इस लेख में हम आपको निम्न बिंदुओं पर जानकारी देंगे
- क्या कहता है यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 ?
- कबीर परमात्मा की भक्ति से ही परम शान्ति प्राप्त होगी – गीता जी
- कबीर परमात्मा की भक्ति से लोक तथा परलोक में सुख की प्राप्ति
- कबीर परमात्मा की भक्ति से संपूर्ण मोक्ष की प्राप्ति
- निष्कर्ष
क्या कहता है यजुर्वेद अध्याय 5 का मंत्र 32?
यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में बताया गया है कि:
उशिगसी = (सम्पूर्ण शांति दायक) कविरंघारिसि = (कविर्) कबिर परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक कबीर है। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर (असि) है।
यानी कबीर परमात्मा पापों का शत्रु अर्थात पाप नाशक और बंधनों के शत्रु हैं अर्थात जन्म-मृत्यु के बंधन से जीव को मुक्त कर सतलोक की प्राप्ति कराते हैं, जहां जाने के पश्चात जीव को परम शांति की प्राप्ति होती है। साथ ही, यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह स्पष्ट करता है कि परमात्मा घोर से भी घोर पाप को समाप्त कर देता है।
कबीर परमात्मा की भक्ति से ही परम शान्ति प्राप्त होगी: श्रीमद्भगवद्गीता
पवित्र श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 18 के श्लोक 62 में प्रमाण है कि अर्जुन को उपदेश देते हुए ब्रह्म कहता है कि यदि तुम्हें पूर्ण मोक्ष अर्थात पूर्ण शांति चाहिए तो तू उस परमेश्वर की शरण में जा, जिसकी कृपा से तू परम शांति तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा। उस परमेश्वर के विषय में गीता जी अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि उत्तम पुरुष तो अन्य ही है जो सर्व लोको में प्रवेश कर सबका धारण पोषण करता है। वह परमेश्वर कबीर जी हैं, जिनकी भक्ति से ही परम शांति एवं परम सुख की प्राप्ति होगी।
पवित्र गीता, अध्याय 18 श्लोक 62
तम्, एव, शरणम्, गच्छ, सर्वभावेन, भारत,
तत्प्रसादात्, पराम्, शान्तिम्, स्थानम्, प्राप्स्यसि, शाश्वतम्।।62।।
अनुवाद: (भारत) हे भारत! तू (सर्वभावेन) सब प्रकार से (तम्) उस परमेश्वर की (एव) ही (शरणम्) शरण में (गच्छ) जा। (तत्प्रसादात्) उस परमात्मा की कृपा से ही तू (पराम्) परम (शान्तिम्) शान्ति को तथा (शाश्वतम्) सदा रहने वाले सत (स्थानम्) स्थान/धाम/लोक को अर्थात् सतलोक को (प्राप्स्यसि) प्राप्त होगा। (62)
कबीर परमात्मा की भक्ति से लोक तथा परलोक में सुख की प्राप्ति
गीता जी और वेदों के अलावा जिन भी महापुरुषों ने कबीर परमेश्वर की भक्ति प्राप्त की उन्होंने कबीर परमात्मा का बखूबी गुणगान गाया है। कबीर परमेश्वर की भक्ति करने से जीव को लोक तथा परलोक दोनों स्थानों में सुख प्राप्त होते हैं।
कबीर परमेश्वर जी अपनी वाणी में कहते हैं,
सुमिरन से सुख होत है, सिमरन से दुख जाए।
कहे कबीर सुमिरन किए, साईं माही समाए।।
अर्थात कबीर परमात्मा जी कहते हैं कि सुमिरन से सुख की प्राप्ति होती है तथा दु:ख स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं। सुमिरन से ही परमेश्वर को प्राप्त किया जा सकता हैं।
कबीर परमात्मा की भक्ति से संपूर्ण मोक्ष की प्राप्ति
परमेश्वर कबीर साहिब जी की भक्ति से सर्व सुख तो प्राप्त होते ही हैं साथ ही साथ आत्मा का पूर्ण मोक्ष हो जाता है जिससे वह जन्म और मृत्यु के दीर्घ चक्र से मुक्त हो जाता है।
परमेश्वर कबीर जी अपनी अमर वाणी में कहते हैं,
अमर करूं सतलोक पठाँऊ, तातै बन्दी छोड़ कहाऊँ ।।
निष्कर्ष
पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब की भक्ति करने से जीव को संपूर्ण शान्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही प्रमाण हमारे पवित्र वेद एवं पवित्र श्रीमद्भागवत गीता में भी बताया है।
- पवित्र यजुर्वेद के अनुसार परमेश्वर कबीर जी घोर से भी घोर पाप का विनाश कर तथा बंधनों से मुक्त कर इस आत्मा को संपूर्ण शांति प्रदान करते हैं।
- पवित्र गीता जी के अनुसार गीता ज्ञान दाता अर्जुन को परम अक्षर ब्रह्म की शरण में जाने के लिए कह रहा है, जिसकी कृपा से ही परम शांति की प्राप्ति होगी।
- परमेश्वर कबीर जी की शरण में आने से साधक को न सिर्फ परलोक में शांति मिलती है अपितु इस संसार में भी वह सुख से जीवन व्यतीत करता है। शास्त्र अनुकूल साधना पूर्ण संत से प्राप्त करने से हर प्रकार के सांसारिक तथा परलोक के सुख प्राप्त होते हैं।