युवक विवेक खोकर उनके फैन (प्रशंसक) बन जाते हैं। वे अपना धंधा चला रहे हैं, आप मूर्ख बनकर सिनेमा देखने में धन व्यर्थ करते हैं। जिस हीरो-हिरोइन के आप फैन बने हैं, आप उनके घर जाकर देखें। वे आपको पानी भी नहीं पिलाऐंगे। चाय-खाना तो दूर की कौड़ी है। विचार करें कि मैं लड्डू खा रहा हूँ और आप देख रहे हो। आप कह रहे हो कि वाह! लड्डू बड़े स्टाइल से खा रहा है। आपको क्या मिला? यही दशा फिल्मी एक्टरों तथा दर्शकों की है।
विवाह करने का मुख्य उद्देश्य परिवार और समाज की सभ्य नीति को बनाए रखना, संतानोत्पत्ति करना होता है क्योंकि बच्चे के जन्म से ही मानव जाति का विस्तार होता है।
संभोग को पवित्र तब माना जाता है जब यह केवल विवाह के बाद पति और पत्नी के बीच में होता है। इसके द्वारा नए जीवन का निर्माण होता है और यह आध्यात्मिक मोक्ष प्राप्त करने का एक साधन भी है। मोक्ष प्राप्त करना मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य है।
फिल्मों में अश्लील दृश्य, अभद्रता और अश्लीलता दिखाई जाती है। ऐसी चीज़ें मन को दूषित करती हैं और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग में बाधक होती हैं। फिल्में देखने में मनुष्य अपना अमूल्य समय भी बर्बाद कर देता है। फिल्में देखने से नैतिक पतन तो होता ही है साथ ही युवा अपने भविष्य और करियर को भी बर्बाद कर देते हैं।
सामाजिक बुराईयों से बचने के लिए व्यक्ति को तत्वदर्शी संत से सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना चाहिए और उनके द्वारा बताए नियमों का पालन करके अपनी पवित्रता कायम रखनी चाहिए। पूर्ण संत से दीक्षा लेकर व्यक्ति पुण्य कमा सकता है और पापों से बच सकता है।
अपने बच्चों को समाज में फैली अश्लीलता से बचाने के लिए प्रत्येक माता-पिता को अपने बच्चों को एक पूर्ण संत से जोड़ देना चाहिए अर्थात नाम दीक्षा दिला देनी चाहिए। फिर वह पूर्ण संत उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करेगा। उस सच्चे अध्यात्मिक ज्ञान को अपनाकर और मार्ग पर चलकर ही वह अश्लीलता जैसे विकारों से और उसके नकारात्मक प्रभावों से बच सकते हैं।
टीवी शो, फिल्मों, सोशल मीडिया और समाचार पत्रों में दिखाए जाने वाले अश्लील फोटो और विडियोज़ के कारण समाज में अश्लीलता तेज़ी से फैलती जा रही है। आज लोग छोटे बड़े का लिहाज़ करना भी भूल गए हैं। असभ्य व्यवहार, अभद्रता, ऊल-जलूल कपड़े पहनना, अर्ध नग्न होकर घूमना समस्या को और अधिक बढ़ा रहे हैं। लेकिन इस समस्या को हल करने और जड़ से खत्म करने के लिए मीडिया के सभी प्लेटफार्मों पर तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी का सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रसारित करना बहुत आवश्यक है। इससे लोगों में लोगों में नैतिक मूल्य, संस्कार और शालीनता बढ़ेगी। अश्लीलता और गंदे विचारों का नाश होगा और लोग सभ्य बनेंगे।
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Deepti Bhardwaj
पिछले कई दिनों से मैं विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर "जीने की राह" पुस्तक के बारे में सुन रहा हूं। फिर मैंने यह लेख पढ़ा। यह लेख वास्तव में सामाजिक सुधार करने के मुख्य बिंदुओं पर चर्चा करता है। इसके सकारात्मक प्रभाव की मैं सराहना करता हूं। लेकिन मैं पूर्ण तौर पर फिल्में देखने से परहेज़ करने की बात से असहमत हूं। देखिए फिल्में छुट्टियों और फुर्सत के पलों में मनोरंजन का स्रोत होती हैं। उससे हम दोस्तों और परिवार के साथ अच्छा समय बिता पाते हैं। काम और खुशी भरे पलों के बीच संतुलन बनाना बहुत ज़रूरी है। इन दोनों का हमारे जीवन में अपना-अपना स्थान है।
Satlok Ashram
देखिए हमें इस बात की बहुत खुशी है कि संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा लिखित पुस्तक "जीने की राह" लोगों तक पहुंच रही है। इतना ही नहीं इस पुस्तक को पढ़ने से उनके जीवन में सकारात्मकता आ रही है। इस पुस्तक का ज्ञान हमारे पवित्र शास्त्रों और ईश्वर की दी हुई शिक्षाओं पर आधारित है। इतना ही नहीं इसका ज्ञान उन संतों के ज्ञान से भी मेल खाता है जिनको ईश्वर खुद मिले थे। आध्यात्मिक ज्ञान पढ़ने से ही तो हमें ज्ञान होता है कि मानव जीवन बहुत अनमोल है। इसलिए इसे अश्लील फिल्में देखने और मनोरंजन करने में बर्बाद नहीं करना चाहिए। ज़िंदगी में संतुलन बनाना बहुत ज़रूरी है उसके लिए फिल्में देखना बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं है। माना इस सच्चाई को स्वीकार करना समाज के लिए बहुत कठिन कार्य बन गया है। यदि हम संत रामपाल जी की बताई शिक्षा और ज्ञान की पालना नहीं करेंगे तो इसके परिणाम बहुत भयंकर भी हो सकते हैं। आज समाज में नैतिक मूल्यों में गिरावट आ चुकी है और अपराध भी बढ़ गए हैं। हम समाज से विनम्र प्रार्थना करते हैं कि वह अनमोल पुस्तक "जीने की राह" को पढ़ें और संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को सुनें।