35. सांसारिक चीं-चूं में ही भक्ति करनी पड़ेगी | जीने की राह


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एक थानेदार घोड़ी पर सवार होकर अपने क्षेत्र में किसी कार्यवश जा रहा था। ज्येष्ठ (June) का महीना, दिन के एक बजे की गर्मी। हरियाणा प्रान्त। एक किसान रहट से फसल की सिंचाई कर रहा था। बैलों द्वारा कोल्हू की तरह रहट को चलाया जाता था। बाल्टियों की लड़ी जो पूली (चक्री) के ऊपर चलती थी जिससे कूंए से पानी निकलकर खेत में जाने वाली नाली में गिरता था। रहट के चलने से जोर-जोर की चीं-चूं की आवाज हो रही थी। दरोगा तथा घोड़ी दोनों प्यास से व्याकुल थे। थानेदार ने पानी पीने तथा घोड़ी को पिलाने के लिए रहट की ओर प्रस्थान किया। रहट से हो रही जोर-जोर की चीं-चूं की आवाज से घोड़ी
फड़क (डरकर दूर भाग) गई। थानेदार ने किसान से कहा कि इस चीं-चूं को बंद कर। किसान ने बैलों को रोक दिया। रहट चलना बंद हो गया। कूंए से पानी निकलना बंद हो गया। जो पानी पहले निकला था, उसे जमीन ने अपने अंदर समा लिया। दरोगा घोड़ी को निकट लाया तो देखा कि नाली में पानी नहीं था। दरोगा ने कहा, हे किसान! पानी निकाल। किसान ने बैल चला दिए, रहट से चीं-चूं की आवाज और पानी दोनों चलने लगे। घोड़ी फिर फड़क गई और एक एकड़ (200 फुट) की दूर पर जाकर रूकी। दरोगा ऊपर बैठा था। दरोगा ने फिर कहा कि किसान! शोर बंद कर। किसान ने बैल रोक दिए, पानी नाली से जमीन में जाते ही समाप्त था। घोड़ी को निकट लाया, पानी नहीं मिला तो फिर पानी निकालने का आदेश दिया। रहट चलते ही घोड़ी दौड़ गई। किसान ने कहा कि दरोगा जी! इस रहट की चीं-चूं में ही पानी पीना पड़ेगा, नहीं तो दोनों मरोगे। दरोगा घोड़ी से उतरा, लगाम पकड़कर धीरे-धीरे घोड़ी को निकट लाया, चलते रहट में ही दोनों ने पानी पीया और जीवन रक्षा की। इसलिए सांसारिक कार्यों को करते-करते ही भक्ति, दान-धर्म, स्मरण करना पड़ेगा, अवश्य कीजिए।


 

FAQs : "सांसारिक चीं-चूं में ही भक्ति करनी पड़ेगी | जीने की राह"

Q.1 सांसारिक चूं-चां में भक्ति करने का क्या मतलब होता है?

सांसारिक चूं-चां में भक्ति करने का मतलब है कि मनुष्य को सांसारिक काम करते हुए भी ईश्वर की भक्ति करते रहना चाहिए। मनुष्य को यह नहीं भूलना चाहिए कि ईश्वर हमेशा उसके साथ है। केवल एक वही है जो उसके सुख-दुख का साथी है। भक्ति करने से मनुष्य ईश्वर से जुड़ जाता है और वह उसके लाभ-हानि का भी ध्यान रखता है।

Q.2 ईश्वर की पूजा करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?

ईश्वर की पूजा करने का सबसे अच्छा तरीका है कि तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा ले ली जाए तथा उसके बाद सांसारिक काम करते हुए भी भक्ति करते रहना चाहिए।

Q. 3 इतनी भागदौड़ भरी जिंदगी में किसी व्यक्ति को ईश्वर की पूजा करने के लिए समय कैसे मिल सकता है?

मनुष्य का जीवन परमात्मा द्वारा प्रदत्त एक अनमोल तोहफा है। जीवन में व्यस्त होने के बावजूद भी सभी को कुछ समय ईश्वर की भक्ति के लिए अवश्य निकालना चाहिए और इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को पहले तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेनी चाहिए और फिर उनके द्वारा बताई भक्ति आरंभ करनी होगी। इस तरह व्यस्त रहते हुए भी परमात्मा की भक्ति कर सकते हैं।

Q.4 भक्ति करने से क्या लाभ होता है?

भक्ति करने से होने वाले लाभों की कोई सीमा नहीं। सबसे पहले तो मनुष्य जीवन का उद्देश्य पूरा होता है, परमात्मा से साक्षात्कार होता है, बुरे कर्मों से बचाव, भौतिक लाभ, शारीरिक लाभ और मानसिक तौर पर व्यक्ति स्वस्थ होता है, तनाव और चिंता से मुक्ति और पापों से मुक्ति मिलती है और सबसे बड़ा मुख्य लाभ तो यह होता है कि पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Q.5 किसान और घोड़ी की कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

किसान और घोड़ी की कहानी हमें भगवान के प्रति अपनी भक्ति में दृढ़ रहने की प्रेरणा देती है। इससे यह भी सीख मिलती है कि जीवन में बेशक असुविधाएं होती हैं परंतु इसके बावजूद ईश्वर में विश्वास रखना चाहिए।


 

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Amrit Gupta

वर्तमान युग मशीनी युग है और ऐसे समय में मनुष्य खुद एक मशीन बन चुका है और शायद इसीलिए ईश्वर की पूजा करने के लिए समय नहीं निकाल पाता। यहां तक कि उसे अपने परिवार के लिए भी समय निकालना मुश्किल लगता है। ईश्वर की पूजा अर्चना में मेरी बहुत रुचि है। परंतु व्यस्त होने के कारण ईश्वर की भक्ति बहुत कम कर पाता हूं।

Satlok Ashram

अमृत जी, हमें यह जानकर बहुत अच्छा लगा कि आपने हमारा लेख पढ़ा और इसके लिए हम आपके आभारी भी हैं। वर्तमान समय में धन कमाने की इतनी होड़ लगी है कि परिवार से भी ज़रूरी अब पैसा बन चुका है। अज्ञानता के कारण लोग ईश्वर की भक्ति करने की तरफ ध्यान नहीं देते। पैसा कमाने को वह इतना ज़रूरी समझते हैं कि इसके बिना तो जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। हम आपको "जीने की राह" पुस्तक को पढ़ने और संत रामपाल जी महाराज जी की आध्यात्मिक शिक्षाओं को ग्रहन करने का निवेदन करते हैं।इससे आपको ईश्वर से जुड़ने और भक्ति करने का महत्त्व के बारे में पता चलेगा।

Shivani Deswal

मैं उपवास रखना, प्रतिदिन मंदिर जाना, हर सुबह पांच बार गायत्री मंत्र का पाठ करना जैसी क्रियाएं करती हूं। यह परंपरा मेरे माता-पिता भी करते थे। क्या इनसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती?

Satlok Ashram

हम आपका हमारे लेख में रूचि दिखाने के लिए धन्यवाद करते हैं। आप जो क्रियाएं कर रही हैं उनमें आपका ईश्वर के प्रति भाव झलक रहा है। लेकिन अगर आप सच में ईश्वर को प्राप्त करना चाहती हैं तो आपको तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेनी चाहिए। हम आपसे निवेदन करते हैं कि आप "जीने की राह" पुस्तक को पढ़ें और संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को यूट्यूब चैनल पर सुनिए। ऐसा करने से आपको ईश्वर प्राप्ति की सही जानकारी मिलेगी।