प्रत्येक माता-पिता की तमन्ना होती है कि मेरी संतान योग्य बने। समाज में बदनामी न ले। अच्छे चरित्र वाली हो, आज्ञाकारी हो। वृद्धावस्था में हमारी सेवा करे। हमारी बहु हमारे कहने में चलने वाली आए। समाज में हमारी इज्जत रखे। वृद्धावस्था में हमारी सेवा करे। प्यार से व्यवहार करे। सत्ययुग,त्रेता,द्वापर तक यह मर्यादा चरम पर रही। सब सुखी जीवन जीते थे। कलयुग में कुछ समय तक तो ठीक रहा, परंतु वर्तमान में स्थिति विपरीत ही है। इसे सुधारने का उद्देश्य लेखक (रामपाल दास) रखता है। आशा भी करता हूँ कि भगवान की कृपा से ज्ञान के प्रकाश से सब संभव हो जाता है, हो भी रहा है और होगा, यह मेरी आत्मा मानती है।
एक लड़के का पिता मृत्यु को प्राप्त हो गया। उस समय वह 10-11 वर्ष का था। माता ने अपने इकलौते पुत्र की परवरिश की। माता तथा पिता दोनों का प्यार माता जी ने दिया कि कहीं पुत्र को पिता का अभाव कष्ट न दे। लड़का युवा होकर शराब का आदी हो गया तथा वैश्या गमन करने लगा। माता से नित्य रूपये माँगे और आवारागर्दी में उड़ाए। एक दिन माता के पास पैसे नहीं थे। शराब के नशे में माता को पीटा तथा वैश्या के पास गया। उस दिन पैसे नहीं थे तो वैश्या ने कहा कि अपनी माता का दिल निकाल ला। उल्टा घर आया, माता बेहोश थी। छुरा मारकर माता का दिल निकालकर चल पड़ा। नशे में ठोकर लगी और गिर गया। माता के दिल से आवाज आई कि बेटा! तेरे को चोट तो नहीं लगी। नशे से बना शैतान वैश्या के पास माता का दिल लेकर पहुँचा तो वैश्या ने कहा कि जब तू अपनी माता का हितैषी नहीं है तो मेरा क्या होगा? किसी के बहकावे में आकर तू मुझे भी मार डालेगा। मेरे को तो तेरे से पीछा छुड़ाना था कि तू अब निर्धन हो गया है, मेरे किस काम का। इसलिए यह शर्त रखी थी कि तू माता का दिल निकाल नहीं सकता क्योंकि वह तेरे को कभी किसी वस्तु के लिए मना नहीं करती थी। हे शैतान! चला जा मेरी आँखों के सामने से। यह कहकर वैश्या ने उसे घर से बाहर धक्का देकर द्वार बंद कर लिया। वह शैतान घर आया। माता के शव पर विलाप करने लगा। कहा कि माता जी! हो सके तो भगवान के दरबार में भी मुझे बचाना। आवाज आई कि बेटा! कुछ नहीं हुआ, बस तेरे को खुश देखना चाहती हूँ। उसी समय नगर के लोग आए। थाने में सूचना दी। उस अपराधी को राजा ने फाँसी की सजा दी।
राजा ने फाँसी चढ़ाने से पूर्व उसकी अंतिम इच्छा जानी तो उस लड़के ने कहा कि कुछ नागरिकों को बुलाया जाए, मैं अपनी कारगुजारी को सबके साथ साझा करना चाहता हूँ। नगर के व्यक्ति आए। उस लड़के ने अपना जुल्म कबूला और बताया कि मैंने उपरोक्त जुल्म किया। मेरी माँ की आत्मा अंतिम समय में भी मेरे सुखी रहने की कामना करती रही। मेरे को नशे ने शैतान बना दिया। मैंने वैश्या गमन करके समाज को दूषित किया। आप लोग मेरे से नसीहत लेना। जो घोर पाप मैंने अपनी माता जी को परेशान करके किया, कोई मत करना। माता जैसी हमदर्द संसार में पत्नी भी नहीं हो सकती, भले ही वह कितनी ही नेक हो। माता अपने बेटा-बेटी को इतना प्यार करती है कि सर्दियों में बच्चा पेशाब कर देता है तो माता स्वयं उसके पेशाब से भीगे ठण्डे वस्त्र पर लेटती है, बच्चे के नीचे सूखा बिछौना कर देती है। यदि बच्चा भूख से रो रहा होता है तो खाना बीच में छोड़कर उसे पहले अपना दूध पिलाकर शांत करती है।
माता-पिता अपने बच्चे के जन्मदाता, पालनहार, सबसे अधिक प्रेम करने वाले, निस्वार्थ भाव से देखभाल करने वाले होते हैं और अपने बच्चों की सभी जरूरतों को समय पर पूरा करने की कोशिश करते हैं। इसके बदले में वह उनसे केवल सम्मान चाहते हैं। अगर बच्चे उनका आदर नहीं करते हैं तो वह अंतर्मन से बहुत दुखी हो जाते हैं। इसलिए प्रत्येक बच्चे को अपने माता-पिता से प्यार करना और उनका सम्मान करना चाहिए।
हिंदू धर्म में माता-पिता को बहुत सम्मान दिया जाता है। आगे चलकर बच्चे भी अपने माता-पिता की निस्वार्थ भाव से देखभाल करें ऐसे उनको संस्कार बचपन से ही दिए जाते हैं। इसलिए बच्चों का भी यह मौलिक कर्तव्य है कि वे अपने माता-पिता की सेवा पूरे तन-मन से करें। उनको भी अपने माता-पिता की वैसे ही देखभाल और उनसे प्रेम करना चाहिए जैसा वह उनसे करते हैं।
हम अपने माता-पिता का सम्मान विभिन्न कार्यों के द्वारा प्रदर्शित कर सकते हैं जैसे कि उनके निर्देशों का पालन करना, उनके साथ सम्मान से बात करना, उनकी राय लेना और उनकी पसंदीदा चीज़ों और कार्यों का ध्यान रख कर भी कर सकते हैं।
सम्मान एक ऐसा स्तंभ है जिससे पारिवारिक संबंधों में मज़बूती आती है। सम्मान के बिना रिश्ते बिगड़ जाते हैं। इसीलिए परिवार के प्रत्येक सदस्य को एक-दूसरे के प्रति सम्मान होना चाहिए, फिर किसी की उम्र भले ही कितनी क्यों न हो। इससे ही परिवार में शांति, प्रेम और सुलह रह सकती है।
एक मां का अपने बच्चे के प्रति प्यार का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता क्योंकि मां का प्यार अपने बच्चे के लिए निस्वार्थ और अथाह होता है। बच्चे की खुशी के लिए मां सब कुछ करती है। एक मां का प्यार बिना किसी शर्त के होता है। इसलिए हर बच्चे का यह फर्ज है कि वह भी अपनी मां के प्रति सम्मान और प्यार की भावना निस्वार्थ भाव से रखे।
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Amrit Solanki
इस लेख में साझा की गई कहानी वाकई में दिल को छू देने वाली है। मैं खुद भी हर रोज़ ऐसी स्थिति का सामना करता हूं। मुझे मेरे काम की वजह से अपने बूढ़े माता-पिता से अलग रहना पड़ रहा है। जबकि उन्हें अपने बुढ़ापे में मेरे सहारे की ज़रूरत है। मेरी पत्नी भी उनके साथ रहने के लिए मना कर चुकी है। मैं इस बात को लेकर बहुत परेशान हूं।
Satlok Ashram
अमृत जी, हमें यह जानकर बहुत अच्छा लगा कि हमारे लेख हमारे पाठकों पर सकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं। माता-पिता का बच्चों की खुशी के लिए समर्पण शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। लेकिन यह बहुत शर्मनाक बात है कि हम बुढ़ापे में उनकी जरूरतों को नज़रंदाज़ कर देते हैं और अपने व्यक्तिगत जीवन और आनंद में खो जाते हैं। देखिए आध्यात्मिक मार्ग में ऐसी बातें मोक्ष प्राप्त करने में बाधा बनती हैं। इसलिए ज़रूरी है कि आप माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्य को पूरा करें। हम आपसे निवेदन करते हैं कि आप और आपकी पत्नी दोनों "जीने की राह" पुस्तक अवश्य पढ़िए और संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को भी ज़रूर सुनिए। पुस्तक को पढ़ने से आपको अपने फर्ज़ का ज्ञान होगा। फिर आप और आपकी पत्नी एक आदर्श पुत्र-बहु भी बन सकते हैं।