55. दीक्षा लेकर नाम का स्मरण करना अनिवार्य है | जीने की राह


It-is-Mandatory-to-Recite-Naam-After-Initiation-hindi-photo

अध्याय ‘‘बीर सिंह बोध‘‘ पृष्ठ 123 पर:-

राजा बीर सिंह की एक छोटी रानी सुंदर देई थी। उसने भी परमेश्वर कबीर जी से दीक्षा ले रखी थी। उसने सत्संग बहुत सुने थे। विश्वास कम था, नाम की कमाई यानि साधना नहीं करती थी। जब रानी का अंतिम समय आया तो यम के दूत राजभवन में प्रवेश कर गए। फिर यमदूत रानी के शरीर में प्रवेश कर गए और अंतिम श्वांस का इंतजार करने लगे। उस समय रानी सुंदर देई के शरीर में बेचैनी हो गई। यमदूत दिखाई देने लगे। राजा ने रानी से पूछा कि क्या बात है? रानी ने कहा कि मुझे राजपाट, महल, आभूषण, कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है। रानी ने कहा कि साधु-भक्तों को बुलाकर परमात्मा की चर्चा कराओ। साधु तथा भक्त आकर परमात्मा की चर्चा तथा भक्ति करने लगे। उससे कोई लाभ नहीं हुआ। रानी के शरीर में कष्ट और बढ़ गया। अर्ध-अर्ध यानि आधा श्वांस चलने लगा। श्वांस खींच-खींचकर आने-जाने लगा। हृदय कमल को त्यागकर जीव भयभीत होकर त्रिकुटी की ओर भागा। यम दूतों ने चारों ओर से घेर लिया। चारों यमदूतों ने जीव को घेरकर कहा कि आप चलो! हरि (प्रभु) ने तुम्हें बुलाया है। तब रानी के जीव को सत्संग वचन याद आए। उसने यमदूतों से कहा कि हे बटपार! हे जालिमों! तुम यहाँ कैसे आ गए? हमारा सतगुरू हमारा मालिक है। आप हमें नहीं ले जा सकते। मेरे सतगुरू धनी (मालिक) ने मुझे नाम दिया है। मेरे गुरूजी आएंगे तो मैं जाऊँगी। यह बात सुनकर यम के दूत बोले कि यदि आपका कोई खसम (धनी) है तो उसको बुलाओ, नहीं तो हमारे साथ परमात्मा के दरबार में चलो। जीव ने कहा कि:-

धरनी (पृथ्वी) आकाश से नगर नियारा। तहाँ निवाजै धनी हमारा।।
अगम शब्द जब भाखै नाऊं। तब यम जीव के निकट नहीं आऊं।।

भावार्थ:- पहले तो रानी को विश्वास नहीं हो रहा था कि जो सतगुरू जी सत्संग में ज्ञान सुना रहे हैं, वह सत्य है। वह सोचती थी कि यह केवल कहानी है क्योंकि सब नौकर-नौकरानी आज्ञा मिलते ही दौड़े आते थे। मनमर्जी का खाना खाती थी, सुंदर वस्त्र, आभूषण पहनती थी। उसने सोचा था कि ऐसे ही आनन्द बना रहेगा। यह तो पूर्व जन्म की बैटरी चार्ज थी। वर्तमान में चार्जर मिला (नाम मिला) तो चालू नहीं किया यानि साधना नहीं की। जब बैटरी की चार्जिंग समाप्त हो जाती है, बैटरी डाउन हो जाती है तो सर्व सुविधाऐं बंद हो जाती हैं। फिर न पंखा चलता है, न बल्ब जगता है। बटन दबाते रहो, कोई क्रिया नहीं होती। इसी प्रकार जीव का पूर्व जन्म की भक्ति का धन यानि चार्जिंग समाप्त हो जाती है तो सर्व सुविधाऐं छीन ली जाती हैं। जीव को नरक में डाल दिया जाता है, तब उसको अक्ल आती है। उस समय वक्त हाथ से निकल चुका होता है। केवल पश्चाताप और रोना शेष रह जाता है। रानी सुंदरदेई ने सत्संग सुन रखा था। पूर्ण सतगुरू से दीक्षा ले रखी थी। नाम की कमाई नहीं की थी। वह गुरूद्रोही नहीं हुई थी। गुरू निंदा नहीं करती थी। रानी ने सतगुरू को याद किया कि हे सतगुरू! हे मेरे धनी! मेरे को यमदूतों ने घेर रखा है। मुझ दासी को छुड़ावो। मैंने आपकी दीक्षा ले रखी है। आज मुझे पता चला कि ऐसी आपत्ति में न पति, न पत्नी, ने बेटा-बेटी, भाई-बहन, राजा-प्रजा कोई सहायक नहीं होता। रानी के जीव ने हृदय से सतगुरू को पुकारा। तुरंत सतगुरू कबीर जी वहाँ उपस्थित हुए। रानी ने दौड़कर सतगुरू देव जी के चरण लिए। उसी समय यमदूत भागकर हरि यानि धर्मराज के पास गए और बताया कि उसका सतगुरू आया तो वहाँ पर प्रकाश हो गया। जीव ने सत सुकृत नाम जपा था। उसको इतना ही याद था। इस कारण से उसको यमदूतों से छुड़वाया तथा पुनः जीवन बढ़ाया। तब रानी ने दिल से भक्ति की। फिर सतगुरू कबीर जी ने पुनः सतनाम, सारनाम दिया, उसकी कमाई की। संसार असार दिखाई देने लगा। राज, धन, परिवार पराया दिखाई दे रहा था। जाने का समय निकट लग रहा था। इस कारण से रानी ने तन-मन-धन सतगुरू चरणों में समर्पित करके भक्ति की तो सत्यलोक में गई। वहाँ परमेश्वर (सत्य पुरूष) ने रानी के जीव के सामने अपने ही दूसरे रूप सतगुरू से प्रश्न किया कि हे कड़िहार! (तारणहार) मेरे जीव को यमदूतों ने कैसे रोक लिया? सतगुरू रूप में कबीर जी ने कहा कि हे परमेश्वर! इसने दीक्षा लेकर भक्ति नहीं की। इस कारण से इसको यमदूतों ने घेर लिया था। मैंने छुड़वाया। परमेश्वर कबीर जी ने जीव से कहा कि आपने भक्ति क्यों नहीं की? सत्यलोक में कैसे आ गई? 

सिर नीचा करके जीव ने कहा कि पहले मुझे विश्वास नहीं था। फिर यमदूतों की यातना देखकर मुझे आपकी याद आई। आपका ज्ञान सत्य लगा। आपको पुकारा। आपने मेरी रक्षा की। फिर मेरे को वापिस जीवन दिया गया। तब मैंने दिलोजान से आपकी भक्ति की। पूर्ण दीक्षा प्राप्त करके आपकी ही कृपा से गुरू जी के सहयोग से मैं यहाँ आपके चरणों में पहुँच पाई हूँ। सत्यलोक में जाकर भक्त अन्य भक्तों के पास भेज दिया जाता है। सुंदर अमर शरीर मिलता है। बहुत बड़ा आवास महल मिलता है। विमान आँगन में खड़ा है। सिद्धियां आदेश का इंतजार करती हैं। तुरंत विद्युत की तरह सक्रिय होती हैं जैसे बिजली का बटन (Switch) दबाते ही बिजली से चलने वाला यंत्र तुरंत कार्य करने लगता है। ऐसे वहाँ पर वचन का बटन (Switch) है। जो वस्तु चाहिए बोलिये। वस्तु-पदार्थ आपके पास उपस्थित होगा। जैसे भोजन खाने की इच्छा होते ही आपके भोजनस्थल पर गतिविधि प्रारम्भ हो जाएंगी, थाली-गिलास रखे जाएंगे। कुछ देर में खाने की इच्छा बनी तो सिद्धि से उठकर रसोई में रखे जाएंगे। मिनट पश्चात् इच्छा हुई तो भी उसी समय व्यवस्था हो जाएगी। घूमने की इच्छा हुई तो विमान में गतिविधि महसूस होगी। विमान के निकट जाते ही द्वार खुल जाएगा। विमान स्टार्ट हो जाएगा। जहाँ जिस द्वीप में जाने की इच्छा होगी, विचार करने पर विमान उसी ओर उड़ चलेगा। इच्छा करते ही ताजे-ताजे फल वृक्षों से तोड़कर लाकर आपके समक्ष रख दिए जाएंगे। सत्यलोक की नकल यह काल लोक है। इसी तरह स्त्री-पुरूष परिवार हैं। सत्यलोक में दो तरह से संतानों की उत्पत्ति होती है। शब्द से तथा मैथुन से। वह हंस पर निर्भर करता है। वचन से संतानोपत्ति वाला क्षेत्र सतपुरूष के सिंहासन के चारों ओर है। नर-नारी से परिवार वाला क्षेत्र उसके बाद में है। वचन से संतान उत्पन्न करने वाले केवल नर ही उत्पन्न करते हैं। सत्यलोक में वृद्धावस्था नहीं है। नर-नारी वाले क्षेत्र में लड़के तथा लड़कियां दोनों उत्पन्न करते हैं। विवाह करते हैं केवल वचन से। जो बच्चे उत्पन्न होते हैं, वे काल लोक से मुक्त होकर गए जीव जन्म लेते हैं। फिर कभी नहीं मरते, न वृद्ध होते। जो सत्यलोक में मुक्त होकर जाते हैं, उनको सर्वप्रथम सत्यपुरूष जी के दर्शन कराए जाते हैं। उस समय उसका वही स्वरूप रहता है जैसा पृथ्वी से आता है, परंतु वृद्ध नीचे से गया तो वहाँ सतपुरूष के सामने उसी अवस्था व स्वरूप में जाता है। उसका प्रकाश सोलह सूर्यों के प्रकाश जितना हो जाता है। उसके पश्चात् उसको उस स्थान पर भेजा जाता है जो सबसे भिन्न है। वहाँ जाते ही उसका स्वरूप तो वैसा ही रहता है, लेकिन उसके शरीर का प्रकाश सोलह सूर्यों जैसा हो जाता है, परंतु यदि वृद्ध नीचे से गया है तो युवा अवस्था हो जाती है। जवान है तो जवान ही रहता है, बालक है तो बालक ही रहता है। वहाँ पर कुछ को सत्य पुरूष के वचन से स्त्री-पुरूष का शरीर मिलता है। कुछ बीज रूप में सतपुरूष द्वारा बनाए जाते हैं जिनका फिर एक बार किसी के घर सत्यलोक में जन्म होगा, परिवार बनेगा। उस स्थान पर वे हंस एक बार जन्म लेंगे जो काल लोक तथा अक्षर लोक से मुक्त होकर जाते हैं। एकान्त स्थान पर रखे जाते हैं। वे दोनों क्षेत्रों में जन्म लेते हैं। (वचन से उत्पन्न होने वाले तथा स्त्री-पुरूष से जन्म लेने वाले में) स्त्री-पुरूष से उत्पत्ति की औसत अधिक होती है। यह औसत 10/90 होती है। यह 10% वचन से उत्पत्ति, 90% विवाह रीति से उत्पत्ति होती है।

सत्यलोक में स्त्री तथा नर के शरीर का प्रकाश सोलह सूर्यों के प्रकाश के समान होता है। मीनी सतलोक, मानसरोवर पहले हैं। वहाँ दोनों के शरीर का प्रकाश चार सूर्यों के समान होता है। फिर आगे जाते हैं। जब परब्रह्म के लोक में बने अष्ट कमल के पास पहुँचते हैं तो हंस तथा हंसनी यानि नर-नारी के शरीर का प्रकाश 12 सूर्यों के प्रकाश के समान हो जाता है। फिर सत्यलोक में बनी भंवर गुफा में प्रत्येक के शरीर का प्रकाश सोलह सूर्यों के समान हो जाता है।

प्रमाण कबीर सागर अध्याय ‘‘मोहम्मद बोध‘‘ पृष्ठ 20, 21 तथा 22 पर दश मुकामी रेखताः-


 

FAQs : "दीक्षा लेकर नाम का स्मरण करना अनिवार्य है | जीने की राह"

Q.1 इस लेख में रानी सुंदरदेई और उनकी आध्यात्मिक यात्रा के बारे में क्या बताया गया है?

रानी सुंदरदेई एक रानी थीं। उन्होंने परमेश्वर कबीर जी से नाम दीक्षा ली थी, लेकिन आध्यात्मिक साधना में उनका विश्वास कम था। इसलिए उन्होंने कबीर साहेब जी से नाम दीक्षा लेकर भी उस नाम का जाप नहीं किया। उन्होंने ईश्वर की साधना करने की बजाय रानी के रूप में अपना जीवन व्यतीत किया।

Q.2 जब रानी सुंदरदेई की मृत्यु का समय आया तो उनकी हालत क्यों खराब हो गई थी?

जब रानी सुंदरदेई की मृत्यु का समय आया तो यम के दूत उनके शरीर में प्रवेश कर गए। उन्हें बहुत बेचैनी और पीड़ा महसूस हुई क्योंकि आध्यात्मिक साधना और भक्ति की कमी के कारण वह यम के दूतों के आगे टिक न सकी।

Q. 3 रानी सुंदरदेई ने यमदूतों से बचने के लिए किससे मदद मांगी?

जब यमदूतों ने रानी सुंदरदेई को घेर लिया तब उन्होंने अपने सतगुरु कबीर साहेब जी को याद किया। रानी सुंदरदेई जी ने कबीर साहेब जी से ही मदद की गुहार लगाई थी और सत सुकृत मंत्र का जाप किया था। जिससे रानी सुंदरदेई की यमदूतों से रक्षा हुई थी।

Q.4 रानी सुंदरदेई की आयु क्यों बढ़ गई थी?

रानी सुन्दरदेई की आयु इसलिए बढ़ गई थी क्योंकि उन्होंने सत सुकृत मंत्र का जाप किया था। फिर सर्वशक्तिमान परमेश्वर कबीर साहेब जी ने सतगुरु रूप में प्रकट होकर उनकी रक्षा की थी। इस घटना के बाद रानी सुंदरदेई ने सच्चे दिल से समर्पित होकर भक्ति की थी। जिसके बाद भक्ति की कमाई से ही उनको मोक्ष की प्रप्ति हुई।

Q.5 सतलोक में साधक को क्या सुविधाएं मिलती हैं?

सत्यलोक में साधक को एक सुंदर और अमर शरीर, एक विशाल महल, एक विमान और अलौकिक शक्तियां प्राप्त होती हैं। उनके पास अपनी इच्छा अनुसार कोई भी वस्तु अपने सामने अपने शब्दों की शक्ति से प्रकट करने की शक्ति होती है।

Q.6 अमरलोक यानि कि सत्यलोक में संतान कैसे उत्पन्न होती है?

अमरलोक यानि कि सत्यलोक में संतान दो तरह से उत्पन्न होती है। एक तो शब्द शक्ति से और दूसरा संभोग से। सतपुरुष यानि कि पूर्ण परमेश्वर के सिंहासन के पास का क्षेत्र शब्द शक्ति से संतान उत्पन्न करता है। जबकि सतलोक में पुरुष-महिला विवाहित जीवन जीते हुए संतान उत्पन्न करते हैं।


 

Recent Comments

Latest Comments by users
यदि उपरोक्त सामग्री के संबंध में आपके कोई प्रश्न या सुझावहैं, तो कृपया हमें [email protected] पर ईमेल करें, हम इसे प्रमाण के साथ हल करने का प्रयास करेंगे।
Kapil Kumar

मुझे बचपन से ही रोज़ाना सुबह और रात्रि को गायत्री मंत्र जाप करने की आदत है। मैंने तो यहां तक सुना है कि गायत्री मंत्र का जाप बहुत शक्तिशाली होता है क्योंकि इससे मोक्ष और शांति की प्राप्ति होती है।

Satlok Ashram

कपिल जी, आपने हमारे लेख में रूचि दिखाई, इसके लिए हम आपके आभारी हैं। देखिए गायत्री मंत्र यजुर्वेद अध्याय 36, मंत्र 3 से लिया गया है। लेकिन गायत्री मंत्र के आरंभ में लगाया गया "ओम" मूल मंत्र का हिस्सा नहीं है। फिर हमारे किसी भी पवित्र शास्त्र में शब्दों को बदलना या जोड़ना सही नहीं माना जाता है क्योंकि ईश्वर से अधिक ज्ञान किसी मनुष्य के पास हो नहीं सकता। पवित्र गीता जी में भी स्पष्ट लिखा है कि जो साधना शास्त्र विरुद्ध है, उसको करने से कोई लाभ नहीं होता। पवित्र गीता जी के अध्याय 17, श्लोक 23 में मोक्ष के तीन सांकेतिक मंत्रों का वर्णन किया गया है। यह मंत्र केवल तत्वदर्शी संत ही बता सकते हैं। साधक को पूर्ण मोक्ष प्राप्त करने के लिए पूर्ण गुरु से दीक्षा लेकर भक्ति करनी होती है। अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए आप "जीने की राह" पुस्तक पढ़िए और संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचन यूट्यूब चैनल पर सुनिए।

Saurabh Srivastava

क्या कोई भी मंत्र जाप करने के लिए गुरु बनाना ज़रूरी है? हमारे पवित्र शास्त्र केवल गुरुओं के पास ही नहीं हैं, ईश्वर ने हमें भी ज्ञान और शास्त्र प्रदान किए हैं। फिर हम किसी गुरु से दीक्षा क्यों लें? क्या हम स्वयं मंत्र जाप करके ईश्वर की भक्ति नहीं कर सकते?

Satlok Ashram

सौरभ जी, आपने हमारे लेख को पढ़कर अपने विचार व्यक्त किए, उसका हम सम्मान करते हैं। देखिए जीवन में आगे बढ़ने के लिए हमें किसी अधिकारी व्यक्ति के मार्गदर्शन की ज़रूरत पड़ती है। उदाहरण के तौर पर जब हम किसी विश्वविद्यालय में पढ़ते हैं, तो केवल वहीं से हमें हमारी योग्यता प्रमाणित करने वाली डिग्री प्राप्त होती है। इसी प्रकार भक्ति मार्ग में मोक्ष प्राप्त करने के लिए किसी अधिकारी संत से नाम दीक्षा लेकर भक्ति करनी बहुत ज़रूरी है। इसी का प्रमाण हमारे पवित्र धार्मिक ग्रंथों में भी है। मोक्ष के मार्ग को गहराई से जानने के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को यूट्यूब चैनल पर सुनिए। इसके अलावा आप "जीने की राह" पुस्तक भी पढ़ सकते हैं।