काग जैसी गंदी वृत्ति को त्याग देता है तो वह हंस यानि भक्त बनता है। काग (कौवा) निज स्वार्थ पूर्ति के लिए दूसरों का अहित करता है। किसी पशु के शरीर पर घाव हो जाता है तो कौवा उस घाव से नौंच-नौंचकर माँस खाता है, पशु की आँखों से आँसू ढ़लकते रहते हैं। कौए की बोली भी अप्रिय होती है। हंस (भक्त) को चाहिए कि अपनी कौए वाला स्वभाव त्यागे। निज स्वार्थवश किसी को कष्ट न देवे। कोयल की तरह मृदु भाषा बोले। ये लक्षण भक्त के होते हैं।
सतगुरू का ज्ञान तथा दीक्षा प्राप्त करके यदि शिष्य जगत भाव में चलता है, वह मूर्ख है। वह भक्ति लाभ से वंचित रह जाता है। वह भक्ति में आगे नहीं बढ़ पाते। वे सार शब्द प्राप्ति योग्य नहीं बन पाते। यदि अंधे व्यक्ति का पैर बिष्टे (टट्टी) या गोबर पर रखा जाता है तो उसका कोई मजाक नहीं करता। कोई उसकी हाँसी नहीं करता। यदि आँखों वाला कुठौर (गलत स्थान पर) जाता है (परनारी गमन, चोरी करना, मर्यादा तोड़ना, वर्जित वस्तु तथा साधना का प्रयोग करना कुठौर कहा है।) तो निंदा का पात्र होता है।
कौए जैसा व्यवहार त्यागने का अर्थ है कि अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। इसके अलावा व्यक्ति को दूसरों से निस्वार्थ प्रेम करना चाहिए। इस लेख में कौए को उसके व्यवहार के कारण एक उदाहरण के रूप में प्रदर्शित किया गया है क्योंकि कौआ अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को नुकसान पहुंचाने से भी नहीं चूकता। इस तरह की सोच रखना भक्त के लिए भक्ति मार्ग में हानिकारक साबित हो सकती है।
इस लेख में बताया गया है कि गलत जगह जाना और नैतिक नियमों के विरुद्ध कार्य करना भक्ति मार्ग में रुकावट पैदा करता है। जैसे कि वेश्या के पास जाना, किसी के प्रति मन में दोष रखना, चोरी करना, नशा करना, रिश्वतखोरी, धोखेबाज़ी, भ्रष्टाचार में लिप्त होना, धार्मिक भेदभाव करना, जातीय भेदभाव करना, निषिद्ध वस्तुओं का उपयोग करना, शास्त्र विरुद्ध पूजा करना आदि शामिल हैं।
भक्त वह होता है जो कौए जैसा व्यवहार त्याग देता है और अपने स्वार्थ के लिए दूसरों का बुरा नहीं करता। भक्त कोयल की तरह विनम्रता से बात करे और दूसरों के प्रति दयावान रहे।
अगर कोई व्यक्ति सच्चे संत से ज्ञान और नाम दीक्षा प्राप्त करने के बाद भी सांसारिक लोगों की तरह ही व्यवहार करता है तो उसे मूर्ख माना जाता है। इस तरह का दोगला व्यवहार करने से उसे भक्ति करने से भी कोई लाभ नहीं होगा और वह आध्यात्मिक मार्ग में सफलता हासिल नहीं कर सकेगा।
इस लेख में बताया गया है कि भक्त को अच्छे गुण अपनाने चाहिए और निस्वार्थ व्यवहार करना चाहिए। इतना ही नहीं भक्त को ऐसे कार्य नहीं करने चाहिएं जो भक्ति मार्ग में बाधा उत्पन्न करें। इस लेख में यह भी वर्णन है कि भक्त को आध्यात्मिक नियमों पर दृढ़ रहना चाहिए।
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Jaspreet Kaur
इस लेख में बताया गया है कि केवल वही लोग मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं, जिनमें कुछ विशेषताएं होती हैं। लेकिन वर्तमान समय में किसी व्यक्ति में ऐसी विशेषताएं होना कठिन हैं। देखिए मैं स्वयं भी मोक्ष प्राप्त करना चाहती हूं। इतना ही नहीं मैं खुद को बहुत पुण्य आत्मा मानती हूं क्योंकि मैं किसी भी बुरी आदत का शिकार नहीं हूं। मुझे खुद पर पूरा विश्वास है कि मैं मोक्ष प्राप्त करने के योग्य हूं।
Satlok Ashram
जसप्रीत जी, आपने हमारे लेख में रूचि दिखाई, इसके लिए हम आपके आभारी हैं। देखिए प्रत्येक मनुष्य जो बुराईयों और विकार रहित जीवन व्यतीत करता है वह अच्छा सामाजिक प्राणी है। प्रत्येक मनुष्य जीवन प्राप्त व्यक्ति सतभक्ति करके मोक्ष पाने का अधिकारी बन सकता है। हमारे पवित्र धार्मिक शास्त्रों में भी यही प्रमाण है कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए मनुष्य को तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेकर भक्ति करनी चाहिए। इस लेख में जिन भी बातों का वर्णन किया गया है उनका प्रमाण सर्वशक्तिमान ईश्वर कबीर साहेब जी और उनकी प्रिय आत्माओं की बाणियों में मिलता है। वर्तमान समय में केवल संत रामपाल जी महाराज जी एकमात्र ऐसे संत हैं जो एक ईश्वर और मोक्ष के बारे में सही मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं। आप अपने सभी प्रश्नों के उत्तर "जीने की राह" पुस्तक पढ़कर और संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचन यूट्यूब चैनल पर सुनकर प्राप्त कर सकते हैं।