52. काल का जीव सतगुरू ज्ञान नहीं मानता | जीने की राह


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पृष्ठ 160 का सारांश:-

इस पृष्ठ पर कुछ गुरू महिमा है तथा कोयल की चाणक्य नीति का ज्ञान है।

काल का जीव सतगुरू ज्ञान नहीं मानता

“कोयल-काग“ का उदाहरण:- कोयल पक्षी कभी अपना भिन्न घौंसला बना कर अण्डे-बच्चे पैदा नहीं करती। कारण यह कि कोयल के अण्डों को कौवा (Crow) खा जाता है। इसलिए कोयल को ऐसी नीति याद आई कि जिससे उसके अण्डों को हानि न हो सके। कोयल जब अण्डे उत्पन्न करती है तो वह ध्यान रखती है कि कहाँ पर कौवी (Female Crow) ने अपने घौंसले में अण्डे उत्पन्न कर रखे हैं। जिस समय कौवी पक्षी भोजन के लिए दूर चली जाती है तो पीछे से कोयल उस कौवी के घौंसले में अण्डे पैदा कर देती है और दूर वृक्ष पर बैठ जाती है या आस-पास रहेगी। जिस समय कौवी घौंसले में आती है तो वह दो के स्थान पर चार अण्डे देखती है। वह नहीं पहचान पाती कि तेरे अण्डे कौन से हैं, अन्य के कौन-से हैं? इसलिए वह चारों अण्डों को पोषण करके बच्चे निकाल देती है। कोयल भी आसपास रहती है। अब कोयल भी अपने बच्चों को नहीं पहचानती है क्योंकि सब बच्चों का एक जैसा रंग (काला रंग) होता है। जिस समय बच्चे उड़ने लगते हैं, तब कोयल निकट के अन्य वृक्ष पर बैठकर कुहु-कुहु की आवाज लगाती है। कोयल की बोली कोयल के बच्चों को प्रभावित करती है, कौवे वाले मस्त रहते हैं। कोयल की आवाज सुनकर कोयल के बच्चे उड़कर कोयल की ओर चल पड़ते हैं। कोयल कुहु-कुहु करती हुई दूर निकल जाती है, साथ ही कोयल के बच्चे भी आवाज से प्रभावित हुए कोयल के पीछे-पीछे दूर चले जाते हैं। कौवी विचार करती है कि ये तो गए सो गए, जो घौंसले में हैं उनको संभालती हूँ कि कहीं कोई पक्षी हानि न कर दे। यह विचार करके कौवी लौट आती है। इस प्रकार कोयल के बच्चे अपने कुल परिवार में मिल जाते हैं।

परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास को समझाया है कि हे धर्मदास! तेरा पुत्र नारायण दास काग यानि काल का बच्चा है। उसके ऊपर मेरे प्रवचनों का प्रभाव नहीं पड़ा। आप दयाल (करूणामय सतपुरूष) के अंश हो। आपके ऊपर मेरी प्रत्येक वाणी का प्रभाव हुआ और आप खींचे चले आए। काल के अंश नारायण दास पर कोई असर नहीं हुआ। यही कहानी प्रत्येक परिवार में घटित होती है। जो अंकुरी हंस यानि पूर्व जन्म के भक्ति संस्कारी जो किसी जन्म में सतगुरू कबीर जी के सत्य कबीर पंथ में दीक्षित हुए थे, परंतु मुक्त नहीं हो सके। वे किसी परिवार में जन्मे हैं, सतगुरू की कबीर जी की वाणी सुनते ही तड़फ जाते हैं। आकर्षित होकर दीक्षा प्राप्त करके शिष्य बनकर अपना कल्याण कराते हैं। उसी परिवार में कुछ ऐसे भी होते हैं जो बिल्कुल नहीं मानते। अन्य जो दीक्षित सदस्य हैं, उनका भी विरोध तथा मजाक करते हैं। वे काल के अंश हैं। वे भी नारायण दास की तरह काल के दूतों द्वारा प्रचलित साधना ही करते हैं।

पृष्ठ 161 अनुराग सागर का सारांश:-

कबीर परमात्मा ने कहा कि हे धर्मदास! जिस प्रकार शूरवीर तथा कोयल के सुत (बच्चे) चलने के पश्चात् पीछे नहीं मुड़ते। इस प्रकार यदि कोई मेरी शरण में इस प्रकार धाय (दौड़कर) सब बाधाओं को तोड़कर परिवार मोह छोड़कर मिलता है तो उसकी एक सौ एक पीढ़ियों को पार कर दूँगा।

कबीर, भक्त बीज होय जो हंसा। तारूं तास के एकोतर बंशा।।
कबीर, कोयल सुत जैसे शूरा होई। यही विधि धाय मिलै मोहे कोई।।
निज घर की सुरति करै जो हंसा। तारों तास के एकोतर बंशा।।


 

FAQs : "काल का जीव सतगुरू ज्ञान नहीं मानता | जीने की राह"

Q.1 इस लेख में "कोयल और कौआ" के उदाहरण से क्या समझाया गया है?

इस लेख में कौए और कोयल के उदाहरण देकर समझाया गया है कि जैसे मादा कौआ के बच्चों के ऊपर कोयल की आवाज़ का कोई असर नहीं होता। ठीक उसी तरह कौए जैसी विरती (स्वभाव) रखने वाले व्यक्ति पर आध्यात्मिक ज्ञान और शिक्षाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जबकि कोयल के बच्चे कोयल की आवाज़ की ओर खींचे चले जाते हैं, ठीक उसी तरह ईश्वर के भक्त सतगुरु की शिक्षाओं की ओर आकर्षित होते हैं। जैसे भोजन की तलाश में मादा कौआ जब अपने घोंसले से निकलती है। तब कोयल कौवे के घोंसले में अपने अंडे दे देती है, जिससे मादा कौआ यह समझ नहीं पाती की उसके अंडे कौन से थे और वह सभी अंडों का ध्यान एक साथ रखती है। लेकिन वह अपने और कोयल के अंडों में भिन्नता नहीं पहचान पाती। उसके बाद जब कोयल के बच्चे अंडे से बाहर आकर उड़ने योग्य हो जाते हैं तब कोयल "कुहू-कुहू" की ध्वनि उत्पन्न करती है। जिससे कोयल के बच्चे अपनी मां की बोली को पहचान लेते हैं और उसकी ओर आकर्षित हो जाते हैं और ऊपर आकाश में उसकी तरफ उड़ जाते हैं। ठीक इसी तरह परमेश्वर कबीर जी के भक्त सच्चे सतगुरु के सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान की ओर आकर्षित हुए बिना रह नहीं पाते हैं।

Q.2 परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को उनके पुत्र नारायण दास के बारे में क्या बताया था?

परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया था कि नारायण दास काल का दूत है। इसलिए तो कबीर साहेब जी की शिक्षाओं का नारायण दास पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। नारायण दास ने काल के दूतों द्वारा बताई गई शास्त्र विरुद्ध साधना ही की थी और कबीर साहेब जी की शिक्षाओं और ज्ञान को स्वीकार नहीं किया था।

Q. 3 "अंकुरी हंस" के साथ क्या होगा, जिसने पिछले जन्म में सतगुरु कबीर जी की भक्ति की थी। लेकिन तब उसे मोक्ष की प्रप्ति नहीं हुई थी?

परमात्मा के विधान के अनुसार जो लोग किसी भी पूर्व के जन्म में कबीर साहेब जी की शरण ग्रहण करते हैं, वह शीघ्र ही पूर्ण गुरु से नाम दीक्षा ले लेते हैं। जब वह पूर्ण गुरु से कबीर साहेब जी की वाणी सुनते हैं, तो वह उसकी ओर आकर्षित होते हैं। फिर पूर्ण गुरु से नाम दीक्षा लेकर उनके शिष्य बन जाते हैं और मोक्ष प्राप्त करते हैं।

Q.4 परमेश्वर कबीर जी की शरण ग्रहण करने वाले व्यक्ति पर परमात्मा कबीर जी कैसे दया करते हैं?

सतलोक परमलोक है और वहां पुण्य आत्माएं निवास करती हैं। इस का वर्णन हमारे सभी धार्मिक ग्रंथों में किया गया है। सतलोक में सभी सुख और सुविधाएं हैं। सतलोक में पूर्ण शांति और आनंद है। वह स्थान दुख, दर्द और भेदभाव से रहित है। वहां पर आत्मा बिना जन्म और मृत्यु के डर के आनंद लेती है। ऐसी असंख्य विशेषताएं हैं जो सतलोक को पृथ्वी जैसे नाशवान लोक से भिन्न बनाती हैं।जो व्यक्ति सभी बंधनों को त्याग कर परमेश्वर कबीर जी की शरण में आता है, परमेश्वर कबीर जी उसे मोक्ष प्रदान करते हैं। इतना ही नहीं उसकी एक सौ एक पीढ़ियों को पार करने का भी वचन देते हैं।

Q.5 इस लेख में "कोयल और कौवा" के उदाहरण के माध्यम से क्या मुख्य संदेश दिया गया है?

इस लेख में आध्यात्मिक ज्ञान की गहराई को समझाने की कोशिश की गई है। इसमें सतगुरु की शिक्षाओं की ओर आकर्षित होने वालों और विरोध करने वालों के बीच अंतर को समझाया गया है। जैसे कि एक ही परिवार में कुछ ऐसे सदस्य हो सकते हैं जो सतगुरु की शिक्षाओं की ओर आकर्षित होते हैं और उनसे नाम दीक्षा ले लेते हैं। जबकि बाकी अन्य परिवार के सदस्य नाम दीक्षा लेने वालों का विरोध या फिर मज़ाक उड़ाते हैं। इससे यह भी पता चलता है कि परिवार में अलग-अलग आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले सदस्य होते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कोयल के बच्चे कोयल की ओर आकर्षित होते हैं और मादा कौआ के बच्चे उसकी ओर आकर्षित होते हैं।


 

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Simran Singh

मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है?इस लेख में कौआ और कोयल को शैतान और भगवान के रूप में दर्शाया गया है। यह बहुत भ्रमित करने वाला उदाहरण है क्योंकि यदि भगवान पूरे ब्रह्मांड के निर्माता और शासक हैं, तो शैतान कैसे इस ब्रह्मांड में रह सकता है। सोचने वाली बात तो यह भी है कि शैतान कैसे परमात्मा की आत्मा को नियंत्रित कर सकता है?

Satlok Ashram

सिमरन जी, आपने हमारे लेख को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की, उसके लिए हम आपके आभारी हैं। देखिए यह बात सच है कि सर्वशक्तिमान ईश्वर कबीर जी ही पूरे ब्रह्मांड के निर्माता हैं। इस पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवात्मा अपने कर्म आधार पर जन्म लेते और मरते हैं। यहां इस लोक में सभी तरह के लोगों और जीवों को रहने का अधिकार है काग (कौआ) रूपी भी और कोयल रूपी भी। यहां का राजा काल है जो सभी आत्माओं के शरीरों में मन रूप में बैठकर उनको कंट्रोल करता है। जो काग प्रवृत्ति के लोग होते हैं उन पर भगवान की वाणी का कोई असर नहीं होता और कोयल प्रवृत्ति के लोग देर-सवेर परमात्मा को पहचान ही लेते हैं। यह उदाहरण भ्रमित करने वाला कदापि नहीं है बल्कि शैतान और परमात्मा प्रेमी आत्माओं के बीच अंतर को स्पष्ट रूप से समझाने वाला है। परमात्मा जब भी पृथ्वी पर अवतरित होते हैं तब अपने ज्ञान को अपनी वाणियों, शब्दों, दोहों और प्रवचनों के माध्यम से सबको सुनाते हैं जो परमात्मा के ज्ञान को सुनकर समझ जाते हैं वह उनकी ओर आकर्षित हुए बिना नहीं रह पाते। कबीर साहेब जी इस पूरे ब्रह्मांड के निर्माता और शासक हैं और काल शैतान ने तपस्या करके 21 लोक भी कबीर साहेब जी से ही प्राप्त किए थे। अगर आप शैतान काल और भगवान कबीर जी के अज्ञान और ज्ञान को गहराई से जानना चाहते हैं तो आप ज्ञान गंगा पुस्तक में सृष्टि रचना को अवश्य पढ़िए। इसके अलावा आप "जीने की राह" पुस्तक भी पढ़ सकते हैं और आप संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को यूट्यूब चैनल पर सुनकर भी आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

Parveen Kumar

मैं पिछले 10 वर्षों से एक गुरु का शिष्य हूं, जिनके पूर्वज धर्मदास जी हैं। इस तरह मैं भी कबीर साहेब जी के बताए मार्ग पर ही चल रहा हूं। मैं सतलोक और मोक्ष प्राप्त करना चाहता हूं। लेकिन लगता है कि कबीर साहेब जी की शिक्षाओं को सही ढंग से समझना मेरे लिए बहुत कठिन है।

Satlok Ashram

परवीन जी, हमें यह जानकर बहुत खुशी हुई कि आपके अंदर ईश्वर के बारे में जानने की इच्छा है। किसी भी गुरु से दीक्षा लेकर यह मान लेना कि आप कबीर साहेब जी की शरण में हैं, यह सही नहीं है। केवल सच्चे संत से नाम दीक्षा लेकर उनके बताए अनुसार भक्ति करने से ही सतलोक और मोक्ष की प्रप्ति हो सकती है। ऐसे बहुत से संत हैं जो कबीर साहेब जी की शिक्षाओं के अनुसार चलने का दावा करते हैं। लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। कबीर सागर में भी इसका ज़िक्र है कि ऐसे बहुत से पंथ होंगे जो खुद को कबीर पंथी बताएंगे, लेकिन वास्तव में उनके पास मोक्ष मार्ग नहीं होगा। यह पंथ शैतान काल के द्वारा चलाए गए होंगे। इसलिए इस अनमोल मानव जीवन में नाम दीक्षा लेने से पहले एक सच्चे संत की पहचान करना बहुत ज़रूरी है। हम आपसे निवेदन करते हैं कि सच्चे संत और कबीर साहेब जी की शिक्षाओं के बारे में गहराई से जानने के लिए आप "जीने की राह" पुस्तक पढ़िए। इसके अलावा आप संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को यूट्यूब चैनल पर भी सुन सकते हैं।