सत साहेब।।
सतगुरु देव की जय।
बंदी छोड़ कबीर साहेब जी की जय।
बंदी छोड़ गरीबदास जी महाराज जी की जय।
स्वामी रामदेवानंद जी गुरु महाराज जी की जय हो।
बंदी छोड़ सतगुरू रामपाल जी महाराज जी की जय।
सर्व संतो की जय।
सर्व भक्तों की जय।
धर्मी पुरुषों की जय।
श्री काशी धाम की जय।
श्री छुडानी धाम की जय।
श्री करोंथा धाम की जय।
श्री बरवाला धाम की जय।।
सत साहेब।।।।
कबीर दंडवत्तम गोविंद गुरु, बंधु अविजन सोए। पहले भये प्रणाम तीन, नमों जो आगे होए।।
कबीर गुरु को कीजै दंडवतम, कोटि-कोटि प्रणाम। कीट न जाने भृंग कूं ,यों गुरु कर हैं आप समान।।
कबीर सतगुरु के उपदेश का, सुनिया एक विचार। जै सतगुरु मिलते नहीं ,जाते नरक द्वार।।
नरक द्वार में दूत सब, करते खैचांतान। उनसे कबहूं नही छूटता ,फिरता चारों खान।।
कबीर चार खानि में, भरमता कबहूं ना लगता पार। सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।।
जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से बसियो, अमरपूरी के डेरे की।।
जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से बसियो, सतलोक के डेरे की।।
निर्विकार निर्भय तूही ,और सकल भयमान। ऐजी साधो और सकल भयमान।
सब पर तेरी साहेबी, सब पर तेरी साहेबी तुझ पर साहब ना।।
निर्विकार निर्भय।।
परमपिता परमात्मा कबीर जी की असीम रजा से बच्चों! पुण्य आत्माओं! आपको उस परमपिता परमात्मा समर्थ सक्ष्म ठाढे की शरण प्राप्त हुई है। आप उसकी बाँह छुड़वा ना लेना। वह जब बाँह जिसकी पकड़ लेता है उसे पार करके छोड़ता है। और निवेदन करते हैं हम।
कबीर अंतर्यामी एक तू, आत्म के आधार। जो तुम छोड़ो हाथ तो, हमें कौन उतारे पार।।
हे परमात्मा! यदि तू हमारी बाँह छोड़ देगा, हमारा हाथ छोड़ देगा! फिर इस संसार में हमारा है भी कौन? हमें कौन पार करेगा ?
जैसे आप धर्मदास जी के प्रकरण में सुना करते हो, सुनते आए हो। धर्मदास जी कितना आरुढ़ था हमारी तरह उसी लोकवेद के आधार पर। श्री ब्रह्मा जी ,श्री विष्णु जी ,श्री शिव जी से ऊपर कुछ मानने को तैयार नहीं था। जबकि गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 में यह स्पष्ट किया है कि यह तीनों गुणों के द्वारा जो कुछ भी हो रहा है यह काल इसका निमित्त है। यह इनके आहार है। इस आहार, काल के आहार के लिए तीनों व्यवस्था करते हैं। ब्रह्मा जी यह रजगुण के प्रभाव से जीव संतान उत्पति करता है। विष्णु के प्रभाव से अपने आप automatically मोह हो जाता है। पालन - पोषण करना यह कर्तव्य बन जाता है। शंकर जी मार देता है। और हम Daily सुना करते थे यह कथा। एक पालै, एक पैदा करें। एक पालै, एक मार दे। तो यह क्या मतलब हुआ ? कोई अर्थ था इसका ? पर ज्ञान नहीं था। आंख बंद कर के इसी को सच्ची मान रहे थे। और फाइनल मान रहे थे। पर इसको यह सोच रहे थे ,ऐसा ही चलेगा यह। गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में स्पष्ट कर दिया है, कि त्रिगुणमई माया रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शंकर की भक्ति तक सीमित जो है दृढ़ हो गए। जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, जिनकी बुद्धि पकड़ रखी है आगे सुनने को तैयार नहीं ? वह राक्षस स्वभाव को धारण किये हुए मनुष्यों में नीच दूषित कर्म करने वाले मूर्ख मुझे भी नहीं भजते। यह गीता बोलने वाला काल ब्रह्म कह रहा है।
अब बच्चों! जैसे हमारे भक्त जगह - जगह प्रचार करने जाते हैं यहीं इन तीनों गुणों के पुजारी उनको मारते - पीटते हैं बदतमीजी करते हैं। इनको पढ़ तो लो यह कहना क्या चाहते हैं ? तो वह गीता झूठी हो जाय। इसी प्रकार धर्मदास जी उस पर आरुढ़ थे। और बहुत ज्यादा परमात्मा के साथ तर्क- वितर्क किया। जब बात समझ में आई तब अक्ल ठिकाने आ गई। तो कहते हैं उनका क्या कर ले जो यह सारा कुछ सुनकर भी नहीं मानते। उनका क्या इलाज करें फिर ? हे परमात्मा!
गरीब सतगुरु मिले तो क्या करें, अंदर वाद विवाद। सिर जम डंडा खात है ,कोटि मिलो जो साध।।
गरीब सतगुरु मिले तो क्या करें, होनी होए सो होए। कलम लिखा जो मेट है ,जा सतगुरु कु जोय।।
गरीब दास जी समझाना चाहते हैं यदि सतगुरु मिल जाता है तो उसकी बातों को न मानकर उसके साथ वाद- विवाद करते हैं। नाम लेकर भी कुछ ना कुछ तर्क- वितर्क अपने मन में होता ही रहता है। क्योंकि वह ज्ञान कच्चा है। जब ज्ञान पूरा हो जाएगा फिर यह खत्म हो जायेंगे। फिर बताया है, कि उस सतगुरु का नाम लो उसकी शरण में जाओ जो कलम के लिखे को मेट दे। यानी जो प्रारब्ध को समाप्त कर दे। पूर्ण सतगुरु के पास यह पावर होती है।
गरीब सतगुरु कूं कुरबान जां ,कर्म छूड़ाए कोटि।
जो सतगुरु की निंदा करैं, जम तोड़ेंगे होंठ।।
गरीब अजर अमर सत्पुरुष है, सोहं सुकृत सीर। बिन दम देह दयाल जी, जाका नाम कबीर।।
गरीब हम सुल्तानी नानक तारे ,दादू को उपदेश दिया। जाति जुलाहा भेद नहीं पाया, वह काशी माहे कबीर हुआ।।
गरीब नानक तो निर्भय किया, वाहे गुरु सत जान। अदली पुरुष पिछानिया , पूर्ण पद निर्वाण।।
गरीब दादू का पिंजर पड़ा, और नानक की देह। इनमें सतगुरु कौन सा, हम कूं बड़ा संदेह।।
अब क्या बताते हैं, कि संत का शरीर रह जाता है। लेकिन वह शरीर सतगुरु नहीं है ? जिसको यह शरीर मिला हुआ था, और जिसने इतना अजब गजब ज्ञान आपको प्राप्त करके दिया, नाम दिया। उसके अंदर जो हंस आत्मा है ,रही है वह है सतगुरु।
गरीब कृष्ण कन्हैया राम को ,जीव कहैं करतार।
और शरीर पड़ा यानी यह भी मरे थे इन भगवानों का,
पिंड पड़ा इन भगवानों का, इनको देख विचार।।
कच्छ मच्छ कूरम्भ तक, शैष धोल कूं देख। इनकी देही भी ना रहे, कहे शब्द सुधा की टेक।।
गरीब कनफूंका गुरु मिलै ,जानै भाव ना भेद। यह जम के हिलाकारे फिरैं ,हाथों में लिए वेद।।
क्या गजब की बात कही कनफुंका, कान में फूंक मारने वाले गुप्त बात बताऊं। मंत्र दे दिया बस हूं- हूं कर दिया। और जाने भाव ना भेद। यह जम के हिलकारे जम के दूत ,यम दूत फिरते हैं यह नकली गुरु जो वेदों को लिए फिरते हैं। और वेदों में अधूरा ज्ञान।
गरीब कान चिराएं क्या हुआ , रहा कानों मुद्रा डाल। मुद्रा पहरे क्या हुआ ,सिर फोड़ेगा काल।।
कहते हैं सच्ची भक्ति बिना बाहिये दिखावा कितना ही कर लियो इससे कुछ नहीं बनने का ? बच्चो! जो झूठे गुरु है जिनको पूर्ण ज्ञान नहीं है उनको बताया है , कि यह हाथों में वेद लेकर फिरते हैं। वेदों का पाठ करते हैं। गीता का पाठ, पुराणों का पाठ, भागवत का पाठ यह यम के दूत समझ लिए । सारा अज्ञान बताते हैं।
फिर कहते हैं:
गरीब कान चिराए क्या हुआ , रहा कानो मुद्रा घाल।
यह "कनपाड़ै" कान पड़वा कर उसमें गोल-गोल छल्ले से डाल लेते हैं। कहते हैं
मुद्रा पहरे क्या हुआ, सिर फोड़ेगा काल।।
चुण्डित मुण्डित पकड़ लिए ,इनसे जम किंकर ना डरता। तू कौन कहां से आन फंदा ,देखो आग बिरानी क्यों जलता।।
यह चुण्डित बड़ी-बड़ी जटा रखते हैं। माला पहनते हैं। तिलक लगाते हैं। राख लपेटते हैं। मृगछाला रखते हैं। छत्तीस पाखंड करते हैं। और दूसरे बिलकुल सिर कचकोला कढवा लेते हैं, बिल्कुल उस्तरा फिरवा लेते हैं। गले में माला पहनते हैं तिलक लगाते हैं लाल कपड़े दिखावा करते हैं। कहते हैं यह चुण्डित मुण्डित इन सबको यह काल के दूत, यम के दूत घसीट कर ले जाएंगे। इन बाहिये पाखंड से यम के दूत नहीं डरते।
वह किस से डरते हैं ?-
गरीब मौला बैठा मोर्चे, देखै यम की भैड़। द्वादस कोटि जम किंकर जहां, एक नाम की खैड़।।
जो सतनाम, सारनाम, चाहे प्रथम नाम के अन्दर भी पहला और लास्ट वाला मंत्र बहुत जबरदस्त हैं। जिसको प्रथम मंत्र प्राप्त है यदि कहीं आपत्ति आ जाती है इसका सुमिरन करो। और जिसके पास सतनाम है, सतनाम का सुमिरन करो। सारनाम है ,सारनाम का सुमिरन करो। जो भी तो नीचे वाले की जरुरत नहीं फिर सारनाम का ही करो। तो कहते हैं मौला परमात्मा देखता है हमारी ,यह किस तरह से पेश आता है ? जब आपत्ति आती है। एक स्वांस के सुमिरन से इतना जबरदस्त अटैक होता है यम के दूतो पर 12 करोड़ के ,12 करोड़ उस एक सिमरन की चोट से उथल-पुथल हो जाते हैं।
फिर क्या बताते हैं
गरीब मौन रहा तो क्या हुआ ,बोलै सैंनो भेव। मोनी वक्ता एक है, ना जाना दिल देव।।
यह कई ऐसे भी बाबा जी मौन रख रहा है। बोलता नहीं । 40 दिन का मौन रखता है। मैंने देखे यह पाखंडी। क्योंकी मुझे बहुत घूमने पड़ा इनकी जड़ देखने के लिए। इनकी तली देखने के लिए। तो एक बाबा मौन रख रहा। बोले नहीं वैसे सारा घुमें फिरै। खावै - पिवे छिक कर। बोलै नहीं ? और कुछ खाना पीना हो लिख कर देदे ,चाय लाओ। फल लाओ। यह आ गया इसको चाय पिलाओ। बता कबीर साहेब कहते हैं पाखंडी लोग।
गरीब दास जी कहते हैं मौन रहा तो क्या हुआ ,बोलै सैनो भेव। मोनी वक्ता एक है , ना जाना दिल देव।।
गरीब कंठी माला सुमरनी ,पहरे से क्या होए। ऊपर डूंडा साध का ,अंतर राखा खोए।।
ऊपर से दिखावा तो इतना जबरदस्त कर रखा है, कि इसने तो भगवान पा लिया होगा। कंठी माला पहन रखी, सुमरनी हाथ में गले में डाल रखी। बड़ी-बड़ी जटा रखवा रखी। लाल कपड़े। क्या बात आदमी कट कर मर जाए भगत। यह सोचै भगवान का रूप है यह।
गरीब कंठी माला सुमरनी ,पहरे से क्या हो। ऊपर डूंडा। डूंडा उठा रखा बिलकुल ऐसे लगे बड़े गजब का महात्मा है। अंदर राखा खो।
भक्ति एक आने की नहीं ?
गरीब सन्यासी दशनामी है ,शिव का धरते ध्यान। शिव के सिर पर और है ,जा कूं कर प्रणाम।।
शिव जी की पूजा करने वालो शिवजी भी किसी की भक्ति करता है। उसको देखो। उसकी भक्ति करो।
गरीब ऐसी मन की वृति है ,इच्छा आवे - जाय। जा घट इच्छा नहीं, सो साधु सतभाए।।
गरीब प्रकृति छोड़ै नहीं, कोई ना धर है धीर। चौबीसों पहुंचे नहीं, जहां आसन अटल कबीर।।
जहां परमात्मा कबीर जी का अटल आसन अमर स्थान सतलोक है। वहां तुम्हारे 24 अवतार भी नहीं जा सकते?
दूसरे शब्दों में गरीब दास जी ने कहा है -:
जट कुंडल ऊपर आसन है, सतगुरु की सैल सुनो भाई। जहां ध्रुव प्रहलाद नही पहुंचे ,सुखदेव कूं मार्ग ना पाई।।
नारद मुनि निरताय रहे, दत गोरख से को सुच्चा है। बड़ी सैल अधम सुल्तान करी ,सतगुरु तकिया टुक ऊंचा है।
धर्मराय जाका ध्यान धरें। अध्या अधिकार बतावत है। दो लिखवा चित्रगुप्त जाके, सतगुरु तकिया नहीं पावत है।।
कितनी गजब की बात कह दी कि
जट कुंडल ऊपर आसन है सतगुरु की सैल सुनो भाई। जहां ध्रुव प्रहलाद नहीं पहुंचे, सुखदेव कूं मार्ग ना पाई।।
नारद मुनि मुस्काए रहे, दत दत्तात्रे जी
गोरख गोरखनाथ से तो, इनसे तो किसी को सुच्चा नहीं मानते बड़े प्रसिद्ध सिद्ध थे।
और बड़ी सैल अजब सुल्तान करी
पर सतगुरु तकिया टूक ऊंचा है। सुल्तान अधम घर छोड़कर चला गया। भक्ति करने लगा तो उसकी समाधि ऊपर बहुत दूर तक जाने लगी। लेकिन भगवान के घर तो परमात्मा की कृपा से ही जाया जाएगा।
अब यहां बताते हैं
गरीब हिंदू हदीरे पूज ही ,मुस्लिम पूजे घोर। दोऊ दीन धोखै पड़े, पापी कठिन कठोर।। दोनों ही गलती कर रहे हैं । गलत साधना कर रहे हैं।
गरीब हिंदू तो देवल बंधे, मुस्लिम बंधे मसीत। साहेब दर पहुंचे नहीं, या चिनि भ्रम की भीत।।
गरीब षट दल दोनों दीन की, भली विभूति बात। मैं मेरी के कारने, खाई जमकी लात।।
गरीब षट दल दोनों दीन का, दिल में दोष न धार। सतगुरु का कोई एक है, जम का सब संसार।।
अब देखो बच्चों! साढे सात अरब आबादी है। उसमे से तुम कितने हो सतगुरु के? यहा बंदी छोड़ ने स्पष्ट कर दिया है कि षटदल दोनो का, यह षट दर्शनी महात्मा और यह सारे मिलाकर हिंदू और मुसलमान इनका दिल में दोष न धार। क्योंकि यह मानते क्यों नहीं ? हमने दुख इसलिए आवै है यह मानते क्यों नहीं? यह समझते क्यों नहीं हमारे भाई बहन। तो इनकी क्या दुर्गति होवेगी। तो यहां स्पष्ट कर दिया कि इनका यह दुख ना मानो तुम। यह सतगुरु का तो कोई एक दो ही है। यह सब काल के सब संसार। जैसे कागभूसंड की कथा से आपको पता चला वह भी मनुष्य जीवन, उसने कहा, कि पता नहीं कितने खो दिए थे। असंख। भक्ति सुनी ही नहीं। किसी की बात ही नही मानी। अपना-अपना धंधा करा और मर गए। बच्चे पैदा करें, पाल पोष दिए। ऐसी घटना घटी। फिर शुरुवात भी बड़ी कठिनता से हुई। मुश्किल से भक्ति प्रवेश हुई स्टार्ट हुई। तो इसी प्रकार यह जो भक्ति पर नहीं लगते, लगते है गलत करते हैं। तो इनके बारे में कहा है, षटदल दोनों दीन का, दिल में दोष ना धार। इन्होंने कभी भक्ति बीज बोया नहीं है ? जो भगवान वाला है। और आपने किसी-किसी युग में यह बो रखा था बीज। मलिक की शरण में आए हो। रह गए। वह शुरुआत हो गई। परमात्मा ने अपने मान लिए। धीरे-धीरे, धीरे - धीरे आपको कभी चार्ज किया। कभी मर गए, कभी बच गए। लाकर आपको ऐसे स्थान पर ऐसे समय पर जन्म दे दिया अब के आप सतलोक जाओगे।
गरीब षट दल दोनों दीन का, दिल में दोष ना धार। सतगुरु का कोई एक है , यह काल का, यम का सब संसार।।
गरीब घोर गुमज कू पूजते, दोनों दीन गवांर। पत्थर को परमेश्वर कहैं, बिसरे सृजन हार।।
गरीब काहे को कल्पत फिरै, कर सेवा निष्काम। मन इच्छा फल देत है, जब पड़ै धनी से काम।।
गरीब रहनी होगी सो रहेगी, जानी होयगी सो जाए। कल्पै कारण कौन है, सतगुरु करे सहाय।।
गरीब कर साहब की बंदगी, सुमरन कल्प कबीर। यम के मस्तक पांव दे, जाए मिले धर्मधीर।।
की जो कबीर साहेब की शरण में हैं वह काल के सिर पर पैर रखकर और ग्यारहवें द्वार में प्रवेश करेंगे। यह सुमिरन के सामने नतमस्तक हो जाता है। इसने 11 द्वार खुद बंद कर रखा है जाकर लास्ट। जहां अक्षर पुरुष के लोक में प्रवेश करते हैं।
गरीब धर्मवीर जहां पुरुष हैं, ताकि कल्प कबीर। सकल प्राण में रम रहा, सब पीरों सिर पीर।।
गरीब परमात्मा के तत्वज्ञान को, जानत है कोई एक। कोट्यो मध्य कोई नही, भाई अरबों में कोई एक।।
यानी इस सच्चे ज्ञान को, इस तत्वज्ञान को अरबों में कोई एक पावेगा आपको बताने वाला। क्या बच्चों आपको यह बाते झूठी लगती है कि
फिर पीछे तू पशुवा कीजै, गधा बैल बनाई।
यह 56 भोग कहां मन बौरे ,कहीं कुरड़ी चरने जाई।। क्या यह बात झूठी है? आप इनको झूठी नहीं मानोगे, सत्य हैं। क्योंकि आपको ज्ञान हो गया। आम साधारण जन जगत का व्यक्ति कह सकता है किसने देखा है ? यह तो कहने की बात है क्या पता क्या बनेंगे? चलो! फिर यह तुमने यह क्या पता है तुम बनोगे क्या ? यह बताओ ? कोई बात नहीं। यह तो एक वाद विवाद वाली बात है। यह हम नहीं करेंगे। हम जो बताना चाहता है दास आपको, अपने बच्चों को यदि यह सच्चा है, आप सच्ची मानते हो hundred percent सच है और आप इसको सत्य मानते हो तो क्या आपको यह दुख याद नहीं आते, यह कुत्ते क्या खाते हैं ? सूअर क्या खाते हैं ? गधे कैसे रह रहे हैं ? कैसा जीवन निर्वाह कर रहे हैं ? पशु- पक्षी मनुष्य को छोड़कर बाकी की क्या दुर्गति हो रही है। क्या आप इसको पसंद करते हो ? नहीं करते। लेकिन मन इतना दुष्ट है यह ऐसे सोचता है , हम नहीं बनेंगे यह। यह तो बन गए। यह हम पहले सोचा करते थे ऐसे ही , हम तो ऐसे ही रहेंगे फिर मनुष्य जन्म मिल जाएगा। अब पता चला है, यह मनुष्य जन्म बच्चों का खेल नहीं है वैसे ही मिल जाएगा। तो पुण्य आत्माओं! इसके लिए सतगुरु की आवश्यकता पड़ती है। सतगुरु। और वह सच्चा सतगुरु मिलेगा तभी मोक्ष होगा। सच्चे। झूठे गुरुओ से भी कोई लाभ नहीं होने वाला। अब जैसे पिछले ऋषियों का इतिहास है कितनी कठिन साधनाएं की। हजारों- हजारों वर्ष तक उन्होंने तप किये खड़े होकर - बैठकर जैसे भी। शरीर बिलकुल सूखकर कांटा हो गया। तो परमात्मा प्राप्ति के लिए कुर्बानी दे दी। लेकिन उनको हासिल कुछ नहीं हुआ ? क्यों नहीं हुआ?- क्योंकि उनको सतगुरु तत्वदर्शी संत नहीं मिले।
क्या बताते हैं।
गरीब सुखदेव ने 84 भुगती, बना पजावा खर वो। तेरी क्या बुनियाद प्राणी, तू पैंडा पंथ पकड़ वो।।
सतगुरु नही मिले। सतगुरु ना मिलने से सुखदेव जैसे ऋषियों ने भी गधे की योनि भोगी। बना पजावै खर वो। और तेरी क्या औकात प्राणी ? यह हमारा मार्ग पकड़ ले भाई। जैसे गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से लेकर 15 में यह बताया है गीता बोलने वाले ने, कि यह तीनों गुणो के द्वारा रजगुण ब्रह्मा, सत्गुण विष्णु ,तमगण शिव जी से जो कुछ हो रहा है रजगुण ब्रह्मा से उत्पत्ति, सतगुण विष्णु से स्थिति, यानी पालन पोषण। एक दूसरे में मोह- ममता और शंकर जी मार रहा है। यह किस लिए मार रहा है?- यह काल इनका पिता है। इसको एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियो को मार कर daily खाना होता है। यह इसे श्राप लगा है। और यह श्राप लगा कहां ? इसने वहां बकवाद करी थी सतलोक के अंदर। अपनी बहन के साथ बदतमीजी की। वह उसको वह उसके मुंह में चली गई उसके बकवाद करते-करते। तो परमात्मा ने उसको निकाल कर कहा, कि आज के बाद तू 1 लाख जीव खाया करेगा, सवा लाख उत्पन्न करेगा। एक लाख मानव शरीर धारी प्राणी खाया करेगा। सवा लाख उत्पन्न करेगा। तेरा काल नाम होगा। निकल जा यहां से। वह दुर्गा भी और हम भी सारे निकम्में। जो इस नालायक के साथ आए थे सारे वहां से भगा दिए ठोकर मार कर परमात्मा ने। हम अपराधी है , दुष्ट हैं, हम बहुत निकम्मे और नीच है। और वह हमारा दयालु आज भी हमारे लिए तरस तड़प रहा है। हम अब भी आंख नहीं खोल रहे । क्योंकि हमारे मोतिया बिंद हो रहा है। अज्ञान इतना ठोक दिया हमें पता ही नहीं सचमुच ऐसा कुछ और लोक भी होगा ? आज तक हमने केवल स्वर्ग गया। वह स्वर्ग गया। स्वर्गवासी हो गया। स्वर्ग से ऊपर कोई बात ही नहीं सुनी थी।
स्वामी रामानंद जी 104 वर्ष के हो लिए थे जब परमात्मा कबीर जी से वार्ता हुई। और उनको सतलोक दिखाकर लाए। जब मलिक की आयु 5 वर्ष के आसपास थी। तो उससे पहले वार्ता कर रहा था, कि आज तक किसी ने बताया नहीं कि स्वर्ग से आगे भी कोई लोक है ? मैं कैसे मानूं आपकी बात बच्चा।
तब परमात्मा सतलोक लेकर गए जब उसको यकीन हुआ। उसके बाद समर्पित हो गए। कहते हैं कबीर साहेब बोले- :
जो देखेगा मेरे धाम को, सतलोक को सो जानेत है मुझ।
वह सब जान जाएगा मैं कौन हूं ?
गरीबदास तोसे कहूं ,सुन गायत्री गुझ।।
यह गुप्त भेद बता देता हूं। तो बच्चों! इन तीनों गुणों के द्वारा हमारी दुर्गति करवा रखी है और हम इन्हीं की पूजा करते हैं। देख कैसा जुल्म कर रखा है।
कबीर साहेब कहते हैं
गुण तीनों की भक्ति में, यह भरम पड़ो संसार। कहै कबीर निज नाम बिना, कैसे उतरो पार।।
फिर बताया है, कि इसी में सातवें अध्याय के 14 श्लोक में कहा है कि यह त्रिगुणमई माया बड़ी दूस्तर , बड़ी खतरनाक है। और जो इसको, जो मुझे भजते हैं वह इससे ऊपर उठ जाते हैं। यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश को छोड़ इसकी भक्ति करने वाले ब्रह्म लोक में चले जाते हैं। इसने अपनी यहीं अच्छी मान रखी है। इनसे तो कुछ अच्छी राहत है।
फिर बताया है, कि इन तीनों गुणो रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमोगुण शिवजी की भक्ति तक इन्हीं तक सीमित है किसी की सुनने को तैयार नहीं है ? आगे कोई बात नही सुनते। जिनकी बुद्धि हरि जा चुकी है जिनका ज्ञान हरा जा चुका है वह राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच दुषित कर्म करने वाले मुझे भी नहीं भजते। यानी यह इन ब्रह्मा, विष्णु ,महेश तक ही सीमित हैं। यह ब्रह्म साधना नहीं करते। जैसे राजा हिमालय को खुद देवी दीक्षा देती है। समझाती है उपदेश देती है- : कि तू सब बातें छोड़ दे। मेरी पूजा भी छोड़ दे,और सब साधना त्याग दे, ओम नाम का जाप कर इससे तू ब्रह्म लोक में चला जाएगा। वह ब्रह्मलोक में दिव्य आकाश रूपी ब्रह्मलोक में वह ब्रह्म रहता है। उसको प्राप्त होगा, तेरा कल्याण हो। इससे एक तो यह स्पष्ट हो गया ,कि ओम नाम से ब्रह्म लोक प्राप्त होता है। अच्छा! अब क्या बताया है काल कहता है गीता बोलते हुए फिर 20 सातवें के 20 और 23 तक भी यही बताया है कि इन देव तीनों से हटकर अन्य देवताओं की भक्ति भी जो करते हैं वह भी अल्प बुद्धि । यानी अज्ञानी लोग हैं वह। उनको थोड़ी बहुत राहत शक्ति मैंने दे रखी है उससे वह राहत देते हैं। लेकिन उनका यह फल नाशवान है। फिर बताता है मेरी भक्ति भी चार प्रकार के करते हैं। अर्थाथी, आर्थ, जिज्ञासु और ज्ञानी। अर्थाथी धन लाभ के लिए। आर्थ संकट निवारण के लिए। जिज्ञासु बस ज्ञान इकट्ठा करता फिरता है वक्ता बनने के लिए। ज्ञानी वह होता है जिसको समझ आ जाती है कि मनुष्य जीवन बार-बार नहीं मिलता और अब इसका पीछा छूट गया तो छूट गया। और इसके लिए अन्य उपासना ब्रह्मा, विष्णु , महेश यह अन्य देवी देवताओं की पूजा नहीं करनी। एक परमात्मा की भक्ति करनी है। तो वह ब्रह्म को फाइनल मान लेते हैं। क्योंकी किसी को पता ही नहीं ब्रह्म से ऊपर कोई भगवान है ? वेदों के पढ़ने वालों ने ब्रह्म साधना शुरू की। उनके साथ भी धोखा हो हुआ। चलो जैसा भी वह बाद में बताएंगे। तो यह कहता है सातवें अध्याय के 18 वें श्लोक में गीता बोलने वाला , कि यह ज्ञानी आत्मा जो मेरी भक्ति करते है यह है तो उद्धार। समर्पित हैं। जैसे ऋषियों ने सारा - सारा जीवन खो दिया। बिलकुल भूखे - प्यासे रहकर एक ओम नाम का जाप किया। उधर से तप ब्रह्मा जी से ले लिया यह खिचड़ी ज्ञान बना लिया। तो यह कहता है यह हैं मेरे वाली इस घटिया गति में "अनुतमाम गतिम" इस घटिया मोक्ष में आश्रित हैं। वह क्यों है ?- क्योंकि जन्म मृत्यु मेरा भी और तेरा भी अर्जुन। अब यह मोक्ष तो इन ऋषियों का हुआ नहीं ? इनमें सिद्धिया आ गई। जैसे चुणक ऋषि ने 72 अक्षोणी सैना मानधाता की मार दी। दुर्वासा ऋषि ने 56 करोड़ यादव का नाश कर दिया। इसलिए यह अनुतम है यह ऐसे जुल्म करते है। फिर इस साधना को करके मोक्ष होता नहीं ? स्वर्ग गये ,महास्वर्ग गये ब्रह्म लोक में। वहां से फिर मृत्यु प्राप्त।
गरीब 72 अक्षोणी खा गया, चुणक ऋषिश्वर एक। देह धारे जौरा फिरे, यह सभी काल के भेख।।
कि यह चलती फिरती मौत हैं। यह ऋषि जिनको तुम पहुंचे हुए महात्मा मानते हो। देह धरे जौरा यह मौत घूमे। कोई बोल दे उसी को श्राप दे दें। तेरा नाश होगा। हो गया। किसी को आशीर्वाद दे दे। वह जो थोड़ा बहुत डले ढोए थे वह ऐसे नाश कर लिए।
कहते हैं :
दुर्वासा कोपे तहां ,समझ ना आई नीच। 56 करोड़ यादव कटे, मची रुधिर की कीच।।
बच्चों ने जरा सा मजाक किया था तीन-चार बच्चों ने, अब सारे यादव कुल के नाश का श्राप दे दिया। कट के मर गए। बताओ यह ?
बच्चों! गरीब दास जी कहते हैं
दुर्वासा कोपे तहां, समझ ना आई नीच। 56 करोड़ यादव कटे, मची रुधिर की कीच ।।
गरीब दास जी कहते हैं इस नीच दुर्वासा ने इतनी भी अक्ल नही आई ? दया नहीं आई ? 4-5 बच्चों ने शरारत कर दी। बालक है कर भी दिया करे। संत ऐसे श्राप देते हैं ? 56 करोड़ यादव कट कर मर गए पाप आत्मा ने क्या जुल्म कर दिया। यह ऐसे ही डले ढोए इन्होंने। मेरे बच्चों! आप कभी एकांत में बैठकर मनन किया करो इन बातों को। जो दास बतावै। यह God given है। दास के अपने घर का ज्ञान नहीं।
पुण्य आत्माओं! गीता ज्ञान दाता सातवें अध्याय के 18 वें श्लोक में तो यह बता देता है कि यह ज्ञानी आत्मा हैं तो उद्धार पर मेरी वाली घटिया गति में स्थित है। यही तक टिके हैं, फिर बताया है सातवें अध्याय के 19 वें श्लोक में कितना गूढ रहस्य है। की यह कोड वर्ड होते हैं यह वेद है। और इस वेद को गरीब दास जी ने अपने शब्दों में लिखा है साधारण भाषा में। यह बिल्कुल कलियर है साफ है। पर यह एक सामान्य ज्ञान लैंग्वेज होने के कारण लोगों ने पसंद नहीं करी। पसंद इन ब्राह्मणों ने नहीं करने दी। की यह क्या जाने अनपढ़ है ,अशिक्षित हैं कबीर। गरीबदास क्या जाने अनपढ़ हैं। गीता वेद संस्कृत के अंदर है। पुराण संस्कृत के अंदर है। यह सारी झूठ बोलते हैं। हमने यह बात माननी पड़ी। और कोई वश की बात भी नहीं थी ? क्योंकि हम भी अनपढ़ थे। अब आप शिक्षित हुए। Educated हो गए। अब देख आंख खोल दी। अरे बिलकुल झूठे यह तो कहीं भी सत का नाम नहीं ? बिलकुल सौ की सौ झूठ। हे भगवान! देख कैसा जुल्म।
अब क्या बताते हैं सातवें अध्याय के 19 वें श्लोक में गीता बोलने वाला कितना कलियर कर देता है - : मेरी भक्ति कर ले, यानी पहले यह भी ऐसे ही डले ढोया करते थे। आन उपासना किया करते थे। और "वासुदेव सर्वमिती स: महात्मा सो दुर्लभ:" वासुदेव का अर्थ होता है जिसका सब जगह वास हो। सर्वव्यापी कुल का मालिक। जिसके ऊपर कोई और मालिक ना हो। वहीं सबके धारण, यह बताने वाला की " वासुदेव सर्वमिति स: महात्मा सो दुर्लभ:" यह बताने वाला कि वासुदेव ही सब कुछ है सर्वस। सर्व कैसे?- सबका जनक वह है। सबकी उत्पत्ति करने वाला, सारी सृष्टि रचने वाला। और सबका धारण- पोषण करने वाला। आठवे अध्याय के 9 वें श्लोक में लिखा है " सर्वेस सर्वस्व दातारण" यानी सबका धारण - पोषण करने वाला वह मेरे से अन्य है। वह है सच्चिदानंदघन ब्रह्म, परम अक्षर ब्रह्म। तो यहां बताया है, कि ऐसा जो संत मिलेगा कि यहीं सारी सृष्टि के रचने वाला है। और वासुदेव यानी परम अक्षर ब्रह्म और वह कर्मों का दंड वह नाश करने वाला है। प्रारब्ध को वह बदल सकता है। यानी सबका मालिक है जो चाहे सो कर दे।
सतगुरु जो चाहे कर ही, 14 कोटी दूत जम डर ही।। ऊत भूत जम त्रास निवारै ,चित्रगुप्त के कागज फाड़ै।।
कहता है यह बताने वाला महात्मा सो दुर्लभ:। बच्चों! यह तो गीता बतावै। और एक उदाहरण आपको बताता हूं। एक रामराय नाम का उसे झूमकरा भी कहते थे। जैसे गांव में दूसरा नाम रख लिया करें। उसको पता चला कि छुड़ानी में कोई महापुरुष महात्मा रहता है। और उसने ऐसी गजब की वाणी बोल रखी है। क्योंकि गरीब दास जी का कोई शिष्य उनके गांव के तालाब पर सुबह-सुबह स्नान करके तालाब पर बैठ गया। सुबह-सुबह ब्रह्म वेदी का पाठ कर रहा था। वह भी वहां गया सुबह-सुबह फ्रेश वगैरा होने के लिए। वह फ्रेश होकर आ रहा था वापस। उसने आवाज सुन ली। बैठ गया वहां पर। काफी देर सुनता रहा, सुनता रहा फिर डिस्कस करी उस भगत से। उससे पूछा, कि क्या यह महात्मा अब भी है ? जीवित है यह ? जिसने यह वाणी लिखी है। क्योंकि पंजाब के लोग संतों की वाणी के बड़े कायल है। यह बहुत पसंद करते हैं। तो उसने बताया कि हां मेरे गुरुदेव जी संत गरीबदास जी हैं गांव छुड़ानी जिला वैसे जिला तो पहले रोहतक था । बहादुरगढ़ के पास है। यह गांव है आसपास। उसने सोचा भाई ऐसे महापुरुष से मिलना चाहिए। उसने सोच रखा था महात्मा की कल्पना कर रहा था वह। बड़ी-बड़ी सिर पर जटा होगी। और लाल - पीले कपड़े पहन रखे होंगे। गले में माला होगी। तिलक लगा रखा होगा। धूना आदि लगा रखा होगा । और बड़ा पहुंचा हुआ संत मिलेगा। वह घर से चल कर वहां से पैदल छुड़ानी गांव में पहुंचा । तो पूछ आदि कर सुबह-सुबह वहां पहुंचा। सुबह पहुंचा तो घर गया। घर पर कुछ 5 -4 बाहर के इधर- उधर के भगत आए बैठे थे। वह रोज ही आते थे। कुछ वहां सेवा करते थे उनके घर पर, चर्चा करते थे भगवान की। उनसे पूछा भाई गरीबदास जी कहां है? महाराज जी कहां है बाबा जी ? उन्होंने बताया जी वह खेतों में गए हैं अभी आ जाते हैं। बैठ जाओ। आ जायेंगे। आएंगे। कि कितनी देर में आएंगे ? की भाई यह नहीं पता ? मौज है उनकी। आवैं तो अब आ जावै। ना आवैं तो 12:00 बजे तक ना आवै। बैठकर मालिक की भक्ति करे। कोइ मिल जाए उसको समझाने लग जाते।
वह बोला भाई मैं वहीं मिलूंगा। उन्होंने बता दिया कि इस साइड में गए हैं। रास्ता गोर जाता है गोर, कच्चा रास्ता । और आगे एक अरहट लग रहा है अरहट उसके पास पावेंगे। वह उधर चला जा रहा था। उधर से गरीब दास जी पशुओं का चारा लेकर सिर पर जवार धोती कुर्ता जैसे हरियाणा के जाट किसान यानी सारे यहां के सभी लोग ऐसे ही पहनते हैं हरियाणवी । पहले पहना करते थे ऐसे ही धोती कुर्ता सिर पर साफा। और सिर के ऊपर वह गट्ठर जवार का। रामराय ने उससे पूछा। भाई मैंने गरीब दास बाबा से मिलना है। महाराज जी कहां सी है ? तो वह बोले भाई आजा मेरे साथ मैं बताऊंगा। की भाई मैंने सुना इधर आए हुए हैं। हां वह जा लिए वापस। आजा। मैं उनसे मिला दूंगा तुम्हें आजा। उनको पता था मलिक को गरीब दास जी को। यदि मैंने बता दिया, कि मैं हूं गरीबदास। तो यहीं से वापस हो लेगा यह भगत। क्योंकि इसकी कल्पना है जो इसने सोच रखा है साधु की वेशभूषा वह बना रखी है। यह सब यही मार खाते हैं । जब घर पर चले गए गरीब दास जी जाते ही वह सारे भगत खड़े हो गए, दंडवत प्रणाम किया। किसी ने गट्ठर लिया। और उसको बोले भाई बैठ जा तू यहां। सरदार जी बैठ जा। गरीब दास जी ने बैठा दिया। तो उस समय जब गरीब दास जी इधर- उधर हो गए , कपड़े लेने के लिए गए नहाने के लिए। एक से पूछा कि भाई महात्मा कौन सा है? की यही तो है गरीब दास। यही तो है। इतने में गरीब दास जी भी आ गए। अब उसके मन में यह सोची ओह! तेरा गजब होईयो। यह महात्मा किसने बना दिया ? यह तो जाट है हरियाणा का। अरे कैसा बहकाया मैं ? मैं तो बहुत गलत आया। यह साधू क्या ? यह तो किसान है मेरे जैसा। मेरे 900 बीघा जमीन है। इसका कुछ ज्यादा होगी। यह लोग इसलिए इसकी ज्यादा चापलूसी कर रहे हैं। अब वह चलने लायक रहा नहीं ? उसने कह दिया बैठ जा। खाना वगैरा बनावांगे खाना खाइये। भूख लग रही थी उसने सोचा चल खाना तो खा लेते हैं। वह नहाने लगे, स्नान करने लगे। तो धोती बांधने लगे। उससे कहा ले भाई मेरे हाथ को चोट लाग रही है झूमकरा। यह गांठ लगा दे। बेल्ट की तरह बांधा करते। तो बच्चो! गरीब दास जी ने कहा कि हे झूमकरा! मेरी उंगली के चोट लग गई मेरा हाथ से यह अड़बंध नही बंधता। अड़बंध कहते हैं धोती बांध कर और उसके ऊपर एक बेल्ट की तरह उसी का पल्ला बांधा करते पूरा। तो झुमकरा उठा उसके गांठ लगाने लग गया। तो कमर में से गांठ धोती निकल कर धोती को गांठ लग गई। ऐसा तीन बार किया। यानी पहले तो उसने सोचा धोखा हो गया । दूसरी बार उसने सोची उल्टी गांठ लग गई होगी इसलिए वापिस धोती के लग गई । तीसरी बार फिर ऐसे ही हुआ। और गरीब दास जी बोले अरे झुमकरा! मैं तो तेरे जैसा इंसान हूं। धोती के गांठ क्यों नहीं लगती तेरे से ? वह शरीर में से निकल आई। जब उसको भी एहसास हुआ कि धोती तो शरीर मे से निकल आई । तो भाई झूमकरा! क्या बात है, मैं तो तेरे जैसा किसान हूं। यह धोती कै गांठ नहीं लगी ? क्या बात है।
तो उसने ऊपर को देखा तो विष्णु रूप धारण कर लिया गरीब दास जी ने। क्योंकि वह विष्णु का उपासक था। चरणों में गिर गया। बिलकुल रोवे बुरी तरह। हे परमात्मा! माफ कर दो। मैंने तो बहुत गलत सोच आपके बारे में सोच ली । फिर बैठ गया टिक कर। तब परमात्मा ने उसको पूरा ज्ञान सुनाया। जब सारा ज्ञान समझ लिया। सारी बात समझ में आ गई। काफी देर लगी।
ओहो!
तब कहा कि हे भगवन! ऐसा ज्ञान आज तक किसी ने नहीं बताया ? मैंने कोई संत नहीं छोड़ा। मेरी बहुत जिज्ञासा थी। और ऐसा ज्ञान इस तरह का निर्णायक ज्ञान और यह सम्पूर्ण ज्ञान सतलोक और सचखंड का हमने कोई बताता नहीं देखा।
तब गरीब दास जी बोले:
सब गीता का मूल है राई झूमकरा। सूक्ष्म वेद समूल सुनो राई झुमकारा।।
तत्व ज्ञान कोई ना कह राई झूमकरा। पैसे ऊपर नाच सुनो राई झुमकरा।।
कोट्यो मध्य कोई नही राई झूमकरा। अरबों में कोई गरक सुनो राई झूम करा।।
नादी बादी लम्पपटी राई झुमकरा। कामी क्रोधी कुर, सुनो राई झूम करा।।
लालच नीच नकीब है राई झूमकरा। जिनसे साईं सुनो दूर राई झूमकरा।।
तत्व ज्ञान नहीं सुखदेव कहा राई झूमकरा। नहीं विश्वामित्र वाशिष्ठ सुनो राई झूमकरा।।
करुणामय बाल्मिक कू कहा राई झुमकरा। खुली दृष्टि अदृष्टि सुनो राई झूमकरा।।
सनकादिक नारद मुनि राई झूमकरा। तत्वज्ञान ध्रुव नहीं जाने सुनो राई झूमकरा।।
प्रहलाद पेज परवान है राई झूमकरा। साक्षी है शशिभान सुनो राई झूमकरा।।
जनक विदेही जगत मे राई झूमकरा। राजा योगी एक सुनो राई झुमकरा।।
गोरख जीते ज्ञान कर राई झूमकरा। सुखदेव दिया विवेक सुनो राई झूमकरा।।
दत नहीं तत में मिल रहा राई झूमकरा। नहीं नौ योगेश्वर नाथ सुनो राई झूमकरा।।
निरवासी निर्बान पद राई झूमकरा। जाकर विधा ना वाद सुनो राई झुमकरा।।
नाथ जलंधर नहीं तत मथा राई झुमकारा। नहीं भरथरी गोपी चंद सुनो राई झुमकारा।।
नहीं अमर कच्छ स्थिर भये राई झूमकरा। जो तत मिले करे आनंद सुनो राई झुमकरा।
सूधा सैन वाजिद है राई झूमकरा। पीपा और रैदास सुनो राई झुमकरा।।
नामा निर्गुण पद मिले राई झूमकरा। है तख्त कबीर ख्वास आप सुनो राई झूमकरा।
नानक दादू परस किया राई झूमकरा। तत्त्वे तत जुहार सुनो राई झुमकरा।
पिंड पुराण परचे भए राई झूमकरा। पुनरपी जन्म निवार सुनो राई झूमकरा।
ब्रह्मा, विष्णु ,महेश नहीं है राई झुमकारा। इस सब बाजी के खंब राई झूमकरा।।
ततज्ञान नहीं तीनो मिले राई झूमकरा। शब्द रचे आरंभ सुनो राई झूमकरा।।
सत कबीर बतलाइया राई झूमकरा। ततज्ञान निज मूल सुनो राई झूमकरा।।
शंकर शब्द लखाईया राई झूमकरा। धर पिंड अस्थूल सुनो राई झुमकरा।।
जिन शिव शक्ति उपाईया राई झूमकरा। है पूर्ण ब्रह्म कबीर सुनो राई झूमकरा।
दास गरीब दसो दिशा राई झूमकरा। वार पार नहीं अंत सुनो राई झूमकरा।
बच्चों! उसकी आंखें खुल गई सरदार जी की। चरणों में गिर गया। वहां लुधियाना के पास एक वासीयर गांव है वासीयर। उसमें आज भी संत गरीबदास जी का एक छोटा सा आश्रम बना हुआ है। उस दिन से ही वह लोग संत गरीबदास जी के यहां आने- जाने लगे। परमात्मा कबीर जी हम सब आत्माओं के पिता है। वह हमारे जनक है बच्चों। हम उससे दूर होकर उसी दिन से दुख उठा रहे हैं। हमें सुख वही जाकर मिलेगा जहां से हम आए हैं। सभी ग्रंथ प्रमाण देते हैं। सभी संत बताते हैं जिन्होंने भगवान को देखा। और सतलोक देखकर आए। की यह काल का लोक है। इसमें आपको स्वप्न में भी सुख नहीं मिलेगा। आप देखते हो प्रतिदिन किसी न किसी कारण से कोई दुर्घटना से, कोई रोग से, कोई हार्ट अटैक से कितने लोग मर रहे हैं। और जो बचे हुए हैं वह यह सोचते हैं ,कि हमारा अभी नंबर नहीं है। इतना तो मानते हैं कि मरे तो हम भी गें, पर अभी नहीं ? जो आज अखबार में आया हुआ है एक ही एक्सीडेंट के अंदर 9 आदमी मर गये जिसमें परिवार के दोनों भाई भी थे। अब बताओ इस गंदे लोक में किस आस पर जियेंगे वह माता-पिता जिनके दोनों पुत्र मर गए। बच्चों! आंखे खोलो तुम। इस गंदे लोक की व्यवस्था को ठीक से समझ लो। अब देखो संसार क्या चीज है ? यह परिवार क्या चीज है ? बिल्कुल स्पष्ट है।
एक लेवा एक देव दूतम। कोई किसी का पिता नहीं पुतम।।
ऋण संबंध जुड़ा एक ठाठा। अंत समय सब बारह बाटा।।
बिल्कुल कलियर है यह बात। लेकिन हमारे समझ में बहुत देर से आएगी। क्योंकि हमने यह ज्ञान कभी सुना ही नहीं ? और हमने इस व्यवस्था को फाइनल मान रखा है। की यह तो सबके साथ होता आ रहा है। मरेंगे तो मर जाएंगे। देखी जाएगी। अरे देखी क्या जाएगी ? बाद में क्या देखी जाएगी ? पहले देखना होगा। अब बताओ।
क्या बताते हैं।
यह सौदा फिर नाही, रे संतो! यह सौदा फिर नाहीं। यह सौदा फिर नाही।।
लोहे जैसा ताव जात है, काया दे सराही।
यह दम टूटे पिंडा फूटै , लेखा दरगाह माहीं।
तीन लोक और भवन चतुर्दश, सब जग सौदे आई।
दुगने तिगनै किए चौगुणे ,कीन्हूं मूल गवाई।
उस दरगाह में मार पड़ेगी ,जम पकड़ने बांहीं।
वा दिन की मोहे डरनी लागे ,लज्जा रहे के नाहीं।।
नर नारायण देही पाकर ,फिर 84 जाई।
इतना भगवान ने अपने जैसा रूप आपको दिया नर नारायण देह। और फिर भी तुम 84 लाख योनियों में जाओगे।
जा सतगुरु की मैं बलिहारी ,जो जामन - मरण मिटाई।
बांध पिंजरी आगे धर लिया, मरघट को ले जाई।
गरीब कुल परिवार तेरा सकल कबीला, मसलत एक ठहराई। जब मृत्यु हो जाती है सब एक ही राय करते हैं। उठाओ उठाओ।
कुल परिवार तेरा सकल कबीला, मसलत एक ठहराई।
बांध पिंजरी आगे धर लिया, मरघट में ले जाई। श्मशान घाट।
अग्नि लगा दिया जद लंबा, फूंक दिया उस ठाहिं।
वेद बांध फिर पंडित आए ,पीछे गरुड़ पढ़ाई।
नर सेती फिर पशुआ कीजै ,गधा बैल बनाई।
यह 56 भोग कहां मन बोरे ,कहीं कुरड़ी चरने जाई।
प्रेत शिला पर जाए विराजो ,पितरों पिंड भराई।
बहुर श्राद्ध खान कू आए ,काग भए कल मांही।
जै सतगुरु की संगत करते , यह सकल कर्म कट जाई।
अमरपुरी पर आसन होते, जहां धूप ना छाहीं ।
सुरति निरती मन पवन पियाना। शब्दे शब्द समाई।
गरीबदास गलतान महल में, मिले कबीर गोसाईं।।
कितनी अजब गजब वाणी है आत्मा को फोड़कर झंजोड़कर रख देगी।
यह सौदा फिर नाहीं रे संतो! यह सौदा फिर नाहीं।
मनुष्य जीवन का मिलना और मनुष्य जीवन के अंदर यदि सतगुरु पूर्ण नहीं मिला तो भी भक्ति करके भी फेल हुए।
आपको तत्वदर्शी संत प्राप्त, मूल ज्ञान प्राप्त, संपूर्ण अध्यात्म ज्ञान भक्ति मोक्ष मार्ग, भक्ति पद्धति वह आपको प्राप्त तो आप जैसी किस्मत वाले इस धरती पर प्राणी नहीं है। और जो मालिक की शरण में आएंगे जन्म ले रहे हैं या और वैसे जैसे तुम आए हो ऐसे भी आएंगे। वह सारे ही नेक आत्माए होंगी। और जो इनसे दूर रहेंगे वह बहुत पश्चाताप करेंगे। बहुत बुरी बनेगी उनके साथ।
क्या बताते हैं यह सौदा फिर नाहीं। सौदा क्या होता है?- जैसै व्यापारी लोग 10-20 लाख रुपए लेकर के दूसरे शहर जाते हैं। तो वहां सौदा खरीदते हैं। लाकर बेचते हैं। मुनाफा होता है। तो ध्यान से करते हैं तो शाहूकार हो जाते हैं। धनी हो जाते हैं। और यदि उस पूंजी से जो पूंजी लेकर गया है और वहां किसी होटल में रह कर उसी में से खा रहा है। उसी में से दारु पी रहा है। मौज कर रहा है। और सौदा करता नहीं ? तो वह कंगाल होकर लौटेगा। फिर जिससे कर्ज लेकर गया मजदूर लगेगा। तो यहां बताते हैं कि आप स्वांसो की पूंजी लेकर यहां पर आए हो इस जीवन की। और इसमें जो
दौगुने तिगुणे किये चौगुणे किन्हु मूल गंवाई।
जो अच्छी आत्मा है जिनको यह लगन लगेगी ज्ञान होगा वह इसका दौगुने तिगुने चौगुने कर लेंगे सेवा, सुमरन, दान करके। तो पुण्य आत्माओं! आपको पूर्ण परमात्मा मिल गए। पूर्ण सतगुरु मिल गए। तत्वज्ञान मिल गया। आपकी किस्मत के बराबर आज 21 ब्रह्मांड में कोई नहीं है मेरे बच्चों। इस रजा को बना कर रखियो। अब के निकल जाओ। मालिक की चरणो में पड़े रहो । चलो अपने घर। देखो कितना अच्छा स्थान है। वहा ना मृत्यु है ,ना बुढ़ापा है। ना किसी चीज की कमी नहीं है। सब पर सदा सुख रहता है।
FAQs : "विशेष संदेश भाग 3: काल ब्रह्म के संतों के असली चेहरे"
Q.1 काल ब्रह्म कौन है और उसे क्या श्राप मिला हुआ है?
काल ब्रह्म कबीर साहेब जी का सत्रहवां पुत्र है जिसकी उत्पत्ति एक पानी की बूंद से अंडा बनाकर हुई थी। कबीर साहेब जी ने ही काल ब्रह्म को श्राप दिया था जिस कारण यह हर रोज़ 1 लाख मानव शरीरधारी प्राणियों को मार कर खाता है और 1.25 लाख उत्पन्न करता है। इसी के कारण मनुष्य जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसा रहता है।
Q.2 सतगुरु की खोज करना क्यों ज़रूरी है?
सतगुरु की खोज करना इसीलिए ज़रूरी है क्योंकि केवल सतगुरु ही हमें सच्चा ज्ञान देकर जन्म-मृत्यु के रोग से बचा सकते हैं। केवल वे ही हमें मोक्ष प्राप्ति का सही मार्ग बता सकते हैं।
Q. 3 सतनाम और सारनाम का जाप करने से क्या लाभ मिलता है?
सतनाम और सारनाम का जाप करने से हमारा यम के दूतों से बचाव होता है। सतनाम और सारनाम का जाप करने वाले भक्तों पर काल का कोई आक्रमण नहीं होता क्योंकि ये सच्चे और शक्तिशाली मंत्र हैं। यह सच्चे मंत्र भक्तों के लिए ढाल का काम करते हैं।
Q.4 झूठे गुरु जनता को आकर्षित करने के लिए क्या-क्या तरकीबें अपनाते हैं?
झूठे गुरु मौन धारण करते हैं, भगवा कपड़े पहनते हैं, कानों में कुण्डल और गले में माला, माथे पर लाल पीले तिलक, सिर के और दाढ़ी के बड़े बड़े बाल रखते हैं, महान उपलब्धि या सिद्धि हासिल करने और चमत्कार करने का दिखावा करते हैं।
Q.5 मानव जीवन को अनमोल क्यों कहा गया है?
यह मानव जीवन बहुत अनमोल है क्योंकि यह 84 लाख योनियों को भोगने के बाद एक बार मिलता है। केवल मानव जीवन में ही हम सतगुरु की खोज कर सकते हैं और फिर पूर्ण परमात्मा की सच्ची भक्ति करके मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
Q.6 जो सतगुरु की प्राप्ति नहीं करते उनके साथ क्या होता है?
जो सतगुरु की प्राप्ति नहीं करते वे 84 लाख योनियों और पुनर्जन्म के चक्र में सदा फंसे रहते हैं।
Q.7 मानव जीवन का अंतिम उद्देश्य क्या है?
मानव जीवन का अंतिम उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति करके सतलोक चले जाना है। केवल सतलोक ही वास्तविक शाश्वत यानि अमर निवास स्थान है, जहां जाने के बाद न तो दोबारा पृथ्वी पर जन्म होता है और न मृत्यु का चक्र है। केवल सुख ही सुख है वहां पर इसलिए तो उसे सुखमय शाश्वत स्थान कहां जाता है।
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Ritik Rastogi
इस लेख में बहुत अच्छे ढंग से नकली गुरुओं की पोल खोली गई है। मैं हमेशा से ही नकली गुरुओं के खिलाफ रहा हूं, जिनमें सच्चे संत कहलाने के आवश्यक गुण नहीं होते। यह लेख सच्चे और नकली गुरुओं के बीच अंतर करने का एक बेहतरीन काम करता है। मुझे कबीर साहेब जी के वचनों में हमेशा सच्चाई नज़र आती है, वह एक महान संत थे।
Satlok Ashram
देखिए नकली गुरुओं के कारण ही लोग नास्तिक बन रहे हैं और ईश्वर में आस्था खो रहे हैं। नकली गुरु ही लोकवेद सुना सुनाकर, अंधविश्वास और पाखंड फैलाकर बताकर भोले-भाले भक्तों को गुमराह कर रहे हैं, जो की समाज में पाप को भी बढ़ावा दे रहा है। हम आपको यह बताना चाहते हैं कि कबीर साहेब जी केवल एक सतगुरु या संत नहीं थे, बल्कि वे स्वयं परमेश्वर हैं। वे सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान देने के लिए धरती पर अवतरित होते हैं। वर्तमान में नकली गुरुओं के अज्ञान को बेनकाब करने और मनुष्यों को भक्ति का सही मार्गदर्शन देने का कार्य तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी कर रहे हैं। अधिक जानकारी के लिए आप "ज्ञान गंगा" पुस्तक पढ़ें और विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर उपलब्ध संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को सुनिए।