सदगुरुदेव की जय।।
बंदी छोड़ कबीर साहिब जी की जय।।
बंदी छोड़ गरीब दास जी महाराज जी की जय।।
स्वामी रामदेवानंद जी गुरु महाराज जी की जय हो।।
सर्व संतो की जय।
सर्व भक्तों की जय।
धर्मी पुरुषों की जय।
श्री काशी धाम की जय।
श्री छुडानी धाम की जय।
श्री करौंथा धाम की जय।
श्री बरवाला धाम की जय।
सत साहिब।।।
कबीर दंडवतम गोविंद गुरु, बंधु अविजन सोए।
पहले भए प्रणाम तिन, नमो जो आगे होए।।
जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की।
सदा साहेबी सुख से बसियो, सतलोक के डेरे की।।
जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की।
सदा साहेबी सुख से बसियो, उस अमरपुरी के डेरे की।।
निर्विकार निर्भय तूही और सकल भयमान।
ऐजी साधो और सकल भयमान।
सब पर तेरी साहेबी, सब पर तेरी साहेबी, तुझ पर साहिब ना।।
निर्विकार निर्भय तूही।
अध्यात्म मार्ग के अंदर गुरु का महत्व बहुत है। क्योंकि परमात्मा भी आकर के गुरु रूप में ही लीला किया करते हैं। कबीर साहिब बताते हैं -:
गुरु समान नहीं दाता रे जग में, गुरु समान नहीं दाता।।
गुरु समान नहीं दाता रे जग में, गुरु समान नहीं दाता।।
वस्तु अगोचर देई सतगुरु ने, भली बताई बाता।
वस्तु अगोचर देई सतगुरु ने, भली बताई बाता।
काम क्रोध कैद कर डारे, लोभ के घाली नाथा।।
गुरु समान नहीं दाता रे जग में, गुरु समान नहीं दाता।
काल करे सो हाल ही कर ले, फेर मिले नहीं साथा।
चौरासी में जाए पड़ोगे, भुगतोगे दिन राता।।
गुरु समान नहीं दाता रे जग में, गुरु समान नहीं दाता।।
शब्द पुकार- पुकार कहत हैं, कर लो संतन साथा।
शब्द पुकार - पुकार कहत है, कर लो संतन साथा।।
सेवा बंदगी करो सतगुरु की, काल निवावै माथा।।
गुरु समान नहीं दाता रे जग में, गुरु समान नहीं दाता।।
कह कबीर सुनो भई धर्मन, सकल कर्म कट जाता।
कहे कबीर सुनो भई धर्मन, सकल कर्म कट जाता।
पर्दा खोल मिलो सतगुरु से, पहुंचो लोक सुनाथा।।
गुरु समान नहीं दाता रे जग में, गुरु समान नहीं दाता।
कह कबीर सुनो भई धर्मन, सकल कर्म कट जाता।
कहे कबीर सुनो भाई धर्मन सकल कर्म कट जाता।
पर्दा खोल मिलो सतगुरु से, पहुंचो लोक सुनाथा।।
गुरु समान नहीं दाता रे जग में, गुरु समान नहीं दाता।।
बच्चों सतगुरु परमात्मा होते हैं। जैसे प्रधानमंत्री जी का कोई nominated व्यक्ति होता है, वह उसका नुमाइंदा होता है। वह प्रधानमंत्री ही होता है। वह उसकी पूर्ण पावर लेकर आता है। तो उसके प्रति आपने सतगुरु जैसी यानी परमात्मा जैसी आस्था श्रद्धा और भाव बनाना होगा।
वस्तु अगोचर देई सतगुरु ने।
गुप्त वस्तु यानी सतनाम दे दिया।
गरीब सोहं शब्द हम जग में लाए, सारशब्द हमने गुप्त छुपाए।।
फिर कहा कि:
कोटि ज्ञान हमने जग में भाख्या, मूल ज्ञान हमने गुप्त ही राख्या।।
जैसे गरीब दास जी कहते हैं:
गरीब सतगुरु मिले तो इच्छा मेटै, पद मिल पदे समाना।
चल हंसा उस लोक पठाऊं, जो आदि अमर अस्थाना।।
परमात्मा ने बताया है कि:
काम क्रोध कैद कर डारै, लोभ के डाली नाथा।
यानी यहां से इच्छा हटा दी, यह बकवाद छुड़वा दी और मालिक के पास चलने के लिए प्रेरित किए।
काल करे सो हाल ही करले, काल करे सो हाल "यानी तुरंत करले" फिर मिले नही साथा। फिर यह टाइम नहीं मिलेगा ऐसा सतगुरु, ऐसा मनुष्य जीवन और यह कलयुग का समय, बिचली पीढ़ी का। बच्चो फिर दांव नहीं लगेगा। आप अपनी किस्मत सराहा करो। सौ- सौ बार शुक्र मनाया करो उस परमपिता का। आप तो बालक हो आपको पता ही नहीं था यह इतनी अनमोल वस्तु हमें प्राप्त होने जा रही है। आपको तो अब धीरे-धीरे, यह समझ में आएगी और आप इतने दृढ़ हो जाओगे कि रात को भी उठकर विचार किया करोगे कि क्या बुरी बनती यदि दाता की शरण में नहीं आते तो।
कहते हैं:
काल करें सो हाल ही कर ले, फिर मिले नहीं साथा। चौरासी में जाए पड़ोगे, भुगतोगे दिन राता।।
गुरु समान नहीं दाता रे जग में।
बच्चों आपका तो पता नहीं, मैने तो यह सौ बार पढ़ ली। हजार बार सुना दी। आज भी कलेजा मुंह को आता है यह सुन- सुन कर कि हे परमात्मा! कैसी भूल पड़ी थी? कैसा जुल्म होता हमारे साथ और इसीलिए मैं आपके पीछे पड़ रहा हूं। क्योंकि तुम भी उसी परमात्मा के बच्चे हो। मैं दास भी आपकी तरह भ्रमित था। खोज थी इस राह की पर मिल नहीं रही थीं। तो नाम मिलने के दिन से ही कोशिश थी आत्मा से कि सबको बताऊं- समझाऊं। नाम देने का आदेश भी नहीं था उससे पहले मैं बहुतों को समझाया करता। लोगों को गुरुजी से नाम भी दिलाता। बहुत तड़प थी ये देखकर कि लोगों को बहुत भूल लग रही हैं, उनका अनमोल जीवन नष्ट हो रहा है। अब देखो एक-एक वाणी क्या-क्या कहती है। हमें क्या प्रेरित करती है। 84 में जाय पड़ोगे अगर ये भगवान कबीर साहब वाली भक्ति नही करोगे, भुगतोगे दिन राता। फिर क्या कहते हैं- :
शब्द पुकार- पुकार कहत है, कर लो संतन साथा।
सेवा बंदगी करो सतगुरु की, काल निवावै माथा।।
गुरु समान नहीं दाता रे जग में।
कहे कबीर सुनो भई धर्मन, सकल कर्म कट जाता।
पर्दा खोल मिलो सतगुरु से, पहुंचो लोक सुनाथा।।
गुरु समान नहीं दाता रे जग में, गुरु समान नहीं दाता।।
अब बच्चों परमात्मा अपनी प्यारी आत्मा धर्मदास को समझा रहे हैं और उसके माध्यम से हमें भी संकेत करते हैं। पर्दा खोल मिलो सतगुरु से, यानी कोई कपट मत रखो मालिक से, यानि जब सतगुरु के साथ जुड़ते हो तो बिल्कुल सच्ची आत्मा से जुड़ो। जरा सी भी बकवाद करोगे तो भगवान रुष्ट हो जाएगा।
गुरु से लगन कठिन है भाई।
लगन लगे बिन काज ना सरता, लगन लगे बिन काज ना सरता, जीव प्रलय हो जाई।।
गुरु से लगन कठिन है भाई।।
जैसे पपीहा प्यासा बूंद का, पिया - पिया टेर लगाई।
जैसे पपीहा प्यासा बूंद का, पिया - पिया टेर लगाई।
प्यासे प्राण निकल जा बेशक, प्यासे प्राण निकल जा बेशक और नीर ना भाई।।
गुरु से लगन कठिन है भाई।।
लगन लगे बिन काज ना सरता, लगन लगे बिन काज ना सरता, जीव प्रलय हो जाई।।
गुरु से लगन कठिन है भाई।।
जैसे मृगा शब्द स्नेही, शब्द सुनने को जाई।
जैसे मृगा शब्द स्नेही, शब्द सुनने को जाई।
शब्द सुने और प्राण दान दे, शब्द सुने और प्राण दान दे, तन की रह सुध नाहीं ।
गुरु से लगन कठिन है भाई।
लगन लगे बिन काज ना सरता, लगन लगे बिन काज ना सरता, जीव प्रलय हो जाई।।
गुरु से लगन कठिन है भाई।।
कैसे सती चढ़ी चिता पर, अपने पिया लौ लाई।
अग्नि देखकर डरै नहीं मन में, पिया संग जल जाई।।
गुरु से लगन कठिन है भाई।
लगन लगे बिन काज ना सरता, लगन लगे बिन काज ना सरता, जीव प्रलय हो जाई।।
गुरु से लगन कठिन है भाई।।
दो दल सन्मुख आन लड़े हैं, शूरा लेत लड़ाई।
दो दल सन्मूख जब आन लड़े हैं, शूरवीर शूरा लेत लड़ाई।
टूक - टूक हो गिरे धरती पर, टूक - टूक हो गिरे धरती पर, मैदान छोड़ ना जाई।।
गुरु से लगन कठिन है भाई।
लगन लगे बिन काज ना सरता, लगन लगे बिन काज ना सरता, जीव प्रलय हो जाई।।
गुरु से लगन कठिन है भाई।।
छोड़ो तन अपने की आशा, निर्भय हो गुण गाई।
छोड़ो तन अपने की आशा, निर्भय हो गुण गाई।
कहे कबीर ऐसा हो हंसा, कहे कबीर ऐसा हो हंसा, सहज मिले सतगुरु आई।।
गुरु से लगन कठिन है भाई।।
बच्चों इतने अजब गजब के प्रमाण दिए हैं। इतनी लगन आपकी लगनी चाहिए जैसे पपीहा एक पक्षी होता है। वह केवल आकाश से बरस रही बूंदो का पानी ही पीता है। वह पानी मिलेगा तो पी लेगा लेकिन इसके अतिरिक्त वह दूसरा जल नही पीता। चाहे उसकी मौत ही क्यों ना हो जाए। इसी प्रकार भक्त को अपने कबीर भगवान के अतिरिक्त और अपने गुरु के अतिरिक्त स्वप्न में भी किसी की इच्छा नही होनी चाहिए। ऐसी लगन सतगुरु में भक्त की लगनी चाहिए।
फिर बताते हैं मृग के बारे में जिसके अंदर एक कान विषय प्रबल होता है। शब्द सुन कर वह अपने आप शिकारी के पास चला जाता है चाहे वह उसे मार दे। तो इसी प्रकार कहते हैं दो दल सन्मुख आन लड़े हैं शूरवीर लेत लड़ाई। यानी जब आपस में लड़ाई होती है तो सैनिक मैदान में खड़े हो जाते हैं। शूरवीर टूक, यानी सैनिक टुकड़े-टुकड़े होकर मर जाएगा पर मैदान छोड़कर नहीं जाएगा। तो इसी प्रकार यह रण का मैदान हमारा है। हमारी लड़ाई अज्ञान और ज्ञान की है। काल शैतान और दयाल की है। इसमें भी आपकी लगन अपने परमात्मा के प्रति ऐसी बनेगी तो बात बनेगी।
जैसे गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है, कि हे पार्थ! तू सर्व भाव से उस परमेश्वर की शरण में जा। उसकी कृपा से ही तू परम शांति को और सनातन परमधाम को प्राप्त होगा। इस पर आठवें अध्याय के प्रथम श्लोक में अर्जुन ने प्रश्न किया कि वह परमात्मा कौन है? जो आपने सातवें के 29 में परम बताया हैं जिसके जानने के बाद और कोई दूसरी पूजा नहीं करता, जन्म मरण से छुटकारा ही चाहता है, वह तत्व ब्रह्म क्या है? इसका उत्तर गीता ज्ञान दाता ने आठवें के 3 में दिया कि वह परम अक्षर ब्रह्म है। यानी अर्जुन को उस परम अक्षर ब्रह्म की शरण में जाने को कहा है।
वह परम अक्षर ब्रह्म कौन है? यह गरीब दास जी ने बताया है।
गरीब अनंत कोटि ब्रह्मांड का, एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर है, कुल के सृजनहार।।
गरीब सब पदवी के मूल हैं, सकल सिद्धी है तीर।
दास गरीब सत्पुरुष भजो, अविगत कला कबीर।।
लेकिन आख़िर वह कबीर कौन है? इसका निर्णय भी उन्होंने दिया हैं
गरीब हम सुल्तानी नानक तारे, दादू को उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद नही पाया, वह काशी माहे कबीर हुआ।।
ये वही कबीर जी हैं जो धर्मदास जी को मिले। गरीब दास जी कहते हैं हम सभी इब्राहिम सुल्तान, बाबा नानक, संत दादू जिसने पार किए वही हमारा सतगुरु है। वह काशी वाला धानक जुलाहा कबीर हैं। वह है सब का मालिक।
इसका प्रमाण दादू जी ने अपने ग्रंथ में भी दिया है
जो-जो शरण कबीर के, तिर गए अंत अपार।
दादू गुण केता कहे, भाई कहत न आवै पार।।
कबीर कर्ता आप है, दूजा नहीं कोई।
दादू पूर्ण जगत को भक्ति दृढ़ावत सोई।।
ठेका पूर्ण होवे जब, सब कोई तजे शरीर।
दादू काल गंजे नहीं, जपे जो नाम कबीर।।
आदमी की आयु घटे, तब यम घेरे आए।
सुमरन किया कबीर का दादू लिया बचाए।।
मेट दिया अपराध सब, आए मिले क्षण माहीं।
दादू संग ले चले, कबीर चरण की छाहीं।।
दादू जी बता रहे हैं कि कबीर परमात्मा ने मेरे सब अपराध नष्ट कर दिये। मेरे पाप खत्म कर दिए और अपने साथ ऐसे ले चले जैसे चरणों की छाया मे बचाव करके काल से निकाल लिया हो।
सेवक देव निज चरण का, दादू अपना जान।
भृंगी सत कबीर ने, कीन्हा आप समान।।
दादू अंतर्गत सदा छिन- छिन सुमिरन ध्यान,
वारुं नाम कबीर पर, पल- पल मेरे प्राण।।
सुन-सुन साखी कबीर की, काल निवावै माथ।
धन-धन तीनों लोक में, दादू जोड़े हाथ।।
यानी एक कबीर साहब की महिमा सुन- सुन कर, उनकी वाणी सुनकर, उनका जिक्र सुनकर काल नतमस्तक हो जाता है। इतनी महिमा हैं उस मालिक की तीनो लोकों के अंदर जिसे देखकर दादू जी हाथ जोड़ रहे है।
केहरी नाम कबीर का, विषम काल गजराज।
दादू भजन प्रताप से, भागे सुनत आवाज।।
यानी यह काल भी छोटी शक्ति नहीं है। जैसे हाथियों का राजा होता है गजराज, वह उन सबसे ताकतवर होता है। लेकिन कबीर जी केहरी यानी बब्बर शेर के समान हैं जिसकी दहाड़ के सामने वह गजराज भी लीद कर के भाग लेता है।
पल-पल नाम कबीर का, दादू मनचित लाए।
हस्ती के असवार को, स्वान काल नहीं खाए।।
यहाँ दादू जी ने प्रमाण दिया हैं कि जो कबीर साहेब की शरण में है वह समझो हाथी पर बैठे हैं और काल कुत्ते के समान है। यानी अब उसकी पहुंच वहां तक नहीं रही।
सुमरत नाम कबीर का, कटै काल की पीर।
दादू दिन-दिन ऊंचा, परमानंद सुख सीर।।
दादू नाम कबीर की, जै कोई लेवै ओट।
उनको कबहूं लागै नहीं, काल बजर की चोट।।
और संत सब कूप हैं, केते झरिता नीर।
दादू अगम अपार है, दरिया सत कबीर।।
अब ही तेरी सब मिटै, जन्म मरण की पीर।
स्वासं-उस्वांस सुमरले दादू नाम कबीर।।
कोई सर्गुण में रीझ रहा, कोई निर्गुण ठहराए।
दादू गति कबीर की, मोसे कहीं न जाए।।
दादू नाम कबीर का, सुनकर कर कांपै काल।
नाम भरोसे नर चले, बांका ना होवे बाल।।
जिन मोकूं निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार।
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजनहार।।
जिन मोकूं निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार।
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजन हार।।
बच्चों, मालिक आपको काल के कष्ट से बचाए। अपनी शरण में रखें। अपनी छत्रछाया में रखें ताकि काल के कष्ट की कोई भी आंच आप तक न आए।
बच्चों आप कबीर साहेब की शरण में रहो और तन मन धन सब परमात्मा की तरफ लगा दो। यानी गुरु को सतगुरु का रूप मानकर भक्ति करनी होगी। जैसे आपको बताते रहते हैं
गुरु से लगन कठिन है भाई।
लगन लगे बिन काम ना सरता, लगन लगे बिन काज ना सरता । जीव प्रलय हो जाई। गुरु से लगन कठिन है भाई।।
जैसे पपीहा प्यासा बूंद का, पिऊ- पिऊ लौ लगाई।
प्यासे जान निकल जा बेशक और नीर ना भाई।।
गुरु से लगन कठिन है भाई।।
जैसे पपीहा एक छोटा सा चिड़िया जैसा पक्षी होता है। वह जब आकाश में बादल छाते हैं तब अपनी आवाज लगाता है। पपीहा पी,पी,पी पानी के लिए पुकारता है। वह यदि बारिश हो जाती हैं तो उस जल को पीता है लेकिन पृथ्वी के जल को नहीं पीता। चाहे वह प्यास से मर ही क्यों ना जाए।
इसी प्रकार इसका उदाहरण परमात्मा कबीर साहब ने दिया हैं कि जब तुम पपीहे की तरह हो जाओगे और अपने सतगुरु और गुरु के अतिरिक्त किसी से भी स्वप्न में भी कोई लाभ नहीं चाहोगे। दुखी हो, चाहे सुखी हो। चाहे धनी रहो, चाहे निर्धन हो जाओ। चाहे कुछ भी होता दिखे। यानी इस प्रकार पतिव्रता पद प्राप्त कर लोगे और परमात्मा के प्रति इतने समर्पित हो जाओगे, स्वप्न में भी अन्य देव आपके नहीं आएगा तब आपकी बाँह परमात्मा पकड़ेगा और जब वह बाँह पकड़ लेगा फिर देखना, आप हैरान होते चले जाओगे कि हे परमात्मा! ऐसी कृपा कैसे हुई हम निकम्मों पर? गरीब दास जी ने बताया है
गरीब पतिव्रता जमीं पर, ज्यों- ज्यों धर है पांव।
समर्थ झाड़ू देत है, नहीं कांटा लग जावै।।
परमात्मा कबीर जी गरीब दास जी को बताते हैं -
जो जन मेरी शरण है, ताका हूं मैं दास।
गैल- गैल लाग्या फिरुं, जब तक धरती आकाश।।
परमात्मा बताते है कि मैं दास, गुलाम, नौकर हूं उसका जिसने पतिव्रता पद प्राप्त कर लिया हैं। जैसे मां-बाप बच्चों के नौकर होते हैं। वे नहलाते धुलाते और बच्चों को कपड़े पहनाते हैं यानी हर तरह से उनका ध्यान रखते हैं। तो यह नौकरी की तरह तो हुई और साथ ही साथ बहुत प्रेम भी होता हैं बच्चों में। तो इसी प्रकार जब हम इसकी शरण में आ जाएंगे तब यह दाता हमारे को इतना ही प्यार देगा।
शरण पड़े को गुरु संभालें, जान कर बालक भोला रे।
शरण पड़े को गुरु संभालें, जान कर बालक भोला रे।
कहे कबीर तुम चरण चित राखो, ज्यों सूई में डोरा रे।।
कह कबीर तुम चरण चित राखो, ज्यों सूई में डोरा रे।।
मानत ना मन मोरा साधो, मानत ना मन मोरा रे।
बार-बार मैं यह समझाऊं, जग में जीवन थोड़ा रे।।
दुविधा दुरमति चतुराई में, जन्म गया नर तोरा रे।
अब भी आन मिलो सतगुरु से, करो गुरु ज्ञान पर गौरा रे।।
बच्चों जब तक व्यक्ति को तत्वज्ञान नहीं होता तब तक इंसान कोई भी अच्छा काम नहीं करता। वह दुविधा में ही रहता है कि क्या करूं? क्या नहीं करूं ? यह भक्ति ठीक है या यह भक्ति ठीक नहीं है? और काल दुर्मति यानी कुबुद्धि के कारण सारे उल्टे काम करवाता है। लेकिन व्यक्ति जब सतगुरु की शरण में आ जाता हैं तो परमात्मा उसे बहुत प्यार देता है, रक्षा करता है, पोषण करता है और दुख निवारण करता है।
गरीब जो जन मेरी शरण है, ताका हूं मैं दास।
गैल-गैल लाग्या फिरुं, जब तक धरती आकाश।।
पतिव्रता जमीं पर, ज्यों- ज्यों धर है पांव।
समर्थ झाड़ू देत है, ना कांटा लग जावै।।
जब आप इस पद पर आ जाओगे, समर्पित हो जाओगे। स्वप्न में भी किसी अन्य देवी- देवता का इष्ट रूप में सुमिरन नहीं करोगे। उस समय मालिक आपकी बाँह पकड़ेगा। जैसे आपको बहुत बार बताया है कबीर साहेब अपनी प्यारी आत्मा गरीबदास जी को साथ लेकर सतलोक गए और उन्हें ऊपर के सब लोक दिखाएं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश के धाम दिखाएं। नर्क और स्वर्ग दिखाएं। 21 ब्रह्मांड का सारा प्रकरण दिखाया। सारी व्यवस्था दिखाई। फिर अक्षर पुरुष के सात शंख ब्रह्मांड एक दृष्टि से दिखाएं। उनको पार करके फिर भंवर गुफा में गए। भंवर गुफा पार करके फिर सतलोक पहुंचे। सारी व्यवस्था दिखाकर अपने बच्चे को वापस छोड़ा। इसी दौरान वे धर्मराय दरबार में भी गए जहां पर धर्मराज यानी न्यायाधीश रहता है। वह सबके अकाउंट रखता है, पाप-पुण्य का लेखा रखता है जिनके अनुसार उनको आगे जो कुछ भी देना-लेना हैं उनको करता है। उसके सामने ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी विवश है। क्योंकि वह भी कर्मों के आधीन है। इनको भी अपने कर्म भोगने पड़ते हैं। केवल परमात्मा कबीर जी की शरण में आने के बाद परमात्मा प्रारब्ध के भी कर्म काट देता है और पूर्व जन्म के संचित पाप कर्मों का भी नाश कर देता है। लेकिन करता उसका है जो इस पतिव्रता पद पर आ जाता है और सच्चे नाम की सच्चे दिल से भक्ति करता है।
धर्मराज दरबार में, देई कबीर तलाक।
मेरे भूले चूके हंस को, तू पकड़िये मत कजाक।।
21 ब्रह्मांड के एक चीफ जस्टिस को जाकर धमकाया कबीर साहब ने और वह खड़ा होकर, कुर्सी छोड़कर, हाथ जोड़कर बोलता है
बोले पुरुष कबीर से, धर्मराय कर जोड़।
तेरे हंस को चंपू नहीं, मोहे दोहाई लाख करोड़।।
फिर कहते हैं -:
मद हारी जारी नरा, भांग तंबाकू खाहीं।
परदारा परघर तकै, उनको लू की नहीं।।
धर्मराय विनती करें, सुनियो पुरुष कबीर।
उनको तो मैं पकड़ूगां, और जड़ हूं तोक जंजीर।।
क्योंकि
वह कर्मों सेती रत हैं, मुख से कहैं कबीर।
उनको निश्चय पकडूंगा, जड़ हूं तोक जंजीर।।
यानी धर्मराज कहता है कि जिनके पिछले संस्कार जमा है और पाप है प्रारब्ध में। आज वह बेशक आपका नाम लेते हैं उनको तो मुझे दंड देना पड़ेगा। क्योंकि वह मेरे अकाउंट में है, वह पूरा कराऊंगा। वह मेरे वश से बाहर हैं। इस पर गरीब दास जी बताते है कि कबीर साहब ने मेरे वाला अकाउंट उठाया और वहीं फाड़ दिया। कबीर साहेब बोले:
कर्म भ्रम ब्रह्मांड के, मैं पल में कर हूं नेश।
जिसने हमारी दोही दी, सो करो हमारे पेश।।
उसके बाद गरीब दास जी ने नीचे आकर जो बातें बताई वह अमर ग्रंथ रूप में लिपिबद्ध हुई।
यम किंकर कर जोड़ चलें, तिस देख रे।
धर्मराय के अंक मिटावै लेख रे।।
जीव जूनी नहीं जा, बांह ठाढै गही।
दरगाह मंझ हजूर पकड़ छेकी बही।
सुन मंडल सतलोक अगमपुर धाम है।
धन बंदी छोड़ कबीर तुम्हारा नाम है।।
गरीब दास जी बताते हैं कि यम किंकर के दूत यहां के लाठ साहब को भी घसीट कर ले जाते हैं यदि वह सतभक्ति नहीं करता। लेकिन कबीर साहब को देखते ही भयंकर विकराल शरीऱों वाले यम के दूत उनको हाथ जोड़कर दूर चले जाते हैं और जब में उनके साथ गया तो मेरे सामने धर्मराज के दरबार में कबीर साहेब ने मेरी बही फाड़ दी यानी वह पैड जहां मेरा अकाउंट लिखा गया था। छेकी मतलब फाड़ दी।
फिर कहते हैं
जीव जूनी नहीं जाहीं, बांह ठाढै गही। ठाडे मतलब समर्थ ने।
यह हमारी हरियाणवी भाषा का शब्द है ठाडै यानी जो ताकतवर होता है। कई कहते हैं भाई इस पहलवान के साथ कुश्ती कर ले। तो दूसरा कहता है यह मेरे से ठाडा है यानी सक्षम है मैं नहीं लड़ सकता।
आपको एक उदाहरण देता हूं। एक बार किसी व्यक्ति की बहन के यहां बारिश हो गईं। उस समय ज्यादातर लोग किसान थे। भाई भी और बहन भी। बहन जहां विवाह कर रखी थी, वहां जमीन अच्छी थी। उस समय खेती बारिश पर निर्भर होती थी। आज से 50 साल पहले यह व्यवस्था लगभग सब जगह ही थी। बहुत ही कम स्थानो पर नहर का पानी सिंचाई के लिए होता था। भाई को पता चला कि बहन के यहां बारिश हो गई तो भाई अपने बैल लेकर, अपना हल लेकर बहन की मदद करवाने चला गया। उसको दूसरे खेत में भेज दिया और उसका जीजा दूसरे खेत में खेत बहाने चला गया। खेतों से वह परिचित था क्योंकि आता - जाता रहता था। वहां दिन में सारा दिन काम किया। दोपहर को बैलों को पानी पिलाने के लिए गया तो उस खेत के आसपास एक जोहड़ी थी तालाब जैसी। वह उस तलैया में बैलों को जल पिलाकर आया।
वहां पास ही एक मंढी थी। एक छोटा सा चबूतरा एक दो-ढाई फीट का बना हुआ उसे मंढी बोलते हैं। उसमें 5 किलो गुड़ भेली रखी थी। पहले इकट्ठा ही 5 किलो की भेली बनाया करते थे स्पेशल इन पीरों के लिए, देवताओं के चढ़ाने के लिए। जिसे अलग से शुरू में ही निकाला जाता था। बाकी छोटी-छोटी पेड़ी बनाते थे। उसके भाई ने, उस भगत ने वह सारा गुड़ उठा लिया और साथ ले आया। कुछ फोड़ फाड़ कर स्वयं खाया। बाकी बैलों को खिला दिया। अपना काम करके शाम को वह घर आ गया और सो गया। उसके स्वप्न में एक साढे 4 फुट का आदमी धोती पहने हुए जैसे मुसलमान पीर होता है ऐसा आया और यह बोला “तूने मेरा गुड़ खा लिया? तेरी हिम्मत कैसे हो गईं? कहने लगा तू ठाडे की शरण में है। ठाडे की शरण में है तू ,बच गया। नहीं तो तुझे मारता और तेरे बैलों को मारता। आज के बाद उधर मत आ जाना।” यह कहकर चला गया।
उस आदमी को देखकर डर तो उसको भी लगा कि यह क्या बला आ गई? लेकिन हिम्मत हो गई कि मैं भगवान की शरण में हूं यानी बंदी छोड की शरण में हूँ। यह पीर स्वयं ही हार मान गया और इस तरह उसका हौसला बुलंद हुआ। सुबह उसने अपनी बहन से पूछा कि बहन! ऐसे-ऐसे वहां एक गुड़ रखा था मंढी के ऊपर। मैं पानी पिलाने गया था बैलों को। मैंने उठा लाया। मैंने खा लिया। कुछ बैलों को खिला दिया। मैंने सोचा उसे वहां कुत्ते खाते! और फिर सपने में एक व्यक्ति आया जो पीर जैसा था और ऐसे-ऐसे मेरे से बोला कि तुझे मारूं, तेरे बैलो को मारता। बच गया तू ठाडे की शरण में है। यह बात सुनकर बहन रोने लग गई। वह बोली अरे तूने यह क्या किया? तू बच कैसे गया? वह तो किसी को छोड़ता ही नहीं। जो कोई उसके आइटम को उठा लेता है। वह उसको मारता और पशुओ में नुकसान कर देता है। ऐसे टक्कर मारते हैं बैल पशु और चिल्ला-चिल्ला कर मर जाते है। वह अपने पति से बोली तूने इधर क्यों भेजा मेरा भाई ? उसके ऊपर गुस्सा हो रही। तो वह भाई बोला बहन तेरे अब भी यकीन नहीं हो रहा? वह तेरा शेर हाथ जोड़कर गया। तू कहां भटक रही है नादान। आजा, अपने भगवान की शरण में।
बच्चों! आत्मा फूट जाती है, यह संसार मर रहा है, भटक रहा है और अपने भगवान को पहचान नही रहा। आपके ऊपर जो कृपा दाता ने की, यह अनहोनी, अनमोल कर रखी है। मालिक की इस रजा को संभाल लो, बच्चों। इसको बच्चों के लेख मत समझो। यह क्या होगा यह 2 दिन का जीवन है। ऐसे ही पैर पीट कर मर जायेंगे। राजे- महाराजे चले गए जिनके इतिहास सुना करते। आज उनका कोई नामों निशान नहीं। ऐसे गंदे लोक में किस चीज को अपना समझ रहे हो? अब जैसे शुरुआत हुई थी कि
दुविधा दुर्मति चतुराई में जन्म गया नर तोरा रे।
अब भी आन मिलो सतगुरु से, करो गुरु ज्ञान पर गौरा रे।।
अब सतगुरु बताते हैं
मन तू चल रे सुख के सागर, जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।
कोटि जन्म तुझे भ्रमत हो गए, कुछ नहीं हाथ लग्या रे।
कूकर, सूकर, खर भया बौरे, कौवा हंस बुगा रे।।
मन तू चल रे सुख के सागर, जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।
कोटि जन्म तू राजा कीन्हा, मिटी न मन की आसा।
भिक्षुक होकर दर-दर घुमा, मिला न निर्गुण रासा।।
मन तू चल रे सुख के सागर, जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।
इंद्र कुबेर ईश की पदवी, ब्रह्मा वरुण धर्मराया।
विष्णु नाथ के पुर को पहुंचा, बहुर अपूठा आया।।
मन तू चल रे सुख के सागर, जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।
असंख्य जन्म तुझे मरते हो गये, जीवित क्यों नही मरे रे।
द्वादश दर मध्य महल मठ बोरे, बहुर न देह धरै रे।।
मन तो चल रे सुख के सागर ,जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।
दोजख भिश्त सभी तै देखे, राजपाट के रसिया।
त्रिलोकी से तृप्त नाहीं, यह मन भोगी खासिया।।
मन तू चल रे सुख के सागर, जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।
सतगुरु मिले तो इच्छा मेटै, पद मिल पदे समाना।
सतगुरु मिले तो इच्छा मेटै, पद मिल पदे समाना।
चल हंसा उस लोक पठाऊं, जो आदि अमर अस्थाना।।
मन तू चल रे सुख के सागर, जहां शब्द सिंधु रत्नागर।
चार मुक्ति जहां चंपी कर है, माया हो रही दासी।
चार मुक्ति जहां चंपी कर है, माया हो रही दासी।
दास गरीब अभय पद परसे, मिलै राम अविनाशी।।
मन तू चल रे सुख के सागर, जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।
अब सतगुरु क्या बताते हैं कि मन तू सुख के सागर चल रे। इस गंदे लोक में क्यों कष्ट उठा रहा है? यहां कोटि जन्म तुझे भ्रमत हो गए, कुछ नहीं हाथ लगा रे। कूकर सूकर (कुत्ता), गधा, खर (गधा) भया बोरे, कौवा हंस बुगा रे।
कोटि जन्म तू राजा कीन्हा, मिटी ना मन की आसा। क्या इन्ही चक्कर में रहोगे? आज मनुष्य जीवन हुआ, संतान हुई, संपत्ति हुई या ना हुई। इस तरह इसमें फूले फूले रहते हो और फिर मर जाओगे। कोई संस्कार मनुष्य का बचा तो एक मनुष्य जन्म फिर हो जाएगा। फिर यही प्रोसीजर, प्रोसेस। फिर मर जाओगे। फिर जन्म हो गया। फिर यही प्रोसेस। कोई खाक है यह जीवन? इसलिए वहां चलो जहां जन्म- मरण नहीं होता। आपके लिए यह विश्वास होना कठिन है कि सचमुच वहां पर ऐसा सुख है। क्योंकि आप इस गंदे लोक की व्यवस्था में ऐसे लीन हो गए, ऐसे रत हो चुके हो, इसमें इतने अभ्यस्त हो गए हो कि बस यही फाइनल दिखाई दे रहा है और ऐसा ही हम को ज्ञान भी सुनाया गया कि जन्म-मृत्यु बनी रहेगी। कुत्ते, गधे, सूअर भी बनना पड़ेगा। क्या कोई बात हुई यह? फिर भक्ति का क्या फ़ायदा?
तो आपको यह पता चला कि कोटि जन्म तूझे भ्रमत हो गए, कुछ नहीं हाथ लगा रे। आख़िर हाथ क्या लगना चाहिए था? हाथ लगने वाली चीज है परमात्मा की महिमा जिसे आप सुन रहे हो। यह ज्ञान यज्ञ, ध्यान यज्ञ, धर्म यज्ञ और हवन यज्ञ। यह पांचों यज्ञ आपसे करवाई जाती है। यह आपके हाथ लगेगा। समय निकालकर इसको जरूर किया करो और इसकी लूट लूटा करो।
फिर बताते हैं कोटि जन्म तू राजा कीन्हा, जैसे महावीर जैन जी की एक जीवनी के अंदर आपको दिखाया जाता है कि वह कितनी बार राजा बना? कितनी बार देवता बना? और फिर कितनी बार फिर वह कुत्ता, गधा और सूअर बना? भाड़ में जाओ ऐसे देवता पद को, जहां पर ऐसी दुर्गति फिर तैयार रहे।
तो बच्चों!
कोटि जन्म तू राजा कीन्हा, मिटी न मन की आसा।
भिक्षुक होकर दर-दर घूमा, मिला न निर्गुण रासा।
यानी तुम इंद्र स्वर्ग के देवता बने इंद्र भी बने, कुबेर यानी धन के देवता भी बने। ब्रह्मा, विष्णु, महेश की पदवी तक भी आपने प्राप्त कर ली।
असंख जन्म तुझे मरता हो गए, जीवित क्यों नही मरै रे। जीवित मरना यह है जैसे सुबह-सुबह नींद सताती हैं। लेकिन आप जीवित मर गए और आपने तुरंत पलंग छोड़ दिया और भगवान की कथा सुनी। आप मालिक के लिये छोटे-मोटे काम भी छोड़ देते हो ताकि सत्संग सुन सको और इसी तरह बुराई छोड़ देते हो। तो इसको कहते हैं जीवित मरना। इस तरह से आप जीवित मरने का अभ्यास कर रहे हो और एक दिन आपको इसमें सफलता मिलेगी।
द्वादस दर मध्य महल मठ बोरे, बहुर ना देह धरे रे।।
यानी 12वां द्वार पार करके, वहां पर आपका सतलोक ठिकाना है जो कि भंवर गुफा पार करने पर मिलता हैं फिर वहां जाने के बाद आगे जन्म- मृत्यु नहीं होगी।
दोजख- भिश्त सभी ते देखे राजपाट के रसिया।
यानी यह गलत साधनाएं करके तू स्वर्ग भी गया, नर्क भी गया, राजा भी बना लेकिन फिर भी आपको संतोष नहीं मिला। इस मन को तीन लोक भी मिल जाए तो भी इसको चैन नहीं मिलेगा। पहले तो यह सोचता है कि सरपंच बन जाऊं फिर सरपंच बनकर सोचता है कि चेयरमैन बनूं तब बात बनेगी, चेयरमैन बन जाता है तो सोचता है M.L.A. बनने पर बात बनेगी, ज़्यादा लोग सम्मान करेंगे। M.L.A. बनने के बाद भी बिल्कुल संतोष नहीं क्योंकि यह सोचता है कि मंत्री बनने का दांव लगे। मंत्री बनने के बाद समझ में आती है कि मुख्यमंत्री ही है यहां पर तो सब कुछ। लेकिन फिर मुख्यमंत्री भी प्रधानमंत्री के आधीन तो फिर सोचता हैं कि पूरे राष्ट्र पर राज करूं। उसके लिए मेहनत करता है और उसी में मृत्यु को प्राप्त हो जाता हैं फिर गधा बनकर यहीं धक्के खाता हैं। कहते है काल तुम्हारी ऐसे दुर्गती कर रहा है। फिर सतगुरु बताते हैं
सतगुरु मिले तो इच्छा मेटै, पद मिल पदे समाना।
चल हंसा उस लोक पठाऊं, जो आदि अमर अस्थाना।।
मन तू चल रे सुख के सागर, जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।
यानी सतगुरु मिलेगा तो यहां की सब बकवाद याद दिला कर, यहां की सब इच्छाओं को नष्ट कर देगा यानी समाप्त कर देगा। आपको इतना जबरदस्त ज्ञान हो जाएगा कि आप कहेंगे कि
सांई इतना दीजिए, जिसमें कुटुंब समावै।
हम भी भूखे ना रहे, अतिथि न भूखा जावे।।
तो आपकी यहां की इच्छा जैसे यहां की सुविधा जैसे मकान, गाड़ी घोड़े आदि गजब की देगा दाता। लेकिन जब आप इसके हो जाओगे तब और यह आपको अपना मान लेगा जब आप पतिव्रता पद पर आ जाओगे। फिर यह समर्थ आपकी जीवन रूपी राह में झाड़ू देगा। यह कोई डूम भाट के गीत नहीं है ? दास कोई भाट भिखारी नहीं है ? दास तत्व ज्ञान को अच्छी तरह समंझ कर इस मैदान में कूदा है। आपको बताया हैं कि
दो दल सम्मुख आन लड़ैं, शूरवीर लेत लड़ाई।
टूक- टूक हो पड़े जमीं पर, मैदान छोड़ ना जाई।
यह तो युद्ध का मैदान हो गया, हमारे आमने-सामने काल हैं। इस समय में कायर होकर अगर हम इस स्थान को छोड़ देंगे तो हमारे जैसा कोई दुष्ट नहीं। अब चाहे जिए या मरे।
वैसे भी हम कोई बुराई नहीं कर रहे हैं, कोई पाप नहीं कर रहे, केवल परमार्थ के लिए संघर्ष कर रहे हैं। आपको ऐसे दृढ़ होना पड़ेगा। जैसे गरीब दास जी कहते हैं
कच्चा हीरा कृच होवे, नहीं सहै घण मार।
ऐसा मन यह हो रहा, जब लेखा ले करतार।।
यानी हीरे की परख के लिए उसे एक अहरन के ऊपर लोहे के खूटें के ऊपर रख कर घण मारते हैं जो कि लगभग 5 किलो का होता हैं। अगर उसमें निशान भी पड़ गया तो वह एक आने का नहीं और अगर उस पर निशान भी नहीं पड़ा यानी वह वैसे का वैसे रहा तो वह बहुत कीमत का होता है।
इसलिए परमात्मा आपको परखकर देखेगा। घण मार रहा है आपके ऊपर और अगर आप ऐसे के ऐसे रह जाओगे तो बहुमूल्य हो जाओगे। आप सतलोक में स्थान पाओगे। वहां के बारे में बताया है कि
चार मुक्ति जहां चंपी करती, माया हो रही दासी।
दास गरीब अभय पद परसे, मिले राम अविनाशी।।
कबीर साहेब बताते हैं कि
माया दासी संत की, उभय दे आशीष।
बरती और लातों छड़ी, सुमर-सुमर जगदीश।।
यानी जब आप मलिक के हो जाओगे तो यह माया आपको आशीष देगी, आपको सुख भी देगी और मोक्ष भी दिलाएगी क्योंकि फिर आप इस माया को धर्म-कर्म के लिए लगाओगे। उभय यानी दोनों तरफ से आशीष देगी।
तो बच्चों! दास के इस प्रयत्न को सीरियसली लो। यह दाता की दया है। यह ज्यादा समय नहीं रहेगी क्योंकि यह स्थान गलत है। फिर भी जितना समय मिल रहा है इससे आपको विश्वास हो जाएगा कि गुरु जी आपके साथ है और आपको यह काम करना है जो आपको बता दिया है। दास तो सतलोक भी जाएगा। सदा यहां थोड़ा ही रहूंगा मैं, इस गंदे लोक में। इसलिए कदर करो। 120 वर्ष परमात्मा आपके लिए यहां भटके। आप आंख खोल लो। अब आपको बुद्धिमान बनाया, शिक्षित बनाया और फिर दास के द्वारा यह निर्मल ज्ञान आप तक पहुंचाया। इसका दृढ़ता से अनुसरण करो। इसको अपने हृदय में धारो। इसके अनुसार चलो।
बच्चों ऐसे चमत्कार ज्यादा दिन नहीं हुआ करते। कोई रजा है दाता की, लाभ उठा लो और देखने में आया है कि जब आप सारनाम लेने आए तो 6 महीने में 30 दिन भी गुरुजी के दर्शन करने नहीं गए। इतने कमजोर हो गए तुम? हद हो गई। यह ज्ञान बिना हो गए। अब ज्ञान सुन लो! मालिक की कुछ दिन की दया है यह और ज्यादा से ज्यादा टाइम निकाला करो बच्चों। यह समय फिर नहीं मिलेगा। यह सांसारिक धन्दे तो असंख्य जन्म हो गए करते और मरते। इनमें कुछ नहीं पल्ले पड़ा ? जबकि इससे सब कुछ पल्ले पड़ेगा। सब कुछ मिलेगा। यहां भी सुख, शरीर में भी सुख, परिवार की भी रक्षा, परिवार में भी सुख और बच्चों मोक्ष भी मिलेगा। परमात्मा आपको मोक्ष दे। सदा सुखी रखे।।
सत साहिब।।।।