सत साहेब।।
सतगुरु देव की जय।
बंदी छोड़ कबीर साहेब जी की जय।
बंदी छोड़ गरीबदास जी महाराज जी की जय।
स्वामी रामदेवानंद जी गुरु महाराज जी की जय हो।
बंदी छोड़ सतगुरू रामपाल जी महाराज जी की जय।
सर्व संतों की जय।
सर्व भक्तों की जय।
धर्मी पुरुषों की जय।
श्री काशी धाम की जय।
श्री छुड़ानी धाम की जय।
श्री करौंथा धाम की जय।
श्री बरवाला धाम की जय।।
सत साहेब।
गरीब नमों नमों सत्पुरुष कुं, नमस्कार गुरु किन्हीं। सुर नर मुनि जन साधवां संतों सर्वस दिन्हीं।।
सतगुरु साहेब संत सब, दंडोत्तम प्रणाम। आगे पीछे मध्य हुए, तीन कुं जा कुर्बांन।
कबीर सतगुरु के उपदेश का, सुनिया एक विचार। जै सतगुरु मिलते नहीं, जाते नरक द्वार।।
नरक द्वार में दूत सब, करते खैंचांतान। उनसे कबहूं नहीं छूटता, फिरता चारों खान।।
कबीर चार खानि में भरमता, कबहूं ना लगता पार। सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।।
जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से रहियो, अमरपुरी के डेरे की।।
जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से रहियो, सतलोक के डेरे की।।
निर्विकार निर्भय तू हीं और सकल भयमान। ऐजी साधो और सकल भयमान।
सब पर तेरी साहेबी, सब पर तेरी साहेबी। तुझ पर साहब ना। निर्विकार निर्भय।।
बच्चों! परम पिता परमात्मा कबीर जी की असीम रजा से आपको सत्यनारायण कथा, मूल ज्ञान सुनने को मिल रहा है और कहां से मिल रहा है। बच्चों! पीछे की सारी हिस्ट्री आपको बताई गई जैसे गरीब दास जी कहते हैं-
गरीब, साधों सेती मसखरी, चौरां नाल खुशहाल। मल अखाड़ा जीतेंगे, युगन - युगन के माल।।
इसका अर्थ यह है कि इन नकली संतों के ऊपर तो यह विश्वास करते हैं, इन चोरों नाल खुशहाल। जैसे आपको “बहदे के अंग” में बताया जा रहा है कि कैसी गलत साधना करते हैं, काल के द्वारा भ्रमित हैं। जैसे काल ने कहा था, कबीर परमेश्वर से कि मैं इनको सब गलत मार्ग पर लगाऊंगा। शास्त्र के विरुद्ध सारी साधना पर दृढ़ कर दूंगा। जब तुम्हारा दूत आएगा, तुम्हारा संदेश वाहक, तुम्हारी आत्मा तुम भेजोगे वह सच्चा ज्ञान बताने, उससे पहले तो इनको गलत ज्ञान में ऐसा रंग दूंगा कि:
जाओ जोग जीत संसारा, जीव ना माने कहा तुम्हारा।। जीव तुम्हारा कहा ना माने, हमरी ओड़ (ओट) हो वाद बखाने।। देवल, देव, तीर्थ, जप तप मन लाई। तीर्थ, व्रत और देवल पूजाईं।।
यानी मंदिर देवता, तीर्थ, व्रत, धाम, मंदिर में मूर्ति पूजाओं पर इतना दृढ़ कर दूंगा कि वह तुम्हारे संत के साथ विवाद किया करेंगे। कोई सुनेगा नहीं। तो यहां गरीब दास जी कहते हैं - साधो सेती मसखरी, चौरां नाल खुशहाल। यह चोर नकली संत इनके साथ कितने खुश होकर लगे हुए हैं। जो काल के मुंह में ले जाएंगे और संत और भक्तों के साथ यह मज़ाक करते हैं।
मल अखाड़ा जीतेंगे, ये यह युगन-युगन के माल।।
बच्चों! आप युगन-युगन के माल हो। माल मतलब रेसलर, पहलवान। इस भक्ति के अखाड़े के आप पहलवान हो। पता नहीं कितने जन्मों से यह भक्ति की रिहर्सल प्रैक्टिस आप करते आ रहे हो और आप ही विजयी होंगे। जो हाथ पर हाथ धर के बैठा है, या गलत साधना कर रहा है वह कैसे निकट आयेगा? कैसे भगवान पाएगा?
तो आप बहुत अच्छी किस्मत वाले हो। आप सामान्य आत्मा नहीं हो। आप विशेष आत्मा हो। पीछे देखो राजा हो लिए, महाराजा हो गए, इतिहास पढ़ा थे। फलाना ऐसे -ऐसे राजा थे, उनके यह ठाठ थे। अब वह ठाठ कहां गए? किथे (कहीं) नाम निशान नहीं उनका। कुत्ते बनकर धक्के खा रहे हैं। तो बच्चों! किसी की तरफ ना देखो। आज चाहे हम कितने निर्धन हैं, चाहे धनवान हैं। आप परमात्मा के विशेष प्रिय हो, लाडले हो, लाडली बेटी हो, बेटे हो। आपको उसने हाथी पर बिठा दिया है, तो कहते हैं- हाथी के असवार को, स्वान काल नहीं खाए।। आप काल की रेंज से बाहर हो लिए हो। अगर खुद ही हाथी से नीचे उतरोगे, मर्यादा तोड़ोगे तो फिर काल आपको मार डालेगा, खा जाएगा। तो अपने को अब यह ध्यान रखना होगा बच्चों! कि हम कोई मर्यादा भंग ना करें और परमात्मा के अतिरिक्त, कबीर साहेब के अतिरिक्त, स्वप्न में भी किसी देव, देवता या भगवान पर जिनको हम भगवान मानते रहे, उस पर ध्यान नहीं जाए। ध्यान का अर्थ है कि उसको दिल से नहीं चाहें। वैसे तो सबसे प्यार से रहना है। सम्मान सबको देना है, सब का रिगार्ड करना है यथाउचित।
तीनों देवा कमल दल बसें, ब्रह्मा विष्णु महेश। प्रथम इनकी वंदना, फिर सुन सतगुरु उपदेश।।
प्रथम इनकी वंदना इनकी साधना भी करनी है। भक्ति नहीं करनी। भक्ति और साधना में अंतर है। भक्ति तो जैसे पतिव्रता पत्नी होती है, उसका स्वभाव होता है, वश की बात नहीं। अपने पति के अतिरिक्त किसी के प्रति इतना भी मन में दोष नहीं आता, पति रुप वाला हो। बाकी सबका सम्मान करती है। चाहे कोई भाई है, चाहे कोई देवर है, जेठ है, दादसरा, पितसरा, ससुर कुछ भी हो। रिश्तेदार आते हैं और अपने घर में सास, ससुर, ननंद, सबके साथ अच्छा व्यवहार करती है। लेकिन स्वप्न में भी किसी गैर पुरूष को नहीं देखती तो उस पद पर हमने आना पड़ेगा। तब यह खुश होगा। अब क्या बताते हैं -
" सुकर्मी पतिव्रता का अंग"
इसके अंदर गरीब दास जी ने कुछ वाणी इतनी गज़ब की इसी दिशा की इसी प्रसंग में कहीं हैं, प्रकरण में।
गरीब सुकर्मी पतिव्रता सों, आन उपावन मूल। एक पुरुष से परस हैं, पतिव्रता समतूल।।
की सुकर्मी पतिव्रता यानी असली पतिव्रता वह है, शुभ कर्म करने वाली, अन्य उपासना नहीं करते वह भगत। एक परमात्मा से संबंध रखते हैं वह है पतिव्रता।
गरीब, सुकर्मी पतिव्रता सो जानिए, एक पुरुष से रात। निरदावैं निरवैरता, ना दूजे से बात।।
की केवल एक परमात्मा में लीन रहे और दूसरे से कोई संबंध नहीं।
गरीब, सुवाल सुखन किसको कहे, पतिव्रता जो नार। हुकुम अदुल ना मेटही, सो पतिव्रता पार।। कहते हैं हुकुम अपने परमात्मा का आदेश उसको अनदेखा नहीं करैं। गुरु वचन निश्चय कर माने, पूरे गुरु की सेवा ठाने।। गरीब घर आंगन एक सार हैं, वचन उल्लंघन ना होई। आनपुरुष से ओलने, पतिव्रता है सोई।। अन्य पुरुष से बोलना, यानी आड़ करैं। आड़ दिल से करें। परदे से नहीं।
गरीब, आन पुरुष से हंसत है, चंडी चोर चुड़ैल। जिससे क्या घर बास हैं, घर में बसे घूड़ैल।।
घुड़ैल भूतनी, चुड़ैल चंडाल कि गरीब जो आन पुरुष से हंसती है किसी की पत्नी, मज़ाक करती है वह चंडी, चोर, चुड़ैल और ऐसी से क्या घर बास हैं घर में बसै घुड़ैल। भूतनी। यानी आत्मा और परमात्मा के प्रति भी है और सांसारिक व्यावहारिक भी हैं।
गरीब, एक पुरुष अपना सही, दूजा आन अनीत। अपने पीव से रातिये और शिला सब भीत।।
अपने पति, अपने पुरूष एक परमात्मा से संबंध रखे, बाकी आन अनीत।
व्यर्थ के, फिजूल के व्यक्ति मानें। अपने पति से, पीव से रातिये
उसमें लीन हो जाइए अपने मालिक से और शिला सब भीत और सब पत्थर दीवार समझना हमारे किसी काम के नहीं, यह देवता-देवी अन्य।
गरीब, सुकर्मी घर में रहे, पतिव्रता सो नार। आन पुरुष से प्रीतड़ी, ना रखिए घर बार।।
यह व्यावहारिक बात भी बता रहे हैं कि यदि आपकी पत्नी किसी अन्य से प्रेम रखती है, उसको तुरंत त्याग दीजिए। उसको घर पर ना रखिए। इसी प्रकार कबीर साहेब कहते हैं जो मेरे को छोड़कर अन्य किसी में आस्था करेगा उसको तुरंत निकाल दूंगा। दिल से उतर जाएगा।
गरीब, पतिव्रता सूनी नहीं, रखवाले हैं राम। कल्पवृक्ष करुणामई, चौंकी आठों याम।।
की जो पतिव्रता है, वह सुनी नहीं है उसके मालिक रक्षक हैं। 24 घंटे (आठों याम) 24 घंटे उस पर नजर रहती है, दाता की।
गरीब, ज्यों बछा गऊ की नज़र में, यों साईं कु संत। भक्तों के पीछे फिरैं, भगत वच्छल भगवंत।।
जैसे गाय अपने बच्चे के ऊपर एकटक नजर रखती है। कोई कुत्ता या दूसरा पशु उसके निकट आ जाता है तो दौड़ कर जाती है, उसकी रक्षा के लिए। तो ऐसे परमात्मा आपके साथ रहेगा।
गरीब, पतिव्रता पानी चली, पांवड़ी नाहीं पाए। वस्त्र, अंग विनंग है, आपै देत ओढ़ाए।।
की पतिव्रता, गरीब दास जी कहते हैं जैसे पानी भरने कुओं पर जाया करते थे पहले और वह इतनी निर्धन है, पैरों में जूते भी ना हों। यानी भक्त- भक्तिनि। कहते हैं वस्त्र, अंग विनंग है, कोई कपड़े भी नहीं है तो मालिक अपने आप व्यवस्था कर देगा, उन बच्चों के लिए। इतना साथी है।
गरीब, पतिव्रता जमीं पर, ज्यों ज्यों धर है पांव। समर्थ झाड़ू देत हैं, ना काँटा लग जावे।।
....हे बंदी छोड़! कहते हैं पतिव्रता यानी ऐसा दृढ़ भगत मालिक में विश्वास रखने वाला अन्य में नहीं रखता। वह अपने जीवन रूपी सफर में जितने भी कदम रखते हैं, परमात्मा आगे-आगे समरथ झाड़ू देत है, उसके पाप कर्म रुपी कांटों को साफ करता चलता है कि मेरे बच्चे को, मेरे बेटा-बेटी को कोई काँटा ना लग जाए, यानी कर्म कोई दुख ना दे दे।
पतिव्रता भूखी रहे, वहां समर्थ घर सोच। ऐसी पति की स्त्री के, काल कर्म होवे मोक्ष।।
की पतिव्रता यदि भूखी है किसी कारण से परमात्मा के घर टेंशन हो जाती है और ऐसे दौर से जब कभी गुज़रना पड़ता है तब भी मन में दोष नहीं आता है। तो फिर क्या बताते हैं, ऐसे पतिव्रता, ऐसे भाव वाले बच्चे का आत्मा के काल कर्म होवे मोक्ष।।
नुक्ते ऊपर रीझेगा रे, कोटि कर्म जल जा तुम्हारे।।
इसका वही भाव है।
गरीब, पतिव्रता बतिया करें, आन पुरुष मुख जोड़। साहेब बहुत रिसात हैं, पल में बैठे तोड़।।
की मेरा भक्त, परमात्मा का भक्त, गरीबदास जी कहते हैं और आन उपासना में किसी दिन भी, ज़रा सा भी उसकी तरफ रुख हो गया, उसका भाव बन गया। की पतिव्रता बतियां करें, आन पुरुष मुख जोड़। साहेब बहुत रिसात है, पल में बैठे तोड़।। तब भगवान बहुत दुखी होता है, क्रोधित होता है और एक पल में उससे अपना रिश्ता तोड़ लेता है। उसको दिल से उतार देता है। उसका नाम खंड हो जाता है। वह काल के जाल में चला जाता है।
गरीब, नैनों आन ना देखही, श्रवण सुनैं ना बैन। रसना से बोले नहीं, सो पतिव्रता ऐन।। ऐन मतलब खास।। नैनों आन ना देखही,
नैनों मतलब देखना तो सभी को होता है लेकिन किस दृष्टि से, बकवाद दृष्टि से या मोह रूपी दृष्टि से नहीं देखें, किसी भी देव को। जैसे बिल्कुल ऐसे ही सांसारिक जीवन में बता रहे हैं और श्रवण सुनें ना बैन, किसी की महिमा भी नहीं सुनें। दूसरे इष्ट देव की या किसी अन्य ईश भगवान देव की ओर रसना से बोले नहीं, उनका समर्थन नहीं करें जो दूसरे देवताओं की महिमा गाते हैं। सो पतिव्रता ऐन।। वह पतिव्रता खास है।
गरीब, अपने पिया के पलंग पर, रहे जमीं से लाग। सो पिया की सेजा चढ़ैं, जिसके मोटे भाग।।
इसमें यहीं बता रहे हैं कि पतिव्रता परमात्मा के प्रति कितनी लगन रखती है। कैसी कसक रखती है। उतना ही परमात्मा उसके निकट रहता है। तो बच्चों! आपने अपने परमात्मा के प्रति ऐसे लगन लगानी होगी। तब दाता आपके निकट आएगा, आपके साथ रहेगा और जो गलत साधना करते हैं, उनके बारे में बताया गया है उसको फिर से आगे बताता हूं जो शेष रहता था।
बच्चों! “बहदे का अंग” और रहता है, थोड़ा सा यह सुनाता हूं, आपको।
मुसलमान मद्दारी रौला, भूल गए हैं मुर्शींद मौला।। मुसल मस्त फिरावैं पीरा। पग में लंगर लोह जंजीरा। आगे बताया है कि भोजन छोड़ रुधिर क्यों खाई। दया बिना दरवेश कसाई।।
अब जैन धर्म के बारे में बताते हैं परमात्मा। मुख मुंदैं और झूठा खावैं, आप दस्त लेवैं नहीं नहावैं।। घोरी पिंड जैन सब धर्मा, भूल गए साईं घट घर मा।। यह जितने भी जैनी हैं और दूसरे परमात्मा को भूल चुके हैं। इनको सच्चा ज्ञान नहीं।
जैनी योग वियोगम साध्या, भूल गए उस अगम अगाधा।
जैनी जो हैं, बड़ी कठिन और सयंमित साधन करते हैं। लेकिन ना गुरु इनके पास, ना गुरु बनाते यह, ना कोई ईष्ट, ना कोई नाम जपना, ना कोई भगवान है। केवल अपने जो तीर्थंकर हुए हैं इनके, उनकी मूर्ति, उन्हीं को पूजो बस।
बिना बंदगी झूठा रिश्का, वैश्या पुत्र कहावैं किसका।
की तुम्हारी स्थिति तो ऐसी है कि भक्ति बिना तुमने कती (बिल्कुल) कुछ भी काम नहीं आना तुम्हारे, कुछ भी नाम तुम्हारे पास नहीं? और जैसे गनिका के पुत्र हो जा, वह किसका पुत्र कहावैगा? कौन उसका वारिश होगा? आज तुम्हारी ऐसी स्थिति है।
जैनी जुल्म गुल्म यूं गैलां, जैसे है तेली का बैलां। घर ही कोस पचास प्यारा, भूल गए साहिब दरबारा।। जैनी जुल्म गुल्म यूं गैलां, सिर के बाल पाड़ेंगे।
कती (बिल्कुल) लहू लुहान हो जाएंगे और ऐसे कहते है आंसू नहीं आने चाहिए और रोना नहीं चाहिए। तब पक्का जैनी होगा। जैनी जुल्म गुल्म यू गैलां, जैसे हो तेली का बैलां। जैसे पहले पुराने समय में तेली कोल्हू रखा करते। उसमें एक लंबी पाट डंडा सा डाल कर बैलों से घुमाया जाता था। एक ही बैल को जोड़कर उसकी आंखें बंद कर देते थे और वह फिर उसके चक्कर काटता रहता था वहीं पर। तो कहते हैं, तुम्हारी भक्ति तो ऐसी है जैसे वह तेली वाला बैल, वही एक दायरे में चक्कर काट रहा था। यानी तुम, जन्म हुआ मर गए। कुत्ते बने, गधे बने, सूअर बने, फिर राजा, महाराजा कर्म अनुसार बन गए, देवता भी बन गए। फिर गधे-कुत्ते बने। यह तो वह तेली वाला बैल वहीं घूम रहा है।
जैनी जुल्म गुल्म यूं गैलां। जैसे है तेली का बैलां।। घर ही कोस पचास प्यारा। भूल गए साहिब दरबारा।। जैनी जुल्म जुआ ज्यों हारों। पाचों इंद्री कस कस मारों।। मन मूर्ति का मर्म ना जाना। ताते जन्म-जन्म होए स्वाना।
की जैनी जन्म जुआ ज्यों हारों जैसे जूए में हार के जाते हैं ऐसे तुम जीवन खो कर जाओगे और उधर से इतनी सयंमित साधना करते हो पांचों इंद्री कस कस मारों। संयम भी बहुत रखते हो, लेकिन भक्ति बिना क्या बने।
जैनी जल थल पुरुष विराजे। जा की सकल घडा़वल बाजे।। घट- घट में निर्गुण निर्वाणी। जैनी जाकी सार ना जानी।। जैनी जीव दया बहु बाना। कर्ता कर्म कहे अज्ञाना।। जातक सेती ऐता होई। परमानंद लखा नहीं कोई।।
अब जैनियों को बता रहे हैं। यह क्या करते हैं जैसे बच्चों! आपको बहुत कुछ समझाया जाता है यह मूल ज्ञान है। यह तत्वज्ञान है। यह सार ज्ञान है। अब क्या है जैसे किसी भी धर्म- मज़हब में कुछ एक लोग प्रसिद्ध होते हैं और बाकी भी वही साधना करते होते हैं वह क्यों ना होते? इससे पिछले उनके संस्कार होते हैं। जैसे आप भक्ति कर रहे हो, आप अजब - गजब भक्ति कर रहे हो और एक-एक मंत्र की बहुत कीमत है और किसी कारण से आपके मन में दोष आ गया काल प्रवेश हो गया आपने भक्ति छोड़ दी। तो जितनी बैटरी चार्ज हो गई आपकी सतभक्ति से वह तो डिपॉज़िट हो गई पावर। अब किसी भी धर्म- मज़हब जाति में जन्म लेगी वह आत्मा, तो पिछला संस्कार, वह भक्ति अपना असर ज़रूर दिखावैगी, प्रभाव और जिस कारण से वह प्रेरित होकर के उस धर्म की साधना डटकर करेगा। जैसे हम अखबारों में पढ़ते हैं और देखते हैं कि एक अरबपति करोड़पति आदमी दोनों ने पति पत्नी ने जैन धर्म की दीक्षा ले ली और सारा धन बांट दिया। दान कर दिया। अब वह पिछले जन्म के परमात्मा के भगत रहे हैं यह सच्ची भक्ति कर रखी थी उन्होंने और उनमें वह कसक बैलेंस थी, जिस कारण से भावुक होकर काल के जाल में पक्के फंस गए। तो यह क्या करते हैं जैनी मंदिर में जाते हैं और वहां अपनी तपस्या करते हैं, कोई स्तुति करते हैं, कहते हैं वहां फिर मंदिर में घंटिया अपने आप बजने लग जाती हैं। बस इससे यह अपनी भक्ति सफल मानते हैं। परमात्मा कहते हैं, ना कोई जाप तुम्हारे पास? ना कोई ईष्ट? ना कोई भगवान मानते यह? भगवान नहीं मानते बिल्कुल भी। जीव को ही कर्ता मानते हैं। अब क्या बताते हैं;
जैनी जन्म जुआं ज्यों हारों। पांचो इंद्री कस कस मारो।। मन मूर्ति का मर्म ना जाना। ताते जन्म - जन्म होवे स्वाना।। यो भी बहदा है बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा, बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेटें यूं जाना।।
जैनी जल थल पुरूष बिराजें, जाकी सकल घड़ावल बाजैं। घट घट में निर्गुण निर्वाणी। जैनी जाकी सार नहीं जानी।।
की तुम क्या घंटी बजा के यह सिद्धि दिखाते हो। उस मालिक की तो असंख्यो घंटियां बज रही हैं। असंख्यों बाजे बजते हैं सतलोक में।
जैनी जीव दया बहु बाना। कर्ता कर्म कहे अज्ञाना।।
जैनी जीव के प्रति दया गज़ब की दिखाते हो, करते हो और कर्म को कर्ता मानते हो। भगवान नहीं मानते। यह तुम्हारा अज्ञान है। जा तत सेती ऐता होई। जिस परमात्मा ने सारी सृष्टि रची वह परमानंद लखा नहीं कोई।। तुमने उसे परम पिता परमात्मा को नहीं समझा नहीं देखा।
मुख मूंदें हैं मूर्द फिरोसी। जिनसे साहब है सौ कोसी। ररंकार रंगी नहीं रसना। मन की कैसे मिटे हैं तृष्णा।। मुख मून्दे हैं मूर्द फिरोसी। मुख पर पट्टी बांध कर यह मुख मूर्द फिरोस।
यानी यह अज्ञानी आदमी इनसे सौ कोस है परमात्मा। तो रंरकार रंगी नहीं रसना। जिनकी कैसे मिटे हैं तृष्णा।। तुमने सच्चे नाम की डटकर भक्ति करी नहीं। इसलिए तुम्हारी आत्मा प्यासी फिर रही है। इसकी इन क्रियाओं से तृष्णा नहीं मिटेगी। परमात्मा वाली भूख शांत नहीं होगी। प्यास शांत नहीं होगी।
काया माया सकल हैं मिथ्या। या तो है सही ज्ञान की संथा।। पार ब्रह्म जाना नहीं नेड़ा, बिना बंदगी सकल बखेड़ा।। काया माया सकल हैं मिथ्या।
या तो सही ज्ञान की संथा।। पार ब्रह्म जाना नहीं नेड़ा। पूर्ण परमात्मा के निकट नहीं गए, सच्चे गुरु को धारण नहीं किया। सच्चा नाम नहीं मिला, सतनाम नहीं मिला, सच्ची भक्ति नहीं मिली तो बिना बंदगी सकल बखेड़ा।। सारा कुछ यह बकवाद है। सब काल का जाल है।
जति सेवड़े जैनी जानो, सकल जोड़िया रूप बखानों।। पार ब्रह्म की नाहीं आशा। यह चौबीसों गए निराशा।। जति सेवड़े जैनी जानो।
इन सबकी सुन लो और पार ब्रह्म की इनको चाह नहीं है। इनके चौबीस तीर्थंकार वह भी गए निराशा। वह भी ऐसे ही पल्ला झाड़ कर गए, उनको कुछ हाथ नहीं लगा।
चित्र विचित्र पत्रा पोथीं। बिना बंदगी सब ही थोथीं।। जंतर मंत्र बात बतंगा। बिना नाम झूठा सत्संगा।।
की जंतर - मंतर पत्रे वगैराह देखकर अटपट करते हो। यह सब बकवास हैं।
बिना नाम झूठा सत्संगा।
जब सच्चा नाम नहीं मिला, भक्ति सही नहीं मिली तो यह सब जहां तुम ग्रुप में बैठे हो, जाते हो जहां सत्संग सुनने जाते हो व्यर्थ है, झूठा है।
बच्चों! परमात्मा की असीम रज़ा आपके ऊपर हो रही है। जो आपको ऐसा अजब - गजब यह ज्ञान मिला। अब आपको क्या बताते हैं -
ज्ञान विचित्र योग अपारा। सर्व लक्षण सब के सरदारा।। ऋग, यजु, साम, अर्थवन भाखैं। जा मैं नाम मूल नहीं राखें।। सकल सुन्न में साहेब मौला। रक्त ना पित ना काला धोला।। ओह निर्बानी नजर ना आया। योग ज्ञान क्या रिझ रिझाया।। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा। बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेटें यू जाना।।
ऋग, यजु ,साम, अर्थवन भाखैं।
यानी इन चारों वेदों को पढ़ते हैं, सुनाते हैं और चारों को याद भी कर लेते हैं। जैसे चार वेदों को जो कंठस्थ याद किया करते थे पंडित उनको चतुर्वेदी कहा करते। जो तीन वेदों को कंठस्थ याद किया करते थे, वह त्रिवेदी और जो दो वेदों को रट लेते थे परंपरागत वह द्विवेदी। तो यहां कहते हैं;
ऋग, यजु, साम, अर्थवन भाखैं। भाषे(भाखैं) यानी इनको सुनें और सुनावैं। जा में नाम मूल नहीं राखें।
सतभक्ति करते नहीं। तो सकल सुन्न में साहब मौला। रक्त ना पीत ना काला धौला।। ओह निरबाणी नजर ना आया।। योग ज्ञान क्या रीझ रीझाया।
की क्या इस झूठी भक्ति के ऊपर तू खुश हो रहा है। तेरे कुछ पल्ले नहीं पड़ना। अब क्या कहते हैं;
काया माया पिंड और प्राणा। जा में बसै अल्लाह रहमाना।। दास गरीब मेहर से पाइए। देवल धाम ना भटका खाईए।।
संत गरीबदास जी कहते हैं कि परमात्मा इस मानव शरीर वाली काया में सतभक्ति करने से प्राप्त होगा और नाम लेने के बाद भी आपको ग्रेस मार्क की ज़रूरत पड़ती है, वह गुरु के प्रति आपका भाव जितना जैसा होगा उससे आपको राहत मिलेगी। दास गरीब मैहर से पाईए। मैहर सतगुरु दया करें दिल फेरैं, कोटि तिमर मिट जा अंधेरे।। यानी गुरु जी की मेहर, गुरुजी का आशीर्वाद आपके साथ रहेगा तो आपकी भक्ति सफल होगी। तो यह परमात्मा आपको मैहर से पाएगा। कृपा से मिलेगा और देवल धाम ना भटका खाईए। मंदिर और तीर्थो इन धामों पर कहीं नहीं जाना।
पुण्य आत्माओं! जब भगवान साथ हो जाता है तो कैसे साथ देता है जैसे आपको बताया कि पिछले जन्म के संस्कार होते हैं। उनके आधार पर भी कबीर परमात्मा ही उन भक्तों का भी साथ देता है जो गलत साधना कर रहे हैं वर्तमान में क्योंकि उसकी पिछली भक्ति का फल तो मालिक देगा उसकी रक्षा भी करेगा और उसको और दोगुना भ्रम हो होता है, कि जो मैं यह आन उपासना, मंदिर में जाता हूं कीथे (कहीं) माथा टेकू हूं, मूर्ति पूजु हूं, मुझे इससे ठाठ हो गए। इससे रक्षा हो गई। इससे मुझे यह लाभ हुआ। तो बच्चों! एक इस मूल ज्ञान से पता चलेगा आपको। जैसे दास जाता था, आन उपासना करता था। हनुमान जी के सालासर जाता था और यह सोचा करता यह सारे ठाठ इनसे हो रहे हैं। बच्चों! काल के जाल में जकड़े पड़े हो। आंख खोल लो। कितनी रज़ा दाता ने आपके ऊपर की है। यह कितने जन्मों से आपके पीछे लगा हुआ है। दया करो हमारे ऊपर। अपने ऊपर ना कर सकते तो हमारे ऊपर करो। 120 वर्ष परमात्मा कैसी स्थिति में रहकर इस गंदे लोक में आपके साथ रहा है। यहां एक दिन भी रहने का नहीं है। वह हमारा बाप है। कष्ट में, हमारे दुख में दुखी होता है और दास ने 27 साल हो गए, एक दिन भी सुख का सांस नहीं लिया और ना लूं।। भाई यह तो सतलोक में सुख है यहां तो सुख हैं ही नहीं। अब देखो यह कितना जालिम है काल।
कबीर साहेब जी कहते हैं;
तीन पुत्र अष्टांगी जाए। ब्रह्मा, विष्णु, शिव नाम धराए।। तीन देव विस्तार चलाएं। इनमें यो जग धोखा खाएं।।
यह तीनों लोक, तीनों देवता इसके सारे ढमढमें का जुगाड़ कर रहे हैं। इसकी व्यवस्था यह कर रहे हैं। एक के गुण से सृष्टि उत्पन्न होती है, यानि जीव उत्पन्न होते हैं। विष्णु के सतगुण के प्रभाव से एक दूसरे में मोह-ममता, पालन-पोषण हम बच्चों का करते हैं और शंकर जी हमें मार दें। बताओ यह कोई काम हुआ? पहले हम सुनते थे एक पैदा करें ब्रह्मा। विष्णु पालै और शिवजी मार दें। अब पता चला यह ऐसा क्यों कर रहे हैं। यह कोई बात हुई पैदा करें और फिर मारे? हे बंदी छोड़! यह काल कर रहा है। अब आंख खुली। बच्चों! इसी को संत गरीबदास जी ने और संक्षिप्त रूप से बताया है;
आदि रमैणी अदली सारा, जा दिन होते धूंधूंकारा। सत्पुरुष कीन्हा प्रकाशा, हम होते तख्त कबीर ख्वासा।।
की जिस समय सब धूंधूकार था, परमात्मा अकेले थे। फिर सतपुरुष ने प्रकाश किया। सबकी उत्पत्ति की। हम वहीं कबीर साहेब के पास रहते थे।
मन मोहिनी सिरजी माया, सत्पुरुष कबीर एक ख्याल बनाया।
धर्मराय सिरजे दरबानी, 64 युग तप सेवा ठानी।। पुरुष पृथ्वी जा कूं दीन्ही। राज करो देवा आधीनीं।।
ब्रह्मांड 21 राज तुम दीन्हा। मन की इच्छा सब जग लीन्हा। माया मूल रूप एक छाजा। मोहे लिए जिन्हु धर्मराजा।।
धर्मराय, इस काल को धर्मराज भी कहते हैं।
धर्म का मन चंचल चित धारया। मन माया का रूप विचारा।। चंचल चेरी चपल चिरागा। याके परसे सर्वस जागा।। धर्मराय किया मन का भागी। विषय वासना संग से जागी।। आदि पुरुष अदली अनुरागी। धर्मराय दिया दिल, दिल से त्याग दिया इसको।
पुरुष लोक से दिया ढहाई। सहज दास के दीप चल आए भाई।।
यानी सतलोक से इसको धक्का मार दिया 21 ब्रह्मांड और इस दुर्गा के साथ और हम दुर्गा के अंदर बीज रूप में थे। सहज दास के द्वीप के पास आया यह। फिर अपने सहज दास भाई से हाथ जोड़ने लग गया यह की मुझे यहां रख ले अपने लोक में। बस मेरे से गलती हो गई। यह परमात्मा पिता के मन से उतर गया, अपने पास रख लो। सहज दास जिस द्वीप रहंता। कारण कौन कौन कुल पंथा।। सहज दास बोला आप कौन हो? कहां से आए हो मुझे बताओ?
धर्मराज बोले दरबानी।
सुनो सहज दास ब्रह्म ज्ञानी।। 64 युग हम सेवा कीन्हीं, पुरुष पृथ्वी हमकूं दीन्हीं। चंचल रूप भया मन मोरा। मन मोहिनी ठगिया भोरा।। सत्पुरुष के ना मन भाए। पुरुष लोक से हम चल आए। अगर द्वीप सुनत बढ़भागी। सहज दास मेटो मन पागी।।
कि हे सहज दास जी! मेरा दुख दूर करो। मुझे अपने पास रख लो।
बोले सहज दास दिल दानी। हम तो चाकर सत सहदानी। सत्पुरुष से अर्ज गुजारूं। जब तुम्हारा विमान उतारूं।।
सहज दास बोला, भाई! मैं तो उसका नौकर हूं, सतपुरुष का। यानी उसके बच्चे तो हैं ही, बेटे हैं हम सारे उसके।
लेकिन मर्यादा भी ज़रूरी है। सहज दास बोला मैं तो मालिक का नौकर हूं। उससे अर्ज करूंगा। जैसा उनका आदेश होगा मैं वैसा करूंगा। तो इसी प्रकार हमने अपनी मर्जी से कोई भी काम नहीं करना चाहिए। गुरु जी के आदेश से गुरु जी को परमात्मा का स्वरूप मानकर चलोगे, जब बात बनेगी। सब काम करने चाहिए गुरु जी का आदेश लेकर।
बोले सहज दास दिल दानी। हम तो चाकर सत सहदानी। सत्पुरुष से अर्ज गुजारूं। जब तुम्हारा विमान उतारूं।।
सहज दास को किया पियाना। सतलोक लिया परवाना।। सत्पुरुष साहेब सरबंगी। अविगत अदली अचल अभंगी।।
सतपुरुष के पास गए सहज दास और दरबार में खड़े होकर अर्ज लगाई महाराज! हे परमात्मा! हे समरथ शक्ति! आपका एक नौकर मेरे पास आया है। वह कहता है मैं यहां रहूंगा मुझे रख लो। आपका क्या आदेश है प्रभु! आप जैसे कहोगे वैसे ही होगा।
धर्मराय तुमरा दरबानी। अगर दीप चल गए प्राणी। कौन हुकुम करी अर्ज अवाजा। कहां पठांऊ उस धर्मराजा।।
हे मालिक! आदेश दो उसको कहां भेजूं? बही आवाज अदली एक साचा। विषय लोक जा तीनों वाचा।। परमात्मा बोले कती (बिल्कुल) दुःखी होकर के इन पाप आत्माओं को इस विषय लोक में, गंदे लोक में बाहर भेज दो और तीनों वाचा। ऐसा नहीं मैं ऊपरले मन से कह रहा हूं। मन, कर्म, वचन से कह रहा हूं, भगाओ इनको यहां से।
बही आवाज अदली एक साच्चा। विषय लोक जा तीनों वाच्चा। तीनों वाच्चा। तन, मन और वचन से कह रहा हूं भेजो इनको। सहज दास विमान चले अधिकाई। छिन में अपने दीप चल आई।।
सेकंड में सहज दास आ गया चुपचाप अपने द्वीप में और फिर उससे बोला
हम तो अर्ज करी अनुरागी।
तुम विषय लोक जाओ बड़भागी।।
सहज दास की आंखों में पानी था अरे निकम्मे कितना बड़ा जुलम कर दिया। अब जा तू यहां से। भगवान का आदेश है तुझे नहीं रखना। जा तू उस गंदे लोक में, विषय लोक में, जा बड़भागी और बड़भागी तो वैसे कहना पड़े है। भले आदमी जा इतनी गलती कर दी तूने।
धर्मराय के चले विमाना। मानसरोवर आए प्राणा।। मानसरोवर रहन ना पाए। जहां कबीरा रूप में थाना लाए।।
वहां एक और खाली स्थान था वहां कबीर साहेब खुद बैठ गए जाकर। कहीं यह यहां रह जा हरामजादा। कहा, भाग यहां से।
बंक नाल की विसमी घाटी। तहां कबीरा रोकी घाटी। इन पांचों मिल जगत बंधाना। लख चौरासी जीव सताना।।
बच्चों! इतिहास अलग - अलग गिन दिया। दोनों गुरु - चेलों ने। कबीर भगवान और उसके बेटे गरीबदास ने। इन पाचों मिल जगत बंधाना। लख चौरासी जीव सताना।। ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर माया। धर्मराय का राज बैठाया।। इन पांचों मिल ब्रह्मा, विष्णु, महेश, दुर्गा और काल इन पांचों ने मिलकर यह सारे संसार को बांध रखा है। ऐसा जकड़ रखा है परमात्मा कबीर बिना कोई खोल नहीं सकता। इन पांचों मिल जगत बंधाना। लख चौरासी जीव सताना।। इन्होंने 84 लाख प्रकार के इन शरीरों में, इन जीवों को डालकर इनको सताये जा रहे हैं। परेशान कर रहे हैं। इन पांचों ने मिलकर यह जुल्म कर रखा है।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, माया। धर्मराय का राज बिठाया।।
ब्रह्मा, विष्णु, माया, महेश्वर और माया और पांचवा यह काल इन्होंने यह काल का यह साज बाज जचा रखा है।
यो खोखापुर झूठी बाजी। भिस्त बैकुंठ दगासी साजी।।
कहते हैं
यह खोखापुर है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, माया। धर्मराय का राज बिठाया।। यो खोखापुर झूठी बाजी। भिस्त बैकुंठ दगासी साजी।।
कहते हैं यह खोखापुर है यह 21 ब्रह्मांड। खोखा। ऊपर चमकीला खूब कवर बना रखा है डब्बा, अंदर कुछ और वो है यह। यह शरीर देख लो आपका। अब कबीर साहब कहते हैं; हाड़ चाम, हाड़ मांस और लहू के ऊपर चाम लपेट रखा है इसको तुम मांजे मांजे घूमो हो और चलो सतलोक में नूरी शरीर दूंगा। जिसमें कोई रोग नहीं, कोई कोढ़ नहीं, कोई कष्ट नहीं।
यो खोखापुर झूठी बाजी। भिस्त बैकुंठ दगासी साजी।।
यह स्वर्ग, हम तो स्वर्ग कहते हैं मुसलमान इसको भिस्त कहते हैं। कहते हैं, कती (बिल्कुल) धोखा कर रखा है, तुम्हारे साथ। यह तो होटल हैं तुम्हें लूटने के लिए।
कृत्रिम जीव भूलाने भाई। निज घर की तो खबर ना पाई।।
यह कृत्रिम जीव, यह बनावटी खिलौने बनाकर सबको भ्रमित कर रखा है। अपने निज घर सतलोक का किसी को ज्ञान नहीं।
सवा लाख उपजे नित अंशा। एक लाख विनशे नित हंसा।।
कबीर साहेब कहते हैं गरीब दास जी बता रहे हैं कि सवा लाख तो यह पैदा करें मानव और एक लाख रोज खावैं।
सवा लाख उपजे नित अंशा। एक लाख विनशे नित हंसा।।
उत्पत्ति खपती या प्रलय फेरी। हर्ष शोक जम जौरा जेरी।। पांचो तत है प्रलय माहीं। सतगुण, रजगुण, तमगुण झांई।। आठों अंग मिली हैं माया। पिंड ब्रह्मांड सकल भरमाया।। या मैं सूरति शब्द की डोरी। पिंड ब्रह्मांड लगी है खोरी।। स्वांसा पारस मन गह राखों। खोल कपाट अमीरस चाखो।।
की इसमें हम जो नाम देते हैं इसका सुमिरन करो और विश्वास के साथ रहो।
सुनाऊं हंस शब्द सुन दासा। अगमदीप है अग है वासा।।
हे हंस! तुझे आगे की बात बताता हूं। ऊपर एक सतलोक है जहां आपका असली निवास है।
भवसागर यम दंड जमाना। धर्मराय का है तलवाना।। पांचों ऊपर पद की नगरी। बाट विहंगम बंकी डगरी।। हमरा धर्मराय सू दांवा।
हमारा इस काल के ऊपर हुकम चलता है।
हमरा धर्मराय सू दांवा। भवसागर में जीव भरमावा।। हम तो कहें अगम की वाणी। जहां अविगत अदली आप कबीर बिनानी।। बंदी छोड़ हमारा नामं। अजर अमर है अस्थिर ठामम्।। युगन - युगन हम कहते आए। जमजोरा से हंस छुटाए।।
जो कोई माने शब्द हमारा। भवसागर नहीं भरमे धारा।। या में सुरति शब्द का लेखा। तन अंदर मन कहो किन देखा।। दास गरीब कबीर की वाणी। खोजो हंसा शब्द सहदानी।।
बच्चों! यह कोई समय का दांव लग रहा है आपका। थोड़ा समय है यह। यह समय Kabir God Given है ज़्यादा समय नहीं रहेगा। लेकिन जितना भी है इतने में इस काल की देही तोड़ दूंगा। इस अध्यात्म ज्ञान के गोले से दोबारा आपको तैयार, आपको इतना मज़बूत कर दूंगा, कि आप काल से टक्कर लेने योग्य हो जाओगे।
अब क्या बताते हैं, इस काल से निकलने का एक बहुत अच्छा रास्ता बता दिया। सतनाम का ज़िक्र बताया है।
ओम सोहं मंत्र सारं। सुरती निरती से करै उच्चारं। ओम सोहं मंत्र जपिये। योग युक्ति या धूनी तपीये।।
यह धूनी तप लो जो सतनाम आपको दिया है इसका जाप करो।
साला कर्म सुरती के माहीं। मन पवना जहां निरती समाहीं।। अध कपाट नाम से खुलें। सुरती पींघ चढ़ हंसा झूलैं।। सुरति हंसिनी कु जो देखें। अनंत कोटि ब्रह्मांड परेखे।।
देखो कितना गूढ़ ज्ञान है।
सार शब्द का सोहं अंगा। सुनो पुरुष का निज प्रसंगा।।
एक - एक वाणी का आधा हिस्सा भी इतना गज़ब ज्ञान से भर रखा है, गरीबदास जी ने। सैचुरेट कर रखा है। जिनको सारनाम प्राप्त है वह समझ जाएंगे इस वाणी को जो दास अब बताने जा रहा है।
सार शब्द का सोहं अंगा। सुनो पुरुष का निज प्रसंगा।।
की सोहं शब्द जो है वह सारशब्द का इकट्ठा एकल हिस्सा है। यानी सारशब्द के साथ इसका भी मेल आवश्यक है और बच्चों! जो जाप करते हैं ना सतनाम का, एक - तो कह रहा था कि मैं अपने हिसाब से सुमिरन करता हूं। ओम और सोहं के बीच में ले लेता हूं सारनाम को। यह बहुत बड़ी भूल है। कती (बिल्कुल) किया कराया नष्ट हो जाएगा। सारनाम को उसी तरह लगाना जैसे बता रखा है। कहते हैं
सार शब्द का सोहं अंगा। सुनो पुरुष का निज प्रसंगा।।
की यह सोहं हैं सारशब्द का एक पार्ट है। जैसे सतनाम दो अक्षर का है यह इसके साथ मिलकर वह भी दो अक्षर का बनता है।
सुनो पुरुष का निज प्रसंगा।
सतपुरुष परमात्मा का फिर निज प्रसंग यानी यथार्थ मूल ज्ञान प्रकरण प्रसंग सुनो। यह जाप करो। इसको समझने के लिए कि सोहं कैसे सारशब्द का अंग है। पार्ट है। उस सतपुरूष का जो सच्चा ज्ञान रखता है उस संत से वह प्रसंग सुनो।
अष्ट कमल दल पूर्ण पाया। सुरती हंसिनी हंस समाया।। सोहं सुरति शब्द से आई। अनंत लोक जाकी ठुकराई।।
बच्चों! सतगुरु मिले जब तत्वदर्शी।
मूल मंत्र कोई हंसा परसी।। समाधान है सतगुरु समूलं। गरीबदास निज पाया मूलं।।
की सतगुरु मिले कोई तत्वदर्शी।
मूल मंत्र कोई हंसा परसी।।
की इस ज्ञान को भागवान, अच्छा हंस ही पकड़ेगा। परमात्मा के इस ज्ञान को जो पुण्य आत्मा हैं और समाधान है सतगुरु समूलं। इस जन्म-मरण के झंझट से, काल के जाल से, निकलने का समूल समाधान कंप्लीट उस सतगुरु के पास होता है। गरीबदास निज पाया मूलं।। की हमने वह निज मूल मंत्र और मूल ज्ञान मिल गया है, जो आज दास के पास है।
धर्मदास मेरी लाख दुहाई। यह मूल ज्ञान और यह सार शब्द कहीं बाहर नहीं जाई।।
क्योंकि मूल ज्ञान तब तक छुपाई। जब लग द्वादश पंथ ना मिट जाई।।
भजन करो उस रब का। जो दाता है कुल सबका।। भजन करो उस रब का। जो दाता है कुल सबका।। बिना भजन भय मिटै न यम का, समझ बूझ रे भाई। सतगुरु नाम दान जिन दीन्हां, उन संतों को मुक्ति पाई।। सत कबीर नाम कर्ता का, कल्प करे दिल देवां। सुमिरन करें सुरति से लापैं, पावैं हर पद भेवां।। आसन बंद पवन पद परचें, नाभि नाम जगावें। त्रिकुटी कमल में पदम झलकैं, जा से ध्यान लगावैं।। सब सुख भुगता जीवित मुक्ता, दुख दारिद्र दूरी। ज्ञान ध्यान गलतान हरि पद, ज्यों कुरंग कस्तूरी।। गज मोती हस्ति के मस्तिक, उनमुन रहे दीवाना। खावैं ना पीवैं मेंगल घूमे, आठ वक्त गलताना।। ऐसे तत पद के अधिकारी, पलक अलख से जोड़ैं। तन मन धन सब अर्पण कर हीं, नेक ना माथा मोड़ैं।। बिन ही रसना नाम चलत हैं, निर्वाणी से नेहां। गरीबदास भोडल में दीपक, न्यू छानी नहीं स्नेहा।।
कितनी प्यारी बात कही है।
भजन करो उस रब का जो दाता है कुल सबका।। भजन करो उस रब का जो दाता है कुल सबका।। बिना भजन भय मिटे न यमका समझ बूझ रे भाई। सतगुरु नाम दान जिन दीन्हां, उन संतों को मुक्ति पाई।। सत कबीर नाम कर्ता का, कलप करैं दिल देवां। सुमिरन करैं सुरती से लापैं, पावैं हरि पद भेवां।। भजन करो उस रब का। जो दाता है कुल सबका।। सत कबीर नाम कर्ता का, कल्प करे दिल देवां और सुमरन करें, सुरती से लापैं। पावैं हरिपद भेवां।।
सुमरन का तरीका बताया है कि सुमिरन करें और
सुरति से मन - मन में ध्यान से लापैं। लापैं मतलब विलाप करें।
जैसे कई बार इतना वैराग हो जाता है इतनी भावुक हो जाती है यह आत्मा अपने परमात्मा के प्रति, उसके गुणों को याद करके, हे भगवान! हम कैसे दुष्ट, कैसे नीच हैं आपको छोड़कर आ गए। कहते हैं, यह गुण लाप करैं उस मलिक के। यानी उसको याद करके ऐसे विलाप की तरह हृदय में कसक बनाकर सुमिरन हो।
सत कबीर नाम कर्ता का।
क्या बताते हैं, बिना भजन भय मिटै नहीं यमका, बिना भजन भय मिटैं नहीं यमका, समझ बूझ रे भाई। सतगुरु नाम दान जिन दीन्हां, उन संतों को मुक्ति पाई।। उन भक्तों को। यानी जिनको सतगुरु ने नाम दे दिया उनको मोक्ष मिलेगा और जो यह बनावटी बातें करते हैं जो कि “बहदे के अंग” में आपको बता रहे हैं, बताया और भी समझायेंगे बहुत कुछ है इसमें मैटर। तो
बिना भजन भय मिटे नहीं यमका। समझ बूझ रे भाई। क्या कहते हैं निरबान निरंजन चिन्ह भईया, दुख दारिद्र मोक्ष करैं कर्ता।। गर्भवास मिटे, निज नाम रटैं, क्यों युगन- युगन चोले धरता।। चुंडित मुंडित पकड़ लिए इनसे यम किंकर ना डरता।। तू कौन कहां से आन फंसा, देखो आगे बिरानी क्यों जलता।।
बच्चों!
दृष्टि पड़े सो धोखा रे, खंड पिंड ब्रह्मांड चलैंगे, थिर नहीं रहसी लोका रे।। थिर नहीं रहसी लोका रे।।
विचार करो क्या तुम इस संसार में रहोगे? एक दिन जाना होगा और उसका यह भी पता नहीं कब हो जाए। तो इसके मूल कौन है यह हमें रोकने वाला काल और इसके तीन देवता यह सारा हमारा धोखा करके हमें रखा हुआ है। यह बेटा, यह बेटी यह शरीर। यह शरीर खत्म होते ही दो मुट्ठी राख है। हम इसमें माचे माचे हांडा (घूमे) हम सारा दिन। जो काम करने का था उसको भूल गए बकवादों में काल ने लगा दिए। यह मन काल का पक्का दूत है। अब आत्मा मजबूत करनी है, इस ज्ञान से।
दृष्टि पड़े सो धोखा रे। खंड पिंड ब्रह्मंड चलेंगे, थिर नहीं रहसी लोका रे।। थिर नहीं रहसी लोका रे।। रजगुण ब्रह्मा, तमगुण शंकर, सतगुण विष्णु कहावैं रे। चौथे पद का भेद न्यारां, कोई बिरला साधु पावै रे।। बिरला साधु पावै रे।।
देखो मार्कंडेय पुराण में बताया है कि यही तीन देवता हैं। यही तीनों गुण हैं। कबीर साहेब कहते हैं, गुण तीनों की भक्ति में, भ्रम रहो संसार।
कहे कबीर निज नाम बिना कैसे उतरो पार।। तीन देव की जो करते भक्ति।
उनकी कदे ना होवे मुक्ति।। 600 साल पहले तो यह कड़वी लगै थी हमने झूठी दिखे थी यह बातें और आज सारी सच्ची हो गई। यह उस दिन भी सत्य थी और आज भी सत्य है। यह तीन तो ब्रह्मा, विष्णु, महेश चौथा इनका पिता। इस चौथे के बारे में भी कोई नहीं जानता। इसको भी कोई विरला साधु बताता है। अब
चौथे को छोड़े, पांचवें को ध्यावैं। यानी सतलोक सत्पुरुष का जो ध्यान लगावे उसमें आस्था बनावे। कहे कबीर वह हम पर आवैं।।
ऋग, यजु है साम, अर्थवन चारों वेद चितभंगी रे। सूक्ष्म वेद बांचे साहेब का, सो हंसा सत्संगी रे।।
अलंकार अघ है अनुरागी, दृष्टि मुष्टी नहीं आवैं रे। अकह लोक का भेद ना जाने, यह चारों वेद क्या गावैं रे।।
अकह लोक वैसे तो अनामी लोक है। लेकिन यह ऊपर के सारे लोकों के बारे में किसी ने कुछ नहीं कहा। उन ऊपर के चार अविनाशी लोकों का एक ग्रुप है उसको अमरलोक भी कहते हैं। सारे को भी अमरलोक कहते हैं। तो तुम अकह लोक के बारे में जानते ही नहीं? इन चार वेदों को कितना ही गा लो और कितना ही याद कर लो। कोई यूज़ नहीं।
आवे - जावे सो हंसा कहिए, परमहंस नहीं आया रे। पांच तत्व तीन गुण तुरा, या तो कहिए माया रे।। सुन्न मंडल सुखसागर दरिया, परमहंस परवाना रे। सतगुरु महली भेद लखाया, है सतलोक निदाना रे।। अगमदीप अमरापुर कहिए।
ओए होए.. अगमदीप अमरापुर कहिए, हिलमिल हंसा खेलैं रे। दास गरीब देश है दुर्लभ, सांचा सतगुरु बेलैं रे।। दास गरीब देश है दुर्लभ, देश है सांचा सतगुरु बेलैं रे।।
चल हंसा सतलोक हमारे छोड़ों यह संसारा रे।
उसके बारे में बता रहे हैं।
अगमदीप अमरापुर कहिए, जहां हिलमिल हंसा खेले रे। दास गरीब वह देश है दुर्लभ, सांचा सतगुरु बेलैं रे।।
बच्चों! आपको सूक्ष्म वेद पढ़ने को मिल रहा है। तो बच्चों! आपको वह पूर्ण सतगुरु, सच्चा नाम, सच्चा भगवान और सच्चा ज्ञान प्राप्त है। आप जैसी किस्मत पृथ्वी पर 21 ब्रह्मांड में नहीं है। आपका मोक्ष होगा। मालिक आपको मोक्ष दे। आपको दृढ़ता दे। आपकी रक्षा करें। आपका वास सतलोक में है नोट कर लेना। मर्यादा में रहना। परमात्मा आपको मोक्ष दें। सद्बुद्धि दें। आप सदा सुखी रहो।
सत साहेब
FAQs : "विशेष संदेश भाग 9: परमेश्वर पर विश्वास पतिव्रता पत्नी की तरह होना चाहिए"
Q.1 गरीबदास जी महाराज द्वारा वर्णित सत्यनारायण कथा का सार क्या है?
गरीबदास जी महाराज द्वारा वर्णित सत्यनारायण कथा का सार सर्वोच्च ईश्वर कबीर साहेब जी की सच्ची भक्ति के महत्व को बताना है। इसमें झूठे संतों द्वारा भ्रमित करने वाली प्रथाओं का भी वर्णन है। इसमें स्पष्ट बताया गया है कि हमें कबीर साहेब जी की भक्ति करनी चाहिए और मूर्ति पूजा जैसी क्रियाएं बिल्कुल नहीं करनी चाहिएं क्योंकि इसका प्रमाण हमारे पवित्र शास्त्रों में नहीं है।
Q.2 सूक्ष्म वेद के अनुसार ब्रह्म काल, लोगों को गुमराह कैसे करता है?
ब्रह्म काल हमारे पवित्र शास्त्रों के विरुद्ध साधना करवाता है, गलत प्रथाओं जैसे मंदिर पूजा, मूर्ति पूजा, तीर्थयात्रा, उपवास और त्यौहारों आदि का प्रचार करवाकर लोगों को गुमराह करता है। ब्रह्म काल यह चाहता है कि लोग इन गलत प्रथाओं पर इतने दृढ़ हो जाएं कि वे सच्चे संत के बताए गए सच्चे भक्ति मार्ग को भी न मानें।
Q. 3 गरीबदास जी महाराज ने 'सुकर्मी पतिव्रता' के बारे में क्या बताया है?
'सुकर्मी पतिव्रता' एक ऐसे भक्त या साधक को कहा जाता है, जो शास्त्रों के अनुकूल समर्पित भाव से केवल पूर्ण परमेश्वर की भक्ति करता है। ऐसे भक्त या साधक की तुलना एक समर्पित पत्नी से की जाती है, जो परिवार में सभी का सम्मान करती है। लेकिन उसके दिल में केवल अपने पति के लिए सच्ची भावना होती है।
Q.4 इस लेख के अनुसार परमेश्वर कबीर साहेब जी ने अन्य देवी-देवताओं की पूजा के बारे में क्या बताया है?
इस लेख के अनुसार परमेश्वर कबीर साहेब जी ने अन्य देवी-देवताओं की पूजा करने को व्यर्थ बताया है क्योंकि एक सच्चे भक्त को पूर्ण ब्रह्म परमात्मा कबीर साहेब जी की भक्ति के अलावा किसी अन्य देवी देवता की भक्ति नहीं करनी चाहिए। लेकिन सभी देवी-देवताओं का आदर ज़रूर करना चाहिए।
Q.5 इस लेख के अनुसार जैनियों द्वारा की जाने वाली भक्ति की तुलना किसके साथ की गई है?
इस लेख में जैनियों द्वारा की जाने वाली भक्ति की तुलना एक तेली के बैल से की गई है। उस बैल की आंखों पर पट्टी बांधकर उसे एक ही स्थान पर चक्कर लगाने के लिए छोड़ दिया जाता है। ठीक इसी प्रकार सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान के बिना मनुष्य जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसा रहता है क्योंकि उसे सच्चे ज्ञान, सच्चे गुरु और सच्चे मंत्र प्राप्त नहीं होते।
Q.6 पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी अपने भक्तों की रक्षा कैसे करते हैं?
परमेश्वर कबीर साहेब जी हम सभी के रक्षक हैं। वे अपने भक्तों की गतिविधियों पर चौबीसों घंटे नज़र रखते हैं। वे अपने भक्तों की हर बाधा और खतरे से रक्षा करते हैं। जैसे गाय अपने बछड़े को खतरे से बचाती है, वैसे ही पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी भी अपने भक्त को सदा बचाते हैं।
Q.7 गरीबदास महाराज जी की शिक्षाओं के अनुसार साधक का अंतिम लक्ष्य क्या है?
गरीबदास जी के अनुसार साधक का अंतिम लक्ष्य परमेश्वर कबीर जी की सच्ची भक्ति करते हुए, सच्चे मोक्ष मंत्र प्राप्त करना और सच्चे गुरु के मार्गदर्शन का सदैव पालन करना है। केवल ऐसा करने से ही जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल सकती है। फिर साधक अपने निज धाम यानि कि सतलोक की प्राप्ति कर लेता है।
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Priyanka Sharma
यह लेख बहुत ही प्रभावशाली है। श्री कृष्ण जी में मेरी बहुत गहरी आस्था है और मेरा मानना है कि वे मेरे जीवन की हर कठिनाई में वह मेरी सहायता करते हैं। जिस तरह उन्होंने सुदामा, द्रौपदी और कई अन्य लोगों की मदद की, उसी तरह मैं भी अपने जीवन में उनकी कृपा को महसूस करता करती हूं। उनकी इस कृपा का कारण मेरा जन्माष्टमी पर उपवास रखना और रोज़ाना श्री कृष्ण जी के मंदिर जाना है।
Satlok Ashram
प्रियंका जी, आप जी ने हमारे लेख को पढ़ा और अपने विचार बताए इसके लिए आपका हार्दिक आभार। देखिए हमारे पवित्र शास्त्रों के विपरित की गई साधना जैसे कि उपवास करना और मंदिर जाना आदि से साधक को कभी कोई लाभ प्राप्त नहीं होता। इन प्रथाओं का निर्वाह करने के कारण आप जो लाभ अनुभव कर रही हैं, वे वास्तव में आपके पिछले अच्छे कर्मों के कारण आपको मिल रहा है। सुदामा जी , द्रोपदी जी और अन्यों की मदद भी पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी ने ही की थी परंतु उनका श्रेय श्री कृष्ण जी को दिलवाया क्योंकि जिस भी मनुष्य की जिस भी ईष्ट में आस्था होती है परमेश्वर उसी के रूप में आकर भक्त की मदद कर जाते हैं। अधिक जानकारी के लिए आप "ज्ञान गंगा" पुस्तक को अवश्य पढ़िए। आप विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को भी सुन सकते हैं।