26. नशा करता है नाश | जीने की राह


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नशा चाहे शराब, सुल्फा, अफीम, हिरोईन आदि-आदि किसी का भी करते हो, यह आपका सर्वनाश का कारण बनेगा। नशा सर्वप्रथम तो इंसान को शैतान बनाता है। फिर शरीर का नाश करता है। शरीर के चार महत्वपूर्ण अंग हैं:- 1. फेफड़े, 2. जिगर (लीवर), 3. गुर्दे (Kidney), 4. हृदय। शराब सर्वप्रथम इन चारों अंगों को खराब करती है। सुल्फा (चरस) दिमाग को पूरी तरह नष्ट कर देता है। हिरोईन शराब से भी अधिक शरीर को खोखला करती है। अफीम से शरीर कमजोर हो जाता है। अपनी कार्यशैली छोड़ देता है। अफीम से ही चार्ज होकर चलने लगता है। रक्त दूषित हो जाता है। इसलिए इनको तो गाँव-नगर में भी नहीं रखे, घर की बात क्या। सेवन करना तो सोचना भी नहीं चाहिए।

एक व्यक्ति दिल्ली पालम हवाई अड्डे पर नौकरी करता था। सन् 1997 की बात है। उस समय उसकी सेलरी बारह हजार रूपये महीना थी। दिल्ली के गाँव में यह दास (रामपाल दास) सत्संग करने गया। वहाँ एक वृद्धा अपनी तीन पोतियों के साथ सत्संग वाले घर में आई जो नाते में सत्संग कराने वालों की चाची थी। वह गाँव के बाहरी क्षेत्र में प्लाॅट में मकान बनाकर रहती थी। वह लड़का भी उसी का था जो दिल्ली हवाई अड्डे पर नौकर था। बहुत शराब पीता था। घर की ठौर बिटोड़ा बना रखा था। पत्नी-बच्चों को पीटता था क्योंकि उसका प्रतिदिन शराब पीकर आना, पत्नी ने टोका-टाकी करनी, प्रतिदिन की महाभारत थी। पत्नी बच्चों को छोड़कर अपनी माँ के घर चली गई। दादी ने बच्चों को संभाला। फिर स्वयं जाकर अपनी पुत्रवधु को समझा-बुझाकर लाई। उस रात्रि में वह वृद्धा अपनी पुत्रवधु तथा पोतियों सहित आई थी क्योंकि खुद के जेठ के घर सत्संग था। इसलिए आना पड़ा। सत्संग में प्रत्येक पहलू पर व्याख्यान देना होता है। पहले परमात्मा की भक्ति लाभ तथा न करने से हानि बताई जाती है जो पूरे विस्तार से बताई जाती है। उस दिन वह शराबी पहले घर गया। घर पर कोई नहीं मिला तो कुछ देर घर पर बैठा। फिर एक पड़ोसी ने बताया कि आपकी माताजी आपके ताऊ के घर पूरे परिवार को लेकर गई है। उनके यहाँ सत्संग हो रहा है। वहीं सबका खाना है। परमात्मा की करनी हुई, वह भी सत्संग में चला गया और सबसे पीछे बैठ गया क्योंकि शराब पी रखी थी।

सत्संग वचन:- सत्संग में बताया गया कि मानव जन्म प्राप्त करके जो व्यक्ति शुभ कर्म नहीं करता तो उसका भविष्य नरक बन जाता है। जो नशा करता है, उसका वर्तमान तथा भविष्य दोनों नरक ही होते हैं। नशा इंसानों के लिए नहीं है। यह तो इंसान से राक्षस बनाता है। जो व्यक्ति पूर्व जन्म के पुण्यकर्मों वाले हैं, उनको इस जन्म में उन शुभ कर्मों के प्रतिफल में अच्छी नौकरी मिली है या अच्छा कारोबार है। यदि वर्तमान में शुभ कर्म, भक्ति व दान-धर्म नहीं करोगे तो भविष्य के जन्मों में गधा-कुत्ता, सूअर-बैल बनकर धक्के व गंद खाओगे। 

जैसे मानव (स्त्री/पुरूष) जीवन में पूर्व के शुभ कर्म अनुसार अच्छा भोजन मिला है। अच्छा मानव शरीर मिला है। जब चाहो, खाना खाओ। प्यास लगे, पानी पीओ। इच्छा बने तो चाय-दूध पीयो। फल तथा मेवा (काजू-बादाम) खाओ। यदि पूरा गुरू बनाकर सच्चे दिल से भक्ति व सत्संग सेवा, दान-धर्म नहीं किया तो अगले जन्म में गधा-बैल-कुत्ता बनकर दुर्दशा को प्राप्त हो जाओगे। न समय पर खाना मिलेगा, न पानी। न कोई गर्मी-सर्दी से, मच्छर-मक्खी से बचने का साधन होगा। मानव जीवन में तो मच्छरदानी, ऑल-आउट से बचाव कर लेते हैं। गर्मी से बचने के उपाय खोज लिए हैं। परंतु जब पशु बनोगे, तब क्या मिलेगा? संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त ज्ञान को इस प्रकार बताया है:-

गरीब, नर सेती तू पशुवा कीजै, गधा बैल बनाई।
छप्पन भोग कहाँ मन बोरे, कुरड़ी चरने जाई।।

भावार्थ:- मानव शरीर छूट जाने के पश्चात् भक्ति हीन तथा शुभकर्म हीन होकर जीव गधे-बैल आदि-आदि की योनियों (शरीरों) को प्राप्त करेगा। फिर मानव शरीर वाला आहार नहीं मिलेगा। गधा बनकर कुरड़ी (कूड़े के ढ़ेर) पर गंद खाएगा। बैल बनकर नाक में नाथा (एक रस्सी) डाली जाएगी। रस्से से बँधा रहेगा। न प्यास लगने पर पानी पी सकेगा, न भूख लगने पर खाना खा सकेगा। मक्खी-मच्छर से बचने के लिए एक दुम होगी। उसको कूलर समझना, पंखा या मच्छरदानी समझना। जिन प्राणियों के अधिक पापकर्म होते हैं, पशु जीवन में उनकी दुम भी कट जाती है। एक-डेढ़ फुट का डण्डा शेष बचता है, उसे घुमाता रहता है।

एक बैल के पिछले पैर के खुर के बीच में लगभग 1.5 इंच बड़ी कील लग गई। चलने से और अधिक अंदर चली गई। बैल पैर से लंग करने लगा। हाली को लगा कि झटका लग गया है। नस पर नस चढ़ गई होगी, चलने से ठीक हो जाएगा। कई बार ऐसा होता है कि नस पर नस चढ़ जाती तो बैल चलते-चलते ठीक हो जाता था, परंतु अबकी बार ऐसा नहीं हुआ। सारा दिन बैल हल में चला। घर तक आया तो पैर को कठिनाई से पृथ्वी पर रख पा रहा था। धीरे-धीरे चल पा रहा था। घर पर आते ही बैठ गया। चारा भी नहीं चरा। आँखों से आँसू निकल रहे थे क्योंकि दर्द अधिक था। सुबह बैल उठा ही नहीं, लेट गया। पैर पर सोजन अधिक थी। गाँव से पशुओं का डाॅक्टर बुलाया। पुराने समय की बात है। उस समय ऐसा ही इलाज होता था। डाॅक्टर ने देखकर बताया कि इसके घुटने में बाय है। पुराने गुड़ को कूटकर नर्म करके पट्टी बाँध दो, ठीक हो जाएगा। कील लगी थी खुर में (पैर के नीचे वाले हिस्से में), उपचार हो रहा था घुटने का। लगभग एक महीने ऐसा चला। एक दिन घर के आदमी ने देखा कि बैल के पैर के तलवे (खुर के बीच) से मवाद निकल रहा है। उसको साफ किया तो पाया कि कील लगी है। किसी औजार से कील निकाली। तब एक सप्ताह में बैल ठीक हो गया। पेटभर चारा खाया-पानी पीया।

विचार करें:- जब यह प्राणी मानव शरीर में था तो इसको स्वपन में भी ज्ञान नहीं सोचा था कि एक दिन मैं बैल भी बन जाऊँगा। अब बोलकर भी नहीं बता पा रहा था कि दर्द कहाँ पर है? कबीर जी ने कहा है कि:-

कबीर, जिव्हा तो वोहे भली, जो रटै हरिनाम।
ना तो काट के फैंक दियो, मुख में भलो ना चाम।।

भावार्थ:- जैसे जीभ शरीर का बहुत महत्वपूर्ण अंग है। यदि परमात्मा का गुणगान तथा नाम-जाप के लिए प्रयोग नहीं किया जाता है तो व्यर्थ है क्योंकि इस जुबान से कोई किसी को कुवचन बोलकर पाप करता है। बलवान व्यक्ति निर्बल को गलत बात कह देता है जिससे उसकी आत्मा रोती है। बद्दुवा देती है। बोलकर सुना नहीं सकता क्योंकि मार भी पड़ सकती है। यह पाप हुआ। फिर किसी की निंदा करके, किसी की झूठी गवाही देकर, किसी को व्यापार में झूठ बोलकर ठगकर अनेकों प्रकार के पाप मानव अपनी जीभ से करता है। परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि यदि जीभ का सदुपयोग नहीं करता है यानि शुभ वचन-शीतल वाणी, परमात्मा का गुणगान यानि चर्चा करना, धार्मिक सद्ग्रन्थों का पठन-पाठन तथा भगवान के नाम पर जाप-स्मरण जीभ से नहीं कर रहा है तो इसे काटकर फैंक दो। कोरे पाप इकट्ठे कर रहा है।

(जीभ को काटने को कहना तो मात्र उदाहरण है जो सतर्क करने को है। कहीं जीभ काटकर मत फैंक देना। अपने शुभ कर्म, शुभ वचन शुरू करना। यदि रामनाम व गुणगान नहीं कर रहा है तो पवित्र मुख में इस जीभ के चाम को रखना अच्छा नहीं है।)

मानव शरीरधारी प्राणी को वर्तमान में (सन् 1970 से) विशेष सुविधाऐं प्राप्त हैं। जिस कारण से दिनों-दिन परमात्मा से दूर होता जा रहा है। उतनी ही गति से मानव के दुःख निकट आ रहे हैं। वित्तीय स्थिति में सुधार है, परंतु मानसिक शांति समाप्त है। नशा इसका मुख्य कारण है। एक पिता नौकरी पर गया है। बच्चों की आशा होती है कि पिता जी आएंगे, कुछ आवश्यक वस्तुऐं लाऐंगे। पिता जी आते हैं तो छोटे-छोटे बच्चे दौड़कर लिपटते हैं, प्यार पाते हैं। जिन बच्चों का पिता नशा करता है। उनके घर में कलह का होना स्वाभाविक है। बच्चे भयभीत रहते हैं। उनका मानसिक विकास, शारीरिक विकास दोनों ही नहीं हो पाते। वह घर नरक समान हो जाता है। आज जो शराब पीकर मस्त हैं, उनकी इज्जत समाज में भी नहीं होती।

अगले जन्म में वह व्यक्ति कुत्ता बनेगा, टट्टी खाएगा। गंदी नाली का पानी पीएगा। फिर पशु-पक्षी बनकर कष्ट पर कष्ट उठाएगा। इसलिए सर्व नशा व बुराई त्यागकर इंसान का जीवन जीओ। सभ्य समाज को भी चैन से जीने दो। एक शराबी अनेकों व्यक्तियों की आत्मा दुःखाता है:- पत्नी की, पत्नी के माता-पिता, भाई-बहनों की, अपने माता-पिता, बच्चों की, भाई आदि की। केवल एक घण्टे के नशे ने धन का नाश, इज्जत का नाश, घर के पूरे परिवार की शांति का नाश कर दिया। क्या वह व्यक्ति भविष्य में सुखी हो सकता है? कभी नहीं। नरक जैसा जीवन जीएगा। इसलिए विचार करना चाहिए, बुराई तुरंत त्याग देनी चाहिऐं।

प्रश्न:- किसने देखा है कि अगले जन्म में क्या होता है?

उत्तर:- उदाहरण के लिए एक समय एक अंधा व्यक्ति जंगल की ओर जा रहा था। आगे एक सज्जन व्यक्ति खड़ा था। उसने कहा कि हे सूरदास जी! इधर मत जाओ, यह रास्ता भयंकर जंगल में जाता है। खुंखार शेर-चीते आदि-आदि जानवर रहते हैं। आप लौट जाईये। यदि अंधे ने नशा नही कर रखा होगा तो तुरंत मुड़ जाएगा। यदि नशे में है तो कहेगा कि किसने देखा है कि जंगल में भयंकर शेर-चीते सर्प आदि जानवर रहते हैं और यह कहकर अपने पथ पर बढ़ जाता है।

विचार करें:- अंधे को दिखाई नहीं देता और आँखों वाले की बात पर विश्वास नहीं करता तो उसको कौन-से तरीके से समझाया जाए? यदि नहीं मानता है तो उसकी वही दशा होगी जो आँखों वाला बता रहा था, शेर मार डालेंगे। इसी प्रकार संतजन आँखों (ज्ञान नेत्र) वाले हैं। उन्होंने हमें बताया है जो ऊपर वर्णन किया गया है। हम ज्ञान नेत्रहीन (अंधे) हैं। यदि हम संतों की शिक्षा पर विश्वास करके रास्ता नहीं बदलेंगे तो वही होगा जो ऊपर बताया गया है। 

नर से फिर पीछे तू पशुवा कीजै, गधा बैल बनाई।
छप्पन भोग कहां मन बौरे, कुरड़ी चरने जाई।।

कुछ व्यक्ति तो यहाँ तक कह देते हैं कि ‘‘देखा जाएगा जो होगा।’’ उनसे निवेदन है कि गधा बनने के पश्चात् आप क्या देखोगे, फिर तो कुम्हार देखेगा। इस प्रकार के प्रवचन सत्संग में अवश्य सुनाए जाते हैं।

वह शराबी भी सत्संग में आ बैठा कि घर पर कोई नहीं था, ताला लगा था। कुछ देर के बाद नशा उतर गया और सब सत्संग सुनना पड़ा। उस दिन के पश्चात् उस व्यक्ति ने कभी शराब नहीं पी और कोई नशा नहीं किया। दीक्षा ली, पूरे परिवार को दीक्षा दिलाई। हम (लेखक तथा साथ सत्संग में गए कुछ भक्त) सुबह गाँव के बाहर घूमने के लिए गए तो रास्ते में उस व्यक्ति का घर था। गली में उसकी माता जी खड़ी थी। उसने कहा कि महाराज जी! चाय पीकर जाना। गाँव के भक्त ने बताया कि इनके घर अवश्य चलो, उजड़ा पड़ा है यह परिवार। साधु-संतों के चरण पड़ने से घर पवित्र हो जाता है। हम सब उनके घर चले गए। हम कुल पाँच जने थे।

चारपाई आँगन में डली थी। मई का महीना था। वृक्ष की छाया थी। उसकी माता जी ने अपनी पुत्रवधु से कहा कि बेटी! चाय बना। उस बेटी ने चुल्हे में आग जलाकर डेगची में पानी डालकर चाय बनाना शुरू कर दिया। आधे घण्टे बाद हमने कहा कि चाय शीघ्र लाओ। हमने घूमने जाना है। फिर किसी अन्य गाँव में सत्संग के लिए जाना है। परंतु फिर भी वह बेटी डेगची के नीचे आग जलाए जा रही थी। दोबारा कहा तो वह रोने लग गई। गाँव का भक्त उठकर गया तो पता चला कि घर पर न चीनी है, न चाय-पत्ती और न ही दूध है। उस व्यक्ति की माता जी भी रोने लगी। कहा कि उजड़े पड़े हैं महाराज! बचा सको तो बचा लो। वह व्यक्ति दीक्षा लेकर वक्त से अपनी ड्यूटी पर चला गया था। कुछ दिन के पश्चात् हम दिल्ली में ही पंजाबखोड़ गाँव में सत्संग कर रहे थे। वहाँ पर वह व्यक्ति अपनी माता तथा पत्नी व तीनों बेटियों को कार में बैठाकर सत्संग में लाया। पहले एक टूटी-सी मोटरसाईकिल थी। सब बच्चों ने सुंदर वस्त्र पहन रखे थे। कह रहे थे कि पिताजी अब मम्मी के साथ कभी नहीं लड़ते। सब तनख्वाह दादी जी को देते हैं। हम तो स्वर्ग में रहने लगे।

दादी जी बोली कि उस दिन आपके ऐसे दर्शन हुए कि हम तो उजड़े बस गए। मैंने कहा कि माई! तेरा बेटा बुरा नहीं था। इसने ये अच्छे विचार कभी सुने ही नहीं थे। यदि पहले ये विचार सुनने को मिल जाते तो यह बुराई करता ही नहीं। यह सब परमेश्वर कबीर जी की कृपा है जो उस दिन यह सत्संग में आ गया और इसकी आत्मा का मैल साफ हो गया। आपका परिवार नरक से निकलकर स्वर्ग में निवास कर रहा है। परमात्मा की मर्यादा में रहना, कभी कष्ट नहीं आएगा। भक्ति करते रहना, कई पीढ़ी का उद्धार हो जाएगा। इस प्रकार सत्संग से मानव उद्धार होकर विश्व में शांति, आपसी-प्रेम बढ़ता है। सत्संग विचार अवश्य सुना करो।


 

FAQs : "नशा करता है नाश | जीने की राह"

Q.1 नशे का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है?

नशा शरीर पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। नशीले पदार्थ लीवर, फेफड़े, हृदय और मस्तिष्क आदि जैसे कई अंगों को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके सेवन से पाचन तंत्र भी कमज़ोर होता है। शरीर की संक्रमणों से लड़ने की क्षमता भी कम हो जाती है और अधिक समय तक नशीले पदार्थो का प्रयोग करते रहने से असाध्य रोग भी शरीर को घेर लेता है।

Q.2 क्या नशे की लत को छोड़ने का कोई पक्का उपाय है?

बिल्कुल है। अधिकतर लोग नशे की लत छोड़ने के लिए नशा मुक्ति केंद्रों में अपना इलाज करवाते हैं, जहां उन्हें मंहगा इलाज दिया जाता है। लेकिन फिर भी उनको नशे की लत से कोई राहत नहीं मिलती। परंतु अगर तत्वदर्शी संत द्वारा नाम दीक्षा लेकर और उनके द्वारा बताए गए भक्ति मार्ग पर चला जाए तो नशे जैसी भयानक बुराई को आसानी से छोड़ा जा सकता है और जो कि नशे की लत से बचाव का भी पक्का इलाज साबित होगा।

Q. 3 नशे के बारे में लोगों में प्रचलित गलत फहमियां क्या हैं?

नशे के बारे में एक गलत धारणा यह है कि नशा करने से थकावट, तनाव व बैचेनी दूर होती है, नींद अच्छी आती है, पेट साफ हो जाता है और इसका नशा करने वाले के शरीर पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन वास्तव में यह कई तरह की गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है। इसके अलावा नशे के बारे में यह भी गलत धारणा है कि नशे का सेवन करके व्यक्ति मानसिक दबाव, चिंता से दूर हो जाता है। जबकि वास्तव में नशा उदासी, चिंता , डिप्रेशन और इमोशनल डिसआर्डर जैसी समस्याएं पैदा करता है। नशीले पदार्थों का सेवन मोक्ष के मार्ग में विष के समान हैं।

Q.4 मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य क्या है?

मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य पूर्ण संत से नाम दीक्षा लेकर सतभक्ति करके मोक्ष प्राप्त करना है। ऐसा करने से जीव आत्मा जन्म और मृत्यु के दुष्चक्र से सदा के लिए मुक्त हो सकती है। इतना ही नहीं इससे आत्मा परम शांति और सुखमय स्थान सतलोक यानि कि अमरलोक को प्राप्त कर सकती है। इसका प्रमाण श्रीमद्भागवत गीता जी अध्याय 18 श्लोक 62 में भी है।

Q.5 क्या मनुष्य को सर्वशक्तिमान ईश्वर की पूजा करना जरूरी है?

जी हां बिल्कुल, अधिकारी संत से नाम दीक्षा लेकर सर्वशक्तिमान ईश्वर की पूजा करना अत्यंत ज़रूरी है। अगर मनुष्य ऐसा नहीं करता है तो वह सदा 84 लाख जीवों के शरीरों में जन्म-मरण के चक्र में फंसा रहता है।

Q.6 सर्वशक्तिमान ईश्वर की पूजा न करने वालों के साथ क्या होता है?

सर्वशक्तिमान ईश्वर की पूजा न करने वाले या फिर शास्त्रों के विरुद्ध पूजा करने वाले पूर्ण मोक्ष से हमेशा के लिए वंचित रह जाते हैं। वह अपने वर्तमान जीवन में और 84 लाख जीवों के शरीरों में भी बहुत कष्ट सहते हैं। उनको मनुष्य जीवन पाकर भी कोई लाभ नहीं मिलता और वह अपना मानव जीवन व्यर्थ के कार्यों में बर्बाद कर जाते हैं।


 

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Sumit Aggarwal

यह लेख मुझे मेरे एक मित्र ने भेजा है। मुझे बीयर जैसे नशीले पदार्थों का सेवन करने की लत है और यह पार्टियों में बहुत आम सी बात मानी जाती है। इसके अलावा मैं किसी भी तरह की पूजा-पाठ और ईश्वर में आस्था नहीं रखता। मेरा मानना है कि अगले जन्म की चिंता करने का कोई फायदा नहीं। मेरा आपसे भी अनुरोध है कि लोगों को डराकर उन्हें गुमराह न करें। मेरा मानना है कि हमें केवल एक ही मानव जीवन मिलता है और हमें सभी चिंताओं को त्यागकर जीवन का पूरा आनंद लेना चाहिए।

Satlok Ashram

सुमित जी, हमें खुशी है कि आपने हमारे लेख को न सिर्फ पढ़ा बल्कि अपने विचार भी व्यक्त किए हैं। देखिए हमारे लेखों में जो भी लिखा है उसका प्रमाण हमारे पवित्र ग्रंथों में मौजूद है। हमारे द्वारा प्रदान की गई जानकारी का उद्देश्य समाज को सही मार्गदर्शन प्रदान करना है न कि उन्हें डराकर गुमराह करना। वर्तमान समय में लोगों में भौतिक सुख और अधिक धन कमाने की होड़ लगी हुई है। इस समय नशीले पदार्थों का सेवन करना समाज में किसी को बुरा नहीं लग रहा। जबकि नशा स्वास्थ्य और समाज दोनों के लिए हानिकारक है और आध्यात्मिक मार्ग में तो विष के समान है। हमारा उद्देश्य आध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में गुमराह लोगों का सही मार्गदर्शन करना है। गरुड़ पुराण में तो नशे के सेवन की सख्त मनाही की गई है और इसके बुरे प्रभावों का वर्णन भी है। हमारे पवित्र शास्त्रों के अनुसार मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त होना है क्योंकि यहां जीवन अस्थायी है, इसलिए हमें सर्वशक्तिमान ईश्वर की पूजा करनी चाहिए। अधिक जानकारी के लिए पढ़िए पुस्तक "जीने की राह" और सुनिए संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचन यूट्यूब चैनल पर।

Shalini Sharma

मेरे माता-पिता ने मुझे बताया है कि जो अच्छे कर्म नहीं करते वो भविष्य में 84 लाख योनियों में कष्ट भोगते रहते हैं। लेकिन मुझे किसी ने गुरु से दीक्षा लेकर पूजा करने की विधि के बारे में नहीं बताया।

Satlok Ashram

शालिनी जी, हमें खुशी है कि हमारे लेख समाज को यह सोचने पर मजबूर कर रहे हैं कि गुरु बनाकर ही सही भक्ति विधि से पूजा करनी चाहिए। मनमानी पूजा विधि और गलत आचरण के कारण आत्मा 84 लाख जीव योनियों में भटकते रहने को मजबूर है और इसका प्रमाण हमारे पवित्र शास्त्रों में मौजूद है। हमारे पूर्वजों को तत्वदर्शी संत न मिलने के कारण उन्हें सही आध्यात्मिक मार्ग नहीं मिल पाया। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी एकमात्र ऐसे संत और गुरु हैं जो सही आध्यात्मिक मागदर्शन कर रहे हैं। केवल संत रामपाल जी महाराज ही हमें मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य और मोक्ष का मार्ग बता रहे हैं। देखिए हम आपको और आपके परिवार को संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा लिखित पुस्तक "जीने की राह" पढ़ने का निवेदन करते हैं। इतना ही नहीं अपने अनमोल मानव जीवन का कल्याण करवाने के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को यूट्यूब चैनल पर भी सुनें।