विशेष संदेश भाग 2: पैसे के लिए अपना जीवन व्यर्थ न करें


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सत साहेब।

 सतगुरु देव की जय।

 बंदी छोड़ कबीर साहेब जी की जय।

 बंदी छोड़ गरीबदास जी महाराज जी की जय।

 स्वामी रामदेवानंद जी गुरु महाराज जी की जय हो।

बंदी छोड़ सतगुरू रामपाल जी महाराज जी की जय।

 सर्व संतो की जय।

 सर्व भक्तों की जय।

धर्मी पुरुषों की जय।

श्री काशी धाम की जय।

श्री छुडानी धाम की जय।

 श्री करोंथा धाम की जय।

श्री बरवाला धाम की जय।।

 सत साहेब।।।।

कबीर दंडवत्तम गोविंद गुरु, बंधु अविजन सोए। पहले भये प्रणाम तिन , नमों जो आगे होए।।

कबीर गुरु को कीजै दंडवतम, कोटि-कोटि प्रणाम। कीट न जाने भृंग कूं ,यों गुरु कर हैं आप समान।।

 कबीर सतगुरु के उपदेश का, सुनिया एक विचार। जै सतगुरु मिलते नहीं ,जाते नरक द्वार।।

नरक द्वार में दूत सब, करते खैचांतान। उनसे कबहूं नही छूटता ,फिरता चारों खान।।

कबीर चार खानि में, भरमता कबहूं ना लगता पार। सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।।

 जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी  सुख से बसियो, अमरपूरी के डेरे की।।

जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी  सुख से बसियो, सतलोक के डेरे की।।

 निर्विकार निर्भय तूही ,और सकल भयमान। ऐजी साधो और सकल भयमान।

सब पर तेरी साहेबी, सब पर तेरी साहेबी तुझ पर साहब ना।।

 निर्विकार निर्भय।।

परम पिता परमात्मा कबीर जी, कबीर जी की प्यारी संगत को दास का आशीर्वाद है। परमात्मा आपकी लगन अटल लगावै। इस गंदे लोक का दुख आपको याद रहे। अपने घर जाने की तड़प आप में विशेष बने । एक बात तो आपको याद बार-बार दिलाता है दास और आप भी महसूस करते हो आपको पता है, कि यहां ना रहेंगे ना कोई रहा है। तो फिर बीच का जो समय अपना है, मानव जीवन जो मिला है यह भक्ति के लिए मोक्ष के लिए शुभ कर्म करने के लिए प्राप्त होता है। यह कितना समय है आपके पास ?- 10-12 साल तक तो अबोध बच्चा होता है 15 तक, 16 तक। फिर जवानी की मस्ती आ जाती है शरीर स्वस्थ होता है। और फिर विवाह हो जाता है।  विवाह के बाद परिवार की लगन लग जाती है उसके पालन पोषण में। उसके उससे निमटता है इतने बूढ़ा हो जाता है। वृद्ध हो जाता है। वृद्धावस्था में कभी गोढ़े में दर्द, घुटने दुःखै, कभी सिर में दर्द, कभी दांत उखड़ गये। आंखों से दिख नहीं रहा B.P High , कभी शुगर की बीमारी। तो इतनी परेशानी आ जाती है इसके ऊपर। जीना हराम हो जाता है। तो इस इतने से काम को  देख लो आप यह प्रोसेस है इसका। यदि मोक्ष नहीं हुआ , पूरा सतगुरु नहीं मिला तो फिर अगले जन्म में क्या होगा ?-

फिर पीछे तू पशुआ कीजै, गधा बैल बनाई। यह 56 भोग कहां मन बोरै , कहीं कुरड़ी चरने जाई।। ओहो!

अब बच्चों! हम जिस सुख को सुख मानते हैं हम चाहते हैं धन हो, मंत्री बने, मुख्यमंत्री बने बस हमारी महिमा हो, यश हो। यह कहने से, सुनने से, कल्पना से कुछ नहीं होता। यह पिछले पूर्व जन्म के तप धर्म- कर्मो से प्राप्ति होती है। इस जन्म में यदि शुभ कर्म नहीं किये, अच्छे कर्म नहीं किये फिर वही के वहीं रह जाएंगे। यानी कोई शुभ कर्म बनेगा नहीं  ? अगले जन्म में फिर कुत्ते की, यानी पाएगा आज चाहे कोई किसी देश का राष्ट्रपति है। तो क्या बुरी बनेगी अपने साथ। देखो हम धन चाहते हैं निर्धन के मन में एक ही तड़फ होती है कि धनवान सुखी। धनवान सोचता है राजा सुखी। अब आपको एक छोटा सा उदाहरण देता हूं- : इब्राहिम सुल्तान अधम राजा भी था। धनी भी था। खूब पैसा था। 18 लाख घोड़े तुरा, अनगिण खजाना। और बकवाद करने में कसर नहीं छोड़ रखी थी। 16000 विवाह करवा रखे थे। तो भक्त आत्माओं!  परमात्मा ने  उस अपनी प्यारी आत्मा को उस नरक से निकाला जिसको वह सुख मान रहा था। यह विचार करो यह है वह तत्वज्ञान जो सार निकाल कर दे दिया आपको।

कोई तो कहता है मैं M.L.A बन जाऊं। आशीर्वाद दियो। हम उसको भगत ही नहीं मानते उसे कहते हैं तू जा राजनीति ही कर ले। फिर देख लिए जब तेरी दुर्गति हो जाए, तब आ जाइए। तो हमारा नियम हमारे भगवान का बताया है ,जितने भी नियम आपको दिए हैं। तो बच्चों! उस आपको खूब कथा सुना रखी है। सत्संग अनेकों  सुना रखे हैं। इब्राहिम सुल्तान कौन था?- यह सम्मन था। जिसने अपना बेटा काट दिया था अपने गुरुदेव की इज्जत और आबरू के लिए। उनको भोजन करवाने के लिए।

अब परमात्मा कहते हैं

"नुक्ते ऊपर रिझेगा रे" गरीब दास जी कहते हैं "नुक्ते ऊपर रीझेगा रे ,कोटि कर्म जल जाए तुम्हारे"

अब उसके मन में क्योंकि यह सत्संग इसलिए सुनाए जाते हैं ,कि आपकी आत्मा यहां से बिलकुल हट जा।  और केवल सतलोक में आस्था बन जा। उसकी सतलोक में आस्था बनी नहीं उस समय और यह पश्चाताप करता रहा, हे भगवान!  मैं धनी होता बेटा काटना नहीं पड़ता। हे भगवान!  मैं धनी होता। उस जन्म में भी मालिक ने उसको बहुत कुछ दे दिया था। लेकिन फिर भी वह उसकी इसी तड़प के कारण दे दिया। और वहीं उसकी जान का झाड़ बन गया। वह पार नहीं हो पाया। और फिर अगले जन्म में नौशेरवां का बादशाह बना। 70 गंज यानी 70 अरब संपत्ति थी। एक पैसा दान नहीं करें। परमात्मा ने  वहां जाकर उसको झटका दिया। कुछ थोड़ा बहुत दान करवाया। वही आत्मा अगले जन्म में इब्राहिम सुल्तान अधम बना। अब जैसे कर्म कर रखा है वह  फल तो भगवान देगा। लेकिन इसको  क्या चाटै? इस  सुख को और धन को और इस राज पाट को ।  अगले जन्म में कुत्ता बनेगा। परमात्मा को पता होता है। हम अनजान बालक होते हैं। इसलिए परमात्मा उस नर्क से निकालने के लिए इब्राहिम सुल्तान अधम के साथ उनके साथ कितना कष्ट उठाया दाता ने। एक जीव को निकालने के लिए कितने प्रयत्न किया दाता ने। और आप इसी तरह बच्चों इसी प्रकार परमात्मा देखो आपके लिए कितनी व्यवस्था कर रहा है। कहां से अपनी महिमा सुनवा रहा है।  कहां से आपको जगा रहा है। आपको प्रेरित कर रहा है बच्चो ! यह लोक अच्छा नहीं। इसमे तुम आंख बंद करके मत बैठो। इब्राहिम सुल्तान अधम मस्ती में था। बहुत साज बड़े ठाठ बाट थे। बहुत धनी राजा था। एक नौलखा बाग बनवा रखा था उसमे सोया करता  दिन में। कोई दिक्कत नहीं थी। उसको वह सुख मान रहा था।

कबीर साहेब कहते हैं झूठे सुख को सुख कहे, यह मान रहा मनमोद। यह सकल चबीना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद।।

 तो उस नरक से निकालना चाहा परमात्मा ने उसको। उनको पता था यह प्यारी आत्मा यह चार दिन की बकवाद है 10 दिन की। 5, 10 ,20  साल की, उसके बाद असंख जन्म कष्ट पावेगी। इसलिए उसको उस नर्क से निकालना चाहा।  और हम धन मांगते हैं भगवान से ?

तुम इतना मांगा करो-:

कबीर साई इतना दीजिए ,जिसमें कुटुम्ब समावै। हम भी भूखे ना रहे ,अतिथि ना भूखा जावै।।

इसमें सब कुछ मांग लिया। जा मैं कुटुम्ब समावै Requirement of the family परिवार की सब आवश्यकताएं  वर्तमान में आपको गाड़ी भी चाहिए। छोटा मोटा मकान भी सुथरा चाहिए। और भई रोटी दो रोटी अच्छी चाहिए। यह सब कुछ देगा। क्योंकि यह धनी है ,सेठ है, सारी सृष्टि का मालिक है। तुम उस जगत सेठ कबीर परमात्मा के बच्चे हो। यदि आप ठीक से चलोगे माता पिता के अनुकूल चलोगे तो क्या जैसा भी कोई मां-बाप है अपने बच्चों को बहुत सुख देना चाहता है। आप चाहे दुखी रह ले। तो परमात्मा उस प्यारी आत्मा को निकालने के लिए सतलोक से चलकर आए। जैसे आपको वेदों में कितनी बार ,अनेकों बार प्रमाण दिखाएं। पढ़- पढ़ कर सुनाएं। वीडियो बना रखी है। आप पढ़ते देखते हो।।  वेद प्रमाण करते हैं, कि परमात्मा ऊपर, सबसे ऊपर के लोक में बैठा है विराजमान है। वहां से चलकर आता है। अच्छी आत्माओ को मिलता है। उनको सच्ची राह दिखाता है भक्ति की। अपने मुख से बोल कर वाणी बोलता है। उच्चारण करके वाणी बोलकर गूढ़ ज्ञान तत्वज्ञान मूलज्ञान बताता सुनाता है। और वह अमृतवाणी और वह उस समय जब एक लीला करता है एक संत की, सतगुरु की उसके बहुत सारे follower हो जाते हैं। और उनमें वह नायक की तरह होता है। जैसे सेनापति सुशोभित होता है अपनी सेना के साथ। ऐसे उनका वह पूज्य होता है। और वह जो वाणी बोलता है वह उनके follower के लिये अनुयाईयों को बहुत आनंददायक होती है। बड़ी प्यारी लगती है क्योंकि वह भगवान की चर्चाओं से भरी होती है। और उस मालिक के मुख से उच्चारित होती है। तो यहां गरीब दास जी ने यही बताया है।

सुनत ज्ञान गलताना, पद पदे समाना।।

अमरलोक से सतगुरु आए ,रूप धरा कारवाना।

ढूंढत ऊंट महल पर डोले, बुझत शाह बियाना।

दूजा रूप धरा कासिब का, यात्री का, मुसाफिर का महल सराय बखाना। यह दो महल हमारे हैं तू पंथी फिरै अयाना।।

 तीजा रूप खवास का धारा ,फूलों सेज बिछाना। 3 कोरड़े तन पर खाए ,मारत चोट हैवाना।।

कहे खवास सुनो इब्राहिम, कैसा खिलमत खाना। एक घड़ी सेजां पर ओढै ,तन का चाम उड़ाना।

हेत हुसन सब दूर किया, दर्शा तख्त बिराना।

गैब ख्वास भये तिवारी, कंपन लगे प्राणा।

अमरलोक से सतगुरु आए।  ( ओय होय ) सुनत ज्ञान गलताना ,पद पदे समाना।

अपने सद्गुरु के मुख से सारा ज्ञान सुनकर और वह परमात्मा के द्वारा दी, बताई गई पद्धति पर गलतान हो गया। मस्त हो गया। लग गया।

लेकिन उससे पहले अमरलोक से सद्गुरु आए, रुप धरा कारवाना। एक ऊंटो वाले व्यक्ति का रूप बनाकर जो ऊंट पाला करते हैं। राजा के महल की छत के ऊपर जिस पर वह सो रहा था। वहां ऊपर से आकर प्रकट हो गए सतलोक से। और हाथ में लठ ले रखा उसकी छत पर मारे जोर-जोर से। शोर हुआ। इब्राहिम सुल्तान नींद से उठा, उसने कहा यह कौन बकवास कर रहा है ? पकड़ कर लाओ। सिपाही गए ,पकड़ लाए। पूछा कौन है तू ? परमात्मा बोले मैं एक ऊंटों वाला हूं। छत पर क्या कर रहा था? राजा मेरा ऊंट खो गया एक, गुम हो गया, मैं उसको खोज रहा था। देखूं आपकी छत पर मिल जाए तो। इब्राहिम राजा बोला अरे भोले व्यक्ति! यह राजा का महल है, छत पर ऊंट कभी चढ़ सकता है ? यह कभी नहीं हो सकता। बड़ा पागल। तो उससे पहले राजा ने कई महात्माओं को पकड़ - पकड़ कर जेल में डाल रखा था, कि मुझे भगवान बताओ दिखाओ

 तब कबीर साहेब ने कहा जैसे छत पर ऊंट नहीं चढ़ सकता ऐसे तेरी बकवादों से रब नहीं मिल सकता। खुदा नहीं मिल सकता। ऐसे कह कर अंतर्ध्यान हो गए। बस फिर कुछ दिन  बाद आपको सारी कथा सुन रखी हैं यह। एक यात्री का रूप बनाकर आए। यात्री मुसाफिर। पैदल चला करते थे रात हो जाती शहर में ,सराय में धर्मशाला में रुका करते थे। तो वहां राजा के महल में पहुंच गए हाथ में अपने कपड़े आदि ले रखे। जैसे उस समय यात्री चला करते थे। राजा बाहर बैठा था सैनिक साथ थे। वहां जाकर बोला अरे धर्मशाला वाले! ऐ सराय वाले! राजा की तरफ हाथ करके ,मैंने रात काटनी है। मैं यात्री हूं ,मुसाफिर हूं। और एक कमरा बता उसका किराया बता दे। राजा बोला बड़े भोले आदमी! ए भोले मुसाफिर! तेरे को पता है यह तू कहां खड़ा है? कि नहीं जी। मैं राजा हूं। और यह मेरा महल है यह सराय नहीं है। परमात्मा बोले आपसे पहले कौन था इसमें तेरे से पहले बता ? कि मेरे दादे परदादे थे। वह कहां गए ? वह अल्लाह खुदा को प्यारे हुए। और बच्चू तू कितने दिन रहेगा इसमें ? इसलिए मैंने सराय बताई। आंख खोल ले। यह कह कर अंतर्ध्यान हो गए। मूर्छित हो गया इब्राहिम। वह डर गया यह क्या फरिश्ता ? और उस दिन भी ऐसे ही हो गया था। उस दिन के बाद फिर अपने नौलखे बाग में जैसे प्रतिदिन विश्राम किया करता था वहां से गया। परमात्मा ने उस दिन, देखो बच्चों!  आपके लिये कितने कष्ट उठाए , एक बांदी का रूप बनाया स्त्री का। वैसे ही वेशभूषा बनाकर और उसका बिस्तर लगाया।

देखो

जो जन मेरी शरण है, ताका हूं मैं दास।

बच्चो! देखो  अपनी एक प्यारी आत्मा के लिए अपना वह, बच्चों वह हमारा बाप है। और हम इस शैतान के लोक में आकर शैतान हो गए। बिगड़ गए।  बताओ वह कितना कष्ट उठाया अपनी प्यारी आत्मा के लिए। कबीर साहेब कहते हैं।

जो जन मेरी शरण में है, ताका हूं मैं दास।

यह दास वहां एक गुलाम बने। एक बांदी का रूप बनाया, नौकरानी का। अपनी प्यारी आत्मा को इस काल के इस षड्यंत्र से निकालने के लिए। जिसको तुम राजपाट और सुख मानते हो यह तुम्हारा दुश्मन है। आगे क्या कहते हैं- :

दूजा रूप धरा कासिब का, महल सराय बखाना।

यह तो महल,  वह बोला परमात्मा ने गरीब दास जी बताते हैं कबीर साहेब ने अपना दूसरा रूप एक मुसाफिर यात्री का बनाया।  और इस महल को सराय बताया। और वह क्या बोला- यह तो महल हमारे हैं तू पंथी फिरै अयाना। यह हमारे महल है तू अनजान पंथी यात्री घूम रहा है। कहां आ गया ?

तीजा रूप खवास का धारा, फूलों से बिछाना।

 तीन कोरड़े तन पर खाए, मारत चोट हैवाना।।

वह शैतान अपने परमात्मा को बांदी समंझ कर उसने यह सोचा ,कि यह बांदी मेरी सेज पर कैसे लौट गई ?  परमात्मा ने उसका बिस्तर लगाया,  उस पर स्वयं लेट गए। बांदियो की वेशभूषा नौकरानियों की अलग होती थी। रानियां की अलग। उसने क्रोध में आकर कोरड़ा उठाया। एक कोड़ा इतना भयंकर दर्द करता है घोड़े को भी पसीने आ जाते थे। घोड़ों के लिए होता था। और वह उधर से दंड देने के लिए भी वही रखा जाता था। पटा ऐ पट ,पटापट तीन कोरड़े मारे, गुस्से में अपने मालिक के।  ( ओय होय) 

तीन कोरड़े तन पर खाए ,मारत चोट हैवाना।।

काह ख्वास सुनो इब्राहिम, कैसा खिलमत खाना। एक घड़ी सेजा पर पोढे ,तन का चाम उड़ाना।।

तीन जगह अलग - अलग निशान हो गए । और खाल उतर गई और हंसे भगवान। खूब हंसे। राजा के पसीने आ गए कि यह कोरड़ा लगे पीछे औरत हंस ले? उसका हाथ पकड़ा। वह परमात्मा हंस रहे थे पेट पकड़कर।  जैसे हम खूब जोर से हंसा करें।

 उससे बात पूछने के लिए हाथ पकड़ा। कि तू यह बता हंस कैसे रही है ? कि मैं इसलिए हंस रही हूं, कि मैं तो  इस तेरी गंदी सेज पर एक घड़ी सोई थी। मेरे तीन कोरड़े लगे। मेरी खाल उतर गई। और बच्चू तेरा क्या होगा ?  जो दिन - रात सोवै।  (ओय होय)

जो सोवै दिवस और राता। उनका क्या हाल विधाता।।

इतना कहते ही अंतर्ध्यान हो गए। अब बच्चों! आपको पता ही है पूरी कथा फिर  जंगल में घूमने गया, शिकार करने गया। वहां तीन कुत्ते लिए।  बहुत से प्रयत्न करके नरक से निकाला अपनी प्यारी आत्मा को।  (ओय होय)

फिर कहते हैं उसको जब ज्ञान समझ में आ गया ,कि अब तो बिलकुल नरक दिखने लग गया वह राजपाट।

गैब खवास भये तिहवारी, कंपन लगे प्राणा।

उतरी चीरी लई फकीरी, पहरा तोसा खाना।।

मुलमुल खासा दूर बगाया, ताखि पहर हमाना।

 कहते हैं वह सुंदर कपड़े राजशाही उतार के और अपना सामान्य एक कंबल लपेट लिया।

16 संहस सुहेली छोड़ी, 18 लाख तुराना।

सतगुरु शब्दे लेई फकीरी, इब्राहिम सुल्ताना।।

16 हजार औरते एक से एक सुंदर, 18 लाख घोड़े। और सतगुरु के शब्द से, उनके विचार सुनकर राज त्याग कर फकीरी सन्यास लिया। घर से निकल गया। इतना धन था वह बताया है थोड़ा सा वर्णन है।

हीरे मोती मुक्ता छोडे ,अरबों द्रव्य खजाना।

70 खान 72 उमरे ,तजे अमीर दीवाना।।

 मेवा मान बढ़ाई छोडी, अमृत भोजन खाना।

 नंगे पैरों भये प्यादे ,प्रगट छाड निशाना।।

घोड़े जोड़े सब ही छोड़ चले, अनंत फौज दिलखाना।

सार शब्द दिल अंदर भेद्या ,अविगत अमल दीवाना।।

चढत गयत, चढत गयंद इंद्र की नाई, सूरज अर्थ छिपाना।

सेना संग रंग दल बादल, गरद जात असमाना।।

कहते हैं इतने ठाठ थे इसके। जब हाथी के ऊपर चढ़कर आगे पीछे सेना चला करती थी दूसरे अपने राज्य जाता था शहर में। इंद्र की तरह था ठाठ बाठ थे ऐसे। उसकी सेना चलती थी धूल इतनी उठती थी आकाश में तूफान सा आ जाता था। गुमार  चस जाता था ,इतने ठाठ थे उसके। सूरज (सूर्यदेव) भी दिखना बंद हो जाता था उस धूल से। यह राजाओं की महिमा मानी जाती थी। जब यह परमात्मा की शरण में आ गए ,नाम लिया। शरण में आने के बाद  फिर परमात्मा ने कहा अब सबको समझाओ, आप मुसलमान भाई बच्चों को लाइन पर लगाओ। गुरुजी रूप में परमात्मा थे। क्योंकि यह तीन रूप में लीला करते हैं। एक बालक रूप में, एक ऐसे कहीं साधु संत रूप में कहीं डेरा बनाकर रहने लग जाया करते थे। वहां की आत्माओं को निकालते। और कभी जैसे प्रगट हुए गरीब दास जी के, आए फिर चले गए। ऐसे भी करते है। उस समय एक गांव में आश्रम बनाकर रहते थे ,लीला करते थे।

तो एक बार बताते हैं इब्राहिम सुल्तान मक्का में चला गया। उनका हज का समय था। और मक्का की तरफ पैर करके सो गया। मुसलमान भाई कहने लगे तू अनादर न कर भाई इन पैरो को इधर कर ले। तो बोला भाई कर दो मेरे पैर जिधर भगवान ना हो। खुदा नहीं है। तो चारों तरफ घुमा दिया। चारों तरफ मक्का साथ घूमे। ऊपर न कर दिए पैर। ऊपर न मक्का नीचे नहीं रहा।

दसों दिशा कू मक्का फेरा ,चरणों बांध कुराना। दास गरीब कबीर पुरुष कूं, अमर किए सुल्ताना।।

अब क्या बताते हैं कि

दसों दिशा कूं मक्का फेरा, चरणो बांध कुराना।

वह समझाया करते थे ,कि इस कुरान के अंदर कंप्लीट ज्ञान नहीं है। पुस्तक अच्छी है ,पाक पुस्तक है। लेकिन इसमें संपूर्ण ज्ञान नहीं है। और जो गुरु बनाओ, सतगुरु से नाम लो उसके पास संपूर्ण ज्ञान होता है। कुरान का भी ,पुराण का भी ,वेद का भी। लोग अपने जो है रूढ़िवादी हो चुके होते है वह कम हीं सुनते हैं। क्योंकि उस समय शास्त्रों का ज्ञान किसी को नहीं था। फिर भी प्रयत्न जारी रखा। कुछ लोगों को समझ में भी आ गई जिनको चाह थी भगवान की। तो बच्चों! इस प्रकार मालिक आज आपके लिए कसर नहीं छोड़ रखी उस परमपिता ने। देख आपको कैसे निकालने लग रहे है इस गंद से। निकले। तुम्हें यह सत्संग ना मिले तो जम जाता है ऐसे का ऐसा प्राणी। बेशक  ऊपर ऊपर से मंत्र भी करता रहता है। अच्छी बात है मंत्र करते हो, सेवा करते हो ,दान करते हो यह तो आपका धन जुड़ गया। यह तो आपके साथ रहेगा। अब बच्चों! जो आप सेवा , सिमरन, दान ,  भक्ति कर रहे हो यह जुड़ने लग रहा है आपका बैंक बैलेंस जमा हो रहा है खूब होगा। लेकिन आपकी आस्था यहां से निकलने की नहीं बनी तो यह तो आपके लिए दुश्मन बन गया। आपका जन्म होगा। फिर ठाठ हो जाएंगे। इंद्र बनोगे कभी ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश की पदवी पाओगे। बताओ ?  देवता बनोगे फिर पृथ्वी पर राजा बनोगे। और फिर ऐसे घसियारे होवोगे जैसे आज हो रहे हो। जब जा कर अकल ठिकाने आएगी,  इतने बुद्धि भ्रष्ट रवेगी। तो इन बातों को आपने ठीक से समझना होगा।

फिर क्या बताते हैं सुल्तान अधम ने आगे जाकर बताया है।  समझाने लगा जो मान नहीं रहे थे उनको।  छोटे-मोटे घर में सुख थे वही दिखाई दे रहे थे।

तब एक व्यक्ति को समझाया घर में कुछ नहीं था ? दो पति- पत्नी थे। एक गाय बांध रखी थी। अब उसको समझाने लगा आ जाओ भक्ति कर लो। भगवान का राह पकड़ लो। मैं राजा इब्राहिम सुल्तान अधम था। मैं छोड़कर आ गया सारा भगवान के लिए। यह दो दिन का है फिर पशु बनोगे, पक्षी बनोगे। दो दिन की आग में जलोगे। वह बोले तू अपना काम कर। आया है सुबह-सुबह शिक्षा देने। या तो तू इब्राहिम सुल्तान नहीं है ? झूठ बोलता है।  इब्राहिम सुल्तान अधम है तो तेरे जैसा मूर्ख नहीं। इतने ठाठ को छोड़कर धक्के खाता फिरै। अब बच्चों! उनकी बुद्धि के अनुसार बालक थे वह तो, अपने हिसाब से सही कह रहे थे। लेकिन जिसके साथ भगवान था और जिसको सब कुछ यह नरक दिखाई दे रहा था। और वह कैसे माने उनकी बाते ?

 रांडी ढांडी ना तजे। गरीब दास जी ने बताया है ,कि यह बोला इब्राहिम!  रांडी औरत और ढांडी एक गाय।

 

की, रांडी ढांडी ना तजे,  यह नर कहिए काग। यह बलख बुखारा छोड़ दिया, थी कोई पिछली लाग।।

यह पिछली लाग पिछले संस्कार थे कोई। आज मैं सब कुछ छोड़ आया। बच्चों आपकी भी यह पिछली लाग है। नहीं कौन उठै सुबह-सुबह नींद छोड़कर। काल तो सुलाता है, और फिर दुर्गति करवावै। फिर कुत्ता बनाकर गली में सुलावैगा। वहां भी उठने को मन नही करे। कुत्ते देखे हैं आपने ?  वह शहंशाह होते हैं,  बिल्कुल  निकट सी आ लेगी गाड़ी तब थोड़ा सा उठकर ऐसे साइड में होगा। जब बिलकुल सिर पर बाजले हैं। नही तो यह सोचै विश्राम कर रहा हूं। क्योंकि पहले महलों में था, वहीं आदत आज भी है। तो अब सुधारना और समझना पड़ेगा। बच्चों! एक तत्व ज्ञान परमात्मा ने जो बताया है उसके अतिरिक्त इस पृथ्वी पर किसी के पास भी तत्व ज्ञान नहीं है । और उस तत्व ज्ञान के बिना जीव का उद्धार नहीं है।

तो तत्व ज्ञान आज दास के पास है। या परमात्मा के पास था।  मेरे गुरुदेव के पास था।  मेरे गुरुदेव ने कहीं नहीं बताया किसी को इस दास के अतिरिक्त। और कबीर परमात्मा ने अपने बच्चे  गरीबदास को विशेष रूप से बताया। धर्मदास को बताया। लेकिन उस समय यह गुप्त ही रखना था। अब जाकर इसको खोलना था। एक छोटी सी वाणी सुनाते हैं कुछ उस परमपिता की महिमा की।

।।।अथ सुखसागर बोध से।।

 अविगत महल की सुन बात।  एका एक संग ना साथ।।

जासै हुआ सकल जहान। ओंकार पंच विमान।।

 की अब तुम्हें अविगत महल सतलोक की बात सुनाता हूं। और यहां जो गलतियां गलत साधना करते हैं वह भी बताता हूं। पहले परमात्मा अकेला था। एका एक संग ना साथ।

 जासै हुआ सकल जहान। ओंकार पंच विमान।। 

उससे ही सब की उत्पत्ति हुई। वह कौन है? वह आपको बता रखा है।

 ब्रह्मा ,विष्णु ,शंकर आद। अविगत ध्यान सुन समाध।।

 कृत्रिम खयाल बाजी कीन। पांचों तत्व है गुण तीन।।

 कुरंभ कच्छ मच्छा कीन। धौल और शेष शोभा दीन।।

 धरनी गगन पानी पवन। चन्द्र सूर चौदह भवन।।

चौरासी लाख कृत्रिम जीव। कबीर आप समर्थ पीव।।

सतगुरु किया कृत्रिम ख्याल। बाजी गैब गैबीचाल।।

 नाद और बिंद की है देह। जा में भ्रम कर्म संदेह।।

पांच पच्चीस तीनो माहीं। आवागमन हंसा जांही।।

 माया मूल का वासा। जौरा काल ‌ रहे हंस गिरासा।।

हंसा कौन विधि छूटै। के जौरा काल तिसे लूटै।।

अब जैसे परमात्मा गरीब दास जी कहते हैं इस जीव को कैसे छूटवावै। यह काल और यह मौत इसको लूट रहे हैं। जैसे धन जोड़ लिया आपने ,खूब बढ़िया भक्ति कर रहे हो। शास्त्रों वाली भक्ति आप कर रहे हो। मर्यादित हो। इतना धन इकट्ठा हो जाएगा पूछो मत। लेकिन फिर आपको ऐसे  ही यहीं रख लेगा। आपको फिर यहीं रख लेगा मुर्ख बनाकर।

हंसा कौन विधि छूटै। के जौरा काल तिसे लूटै।।

फिर क्या बताते हैं सतगुरु  मिले संत सुजान। तो यह मिटै आवा - जान।।

सतगुरु मिले संत सुजान। तो यह मिटै आवा- जान।।

की जन्म - मरण फिर बार-बार आना। और फिर मृत्यु होकर जाना। कोई  सतगुरु संत पूर्ण मिलै तब यह मिटै।

फिर बताते हैं जो गलत साधना करते हैं -:

नेमी नेम कर भूले। अधे मुख पींघ कस झूले।।

पंच अग्नि लगावे पीठ। सौदा ज्ञान सकल बसीठ।।

 जो नेमी कर्मकांड करते हैं। कोई पींघ सी डाल कर उसके ऊपर सहारा लेकर तपस्या करते हैं। कोई पांच धूने लगा कर तपस्या करते हैं। कोई मुंडित है, बिलकुल सब बाल आदि कटाकर सिर पर उस्तरा फिरवा कर साधु संत बना फिरै है। कोई बड़े-बड़े केश रखे है। बाल रखै।

मुंडित जटा जूटम भेष।  डूबा सकल बिना विवेक।। तो यह सारे बिना विवेक के बिना विचार के ठीक से तत्वज्ञान ना मिलने से सारे अपना जन्म बर्बाद कर रहे हैं।

 है व्रत उदासी ऐन। माया लागै मीठी सैन।।

 बागंबरिया ऊटम्बर ऊंट।  सो तो बंधे तन के बूट।।

गुदरिया बने बहुरंग। बिचरे फिरत है बिनंग।।

कुछ तो बिलकुल नंगे फिरै। और कुछ साधु संत बनकर सुंदर कपड़े लाल पहन के चले।

अलोनिया खात है नही लौन। दीजै पीठ पर तीस गौन।।

आज कुछ जैसे छोटी-मोटी साधना करते है और उनमें कुछ छोटा-मोटा अपना नियम बना रहे हैं ,कि हम नमक नहीं खाते। कोई कहते है हम प्याज नहीं खाते।  परमात्मा कहते हैं यह इस तरह की साधना से मोक्ष नहीं होगा। अगले जन्म में ऊंट या गधा बनोगे, तुम्हारी कमर के ऊपर नमक लादा जाएगा। फिर कहां भागोगे इससे ? यानी सच्ची साधना करो।

झरने बैठते हैं मूढ। जिमै पंच ग्रासम रुप।।

कुछ क्या करते हैं एक घड़े में सुराख करवा कर एक तिपाइ सी पर रखवा कर, ऊपर  स्टैंड बनवाकर  तीन-चार फीट का उसके नीचे बैठ जाते हैं सर्दियों में। अब देखो जो बेचारे डले ढो रहे हैं।

कि गरीब दास जी कहते हैं ,गरीब चारों युग में। कबीर साहब कहते हैं -:

चारों युग में संत पुकारे ,कूक कहा हमे हेल रे।  हीरे मानिक मोती बरसावे हम, यह जग चुगता ढेल रे।।

यह ढले ढोने वालो की बात बता रहे हैं।

एक है गुफा धारी सिद्ध।  सो तो पड़े जमके फंद।।

कुटीचर मांगते हैं चून। जन्म ने बीज बोया घून।।

 अर्पण करें बहुत अचार। पोथी लिए खर का भार।।

चीन्हा नहीं रमता राम।  कुटम्भ  ने हुए बे काम।।

अविगत आप है ल्योलीन। खोजी खोज कर यकीन।।

पहरैं मुद्रा एक कान। योगी योग का नही ध्यान।।

 कनपटिया कलंदर कूर। अविगत महल साहब दूर।।

 भरमी भ्रम की बाजी, के भूले पंडिता काजी।।  यह सारे भूल रहे हैं पंडित और काजी।

सन्यासी उदासी जान।  पाया नहीं सतगुरु ज्ञान।।

इनको जितने भी यह सन्यासी है, उदासी हैं ,षट दर्शनी है इनको सतगुरु का ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ। इसलिए भक्ति भी कर रहे हैं। तड़प भी रहे हैं। मार्ग ठीक नहीं मिला ? पर  बच्चों!  आपके ऊपर कैसी कृपा कर दी। आप इतनी अच्छी आत्मा हो मैं वर्णन नहीं कर सकता। कोई शब्द नहीं कोई कहां से शुरू करूं ,कहां पर आपकी महिमा खत्म करूं। पर तुम बालक हो बहुत भटक लिए, बहुत दुख उठा लिए इस गंदे लोक में। आप निकलो इससे। आज जन्म हुआ फिर मर गए।

 तो बच्चों! आपकी किस्मत की तुलना यदि मैं आज ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश से करूं तो वह कमजोर है आपके।

जैसे गरीब दास जी कहते हैं- :

ओम सोहं पालड़े, रंग होरी हो।  चौदह लोक चढ़ावे राम रंग होरी हो।

 तीन लोक पासंग धरै रंग होरी हो। तो ना तुले तुलाया राम रंग होरी हो।।

 ब्रह्मा, विष्णु , यह तीन लोक स्वर्ग,पाताल और 14 लोक यह एक सिमरन के सतनाम के सुमिरन के पासिंग भी नहीं है। तो आप कितना सुमिरन करते हो। तो आप इन लोको के मालिक क्या रह गए ?  जब यहीं एक आने के नहीं तुम्हारे सामने। तो आपको इतना अच्छा ज्ञान मिला है इसकी कदर करो। शिक्षित हो गए हो गए हो अब बालक नहीं रहे। किसी के बहकावे में मत आईयो।

सन्यासी उदासी जान। पाया नहीं सतगुरु ज्ञान।।  इनको यह ज्ञान नहीं मिला जो आज आपको मिला है।।

 एक है तर्क त्यागी तीर। अंदर बहुत माया भीर।।

 एक है डंडधारी डाग।  वन के कीजिएगें बाघ।।

 मोनी मोनिया रहते। क दोजक दूंद में बहते।।

एक है डंडधारी डाग।

यह डंडा लेकर फिरै। उसको डंडी महात्मा कहते हैं। कहते हैं वन में फिरेंगे ,बाघ बनेंगे यह।

मोनी जो बोलते नहीं , इशारों से बात करते हैं। कहते हैं मोनी मोनिया रहते। क दोजक दूंद में बहते।। नरक में जाएंगे यह।

पोनी करैं पवन उपास। नाम बिन तोड़ते हैं श्वास।।

पटन घाट में नही प्रीत। जिनको कह कौन अतीत।।

बजरी बांधते है सोय। कहो बिन बंदगी क्या होए।।

बांधे पवन का गुटका। क घुमर पान क्यों लटका।।

खुसरो के कहां है बिंद। मूर्ख समझते नहीं अंध।।

एक है मुकुट धारी चोर। वन खंड कीजिएंगे मोर।।

अब जैसे छोटे-छोटे वाक्यों में इतना गजब का ज्ञान भर रखा है गरीब दास जी ने। यह सैचुरेटेड ज्ञान है। जायदा को थोड़े में डाल रखा है। जैसे कैप्सूल बना रखे होते हैं। कहते हैं, कि तुम घर छोड़ गए ब्रह्मचारी हो गए अच्छी बात है बहुत। लेकिन ज्ञान ठीक नहीं ? भक्ति सही नहीं है  तो मोक्ष नहीं पा सकते। जैसे यह खुसरे हैं, हिजड़े है यह तो शुरू से ही ब्रह्मचारी है जन्म से ही। क्या यह मुक्ति पा लेंगे? कहने का भाव यह नहीं है की, कुछ तो बस इसी बात में अहंकारी हो जाते हैं हम।  जैसे सुखदेव में गड़बड़ थी यहीं की हम बाल ब्रह्मचारी हैं। हम स्त्री का मुंह भी नहीं देखते। आखिर में नाक रगड़नी पड़ी जनक विदेही के आगे ,जिसके 10 हजार रानियां थी। जब उसका स्वर्ग तक का ब्योंत हुआ। तो इन बकवादों से कुछ नहीं बने।  मनमुखी बातें यह लोक वेद सदा दुखदाई रहा है।

खुसरो के कहां  है बिंद। मूर्ख समझते नहीं अंध।।

 एक है मुकुट धारी चोर। वन  खंड कीजिएंगे मोर। की सिर पर मोर मुकुट पहनकर दुकानों पर पैसे मांगते फिरैं। अब  अगले जन्म में यह  कसर निकाल देगा काल तुम्हारी। तुम्हें मोर ही बनावैगा।

एक तो है नग्न है नागा। जिन्हें नहीं सूझता आगा।। यह नंगे फिरने लग रहे । भगवान के लिए भटक रहे हैं पर राह ठीक नहीं ? इनको आगा नहीं सूझ रहा। यानी भविष्य का ज्ञान नहीं। अगले जन्म में कुत्ते ,गधे बनाकर यह शौक इनका पूरा कर देगा। नंगे घुमा करेंगे।

सिंगी बांधते शैली , क कीजै बैलघर तेली।।

 टोपी कुबरी करवा। क भाण्डी नाम बिना भरवा।।

 आकाशी मोनी मुद्रा मूल। सो तो गये सतगुरु भूल।।

 जंतर भूप गुगल खेव। जिन जान्या नही दिल देव।।

 बैरागी विहंगम दूर। यो तो चाल सुहंगम सूर।।

 अब देखो जैनी जन्म क्यों हारया। क दरगह बीच मुंह काला।। अब जैनियो को कहते हैं, तुम कुछ तो नंगे फिरते हैं। कुछ साधना ऐसी कठिन करते हैं। कहते हैं आप पिछला इतिहास देख लो आपके 24 वें तीर्थंकर महावीर जैन जी का राजा बने, महाराजा बने, देवता बने, और कुत्ते, गधे और सूअर बने, क्या यही साधना है  ? इसी को मुक्ति कहते हो ?

जैनी जन्म क्यों हारया। क दरगह बीच मुंह काला।। की जैनियो मनुष्य जीवन को बर्बाद ना करो आगे बहुत दुख पाओगे।

सोम सुरती ना लागी। सो तो नहीं बैरागी।।

 दिगंबर डूगरी चढ़ जाई। बहुजल बहोर गोते खाई।।

मनसा मूल है माही। क माया लागी गल माही।।

 मदारी मदन का सिक्का। क नाम बिन खात है धक्का।।

 गलरी गाल क्यों पीटै। क सतगुरु संत ना भेंटे।।

बिंदा दे सिंधु लिलाट। यम के मारियेगें काट।

 बंकी बाट है भोंदू। भूले तुर्क और हिंदु।।

हदीरे पूजते है बहोर। यह सब गए गारत गोर।।

 सतगुरु साखी समंझ ले भाई।  क सारनाम रोशनाई।।

और सब ख्याली ख्वाब है बंदे। अंदर समझ ले अंधे।।

 गरीब भेषो से भगवंत का, महल दूर है दीप।

 मंद बसै सूझै नही ,ज्यों मोती मध्य सीप।।

अगमी अगम है रासा।  सतगुरु साखी समझ ले भाई। क सारनाम रोशनाई।।

 और सब ख्वाबी ख्याल है बंदे। क अंदर समझ ले अंधे।। 

हे अंदर के अंधे! समझले, परमात्मा का ज्ञान पूर्ण सतगुरु से मिले तो तेरी खैर है।

 अगमी अगम है रासा। तरगुण दूर कर पासा।।

पंथो से पुरातन राह।  नगरी नहीं पावै था।

भूले हैं विंटबी बाट। औघट पथ बांका घाट।।

 अविगत सरे कूं सैलान। हंसा धर है कोई ध्यान।।

गैबी गैब का डंका। क मकरी मन बीच मक्का।।

काबे की लखाऊं राह।  मस्तिक है मसी तला।।

यानी अब मुसलमान भाइयों को भी कह रहे हैं। हिंदुओं के साथ उनको भी बताया है ,की आजा तुझे असली काबे का राह बताऊं। सतलोक में  जहां भगवान बैठा है वह है काबा। वह है मंदिर। वह महल है। और उसके लिए मस्तिक आपकी मस्जिद समझो।

 कुफरी छोड़ दे कुफर्म। सरे का होएगा नफरम।।

 गऊ कु मार मत भाई। क मिट्टी मांस ना खाई।।

बकरी है सरे की रुह। सो तो मार डारी क्यों।।

मुर्गी अण्ड ना फोरो। की चश्मे सरे को जोड़ो।। की यह पाप ना करो ,भगवान की तरफ देखो। देख वहां जाकर क्या नजर मिलाओगे जिसके बच्चों को मार रहे हो ?

 सरे में होत है हिसाब। मुर्गी दूर कर कबाब।।

 हिनवानम हनोज ना मार। जै तुझे चाहिए दीदार।।

दिल को साफ कर हक्का। लगै नहीं गैब का धक्का।।

मन को साफ कर सच्चे ढ़ंग से भक्ति कर। नहीं तो कभी ऐसा झटका लगेगा , या तो अधरंग मार जाएगा। या कैंसर हो जाएगी या कोई बालक मर जाएगा। टक्कर मार कर रोवोगे। पता चलेगा दूसरे का दर्द कैसा होता है ?

मनी को पीस ले महीन।  सतगुरु का करो यकीन।।

 गुम्बज में बंग ना दीजै। क ऐता शोर क्यों कीजै।।

जो अजान करते हैं मुसलमान भाई कहते हैं भगवान बहरा नहीं है। वह अंदर की भी बात सुनता है।

 गुम्बज में बंग ना दीजै। क ऐता शोर क्यों कीजै।।

चींटी पायल बाजे पैर ,साहब सुनता है सब लहर।। 

यदि चींटी के पैर की पायल बन जा। चिंटीं का पैर कितना होता है । तो पायल क्या बनी ? यदि उसका भी  कोई शोर आवाज हो जाए मालिक उसको भी सुनता है।

 गुम्बज में बंग ना दीजै। क ऐता शोर क्यों कीजै।।

चींटी पायल बाजै  पैर, साहब सुनता है सब लहर।।

किताबा पुरुष की पढ़िये। अरसी अरस कू चढ़िये।।  ऊपर की किताब पढ़ जो सतलोक का राह बतावै।

शब्द तू मान ले मोरा। यह सब छोड़ दे तोरा।।

 सब देखत है रहमान।  क क्यों करता जुल्म शैतान।।

हकीकत समझ ले खूनी।  क इनमें रुह को सूनी।।

गरीब दोऊ दीन षटदर्शनम, इनका कहा बयान। एक पत्थर पानी बंधे, एक गुम्बज मसित पिछान।

हलीमी हेत कर हंसा। चीन्हो जात कुल वंशा।।

दीन्हा गर्भ में डेरा।  क संगाति कौन था तेरा।।

जब मां के गर्भ में था वहां अकेला दुख पा रहा था कोई नहीं था। और जिस दिन संसार छोड़कर जाएगा तेरे साथ कोई नहीं होगा। जिसके ऊपर तुम मुंह धो रहा है। और जिसके कारण अपने कर्म फोड़ रहा है। कबीर साहब कहते हैं

हिड़की दे दे रोवेगी हे सुरता! जब तू चालेगी अकेली।

टक्कर मार कर रोएगी हे आत्मा जब तू छोड़ कर जाएगी। कोई साथ नहीं होगा। वह कर्म रखे दिखाई देंगे।

 तो क्या बताते हैं।

हलीमी हेत कर हंसा। चीन्हों जात कुलवंशा।।

दीन्हा गर्भ में डेर।  क संगाति कौन था तेरा।।

जहां था घोरा धूंधूंकार। वहां तो नहीं था परिवार।।

 युक्ति योग जात न पात। एका एक संग ना साथ।।

रहता निराधारम धीर। वहां तो दिया चौसा खीर।।

जठराग्नि से लिया राख। अंतर नाम दीन्हा साख।।

कि वहां भी उस परमात्मा ने आपकी व्यवस्था करी। आपके शरीर के पोषण की।

वाचा बंध हो आया। धनी का नाम बिसराया।।

वहां तो वचन भरै था कान पकड़े था। संकल्प ले था हे भगवान! बाहर जाकर भूलूंगा नहीं आपको। हे परमात्मा!  देख लिया कोई नहीं किसी का। पूरा गुरु बनाऊंगा, बनाऊंगी जैसे भी आत्मा जिस शरीर को लेकर आती है। उसी भाव से बोलती है। लेकिन आत्मा पुलिंग है। स्त्रीलिंग नहीं है। फिर भी यहां आ कर हमारे दो रूप बना दिए। उसी तरह हमें संबोधित करना पड़ता है कि वहां तो तू वचन भरकर आया था।

गरीब दास जी कहते हैं

 गरीब उस समरथ की रीझ छुपाई, कुल कुटुंब से राता। और गर्भ के अंदर वचन भरे थे ,कहां गई वह बाता।।

अब भूल गया उन बातों को । जैसे अपने प्यारे मित्र को कोई वादा मिलापी करता है कहता है अच्छा! भूल गया उन दिनो को। देख उस दिन क्या कह रहा था। तो ऐसे याद दिलाते हैं आपको बंदी छोड़ कि आंखे किसी तरह खुल जा हमारी।

वाचा बंद हो आया। धनी का नाम बिसराया।।

अब पहला काम वही करा तुने आते जिसकी यह कह रहा था  कभी नहीं भूलू। अब फिर याद दिलाया जाता है बच्चों फिर पकड़ लो।

 माया की लगी है पवन।  बिसरया नाम छाया कौन।।

जगत का पैख ना पेखा। धनी का नाम ना लेखा।।

 बच्चों दिल तो करे है दो - तीन घंटे लगा ही रहूं ,लगा ही रहूं। भर दूं आपकी आत्मा को ,परमात्मा की इस अमर कथा से। ताकि आपके सारे मैल कट जाए और आपके चांदना हो। आपकी कसक बने उस परम पिता के प्रति। बच्चों!  ऐसे ही बनेगी। यह class attend  करो । आपने सत्संग जरूर सुन रखे थे पर आप यह सोच चुके थे फाइनल ज्ञान हो गया। अब औरो को समझाऐं। अच्छी बात है। लेकिन फिर से संभलो एक बार। सावधानी बरतो। बुराइयों से बचो। आधीनी लाओ।

आधीनी के पास है ,पूर्ण ब्रह्म दयाल। मान बढ़ाई मारियो ,बेअदबी सिर काल।।

तो इन सभी फॉर्मूलों को लगाते हुए अपना कल्याण करवाओ। परमात्मा की इस महिमा को कई- कई बार याद किया करो दिन में। कि हे परमात्मा!  कैसी दया करी। हम ऐसे कर्महीन इंसान आपको कभी याद भी नहीं किया करते और आपने फिर संभाल लिए आकर।

सौ छलछिद्र करूं , अपने जन के काज। हिरणाकुश्प ज्यूं मार दूं ,नरसिंह धर के साज।।

आज देखो कहां से और क्या हो रहा है बच्चों! आंख खोल लो।  इसी से तोल लो अपने परमात्मा की समर्थता। ठीक है। परमात्मा आपको मोक्ष दे सदा सुखी रखें।

सत साहेब।।।