विशेष संदेश भाग 4: आत्माओं के लिए सत्संग का महत्व


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सत साहेब।।

 सतगुरु देव की जय।

 बंदी छोड़ कबीर साहेब जी की जय।

 बंदी छोड़ गरीबदास जी महाराज जी की जय।

 स्वामी रामदेवानंद जी गुरु महाराज जी की जय हो।

बंदी छोड़ सतगुरू रामपाल जी महाराज जी की जय।

 सर्व संतो की जय।

 सर्व भक्तों की जय।

धर्मी पुरुषों की जय।

श्री काशी धाम की जय।

श्री छुडानी धाम की जय।

 श्री करोंथा धाम की जय।

श्री बरवाला धाम की जय।।

 सत साहेब।।।।

कबीर दंडवत्तम गोविंद गुरु, बंधु अविजन सोए। पहले भये प्रणाम तीन, नमों जो आगे होए।।

कबीर गुरु को कीजै दंडवतम, कोटि-कोटि प्रणाम। कीट न जाने भृंग कूं ,यों गुरु कर हैं आप समान।।

 कबीर सतगुरु के उपदेश का, सुनिया एक विचार। जै सतगुरु मिलते नहीं, जाते नरक द्वार।।

नरक द्वार में दूत सब, करते खैचांतान। उनसे कबहूं नही छूटता ,फिरता चारों खान।।

कबीर चार खानि में, भरमता कबहूं ना लगता पार। सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।।

जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी  सुख से बसियो, अमरपूरी के डेरे की।।

जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी  सुख से बसियो, सतलोक के डेरे की।।

 निर्विकार निर्भय तूही ,और सकल भयमान। ऐजी साधो और सकल भयमान। सब पर तेरी साहेबी, सब पर तेरी साहेबी, तुझ पर साहब ना।।

 निर्विकार निर्भय।।

बच्चों! परमात्मा की पुण्य आत्माओं! परमेश्वर द्वारा दिए गए ज्ञान को आधार बनाकर जीवन सफल करो। इसमें सबसे पहले काम है कि पतिव्रता पद पर आना होगा। यानी अन्य किसी भी देवता के अंदर ,अन्य किसी देवता के ऊपर स्वप्न में भी बात नही जाए, ध्यान नहीं जाए - कि यह सुख उससे प्राप्त हो सकता है। दास देखता है सारनाम ले लिया। एक परंपरा बना ली ,कि सारनाम लेना है। झूठ सच बोलकर। सारनाम ले लिया। फिर यह कहते है कि फायदा नहीं हुआ ? झाड़े लगवाने चले गए। झाड़ा लगवाया। ज्योतिष दिखाया, हाथ दिखाया।

हाथ तो उसी दिन देख लिया जिस दिन तुमने नाम तोड़ दिया। झूठ बोलकर सारनाम ले लिया। उसी दिन नाम खत्म है जिस दिन यह लिया। सारे नाम खत्म हो गए आपके। तो परमात्मा पाने के लिए सच्चे सुच्चे हो। क्योंकि आपने सच्चे सुच्चे घर  जाना है। अपनी आत्मा को इतना निर्मल करो , ताकि वह हमें स्वीकार कर ले। बच्चों!  परमात्मा कबीर जी बार-बार बताते हैं ,कि यह संसार अच्छा नहीं है। यह काल का लोक है। इसके अंदर कोई भी सुखी जीव नहीं है 21 ब्रह्मांड में। इसलिए अपने को यहां के इस दुख को याद रखना होगा। और यह सच्चाई के साथ है। आपको अभी जैसे जिसको सुख हो जाता है वह सुख में फूल जाता है।

जिसको दुख हो जाता वह उसको रोने पिटने में उसका जीवन जाता है।  तो बताओ कैसे बात बनेगी? यह ज्ञान आधार बनेगा आपके जीने का। और आपके जीवन में सफर में आगे बढ़ने का। इसलिए आपको यह ज्ञान बार-बार सुनना पड़ेगा। आप सत्संग ना तो सत्संग सुनते। पता लगा मैंने क्योंकि जो पुराने हैं वह तो यह सोच चुके हैं हमने सारा ज्ञान हो गया। ओर औरों को समझाने में लग जाते हैं। अच्छी बात है। औरों को भी समझाओ। यह तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन समझाने का अर्थ है उसको अपने ऊपर भी लागू रखे उस काम को। उन बातो को स्वंय भी follow करै। तो अब दास देख रहा है कि यदि यह follow करते तो सारनाम लेकर नाम खंड नहीं करते ?  तो इसलिए follow करो भाई।

यह ज्ञान  जो आज आपके ऊपर  परमात्मा ने यह अलग कृपा की है आपके ऊपर। ज्ञान वही है जो पहले आपको हजारों बार सत्संग करके सुना रखा है। और वह रिकॉर्ड हो चुका है उसके वीडियो ऑडियो बन चुके हैं। उनमें आप सुन सकते हो। तो अब फिर नए सिरे से क्यों सुनाना पड़ा आपको?- आप ढीले पड़ गए थे। आप हल्के में ले चुके थे। सेवा जरूर करते थे, लेकिन वह लगन कम हो गई थी आपकी। तो अब देखो आपको परमात्मा बताते हैं ,कि यह गंदा लोक है। ना कोई रहा ,ना कोई रहेगा। एक दिन सब चले जाएंगे। यह अवतार लग चले गए जिनको राम और कृष्ण को भगवान मानते थे। और सारे मर - मर गए। श्री रामचंद्र जी ने सरयू नदी में जल समाधि ली बिलकुल दुःखों से दुःखी होकर। अंत में जब उसके पुत्र भी विरोधी हो गए पत्नी सीता जमीन में समा गई। उसको घोर अंधेरा हो गया। वहां से आकर सीधा सरयू नदी में कूद गये और मृत्यु को प्राप्त हुए।

श्री कृष्ण जी की मृत्यु कैसे हुई आपको पता है ?- एक पारधि ने तीर मार दिया। उस तीर के कारण, विषाक्त तीर के कारण उसकी मौत हो गई। और आपने कबीर साहेब का सतलोक गमन कैसे हुआ पता है?- दो राजा खड़े थे और हजारों सैनिक खड़े थे दोनों के। और दर्शक बहुत ज्यादा थे। सभी धर्मो के लोग देखने आए थे देखेंगे मगहर मरने वाला कहां जाता है? एक चादर नीचे बिछाई थोड़े-थोड़े सुगंधित फूल नीचे बिछाए। लेट गए परमात्मा। ऊपर एक चादर ओढ़ ली। ऊपर से आकाशवाणी की-: कि देखो चादर उठाओ इसमें मुर्दा नहीं है। शरीर जितने फूलों का ढेर था। और कहा, कि इनको आधे - आधे बांट लेना। ऊपर देखा तो परमात्मा ऊपर जा रहे है सतलोक। एक तो यह भगवान। यह Real भगवान और वह नकली भगवान। वह हम मान रहे थे भगवान है।  वह भगवान नही परमात्मा नहीं है ? 

तो क्या बताते हैं गरीब दास जी कहते हैं

यह सारा नकली स्वांग है।

माया आदि कीन्ही चतुराई, झूठी बाजी पिंड दिखाई। ताका प्रतिबिंब डारया है।

सतलोक में सब सुख है अविनाशी शरीर है, अमर शरीर है। भगवान तो अमर है ही ,वहां रहने वाले भी सभी अमर है। ना वहां वृद्ध अवस्था है। और ना कोई  कष्ट। ना रोग न शोग। तो बच्चो! यहां कैसा हाल कर रखा है हमारा? हमें ज्ञान नहीं पूरा? तो उसके लिए हमने कुछ मर्यादा बनाई है, परमात्मा के ज्ञान आधार पर उनका पालन करो। संत गरीबदास जी से प्रश्न किया करते थे लोग। उनका उत्तर दिया करते थे परमात्मा संत गरीबदास जी।

अवधू हम तो प्रपट्टन के वासी, तीर्थ जा ना देवल पूजै , ना जहां वृंदावन काशी।।

 ऐसा दर्पण मंज हमारे, हम दर्पण के माहीं। ऐनक दरिया चिश्मे जोय, नूर निरंतर जाहीं।।

रहनी रहे सो रोगी होई, करनी कर सो कामी। रहनी करनी से हम न्यारे , ना सेवक ना स्वामी।।

 इंद्री कसता सोए कसाई ,जग में बहे सो बौरा। ऐसा खेल विहंगम हमरा ,जीतो जम किंकर जौरा।।

ठाकुर तो हम ठोक जलाए, हरि की हाट उठाई। राम रहीम मंजूरी करते, उस दरगह में भाई।।

 शेष महेश ,गणेश्वर पूजैं, पत्थर पानी ध्यावैं। रामचंद्र दशरथ के पूता, सो कर्ता ठहरावैं।।

 एक ना कर्ता, दोय ना कर्ता, नौ ठहराए भाई। दसवां भी धुंधर में मिल्सी, सत कबीर दुहाई।।

अयोध्या दशरथ दोऊ नहीं थे, तब रामचंद्र कहां होते। सुर असुरन की राढ मंडी है, त्रिगुण दिन्हे गोते।।

जब जन्मे नहीं रामचंद्र राजा, तब क्या रटती बाजी। वेद कुराण नहीं जब होते, तो क्या पढ़ते पंडित काजी।।

 शेष महेश गणेश नहीं सिरजे, गौरा नहीं गंवारा। ब्रह्मा सावित्री नहीं होते , तब कहां थे पुराण अठाहरा।।

कृष्ण विष्णु कान्हवा भगवाना , नौ अवतार नवेला। नाद बिंद में खेलन आए ,आखिर फोकट मेला।।

 तो बच्चों! आपने पढ़ लिया सुन लिया आपने सुना कि यह सारे मर गए। यह नाशवान है। परमात्मा की प्यारी आत्मा गरीबदास जी ने हमें बिल्कुल अलग-अलग निर्णय दिया है कि जो भी तुम देख रहे हो यह शरीर आपका नाशवान है। 21 ब्रह्माण्ड में जब आग लगेगी, 21 ब्रह्मांड नष्ट हो जाएंगे। पहले एक ब्रह्मांड जलेगा फिर यह सब दूसरे ब्रह्मांड में शिफ्ट हो जाएंगे। और जब तक यहां से मुक्त नहीं होंगे यह दुर्गति आपकी बनी रहेगी। देखो बच्चों! हम प्रतिदिन खाना वही खाते हैं। दोपहर भी ,सुबह भी, शाम भी, दोपहर भी और चाय- दूध भी पीते रहते हैं। समय पर हमें जब तक सब चीज अच्छी लगती है खाना ठीक लगता है वही रोटी होती है सुबह, दोपहर ,शाम जब भी हम खाते हैं। तो बहुत रुचि होती है तो भूख लगी है। भूख लगी है तो हम स्वस्थ है। इसी प्रकार यह ज्ञान जो मालिक की अमृतवाणी है अमृत आपको पिलाया जाता है जितनी बार सुनते हो आपकी आत्मा में कसक बराबर रहती है, तो आपकी आत्मा निर्दोष है।

कोई पाप आप पर प्रभावी नहीं है। और जब भोजन अच्छा नहीं लगता तो समझो बीमार हो लिए। बीमार हो गए तो उसका कोई इलाज है कड़वी - कड़वी गोली खानी पड़ेगी। ना चाहते हुए भी खानी पड़ती है। इसी प्रकार इस सत्संग को ना चाहते हुए भी सुनो। और इसके सुनते- सुनते एकदम सब ठीक हो जाएगा। तो इसको जितनी बार सुनो इतना ही आपकी आत्मा  मनन करें, कि सचमुच यह तो हर रोज सुनना पड़ेगा। रोज ही जैसे कपड़े धोते हैं रोज पहनते हैं Daily उनको धोना भी पड़ता है तभी साफ रहेंगे, वह बेशक आपको साफ दिखाई देते हैं लेकिन मैल कही न कही लग चुका होता है प्रतिदिन पहनने से। इसलिए सुमरन सेवा दान और सुबह दोपहर शाम की आरती और नाम जाप जरूर करते रहना।  साथ में ज्ञान सुनना।। एक रूटीन बनाओ बच्चों।

 गरीब दास जी कहते हैं

दृष्टि पड़े सो धोखा रे। खंड पिंड ब्रह्मांड चलेंगे ,थिर नहीं रहसी लोका रे।। थिर नहीं रहसी लोका रे।।

यह जो आपको दिखाई देता है यह शरीर धोखा है। मृत्यु के तुरंत बाद इसको दो दिन नहीं रख सकते  घर पर इसमें कीड़े पड़ जावे, ऐसी बदबू उठै। इसको फूंकने पर पीछा छूटे। और फूकने के बाद दो मुट्ठी राख हो जाती है यह। आज हम इसी को देखकर फूले - फूले फिरते हैं। पता नहीं क्या क्या लगावे लिपस्टिक आदि। और बड़े सुंदर कपड़े पहनकर चटक मटक। अरे! इस मिट्टी को ?  इससे जो काम लेना है वह लो । देखो कैसा यह मन करवाता है सारी बकवाद। और फिर इसको करवा कर इसका जीवन नष्ट साइड पकड़ जाता है। फिर आत्मा कुत्ते गधे बनकर धक्के खाती है। परमात्मा के इस अद्भुत ज्ञान से आत्मा में दृढ़ता आती है हौसला आता है। यह दृढ़ हो जाती है  सचमुच यह गलत कर रहे थे। फिर यह मन का सहयोग छोड़ देती है।

 दृष्टि पड़े सो धोखा रे। खंड पिंड ब्रह्मांड चलेंगे, थिर नहीं रहसी लोका रे।। थिर नहीं रहसी लोका रे।।

 रजगुण ब्रह्मा ,तमगुण शंकर, सत्गुण विष्णु कहावै रे। चौथे पद का भेद नियारा ,कोई बिरला साधु पावै रे।।

 बच्चों! मारकंडे पुराण में स्पष्ट किया है कि यही तीनों गुण है। और यही तीनों देवता ब्रह्मा विष्णु महेश। इनको गुण कहो। रजगुण  कहो, सत्गुण कहो। रजगुण कहो ब्रह्मा कहो,  सत्गुण कहो या विष्णु कहो , तमगुण कहो या शंकर कहो यह इन्हीं का इन्हीं के बारे में संबोधन है। इन्हीं की जानकारी है।

तो कबीर साहेब कहते हैं

गुण तीनों की भक्ति में

तीन गुणों की भक्ति रजगुण ब्रह्मा ,सत्गुण विष्णु, तमगुण शिवजी की भक्ति में भ्रम रहो संसार।

कहे कबीर निज नाम बिना, कैसे उतरो पार।।

 गीता अध्याय 7  श्लोक 12 से लेकर 15 में यही बताया है ,कि तीनों गुणो के द्वारा जो हो रहा है रजगुण ब्रह्मा से उत्पत्ति, सत्गुण विष्णु से स्थिति मोह ममता आपस में, और तमगुण शंकर से संहार यह जो कुछ भी हो रहा है इसका निमित्त मैं हूं। गीता बोलने वाला काल बोल रहा है श्री कृष्ण में प्रवेश करके। तो यह तीन गुणो की भक्ति जो करते हैं। सातवें अध्याय के 15 वें श्लोक में कहा है कि वह मानते ही नहीं इस पर दृढ़ हो चुके हैं। राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्य में नीच दुषित कर्म करने वाले मूर्ख मेरी भक्ति भी नहीं करते।

 यहां गरीब दास जी बताते हैं

रजगुण ब्रह्मा ,तमगुण शंकर ,सत्गुण विष्णु कहावै रे। चौथे  पद का भेद नियारा, कोई बिरला साधु पावै रे।।

तीन तो यह हो गए। चौथा इनका बाप, पिता ज्योति निरंजन काल। कबीर साहब कहते हैं:

इन चारों को छोडै , जो  पांचवें ध्यावै। पांचवा सत्पुरुष ,कहे कबीर सो हम पर आवै।

 ऋगयजु है साम अर्थवन चारों वेद चित भंगी रे। सूक्ष्म वेद बाँचै साहब का, सो हंसा सत्संगी रे।।

गरीब दास जी ने स्पष्ट कर दिया ,कि चारों वेद जो है ऋग्वेद ,यजुर्वेद, सामवेद, अर्थवेद यह चारों अधूरा ज्ञान रखते हैं भ्रमित ज्ञान है इनके अंदर। यह चित भंग करते हैं। 

सूक्ष्म वेद बांचै साहब का सो हंसा सत्संगी रे।।

तो बच्चों!  आप सूक्ष्म वेद सुन रहे हो। सूक्ष्म वेद पढ़ रहे हो। आप सत्य के साथी हो। आपको सच्चा अध्यात्म ज्ञान प्राप्त है। गरीब दास जी कहते हैं तीन लोक और भवन चतुर्दश 14 लोको में कोई नहीं सत्संगी। यह बात कहने में तो ऐसी लगे जैसे झूठी होंगी। लेकिन सारी सत से परिपूर्ण हैं। धर्मदास जी ने पूछा था हे भगवान! आप जो बाते बता रहे हो यह सारी सत्य है। मैं देख आया। क्या यह वेद कतेब झूठे हैं जो इनमें नहीं लिख रखी ? क्योंकि हमारे धर्म गुरुओं ने कभी बताई नहीं ? कबीर साहब बोले,

वेद कतेब झूठे नहीं भाई। झूठे हैं जो इनको समझे नाहीं।।

कबीर वेद मेरा भेद है, मैं वेदन में नाहीं। जिस वेद से मैं मिलूं ,यह वेद जानते नाहीं।।

 तो क्या बताया है

अलंकार अघ है अनुरागी, दृष्टि मुष्टी नहीं आवे रे। अकह लोक का भेद ना जाने, यह चारो वेद क्या गावै रे।।

जब तुझे सतलोक, अलख लोक, अगम लोक, अकह अनामी लोक का ज्ञान नहीं ? इन चार वेदों को क्या कंठस्थ कर रहा है।  क्या इनके गीत गा रहा है  ? क्या सुना रहा है इसको ?

आवै - जावै सो हंसा कहिये, परमहंस नहीं आया रे। पांच तत्व तीन गुण तुरा, या तो कहिये माया रे।।

आवे - जावे सो हंसा कहिए, परमहंस नहीं आया रे। पांच तत्व तीन गुण तूरा, या तो कहिये माया रे।।

सुन मंडल सुखसागर दरिया, परमहंस प्रवाना रे। सतगुरु मैली भेद लखाया, है सतलोक निदाना रे।।

अगमदीप अमरापुर कहिए, हिलमिल हंसा खेलै रे। दास गरीब देश है दुर्लभ ,सच्चा सतगुरु बेलै रे।। दास गरीब देश है दुर्लभ, साचा सतगुरु बेलै रे।।

 दृष्टि पड़ै सो धोखा रे, खंड पिंड ब्रह्मांड चलेंगे थिर नहीं रहसी लोका रे।। थिर नहीं रहसी लोका रे।।

अगमदीप अमरापुर कहिये, हिलमिल हंसा खेलै रे। दास गरीब देश है दुर्लभ, साचा सतगुरु बेलै रे।।

क्या बताया है लास्ट में कमाल कर दिया। संत गरीब दास जी ने-: कि अगमदीप अमरापुर कहिये उस सतलोक अमर धाम 18 वें अध्याय के 62 वें श्लोक में गीता जी में कहा है, कि हे अर्जुन! तू सर्वभाव से उस परमेश्वर की शरण में जा। उसकी कृपा से ही तू परम शांति को और सनातन परमधाम को प्राप्त होगा। यह वह सनातन परमधाम है। अगम दीप सबसे ऊपर का लोक आगे वाला, अमरापुर, सतलोक, सत्यलोक, अविनाशी लोक, सनातन परमधाम।

अगमदीप अमरापुर कहिये, जहां हिल मिल हंसा खेलै रे।  दास गरीब देश है दुर्लभ, साचा सतगुरु बेलै रे।। दास गरीब देश है दुर्लभ साचा सतगुरु बेलै रे।।

की वहां अमरलोक में जाकर सत्यलोक में जाकर वहां प्यार से रहते हैं। सारा दिन मौज - मस्ती करते हैं। वहां नाचों और गावों । वहां मौज है सारी। किसी चीज का अभाव नहीं। कोई कष्ट नहीं। यहां गर्मी में गर्मी शरीर फूक दे। सर्दी में सर्दी मार डालै।  बारिश आ जावे उसमे मुश्किल , ओले पड़ जाए तो सिर फोड़ दे। कभी रोग, कभी शोग, कोई मर गया, कोई हो गया, कोई जी गया। यहा 24 घंटे कहर टूट रहा है आपके ऊपर। पर आप इस दुख को घसीटने के आदी बन गए। क्योंकि विकल्प नहीं ?  अब आपके पास विकल्प है। यहां से निकल सकते हो। Hundred percent निकल सकते हो।

गारंटीड निकल सकते हो। थोड़ी सी हिम्मत कर लो। देखो दास  ने कब शुरू की थी-: सन 1988 में दास को यह शरण मिली थी। 1994 तक दास सबको समझाता था। गुरुजी से नाम दिलवाता था। कभी स्वपन में भी नहीं सोची थी , मैं गुरु पद बनूं। यह तो नीच आदमियों के काम होते हैं दुनिया को मूर्ख बनावै। उनका जीवन नष्ट करै। स्वयं ही स्वंभू गुरु बन कर। जैसे 2- 3 दुष्ट बन गए थे। संजय दिल्ली वाला और पवन जयपुर वाला। यह पाप आत्मा थे। इन्होंने तुम्हारा नष्ट करने का ठेका ले रखा है काल से। हम तो स्वपन में भी नहीं सोच सकते थे। हम तो अपनी भक्ति कर रहा था मैं तो। की भगवान मेरा कल्याण तो होवै ही होवैगा गारंटी हो गई थी। ओर औरों को भी राह बताऊं। क्योंकि ऐसा ज्ञान नहीं ? ऐसा भगवान नहीं ? परखा हुआ।  हर तरह से कितने कमाल चमत्कार किये मेरे साथ। मेरी लोहे की जाली बढ़ा दी जो झांकी पर लगाते हैं मच्छरों से बचाने के लिए। यह 1990 के आसपास की बात है, 2  ही साल नाम लिए को हुए थे। उसके बाद तो इतनी दृढ़ता आ गई, कि हे भगवान!  सचमुच मालिक हो आप। तो यह कोई न कोई ऐसा झटका आपको सबको देता है ताकि आपका विश्वास दृढ़ बने। तो बच्चों!  गरीबदास जी कहते हैं, कि वहां पर सब सुख से रहते हैं। मौज- मस्ती खूब खेलते- कूदते हैं सारे हंस। वह देश बहुत सुखदाई है सतलोक। लेकिन उसके लिए कहा है

दास गरीब  देश है दुर्लभ, साचा सतगुरु बैले रे।

अब सच्चा सतगुरु मिले तो आपको वहां पहुंचा देगा। बेलै मतलब पहुंचावे।

कबीर चार खानी में भ्रमता, कबहूं ना लगता पार। सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।। इतने कष्ट होते सतगुरु के बिना।

बच्चों! जब से यह आत्मा हम सभी प्राणी अपने पिता से दूर हुए है, उसी दिन से हमें एहसास हो गया, कि हम कष्ट उठा रहे हैं। और गलत जगह आ गए। एक बहन बता रही थी।  दास जब जे.ई था। वहां मजदूर काम कर रहे थे दोपहर के समय में वह एक वृक्ष के नीचे बैठकर कोई खाना खा रहा था। कोई वैसे सुस्ता रहे थे। और हम भी वही खड़े हो गए थोड़ी देर के लिए। एक बेटी रो रही। तो मैंने वैसे ही पूछ लिया, कि इसको क्या तकलीफ है बहन को ? कोई दुख तकलीफ है कोई पेट आदि में दर्द वगैरा है  तो दिखा लाओ यहां डॉक्टर के। हमारे पास जीप थी सरकारी। तो उससे पूछा बहन क्या बात है आपको? मैं बोला बेटी क्या बात है? बताओ! पहले तो वह खूब रोती रही। यह बोली मैं, बहुत अच्छे घर की लड़की और मेरे कर्म फूट गए यह मेरे घर में नौकर था मैं इसके साथ आ गई। घर वालो ने खूब कोशिश की मात - पिता ने वापस ले जाने की। मैं गई नहीं। फिर घर वालो ने भी पल्ला झाड़ दिया। अब यह दारु पिता है। मैं कमाती हूं । दो बालक हो गए। रो- रो कर टाइम काट रही हूं।

 बच्चों! यहीं स्थिति आज आपकी है। हम अपने पिता के घर पर भरे पूरे घर को छोड़कर और इस पाप आत्मा इस काल के ऊपर आसक्त हो कर इसके साथ भागकर आ गई मना करते करते। और आज हमारी कुत्ते, गधे, कुत्ती बनाकर क्या दुर्गति कर रखी है आपकी। तब इसको सामान्य बात ना समझो। यह बहुत भयंकर षडयंत्र है। और समर्थ कबीर साहिब के बिना इसको कोई खोल नही सकता।  बोल भी नहीं सकता इसके खिलाफ एक शब्द।  यह तो बहुत बड़ी पावर है ब्रह्मा, विष्णु, महेश कांपै इसके आगे। एक भूत सारे परिवार को तान दे। सबसे छोटी इकाई है यह। इस शैतान का एक अंश है। और आज हम सीधे काल की छाती में ताने बैठे हैं। उसकी छाती पर दाल दल रहे हैं। उस समर्थ कबीर साहेब की कृपा से। आंख खोल लो। अपनी ऐसे दुर्गति हो रही है। आज भी यही स्थिति है। यह अनजान लड़कियां किसी के भी  साथ प्यार करके धक्के खाती घूमे। और फिर सारी उम्र दुख पावें।  ना घर की रहती ना घाट की रहती।

वह दशा आपकी है बच्चों! और फिर भी वह दयालु। वह बाप है।  फिर भी चाहता है किसी तरह हम वापस चले जाए। दास के पास अब भी प्रार्थनाएं आती हैं। ऐसे- ऐसे बेटी उसके साथ चली गई। मां- बाप को पता होता है। यह क्या लाड्डू देगा हरामजादा इसको। शादी करनी है तो मां-बाप क्या करते नहीं? इतना ही काम था क्यों सिर में दर्द करें यह बालक। बुद्धि भ्रष्ट है वह जो ऐसी बकवास करते है। लड़का हो चाहे लड़की। इसी प्रकार हम बुद्धि भ्रष्ट थे। भरे पूरे घर को ठोकर मार कर इस कंगाल के साथ आ गए। बच्चों! आंख खोल लो। अब भी समझ जाओ। यह कोई डूम भाट के गीत नहीं है ? जो मैं सुना रहा हूं। यह समर्थ का दिया ज्ञान है। जिस दिन से दास को इसका आभास हुआ था उसी दिन समझ गया था कि गलती बहुत बड़ी भारी बन चुकी है। और दास को तो एहसास हो गया था, कि दास का तो अब कल्याण होवे ही होवेगा।  तो बच्चों! जिस दिन से यह ज्ञान प्राप्त हुआ दास को तो एहसास हो गया था, कि बात ऐसे की ऐसे है। बहुत गलत हो लिया। बहुत गलती करी  हमने। और सिर धड़ की बाजी लगाकर जैसी औकात थी अपनी खूब भक्ति करने लग गया। औरों को समझाने लगा। अपना एक टेप रिकॉर्डर लिया। जैसा ज्ञान समझ में आ रहा था उसमे भर भर के टेप छोटी-छोटी कैसेट हुआ करती बड़ी-बड़ी । वह दी उनको। औरों को बांटने लगा। समझाने लगा। धीरे-धीरे उनको नाम दिलाने लगा गुरुजी से। एक दिन गुरुदेव ने दास के ऊपर ही यह भार सौंप दिया। उन्होंने देखा, कि यह सच्चा सुच्चा है। सच्ची लगन है।

उनके बहुत से साधु बने हुए थे लाल कपड़े भी उनको दान दिए हुए थे। पर परमात्मा की कृपा होती है वहीं होनी होती है। तो अब परमात्मा अब भी कहते हैं आ जाओ मेरे बच्चों! यहां कभी सुखी नहीं हो सकते। अब भी संभल जाओ। अपने घर चलो। जहां कोई कष्ट नहीं, कोई दुख नहीं, कोई रोग नहीं, कोई शोग नहीं। किसी चीज का अभाव नहीं। समस्या यह है, कि हमने स्वर्ग- स्वर्ग सुन रखा था स्वर्ग। वह क्या देखा था ? क्या आपने देख रखा है  वह स्वर्ग ?  सुना ही था। और उसमें आसक्तता थी कि स्वर्ग जायेंगे। यह कर लिया, स्वर्ग गया। स्वर्गवासी हो गया। तो यह बड़ी भूल पड़ी हुई है। पहले तो सतगुरु मिलना मुश्किल । मिल जाए तो हम उस पर डटते नहीं ? क्योंकि लोक वेद सुनाने वाले लाखों होते हैं। और तत्वज्ञान सुनाने वाले एक दो ही होता है। बच्चों! जब कबीर परमात्मा स्वयं आए थे 600 साल पहले। एक लीला की थी कमल के फूल पर एक बालक रूप धारण करके सतलोक से आकर के विराजमान हुए। नीरू नीमा नि:संतान जुलाहा उनको उठाकर ले गए। और परवरिश की लीला हुई। 5 साल की उम्र में बड़े-बड़े विद्वानों के छक्के छुड़ा दिए।

लेकिन वह मानने को तैयार नही थे। उनके ज्ञान की बिलकुल पोल खोल दी थी। वह तो हार मान जाते लेकिन जनता अनपढ़ थी अशिक्षित थी। कबीर साहेब कहते थे,यह गलत बता रहे हैं। यह सब नकली है। यह गलत साधना बता रहे हैं। इनसे कोई लाभ होने वाला नहीं है। लेकिन वह बहका देते थे। गुरुजन मण्डलेश्वर  ब्राह्मण पंडित ,कि यह शुद्र है। शूद्र जाति के व्यक्ति को तो विद्या प्राप्त करने का अधिकार भी नहीं है। यह क्या जाने संस्कृत भाषा को ? क्या जाने वेद और गीता को ? यह कैसे समझै पुराणो को ?  झूठ बोलता है सारी। बच्चों! यह सारी समस्या यहां अड़ी खड़ी थी। और हमने मान लिया बिल्कुल मान लिया और बात भी सही है। हम कौन सा आधार बनावे कबीर जी को भगवान मानने का ?  समझने का ? कि सचमुच यह भगवान है। जबकि इतने सुख दिए थे इतने सुख दिए थे, कि हम सोच भी नहीं सकते। आन उपासना कर - कर के थक चुके थे तो भी लाभ नहीं था। हमने फिर भी यह एहसास नहीं हुआ, कि सचमुच भगवान होगा? हमने वह  जुलाहा और धानक दिखाई दे रहा था। शूद्र जाति अनपढ़। बस इतना मान लिया, कि इसमें कोई शक्ति है थोड़ी बहुत। जिससे हमें राहत मिल रही है। मुर्दे तक जिंदा किया। गंगा के अंदर डाले डूबे नहीं।

हाथी मारने आया देखकर भाग गया भगवान को शेर रूप दिखा दिया। फिर भी वह विरोधी दुश्मन जनता के झूठे गुरु अफवाह फैला देते थे यह जादू जंतर जानता है। इसने हाथी भगा दिया। मुर्दे जिंदे कर देता है । जादूगर नहीं कर देता। जादूगर तो वही बकवाद करके अटबट करता है। मार नहीं सकता वह। वह सिर्फ हाथों की सफाई ऐसे करता है। और परमात्मा ने तो दूसरे के मारे हुए को जिंदा किया। लेकिन हमें शिक्षा नहीं थी ? सदग्रंथों से हम परिचित नहीं थे ? जिस कारण से यह बात अभी तक उलझी रही। एक समय रामानंद जी का बोलबाला बहुत हो गया था। क्योंकि वह वैष्णव परंपरा के मार्गदर्शक उपदेशी थे यानी गुरु थे। प्रचारक थे। और यह वैष्णो, नाथ ,गिरी, पुरी। वैष्णो विष्णु के उपासक हैं। गिरी पुरी नाथ यह शिवजी के उपासक हैं।। यह भी अपनी- अपनी क्रिया को उत्तम मानते हैं दूसरों को ठीक नहीं मानते। गोरखनाथ अब यह कहते हैं गोरखनाथ तो बहुत पहले पैदा हुआ था, बिल्कुल।

लेकिन यह सूक्ष्म रूप में कभी भी शरीर धारण करके कहीं आकर खड़े हो जाते हैं। लेकिन वह ज्यादा वहां रह नहीं सकते हैं अस्थाई से होते हैं। तो गोरखनाथ जी आए। उनको बताया वहां के नाथ पंथियों ने, कि वैष्णो धर्म फैलता जा रहा है। हमारा नाथ धर्म सुकड़ता जा रहा है। तो गोरखनाथ ने कहा कि बोल दो उस रामानंद को उस दिन गोष्टी करेंगे। जो हार जाएगा वह जीतने वाले का शिष्य बनेगा। और सारे शिष्यो को भी साथ उनसे दीक्षा दिलवाएगा। तो रामानंद जी को पता था यह सिद्धि दिखाएगा। लोग ताली पीटेंगे। हम हार जाएंगे तो इसको विजयी मान लेंगे। इसलिए वह छुप गए नहीं जाना चाहते थे। तब कबीर साहेब बोले गुरुदेव! हार जीत तो हुआ ही  करती हैं। दो पहलवान कुश्ती लड़ेंगे। चलो देखते हैं। जो होगा देखी जाएगी। रामानंद जी मान गए की यह तैयार हो लिया तो अब कोई दिक्कत नहीं आने की नहीं। तो उस दिन कोई भी जो रामानंद जी का शिष्य था उन्होने अपना सारा जो दिखावा करते ऊपर का कंठी माला आदि तिलक जो वैष्णव परंपरा का प्रतीक होता है किसी ने नहीं लगाया। क्योंकि उनको पता था आज हारेंगे। और हमने उनका शिष्य बनना पड़ जाएगा। हमारा पता नहीं चलेगा, कि हम वैष्णो उपासक है। कबीर साहेब बोले तैयार हो। कबीर साहेब को पता था यह श्रृंगार किए रहेंगे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ने का।  हिम्मत न हारो चलो। पहुंच गए । रामानंद जी ऊपर पैड़ी पर स्टेज बना रखी। कबीर साहेब अपने गुरु जी के चरणों में नीचे बैठ गए।

रामानंद जी और गोरखनाथ जी का अलग से आसन लगा रखा सामने। गोष्ठी उन दोनों में होनी थी। और साथ में उसने त्रिशूल रखते थे 6 -7 फुट का त्रिशूल गाढ़ रखा गोरखनाथ ने। जब ज्ञान की चर्चा हुई। कबीर साहब बोले कि गोरखनाथ जी! पहले मेरे से बात करो। मुझे हरा दो। फिर मेरे गुरुजी तक जाना। पहले चेलो से लड़ो। बात की परमात्मा बोले -: कौन ब्रह्मा का पिता है? कौन विष्णु की मां? शंकर का दादा कौन है? हमको दे बता।

नाथजी लगा वही अटबट करने। उसने सोचा यह ऐसे नहीं मानेगा। कहते हैं त्रिशूल के ऊपर उड़कर ऐसे आसन पदम लगाए- लगाए और त्रिशूल के ऊपर बैठ गया गोरखनाथ सिद्धि से। और कहने लगा मेरे साथ गोष्टी करनी है तो मेरे बराबर आकर बैठो। कबीर साहेब बोले गोष्ठी का अर्थ होता है डिबेट, ज्ञान चर्चा। यह ड्रामेबाजी नहीं ?

 नाथजी बोले यदि तुम्हारे अंदर कुछ हो तो करो। नहीं तो हार मान लो। दुनिया को मूर्ख बनाते हो। कबीर साहेब जेब में डालकर ले गए थे जैसे चरखे पर काता करते थे सूत। वह कम से कम 150 फीट लंबा धागा होता था उसमे।  उसको कुकड़ी बोला करते हरियाणा में। अंग्रेजी में  रील बोलते हैं। परमात्मा ने जेब से वह कुकड़ी निकाली और एक end उस धागे का पकड़ा सिरा और आकाश में फेंक दी। वह उधड़ती चली गई। अनबंडल होती हुई 150 फीट ऊपर जाकर अंतिम सिरा हो गया। फिर वह धागा छोड़ दिया। ऐसे ही डट गया। परमात्मा वहां से उठे और ऊपर धागे के ऊपर वाले सिरे पर जाकर विराजमान हो गए आसन पदम लगाकर। कबीर साहेब बोले गोरखनाथ जी! आ जाओ फिर। यहां बराबर में बैठो यहां गोष्टी करेंगे। गोरखनाथ भी पूर्ण सिद्धि से युक्त मान रहा था अपने आप को।

वहां से उड़ने की कोशिश की त्रिशूल से थोड़ा सा उठा फिर जमीन पर एकदम आ गिरा। जैसे  उसकी जान निकल गई हो। आकाश में तो उड़ने की  बात छोड़ उठने की हिम्मत नहीं रही उसकी। तब समझ गया ,कि यह सामान्य संत नहीं है। भगत नही हैं। तो बोला नीचे आओ महाराज! आप जीत गए, मैं हार गया। फिर भी यह मन पापी मानता नहीं। कहने लगा एक परीक्षा और लूंगा। की चलो। गंगा के किनारे पहुंच गए थोड़ी दूरी पर थे। की मैं इसमें छुपुंगा। मुझे खोज देना, गोरखनाथ बोले। परमात्मा बोले भाई यह भी कसर निकाल ले। दरिया में कूद गए और मछली बन गया गोरखनाथ। परमात्मा ने उसको पकड़ कर और पटड़ी पर रख दिया, गोरखनाथ बना दिया। तब पैर पकड़ लिए। फिर उससे पूछा हे मालिक! हे भगवान! आप कौन शक्ति हो? कहां से आए हो ? मेरे सामने टिकने वाला आज पृथ्वी पर कोई नहीं।

 परमात्मा बताने लगे

 अवधू अविगत से चला आया। रे मेरा भेद मरम ना पाया।।

ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया। काशी शहर जल कमलपर डेरा, तहां जुलाहे ने पाया।। काशी शहर जल कमल पर डेरा तहां जुलाहे ने पाया।।

 मात-पिता मेरे कुछ नाहीं, ना मेरे घर दासी। जुलाहे का सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।।  जुल्हा का सुत आन कहाया जगत करे मेरी हांसी।।

अवधू अविगत से चल आया। रे मेरा भेद मरम ना पाया।।

पांच तत्व का धड़ नहीं मेरे ,जानू ज्ञान अपारा। यह सत स्वरूपी नाम साहेब का, वोहे नाम हमारा।

सत स्वरुपी असली नाम सत कबीर  है मालिक का। और उसी नाम से मैं आज प्रगट हुआ हूं।

शब्द स्वरुपी नाम साहिब का, वोहे नाम हमारा।

अधर दीप भंवर गुफा में, ता निज वस्तु सारा ।

अधर दीप सबसे ऊपर आखिर वाले लोक में प्रवेश होने के लिए एक भंवर गुफा है। वहां पर है वह सार वस्तु सतलोक सत्पुरुष।

अधर दीप गगन गुफा में, ता निज वस्तु सारा। तेरा ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन, वह  धरता ध्यान हमारा।। तेरा ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन धरता ध्यान हमारा।।

हाड मांस लहू ना मेरे, जाने सतनाम उपासी। तारण तरण अभय पद दाता, मैं हूं कबीर अविनाशी।। तारण तरण अभय पद दाता, मैं हूं कबीर अविनाशी।।

बच्चों! यह नाथ परंपरा के शिव जी के उपासक होते हैं। और सभी को भ्रम होता है, भगवान फिर भी कोई और है। यह अलख निरंजन का नारा लगाते हैं। जैसे हम सत साहेब बोलते हैं। धनाना गांव में भी ऐसे ही एक नाथों का डेरा है। एक बाबा आटा मांगने आया करता। आते ही अलख निरंजन बोला करता। यह जाप काल का करै। और डले ढोवै । तब गोरखनाथ जी को समझाया। गोरखनाथ ने एक पहाड़ को सोने का बना दिया। और मोटा पत्थर सोना बना दिया। और छूमंतर बहुत जानता था।

कबीर साहेब बोले -:

यह  गोरखनाथ सिद्धि में भुला। और टूने टामन हांडै फूला।। यह जंत्र मंत्र योग ना भाई। और काल चक्कर जम जौरा खाई।।

 भरम भक्ति ना भुलो भाई। तुम हो जम की फर्दी माहीं।। आजा गोरख शरण हमारी। हम तारै नर और नारी।।

गोरखनाथ मैं सबन का गुरुआ। गोरखनाथ बोला तेरा वचन मोही लागे कड़वा।।

कबीर साहेब बोले, कड़वा लगे सो मीठा होई। हमरी बात समझले सोई।।  हमारा ज्ञान समंझ।

बच्चों! परमात्मा कहते है

तेरा ज्योति स्वरुपी अलख निरंजन धरता ध्यान हमारा।

वह भी मेरी भक्ति करता है। और गीता अध्याय 18 श्लोक 64 में कहा है मेरा वह इष्ट है जो अठारवें अध्याय के 62 वें श्लोक में कहा है कि अर्जुन! तू सर्वभाव से उस परमेश्वर की शरण में जा। और गीता का ज्ञान इस काल ब्रह्म ने कृष्ण में प्रवेश करके बोला था। तो कहते हैं तेरा ज्योति स्वरुपी अलख निरंजन धरता ध्यान हमारा। तेरा ज्योति स्वरुपी अलख निरंजन धरता ध्यान हमारा। बच्चों! संत गरीब  जी ने इन नकली गुरुओ की गलत साधनाओं को कैसे व्याख्यान किया है इनका। की सब गलत कर रहे हैं।  कौन-कौन ?- 

।।।।। अथ षटदर्शन घमोड़ बैदा।।।।।

 षटदर्शन षट भेष कहावै। 

बहू विधि धूं- धूं धार मचावै।। तीर्थ व्रत करै तरविता । वेद पुराण पढत हैं गीता।।  यह भी बैदा है बैदे से भेद अलैदा।  यो भी बैदा।

 यानी बैदा मतलब व्यर्थ। बेकार साधना है।

यह षटदर्शन कौन होते हैं -: गिरी ,पूरी, नाथ, कनपाड़े, यह संयासी, वैष्णो।

यह ‌सारे षटदर्शनी कहलाते हैं। छः भेख है यह। Six. षटदर्शन षट भेख कहावै। बहु विधि धूं धूं धार मचावैं।। इनकी साधना देखे तो आदमी कुर्बान हो जावे। कोई खड़ा हो कर तपै है। कोई उपर को पैर कर रहा है। कोई केवल जल पिता है कुछ दिन। कोई झरने में बैठा है। कोई किसी तरह, कोई किसी तरह गलत साधना में जुटे हुए है। और तीर्थ व्रत करैं तरविता। जो गीता में मना है व्रत करना। तीर्थ नहीं जाना चाहिए। और वेद पुराण पढ़त हैं गीता। गीता भी पढ़ें। वेद भी पढ़े। और पुराण भी पढ़ते हैं। और सारा काम उनके विपरीत करते हैं।

चार संप्रदाय बावन द्वारे, जिन्हों नहीं निज नाम विचारे। माला घाल हुए हैं मुक्ता, षट दल ऊवा बाई बकता।। 

चार संप्रदाय बावन द्वारे, जिन्हों नहीं निज नाम विचारे। जिन्होने परमात्मा के सच्चे ज्ञान नाम को कभी सोचा नहीं ? उस पर विचार नहीं किया ? और माला डाल हुए हैं मुक्ता। गल में माला पहर ली। 36 प्रकार के बाहिये ढोंग बना लिए। यह षटदल ऊवा बाई बकदा। यह षटदर्शनी षटदल। यह छ: ग्रुप। यह सारे ऊवा बाई बकते हैं। इनको क-ख भी पता नहीं अध्यात्म का?

 बच्चो! यदि दास ने आपको इतना कुछ पहले ज्ञान ना सुनाया होता और आज यह बात बोलता। तुम सारे उठ कर चले जाते, कि यह कैसे क्या कह रहा है ?  और आज आपको घी सा डले इन बातो का, कि सचमुच हम तो बिल्कुल भगवान से कोसों दूर थे। कैसा जुल्म था हमारे साथ ?

चार संप्रदाय 52 द्वारे ,जिन्हों नहीं निज नाम विचारे। माला डाल हुए हैं मुक्ता, षटदल ऊवा बाई बकता। यो भी बैदा।  बैदे से भेद अलैदा । यो भी बैदा।

वैरागी वैराग ना जाने, बिन सतगुरु नहीं चोट निशाने।

बारह बाट बिटंब बिलोरी, षट दर्शन में भक्ति ठगौरी।

वैरागी वैराग ना जाने।

वैराग घर छोडकर नहीं होता। घर में रहते हुए लग्न परमात्मा में लगी रहै जैसे कबीर साहेब डिफाइन करते हैं वैराग कैसा होना चाहिए ? -: जैसे पतिव्रता बसै पीहर में, और सूरत प्रीतम माहीं! जैसे लड़की का विवाह हो जाता है और फिर वह कुछ दिन अपने घर भी आती है। तो अपने पति के  अंदर उसकी हरदम अंदर से कसक बनी रहती है। और उसको पता है, कि अब मैं यहां कुछ दिन की मेहमान हूं। और मेरा घर वह हो चुका है। तो अपने को जब ज्ञान हो जाएगा हमारी सगाई हो गई अब। सब आत्माओं का रिश्ता हो गया ऊपर अब सगाई हो चुकी है। विवाह होने से पहले ही लड़की को यह इमेजिन कल्पनाएं बन जाती हैं  घरवाले बताते हैं ऐसा लड़का है। ऐसा उनका घर है। ऐसा कारोबार है। तो वह कल्पना पहले से प्राप्त हो जाती है तो आज हमारी उस परमात्मा के घर जाने के लिए जिनकोवसच्चे गुरु से नाम मिल गया उनकी वह सगाई हो गई। हम सब की सगाई हो गई है अब हमने कल्पना हो जानी चाहिए जो आंखों देखे संतो ने वहां की व्यवस्था बता रखी है और अब हम वहां जाएंगे। जाएंगे वह जब यह रिश्ता कायम रहेगा।

तो यहां कहते हैं,

वैरागी वैराग न जाने, बिन सतगुरु नहीं चोट निशाने। संयासी दस नाम कहावैं, शिव - शिव करें न संशय जावैं। निरबाणी नि:कछ निसारा, भूल गए हैं ब्रह्म द्वारा।।

यह दसनामी संयासी दस नामी होते हैं। इनकी साधना पूछी मैंने एक दिन। पहले मैं इनमें जाता रहता था। की शायद यह भी भक्त है कुछ ना कुछ होगा इनके पास।  एक दसनामी से पूछा। आप साधना क्या करते हो? उन्होने बताया किसहमारे दस नियम है। यह ना करो, यह ना करो, यह करो, यह करो। सुबह नहाओ धोओ, ऐसा करो। यह दस नाम बस यहीं है इनका जाप करते हैं। यह तो नियमों की गिनती करते हो डेल्ली। भक्ति कहां हुई? तो बच्चों! आपके ऊपर जो कृपा दाता ने की है, यह समान्य नहीं है। बिलकुल पूरे विश्व में किसी के पास भी अध्यात्म ज्ञान नहीं है। विश्व में किसी के पास। यह छोटी बात नही ? और यहां नहीं दास ने इंटरनेशनल चैनलों पर जो आप चला रहे हो सत्संग उनमे बोल रखा है। और कोई नहीं बोल पा रहा ? उनको अंदर से एहसास हो चुका है। गुरुओं को तो हो चुका है, लेकिन शिष्यों को बहकाए बैठे हैं। की रामपाल झूठ बोलै है। चलो आने दे टाइम। पता चल जाएगा, झूठ कौन बोल रहा हैं? अब बच्चो! आप पढ़े लिखे हो। शिक्षित हो। ऐसा गजब का ज्ञान धरती पर कोई देखा ना सुना ? इस तरह निर्णय आज तक किसी का हुआ नहीं ? तो सतगुरु कौन है फिर? कबीर साहिब कहते हैं

 नौ मन सूत उलझिया, ऋषि रहे झकमार ।

और सतगुरु ऐसा सुलझा दे ,उलझे ना दूजी बार।

तो इसी से आप को विश्वास हो जाना चाहिए आपको, कि यह दास सतगुरु है। ऐसा ज्ञान देखा ना सुना। इन ग्रंथों में ऐसा प्रमाणित कर दिया। आप शिक्षित हो एकदम समझ गए। अपनी किस्मत सराहा करो। हे परमात्मा! हम पर कैसे दया हुई? हम पापियों पर। हम तो बिल्कुल भूले पड़े थे। क-ख भी नहीं पता था।  अनमोल जीवन आपका नष्ट हो रहा था। तो अब आपको मर्यादित रहना पड़ेगा। और मर्यादा में रहते हुए यह भक्ति करते रहो आखिरी स्वांस तक। आप तो जहाज में जाओ ही जाओगे, आपकी आने वाली पीढ़ियां भी सीधी सतलोक आएंगी। बच्चों! विश्वास रखो। मैं कोई मांगने खाने वाला नहीं हूं ?  नहीं था । नहीं कोई स्वार्थ दास का। 27 साल तो अब लगातार हो गए आज तक सुख का स्वांस नहीं  लिया हैं। और नहीं मैं लेना चाहता। भगवन! सुख तो वहां है, यहां सुख किसको कहे? यहां कोई सुख हो भी तो मांग लेवे मालिक से। कबीर साहिब कहते हैं

 क्या मांगू कुछ थिर ना रहाई, देखत नैन चला जग जाई।

 एक लख पूत, सवा लख नाती। उस रावण के आज , दीया ना बाती।।

मांग लो क्या मांगे ? एक लाख बेटे थे, सवा लाख पोते और सभी नष्ट हो गए आंखों के सामने। और स्वयं भी मारा गया।

 सर्व सोने की लंका होती, रावण से रणधीरं। एक पलक में राज विराजी ,जम के पड़े जंजीरं।

तो इस नकली स्वांग को कुछ भी मांगने की आवश्यकता नहीं यहां।

दृष्टि पड़ै सो धोखा रे, खंड पिंड ब्रह्मांड चलेंगे, थिर नहीं ऐसी लोका रे। थिर नहीं रह सी लोका रे।।

यह तो दिख रहा है सब धोखा है आपके साथ। बिल्कुल धोखा। कल को कोई हमारी ही मृत्यु हो जाए। हो गया धोखा। है यह शरीर? फूककर राख बना दी। बनानी पड़ै।

और कोई नुकसान हानि हो जाए घर में। आंख खोल लो। आपकी आपके परिवार की सुरक्षा भी पूरे सतगुरु के माध्यम से कबीर साहेब की शरण में रहने से होगी। और यदि तुमने बकवास कर दी, चोट भयंकर खाओगे। परमात्मा बालक नहीं है ? अड़ंगे को इकट्ठा करके ले जाते यह सतलोक तो 64 लाख हो गए थे, 600 साल पहले। एक सेकंड में ले जा सकते थे। तो आपको 24 कैरेट का सोना बनाकर ले जाया जाएगा। यह बन जाओगे तो जाओगे। नहीं तो यही धक्के खाओगे। बच्चों!  बस आज बस इतना ही गुणगान करूंगा। आशा करता हूं आप रोज सुना करोगे। देखो मैं भी वृद्ध अवस्था में आलस नहीं करता। नहीं तो मैं भी हार मान सकता हूं। और आपके लिये सब कुछ करवा रहे है परमात्मा। इसको हल्के में ना लो।

तो समझा है तो सिर धर पांव, बहुर नहीं रे ऐसा दांव।।

 परमात्मा आपको मोक्ष दे बच्चों। सदा सुखी रहो । आपकी दृढ़ता मालिक में कुर्बान होने की आस्था बन जाए।

।।।।।।सत साहिब।।।।।


 


FAQs : "विशेष संदेश भाग 4: आत्माओं के लिए सत्संग का महत्व"

Q.1 इस लेख में क्या मुख्य संदेश दिया गया है?

इस लेख में सत्संग का महत्त्व बताया गया है। इस लेख का मुख्य संदेश यह है कि हमें परमेश्वर द्वारा दिए गए ज्ञान के आधार से जीवन जीना चाहिए और बताया गया है कि आंतरिक खुशी और अमरलोक की प्राप्ति के लिए सच्ची भक्ति अवश्य करनी चाहिए।

Q.2 इस लेख के अनुसार सत्संग सुनने का व्यक्ति के जीवन में क्या महत्त्व है?

सत्संग सुनना व्यक्ति के लिए अति आवश्यक है क्योंकि इसी से सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होता है। सत्संग सुनने से आत्मा विकारों से दूर रहती है और व्यक्ति अच्छे कर्म करता है।

Q. 3 इस लेख में वर्णित सतलोक क्या है और वह इस लोक से कैसे भिन्न है?

सतलोक एक अमर परमधाम है, जहां पर दुख, रोग, बुढ़ापा और मृत्यु नहीं होते। वह लोक इस काल द्वारा शासित लोक से पूरी तरह से भिन्न है। सतलोक की प्राप्ति करना मनुष्य का अंतिम उद्देश्य है। सतलोक यानि कि अमरलोक में परमेश्वर कबीर जी रहते हैं और वही हम सभी का आत्माओं का निज स्थान है। सतलोक अमरलोक है जबकि पृथ्वी नाशवान है।

Q.4 लेख में यह क्यों कहा गया है कि यह संसार दुखों से भरा हुआ है?

लेख में यह वर्णन किया गया है कि क्योंकि यह लोक काल द्वारा शासित लोक है और यह दुख और पीड़ा से भरा पड़ा है। काल ब्रह्म के 21 ब्रह्मांडों में कोई भी प्राणी सुखी नहीं है।

Q.5 सूक्ष्म वेद में इस संसार में आत्माओं की स्थिति के बारे में क्या प्रमाण है?

सूक्ष्म वेद में प्रमाण है कि इस संसार में आत्माएं अपने पिता यानि कि परमेश्वर कबीर जी से अलग होने के बाद जन्म और मृत्यु के चक्र में फंस गईं। इसी कारण यह दुखों और पीड़ा का सामना करती आ रही है।


 

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Arushi Gupta

इस लेख में आध्यात्मिक ज्ञान बहुत गहराई से बताया गया है। लेकिन इसका पालन करना वर्तमान कलयुग में बहुत कठिन है क्योंकि हमारे पास तो अपने परिवार के साथ बिताने के लिए भी समय की कमी रहती है, ऐसे में ईश्वर के लिए ऐसी आध्यात्मिक साधना को करने के लिए समय निकालना बहुत मुश्किल काम है।

Satlok Ashram

आरुषि जी, आप जी ने हमारे लेख में रुचि दिखाई, इसके लिए आपका बहुत धन्यवाद। देखिए वर्तमान में ईश्वर की भक्ति करना तो बहुत आसान है क्योंकि परमात्मा ने हमें पहले तो शिक्षा दी, फिर हमें शिक्षित किया और हमें सभी तरह की सुख सुविधाएं प्रदान कीं। आध्यात्मिक ज्ञान जानने के लिए समय निकालना अति आवश्यक है। जब आध्यात्मिक ज्ञान हो जाता है तो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सामंजस्य लाना भी सरल हो जाता है। देखिए सच्ची भक्ति करने की विधि तो इतनी सरल है कि इसे अपने दैनिक कार्य करते हुए भी किया जा सकता है। फिर यह विधि तो ईश्वर कबीर जी ने स्वयं बताई है, जिसके अनुसार चलकर मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। इसलिए ईश्वर की पूजा करना वैकल्पिक नहीं बल्कि मानव जीवन के लिए बहुत ज़रूरी है। भक्ति करने से ही जीवन सफल होगा अन्यथा जीवन तो जानवर भी जीकर चले जाते हैं। आप जी से निवेदन है कि आप संत रामपाल जी महाराज जी के सच्चे आध्यात्मिक प्रवचनों को यूट्यूब चैनल पर सुनिए। आप “ज्ञान गंगा” पुस्तक भी पढ़ सकते हैं।

Kalyan Desai

मैं संत रामपाल जी महाराज का हमारे पवित्र शास्त्रों के अनुसार ज्ञान प्रदान करने के लिए आभारी हूं। लेकिन मुझे यह बात अच्छी नहीं लगी कि वे दूसरों की आलोचना करते हैं क्योंकि हमें तो हर धर्म और गुरु का सम्मान करना चाहिए।

Satlok Ashram

कल्याण जी, आप जी ने हमारे लेख को पढ़कर अपने विचार व्यक्त किए, उसके लिए आपका बहुत धन्यवाद। देखिए संत रामपाल जी महाराज जी किसी धर्म या धर्म गुरु की आलोचना नहीं करते, बल्कि वे हमारे धर्म ग्रंथों से सच्चाई दिखा रहे हैं कि देखो इनमें क्या लिखा है और आप इनके विपरीत साधना कर रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज जी हमारे पवित्र शास्त्रों में बताई गई सच्चाई दिखा रहे हैं और मानवता के कल्याण के लिए समर्पित हैं। हम आपसे अनुरोध करते हैं कि आप संत रामपाल जी महाराज जी के प्रयत्नों को समझिए। अधिक जानकारी के लिए कृपया आप पुस्तक "ज्ञान गंगा" पढ़िए। आपसे निवेदन है कि आप सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को सुनिए।