43. कथनी और करनी में अंतर घातक है | जीने की राह


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एक व्यक्ति प्रसिद्ध कथावाचक था तथा प्रतिदिन रामायण का पाठ भी करता था। एक दिन किसी कार्यवश पाठी जी को शहर जाना पड़ा। उसके साथ उसका साथी भी था। गाँव से तीन किलोमीटर दूर रेल का स्टेशन था। सुबह पाँच बजे गाड़ी पर चढ़ना था। इसलिए स्नान करके स्टेशन पर पहुँच गए। विचार किया कि पाठ गाड़ी में कर लूँगा। गाड़ी में चढ़ गए। जिस डिब्बे में वे दोनों चढ़े, वह भरा था। कोई सीट खाली नहीं थी। कुछ व्यक्ति खड़े थे। गाड़ी चल पड़ी। कुछ देर पश्चात् उस पाठी ने सीट पर बैठे दो व्यक्तियों से कहा कि भाई साहब! कृपा मुझे सीट दे दें। मैंने रामायण का पाठ करना है। आज गाड़ी पकड़ने की शीघ्रता के कारण घर पर नहीं कर सका। सज्जन पुरूषों ने पूरी सीट ही खाली कर दी। वे खड़े हो गए और बोले, हे विप्र जी! हमारा अहो भाग्य है कि आज हमको भी पवित्र ग्रन्थ रामायण जी का अमृतज्ञान सुनने को मिलेगा। पंडित जी ने पाठ ऊँचे स्वर में बोलना शुरू किया। प्रसंग था - भरत ने अपने बड़े भाई के अधिकार वाले राज्य को स्वीकार नहीं किया। जब तक श्री रामचन्द्र जी बनवास पूर्ण करके नहीं आए, तब तक राजगद्दी पर अपने भाई रामचन्द्र की जूती रखी और स्वयं पृथ्वी पर बैठा और नौकर बनकर राज-काज संभाला। जब भाई रामचन्द्र अयोध्या लौटे तो उनको राज्य लौटा दिया। भाई हो तो ऐसा। पाठ सम्पूर्ण होने पर सबने कहा कि वाह पंडित जी वाह! कमाल कर दिया। एक व्यक्ति उसी डिब्बे में ऐसा बैठा था जिसने अपने पिता जी की वर्षी पर एक दिन का पाठ करना था। कोई पाठी नहीं मिल रहा था। वर्षी अगले दिन ही थी। उसने पंडित जी से कहा कि हे गुरू जी! कल मेरे पिता जी की वर्षी के उपलक्ष्य में पाठ कर दो। पंडित जी बोले कि कल नहीं कर सकता। सब उपस्थित यात्रियों ने कहा कि पंडित जी! आपका तो कार्य यही है। इस बेचारे के लिए मुसीबत बनी है। परंतु पाठी साफ मना कर रहा था। सबने पूछा कि ऐसा क्या आवश्यक कार्य है जो आप कल पाठ को मना कर रहे हो। पंडित जी बात को टाले, बस वैसे ही, बस वैसे ही। उसका साथी बोला कि मैं सच्चाई बताऊँ, यह कल क्यों पाठ नहीं कर सकता। इसने अपने भाई पर पचास गज की कुरड़ी के गढ्ढे पर मुकदमा कर रखा है। मैं इसका गवाह हूँ, कल की तारीख है उपस्थित व्यक्ति बोले कि हे पंडित जी! कथा तो कैसी मार्मिक सुनाई और आप अमल कतई नहीं करते। ऐसे व्यक्ति के द्वारा की गई कथा का श्रोताओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

कबीर जी ने कहा है कि:-

कबीर, करनी तज कथनी कथैं, अज्ञानी दिन रात।
कुकर (कुत्ते) ज्यों भौंकत फिरैं, सुनी सुनाई बात।। 1

शब्दार्थ:- जो व्यक्ति कहते हैं ज्ञान की बातें, औरों को शिक्षा देते हैं कि किसी का बुरा मत करो, परंतु स्वयं गलती करते हैं। वे आध्यात्मिक गुरू उस कुत्ते के समान हैं जो व्यर्थ में भौंकता रहता है। उसी प्रकार ये धर्मगुरू एक-दूसरे से कथा सुनकर शिष्यों को सुनाते रहते हैं। स्वयं अमल नहीं करते।
 

गरीबदास जी ने भी कहा है:-

गरीब, बीजक की बातां कहैं, बीजक नांही हाथ।
पृथ्वी डोबन उतरे, ये कह कह मीठी बात।। 2

शब्दार्थ:- वे अज्ञानी धर्मगुरू तत्वज्ञान कहकर कोरे अज्ञान का प्रचार करते हैं क्योंकि उनको तत्वज्ञान का पता नहीं है। वे झूठे व्यक्ति पृथ्वी पर मानव के अनमोल जीवन का नाश करने के लिए जन्में होते हैं।


 

FAQs : "कथनी और करनी में अंतर घातक है | जीने की राह"

Q.1 श्री रामचंद्र जी के वनवास जाने के दौरान भरत ने क्या किया था?

श्री रामचंद्र जी के वनवास जाने के बाद भरत ने श्री रामचंद्र जी की पादुकाएं राजगद्दी पर रख दी थीं। उन्होंने श्री रामचंद्र जी के लौटने तक एक सेवक के रूप में काम किया था। इससे पता चलता है कि भरत जी की श्री राम जी के प्रति विशेष आस्था थी। इस घटना से यह भी सिद्ध होता है कि भरत जी का प्रेम श्री राम जी के लिए निस्वार्थ था।

Q.2 इस लेख के अनुसार कथावाचक ने पुण्यतिथि पर 'पाठ' करने से क्यों मना कर दिया था?

इस लेख के अनुसार कथावाचक ने इसलिए 'पाठ' करने से मना कर दिया था क्योंकि अगले दिन उसे अपने भाई के साथ "घरेलू झगड़े" से संबंधित अदालती सुनवाई पर जाना था। कथावाचक ने अपने भाई पर पचास गज की कुरड़ी के गढ्ढे पर मुकदमा कर रखा था।

Q. 3 इस लेख से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य जो नैतिक नियम दूसरों को समझाता है, उन नियमों का पालन उसे पहले स्वयं भी करना चाहिए।

Q.4 लेख के अंत में परमेश्वर कबीर जी और संत गरीबदास जी के दोहों से क्या शिक्षा मिलती है?

परमेश्वर कबीर जी और संत गरीबदास जी के दोहों से यह शिक्षा मिलती है कि हमें नैतिक मूल्यों और शिक्षाओं को दूसरों को देने के बजाय अपने कर्मों पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए क्योंकि परमेश्वर के दरबार में प्रत्येक को उसके कर्मों का ही फल मिलता है।


 

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Suresh Sahani

वर्तमान समय में बहुत से धार्मिक गुरु हैं। वह यह दावा भी करते हैं कि उनका आध्यात्मिक ज्ञान सही है। इसके अलावा जो बाकी धर्म गुरु ज्ञान प्रदान कर रहे हैं वो गलत है। ऐसे में हम किस पर भरोसा करें और किसके बताए मार्ग पर चलें?

Satlok Ashram

सुरेश जी, जो सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान होता है वो हमारे पवित्र शास्त्रों के अनुसार होता है। इसी तरह सच्चा गुरु भी शास्त्रों से प्रमाणित ज्ञान प्रदान करता है। जबकि नकली गुरुओं की कथनी और करनी में बहुत अंतर होता है। इसलिए नकली गुरुओं पर भरोसा न करके जो संत तत्वदर्शी हो उनके बताए ज्ञान पर भरोसा करें। पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को तत्वदर्शी संत से सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। फिर सच्चे संत के द्वारा बताए मार्ग के अनुसार चलना चाहिए। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी पृथ्वी पर एकमात्र ऐसे तत्वदर्शी संत हैं जो शास्त्र अनुकूल भक्ति बता रहे हैं। अधिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के प्रवचन यूट्यूब चैनल पर सुनिए।

Jatin Chaudhary

कोई संत पाखंडी है। इस बात का हम कैसे निर्णय कर सकते हैं? असली संत के सान्निध्य से व्यक्ति में क्या सुधार होते हैं?

Satlok Ashram

जतिन जी, पाखंडी संत का ज्ञान लोकवेद पर आधारित होता है और उसके आशीर्वाद से लोगों को कोई लाभ नहीं मिलता, न ही पाखंडी संत के शिष्यों की बुराईयां ही छूटती हैं परंतु सच्चा आध्यात्मिक गुरु जो सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करता है उससे व्यक्ति में बहुत से भौतिक और आध्यात्मिक बदलाव आ सकते हैं। सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान एक चोर को ईमानदार, शराबी को सभ्य, पाखंडी को महान, रोगी को निरोगी, गरीब को धनवान, बांझ को मां और बर्बाद परिवार को एक खुशहाल परिवार बना सकता है। सच्चे संत के पास सभी समस्याओं का सौ प्रतिशत समाधान होता है।