पवित्र वेदों में पूर्ण परमात्मा की अवधारणा (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद)


पवित्र वेदों में पूर्ण परमात्मा की अवधारणा (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद)

(यजुर्वेद, ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद)

पवित्र वेद सबसे पहले पवित्र शास्त्र हैं जो भगवान कबीर ने अपनी प्रिय आत्माओं के लिए दिए थे। वेद सबसे पुराने धार्मिक शास्त्र हैं जो वैदिक संस्कृत में लिखे गए थे। यह एक आम धारणा है कि वेद हिंदू धर्म से संबंधित हैं लेकिन यह सच्चाई नहीं है।

चारों वेद प्रभु जानकारी के पवित्र प्रमाणित शास्त्र हैं। पवित्र वेदों की रचना उस समय हुई थी जब कोई अन्य धर्म नहीं था। इसलिए पवित्र वेदवाणी किसी धर्म से सम्बन्धित नहीं है, केवल आत्म कल्याण के लिए है। पवित्र वेदों का ज्ञान पूरी मानवता के लिए है। 

वेदों को प्रलय के दौरान काफी बार नष्ट कर दिया गया है, लेकिन भगवान कबीर ने अपने भक्तों के लाभ के लिए संतों के माध्यम से ज्ञान प्रकट किया है। हमारे पास उपलब्ध वेदों का वर्तमान संकलन लगभग 5000 साल पहले संकलित किया गया था, और उस समय वास्तव में कोई धर्म नहीं था।

पहले ऋषि हृदय से पूर्ण वेदों को सीखते थे, लेकिन कलयुग में इनका संकलन किया गया है। यदि हम विभिन्न धर्मों को देखते हैं तो हमें पता चलता है कि ईसाई धर्म लगभग 20 शताब्दी पुराना है, इस्लाम लगभग 1500 वर्ष पुराना है और सिख धर्म लगभग 250 वर्ष पुराना है, लेकिन वेद तो इन धर्मों से भी पहले के हैं। सृष्टि रचना को समझने के लिए, और पूर्ण परमात्मा के बारे में ज्ञान प्राप्त करने के लिए, वेद अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

पवित्र वेदों का ज्ञान किसने दिया?

अब तक ऋषियों का मानना ​​था कि ब्रह्मा जी ने पवित्र वेदों का ज्ञान दिया था। लेकिन हम यहां आपको वेद किसने और क्यों बनाये, इसके बारे में पूरी वास्तविक जानकारी देंगे।

वेद मूल रूप से कबीर परमात्मा द्वारा काल ब्रह्म को दिए गए थे। जब काल ब्रह्म को उसके 21 ब्रह्मांडों सहित सतलोक से निष्कासित कर दिया गया था। उस समय, कबीर परमात्मा ने काल को 5 वेदों (4 के बजाय) का ज्ञान दिया था, जो कि कबीर परमात्मा के आदेश अनुसार, काल की सांसों के माध्यम से प्रकट हुए।

यह ऐसा है जैसे जब हम फैक्स मशीनों के बीच एक देश से दूसरे देश में एक दस्तावेज़ फैक्स करते हैं। इसी तरह कविर्देव ने काल ब्रह्म को 5 वेद दिए जो उसके सांस छोड़ते समय निकले।

काल ब्रह्म ने उन सभी ग्रंथों को पढ़ा जो उसके सांसों के माध्यम से बाहर आए थे। उन ग्रंथों में पूर्ण परमात्मा की पूजा के सच्चे मंत्रों के साथ पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी की महिमा समाहित है। इसलिए काल ने 5 वें वेद को नष्ट कर दिया।

दुनिया में कुल कितने प्रकार के पवित्र वेद विद्यमान हैं?

आमतौर पर लोगो का लगता है कि वेद चार हैं ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वेद पर वास्तविकता में वेद 5 हैं। पाँचवें वेद का नाम सूक्ष्म वेद हैं।

पवित्र वेद किसने लिखे? या चारों पवित्र वेद कैसे लिखे गए थे?

लगभग 5000 साल पहले, महर्षि वेद व्यास ने वेदों का संकलन किया था। उन्होंने मंत्रों को चार संहिताओं (संग्रह) में व्यवस्थित किया जो चार वेद हैं:

  • पवित्र ऋग्वेद।
  • पवित्र यजुर्वेद।
  • पवित्र सामवेद।
  • पवित्र अथर्ववेद।

वे वैदिक संस्कृत में लिखे गए थे लेकिन आज इन वेदों का हिंदी और कुछ अन्य भाषाओं में भी अनुवाद किया गया है।

चार पवित्र वेदों का संक्षिप्त परिचय

आइए चार पवित्र वेदों का संक्षिप्त परिचय शुरू करते हैं।

पवित्र ऋग्वेद

  • पवित्र ऋग्वेद दस पुस्तकों (मंडलों) में आयोजित लगभग 10,600 मंत्र, 1,028 सूक्तों का संग्रह है।
  • पवित्र ऋग्वेद में भगवान कबीर देव की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। पूर्ण परमात्मा कहां रहता है, ऋग्वेद के अनुसार, सृष्टि रचना और परमात्मा अपने साधक की आयु भी बढ़ा देता है, इस खंड में विस्तार से बताया गया है।

पूर्ण परमात्मा, सर्वशक्तिमान परमात्मा कहाँ रहते हैं | ऋग्वेद

परमपिता परमात्मा सतलोक नामक शाश्वत स्थान में रहते हैं। 

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18

ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।

ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।

अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।

पवित्र यजुर्वेद

"यजुर्वेद" एक धार्मिक पवित्र पुस्तक है जिसमें प्रभु की यज्ञीय स्तुतियों की ऋचाऐं लिखी हैं तथा प्रभु कैसा है? कैसे पाया जाता है? सब विस्तृत वर्णन है।

  • यजुर्वेद का अर्थ यज्ञीय स्तुतियों का ज्ञान है।
  • पवित्र यजुर्वेद संहिता में लगभग 1,875 मंत्र शामिल हैं। यजुर्वेद में ज्ञान है कि परमेश्वर कबीर साहेब जी कैसे दिखते हैं और क्या वह अपने भक्तों के पापों को क्षमा करते हैं या नहीं?

पूर्ण परमात्मा साकार है या निराकार? | पवित्र यजुर्वेद

वेदों में लिखा है कि

  • 'अग्ने: तनूर असि' - (पवित्र यजुर्वेद अध्याय 1 मंत्र 15) परमेश्वर सशरीर है तथा पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 1 में दो बार लिखा है कि
  • 'अग्ने: तनूर असि विष्णवे त्वा सोमस्य तनूर असि'। - इस मंत्र में दो बार वेद गवाही दे रहा है कि सर्वव्यापक, सर्वपालन कर्ता सतपुरुष सशरीर है।

पवित्र यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8 में कहा है कि (कविर मनिषी) जिस परमेश्वर की सर्व प्राणियों को चाह है, वह कविर अर्थात कबीर परमेश्वर पूर्ण विद्वान है। उसका शरीर बिना नाड़ी (अस्नाविरम) का है, (शुक्रम अकायम) वीर्य से बनी पांच तत्व  से बनी भौतिक काया रहित है। वह सर्व का मालिक सर्वोपरि सत्यलोक में विराजमान है। उस परमेश्वर का तेजपुंज का (स्वर्ज्योति) स्वयं प्रकाशित शरीर है। जो शब्द रूप अर्थात अविनाशी है। वही कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है जो सर्व ब्रह्मण्डों की रचना करने वाला (व्यदधाता) सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार (स्वयम्भूः) स्वयं प्रकट होने वाला (यथा तथ्यः अर्थान्) वास्तव में (शाश्वतिभः) अविनाशी है जिसके विषय में वेद वाणी द्वारा भी जाना जाता है कि परमात्मा साकार है तथा उसका नाम कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु है(गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में भी प्रमाण है।) भावार्थ है कि पूर्ण ब्रह्म का शरीर का नाम कबीर (कविर देव) है। उस परमेश्वर का शरीर नूर तत्व से बना है।

परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद

पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) कबिर परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक कबीर है। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर (असि) है।

यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13

  • यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं।
  • परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। 

पवित्र सामवेद

  • सामवेद “मंत्रों का वेद” या “धुनों का ज्ञान” है। इसमें 1,549 मंत्र हैं।
  • सामवेद संख्या नं. 822 में वर्णन मिलता है कि पूर्ण संत तीन प्रकार के मंत्रों (नाम) को तीन बार में उपदेश करेगा जिसका वर्णन 

तीन बार में नाम जाप देने का प्रमाण | सामवेद

संख्या न. 822 सामवेद उतार्चिक अध्याय 3 खण्ड न. 5 श्लोक न. 8 (पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा भाषा-भाष्य):-

मनीषिभिः पवते पूर्व्यः कविर्नृभिर्यतः परि कोशां असिष्यदत्।
त्रितस्य नाम जनयन्मधु क्षरन्निन्द्रस्य वायुं सख्याय वर्धयन्।।8।।

मनीषिभिः - पवते - पूर्व्यः - कविर् - नृभिः - यतः - परि - कोशान् - असिष्यदत् - त्रि - तस्य - नाम - जनयन् - मधु - क्षरनः - न - इन्द्रस्य - वायुम् - सख्याय - वर्धयन्।

शब्दार्थ - (पूर्व्यः) सनातन अर्थात् अविनाशी (कविर नृभिः) कबीर परमेश्वर मानव रूप धारण करके अर्थात् गुरु रूप में प्रकट होकर (मनीषिभिः) हृदय से चाहने वाले श्रद्धा से भक्ति करने वाले भक्तात्मा को (त्रि) तीन (नाम) मन्त्र अर्थात् नाम उपदेश देकर (पवते) पवित्र करके (जनयन्) जन्म व (क्षरनः) मृत्यु से (न) रहित करता है तथा (तस्य) उसके (वायुम्) प्राण अर्थात् जीवन-स्वांसों को जो संस्कारवश गिनती के डाले हुए होते हैं को (कोशान्) अपने भण्डार से (सख्याय) मित्रता के आधार से (परि) पूर्ण रूप से (वर्धयन्) बढ़ाता है। (यतः) जिस कारण से (इन्द्रस्य) परमेश्वर के (मधु) वास्तविक आनन्द को (असिष्यदत्) अपने आशीर्वाद प्रसाद से प्राप्त करवाता है।

भावार्थ:- इस मन्त्र में स्पष्ट किया है कि पूर्ण परमात्मा कविर अर्थात् कबीर मानव शरीर में गुरु रूप में प्रकट होकर प्रभु प्रेमीयों को तीन नाम का जाप देकर सत्य भक्ति कराता है तथा उस मित्र भक्त को पवित्र करके अपने आशीर्वाद से पूर्ण परमात्मा प्राप्ति करके पूर्ण सुख प्राप्त कराता है। साधक की आयु बढ़ाता है। यही प्रमाण गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में है कि ओम्-तत्-सत् इति निर्देशः ब्रह्मणः त्रिविद्य स्मृतः

भावार्थ है कि पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करने का ॐ (1) तत् (2) सत् (3) यह मन्त्र जाप स्मरण करने का निर्देश है। इस नाम को तत्वदर्शी संत से प्राप्त करो। तत्वदर्शी संत के विषय में गीता अध्याय 4 श्लोक नं. 34 में कहा है तथा गीता अध्याय नं. 15
श्लोक नं. 1 व 4 में तत्वदर्शी सन्त की पहचान बताई तथा कहा है कि तत्वदर्शी सन्त से तत्वज्ञान जानकर उसके पश्चात् उस परमपद परमेश्वर की खोज करनी चाहिए। जहां जाने के पश्चात् साधक लौट कर संसार में नहीं आते अर्थात् पूर्ण मुक्त हो जाते हैं। उसी पूर्ण परमात्मा से संसार की रचना हुई है।

विशेष:- उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हुआ कि पवित्र चारों वेद भी साक्षी हैं कि पूर्ण परमात्मा ही पूजा के योग्य है, उसका वास्तविक नाम कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है तथा तीन मंत्र के नाम का जाप करने से ही पूर्ण मोक्ष होता है।

पवित्र अथर्ववेद

अथर्ववेद की रचना वैदिक संस्कृत में की गई है, और यह लगभग 6,000 मंत्रों के साथ 730 सूक्तों का संग्रह है, जिन्हें 20 पुस्तकों में विभाजित किया गया है, जिन्हें अनुवाक कहा जाता है।

पूर्ण परमात्मा का क्या नाम है | अथर्ववेद

पूर्ण परमात्मा का नाम वेदों में कविर्देव है, परन्तु पृथ्वी पर अपनी-अपनी मातृ भाषा में कबीर, कबिर, कबीरा, कबीरन् आदि नामों से जाना जाता है।

अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक न. 1, मन्त्र नं. 7 (पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा भाषा भाष्य) :-

योऽथर्वाणं पित्तरं देवबन्धुं बृहस्पतिं नमसाव च गच्छात्।
त्वं विश्वेषां जनिता यथासः कविर्देवो न दभायत् स्वधावान् ।।7।।

यः - अथर्वाणम् - पित्तरम् - देवबन्धुम् - बृहस्पतिम् - नमसा - अव - च - गच्छात् - त्वम् - विश्वेषाम् - जनिता - यथा - सः - कविर्देवः - न - दभायत् - स्वधावान्

अनुवाद:- (यः) जो (अथर्वाणम्) अचल अर्थात् अविनाशी (पित्तरम्) जगत पिता (देवबन्धुम्) भक्तों का वास्तविक साथी अर्थात् आत्मा का आधार (बृहस्पतिम्) सबसे बड़ा स्वामी ज्ञान दाता जगतगुरु (च) तथा (नमसा) विनम्र पुजारी अर्थात् विधिवत् साधक को (अव) सुरक्षा के साथ (गच्छात्) जो सतलोक जा चुके हैं उनको सतलोक ले जाने वाला (विश्वेषाम्) सर्व ब्रह्मण्डों को (जनिता) रचने वाला (न दभायत्) काल की तरह धोखा न देने वाले (स्वधावान्) स्वभाव अर्थात् गुणों वाला (यथा) ज्यों का त्यों अर्थात् वैसा ही (सः) वह (त्वम्) आप (कविर्देवः कविर्/देवः) कबीर परमेश्वर अर्थात् कविर्देव है।

भावार्थ:- जिस परमेश्वर के विषय में कहा जाता है -

त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धु च सखा त्वमेव, त्वमेव विद्या च द्रविणम्, त्वमेव सर्वम् मम् देव देव।। 

वह जो अविनाशी सर्व का माता पिता तथा भाई व सखा व जगत गुरु रूप में सर्व को सत्य भक्ति प्रदान करके सतलोक ले जाने वाला, काल की तरह धोखा न देने वाला, सर्व ब्रह्मण्डों की रचना करने वाला कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है।

इस मंत्र में यह भी स्पष्ट कर दिया कि उस परमेश्वर का नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है, जिसने सर्व रचना की है।

निष्कर्ष: इस पूरे लेख का निष्कर्ष इस प्रकार है: -

  • पवित्र चारों वेद भगवान का संविधान हैं।
  • वेदों में पूर्ण परमेश्वर के बारे में पूरी जानकारी है, लेकिन पूर्ण परमेश्वर को प्राप्त करने के लिए पूजा की सही विधि क्या है, या हम कैसे पूर्ण मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं इसका उल्लेख पवित्र वेदों में नहीं किया गया है।

यदि आप जानना चाहते हैं कि पूर्ण परमात्मा तथा पूर्ण मोक्ष कैसे प्राप्त कर सकते हैं, तो आपको पूर्ण संत की शरण लेनी होगी।  इस समय पूरे विश्व पूर्ण संत जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं। उनसे नाम उपदेश प्राप्त कर अपना कल्याण कराएं।


 

FAQs about "पवित्र वेदों में पूर्ण परमात्मा की अवधारणा (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद)"

Q.1 वेदों में किस एकमात्र भगवान की महिमा बताई गई है?

भगवान एक ही है कविर्देव अर्थात् कबीर साहेब जी। इसके अलावा वेदों में पूर्ण परमात्मा की महिमा के साथ-साथ मोक्ष प्राप्ति के सच्चे पूजा मंत्र भी मौजूद हैं।

Q.2 चार वेद किसने लिखे?

महर्षि वेद व्यास जी ने 5000 साल पहले वेदों को संकलित किया, उन्हें चार संहिताओं में व्यवस्थित कियाः पवित्र ऋग्वेद, पवित्र यजुर्वेद, पवित्र सामवेद और पवित्र अथर्ववेद। ये चारों वेद वैदिक संस्कृत में लिखे गए थे और आगे उनका हिंदी और अन्य भाषाओं में अनुवाद किया गया है।

Q. 3 वेदों में किस देवता का वर्णन है?

अथर्ववेद के अनुसार पूर्ण परमात्मा का नाम कविर्देव या आम बोलचाल की भाषा में 'कबीर साहेब', 'हक्का कबीर', 'सत कबीर', 'अल्लाहु अकबर', 'कबीरन', 'खबीरा' है।

Q.4 चार प्रमुख वेद कौन से हैं?

चार वेद हैं: पवित्र ऋग्वेद, पवित्र यजुर्वेद, पवित्र सामवेद और पवित्र अथर्ववेद।

Q.5 वेदों में प्रथम और संपूर्ण भगवान कौन है?

वेद स्पष्ट रूप से भगवान कबीर को प्रथम और एकमात्र भगवान बताते हैं इसीलिए हमें भी मोक्ष पाने के लिए केवल कबीर जी की ही पूजा करनी चाहिए।

Q.6 चार वेद क्या हैं और उनके अर्थ क्या हैं?

चारों पवित्र वेद ईश्वर का संविधान हैं। इसके अलावा वेदों में पूर्ण परमात्मा के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है, लेकिन वे यह नहीं बताते कि हमें पूर्ण परमात्मा की पूजा कैसे करनी चाहिए या हम पूर्ण मोक्ष तक कैसे पहुँच सकते हैं।यह जानकारी तत्वदर्शी संत देते हैं।


 

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Rohit Vaishya

क्या भगवान मनुष्य के जन्म और पुनर्जन्म के चक्र को सदा के लिए काट सकते हैं? क्या कोई पवित्र ग्रंथ इस बात का प्रमाण देता है?

Satlok Ashram

जी हां, जो मनुष्य पूर्ण परमात्मा तत्वदर्शी संत की शरण में जाकर आजीवन सच्ची भक्ति करता है उन जीवों के परमात्मा जन्म-पुनर्जन्म के चक्र/रोग को हमेशा हमेशा के लिए काट देता है। फिर वे सच्चे उपासक मृत्योपरांत सतलोक चले जाते हैं यहां वे सदा रहते हैं और इस मृत लोक में कभी वापस नहीं आते। फिर उन्हें जन्म और पुनर्जन्म से मुक्ति मिल जाती है यानि मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है और पवित्र वेद इस बात का प्रमाण देते हैं।

Prashant singh

वेद, पुराणों से किस प्रकार अलग हैं?

Satlok Ashram

वेद ईश्वर की वाणी है और वेद हमें सर्वोच्च ईश्वर के बारे में जानकारी देते हैं। वेद तो ईश्वर का संविधान हैं ,जबकि पुराणों में ज्ञान किसी साधु, संत का अपना अनुभव शामिल है। इसके अलावा पुराणों का ज्ञान ईश्वर के विधान के अनुरूप नहीं है।

Suman Verma

आजकल हम सुनते हैं कि आप लोग चार वेदों के स्थान पर पाँच वेद बताते हैं। आप ग़लत जानकारी दे रहे हैं।

Satlok Ashram

जी यह बिलकुल सत्य है कि वेद पाँच हैं। पाँचवाँ सूक्ष्मवेद है जिसमें सर्वोच्च ईश्वर और उनके अमरलोक यानि कि सतलोक के बारे में संपूर्ण जानकारी है। इसके अलावा सूक्ष्मवेद हमें पूर्ण परमात्मा की पूजा का सही तरीका और उनके बारे में जानकारी देता है। अभी तक भक्त समाज को सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान नहीं था जिस कारण से वह पांचवें वेद और परमात्मा से अनजान था। अब तत्वज्ञान के प्रकाश में लोग जान सकते हैं कि वेद पाँच हैं।

Shekhar Gupta

समुद्र मंथन के दौरान वेदों की उत्पत्ति हुई। इससे पहले इनका कोई अस्तित्व नहीं था।

Satlok Ashram

वेद सबसे पहले ईश्वर द्वारा ब्रह्म काल को दिए गए थे, जिनमें ईश्वर की महिमा लिखी हुई थी। फिर पूर्ण भगवान की योजना के अनुसार नियत समय पर ये वेद सांस के द्वारा अपने आप ब्रह्म काल के भीतर से बाहर आ गए। उसके बाद ब्रह्म काल ने वेदों को इस डर से छिपा दिया कि अगर भक्त उन्हें पढ़ेंगे तो उन्हें पता चल जाएगा कि भगवान कौन है और कैसे सुख दे सकता है और उसे यह भी डर था कि लोगों को यह पता चल जाएगा कि ब्रह्म काल कसाई है ,जो कि प्राणियों को दुख देता है और अगर कोई भगवान की सच्ची भक्ति करेगा तो वह अपने सतलोक वापिस चला जाएगा। इससे उसकी दुनिया खाली हो जाएगी, फिर वह क्या खाएगा क्योंकि जीव-जंतु ही उसका भोजन हैं।

Kiran

वेद केवल हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ हैं। अन्य धर्मों के भक्त उनकी पूजा नहीं करते।

Satlok Ashram

यह एक ग़लतफ़हमी है। पवित्र वेदों का ज्ञान सृष्टि की रचना के समय दिया गया था ,जब कोई धर्म भी नहीं था। इसलिए पवित्र वेदों का ज्ञान सारी मानवता के लिए है न कि किसी धर्म के लिए दिया गया है।इन्हें किसी भी धर्म का मानव पढ़ सकता है।