मन ही काल-कराल है। यह जीव को नचाता है। सुंदर स्त्री को देखकर उससे भोग-विलास करने की उमंग मन में उठाता है। स्त्री भोगकर आनन्द मन (काल निरंजन) ने लिया, पाप जीव के सिर रख दिया।
{वर्तमान में सरकार ने सख्त कानून बना रखा है। यदि कोई पुरूष किसी स्त्री से बलात्कार करता है तो उसको दस वर्ष की सजा होती है। यदि नाबालिक से बलात्कार करता है तो आजीवन कारागार की सजा होती है। आनन्द दो मिनट का मन की प्रेरणा से तथा दुःख पहाड़ के समान। इसलिए पहले ही मन को ज्ञान की लगाम से रोकना हितकारी है।}
अनुराग सागर के पृष्ठ 154 का सारांश:-
पराये धन को देखकर मन उसे हड़पने की प्रेरणा करता है। चोरी कर जीव को दण्ड दिलाता है। परनिंदा, परधन हड़पना यह पाप है। काल इसी तरह जीव को कर्मों के बंधन में फंसाकर रखता है। संत से विरोध तथा गुरूद्रोह यह मन रूप से काल ही करवाता है जो घोर अपराध है।
‘‘निरंजन चरित्र = काल का जाल‘‘
परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि धर्मदास! मैं तेरे को धर्म (धर्मराय-काल) का जाल समझाता हूँ। काल निरंजन ने श्री कृष्ण में प्रवेश करके गीता का ज्ञान दिया। उसको कर्मयोग उत्तम बताकर युद्ध करवाया। ज्ञान योग से उसको भ्रमित किया। अर्जुन तो पहले ही नेक भाषा बोल रहा था जो ज्ञान था। कह रहा था कि युद्ध करके अपने ही कुल के भतीजे, भाई, साले, ससुर, चाचे-ताऊ को मारने से अच्छा तो भीख माँगकर निर्वाह कर लेंगे। मुझे ऐसे राज्य की आवश्यकता नहीं जो पाप से प्राप्त हो। उसको डरा-धमकाकर युद्ध करवाकर नरक का भागी बना दिया। ज्ञान योग का बहाना कर कर्म योग पर जोर देकर महापाप करा दिया।
"काल" 21 ब्रह्मांडों का स्वामी है। वह मनुष्य के शरीर में मन रूप में रहता है और यहीं बैठकर मनुष्य को सभी बुरे कार्य करने की प्रेरणा देता है। उसके प्रभाव के कारण ही मनुष्य सभी बुरे कार्य, नशा और पाप करता है। सभी बुरे कामों और बुरी सोच के पीछे का कारण काल को ही माना जाता है। केवल काल कसाई ही व्यक्ति को बुरे कर्म करने के लिए प्रेरित करता है।
"ज्ञान रूपी लगाम" से हम अपने मन को नियंत्रित करके काल के प्रभाव से बच सकते हैं क्योंकि सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान होने के बाद ही पाप कर्म करने से बचा जा सकता है। मन में आने वाली बुरी इच्छाओं को सच्चे ज्ञान के प्रभाव से काबू किया जा सकता है।
"ज्योति निरंजन" ही काल ब्रह्म है। यह व्यक्ति को अपने स्वार्थ के लिए इस लोक में फंसाकर रखता है। यह मनुष्य को कभी अच्छे काम नहीं करने देता बल्कि व्यक्ति को बुरे कामों के लिए लगातार प्रेरित करता है। इसके अलावा यह व्यक्ति को सच्चे संतों और गुरुओं का विरोध करने के लिए प्रेरित करता रहता है।
इस लेख में यह वर्णन है कि काल ने अर्जुन जैसे योद्धा को भी अपने स्वार्थ के लिए भ्रमित कर दिया था। लेकिन परमेश्वर कबीर जी की शिक्षाएं इससे भिन्न हैं। कबीर साहेब जी ने हमेशा अच्छे कार्यों को करने और पाप कर्मों से बचने का ही उपदेश दिया है।
काल निरंजन ने श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके गीता जी का ज्ञान दिया था। लेकिन इसमें यह भी वर्णन है कि काल ने ही अर्जुन को गुमराह करने के लिए कहा था कि तू केवल कर्म पर ध्यान दे। उसी के कारण महाभारत का इतना भयानक युद्ध हुआ था।
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Vishal Verma
मैं बहुत ही शांत और विनम्र स्वभाव का व्यक्ति हूं। मैं बुराइयों से भी दूर रहता हूं। लेकिन मैं क्रोध और वासना नामी दो बुराईयों को दूर नहीं कर पा रहा। कुछ गुरुओं के बताए अनुसार मैंने ध्यान लगाने की भी कोशिश की , लेकिन कोई लाभ नहीं मिला। इन बुराईयों के कारण मेरा ध्यान भटकता रहता है, जिससे मैं कोई भी कार्य अच्छे से नहीं कर पाता। क्या आप इन बुराइयों पर काबू पाने का कोई तरीका बता सकते हैं?
Satlok Ashram
विशाल जी, आपने हमारे लेख के प्रति अपनी रूचि दिखाई, इसके लिए हम आपके आभारी हैं। मनुष्य शरीर पांच तत्वों से बना पुतला है। मनुष्य को काम, क्रोध, लोभ, अंहकार और आलस सदा सताते रहते हैं। केवल ध्यान लगाने से इन समस्याओं से नहीं बचा जा सकता और न ही ध्यान लगाना इनका कोई परमानेंट समाधान है। मनुष्य पर तीन गुणों का प्रभाव पड़ता है और यह तीन गुण मनुष्य को सदा प्रभावित करते हैं। काल भी बहुत शक्तिशाली शक्ति है और यह मन भी काल का ही अंश है, इसलिए केवल मन पर नियंत्रण करना ही पर्याप्त नहीं है। बुराईयों पर काबू पाने और विकारों से मुक्ति पाने के लिए आप पूर्ण गुरु से नाम दीक्षा लेकर सतभक्ति प्रारंभ कर सकते हैं। सतभक्ति करने से ही बुरे कर्मों का नाश और विकारों से बचाव होता है। हम आपको सलाह देते हैं कि आप "जीने की राह" पुस्तक को पढ़ें और संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचन यूट्यूब चैनल पर रोज़ सुनें।