इस संसार में लाखों- करोड़ों धर्मगुरू हैं जो धार्मिक गुरु होने का दावा करते हैं। एक कहावत है 'नीम हकीम खतरा -ए -जान' यानी थोड़ा और अधूरा ज्ञान खतरनाक चीज़ है। यदि कोई पवित्र शास्त्रों और वेदों को पढ़ता है और उन्हें पढ़कर ज्ञानी हो जाता है, वह स्वयं को धार्मिक गुरु मानने लगता है और ऐसा दर्शाता है कि वह भगवान के सबसे करीब है, परमात्मा से परिचित है और वह धार्मिक ग्रंथों का पूर्ण जानकार हो गया है और स्वयं ही उपदेश देना शुरू कर देता है। लेकिन फिर भी वह अधूरे ज्ञान से परिपूर्ण नकली गुरु अपने भक्तों के आध्यात्मिक प्रश्नों का उत्तर सटिकता से देने में असमर्थ हैं और उन्हें अपने अटपट ज्ञान और मनगढंत तर्कों से उलझाए रखते हैं। जनसाधारण आज भी यह नहीं जान सके हैं कि; वास्तव में सच्चा सतगुरु अर्थात पूर्ण संत कौन है जो केवल और केवल सच्चा ज्ञान देता है?
सच तो यह है कि सतगुरु मिलना आसान नहीं है और हर कोई सतगुरु, धर्मगुरु, पूर्ण संत नहीं हो सकता। यदि सतगुरु मिल तो शीघ्रातिशीघ्र उनकी शरण ग्रहन करनी चाहिए।
सभी शिष्य अपने धार्मिक गुरुओं के सतगुरु होने का दावा करते हैं लेकिन यह कैसे तय किया जाए कि सतगुरु कौन है? इस असमजंस और भ्रम को इस लेख में विस्तार से समझा कर दूर किया जाएगा जो सभी पवित्र शास्त्रों के प्रमाणों के आधार पर होगा। हम आशा करते हैं कि इस लेख को पढ़ने के बाद सभी भक्त स्वयं निर्णय कर सकेंगे; सतगुरु कौन है? एक पूर्ण संत की क्या पहचान है? क्या उनके समकालीन धार्मिक गुरुओं में वही गुण हैं जो पवित्र शास्त्रों द्वारा समर्थित हैं? यदि नहीं, तो सभी पाठकों से अनुरोध है कि सच्चे आध्यात्मिक नेता की पहचान होने पर वे नकली गुरुओं का तुरंत त्याग कर दें।
आइए आगे बढ़ते हैं और सबसे पहले जानते हैंः
सतगुरु का शाब्दिक अर्थ है एक सच्चा (सत) संत (गुरु) अर्थात जो भगवान का अवतार है और जो आज तक अनकही सच्चाई को धार्मिक ग्रंथों के आधार पर प्रमाण सहित प्रकट करता है वह सतगुरु कहलाता है। सतगुरु की पहचान उसके ज्ञान से होती है। यदि उनका ज्ञान शास्त्रों द्वारा प्रमाणित है, तभी वह सतगुरु है। वह पूजा का सच्चा मार्ग प्रदान करता है और सभी को सभी तरह की बुराइयों को त्यागने की शिक्षा देता है और उन्हें मोक्ष प्राप्त करने के लिए भक्ति के सच्चे मंत्र देकर सही मार्ग पर ले जाता है।
मर्यादा में रहकर सच्ची साधना करने से मनुष्य को क्या-क्या लाभ होते हैं, यह सतगुरु बताते हैं। इसके अलावा एक सतगुरु मनुष्य के सभी कष्टों का नाश कर सकता है। वह सुखों के दाता हैं और अपने भक्तों का केवल हित चाहते हैं। एक सच्चा संत समाज को जाति, पंथ , धर्म और रंग भेदभाव से परे रहना सिखाता है। एक सतगुरु सभी मनुष्यों को भौतिक दुनिया के बंधनों से मुक्त करने के लिए पृथ्वी पर आते हैं और उनका मार्गदर्शन करते हैं कि मोक्ष प्राप्त करने के उद्देश्य से अपने जीवन का उपयोग कैसे करें?
सतगुरु पृथ्वी पर एकमात्र सच्चा संत है जिनकी शरण में जाकर मनुष्य परमधाम, 'शाश्वत' स्थान अर्थात् सतलोक को प्राप्त कर सकता है। सतगुरु की उपाधि विशेष रूप से तत्वदर्शी संत को दी जाती है जिसे 'बाखबर' / मसीहा भी कहा जाता है। एक तत्वदर्शी संत सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान का ज्ञाता होता है जिसके जीवन का उद्देश्य दीक्षित आत्माओं को सतभक्ति बताना है जिससे वे शैतान यानी ब्रह्म-काल के जाल से मुक्त होकर अपने मूल स्थान सतलोक में पहुंच कर पूर्ण परमात्मा को प्राप्त कर सकें। एक सतगुरु वह है जो सर्वोच्च भगवान की अर्थात सतपुरुष या परम अक्षर पुरुष जो सम्पूर्ण सृष्टि के निर्माता हैं उनकी जानकारी भक्तों को दें।
कबीर साहेब जी कहते हैं;
कबीर, गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो वेद पुराण।।
सतगुरु एक भक्त के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक पूर्ण संत सतभक्ति प्रदान करता है, जिसे करने से मनुष्य परम शांति प्राप्त कर सकता है। सतगुरु द्वारा बताई गई साधना करने से जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं। एक पूर्ण संत द्वारा दी गई आध्यात्मिक शिक्षाओं का पालन करने के बाद मनुष्य का जन्म-मृत्यु और पुनर्जन्म का रोग हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है। सतगुरु हमें सभी पवित्र शास्त्रों से पूर्ण ज्ञान प्रमाण के साथ बताते हैं। मानव जीवन का उद्देश्य केवल सतभक्ति कर मोक्ष प्राप्त करना है। सतगुरु हमें मोक्ष प्राप्त कराने के लिए पूजा के सच्चे और सही मार्ग पर ले जाते हैं।
"सतगुरु गुरु हो सकता है लेकिन हर गुरु सतगुरु नहीं हो सकता"।
मानव जीवन का प्राथमिक और परम उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना है और केवल एक सतगुरु अर्थात पूर्ण संत के पास ही यह गुण होता है जिससे वह अपने भक्तों का उद्धार कर सकते हैं इसलिए पूर्ण गुरु की आवश्यकता सभी को होती है। लोगों के जीवन में समय असमय बहुत सारे कष्ट आते रहते हैं और वे हमेशा उनसे बाहर आने की कोशिश में लगे रहते हैं। सभी दुखों से मुक्ति पाने का एक ही उपाय है कि किसी तत्वज्ञानी संत की शरण ग्रहण कर सतभक्ति की जाए। पूर्ण संत/ सतगुरु भक्तों को इतना लाभ प्रदान करता है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। आइए जानते हैं कि सतगुरु का मानव जीवन में क्या महत्व है तथा सतगुरु की शरण में जाना क्यों जरूरी है?
परम पूज्य सर्वशक्तिमान कबीर जी अपनी वाणी में सतगुरु की महिमा बताते हैं कि;
सात समुन्द्र की मसी करुं, लेखनि करुं बनराय।
धरती का कागज़ करूं, गुरु गुण लिखा न जाए।।
कबीर जी कहते हैं कि 'सात समुद्र की स्याही बनाओ, धरती के सभी वृक्षों की कलम बनाओ, सारी धरती को लेखनी का पन्ना बनाओ और पूर्ण संत/सतगुरु के गुणों को लिखना शुरू करो; फिर भी गुण समाप्त नहीं होंगे क्योंकि वे असंख्य हैं।
यह समझकर कि मानव जीवन में सतगुरु बनाना आवश्यक है; आइए अब जानें कि सच्ची उपासना का लक्ष्य क्या है?
आज मानव जीवन में जो कुछ भी प्राप्त हो रहा है वह पूर्व जन्मों में किए कर्मों का संग्रह है। यदि वर्तमान समय में सच्ची पूजा और शुभ कर्म नहीं किया गया तो आने वाला जीवन नरक बन जाएगा। निम्नलिखित तथ्य आपको यह समझने में मदद करेंगे कि सतभक्ति का उद्देश्य क्या है?
हजारों फर्जी धर्मगुरुओं की भीड़ में कैसे पता चले कि सच्चा गुरु कौन है तथा पूर्ण सतगुरु के लक्षण क्या हैं?
पवित्र शास्त्रों में सतगुरु की पहचान का उल्लेख किया गया है परंतु वर्तमान के सभी ऋषि, संत, मंडलेश्वर आदि सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान के अभाव के कारण अज्ञानी बने हुए हैं। तत्वदर्शी महान संत रामपाल जी महाराज जी ने पवित्र शास्त्रों से आध्यात्मिक तथ्यों को सुलझाया है और बताया है कि सतगुरु कौन है तथा पूर्ण संत की क्या पहचान है?
आइए पवित्र शास्त्रों से पूर्ण संत की पहचान का गहन विश्लेषण करते हैं।
संदर्भ: कबीर सागर और श्रीमद्भगवद्गीता
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युथानम् अधर्मस्य तदात्मानं श्रीजाम्यहम्
वेदों, पवित्र गीता जी आदि शास्त्रों में प्रमाण है कि जब-जब पुण्यों का ह्रास और पापों का उदय होता है और भक्तिमार्ग का स्वरूप तत्कालीन संतों, महंतों और गुरुओं द्वारा विकृत कर दिया जाता है, उस समय भगवान या तो स्वयं आकर या अपने परम ज्ञानी संत को भेजकर सत्य ज्ञान द्वारा पुन: गुणों की स्थापना करते हैं तथा भक्ति मार्ग की व्याख्या शास्त्रों के अनुसार करते हैं।
पूर्ण संत की पहचान बताते हुए पूर्ण परमात्मा कविर्देव जी बताते हैं कि;
पहली पहचान : पूर्ण संत की पहचान होती है कि वर्तमान के धर्म गुरु उसके विरोध में खड़े होकर राजा व प्रजा को गुमराह करके उसके ऊपर अत्याचार करवाते हैं।
कबीर साहेब जी अपनी वाणी में कहते हैं कि-
जो मम संत सत उपदेश दृढ़ावै (बतावै), वाके संग सभि राड़ बढ़ावै।
या सब संत महंतन की करणी, धर्मदास मैं तो से वर्णी।।
कबीर साहेब जी अपने प्रिय शिष्य धर्मदास जी को इस वाणी में समझा रहे हैं कि जो मेरा संत सत भक्ति मार्ग को बताएगा उसके साथ सभी संत व महंत झगड़ा करेंगे। ये उसकी पहचान होगी।
दूसरी पहचान : पूर्ण संत सभी धर्म ग्रंथों का पूर्ण जानकार होता है।
प्रमाण सतगुरु गरीबदास जी की वाणी में -
”सतगुरु के लक्षण कहूं, मधूरे बैन विनोद।
चार वेद षट शास्त्र, कहै अठारा बोध।।“
सतगुरु गरीबदास जी महाराज अपनी वाणी में पूर्ण संत की पहचान बता रहे हैं कि वह चारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणों आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगा अर्थात् उनका सार निकाल कर बताएगा।
तीसरी पहचान : पूर्ण संत तीन प्रकार के मन्त्रों (नाम) का उपदेश तीन चरणों में करेगा ।
संदर्भ: वेद, श्रीमद्भगवद गीता, पवित्र कुरान शरीफ तथा परम पूज्य सर्वशक्तिमान कविर्देव और गुरु नानक देव जी की वाणी सेः
यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25, 26 में लिखा है कि पूर्ण संत वेदों के अधूरे वाक्यों अर्थात् सांकेतिक शब्दों व एक चौथाई श्लोकों को पूरा करके विस्तार से बताएगा व तीन समय की पूजा बताएगा। सुबह पूर्ण परमात्मा की पूजा, दोपहर को विश्व के देवताओं का सत्कार व संध्या आरती अलग से बताएगा, वह जगत का उपकारक संत होता है।
यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्र 25
सन्धिछेदः- अर्द्ध ऋचैः उक्थानाम् रूपम् पदैः आप्नोति निविदः।
प्रणवैः शस्त्राणाम् रूपम् पयसा सोमः आप्यते।(25)
अनुवादः- जो सन्त (अर्द्ध ऋचैः) वेदों के अर्द्ध वाक्यों अर्थात् सांकेतिक शब्दों को पूर्ण करके (निविदः) आपूत्र्ति करता है (पदैः) श्लोक के चौथे भागों को अर्थात् आंशिक वाक्यों को (उक्थानम्) स्तोत्रों के (रूपम्) रूप में (आप्नोति) प्राप्त करता है अर्थात् आंशिक विवरण को पूर्ण रूप से समझता और समझाता है (शस्त्राणाम्) जैसे शस्त्रों को चलाना जानने वाला उन्हें (रूपम्) पूर्ण रूप से प्रयोग करता है एैसे पूर्ण सन्त (प्रणवैः) औंकारों अर्थात् ओम्-तत्-सत् मन्त्रों को पूर्ण रूप से समझ व समझा कर (पयसा) दूध-पानी छानता है अर्थात् पानी रहित दूध जैसा तत्व ज्ञान प्रदान करता है जिससे (सोमः) अमर पुरूष अर्थात् अविनाशी परमात्मा को (आप्यते) प्राप्त करता है। वह पूर्ण सन्त वेद को जानने वाला कहा जाता है।
भावार्थः- तत्वदर्शी सन्त वह होता है जो वेदों के सांकेतिक शब्दों को पूर्ण विस्तार से वर्णन करता है जिससे पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति होती है। वह वेद के जानने वाला कहा जाता है।
संदर्भ: कबीर सागर में अमर मूल बोध सागर पृष्ठ 265
तब कबीर अस कहेवे लीन्हा, ज्ञानभेद सकल कह दीन्हा।।
धर्मदास मैं कहो बिचारी, जिहिते निबहै सब संसारी।।
प्रथमहि शिष्य होय जो आई, ता कहैं पान देहु तुम भाई।।1।।
जब देखहु तुम दृढ़ता ज्ञाना, ता कहैं कहु शब्द प्रवाना।।2।।
शब्द मांहि जब निश्चय आवै, ता कहैं ज्ञान अगाध सुनावै।।3।।
दोबारा फिर समझाया है -
बालक सम जाकर है ज्ञाना। तासों कहहू वचन प्रवाना।।1।।
जा को सूक्ष्म ज्ञान है भाई। ता को स्मरन देहु लखाई।।2।।
ज्ञान गम्य जा को पुनि होई। सार शब्द जा को कह सोई।।3।।
जा को होए दिव्य ज्ञान परवेशा, ताको कहे तत्व ज्ञान उपदेशा।।4।।
हमारे गुरुदेव रामपाल जी महाराज प्रथम बार में श्री गणेश जी, श्री ब्रह्मा सावित्री जी, श्री लक्ष्मी विष्णु जी, श्री शंकर पार्वती जी व माता शेरांवाली का नाम जाप देते हैं। जिनका वास हमारे मानव शरीर में बने चक्रों में होता है।
इन सब देवी-देवताओं के आदि अनादि नाम मंत्र होते हैं जिनका वर्तमान में गुरुओं को ज्ञान नहीं है। इन मंत्रों के जाप से ये पांचों चक्र खुल जाते हैं। इन चक्रों के खुलने के बाद मानव भक्ति करने के लायक बनता है। सतगुरु गरीबदास जी अपनी वाणी में प्रमाण देते हैं कि:--
पांच नाम गुझ गायत्री आत्म तत्व जगाओ।
ॐ किलियं हरियम् श्रीयम् सोहं ध्याओ।।
भावार्थ: पांच नाम जो गुझ गायत्री का है। इनका जाप करके आत्मा को जागृत करो।
नोट: कुछ भोले भाले भक्त कहते हैं कि हमारे गुरुजी तो कुण्डलिनी शक्ति जागृत हैं। उनसे निवेदन है कि बिना गायत्री मंत्र के कुण्डलिनी शक्ति को जाग्रत नहीं किया जा सकता; वे केवल तुम्हें गुमराह कर रहे हैं।
दूसरी बार में दो अक्षर का जाप देते हैं जिनमें एक ओम् और दूसरा तत् (जो कि गुप्त है उपदेशी को बताया जाता है) जिनको स्वांस के साथ जाप किया जाता है।
तीसरी बार में सारनाम देते हैं जो कि पूर्ण रूप से गुप्त है।
उपरोक्त वाणी से स्पष्ट है कि कडि़हार गुरु (पूर्ण संत) तीन स्थिति में सार नाम तक प्रदान करता है तथा चौथी स्थिति में सार शब्द प्रदान करना होता है।
गीता अध्याय 17 का श्लोक 23
ॐ, तत्, सत्, इति, निर्देशः, ब्रह्मणः, त्रिविधः, स्मृृतः,
ब्राह्मणाः, तेन, वेदाः, च, यज्ञाः, च, विहिताः, पुरा।।23।।
अनुवाद: (ॐ) ओं मन्त्र ब्रह्म का (तत्) तत् यह सांकेतिक मंत्र परब्रह्म का (सत्) सत् यह सांकेतिक मन्त्र पूर्णब्रह्म का है (इति) ऐसे यह (त्रिविधः) तीन प्रकार के (ब्रह्मणः) पूर्ण परमात्मा के नाम सुमरण का (निर्देशः) आदेश (स्मृतः) कहा है (च) और (पुरा) सृृष्टि के आदि काल में (ब्राह्मणाः) विद्वानों ने (तेन) उसी (वेदाः) तत्वज्ञान के आधार से वेद (च) तथा (यज्ञाः) यज्ञादि (विहिताः) रचे। उसी आधार से साधना करते थे। (23)
केवल हिन्दी अनुवाद: ओं मन्त्र ब्रह्म का, तत् यह सांकेतिक मंत्र परब्रह्म का, सत् यह सांकेतिक मन्त्र पूर्णब्रह्म का है। ऐसे यह तीन प्रकार के पूर्ण परमात्मा के नाम सुमरण का आदेश कहा है और सृृष्टि के आदि काल में विद्वानों ने उसी तत्वज्ञान के आधार से वेद तथा यज्ञादि रचे। उसी आधार से साधना करते थे। (23)
संख्या न. 822 सामवेद उतार्चिक अध्याय 3 खण्ड न. 5 श्लोक न. 8 (संत रामपाल दास द्वारा भाषा-भाष्य) :-
मनीषिभिः पवते पूव्र्यः कविर्नृभिर्यतः परि कोशां असिष्यदत्।
त्रितस्य नाम जनयन्मधु क्षरन्निन्द्रस्य वायुं सख्याय वर्धयन्।।8।।
मनीषिभिः पवते पूव्र्यः कविर् नृभिः यतः परि कोशान् असिष्यदत् त्रि तस्य नाम जनयन् मधु क्षरनः न इन्द्रस्य वायुम् सख्याय वर्धयन्।
शब्दार्थ : (पूव्र्यः) सनातन अर्थात् अविनाशी (कविर नृभिः) कबीर परमेश्वर मानव रूप धारण करके अर्थात् गुरु रूप में प्रकट होकर (मनीषिभिः) हृदय से चाहने वाले श्रद्धा से भक्ति करने वाले भक्तात्मा को (त्रि) तीन (नाम) मन्त्र अर्थात् नाम उपदेश देकर (पवते) पवित्र करके (जनयन्) जन्म व (क्षरनः) मृत्यु से (न) रहित करता है तथा (तस्य) उसके (वायुम्) प्राण अर्थात् जीवन-स्वांसों को जो संस्कारवश गिनती के डाले हुए होते हैं को (कोशान्) अपने भण्डार से (सख्याय) मित्रता के आधार से (परि) पूर्ण रूप से (वर्धयन्) बढ़ाता है। (यतः) जिस कारण से (इन्द्रस्य) परमेश्वर के (मधु) वास्तविक आनन्द को (असिष्यदत्) अपने आशीर्वाद प्रसाद से प्राप्त करवाता है।
भावार्थ:- इस मन्त्र में स्पष्ट किया है कि पूर्ण परमात्मा कविर अर्थात् कबीर मानव शरीर में गुरु रूप में प्रकट होकर प्रभु प्रेमियों को तीन नाम का जाप देकर सत्य भक्ति कराता है तथा उस मित्र भक्त को पवित्र करके अपने आर्शिवाद से पूर्ण परमात्मा प्राप्ति करवा के पूर्ण सुख प्राप्त कराता है। साधक की आयु बढ़ाता है। यही प्रमाण गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में है कि;
ओम्-तत्-सत् इति निर्देशः ब्रह्मणः त्रिविद्य स्मृतः ।।
भावार्थ है कि पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करने का ओम (1) तत् (2) सत् (3) यह मन्त्र जाप स्मरण करने का निर्देश है। इस नाम को तत्वदर्शी संत से प्राप्त करो। तत्वदर्शी संत के विषय में गीता अध्याय 4 श्लोक नं. 34 में कहा है तथा गीता अध्याय नं. 15 श्लोक नं. 1 व 4 में तत्वदर्शी सन्त की पहचान बताई गई है तथा कहा है कि तत्वदर्शी सन्त से तत्वज्ञान जानकर उसके पश्चात् उस परमपद परमेश्वर की खोज करनी चाहिए। जहां जाने के पश्चात् साधक लौट कर संसार में नहीं आते अर्थात् पूर्ण मुक्त हो जाते हैं। उसी पूर्ण परमात्मा से संसार की रचना हुई है।
विशेष:- उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हो गया है कि चारों पवित्र वेद भी इस बात की गवाही दे रहे हैं कि केवल पूर्ण परमेश्वर ही पूजा के योग्य है। उनका वास्तविक नाम कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है तथा तीन मन्त्रों के जाप से ही पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है।
संदर्भ : पवित्र पुस्तक कबीर सागर, अध्याय जीव धर्म बोध, शाखा बोध सागर पृष्ठ 1937 परः
परमेश्वर कबीर साहेब जी ने धर्मदास जी को सार शब्द देने से मना कर दिया था तथा कहा था कि यदि सार शब्द किसी काल के दूत के हाथ पड़ गया तो बिचली पीढ़ी वाले हंस पार नहीं हो पाएंगे। जैसे कलयुग के प्रारम्भ में प्रथम पीढ़ी वाले भक्त अशिक्षित थे तथा कलयुग के अंत में अंतिम पीढ़ी वाले भक्त कृतघनी हो जाएंगे तथा अब वर्तमान में सन् 1947 से भारत स्वतंत्र होने के पश्चात् बिचली पीढ़ी प्रारम्भ हुई है। सन् 1951 में सतगुरु रामपाल जी महाराज को भेजा है। अब सर्व भक्तजन शिक्षित हैं। शास्त्र अपने पास विद्यमान हैं। अब यह सत मार्ग, सत साधना पूरे संसार में फैलेगा तथा नकली गुरु तथा संत, महंत छुपते फिरेंगे।
इसलिए कबीर सागर, जीव धर्म बोध, बोध सागर, पृष्ठ 1937 पर:-
धर्मदास तोहि लाख दुहाई, सार शब्द कहीं बाहर नहीं जाई।
सार शब्द बाहर जो परि है, बिचली पीढ़ी हंस नहीं तरि है।।
चहऊं का संग, चहऊं का मीत, जामै चारि हटावै नित।
मन पवन को राखै बंद, लहे त्रिकुटी त्रिवैणी संध।।
अखण्ड मण्डल में सुन्न समाना, मन पवन सच्च खण्ड टिकाना।।
पूर्ण सतगुरु वही है जो तीन बार में नाम दे और स्वांस की क्रिया के साथ सुमिरण का तरीका बताए। तभी जीव का मोक्ष संभव है। जैसे परमात्मा सत्य है। ठीक उसी प्रकार परमात्मा का साक्षात्कार व मोक्ष प्राप्त करने का तरीका भी आदि अनादि व सत्य है जो कभी नहीं बदलता है।
संदर्भ: कुरान शरीफ सूरत-शूरा 42 आयत 1
पवित्र कुरान शरीफ में इसका उल्लेख किया गया है; अल्लाहु-अकबर को प्राप्त करने के लिए तीन शब्दों का मंत्र ऐन-सीन-काफ है। कुरान शरीफ के ज्ञान के दाता यानी ब्रह्म-काल ने स्पष्ट किया है कि अल्लाहु अकबर को प्राप्त करने का एक मंत्र है। जो बाखबर/इलमवाला/तत्वदर्शी संत इन तीन मंत्रों को सही-सही बता देगा और इनके जपने की विधि बता देगा वही सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान का ज्ञाता होगा। सतगुरू होगा।
चौथी पहचान : पूर्ण संत दिन में तीन समय की पूजा की विधि प्रदान करते हैं।
यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 26 में लिखा है कि सतगुरु तीन समय की पूजा की विधि प्रदान करते हैं । सुबह पूर्ण परमात्मा की पूजा, दोपहर को विश्व के देवताओं का सत्कार व संध्या आरती अलग से बताएगा वह जगत का उपकारक संत होता है।
यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्र 26
सन्धिछेद:- अश्विभ्याम् प्रातः सवनम् इन्द्रेण ऐन्द्रम् माध्यन्दिनम्
वैश्वदैवम् सरस्वत्या तृतीयम् आप्तम् सवनम् (26)
अनुवाद:- वह पूर्ण सन्त तीन समय की साधना बताता है। (अश्विभ्याम्) सूर्य के उदय-अस्त से बने एक दिन के आधार से (इन्द्रेण) प्रथम श्रेष्ठता से सर्व देवों के मालिक पूर्ण परमात्मा की (प्रातः सवनम्) पूजा तो प्रातः काल करने को कहता है जो (ऐन्द्रम्) पूर्ण परमात्मा के लिए होती है। दूसरी (माध्यन्दिनम्) दिन के मध्य में करने को कहता है जो (वैश्वदैवम्) सर्व देवताओं के सत्कार के सम्बधित (सरस्वत्या) अमृतवाणी द्वारा साधना करने को कहता है तथा (तृतीयम्) तीसरी (सवनम्) पूजा शाम को (आप्तम्) प्राप्त करता है अर्थात् जो तीनों समय की साधना भिन्न-भिन्न करने को कहता है वह जगत् का उपकारक सन्त है।
भावार्थः- जिस पूर्ण सन्त के विषय में मन्त्र 25 में कहा है वह दिन में 3 तीन बार (प्रातः दिन के मध्य-तथा शाम को) साधना करने को कहता है। सुबह तो पूर्ण परमात्मा की पूजा ,दोपहर के समय सर्व देवताओं को सत्कार के लिए तथा शाम को संध्या आरती आदि को अमृत वाणी के द्वारा करने को कहता है वह सर्व संसार का उपकार करने वाला होता है।
पांचवी पहचान : पूर्ण संत साधकों को नशीला पदार्थ या मांस का सेवन करने की अनुमति नहीं देते तथा हठ योग/ ध्यान जैसी साधना और नृत्य व संगीत के विरुद्ध उपदेश देता है।
भक्त के लिए नशा करना वर्जित है।
यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्र 30
सन्धिछेदः- व्रतेन दीक्षाम् आप्नोति दीक्षया आप्नोति दक्षिणाम्।
दक्षिणा श्रद्धाम् आप्नोति श्रद्धया सत्यम् आप्यते (30)
अनुवादः- (व्रतेन) दुव्र्यसनों का व्रत रखने से अर्थात् भांग, शराब, मांस तथा तम्बाखु आदि के सेवन से संयम रखने वाला साधक (दीक्षाम्) पूर्ण सन्त से दीक्षा को (आप्नोति) प्राप्त होता है अर्थात् वह पूर्ण सन्त का शिष्य बनता है (दीक्षया) पूर्ण सन्त दीक्षित शिष्य से (दक्षिणाम्) दान को (आप्नोति) प्राप्त होता है अर्थात् सन्त उसी से दक्षिणा लेता है जो उस से नाम ले लेता है। इसी प्रकार विधिवत् (दक्षिणा) गुरूदेव द्वारा बताए अनुसार जो दान-दक्षिणा से धर्म करता है उस से (श्रद्धाम्) श्रद्धा को (आप्नोति) प्राप्त होता है (श्रद्धया) श्रद्धा से भक्ति करने से (सत्यम्) सदा रहने वाले सुख व परमात्मा अर्थात् अविनाशी परमात्मा को (आप्यते) प्राप्त होता है।
भावार्थ:- पूर्ण सन्त उसी व्यक्ति को शिष्य बनाता है जो सदाचारी रहे। अभक्ष्य पदार्थों का सेवन व नशीली वस्तुओं का सेवन न करने का आश्वासन देता है। पूर्ण सन्त उसी से दान ग्रहण करता है जो उसका शिष्य बन जाता है फिर गुरू देव से दीक्षा प्राप्त करके फिर दान दक्षिणा करता है उस से श्रद्धा बढ़ती है। श्रद्धा से सत्य भक्ति करने से अविनाशी परमात्मा की प्राप्ति होती है अर्थात् पूर्ण मोक्ष होता है। पूर्ण संत भिक्षा व चंदा मांगता नहीं फिरेगा।
सतगुरु की पहचान का गुणगान करते हुए कविर्देव जी अपनी वाणी में उल्लेख करते हैं किः
संतों सतगुरु मोहे भावे, जो नैनन अलख लखावे
ढोलत डिगे ना बोलत बिसरे, सत उपदेश दृढ़ावे
आंख ना मुंदे कान ना रूदे, ना अनहद उड़झांवे
प्राण पुंज क्रियाओं से न्यारा, सहज समाधि बतावे
अर्थात सच्चा संत वही है जो जबरन ध्यान (आंखें, कान बंद करके पूजा करना) या नृत्य व संगीत बजाने का उपदेश नहीं देता है। पूजा-पाठ में यह वर्जित है। वह पूजा का एक सरल तरीका बताते हैं।
छठी पहचान :पूर्ण संत गीता अध्याय 15 श्लोक 1-4 में वर्णित उल्टे लटके हुए वृक्ष के समान संसार की व्याख्या बताते हैंः
ऊध्र्वमूलम्, अधःशाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्,
छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित्।।1।।
अनुवाद: (ऊध्र्वमूलम्) ऊपर को पूर्ण परमात्मा आदि पुरुष परमेश्वर रूपी जड़ वाला (अधःशाखम्) नीचे को तीनों गुण अर्थात् रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु व तमगुण शिव रूपी शाखा वाला (अव्ययम्) अविनाशी (अश्वत्थम्) विस्तारित पीपल का वृृक्ष है, (यस्य) जिसके (छन्दांसि) जैसे वेद में छन्द है ऐसे संसार रूपी वृृक्ष के भी विभाग छोटे-छोटे हिस्से या टहनियाँ व (पर्णानि) पत्ते (प्राहुः) कहे हैं (तम्) उस संसार रूप वृक्ष को (यः) जो (वेद) इसे विस्तार से जानता है (सः) वह (वेदवित्) पूर्ण ज्ञानी अर्थात् तत्वदर्शी है। (1)
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा है कि अर्जुन पूर्ण परमात्मा के तत्वज्ञान को जानने वाले तत्वदर्शी संतों के पास जा कर उनसे विनम्रता से पूर्ण परमात्मा का भक्ति मार्ग प्राप्त कर, मैं उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग नहीं जानता। तत्वदर्शी सन्त के विषय में गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में बताया है कि वह तत्वदर्शी संत होगा जो संसार रूपी वृृक्ष का पूर्ण विवरण बता देगा कि मूल तो पूर्ण परमात्मा है, तना अक्षर पुरुष अर्थात् परब्रह्म है, डार ब्रह्म अर्थात् क्षर पुरुष है तथा शाखा तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) है तथा पात रूप संसार अर्थात् सर्व ब्रह्मण्ड़ों का विवरण बताएगा वह तत्वदर्शी संत है।
कबीर साहेब जी अपनी वाणी में कहते हैं किः
'कबीर, अक्षर पुरुष एक पेड़ है, निरंजन वाकी डार,
तीनों देवा शाखा हैं, पात रूप संसार ।।
उपरोक्त वाणी में उल्टे लटके वृक्ष रूपी संसार में प्रकृति की रचना और तीन पुरूषों (देवताओं) की व्याख्या की गई है। यह उल्टा लटका हुआ संसार रूपी वृक्ष है। ऊपर को जड़ें (पूर्णब्रह्म परमात्मा-परम अक्षर पुरुष) सतपुरुष है, अक्षर पुरुष (परब्रह्म) ज़मीन से बाहर दिखाई देने वाला तना है तथा ज्योति निरंजन (ब्रह्म/क्षर) डार है और तीनों देवा (ब्रह्मा-विष्णु-महेश) शाखा हैं। छोटी टहनियाँ और पत्ते देवी-देवता व आम जीव जानो।
सातवीं पहचान: सतगुरु वह होगा जो दो शब्दों के मंत्र- 'सतनाम' का रहस्य बताएगा
गुरु नानक देव जी अपनी वाणी में बताते हैं किः
जै पंडित तू पढ़िया, बिंन दो अखर दो नामा ,
प्रणब नानक एक लघाएं, जै कर सच समाना।।
गुरु नानक देव जी कहते हैं कि वास्तव में केवल यह दो अक्षर का गुप्त मंत्र 'सत्यनाम' ही आत्मा को शाश्वत लोक तक पहुंचा सकता है जो की केवल पूर्ण संत ही प्रदान करते हैं।
सोए गुरु पूरा कहावे जो दो अक्षर का भेद बतावे,
एक छुड़ावे एक लखावे तब प्राणी निज घर को आवे।।
गुरु नानक जी कहते हैं, केवल वह संत पूर्ण संत है जो दो अक्षर के मंत्र 'सतनाम' का रहस्य बताता है। एक शब्द (मंत्र) आत्मा को काल लोक से मुक्त करता है, दूसरे नाम (मंत्र) की शक्ति एकादश द्वार पर पहुंचकर सनातन जगत का दर्शन कराती है। दो शब्दों के मंत्र का जाप करने से आत्मा को अमर धाम की प्राप्ति होती है। तब आत्मा मुक्त हो जाती है और अपने मूल स्थान को चली जाती है।
कबीर साहेब जी ने भी कहा है:
कहे कबीर अखर दो भाख।
होगा खसम तो लेगा राख।।
कबीर साहेब जी कहते हैं कि दो अक्षर का मंत्र ही आपको ईश्वर प्राप्ति में मदद करेगा।
एक पूर्ण संत की पहचान को समझने के बाद आइए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं किः
ईश्वर एक है और ईश्वर प्राप्ति की विधि भी एक है। भगवान स्वयं इस मृत लोक में आते हैं और सतगुरु के रूप में अपनी प्यारी आत्माओं को सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान का उपदेश देते हैं। विभिन्न धर्म सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान के ज्ञाता को अलग-अलग नामों से अभिवादन करते हैं। आइए अध्ययन करें कि विभिन्न धर्म पूर्ण संत के बारे में क्या बताते हैं?
ईश्वर द्वारा नियुक्त एक पूर्ण संत शास्त्रों का जीवित अवतार होता है। एक सतगुरु या आध्यात्मिक गुरु का परमात्मा से सीधा संबंध होता है। गुरु धारण करने की परंपरा हिन्दू समाज में सदियों से चली आ रही है। यहां तक कि भगवान राम और भगवान कृष्ण ने भी गुरु धारण किया था। हिंदू धर्म में सतगुरु को प्रबुद्ध संत/तत्वदर्शी संत/धीरानाम के रूप में जाना जाता है।
श्रीमद्भगवद् गीता ज्ञान दाता यानी ब्रह्म-काल ने अर्जुन से कहा: हे अर्जुन! इस प्रकार पूर्ण परमात्मा के ज्ञान को व समाधान को जानने वाले तत्वदर्शी संतों के पास जाकर समझ। उनको आधीनी पूर्वक आदर के साथ दण्डवत् प्रणाम कर, प्रेम व विनयपूर्वक उस परमात्मा का मार्ग पूछ। फिर वे संत पूर्ण परमात्मा को पाने की विधि (सतनाम व सारनाम अर्थात् ॐ तत्, सत् का मन्त्र) बताएंगें जिसको जान कर तू फिर इस प्रकार अज्ञान रूपी मोह को प्राप्त नहीं होगा। इससे सिद्ध हुआ कि केवल सतगुरु ही बताते हैं कि परमात्मा की प्राप्ति कैसे हो सकती है?
सर्वशक्तिमान पूर्ण परमात्मा कबीर जी सतगुरु की महिमा करते हुए कहते हैंः
'गुरु बिन कहु ना पाया ज्ञाना, ज्यों तोथा भुस चढ़े मूढ़ किसाना,
गुरु बिन वेद पढ़े जो प्राणि, समझे ना सार रहे अज्ञानी”।।
सच्चे गुरु के बिना कोई भी आध्यात्मिक ज्ञान को नहीं समझ सकता है। सतगुरु ही पवित्र शास्त्रों में छिपे पौराणिक तथ्यों का उपदेश देते हैं। यही कारण है कि भोले-भाले श्रद्धालु भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान शिव, देवी दुर्गा और 33 करोड़ देवताओं को सर्वोच्च मानकर उनकी पूजा करते रहे और जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसे रहते हैं और उनकी मुक्ति नहीं हो पाती क्योंकि वे आजीवन सतगुरु न पाकर अभागे बने रहे।
वह संत जो ईश्वर का कृपा प्राप्त संत है ; जिसे ईश्वर ने आत्माओं को मोक्ष प्रदान करने की आज्ञा दी है, वह ईसाई धर्म में एक सतगुरु है। ईसाई मानते हैं कि एक सच्चा आध्यात्मिक गुरु 'मसीहा'/ईश्वर का दूत होता है; जो ईश्वर का प्रतिनिधि है जो मुक्ति के मार्ग का प्रचार करता है। भगवान अदृश्य हैं लेकिन जब एक भक्त भगवान की निरंतर याद में रहता है तो वह आध्यात्मिक धारणा के माध्यम से दिखाई देता है। जीसस ने साबित कर दिया कि एक 'मसीहा', एक सच्चा गुरु पूरी तरह से ईश्वर के इशारे पर काम करता है। उसने कहा, “कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, मुझे खींच न ले।” ईश्वर की शक्ति को श्रेय देते हुए यीशु ने भी सतगुरु / 'मसीहा' धारण किया था । उसी ईश्वरीय नियम को पूरा करते हुए ईसा मसीह ने जॉन बैपटिस्ट को अपना सतगुरु स्वीकार किया। यीशु मसीह ने कहा, "जो कोई मुझे ग्रहण करेगा, वह मुझे नहीं, परन्तु मेरे भेजने वाले को ग्रहण करेगा।"
सिख धर्म में गुरु का बहुत महत्व है। सिख धर्म में दस गुरुओं का उल्लेख किया गया है। सर्वशक्तिमान पूर्ण परमात्मा कविर्देव गुरु नानक देव जी से मिले और उन्हें सनातन धाम सचखंड ले गए। जिसके बाद, गुरु नानक जी ने राग मारू (अंश) की पवित्र वाणी, मेहला 1 (गु.ग्र.प. 1037) में सतगुरु की महिमा बताई हैः
वाणी इस प्रकार हैः
सुनहु ब्रह्मा, बिसनु, महेसु उपाए। सुने वरते जुग सबाए।।
इसु पद बिचारे सो जनु पुरा। तिस मिलिए भरमु चुकाइदा।।(3)
साम वेदु, रुगु जुजरु अथरबणु। ब्रहमें मुख माइआ है त्रौगुण।।
ता की कीमत कहि न सकै। को तिउ बोले जिउ बुलाईदा।।(9)
उपरोक्त पवित्र वाणी का सार यह है कि जो संत प्रकृति की रचना की पूरी कहानी सुनाएगा और बताएगा कि किसने अंडे के दो आधे भाग से निकलकर निर्वात में ब्रह्म लोक की रचना की अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, और शिव को जन्म दिया। वह भगवान कौन है जिसने ब्रह्म (काल) को चारों वेदों (पवित्र ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद) का ज्ञान सुनाया। पूर्ण परमात्मा हर जीव की सभी इच्छा को पूरा करने में समर्थ है, अगर आपको ऐसा संत मिल जाए और सारे ज्ञान को पूरी तरह से बता देता है, तो उसके पास जाओ। जो आपकी सारी शंकाओं का निवारण कर देता है वही पूर्ण संत है अर्थात् तत्वदर्शी है।
संदर्भ: कुरान शरीफ सूरत-अल-फुरकान अध्याय 25 आयत नं. 52-59
इस्लाम में सतगुरु को 'बाखबर'/इलमवाला (जो महान ईश्वर-अल्लाहु अकबर का ज्ञाता है) कहा जाता है। पवित्र क़ुरान शरीफ़ का ज्ञान देने वाला अपने स्तर का ज्ञान प्रदान करता है और अंत में 'अल्लाहु अकबर' अर्थात 'परम अक्षर ब्रह्म' के बारे में 'बाखबर'/इलमवाला से जानकारी मांगने का विकल्प छोड़ देता है।
गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में ब्रह्म-काल अर्जुन से कहता है कि तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की शरण में जा। जिनकी कृपा से तू परमशान्ति और सनातन धाम को प्राप्त होगा।
अध्याय 15 के श्लोक 4 में गीता ज्ञान दाता ने बताया है कि उपरोक्त तत्वदर्शी संत जिसका गीता अध्याय 15 श्लोक 1 व अध्याय 4 श्लोक 34 में भी वर्णन है मिलने के पश्चात उस स्थान (सतलोक-सच्चखण्ड) की खोज करनी चाहिए जिसमें गए हुए साधक फिर लौट कर (जन्म-मरण में) इस संसार में नहीं आते अर्थात् अनादि मोक्ष प्राप्त करते हैं और जिस परमात्मा से आदि समय से चली आ रही सृष्टि उत्पन्न हुई है। मैं काल ब्रह्म भी उसी अविगत पूर्ण परमात्मा की शरण में हूँ। उसी पूर्ण परमात्मा की ही भक्ति पूर्ण निश्चय के साथ करनी चाहिए, अन्य की नहीं।
एक सतगुरु सभी संदेहों को दूर करता है। संत रामपाल जी महाराज ने सृष्टि की रचना के पीछे के रहस्य को उजागर किया है और साथ ही पवित्र शास्त्रों में बताए गए दो अक्षर के गुप्त मंत्र 'सतनाम' जिसका स्मरण श्वास के साथ किया जाता है जिसे आज तक समकालीन धार्मिक गुरुओं द्वारा कभी नहीं बताया गया था वह मोक्ष मंत्र भी प्रदान करते हैं। वर्तमान में संत रामपाल जी ही ऐसे संत है जो सतभक्ति तथा शास्त्र अनुकूल ज्ञान प्रदान करते हैं तथा ईश्वर को कैसे प्राप्त किया जा सकता है उसका सही तरीका भी बताते हैं।
जैसा कि पवित्र कुरान शरीफ में वर्णित है; तीन लफ्ज़ ऐन-सीन-क़ाफ़ का जाप करने से अल्लाहु अकबर की प्राप्ति होती है। भगवद गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में भी इसका उल्लेख किया गया है। उस पूर्ण परमेश्वर को प्राप्त करने के लिए तीन शब्दों का मंत्र है 'ओम-तत्-सत्'। जो संत इन तीनों मन्त्रों को सही-सही बता देगा और इनका जाप करने की विधि बता देगा, वह तत्वदर्शी संत अर्थात सतगुरू होगा।
उपरोक्त सभी पवित्र शास्त्रों में वर्णित सतगुरु के सभी गुण महान संत रामपाल जी महाराज पर सटीक बैठते हैं। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी ही एक मात्र तत्वदर्शी संत धीरानाम/बाखबर/इलमवाला/
मसीहा हैं। सभी पाठकों से अनुरोध है कि पूर्ण संत धरती पर अवतरित हैं उन्हें उनके तत्वज्ञान से पहचान कर नकली धर्म गुरुओं को शीघ्र त्याग कर उनसे नाम दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्ति के पात्र बनें।
पूर्ण परमेश्वर का अधिकारी संत ही सबसे शक्तिशाली संत होता है और पूर्ण संत को शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान होता है। पूर्ण संत, साधक को मोक्ष प्राप्ति के लिए सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करता है। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी एकमात्र ऐसे संत हैं जो शास्त्रों के अनुसार सच्चे मोक्ष मंत्र प्रदान कर रहे हैं।
पवित्र श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में वर्णित सच्चे मोक्ष मंत्र प्रदान करने वाला संत ही महान संत है। केवल वह महान संत ही पूरे ब्रह्माण्ड को सच्ची भक्ति विधि प्रदान करके मोक्ष प्रदान कराता है।
वह संत जो सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान और सच्चे मोक्ष मंत्र प्रदान करता है, वह संत ही बुराईयों से बचाता है। उस संत की बताई साधना से साधक के पाप नष्ट हो जाते हैं और यह उस सच्चे संत द्वारा दिए गए सच्चे मंत्रों की शक्ति से ही संभव है।
हमारे पवित्र शास्त्रों में वर्णित पूर्ण संत की पहचान इस प्रकार है:
सच्चा संत ईश्वर का कृपापत्र होता है या फिर स्वयं ईश्वर ही सच्चे संत की भूमिका निभाता है। वह संत मोक्ष प्राप्ति के लिए सच्चा आध्यात्मिक मंत्र और ज्ञान प्रदान करता है। वह संत पवित्र शास्त्रों पर आधारित शिक्षाएं प्रदान करता है। इसके अलावा उस सच्चे संत की विशेषताएं हमारे पवित्र शास्त्रों में वर्णित सच्चे संत की विशेषताओं से मेल खाती हैं।
"सतगुरु" शब्द का अर्थ है "सच्चा गुरु", गुरुबाणी में गुरु नानक देव जी ने राग मारू (अंश) पवित्र वाणी, महला 1 ( गु.ग्र.साहेब पृष्ठ 1037) में सतगुरु की महिमा का वर्णन किया है। उन्होंने बताया है कि सच्चा संत हमारे पवित्र शास्त्रों के अनुसार ज्ञान बताता है। इसके अलावा वह सच्चा संत साधक की सभी शंकाओं का समाधान भी प्रमाण साहित करता है।
गुरू का चुनाव करने के लिए साधक को सर्वशक्तिमान परमेश्वर कबीर साहेब जी द्वारा बताई गई गुरु की विशेषताओं को वेद, शास्त्रों में देखना चाहिए। जिस गुरू या संत में वह विशेषताएं हैं, उन्हें आध्यात्मिक मार्ग में गुरु के रूप में चुनना चाहिए।
संत रामपाल जी महाराज समस्त भारत सहित पूरी दुनिया में सबसे शक्तिशाली और प्रसिद्ध संत है जिसका कारण है उनका अद्भुत आध्यात्मिक ज्ञान और समाज सुधार।
यदि उपरोक्त सामग्री के संबंध में आपके कोई प्रश्न या सुझावहैं, तो कृपया हमें [email protected] पर ईमेल करें, हम इसे प्रमाण के साथ हल करने का प्रयास करेंगे।
Ankit Mishray
मैंने यह सुना है कि गुरु बिना मोक्ष नहीं हो सकता। इसलिए मैंने गुरू से दीक्षा लेने का फैसला किया। लेकिन मुझे पता नहीं लग रहा कि सच्चा गुरु या संत कौन है क्योंकि पूरे विश्व में बहुत से धार्मिक गुरु हैं।
Satlok Ashram
अंकित जी, आप जी ने हमारे लेख को पढ़कर अपने विचार व्यक्त किए, इसके लिए आपको आभार। देखिए विश्व में ऐसे बहुत से गुरू हैं, जो भोले भाले भक्तों को गुमराह करते हैं, लेकिन सभी धार्मिक गुरु एक जैसे नहीं होते। सच्चे गुरू की पहचान करने के लिए आप हमारे पवित्र शास्त्रों को पढ़ सकते हैं क्योंकि उनमें सच्चे गुरू की पहचान बताई गई है। इस समय पृथ्वी पर एकमात्र आध्यात्मिक गुरु संत रामपाल जी महाराज जी हैं जिनका आध्यात्मिक ज्ञान शास्त्रों पर आधारित है। अधिक जानकारी के लिए आप "ज्ञान गंगा" पुस्तक पढ़िए और संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचन यूट्यूब चैनल पर भी सुन सकते हैं