हमारे पांचों वेद पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी का संविधान हैं जो पूर्ण परमात्मा का ही गुणगान बयान करते हैं। वैसे तो परमात्मा ने आत्माओं के मोक्ष के लिए पांच वेद दिए थे लेकिन भक्त समाज सिर्फ चार वेदों से ही परिचित है। ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। पांचवां वेद सूक्ष्म वेद है जो सच्चिदानंद घन ब्रह्म अर्थात पूर्ण परमात्मा परम अक्षर ब्रह्म की अमृत वाणी है। सभी 5 वेद इस बात का प्रमाण देते हैं कि सर्वोच्च ईश्वर पूर्ण ब्रह्म सारी सृष्टि के निर्माता हैं। जो शाश्वत स्थान सतलोक में रहते हैं और काल के इस मृत लोक में अपनी प्यारी आत्माओं को कसाई ब्रह्म काल के जाल से मुक्त कराने के लिए सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करने के लिए चारों युगों में आते हैं। सृष्टि रचना में वर्णित तथ्य
यह साबित करते हैं कि वेद मूल रूप से कबीर परमात्मा द्वारा काल ब्रह्म को दिए गए थे जब काल ब्रह्म को उसके 21 ब्रह्मांडों सहित सतलोक से निष्कासित कर दिया गया था। उस समय, कबीर परमात्मा ने काल को 5 वेदों का ज्ञान दिया था, जो कि कबीर परमात्मा के आदेश अनुसार, काल की सांसों के माध्यम से प्रकट हुए।
काल ने उन धर्म ग्रंथों को पढ़ा और यह देखकर डर गया कि उनमें सर्वोच्च भगवान के बारे में जानकारी लिखी हुई है और अगर उसके जाल में फंसे जीवों को उसकी वास्तविकता का पता चल जाएगा कि वह शैतान है और अपने स्वार्थ के लिए निर्दोष आत्माओं को यातना देता है और सर्वोच्च भगवान कोई और है जो खुशियों का सागर है तो सभी आत्माएं सतपुरुष / पूर्ण ब्रह्म की पूजा करेंगे और उसके जाल से मुक्त हो जायेंगे तो वह फिर क्या खायेगा? उसके बाद शैतान काल ने वेदों के उन हिस्सों को नष्ट कर दिया जिनमें सच्चे मोक्ष मंत्रों के साथ-साथ ईश्वर की अधिकतम महिमा थी और शेष विवरण दुनिया के सामने प्रस्तुत किया।
इस लेख में आगे हम पवित्र अथर्ववेद के श्लोकों का अध्ययन करेंगे और जानेंगे - पूर्ण परमात्मा कौन है?
आइए हम सभी विषयों का और अधिक विस्तार से अध्ययन करें और समझें कि वास्तव में पूर्ण ब्रह्म / पूर्ण परमात्मा कौन है? सबसे पहले पवित्र अथर्ववेद के बारे में संक्षिप्त जानकारीः
"अथर्ववेद" एक प्राचीन हिंदू ग्रंथ है जिसे महान ऋषि वेद व्यास द्वारा कलयुग की शुरुआत में लिखे गए वेदों की श्रृंखला में चौथे वेद के रूप में जाना जाता है। पहला और सबसे पुराना ऋग्वेद उसके बाद सामवेद फिर यजुर्वेद और अंततः अथर्ववेद उनके द्वारा लिखे गए थे। वर्तमान में उपलब्ध 4 वेद लगभग 5000 साल पहले वैदिक संस्कृत में संकलित किए गए थे जब वास्तव में कोई धर्म नहीं था। वर्तमान में ये वेद हिंदी और कुछ अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी उपलब्ध हैं।
नोट: कबीर परमात्मा ने काल को 5 वेदों (4 के बजाय पांच वेदों) का ज्ञान दिया था, जो कि कबीर परमात्मा के आदेश अनुसार, काल की सांसों के माध्यम से प्रकट हुए। जैसा कि पहले ही वर्णित है वेदों को प्रलय के दौरान काफी बार नष्ट किया गया है लेकिन महाप्रलय के बाद जब काल के लोक का पुनर्निर्माण होता है तब पूर्ण परमात्मा कबीर जी भक्तों के हित के लिए ऋषियों/ संतों के माध्यम से वेदों का पुन: निर्माण करते हैं।
पवित्र अथर्ववेद की रचना वैदिक संस्कृत में की गई है और यह लगभग 6,000 मंत्रों के साथ 730 सूक्तों का संग्रह है, जिन्हें 20 पुस्तकों में विभाजित किया गया है, जिन्हें अनुवाक कहा जाता है। अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक संख्या 1 श्लोक 1-7 सर्वोच्च भगवान के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं जो संपूर्ण ब्रह्मांड के निर्माता हैं। सर्वशक्तिमान / परम अक्षर ब्रह्म / सतपुरुष ने आदि पराशक्ति/ देवी दुर्गा और बाकी पूरी सृष्टि की रचना की है। पवित्र अथर्ववेद इस बात का प्रमाण प्रदान करता है कि काल के इस नाशवान लोक के साथ परब्रह्म के सात शंख ब्रह्मांडों तथा ऊपर के सभी लोकों में सतलोक , अगम लोक , अलख लोक तथा अनामी लोक की रचना पूर्ण परमात्मा सतपुरुष कबीर देव जी ने की है।
आइए सभी 7 मंत्रों को विस्तार से पढ़ें।
ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्त्ताद् वि सीमतः सुरुचो वेन आवः। स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च वि वः।। 1।।
भावार्थ:- पवित्र वेदों को बोलने वाला ब्रह्म (काल) कह रहा है कि सनातन परमेश्वर ने स्वयं अनामय (अनामी) लोक से सत्यलोक में प्रकट होकर अपनी सूझ-बूझ से कपड़े की तरह रचना करके ऊपर के सतलोक आदि को सीमा रहित स्वप्रकाशित अजर - अमर अर्थात् अविनाशी ठहराए तथा नीचे के परब्रह्म के सात संख ब्रह्मण्ड तथा ब्रह्म के 21 ब्रह्मण्ड व इनमें छोटी-से छोटी रचना भी उसी परमात्मा ने अस्थाई की है।
इयं पित्रया राष्ट्रîत्वग्रे प्रथमाय जनुषे भुवनेष्ठाः।
तस्मा एतं सुरुचं ह्नारमह्यं घर्मं श्रीणन्तु प्रथमाय धास्यवे।।2।।
भावार्थ:- जगतपिता परमेश्वर ने अपनी शब्द शक्ति से राष्ट्री अर्थात् सबसे पहली माया राजेश्वरी उत्पन्न की तथा उसी पराशक्ति के द्वारा एक-दूसरे को आकर्षण शक्ति से रोकने वाले कभी न समाप्त होने वाले गुण से उपरोक्त सर्व ब्रह्मण्डों को स्थापित किया है।
प्र यो जज्ञे विद्वानस्य बन्धुर्विश्वा देवानां जनिमा विवक्ति।
ब्रह्म ब्रह्मण उज्जभार मध्यान्नीचैरुच्चैः स्वधा अभि प्र तस्थौ।।3।।
भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अपने द्वारा रची सृष्टी का ज्ञान तथा सर्व आत्माओं की उत्पत्ति का ज्ञान अपने निजी दास को स्वयं ही सही सही बताता है कि पूर्ण परमात्मा ने अपने मध्य अर्थात् अपने शरीर से अपनी शब्द शक्ति के द्वारा ब्रह्म (क्षर पुरुष/काल) की उत्पत्ति की तथा सर्व ब्रह्मण्डों को ऊपर सतलोक, अलख लोक, अगम लोक, अनामी लोक आदि तथा नीचे परब्रह्म के सात संख ब्रह्मण्ड तथा ब्रह्म के 21 ब्रह्मण्डों को अपनी धारण करने वाली आकर्षण शक्ति से ठहराया हुआ है।
जैसे पूर्ण परमात्मा कबीर परमेश्वर (कविर्देव) ने अपने निजी सेवक अर्थात् सखा श्री धर्मदास जी, आदरणीय गरीबदास जी आदि को अपने द्वारा रची सृष्टी का ज्ञान स्वयं ही बताया। उपरोक्त वेद मंत्र भी यही समर्थन कर रहा है।
सः हि दिवः सः पृथिव्या ऋतस्था मही क्षेमं रोदसी अस्कभायत्।
महान् मही अस्कभायद् वि जातो द्यां सप्र पार्थिवं च रजः।।4।।
भावार्थ:- ऊपर के चारों लोक सत्यलोक, अलख लोक, अगम लोक, अनामी लोक यह तो अजर-अमर स्थाई अर्थात् अविनाशी रचे हैं तथा नीचे के ब्रह्म तथा परब्रह्म के लोकों को अस्थाई रचना करके तथा अन्य छोटे-छोटे लोक भी उसी परमेश्वर ने रच कर स्थिर किए।
सः बुध्न्यादाष्ट्र जनुषोऽभ्यग्रं बृहस्पतिर्देवता तस्य सम्राट्।
अहर्यच्छुक्रं ज्योतिषो जनिष्टाथ द्युमन्तो वि वसन्तु विप्राः।।5।।
भावार्थ:- ऊपर के चारों लोक सत्यलोक, अलख लोक, अगम लोक, अनामी लोक यह तो अजर-अमर स्थाई अर्थात् अविनाशी रचे हैं तथा नीचे के ब्रह्म तथा परब्रह्म के लोकों को अस्थाई रचना करके तथा अन्य छोटे-छोटे लोक भी उसी परमेश्वर ने रच कर स्थिर किए।
नूनं तदस्य काव्यो हिनोति महो देवस्य पूव्र्यस्य धाम।
एष जज्ञे बहुभिः साकमित्था पूर्वे अर्धे विषिते ससन् नु।।6।।
भावार्थ:- वही पूर्ण परमेश्वर सत्य साधना करने वाले साधक को उसी पहले वाले स्थान (सत्यलोक) में ले जाता है, जहाँ से बिछुड़ कर आए थे। वहाँ उस वास्तविक सुखदाई प्रभु को प्राप्त करके खुशी से आत्म विभोर होकर मस्ती से स्तुति करता है कि हे परमात्मा असंख्य जन्मों के भूले-भटकों को वास्तविक ठिकाना मिल गया। इसी का प्रमाण पवित्र ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 16 में भी है।
आदरणीय गरीबदास जी को इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) स्वयं सत्यभक्ति प्रदान करके सत्यलोक लेकर गए थे, तब अपनी अमृतवाणी में आदरणीय गरीबदास जी महाराज ने आँखों देखकर कहाः-
गरीब, अजब नगर में ले गए, हमकुँ सतगुरु आन। झिलके बिम्ब अगाध गति, सुते चादर तान।।
योऽथर्वाणं पित्तरं देवबन्धुं बृहस्पतिं नमसाव च गच्छात्।
त्वं विश्वेषां जनिता यथासः कविर्देवो न दभायत् स्वधावान्।।7।।
भावार्थ:- इस मंत्र में यह भी स्पष्ट कर दिया है कि उस परमेश्वर का नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है, जिसने सर्व रचना की है।
जो परमेश्वर अचल अर्थात् वास्तव में अविनाशी (गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में भी प्रमाण है) जगत् गुरु, आत्माधार, जो पूर्ण मुक्त होकर सत्यलोक गए हैं उनको सतलोक ले जाने वाला, सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार, काल (ब्रह्म) की तरह धोखा न देने वाला ज्यों का त्यों वह स्वयं कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु है। यही परमेश्वर सर्व ब्रह्मण्डों व प्राणियों को अपनी शब्द शक्ति से उत्पन्न करने के कारण (जनिता) माता भी कहलाता है तथा (पित्तरम्) पिता तथा (बन्धु) भाई भी वास्तव में यही है तथा (देव) परमेश्वर भी यही है। इसलिए इसी कविर्देव (कबीर परमेश्वर) की स्तुति किया करते हैं।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धु च सखा त्वमेव, त्वमेव विद्या च द्रविणम् त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम् देव देव। ।
भावार्थ : तुम ही मेरे माता हो तुम ही मेरे और पिता हो। तुम ही मेरे दोस्त भी हो और भाई भी हो। तुम ही मेरे धन और ज्ञान हो और आप ही देवताओं के देवता भी हैं।
वेदों में कई देवताओं का उल्लेख किया गया है लेकिन भक्त समाज के बीच हमेशा इस प्रश्न का उत्तर खोजने की जिज्ञासा बनी रहती है कि वेदों के अनुसार पूर्ण परमात्मा कौन है?
अथर्ववेद कांड संख्या 4 अनुवाक संख्या 1 मंत्र 1-7 के प्रमाण स्पष्ट रूप से बताते हैं कि भगवान कबीर साहेब / कबीर देव ही सर्वोच्च ईश्वर हैं जिन्होंने ब्रह्मांड को एक साथ रखने के लिए आदि पराशक्ति को जन्म दिया। सर्वोच्च भगवान कविर देव ने देवी दुर्गा की रचना की साथ ही परब्रह्म अर्थात अक्षर पुरुष और ब्रह्म काल अर्थात क्षर पुरुष के सभी लोकों के साथ ही ऊपर के सभी शाश्वत लोक की भी स्थापना पूर्ण परमात्मा कबीर जी ने ही की है।
पवित्र अथर्ववेद से प्राप्त साक्ष्य के उपरोक्त अंश से निम्नलिखित निष्कर्ष निकलते हैं।
उपरोक्त तथ्यों का विस्तार सहित खुलासा जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने प्रमाण सहित अपने द्वारा लिखित पुस्तकों में किया है इसलिए सभी साधकों से अनुरोध है की संत रामपाल जी महाराज जी की शरण में आ कर पूपरमात्मा को वेदों के आधार पर पहचानें और अपना कल्याण कराएं।
पवित्र अथर्ववेद के काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र 7 में यह स्पष्ट है कि उस परमेश्वर का नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है, जिसने सर्व रचना की है। जो परमेश्वर अचल अर्थात् वास्तव में अविनाशी (गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में भी प्रमाण है) जगत् गुरु, आत्माधार, जो पूर्ण मुक्त होकर सत्यलोक गए हैं उनको सतलोक ले जाने वाला, सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार, काल (ब्रह्म) की तरह धोखा न देने वाला ज्यों का त्यों वह स्वयं कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु है। यही परमेश्वर सर्व ब्रह्मण्डों व प्राणियों को अपनी शब्द शक्ति से उत्पन्न करने के कारण (जनिता) माता भी कहलाता है तथा (पित्तरम्) पिता तथा (बन्धु) भाई भी वास्तव में यही है तथा (देव) परमेश्वर भी यही है। इसलिए इसी कविर्देव (कबीर परमेश्वर) की स्तुति किया करते हैं।
वेदों में कई देवताओं का उल्लेख किया गया है लेकिन भक्त समाज के बीच हमेशा इस प्रश्न का उत्तर खोजने की जिज्ञासा बनी रहती है कि वेदों के अनुसार पूर्ण परमात्मा कौन है? अथर्ववेद के काण्ड संख्या 4 अनुवाक संख्या 1 मंत्र 1-7 के प्रमाण स्पष्ट रूप से बताते हैं कि भगवान कबीर साहेब / कबीर देव ही सर्वोच्च ईश्वर हैं जिन्होंने ब्रह्मांड को एक साथ रखने के लिए आदि पराशक्ति को जन्म दिया। सर्वोच्च भगवान कविर देव ने देवी दुर्गा की रचना की। साथ ही परब्रह्म अर्थात अक्षर पुरुष और ब्रह्म काल अर्थात क्षर पुरुष के सभी लोकों के साथ ही ऊपर के सभी शाश्वत लोक की भी स्थापना पूर्ण परमात्मा कबीर जी ने ही की है।
पवित्र अथर्ववेद के काण्ड संख्या 4 अनुवाक संख्या 1 मंत्र 7 में यह स्पष्ट है कि उस परमेश्वर का नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है, जिसने सर्व रचना की है। जो परमेश्वर अचल अर्थात् वास्तव में अविनाशी (गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में भी प्रमाण है)। यही परमेश्वर सर्व ब्रह्मण्डों व प्राणियों को अपनी शब्द शक्ति से उत्पन्न करने के कारण (जनिता) माता भी कहलाता है तथा (पित्तरम्) पिता तथा (बन्धु) भाई भी वास्तव में यही है तथा (देव) परमेश्वर भी यही है। इसलिए इसी कविर्देव (कबीर परमेश्वर) की स्तुति किया करते हैं।
पवित्र अथर्ववेद के काण्ड संख्या 4 अनुवाक संख्या 1 मंत्र 7 से प्राप्त साक्ष्य से निम्नलिखित स्पष्ट निष्कर्ष निकलता हैं -
पवित्र अथर्ववेद के काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र 6 के अनुसार परमेश्वर स्वयं सृष्टि रचना का ज्ञान प्रदान करते हैं और अपनी प्रिय आत्माओं को मोक्ष प्रदान करते हैं। प्रत्येक आत्मा अपने परम पिता परमेश्वर कविर्देव (कबीर साहेब) से मिलने को लालायित है। लेकिन काल ब्रह्म के द्वारा अज्ञान की अवस्था में घोर अंधेरे में जीवन व्यतीत कर रहा है। जिसे भी यह सतज्ञान पढ़ने को मिल जाता है और जो काल और माया के भेद को जां लेता है वही इस ज्ञान का अनुसरण करने को तत्पर हो जाता है। सतगुरु की शरण लेकर सही साधना करके पार उतर जाता है।
देखिए, पवित्र अथर्ववेद के काण्ड संख्या 4 अनुवाक संख्या 1 मंत्र 7 में यह स्पष्ट है कि उस परमेश्वर का नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है, जिसने सर्व रचना की है। जो परमेश्वर अचल अर्थात् वास्तव में अविनाशी (गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में भी प्रमाण है)। यही परमेश्वर सर्व ब्रह्मण्डों व प्राणियों को अपनी शब्द शक्ति से उत्पन्न करने के कारण (जनिता) माता भी कहलाता है तथा (पित्तरम्) पिता तथा (बन्धु) भाई भी वास्तव में यही है तथा (देव) परमेश्वर भी यही है। इसलिए सभी इसी कविर्देव (कबीर परमेश्वर) की स्तुति किया करते हैं। इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वह भगवान शिव सहित सभी देवताओं से सर्वोच्च हैं।
यदि उपरोक्त सामग्री के संबंध में आपके कोई प्रश्न या सुझावहैं, तो कृपया हमें [email protected] पर ईमेल करें, हम इसे प्रमाण के साथ हल करने का प्रयास करेंगे।
Madhavi Sharma
अथर्ववेद सृष्टि की रचना करने वाले ईश्वर की बात करता है लेकिन ईश्वर निराकार है।
Satlok Ashram
देखिए, पवित्र अथर्ववेद के काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र नं. 1 के अनुसार पूर्ण परमात्मा संपूर्ण ब्रह्मांडों के निर्माता हैं। पवित्र वेदों को बोलने वाला ब्रह्म (काल) कह रहा है कि सनातन परमेश्वर ने स्वयं अनामय (अनामी) लोक से सत्यलोक में प्रकट होकर अपनी सूझ-बूझ से कपड़े की तरह रचना करके ऊपर के सतलोक आदि को सीमा रहित स्वप्रकाशित अजर - अमर अर्थात् अविनाशी ठहराए तथा नीचे के परब्रह्म के सात संख ब्रह्मण्ड तथा ब्रह्म के 21 ब्रह्मण्ड व इनमें छोटी-से छोटी रचना भी उसी परमात्मा ने अस्थाई की है। स्पष्ट है कि परमेश्वर ने स्वयं सत्यलोक में प्रकट होकर सर्व सृष्टि की रचना की। प्रकट होने से अभिप्राय है कि परमात्मा साकार है निराकार नहीं। पवित्र अथर्ववेद के काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र 7 में यह भी स्पष्ट कर दिया है कि उस परमेश्वर का नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है जिसने सर्व रचना की है।