एक माई अपनी पुत्रवधु पर बात-बात पर क्रोध करती थी। छोटी-छोटी गलतियों को बढ़ा-चढ़ाकर अपने पुत्र से कहती। पुत्र अपनी पत्नी को धमकाता। इस प्रकार घर नरक बना हुआ था। पुत्रवधु अपनी सासू-माँ से कभी-कभी कहती थी कि आप सत्संग जाया करो। अपनी पड़ोसन भी जाती है। सासू-माँ बोली कि सत्संग में तो आई-गई यानि बदचलन स्त्रियां जाती हैं जिनका संसार में सम्मान नहीं होता, जो अच्छे कुल की नहीं हैं। हम खानदानी हैं। हमारा क्या काम सत्संग में? ऐसे पुत्रवधु ने कई बार कोशिश की, परंतु माई मानने को तैयार नहीं होती। एक दिन गाँव की स्त्री किसी कार्यवश उनके घर आई तो सास अपनी पुत्रवधु को गालियाँ दे रही थी, धमका रही थी कि आने दे तेरे खसम को, आज तेरी खाल उतरवाऊँगी। बात क्या थी कि गिलास में चाय रखी थी जो सास के लिए डालकर पुत्रवधु बच्चे को लेने अंदर चली गई थी जो सोया था, जागने पर रो रहा था। उस बच्चे को उठाकर लाने में एक मिनट भी नहीं लगी थी कि इसी बीच में कुत्ता आया और चाय के गिलास में जीभ मारने लगा। गिलास गिर गया। चाय पृथ्वी पर बिखर गई। सासू-माँ आँगन में उस गिलास से मात्र बीस फुट की दूरी पर चारपाई पर बैठी थी। हट्टी-कट्टी थी। खेतों में सैर करके आती थी, परंतु काम के हाथ नहीं लगाती थी। इसी बात पर कलह कर रही थी। गाँव के दूसरे मोहल्ले से आई माई सत्संग में जाती थी। सब बात सुनकर उसने भतेरी (उस सास का नाम भतेरी था) से कहा कि आप सत्संग चला करो। उसका वही उत्तर था। उस सत्संग वाली भक्तमति ने बहुत देर सत्संग में सुनी बातें बताई, परंतु भतेरी मानने को तैयार नहीं थी। भतेरी की दूसरी बहन उसी मोहल्ले में विवाह रखी थी, जिस पान्ने की वह सत्संग वाली माई जानकी थी। भतेरी की बहन का नाम दयाकौर था। जानकी ने जाकर दयाकौर से बताया कि तेरी बहन भतेरी ने तो घर का नरक बना रखा है। बिना बात की लड़ाई करती है। मैं कल किसी कामवश गई थी। एक चाय का गिलास कुत्ते ने गिरा दिया। उसी का महाभारत बना रखा था। दयाकौर भी जानकी के कहने से सत्संग सुनने गई थी और दीक्षा ले ली थी। जानकी ने कहा कि उसको जैसे-तैसे एक बार सत्संग में ले चल। जब तक संतों के विचार सुनने को नहीं मिलते तो व्यक्ति व्यर्थ की टैंशन (चिंता) स्वयं रखता है तथा घर के सदस्यों को भी चिंता में रखता है। दयाकौर अगले दिन अपनी बहन के घर गई। किसी बहाने भतेरी को अपने घर ले गई। वहाँ से कई अन्य औरतें सत्संग में जाने के लिए जानकी के घर के आगे खड़ी थी। वे दयाकौर को सत्संग में चलने के लिए कहने उसके घर गई। वहाँ उसकी बहन भतेरी को देखकर उसे भी कह-सुनकर साथ ले गई। भतेरी ने जीवन में प्रथम बार सत्संग सुना। आश्रम में कैसे स्त्री-पुरूष रहते हैं, सब आँखों देखा तो अच्छा लगा। जैसा अनाप-सनाप सुना करती थी, वैसा आश्रम में कहीं देखने को नहीं मिला। सत्संग में बताया गया कि कई व्यक्ति अपनी बहन, बेटियों-बहुओं तथा अन्य स्त्रियों को सत्संग नहीं भेजते और न स्वयं जाते हैं। वे कहते हैं कि हमारे सत्संग में जाने से घर की इज्जत का नाश हो जाएगा। हमारी बहू-बेटियाँ बदनाम हो जाएंगी। उनको विचार करना चाहिए कि सत्संग में न आने से परमात्मा के विधान का ज्ञान नहीं होता कि भक्ति न करने वाले स्त्री-पुरूष अगले जीवन में महान कष्ट भोगते हैं।
सूक्ष्मवेद में बताया है कि जो मनुष्य शरीर प्राप्त करके भक्ति नहीं करते, उनको क्या हानि होती है?
कबीर, हरि के नाम बिना, नारि कुतिया होय।
गली-गली भौकत फिरै, टूक ना डालै कोय।।
सन्त गरीब दास जी की वाणी से:-
बीबी पड़दै रहे थी, ड्योडी लगती बाहर।
अब गात उघाड़ै फिरती हैं, बन कुतिया बाजार।
वे पड़दे की सुन्दरी, सुनों संदेशा मोर।
गात उघाड़ै फिरती है करें सरायों शोर।।
नक बेसर नक पर बनि, पहरें थी हार हमेल।
सुन्दरी से कुतिया बनी, सुन साहेब (प्रभु) के खेल।।
भावार्थ:- मनुष्य जीवन प्राप्त प्राणी यदि भक्ति नहीं करता है तो वह मृत्यु के उपरान्त पशु-पक्षियों आदि-आदि की योनियाँ प्राप्त करता है, परमात्मा के नाम जाप बिना स्त्री अगले जन्म में कुतिया का जीवन प्राप्त करती है। फिर निःवस्त्र होकर नंगे शरीर गलियों में भटकती रहती है, भूख से बेहाल होती है, उसको कोई रोटी का टुकड़ा भी नहीं डालता। जिस समय वह आत्मा स्त्री रूप में किसी राजा, राणा तथा उच्च अधिकारी की बीवी (पत्नी) थी। वे उसके पूर्व जन्मों के पुण्यों का फल था जो कभी किसी जन्म में भक्ति-धर्म आदि किया था। वह सर्व भक्ति तथा पुण्य स्त्री रूप में प्राप्त कर लिए, वह आत्मा उच्च घरानों की बहू-बेटियाँ थीं। तब पर्दों में रहती थी, काजु-किशमिश डालकर हलवा तथा खीर खाती थी, उनका झूठा छोड़ा हुआ नौकरानियाँ खाती थी। उनको सत्संग में नहीं जाने दिया जाता था क्योंकि वे उच्च घरानों की बहुऐं तथा बेटियाँ थी, घर से बाहर जाने से बेइज्जती मानती थी। बड़े घरों की इज्जत इसी में मानी जाती थी कि बहू-बेटियाँ का पर्दों में घर में रहना उचित है। इन कारणों से वह पुण्यात्मा सत्संग विचार न सुनने के कारण भक्ति से वंचित रह जाती थी। उस मानव शरीर में वह स्त्री गले मे नौ-नौ लाख रूपये के हमेल-हार पहनती थी, नाक में सोने की नाथ पहनती थी, उसी हार-सिंगार में अपना जीवन धन्य मानती थी।
भक्ति न करने से वे अब कुतिया का जीवन प्राप्त करके नंगे शरीर गलियों में एक-एक टुकडे़ के लिए तरस रही होती हैं, शहर में पहले सराय (धर्मशाला) होती थी। यात्री रात्रि में उनमें रूकते थे, सुबह भोजन खाकर प्रस्थान करते थे। वह पर्दे में रहने वाली सुन्दर स्त्री कुतिया बनकर धर्मशाला में रूके यात्री का डाला टुकड़ा खाने के लिए सराय (धर्मशाला) में भौंकती है। रोटी का टुकड़ा धरती पर डाला जाता है। उसके साथ कुछ रेत-मिट्टी भी चिपक जाती है, वह सुन्दरी जो काजु-किशमिश युक्त हलवा-खीर खाती थी, भक्ति नही करती थी, उस रेत-मिट्टी युक्त टुकडे़ को खा रही है। यदि मनुष्य शरीर रहते-रहते पूरे सन्त से नाम लेकर भक्ति कर लेती तो ये दिन नहीं देखने पड़ते।
FAQs : "सत्संग से घर की कलह समाप्त होती है | जीने की राह"
Q.1 परिवार में कलह होने का कारण क्या है?
परिवार में कलह होना परिवार के सदस्यों के बीच आपसी समझ और प्रेम का न होना है। जिससे परिवार के सदस्यों में अकसर विवाद और बहस बढ़ती रहती है। जिससे परिवार में तनावपूर्ण और अशांति का माहौल बन जाता है।
Q.2 पारिवारिक कलह के उदाहरण क्या हैं?
पारिवारिक कलह के उदाहरणों में सास और बहू के बीच का झगड़ा, पति-पत्नी में तकरार, नन्द भाभी का झगड़ा, माता-पिता और बच्चों के बीच मतभेद और भाई-बहनों के बीच विवाद आदि शामिल हैं। यह झगड़े विभिन्न मुद्दों जैसे संपत्ति, धन, दान दहेज , खेत खलिहान, ज़मीन, अहंकार, लालच या अन्य व्यक्तिगत मतभेदों पर भी हो सकता है।
Q. 3 पारिवारिक कलह से कैसे निपटा जा सकता है?
पारिवारिक कलह से निपटने के लिए परिवार के सभी सदस्यों में आपसी समझ होनी चाहिए और एक दूसरे का भला और मदद करने की कोशिश करनी चाहिए। पारिवारिक सदस्यों को आपस में प्रेम से रहना चाहिए और घर में शांतिपूर्ण माहौल बनाए रखना चाहिए। इसी तरह एक-दूसरे के प्रति अंहकार व लालच की जगह दया, सम्मान, मेलजोल, मदद, प्रेम और सहानुभूति की भावना रखनी चाहिए। यह तभी संभव है जब परिवार के सभी सदस्यों का सही आध्यात्मिक मार्गदर्शन हो।
Q.4 पारिवारिक कलह सत्संग सुनने से कैसे समाप्त हो सकती है?
तत्वदर्शी संत का सत्संग सुनने से व्यक्ति में नैतिक मूल्य उत्पन्न होते हैं जिससे पारिवारिक कलह समाप्त हो सकती है। जो लोग सत्संग सुनते हैं वह बुरी आदतों और भौतिकवादी इच्छाओं का त्याग कर देते हैं। सत्संग सुनने से परिवार में सकारात्मक माहौल बनता है तथा तनाव और कलह भी मिटती है।
Q.5 अगर कोई व्यक्ति सच्ची भक्ति नहीं करता तो उसके साथ क्या होता है?
सच्ची भक्ति न करने से व्यक्ति को बहुत भयानक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। इससे उसे वर्तमान और भविष्य के जीवन में दुखों का सामना करना पड़ सकता है। सच्ची भक्ति के अभाव में लोग बुरे कर्म करते हैं और पाप कमाते हैं। फिर 84 लाख जीवों की योनियों में जन्मते मरते रहते हैं।
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Amrita Mahajan
मेरी सास मुझे छोटी-छोटी गलतियों के लिए डांटती रहती हैं और हर किसी से मेरी शिकायत करती रहती हैं। मेरी शादी में मेरे पिता जी ने दहेज नहीं दिया था और इसी वजह से भी वह चिढ़ी रहती हैं। जब कि मैं पूरी कोशिश करती हूं कि उन्हें खुश रख सकूं लेकिन बावजूद इसके वह मुझ से नाराज़ रहती हैं। मैं अपने ससुराल में बेहद परेशान रहती हूं। अब मैं क्या करूं?
Satlok Ashram
अमृता जी, हमें यह जानकर बहुत अच्छा लगा कि हमारे लेख वास्तविक जीवन की समस्याओं के समाधान प्रदान करते हैं। लेकिन यह बहुत शर्मनाक बात है कि दहेज प्रथा के कारण अधिकांश महिलाओं को घरेलू और मानसिक हिंसा का सामना करना पड़ता है। इससे उनका जीवन तो नर्क बनता ही है साथ में अन्य पारिवारिक सदस्यों को भी दुखों का सामना करना पड़ता है। वर्तमान में केवल संत रामपाल जी महाराज जी ही प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन कर सकते हैं। संत रामपाल जी महाराज जी का ज्ञान आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों पर आधारित है। संत रामपाल जी महाराज जी दहेज प्रथा के विरुद्ध हैं और बिना दहेज के विवाह करवाते हैं। सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान से परिचित होने के बाद ही परिवार के सदस्य आपस में आपसी प्रेम और सम्मान की भावना के साथ रहते हैं। हम आपसे निवेदन करते हैं कि आप अपनी चिंता को दूर करने के लिए पवित्र पुस्तक "जीने की राह" पढ़ें और अपनी सास ( माता जी) को संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचन सुनने के लिए प्रेरित करें।