विशेष संदेश भाग 8: अथ षट दर्शन घमोड़ बेहदा।


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सत साहेब।।

सत साहेब।।

सतगुरु देव की जय।

बंदी छोड़ कबीर साहेब जी की जय।

बंदी छोड़ गरीबदास जी महाराज जी की जय।

स्वामी रामदेवानंद जी गुरु महाराज जी की जय हो।

बंदी छोड़ सतगुरू रामपाल जी महाराज जी की जय।

सर्व संतों की जय।

सर्व भक्तों की जय।

धर्मी पुरुषों की जय।

श्री काशी धाम की जय।

श्री छुडा़नी धाम की जय।

श्री करोंथा धाम की जय।

श्री बरवाला धाम की जय।।

सत साहेब।।

गरीब नमो नमो सतपुरुष कुं, नमस्कार गुरु किन्हीं। सुर नर मुनि जन साधवां, संतों सर्वस दिन्हीं।।

सतगुरु साहेब संत सब, दंडवतम प्रणाम। आगे पीछे मध्य हुए, तीन कूं जा कुर्बांन।।

कबीर सतगुरु के उपदेश का, सुनिया एक विचार। जै सतगुरु मिलते नहीं, जाते नरक द्वार।।

नरक द्वार में दूत सब, करते खैचांतान। उनसे कबहूं नही छूटता, फिरता चारों खान।।

कबीर चार खानि में, भरमता कबहूं ना लगता पार। सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।।

जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से बसियो, अमरपूरी के डेरे की।।

जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से बसियो, सतलोक के डेरे की।।

निर्विकार निर्भय तू ही और सकल भयमान। ऐजी साधो और सकल भयमान।

सब पर तेरी साहेबी, सब पर तेरी साहेबी तुझ पर साहब ना।।

निर्विकार निर्भय।।

बच्चों! परमपिता परमात्मा कबीर जी सारी सृष्टि के मालिक हैं। कुल के मालिक हैं। सबके उत्पत्ति कर्ता, सबके धारण पोषण करने वाले। कर्मों के बंधन को काट कर काल से छुड़वाने वाले बंदी छोड़ हैं। बच्चों! आप किस्मत वाले हो बहुत अच्छी किस्मत लेकर जन्मे हो। आपको परमात्मा की शरण प्राप्त है कबीर साहेब की और इस घोर कलयुग के अंदर आज किसी के पास इतना समय नहीं है कि किसी से आपस में बात कर ले। या कोई रिश्तेदारी में चला जाए, फोन पर बात होती है बस। बाकी माया के जोड़ने में दिन-रात एक कर रखी है और कोई सेठ हुआ नहीं दिखाई देता। काल ने सबकी ऐसे ही बुद्धि फेर रखी है। काल चाहता है कि मनुष्य जीवन प्राप्त करके यह प्राणी प्रथम तो राम नाम इसको याद नहीं आवे और कोई पिछले संस्कार से प्रेरित हो तो उसको जैसे बताया था इसने परमात्मा से वार्ता हुई जब की

तीर्थ व्रत जप तप मन लाऊं। तीर्थ व्रत देवी देव पूजवाऊं।।  

और इस तरह गलत साधना पर लगा दूंगा जिनसे कोई लाभ होना नहीं और यह मानव अपना जीवन नष्ट कर जाएगा और पहली बात तो यह कोशिश करता है, कि सभी नास्तिक हो जाएं। अब देखा दास ने देखा गांव का गांव जिस गांव में दास का जन्म हुआ और सभी गांव में रिश्तेदारियां थी हमारी जहां-जहां गये। बहुत ही नेक ईमानदार अच्छी नेक नीति से रहने वाले और सभ्य इंसान होते थे। लेकिन राम के निकट नहीं थे क्योंकि उनको यह समझ में आ गई थी इतना सुन रखा था कि सब पाखंडी संत हैं। दुनिया को लूटते फिरते हैं। सारी झूठ बोलते हैं पैसे के लिए सब यह करते फिरते हैं। अपना काम करो और अपना ठीक से ईमानदारी से जीवन जीवो। कमाओ और खाओ। यह नास्तिक हुए बैठे सारे क्योंकि सतयुग से लगे थे हम परमात्मा की भक्ति करने के लिए। उसको पाने के लिए साधनाएं की, कठिन से कठिन तप किये हम सबने। लेकिन रास्ता ठीक ना होने से कुछ भी हासिल नहीं हुआ। कुछ भी हाथ नहीं लगा। सतयुग से लगे थे हम भक्ति करने। कठिन तप किए खड़े होकर। अग्नि में बैठकर। पानी में खड़े होकर। वेदों को पढ़ा ऋषियों ने हमारों ने फिर हमें बताया।

तो उसके अनुसार यजुर्वेद अध्याय नंबर 40 श्लोक 15 में केवल एक ओम नाम है। चारों वेदों में एक स्थान पर यह ओम नाम का जाप करने का संकेत है। ओम नाम का जाप काल ब्रह्म का है। हमने डट कर भक्ति करी। जैसे गांव में कोई भक्ति का मार्ग प्रदर्शन करने आया करते थे प्रचार करते थे। वह भी कहा करते थे कि ओम नाम सबसे बड़ा इससे बड़ा नहीं कोई। ओम नाम का सुमिरन करें तो उसकी मुक्ति होय। अब पता चला तो गरीबदास जी ने कहा;

यह यम के हल्कारे फिरैं हाथों में लिये वेद।। यह काल के दूत थे सारे। जो गलत मार्गदर्शन कर गए। ओम नाम का जाप किया ब्रह्मा जी ने, तप किया। काल ने उसको वेद प्राप्ति से पहले आकाशवाणी की थी कि तप करो। तो ब्रह्मा जी ने तप किया। काल ने उसको वेद प्राप्ति से पहले आकाशवाणी की थी कि तप करो। तो ब्रह्मा जी ने वह आकाशवाणी को परमात्मा का आदेश माना और यह अपने वंशज ब्राह्मणों, ऋषियों को बता दिया। तो सबने यह आकाशवाणी परमात्मा की मानकर ब्रह्मा जी के बताए अनुसार तप किये घोर जैसे ब्रह्मा जी कहते हैं मैंने 1000 वर्ष घोर तप किया। फिर आकाशवाणी हुई की सृष्टि करो। जैसे आपको बताया था श्रीमद् देवी भागवत के अंदर प्रथम स्कंद में प्रसंग आता है, कि नारद जी ने ब्रह्मा जी से पूछा अपने पिता से, पिताजी! सारी सृष्टि का मालिक कौन है? कबीर साहेब कहते हैं इन्हें अब तक यहीं नहीं पता, संशय इनका निवारण नहीं हुआ, अब तक किसी का भी। अब शिव जी को देख लो वह तप करता है समाधि लगाता है।

शंकर ध्यान धरै निसवासर, अजहूं ताहि सुलझावें।।

अभी तक उसको यहीं नहीं समझ में आई कि यह भगवान है कौन? और ना ही देखा उसको समाधि में। इनसे तप आ जाता है तप से सिद्धि आ जाती है। नारद जी ने ब्रह्मा जी से पूछा भगवन! मालिक कौन है? और किसकी भक्ति करनी चाहिए? ब्रह्मा जी ने बताया कि मैं एक बार विष्णु जी के पास गया मिलने। वह समाधि लगाए बैठे थे। बहुत देर के बाद उनकी समाधि खुली तब मैंने उनसे पूछा कि हे भगवन! आप सबके मालिक हो। आप सबके रचनहार हो, आप किसका ध्यान लगा रहे हो? किसकी भक्ति करते हो? विष्णु जी बोले मैं दुर्गा जी की भक्ति करता हूं और मेरे संज्ञान में इससे ऊपर कोई शक्ति, कोई भगवान नहीं है और मैं ज्यादातर तप करता हूं तप करके फिर सिद्धि प्राप्त हो जाती है, फिर राक्षसों से लड़ता हूं उनको मारता हूं। कोई थोड़ा बहुत समय मिलता है तो घर पर रह पाता हूं। अब ना नारद को पता। ना ब्रह्मा को पता। यह पुराणों की बात है यह तो, जिनको यह सच्चा मानते हैं। और ना विष्णु को पता भगवान है कौन?

बच्चों! देखो आपकी किस्मत सरहाओ। आपको कितना निर्णायक ज्ञान मिला। ऋषियों ने साधनाएं कीं। आम साधारण व्यक्ति समझ गया, की इतना तप इतना कठिन साधना करने से भगवान की प्राप्ति होती है यह हमारे वश का नहीं। हम नहीं कर सकते इसलिए अपना काम धंधे में लगे रहे, बच्चे पैदा करो काल के लिए पालो - पोसो और मर जाओ। तो इन साधनाओं को गरीब दास जी ने कैसे खंडन किया है। की यह गलत साधनाएं करते हैं और देखो थोड़ी सी वाणी सुनाता हूं आपको। संत गरीबदास जी द्वारा अजब- गजब ज्ञान दिया हुआ है।

कामधेनु एक दूजै तैयां। सुरती गुजरी बहुत है बिन बहियां।।

है गुजरी मत की मतवारी। आठ बखत उतरे नहीं खुमारी।।

‌दूझै अमृत आनंद कंदा। पीवत होत अति आनंदा।।

अमी महारस दूझै धेनं। कामधेनु दुहिई दिन रेनं।।

या रस की मोहै छाक पड़ी है। शब्द सलौने आग बली है।।

यानी हमारे को सच्चा नाम मिला  सारनाम, सतनाम इसने ऐसी डीक बाल (जला) दी। ऐसी रोशनी कर दी, ऐसी लगन लगा दी।

या रस की मोह छाक पड़ी है।

यानी सच्चे नाम के सिमरन से जो आनंद आता है उसकी मुझे चाह है। भूख लगी है। और

शब्द सलौने आग लगी है। सलौने।। 

सारनाम का है गठबंधन। गरीबदास टूटैं सब फंदन।।

देखो कितना रहस्य भरा पड़ा है इस छोटी सी पंक्ति में, लास्ट वाली में।

सारनाम का है गठबंधन। गरीबदास टूटें सब फंदन।।

सारनाम जो  एक गठबंधन है यह नामों का एक जोड़ है।

गठबंधन यानी एक से अधिक नाम का संयोग से बना है यह। जिनको सारनाम प्राप्त है वह समझ गए होंगे।

देखो सुंदर साहेब सलौना। मूर्ति मधुर बजावे बैना।।

अनंत कोटि सखियन का स्वामी। देखा दूल्हा अंतर्यामी।।

अब जैसे परमात्मा को निराकार बताते हैं यहां गरीबदास जी स्पष्ट करते हैं।

श्वेत छत्र सिर स्वेत मुकुट विराजे। श्वेत वस्त्र तन पर साजै।।

उसका सफेद छत्तर है।

और सफेद ही मुकुट सिर के ऊपर रखा है। और सफेद वस्त्र शरीर पर धारण किए हुए हैं।

डूरे सुहंगम चँवर अनादं। जा नगरी नहीं वाद विवादं।।

सुरती कमल कैलाश कलंदर। बैठे सतगुरु धनी मुनिंद्र।।

धनी मुनिंद्र मोनी साईं। है देवा दरवेश गोसाईं।।

 गांवै अनहद बैन बिलासा। गगन गुफा मंदिर में बासा।।(एक गुंबद में)

संकट मोचन पुरुष कबीरं।  समर्थ साहब सुख का सीरं।।

 कोटि-कोटि गंगा और काशी। चरण कमल तुमरे अविनाशी।।

आनंद घन पद अघ है ऊंचा। गरीबदास कोई पावै सूचा।।

इसमें स्पष्ट कर दिया है, की संकट मोचन पुरुष कबीर, सबके दुखों को काटने वाले, दूर करने वाले कबीर पुरुष हैं।

कबीर परमेश्वर हैं और परम पदार्थ सुख का सीरं।। परम पदार्थ सबसे श्रेष्ठ परमात्मा और सुख का सीरं।।

यही सुख का दाता है। बच्चों! हमारा मोक्ष नहीं होने का एक कारण रहा है। काल ने सबको भ्रमित कर रखा है। जैसा सृष्टि रचना के द्वारा आपको बताया गया। काल ने कहा था, सबको उल्टे रास्ते लगा दूंगा। किसी को सच्चा मार्ग नहीं बताऊंगा। बच्चों! आपको अमर वाणी सुन रहा हूं अमर ग्रंथ की। जहां से दास बोल रहा है और यहां से परमात्मा ने कैसा अजब गजब करके आप तक यह सत संदेश पहुंचाया है इस पर अमल करना। अब देखो काल के द्वारा भ्रमित इन पंथों के बारे में परमात्मा बताते हैं। गरीबदास जी उस ज्ञान को अपने शब्दों में इस प्रकार बताया है।

।।अथ षट दर्शन घमोड़ बहदा।।

षट दर्शन षट भेष कहावैं, बहु विधि धूंधूं धार मचावैं। तीर्थ व्रत करे तरविता, बेद पुराण पढ़त हैं गीता।।

यानी साधना का तो डूंडा उठा रहे हैं। यानी तहलका मचा रखा है इन्होंने। पता नहीं किस-किस प्रकार की कठिन से कठिन साधना करते हैं। तीर्थ व्रत करते हैं और गीता पुराण वेद इनका पाठ करते हैं।

और गरीब दास जी क्या बताते है :

ऋज्ञयजु है साम अर्थवन, यह चारों वेद चितभंगी रे। सूक्ष्म वेद बांचै साहब का, सो हंसा सत्संगी रे।। सो हंसा सत्संगी रे।।

यह चारों वेद चितभंगी भ्रमित ज्ञान है।

इसी विषय में यहां कहा है:-

षट दर्शन षट भेष कहांवैं, बहु विधि धूंधूं धार मचावैं।

तीर्थ व्रत करे तरविता, बेद पुराण पढ़त है गीता।

यो भी बेहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा।। यानी यह व्यर्थ है। यह भी व्यर्थ की साधना फिजूल है।

चार संप्रदाय बावन द्वारे, जिन्हों नहीं निज नाम विचारे। माला घाल हुए हैं मुक्ता, षट दल ऊवा बाई बकदा।। चार संप्रदाय और बावन द्वारे, जिन्हों नहीं निज नाम विचारे।

यह सब संस्थाएं हैं।

और माला घाल हुए हैं मुक्ता।

गले में माला  तीन-चार डाल ली।

कोई कंठी माला, कोई सुमिरन करने वाली माला या वैसे मिले रुद्राक्ष के मणके की। ढेर सारी डाल लेते है। कहते हैं

माला घाल हुए हैं मुक्ता। षट दल ऊवाबाई बकदा। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा।।

बैरागी बैराग ना जाने, बिन सतगुरु नहीं चोट निशाने। बारह बाट बिटंब बिलोरी, षट दर्शन में भक्ति ठगौरी।। यो भी बहदा है बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा।

बैरागी बैराग ना जाने, बिन सतगुरु नहीं चोट निशाने।

बैरागी घर त्याग देते हैं परमात्मा के वैराग में, चाह में, लगन में। कहते हैं जब तक सच्चा नाम, सच्ची भक्ति, पूरा सतगुरु और मूल ज्ञान नहीं होगा कोई साधना कर ले सब बहदा है। व्यर्थ है। कहते हैं फ़िज़ूल है।

गरीबदास जी कहते हैं;

केले की कोपिन है, फूल पान फल खाहीं। नर का मुख नहीं देखते, बस्ती निकट ना जाहीं।।

वह जंगल के रोज हैं, मनुष्यों विदके जाहीं। निशदिन फिरो उजाड़ में, ऐसे मालिक पावै नाहीं।। साहब मिले नाही।

यहां पर वही बात कही है-

चार संप्रदाय बावन द्वारे, जिन्हों नहीं निज नाम विचारे। माला घाल हुए हैं मुक्ता, षटदल ऊवाबाई बकदा।।

फिर कहते हैं बैरागी बैराग ना जाने, बिन सतगुरु नहीं चोट निशाने।।

यह बैरागी बनकर एक घर त्याग कर घूमते हैं। उनके विषय में बता दिया। वह तो जंगल के रोज है। कहीं धक्के खा लो सच्चे नाम बिना, सच्चे सतगुरु बिन और इस मूल ज्ञान बिना जीव की मुक्ति नहीं हो सकती।

बिन सतगुरु नहीं चोट निशाने। ओये होय..

सतगुरु के बिना यह समस्या हल नहीं हो सकती। सही ठीक ठिकाने के मंत्र नहीं मिलेंगे। निशाने पर चोट नहीं लगेगी।

बारह बाट बिटंब बिलोरी। षटदर्शन में भक्ति ठगौरी।

यह षट दर्शनी हैं गिरी, पुरी, नाथ, वैष्णो, सन्यासी, ओघड़ , नंगड़, नागा कहते हैं इनमें भक्ति गलत है। इनको ठग रखा है काल ने। भ्रमित कर रखा है।

सन्यासी दस नाम कहावैं, शिव - शिव करें ना संशय जावें।। निर्बानी नि: कच्छ निसारा, भूल गए है ब्रह्म द्वारा।

क्या स्पष्ट कर दिया कि

सन्यासी दश नाम कहावैं,

दशनामी एक पंथ है। और वह शिव के उपासक है। कहते हैं

शिव शिव करे ना संशय जावें।।

इनके नाम क्या हैं?- 10 नियम है इनके। जैसे हमारे 21 नियम है। ऐसे इनके 10 नियम हैं। ऐसा करना है, ऐसा नहीं करना है। शिवजी की पूजा करनी है और कुछ नहीं करना। यह नाम नहीं जाप करते। कहते हैं हम इन दश नामों को डेली याद रखते हैं।

फिर क्या बताते हैं; 

सुन्न सन्यासी, कुल कर्म नाशी, भगवे प्योंदी, भूले धोन्दी। छलछिद्र की भक्ति ना कीजै, आगे जवाब कहो क्या दीजै।। ओये होए…

सुन सन्यासी, कुल कर्म नाशी यह सन्यासी अपना पूरा धर्म-कर्म नष्ट किए फिरते हैं। 

भगवैं प्योंदी, भूले धोंदी।

प्योंद क्या होती है?- जैसे कलम चढ़ाते हैं पौधे के तो उसको कलमी बोलते हैं। कहते हैं तुम यह साधु वाली प्योंद तो चढ़ा ली कान पड़वा लिए, लाल कपड़े पहन लिए, बड़ी-बड़ी जटा रखवा ली। लेकिन रास्ता ठीक नहीं।

यह भगवै प्योंदी, भुले धोंदी। छलछिद्र की भक्ति ना कीजै, आगे जवाब कहो क्या दीजै।। यो भी बहदा है , बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा।।

भ्रम कर्म भैरों को पूजैं, सतशब्द साहेब नहीं सूझे। माला मुक्ति, कक्कड़ हुक्ति, बाना गोड़ी, भांग भसौड़ी। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा।।

भ्रमित ज्ञान के आधार पर भैरों को पूजे। परमात्मा का सच्चे नाम को नहीं पूजते। बच्चों! यह भ्रमित ज्ञान के आधार पर भैरों की पूजा करते हैं। कोई देवताओं की पूजा करते हैं। कबीर साहेब कहते हैं; 

माई मसानी शेढ़ शीतला, भैरों भूत हनुमंत। साहब से न्यारा रहे, जो इनको पूजंत।। उनके निकट भगवान नहीं आएगा।

जो इनकी पूजा करते हैं।

जती जलाली, पद बिन खाली, नाम ना रत्ता घोरी घत्ता। मंढी बसंता, ओढैं कंता, बन फल खावैं, नगर ना जावैं।। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा।। ओये होए…

अब बताते हैं-

जंगम जैनी, फोकट फैनी, नाम न चिन्हा, गुरु बिन हीना। गलरी जिंदा, मस्तक बिंदा, गूगल खेवै, जंतर सेवै। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा।।

यानी व्यर्थ है यह। जंगम जैनी, फोकट फैनी इनके पास कख़ नहीं है। जो जंगम सेवड़े जैन धर्म से संबंधित हैं। बच्चों! कमाल है आपकी किस्मत का। जैसे जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर श्री महावीर जैन भी हुए हैं। उनकी हिस्ट्री आपको पढ़कर सुनाई थी उन्ही की पुस्तक से। तो वही परमात्मा गरीबदास जी के बच्चे, मालिक की वाणी बता रहे हैं। उसको ज्ञान को समझा रहे हैं कि जंगम जैनी, फोकट फैनी सब व्यर्थ की साधना कर रहे हैं।

आकी तोड़ा, बांग बिटोड़ा, धूमा धामी, कैसे स्वामी। नग्न निराशा, तन को त्रासा, पशु प्राणी, स्वांन समानी।।

यह धूम्रपान करें, सुल्फे पीवैं, दारुं की इनके टाल (मनाही) नहीं। बकरे काटें। उनका मांस खावैं। और नग्न फिरैं। नग्न निराशा, तन को त्रासा। व्यर्थ में शरीर को तंग करते हैं। परेशान करते हैं। कष्ट उठाते हैं। पशु प्राणी, स्वांन समानी। इनमें और कुत्ते में क्या अंतर है? वह भी नग्न रहते हैं। पशु भी नग्न रहते हैं। परमात्मा ने मनुष्य जीवन दिया है इसमें सद्बुद्धि दी है। बच्चों! सभ्यता से कपड़े पहनो। पर मालिक से दूर ना हो।

इंद्री चीरा, घाली जंजीरा, घुंघरू बाजे, मूड़ ना लाजे। धूमी धामा, करते सामा, मांड अखाड़ा, रोपै बाड़ा।।  यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा।।

हाथों करवा, कांधे फरवा, खोल बनावै, सिद्ध कहावै। जटा जलन्दम, भूले अंधम, तन बैरागी, छापा दागी। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलदा। यो भी बहदा।।

फिर क्या बताते हैं -

की हाथों करवा, एक लोटा ले लेंगे। और कांधे फरवा, एक फावड़ी सी रख लेंगे कंधे पर।

और खोल बनावै, गुफा बनावेंगे।

उसमें छुप जाएंगे। और सिद्ध कहावैं।

जटा जलन्दम, भूले अंधम।

बड़ी-बड़ी जटा सिर पर रखेंगे। यह ज्ञान के अंधे परमात्मा का सच्चा मार्ग भूले हैं। 

तन बैरागी, छापा दागी।

वेद पुरानी, कथा कहानी। पढ़ - पढ़ भूले, अर्थ न खुले। भूले योगी, रिधि के रोगी। कान चिरावे,भस्म रमावै, यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा । यो भी  बहदा।। 

वेद पुराण पढ़ते हैं । इनको ठीक से समझ नहीं पाए ?

वेद पुरानी, कथा कहानी, पढ़-पढ़ भूले, अर्थ न खुले।।

बताओ! और कबीर साहब कहते हैं गुरु बिन वेद पढ़े जो प्राणी। समझे ना सार, रहे अज्ञानी।। यदि इन्होंने गीता-वेद समझे होते और पुराण समझे होते तो ये यह नहीं कहते, कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश से ऊपर कोई शक्ति नहीं है। तो इससे सिद्ध है,  यह सब भ्रमित आत्माएं हैं। काल ने इनको भ्रमित कर रखा है और उसने कह रखा था की सबकी  ऐसी दुर्गति कर दूंगा कोई ठीक से समझ नहीं पावैगा।

फिर क्या बताते हैं; 

तोड़े पाती,आत्मघाती, मूढ अनाड़ी, जड़ से ताड़ी। ताल मंजीरा, मन नहीं थीरा, बहु विधि नाचै, नाम न बाँचे। यो भी बहदा है। बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा।।

की पत्ते फूल तोड़ के अपना जीवन नष्ट कर रहे हैं। आत्मघात कर रहे हैं।  मूढ़ अनाड़ी, जड़ तैं ताड़ी, यानी पत्थर की मूर्ति के आगे प्रार्थना लावै हैं।

अरे तेरा गजब होईयो!!!

आगे क्या बताते हैं-

यह उद् बाहीं, भूले सांई। धूंमर पाना, भेद न जाना। तपा आकाशी, बारह मासी, मोनी पिठी, पंथ अंगिठी। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा है। यो भी बहदा।।

क्या कहते हैं; कि ऊपर को पैर करके खड़े हो जाएंगे। ऊपर को पैर करना यह तपस्या है। कोई पैर ऊपर को, कोई वैसे ही खड़ा होकर पींघ डालकर उसकी सपोर्ट ले लेता है। कोई पांच धुणे लगाकर 40 दिन ज्येष्ठ मास में तपस्या करता है। यह परमात्मा के लिए चले थे। फिर काल ने इनकी रोल मार ली।

।। अथ बहदे का ग्रंथ ।।

बैरागी सन्यासी भड़वे, चूतड़ छार लगावै हैं। पांचों नारी, पच्चीसों लड़के, धूंधूंधार मचावै हैं।।

कंठी माला और मृग छाला, सिर पर जटा रखावै हैं। ढोलक ताल, झालरी पीटें, ताना रीरी गांवै हैं।।

कहते हैं यह काल ने उल्टे रस्ते ला रखे हैं। बैरागी घर छोड़कर सन्यासी हो गए और वहां कती (बिल्कुल) एक लंगोट बांधकर सारे शरीर पर राख लपेटे रहते हैं और इसी में मान रहे हैं, कि हम सब कुछ छोड़ आए। अब क्या बताते हैं गरीबदास जी; एक नारी त्याग दीन्हीं, पांच नारी गैल वे। पाया ना द्वारा मुक्ति का, सुखदेव करी बहू सैल वे।। की एक स्त्री को, परिवार को छोड़ दिया इसलिए कि यह भक्ति में बाधा बनता है गृहस्थ जीवन। परमात्मा कहते हैं गरीब दास जी बताते हैं; एक स्त्री नारी छोड़ दी जो बाधक मानी आपने और यह पांच नारी गैल वे। और पच्चीसों लड़के पांच प्रकृति और यह पांच- काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार यह तेरे साथ हैं। इनकी पांच-पांच प्रकृति यह पच्चीस, जुगाड़ सारा नूं का नूं तेरे साथ परिवार है। कबीर साहेब कहते हैं;  राज तजना सहज है, सहज परिवार का नेह। मान बढ़ाई ईर्ष्या, दुर्लभ तजना ये।। की राज भी त्याग सकता है। परिवार भी त्याग सकता है। लेकिन यह मान बढाई, ईर्ष्या फिर भी ज्यों की त्यों रहती है। फिर क्या खाक त्याग किया? काल तो नूं (ऐसे) का नूं (ऐसे) घर में बैठा है तेरे हृदय में।

बैरागी सन्यासी भड़वे, चूतड़ छार लगावे है। पांचो नारी, पच्चीसों लड़के, धूंधूं धार मचावै है।। कंठी माला और मृग छाला, सिर पर जटा रखावैं हैं। ढोलक ताल, झालरी पीटैं ताना रीरी गांवैं हैं।।

बड़ा सुर लावै गाने में और कख का पता नहीं ? बड़े-बड़े जटा रखवा लिए। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा। बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेंटे यूं जाना।।

गरीबदास जी से पूछा किसी ने, कि आपको कैसे पता लगा? यह सब व्यर्थ है। की सतगुरु मिल गए इसलिए जान्या भई।।

तन के योगी, मन के भोगी, गुलर पेट पड़ावै हैं। गुझ विरज का मर्म ना जान्या, भद्दर भेख बनावैं हैं।।

ओये होय...क्या बात कही।  करवा और कोपीन लिए जो बनखंड गुफा बनावै हैं। खुद्या गुती, घट में दुती, फिर गृहद्वारे जावै हैं।।

करवा और कोपीन लिए, कोपीन एक पर्दे के ऊपर एक लंगोट छोटा सा एक 4 -5-6 इंच की एक पर्दी सी बनाते हैं, उसको कोपीन बोलते हैं और हाथ में लोटा और वनखंड में, जंगल में जाकर गुफा में रहते हैं। कहते हैं तन के योगी और मन के भोगी ऊपर से दिखै योगी और खाने में अटक नहीं। मालपुरे खाते फिरै यज्ञों के अंदर। जहां भी कोई धर्म भंडारा होता है सबसे आगे मिलेंगे यह। तन के योगी, मन के भोगी, गुलर पेट पड़ावैं हैं। ऐसे छिक कर खावैगें बिल्कुल। सुबह खा लिया शाम तक और न मांगना पड़े कहीं। गुज वीरज का मर्म ना जाना, भद्र भेख बनावै हैं।। सुंदर ऊपर से दिखावा इतना गजब का कर दे कि साधु वाला और मूल ज्ञान का पता नहीं?

करवा और कोपीन लिए, जो बनखंड गुफा बनावै हैं।

बनखंड मे, वन में चले गए गुफा मे रहने लग गए। भूख लग गई। फिर? फिर आए गृहस्थी के द्वारे। दियो माई! दियो माई! कहते हैं

कीकर का उठाया लठ दियो माई! दियो माई! गोरे जा कर लगा लिया भठ।।

हो गई मुक्ति?

यो भी बहदा है। बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा। बहदा क्यों जाना। हम सतगुरु भेंटे नूं जाना।।

खाकी और निर्बानी नागा, सिद्ध जमात चलावे हैं। रणसिंघे तुरही तुतकारा, घाघड़ भांग घुटावै है। काशी गया प्रयाज्ञ महोदित, जगन्नाथ कूं जावे हैं। लोहागर और पुष्कर परसैं, द्वारा दाग दगावे हैं।। यो भी बेहदा, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा। बहदा क्यों जान्या। हम सतगुरु भेंटे नूं जान्या।।

खाकी और निर्वाणी नागा सिद्ध जमात चलावे हैं। कई - कई इकठे होकर चलेंगे।

रणसिंघे तुरही तुतकारा और घाघड़ भांग घुटावै हैं।

कहते है ऐसे भांग घोट कर खूब जो अच्छे नशे वाली हो वह पीवै है। काशी जावे प्रयाग तीर्थो पर जाते हैं। जगन्नाथ में जाते हैं। लोहागर पुष्कर आदि सब तीर्थों पर जाते हैं। द्वारका जाते हैं।

भाई जो गुरु वचन पर डट गए , रे कट गए फंद चौरासी के। कट गए फंद चौरासी के। रे कट ग बंद चौरासी के......।

वस्तु मिली ठौर की ठौर। मिट गई मन पापी की दौड़। वस्तु मिली ठौर की ठौर। मिट गई मन पापी की दौड़। भ्रम मिटे मथुरा काशी के।। भ्रम मिटे मथुरा काशी के।। भाई जो गुरु वचन पर डट गए। कट गए फंद चौरासी के।।

अब कितना स्पष्ट कर दिया, की इन तीर्थां पर भटकैं वहां पर कुछ भी कख़ भी नहीं है।

तीर तुपक तलवार कटारी, जम धड़ जोर बंधावै हैं। हरि पैड़ी हरि हेत ना जान्या, वहां जा ये तेग चलावे हैं।। काटैं शीश नहीं दिल करुणा, जग में साध कहावै हैं। जो नर इनके  दर्शन को जावैं, उनको भी नरक पठावै हैं।।

बहुत समय पहले की बात है इन त्रिगुण उपासकों का आपस में झगड़ा हो गया इस बात पर गिरी, पुरी, नागा, वैष्णो। वैष्णो, विष्णु जी के उपासक। नागा शिव जी के। नागा कहें हम सबसे ज्यादा श्रेष्ठ हैं। हम त्यागी और वैरागी है। हम कोई इच्छा नहीं रखते। कोई वस्त्र तक नहीं पहनते। पहले हम स्नान करेंगे। हर की पैड़ी पर प्रभी लागी कुंभ के मेले में। वैष्णो बोले सरड़ फरड़ो तुम टट्टी के हाथ भी नहीं धोते, तुम स्नान भी नहीं करते आज स्नान करने वाले हो गए। राख लपेटे फिरो। हम विष्णु जी के उपासक हैं विष्णु जी सर्वश्रेष्ठ परमात्मा है। हम साफ स्वच्छ रहते हैं। नहाते-धोते हैं। कपड़े अच्छे पहनते हैं। इस बात पर दोनों का झगड़ा हो गया। 25 हज़ार यह त्रिगुण उपासक कटकर मर गए। गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 यह श्लोक, यह अनमोल ज्ञान अनायास याद आ जाता है। अपने आप याद आ जाता है भगवान! हे बंदी छोड़! की यह तीनों गुणों राजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिवजी तीनों गुणों की भक्ति तक जिसका ज्ञान सीमित है इससे आगे सुनने को तैयार नहीं। जिनका ज्ञान हरा जा चुका है काल के द्वारा, इस अज्ञान के द्वारा, राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच दूषित कर्म करने वाले मूर्ख, गीता ज्ञान दाता कहता है मुझे भी नहीं भजते यह।

ओये होए… यहां वही स्पष्ट कर दिया गरीबदास जी ने

तीर तुपक तलवार कटारी, जम धड़ जोर बधावै हैं। हरि पैड़ी हरि हेत न जाना, वहां जा तेग चलावैं हैं। काटै शीश नहीं दिल करुणा, यह जग में साध कहावै हैं। जो नर इनके दर्शन को जावै, उनको भी नरक पठावै हैं।

हे बंदी छोड़ के बेटे कमाल कर दिया। यह तलवार चलावै। छुरे ठोके, घुसा दिए एकदूसरे में, मार डाले। कहते हैं, हरि पैड़ी हरि हेत न जाना, वहां जाकर यह तलवारों से वार करते हैं। काटे शीश नहीं दिल करुणा, इनके दिल में दया नहीं। और जगत में यह साधु कहलाते हैं। जो इनके दर्शन भी करने जाए, इनका कोई शिष्य बनने जाए, उनको भी नरक पठावे हैं। यहीं शिक्षा देंगे, इनके पास और है क्या।

यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा।। बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेटें यूं जाना।

संपट शिला को साहब कहते, चेतन सार चलावैं है। अंधा जगत पुजारी जाका, दुनिया के मन भावै हैं।।  पारख लीजै, शब्द पतीजे, सालिग शिला पूजावै हैं। तुलसी तोड़ मरोड़े मूरख, जड़ पर फूल चढ़ावे हैं।। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा।। बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेटें यूं जाना।।

कहते हैं संपट शिला को साहेब कहते हैं। एक पत्थर की मूर्ति को उसको भगवान कहें यह चलते-फिरते बोलने वाले प्राणी मनुष्य उसके माथा टेकें और ऐसी साधना बताने वालों को कहते हैं अंधा जगत पुजारी जाका, इन अज्ञानियों के यह भगत जगत के लोग इनके पुजारी, यह दुनिया के मन भावैं हैं।

पारख लीजै, शब्द पतीजे, और शालिग शिला पूजावै हैं।

यानि परमात्मा का ज्ञान ठीक से समझो। यह तो पत्थर की मूर्ति पूजवाते हैं

और तुलसी तोड़ मरोड़ै मूरख। फिर जड़ पर फूल चढ़ावे हैं।।

तुलसी के पत्ते और फूल तोड़कर और शिवलिंग पर चढ़ावेंगे।

फूट गए भाग बिल्कुल अगली पिछली खो दी।

यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा। बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेटें यूं जाना।।

जैसे कुत्ता सैर सराय का, परिक्रमा दे आवें हैं। जैसे ऋतवंती सुन्हीं के पीछे, गिंडक गैलां जावे है।। कक्कड़ भांग तम्बाकू पीवैं, बकरे काट तलावें हैं। सन्यासी शंकर को भूले, बम महादेव ध्यावैं हैं।। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा। बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेटें यूं जाना।।

यह दशनामी दया न जाने, गेरू कपड़े रंगावै हैं। पारब्रह्म से परिचय नाहीं, शिव कर्ता ठहरावै हैं। धूम्रपान करें मन मुखी, सुचित आसन लावै हैं। या तप सेती राजा होई, धुंध धार बह जावै है।।

ओये होए… कहते हैं सन्यासी शंकर को भूले भगवान का नाम ही छोड़ दिया और बम महादेव का नारा लावै हैं। अब देखना कावड़ लाने वाले, इन्होंने भगवान भी छोड़ दिया। या तो भोले! और बम बम, बम बम, बम सारा दिन न्यूं (ऐसे) भोंकें जाएंगे। सन्यासी शंकर को भूले बम महादेव ध्यावैं हैं। इस बम्ब ने महादेव मान रहे हैं। यह दशनामी दया नहीं जानैं, गेरू कपड़ रंगावै हैं। यह दशनामी दया नाम की चीज नहीं इनके और गेरुवां कपड़े, लाल कपड़े पहनते हैं। पारब्रह्म से परिचय नाहीं, सतपुरुष परमात्मा का इनको ज्ञान नहीं और शिव को भगवान बतावैं हैं। शिव कर्ता ठहरावै हैं। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा। बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेटें यूं जाना।।

धूम्रपान करें मन मुखी, सूचित आसन लावैं हैं। यह तप सेती राजा होई, धुंधधार बह जावे हैं।। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा। बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेटें यूंं जाना।।

यह दशनामी दया नहीं जानै, लाल कपड़े रंगवा कर साधु बनकर बैठे है। कहते हैं, पारब्रह्म का ज्ञान नहीं, पूर्ण परमात्मा, परम अक्षर ब्रह्म की जानकारी नहीं, यह शिव को कर्ता बताते हैं और धूम्रपान करें मनमुखी यानी शास्त्रविरुद्ध मनमानी साधना करते हैं और सूचित आसन लावै हैं, तप करते हैं जो यह तप सेती राजा होई, फिर धुंधूधार बह जावै हैं।

तप से राज, राज मद मानं, जन्म तीसरे सूकर स्वानं।।

सन्यासी उदासी बाला, रुखड़िया कहलावै हैं। आत्म तत्व का मर्म ना जाने, सुन्न में पवन चढ़ावै हैं।। झरने बैठे तपै पंच अग्नि, उर्दूमुख झूल झूलावै हैं। ज्ञानी पुरुषा निकट न जावै, मूर्खों को रीझ रिझावे हैं।। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा। बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेटें यूं जाना।।

देखो कितनी गजब की बात कही है।

सन्यासी उदासी बाला, यह रुखड़िया कहलावे हैं। आत्म तत्व का मर्म नहीं जानै सुन्न में पवन चढ़ावे हैं।।

अभ्यास करते हैं स्वांस को छोटा करके स्वांस रोक लें। झरने बैठे यानी या तो कहीं झरना गिर रहा हो उसके नीचे खड़े हो जाया करें। बैठेंगे। या एक तिपाई के ऊपर एक मटका रख कर उसमें सैकड़ों छिद्र कर लेते हैं गर्मी के दिनों में 40 दिन सौ मटके घड़े उसके अंदर से सिर पर डलवाते हैं। 3 घंटे, 2 घंटे बैठते हैं।

कहते हैं झरने बैठे, तपैं पंच अग्नि, पांच धूंने लगाकर तपस्या जो करते हैं। और कोई उर्दू मुख झूल झूलावै हैं। पींघ डाल कर उसके ऊपर खड़े हो जाते हैं। खड़े होकर तप करते हैं। कहते हैं इनके पास ज्ञानी पुरुषों तो निकट न जावै। समझदार व्यक्ति ज्ञानी जिसको पूर्ण ज्ञान हो गया वह तो इनके निकट भी नहीं जावे निकम्मों के। यह तो मूर्खों को रीझ रिझावै हैं। मूर्खां को खुश कर रहे हैं। आसन करें कपाली ताली ऊपर चरण हलावैं है। अजपा सेती मरहम नाहीं, सब दम खाली जावै हैं।

चार संप्रदाय बावन द्वारे, बैरागी दम आवे हैं। कूड़े भेख काल का बाना, संतो देख रिसावे है।। यो भी बेहदा है बहदे से भेद अलैदा।  यो भी बहदा। बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेटें यूं जाना।

आसन करें कपाली ताली और ऊपर चरण हलावे हैं।

यानी सिरासन करके तपस्या करते हैं और सतनाम का अजपा जाप का इनको ज्ञान नहीं। सारे अनमोल स्वांस खाली जाते हैं।

चार संप्रदाय बावन द्वारे, बैरागी इन सबका लेखा देता हूं। यह कूड़े भेख काल का बाना। यह नकली संत यह सब काल के फंसे हुए हैं और संतों को देख रिसावै हैं। हमारे भक्तों को देखकर उनसे लड़ाई करते हैं। क्रोध करते हैं।

लाये घात मंजारी बैठे बिल्ली मूसे खावे हैं। बदनेमी का ध्यान धरै यम किंकर आन डुरावै है। कोथलियों में हाथ धशोरै माला गुप्त फिरावै है। मन मनके का फेर ना जाने साहब दर नहीं जावे हैं।

कहते हैं जैसे बिल्ली चूहे पर दाव लगाए रखा करें। ऐसे यह बुगले और ऐसा इनके अंदर दोष भरे रहते हैं और फिर इनको यम के दूत पकड़कर ले जाते हैं ऐसे ही जैसे बिल्ली चूहों को उठा ले जाती है। कोई सच्ची भक्ति नहीं? और थैलियों में माला डालकर गुप्त माला फिरावेंगे। दिखन नहीं दे किसी ने। बोलेंगे नहीं और मन मनके का फेर नहीं जानै, साहब दर नहीं जावैं है।

त्रिकाली अस्नान करें फिर द्वादश तिलक बनावै हैं। 

जल के मच्छा मुक्ति ना होई, निश दिन प्रभी नहावै हैं। सालोक्य, सामीप्य, सायुज्य, साहरूप्य कहलावे हैं। चार मुक्ति में मरहम नहीं, आगे की क्या पावै हैं।

क्या बताते हैं कि तीन समय स्नान करते हैं उन तीर्थो पर। और 12 तिलक बनावेंगे न्यूं (बिल्कुल) ऊपर दिखावा ऐसे तहलका मचा देंगे। डूंडा साध का।

गरीब कंठी माला सुमरनी, पहरे से क्या हो। ऊपर डूंडा साध का, अंतर राख्या खो।।

तीन समय स्नान करेंगे। और फिर द्वादश तिलक बनावै हैं। यह जल के मच्छा जल के अंदर मछली रहती है। यह दिन रात उस परबी में ही रहते हैं। यह मुक्ति नहीं पाते।

सालोक्य, सामीप्य, सायुज्य, साहरूप्य कहलावै हैं।

चार मुक्ति की इनको आशा है। कहते हैं यह भी ना मिले इन साधनाओं से तो इनको यह भी प्राप्त नहीं हो सकती।

चार मुक्ति में मरहम नाहीं, आगे की क्या पावैं हैं। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा। बहदा क्यों जाना। हम सतगुरु भेटें यूं जाना।।

ऐती सोंझ बखानै मुर्शीद, सो सतगुरू कहलावै है। कनफुंका गुरु कलुवा भैरो, सो हमको नहीं भावें हैं।। मोनी मूर्ति घड़ी ठठेरे कैसे आई हृदय तेरे । ऐहरन घड़ हथौड़ौ घढ़िया, जा ऊपर घन सारा झड़िया। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा। बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेटें यूं जाना।। 

कहते हैं जो निर्णायक ज्ञान मैं दे रहा हूं ऐसे कोई संत ऐती सोंझ बखाने मुर्शीद, सो सतगुरु कहलावे है। जो गुरु इस तरह का निर्णायक ज्ञान दे वह सतगुरु कहलाने का अधिकारी है। और कनफुंका गुरु कलवा भैंरों, यह कान में फूंक मारने वाले यह कान फड़वा रहे। अन्य आडंबर करके संत बने फिरते हैं। कहते हैं वह हमको नहीं अच्छे लगते।

मोनी मूर्ति घड़ी ठठेरे।

एक मूर्ति को भगवान मानते हो यह बोल सकती नहीं। और ठठेरे ने इसके ऊपर हथौड़े मार मार कर उसको सीधा गर्म कर कर के लोहे को यह रूप दिया। या कैसे तेरे दिल में बैठ गई यह भगवान है? पत्थर पीतल से कर है नेहा, भूल गए नारायण देहा। आत्म तत् का मर्म ना जाना, पूजत फिरैं जड़ पाषाना। काले मुख का पत्थर बोली, या मूर्ति तुमसे नहीं बोली। मूर्ति को तो पत्ते तोड़ैं, मोहन भोग आपै लोड़ैं। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा। बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेटें यों जाना।। परमात्मा के बच्चे गरीबदास जी कह रहे हैं कि पत्थर और पीतल की मूर्ति के साथ तो तुम प्रेम करते हो और सतगुरु जो नर नारायण देह में आया हुआ है उसको तुम भूल चुके हो।

आत्म तत्व का मर्म ना जाने, पूजत फिरैं जड़ पाषाने।

जड़ पत्थर को पूजते फिरते हो। परमात्मा का तुझे ज्ञान नहीं।

तीर्थ व्रतों फिरें खुलासा, ज्यों पानी गल जात पतासा। ओ तालिब सुपने नहीं आया, अष्ट कमल खोजी नहीं काया। सात घात का पंजर पिंडा, ता में सकल दीप नौ खंडा। हरदम दम जगाया नाहीं, ताते लख चौरासी जांही। सात धात का पंजर पिंडा, ता में सकल दीप नौ खंडा। हरदम दम जगाया नाहीं, तातें लख चौरासी जांहीं। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा। बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेटें यूं जाना।।

अब देखो कितनी गजब की बात कही है कि ‘तीर्थ व्रतों फिरे खुलासा’ कहते हैं तीर्थ और व्रत करते फिरते हैं इसी को फाइनल मान रहे हैं। ऐसे नष्ट हो जाओगे जैसे पानी में पतासा गल जाता है निशान भी नहीं पावैगा तुम्हारा। कुत्ते, गधे, सूअर बनते फिरोगे। ओ तालिब सुपने नहीं आया यानी परमात्मा का तुम्हें ज्ञान ही नहीं जो पूर्ण परमात्मा है। अष्ट कमल खोजी नहीं काया, अपने शरीर के अंदर जो आठ कमल हैं इनकी भक्ति ना करके यानी की इससे कोई लाभ नहीं होगा तुम्हारी भक्ति से।

सात घात का पिंजर पिंडा, जा में सकल दीप नौ खंडा। हरदम दम जगाया नाहीं।

इस शरीर के अंदर सभी पूरे ब्रह्मांड का दृश्य दिखाई देता है। और तुमने फिर कहीं धक्के खाने की ज़रूरत नहीं। कहां भटक रहे हो। जो इतना सुंदर शरीर तुम्हें दिया है, इसमें सतभक्ति करो। पूर्ण सतगुरु की खोज करो। और

हरदम दम जगाया नाहीं

यानी सांस का सुमिरन किया नहीं। इसलिए तुम चौरासी लाख योनियों को प्राप्त होगे।

कार्तिक मास महात्म नहावे, गया प्रयागो पिंड भरावै। रसना राम रटा नहीं कोई, अगली पिछली सब ही खोई।

देखो  कहते हैं यह गलत साधना करते हैं शास्त्र विरुद्ध। कार्तिक महीने में नहाने का महत्व बताते हैं, कार्तिक में गंगा में नहावे या सुबह पूरा महीना, 15- 20 दिन कार्तिक में जो नहावै सुबह-सुबह और गया प्रयागो पिंड भरावैं। गया में प्रयाग में वहां पिंड भरवाने जाते हैं।

रसना राम रटा नाहीं कोई, अगली पिछली सब ही खोई।

सत भक्ति नहीं करी, सच्चे भगवान का नाम नहीं रटा पिछला जो संस्कार था वह नष्ट कर दिया। भविष्य कुछ बना नहीं गलत साधना करने से।

पांडे पाठ पढ़ें बहू भांति, यह है जम किंकर के नाती। सूतक पातक जीमन जांहीं, सात जन्म सूकर के पाही। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा। बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेटें यू जाना।।

देखो कितनी गजब की बात कही है अब गरीबदास जी को कोई शौक नहीं था। या कोई द्वेष नहीं था, इन पांडे मार्गदर्शकों के प्रति। वह उनको इस बुराई से बचाना चाहते थे उनका जीवन सुधारना चाहते थे कि

पांडे पाठ पढ़ें बहू भांति, यह है जम किंकर के नाती

क्योंकि इनको नहीं तो भक्ति का पता, केवल भागवत का पाठ कर दिया। रामायण का कर दिया और गरुड़ पुराण का कर दिया पैसे ऐंठ लिए। बस इतना जानें।

सूतक पातक जीमन जाहीं, सूतक कोई बालक होवे जब जीमन जावे अपने यजमान कै। और कोई मर जावे पातक तब जीमैं। कहते हैं इस पाप से तुम सात जन्म लगातार सूअर के पाओगे। इतना पाप लगेगा। बताओ फिर ऐसे नर्क को क्यों ढोंवै।

पहर जनेऊ फूले फाले, ब्राह्मण होकर बहु घर घाले। उज्जड़ खेड़े झोटा मारा, तातें ब्राह्मण का मुंह कारा। यह है भैरव भूत बेताला, पहरैं रुद्राक्षों की माला। चंदन चीते तिलक बनावे, बैठे गड़ गड़ गाल बजावे।

यह इनकी क्रियाएं बताते हैं कि यह ब्राह्मण लोग सतभक्ति का ज्ञान नहीं है और गलत साधना करके अपना कर्म फोड़ कर जाएंगे। आगे बहुत दुख पावैंगे।

फिर बताते हैं

ऋज्ञयजु , साम, अर्थवन भाखैं, लादें बैल और टट्टू हांकैं। खर की जूनी धरोगे देही, भूल गए हो शब्द स्नेही।

कहते हैं चारों वेदों को बैलों के ऊपर लाद के उठाए उठाए फिरो तुम। एकदूसरे के साथ वाद-विवाद, शास्त्रार्थ करते हो और कुरान लिए फिरते हो, पाठ करते हो

खर की जूनी धरोगे देही, भूल गए हो शब्द स्नेही।।

सूअर के बाद फिर गधे की योनि पाओगे। परमात्मा का सच्चा नाम भूल चुके हो अब।

साना मुर्का प्रहलाद बधाया, भक्ति हेत पांडे नहीं पाया। हिरण्याकुश छाती तुड़वाई, ब्राह्मण बाना कर्म कसाई। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा। बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेटें यूं जाना।।

साना और मुर्का दो पांडै थे। पांडे यानी टीचर थे, जो प्रहलाद को पढ़ाया करते थे और प्रहलाद से कहते थे तू हिरण्यकश्यपु, हिरण्यकश्यपु नाम जप। प्रहलाद कहता था, नहीं अध्यापक जी! नहीं गुरुदेव! भगवान का नाम जपने से मुक्ति होती है। तो उन्होंने शिकायत करी हिरण्याकुश को।  हिरण्याकुश भी ब्राह्मण था। लेकिन हिरण्याकुश में अहंकार हो गया था। उसने एक वर मांगा था मैं ऐसे नहीं मरूं, वैसे नहीं मरूं। यह तो बच्चों वाली बातें थी। तो क्या कहते हैं, कि साना मुर्का प्रहलाद बधाया। भक्ति हेत पांडे नहीं पाया। उनको भी भगवान का ज्ञान नहीं था और बच्चे को परेशान किया और फिर कहते हैं

हिरण्याकुश छाती तुड़वाई, ब्राह्मण बाणा कर्म कसाई।

ऊपर से भगत क्योंकि तपस्या करी इसने खूब ब्रह्मा की। ब्रह्मा जी खुश हुए। ब्राह्मण होकर और कर्म कसाइयों वाले। बेटे का दुश्मन हो गया।

हिरण्याकुश छाती तुड़वाई, ब्राह्मण बाणा कर्म कसाई।। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा। बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेटें यूं जाना।।

रावण ब्राह्मण बहु तप कीन्हां, महादेव की दीक्षा लीन्हा। रामचंद्र की सीता हरिया, दस मस्तक मूंड मुहाने पड़ियां।

रावण ब्राह्मण था और उसने शिवजी की भक्ति करी महादेव की भक्ति करी। राक्षस कहलाया। यही गीता बताती है सातवें अध्याय के 12 से लेकर 15 श्लोक में की इन तीनों गुणों रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिवजी की भक्ति जो करते हैं वह राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच दुषित कर्म करने वाले मूर्ख मुझे भी नहीं भजते। तो यहां यही बताया है कि

रावण ब्राह्मण बहु तप कीन्हां, महादेव की दीक्षा लीन्हां। रामचंद्र की सीता हरिया। अपहरण किया सीता जी का। दस मस्तक मूंदे मुंह पड़ा।

यानी दस मस्तक गए। उसकी जान गई और राक्षस कहलाया।

भृगु लात विष्णु कै मारी, युगन - युगन यूं भए भिखारी। यह देखो ऐसी हुई ना होई, युगन- युगन ऐसे ब्राह्मण गुरु द्रोही।

भृगु ब्राह्मण ने, ऋषि ने विष्णु जी के छाती में लात मारी। कहते हैं देखो ऐसा कहीं देखा ना सुना। क्या मतलब था? जिसको लोग पूजैं उसकी छाती में लात मारी। कहते हैं युगन युगन ऐसे ब्राह्मण जो ऐसी बकवास करते हैं वह गुरु द्रोही यानी निकम्मी आत्माएं हैं।

विश्वामित्र सुन विस्तारा, सौ पुत्र वशिष्ट के मारा। राजऋषि से बहुत रिसाये, ब्रह्मऋषि से रीझ रिझाऐ।

विश्वामित्र सुन विस्तारा, और सौ पुत्र वशिष्ट के मारा। साधना करके तप करता था और आते ही वशिष्ठ ऋषि जी के सौ पुत्रों को मार दिया। इस बात पर कि वशिष्ठ जी उनको राजऋषि कहते थे क्योंकि उसमे अहंकार था आधीनी नहीं थी।  इस बात से दुखी होकर के तू ब्रह्मऋषि क्यों नहीं कहता मुझे? सौ पुत्र मार डाले पाप आत्मा ने। और यह ब्राह्मण ऋषि कहावे। कहते हैं ब्रह्मऋषि से रीझ रीझाए। जब ब्रह्मऋषि कहा इसने फिर खुश हो गया।

हरिश्चंद्र सतयुग में थे राजा, जिनके कौन बिगाड़े काजा। विश्वामित्र देई त्रासी, हरिश्चंद्र बान बिकाए काशी। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा। बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेटें यूं जाना।।

हाथ सुमरनी, पेट कतरनी, गले में माला तिलक निसरनी। विष के लड्डू भगत कहावै। दगड़ो  बैठे फांसी लावे।

कहते हैं यह एक ड्रामा करते हैं रास्ते में बैठे होते हैं आजा तेरा हाथ देख दूं, भविष्य बता दूं इस तरह की बकवास करते हैं।

जूनी जीव उद्यान खसोटैं, आत्म घात करें गम घोटैं। जीव की दया दर्द नहीं आवे। ब्राह्मण होकर कर्द चलावे। पोखर पीवत गऊ खंदावे, हिलकारे हो गाम फुंकवावै। ब्राह्मण बाघ भेड़िया होई, सूरै गऊका पीवैं लोही ।

बच्चों! परमात्मा कहते हैं कि ऐसी गलत साधना पर काल ने लगा रखे है, यह सारे के सारे। अब क्या बताते हैं कि यह जो नकली गुरु हैं जिनको हम ब्राह्मण कहा करते थे। ब्राह्मण वैसे कोई जाति से मतलब नहीं सभी ब्राह्मण नहीं, जो पंडिताई करते हैं गुरु पद पर बैठे हैं उनके बारे में कहा है। मेरे पूज्य गुरुदेव जी ब्राह्मण थे। ब्राह्मण जाति में थे। लेकिन वह पांडे नहीं थे। वह यह नकली सवांग करने वाले नहीं थे। वह सच्चे ज्ञानी सच्चे ब्राह्मण थे। अब उन ब्राह्मणों के विषय में कहा है, जो नरक में जाने की तैयारी कर रहे हैं। क्या बताते हैं पोखर पीवत गऊ खंदावै, हिलकारे हो गाम फुकवावें। ब्राह्मण बाघ भेड़िया होई। सुरै गऊ का पीवै लोही। फिर यह भेड़िया बनेगा ब्राह्मण ऐसा नकली। फिर गाय का लहू पिया करेगा। आदि अंत ब्राह्मण हिलकारे, युगन- युगन इन्होंने जुल्म गुजारे।

ब्राह्मण होकर कूदैं फाँदे, कोरा नाज कड़कड़ा रांधै।

अब ब्राह्मण आपको बता दिया कोई विशेष जाति, विशेष को नहीं कहा मालिक ने। केवल जो गलतियां करते हैं आज तो मेरे हिसाब से 1% ब्राह्मण वर्ण के लोग इस पंडिताई से सौ कोस दूर हो चुके हैं। 1% भी नहीं हैं जो काम यह करते हों। उस समय जब करते थे। यह सारे ही करते थे। और सारे ही नरक में जाते। तो गरीब दास जी तो एक कलियर बात कह रहे हैं कि यह गलत है ऐसा ना करो। ऐसा करो देखो कल्याण होगा आपका। और वह जो गलतियां करते थे बताते हैं; बीस हाथ से पड़े उचंका, यह है दाने राक्षस लंका। मरने से डरते नहीं डायन, पांच सेर का करैं लगायन। पहले यह पंडित आया करते थे घरों में जन्म हो जाए किसी का जब, मर जाए जब यह खीर अपने आप बनाया करते। और इतनी खाया करते न्यूं (ऐसे) पेट फटने को हो जाता। कहीं शाम को कहीं दांव ना लगे। यहां गरीबदास जी कहते हैं पांच सेर का करें लगायन, यह मरने से डरते नहीं डायन। यह कसाई मरने से भी नहीं डरते। माल बिराना है, पेट तो अपना है। फट गया तो मुश्किल हो जाएगी।

बीस हाथ से पड़े उचंका, यह है दाने राक्षस लंका।। मरने से डरते नहीं डायन, पांच सेर का करैं लगायन। काच्चा पाक्का फुक्कैं फाकैं, गल्लड़ खां ये दूर दूर हांकैं। पेट पपोलैं चोटी रोलैं, अड़कारो और ठाडो बोलैं।

इनकी सारी हिंदी कर दी जो यह क्रिया किया करते थे। कहते हैं छक के खावें। फिर पेट पर हाथ फेरैं। ओह ओह भाई! छिक लिए। और डकारै चोटी पपोलै। पेट पपोलैं, और चोटी रोलैं। इस तरह क्रिया करते थे वह सारे क्योंकि आंखों देखी थी गरीबदास जी ने। कहने का भाव यह है, कि यह जो गलतियां करते हैं उनको समझना चाहिए अपना कर्म बनाओ। फिर बताते हैं यह जलाली खाकी खेलैं, कुकत फिरै अनजानम बेलै।

माथा चीरै चोट लगावे, मिंडों की जो मगज़ भिड़ावै। किल किल किल किल करै खलिला, यह है बनखंडों के भीला। मकर फकीरी तन का सिक्का, जिनको लगै गैब का धक्का।

एक दिन इनको ऐसा दुख होगा याद रखेंगे जो दुनिया को भ्रमित कर रहे हैं और काल के राह पर लगा रहे हैं।

सिर कोरा कचकोल बनावें, जाके ऊपर भस्म ‌रमावैं। मृग छाला आसन विस्तारा, भटकत फिरैं अनजान गवारा।

यह दूसरे जो संत बने फिरते हैं कई तो बड़े-बड़े जटा रखवा लेते हैं, दाढ़ी मूंछ बढ़ा लेते हैं। कुछ कती (बिल्कुल) उस्तरा फिरवा लेते है कचकोला करवा लें सिर का। और मृगछाला आसन विस्तारा, मृगछाला साथ रखेंगे उसके ऊपर बैठकर ध्यान लगावैंगे। कख का पता नहीं? ना भगवान का ज्ञान। नहीं कोई नाम भजन का तरीका। नहीं कोई सच्चा नाम।

सिर कोरा कचकोल बनावैं। जाके ऊपर भस्म रमावै। फिर उसके ऊपर राख लपेटेंगें मसलेंगे। मृगछाला आसन विस्तारा, भटकत फिरैं अनजान गवांरा। फुंम्भी नाद सपेले घोरी, बाणा भेख धरैं हैं थोरी। घर-घर नाग नचावै कारे, जिनके बज्र ना खुलै तारे। यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा। बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेटें यूं जाना।

ऊंचे आसन कान चिरावें, बिलोरी मुद्रा पहरावें। सेली सिंघी भगवा भेखा, जिनको गृही कहे आदेशा।

गरीब दास जी ने कमाल ही कर दिया। कहते हैं

ऊँचे आसन पर बैठैं और कान में मुद्रा डालें। सेली सिंघी पहरकर गले में दिखावैं

पक्के भक्त बनें और ऐसे मूर्खों को गृहस्थी आदेश बाबा, आदेश बाबा।

गरीब दास जी कहते हैं

झूठे गुरु कै लीतर लावै, घर से काढ़ घसीटैं। इनके पीटे पाप नहीं, इनको निश्चय पिटै।।

वृत कहैं रक्त बहु राखें, नाना वरण व्यंजना भाखैं। सात धातु संचे अनुसारा, जिनको वृत कहे गँवारा।

परमात्मा से प्राप्त ज्ञान को गरीबदास जी कितने तरीके से बता रहे हैं।

रूंड मूंड कुछ भेख ना बाणा, ताहिं ना हिंदू  मुसलमाना। सरबंगी कहलावे सोई, दीन दूनी में भ्रष्ट होई। यानी एक कोई सिरड़ फिरड़ रह था, बिल्कुल ऐसे खाना ना पीना टट्टी के हाथ भी नहीं धोवै। न्यूं(ऐसे) कहैं भाई यह तो सरबंगी बाबा है, सरबंगी। ओलिया है। बस पहुंचा हुआ है। न्यूं(ऐसे) कहें रूंड मूंड कुछ भेख ना बाणा, ताहिं नाही ना  हिंदू  मुसलमाना। ना यह हिंदू ना मुसलमान। सरबंगी कहलावै सोई, दीन दूनी में भृष्टै होई। सूअर जंगली खाते हिंदू, भूल गए हैं बाना भोंदू। हरि बाणा धरे अवतारा, जिनको भक्षण करें गवारा।

कि तुम कहते हो भगवान विष्णु ने वराह रूप धरा था सूअर का, वेद चुरा कर। वेद लाए थे यानी पृथ्वी को निकाल कर लाए थे यह दो बार वराह रूप धारण किया। और फिर सूअर खाते हिंदू। हिंदू लोग सूअर खाते हैं। मुसलमान गाय खाते हैं। कहते हैं

ना गाय खाओ, ना सूअर खाओ।

अब मुसलमानों को कहते हैं।

मुसलमान मद्दारी रोला, भूल गए हैं मुर्शिद मौला। मुसलमिस्त फरावैं पीरा, पग में लंगर लोह जंजीरा।

हक हक करता हैं हक्का, तीसों रोजे साबत रखा। सांझ पड़ी जब मुर्गी मारी। उस दरगह में होगी खवारी। मुसलमान मद्दारी रोला

यानी कुछ भी ज्ञान नहीं इनके पास।

मुर्शिद पूर्ण परमात्मा सतगुरु को भूल चुके हैं और परमात्मा का उनको ज्ञान नहीं है। फिर क्या बताते हैं

हक हक करते हैं हक्का, तीसौ रोजे साबत रखा।

तीसों रोजे 30 दिन भूखे रहते हैं सारा दिन, शाम को मुर्गी मारैं। यह क्या खाक व्रत रखा। क्या धर्म किया? सांझ पड़ी जब मुर्गी मारी। उस दरगाह में होगी खव्वारी। भगवान के दरबार में थारी (तुम्हारी) बिरानमाटी होगी।

काजी खलक मुल्क को देखो, सब घट एकै बाणा पेखो। गऊ विनाशे आदमखोरा। काजी मुल्ला गारत गोरा। मुसलमान इमानम कीजै, पर द्वारे घर छुरी ना दीजै। भोजन छोड़ रुधिर क्यों खाई।। दया बिना दरवेश कसाई।

कितनी प्यारी बात कही है गरीबदास जी ने।

काजी खलक मुल्क को देखो। सब घट एकै बाना पेखो। सबके अंदर एक जैसा जीव है।

आपके बच्चों को कोई खावै मारे कैसा अच्छा लगे?

और गऊ विनाशे आदमखोरा। मानुष खाने गऊ ने मारैं।

बच्चों! अनमोल ज्ञान है इसको सुन लो। इसमें ऐसा बिल्कुल गजब कर रखा है एक एक बात छान रखी है। अब क्या बताते हैं काजी खलक मुल्क को देखो, सब घट एकै बाणा पेखो।

सबमें एक जैसा जीव होता है। हमने देखा एक अपने पति ने गाली दिया करती एक बहन, माई मानुष खाने तेरे को ऐसे कहा था वह काम नहीं करता। भैंस के साथ नहीं आया उसने लागड़ भैंस का बाखर खा लिया। तो यहां उसी लहजे से गरीबदास जी धमका रहे हैं इन मुसलमान बच्चों को।

गऊ विनाशे आदम खोरा। काजी मुल्ला गारत गोरा।।

ओये होय… कहते हैं यह आदमखोर, मानुष गऊ को मारै। और यह काजी मूल्ला इसी पाप से गरत गौर नरक में जाएंगे।

मुसलमान इमानम कीजै, परद्वारे घर छुरी ना दीजै।

भोजन छोड़ रुधिर क्यों खाई, दया बिना दरवेश कसाई। मुसलमान ईमान कीजै। डर भगवान से। दूसरे के गले पर छुरी ना ला। भोजन छोड़, देख अन्न‌ धन तोकु बहुत दिया क्यों गोश्त खा गुलामा।

ऐ जीभ के गुलाम! यह मांस - मांस क्यों खाता है। तेरे को काजू, किशमिश, सेब, सन्तरे, हलवा, खीर वह बनाकर खा लो। और जिसमें दया नहीं वह दरवेश कसाई, वह भगत नहीं है। वह संत नहीं है, वह त़ो कसाई है।

यो भी बहदा है, बहदे से भेद अलैदा। यो भी बहदा। बहदा क्यों जाना, हम सतगुरु भेटें यूं जाना।।

क्या बताते हैं गरीब दास जी कि जो बाह्य दिखावा करके संत का डूंडा उठा रहे हैं -

कबीर कंठी माला सुमरनी पहरे से क्या हो, ऊपर डूंडा साध का और अंदर राखा खो।।

अंदर कोई भक्ति की शक्ति नहीं? सत साधना नहीं? शास्त्र विरुद्ध साधना करते हो। तो इस चुंडित मूंडित बिल्कुल जैसे कचकोला कोरा कचकोला कढ़ावा कर, माला पहनकर, लाल कपड़े पहनकर, तिलक आदि लगाकर साधु का डूंडा उठा रखा है। इतना गजब का बड़ी-बड़ी जटा रखवा कर, किसे ने दाढ़ी मूंछ रखवा कर और लाल पीले कपड़े पहनकर या कती (बिल्कुल) एक लंगोट लंगोट बांधकर राख रमाकर ऐसा दिखा रखा है जैसे भगवान को मिला हुआ साधु है। भगत तो कट के मर जाएं। ऐसे दिखे जैसे बहुत गजब के भगवान को पाए हुए साधु हैं।

गरीबदास जी कहते हैं

चुंडित मूंडित सब पकड़ लिए, इनसे जमकिंकर ना डरता।

अब यहां क्या बताना चाहते हैं

बिना भजन भय मिटै नहीं यम का।

जब तक सत साधना नहीं करोगे यह यम के दूत नहीं डरेंगे तुमसे। उनका डर नहीं दूर होगा। समझ बूझ रे भाई सतगुरु नाम दान जिन दिन्हा उन संतों को मुक्ति पाई। बच्चों! किस्मत वाले हो तुम। आपको ऐसा अनमोल ज्ञान, ऐसा गरक ज्ञान और समर्थ परमात्मा, भगवान, मूल ज्ञान, पूर्ण सतगुरु और संपूर्ण भक्ति आपको प्राप्त है।

अब समझा है तो सिर धर पांव। बहुर नहीं रे ऐसा दांव।

नाम नहीं ले रहे वह रोवैंगे और नाम लेकर मर्यादा में नहीं रहोगे तो वह भी रोवैंगे।

यह संसार समझदा नांही, केंहंदा शाम दोपहरे नूं। गरीबदास यह वक्त जात है रोवोगे इस पहरे नूं।।

बच्चों! ध्यान दो परमात्मा ने कैसा कमाल कर दिया घर बैठे अमृत पीने लाग रहे हो भक्ति का। सच्चा ज्ञान, सच्ची भक्ति निर्णायक होने लग रहा है। सबकी पोल खोल दी। परमात्मा ने काल से कहा था अपना अंश भेजूंगा।

तेरहवैं अंश मिटै सकल अंधियारा।

वह मिटने लग रहा है बच्चों।‌ परमात्मा आपको मोक्ष दे सदा सुखी रखे।

सत साहेब