परमपिता परमात्मा कबीर जी की असीम कृपा से बच्चों आपका जन्म ऐसे शुभ समय में हुआ है अबके आपका असंख जन्म का ये कष्ट कट जाएगा। यह लोक अच्छा नहीं है। यहां कोई भी जीव सुखी नहीं है। आज हमें यहां काल के द्वारा मूर्ख बनाकर रखा हुआ है। भूल भुलैयां कर रखी है। संपत्ति, संतान रुपी खिलौने देकर हमें यहां रोक रखा है। एक बस लालच लगा रखा है एक मिनट में या तो स्वयं ही मर जाएगा या खिलौने टूट जाएंगे फिर टक्कर मार कर रोवेंगे। यह गंदा लोक है। हम अपनी गलती से यहां फंसे आ करके। आपने सृष्टि रचना के अंदर पढ़ा और सुना है, कि हम सतलोक में रहते थे। वहां कोई कष्ट नहीं था। जब इंसान को कोई कष्ट नहीं होता फिर इसको बकवाद सूझती है यह आत्मा अब ऐसी गिर गई और जिसको कोई कष्ट है जैसे शरीर में है, या परिवार में है या कोई धन संपत्ति का अभाव है तो इसकी किसी चीज में रुचि नहीं रहती दुखी रहता है।
नाहीं बकवाद अच्छी लगती। लेकिन परमात्मा सुख सागर है। इसकी शरण में आने के बाद फिर दुख नहीं रहता और परमात्मा थोड़ा बहुत कष्ट स्वयं इसको रखता है, कि इसकी अकल ठिकाने लगी रहे और जब ज़्यादा दुखी होते दिखते हैं तो एकदम ऐसा कर देता है कि सोचते रह जाते हैं। हे परमात्मा! आज शरण में नहीं होते तो बहुत नुकसान होना था। बहुत दुख होना था, बड़ा कष्ट होना था। पता नहीं क्या-क्या हो जाता। तो इससे एक तो परमात्मा दुख में याद रहा। फिर अचानक ऐसा प्रबल सुख कर दिया गजब का उस चमत्कार के कारण दाता याद रहा कई दिन तक। तो यहां परमात्मा कहते हैं कि,
“सौ छलछिद्र मैं करूं अपने जन के काज। सौ छलछिद्र करूं।
सौ (ओये होय) क्यों ? क्योंकि हम अपने हैं इसके। यह हमारा पिता है। एक उदाहरण दिया जाता है जैसे इब्राहिम सुल्तान अधम था। वह इसका अपना हो गया था। उसने सम्मन वाले शरीर में , अपने बेटे को भी काटने से पीछे नहीं हटा। सिर काट दिया मालिक के नाम से। अब उसको अपना मान लिया इसने। जैसे हम आरती पढ़ते हैं -
" दीनन के जी दयाल, भक्ति बिरद दीजियो। खाने जाद गुलाम, अपना कर लीजियो।।
अपना मान लो दाता हमें। अपना यह जब मानेगा ऐसा नुक्ता होगा जैसे इब्राहिम जैसे सम्मन ने किया। नेकी और सेऊ ने किया।
नुक्ते ऊपर रिझेगा रे, कोटि कर्म जल जाए तुम्हारे।।
नुक्ता यही नही है की सिर ही काटने का हो। नही! नुक्ता यह भी होता है जैसे एक भगत ने बताया था, की मैंने नाम लिए दो-चार महीने हुए थे घरवाली को पता लग चुका था। रोज़ थोड़ी बहुत कहा सुनी हो ही जाती थी। एक दिन मैं सत्संग में आने लग रहा था। रस्ते में फोन आया 2010- 11 की बात है। की इकलौता बेटा बीमार हो गया बहुत सख्त। कहां हो जल्दी आओ। मैंने कहा पैसे तुम्हारे पास है, हॉस्पिटल बिल्कुल साथ है वहां दिखा लो। डॉक्टर ने इलाज करना है पैसे तुम्हारे पास है। मैं जा रहा हूं सत्संग में। वह लगी उल्टी- सीधी बात सुनाने मैंने फोन काट दिया। मैं आ गया आश्रम । मैंने फोन ही बंद रखा। अगले दिन फोन खोला। उसी टाइम फोन आया की लड़का ठीक हो गया। बिल्कुल चमत्कार हो गया। डॉक्टर भी हैरान है। यह हो कैसे गया ? तो राहत की सांस ली। फिर मैं जब वहां गया तो उन्होंने पूछा तुम्हारे गुरु जी कैसे हैं? क्या सफेद कपड़े पहनते हैं ? लंबे से हैं ? सिर पर सफेद बाल हैं ? मैं उनके मुंह की तरफ देखूं। यह उस लड़के ने बताया अपनी मां को। की एक ऐसा आदमी आया था और मेरे को काल के दूतों से ऐसे खींच कर, झटका देकर छुटा कर लाया। वापस मेरे को छोड़ दिया इसमें शरीर में। तो मेरी आंखों से पानी पड़ै और वह भी यह बोले हम भी चलेंगे। वहाँ उन्होंने सारे परिवार ने दीक्षा ली। उसके बाद ऐसे कहै की उस लड़के के 4 साल हो गए बुखार भी नहीं चढ़ा।
बच्चों! इसको कहते हैं
नुक्ते ऊपर रिझेगा रे, कोटि कर्म जल जाएं तुम्हारे।।
कहे कबीर सुनो भाई साधो, मैं तो हूं विश्वास में।।
तो बच्चों! अपने इस मलिक पर विश्वास करो। आप गंदे लोक में आ गए हो। इतना समर्पण करना पड़ेगा। इतना विश्वास मालिक पर करना पड़ेगा। आपने सृष्टि रचना में सुना था की कबीर साहेब ने धर्मदास जी को बताया-:
धर्मदास यह जग बौराना। कोई ना जाने पद निरवाना।। यही कारण में कथा पसारा। जग से कहिए राम नियारा।।
की हे धर्मदास! इस संसार में कोई भी निर्वाण पद मोक्ष प्राप्त करने वाली विधि पद्धति से कोई भी परिचित नहीं है। किसी को ज्ञान नहीं है। अब धर्मदास पहले तो माना नहीं करता। लेकिन आंखों देखा आए भगवान को फिर सारी हां भर रहा था। क्या बताते हैं-: इसलिए मैंने सारा ज्ञान आपको सुनाना पड़ा। सारी कथा सुनानी पड़ी कि कोई भी परमात्मा के मोक्ष मार्ग से और भगवान से परिचित नहीं है। ना किसी के पास मूल ज्ञान है।
यही ज्ञान जग जीव सुनाओ। सब जीवों का भरम नसाओ।। भ्रम गए जग वेद पुराणा। आदि राम का भेद ना जाना।। की भ्रम गए जग वेद पुराणा ।।
आदि राम सत्पुरुष परम अक्षर ब्रह्म का ज्ञान नहीं हुआ क्योंकि वेदों में अधूरा ज्ञान है। अल्प ज्ञान है। पुराणों में ऋषियों का अपना अनुभव है जो उनका अपने स्तर का है। वह वेद से नहीं मिलता वह व्यर्थ है। अब क्या बताते हैं:
राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोई विरला जाने।।
सब राम-राम कहते हैं अल्लाह खुदा। लेकिन जो आदि राम है सदा का भगवान है सबसे पहले वाला उसको कोई नहीं जानता। जो मैं कथा तुझे बताने जा रहा हूं इसको बुद्धिमान तो तुरंत मान लेंगे।
ज्ञानी सुने सो हृदय लगाई। मूर्ख सुने तो गम ना पाई।।
मूर्ख सुनेगा उसको इसका कोई हिसाब नहीं आएगा।
अब मैं तुमसे कहूं चिताई। त्रिदेवन की उत्पत्ति भाई।। कुछ संक्षेप कहूं गोराई। सब संशय तुम्हरे मिट जाई।। मां अष्टागी पिता निरंजन। यह जम दारुण वंशन अनजन।।
परमेश्वर कबीर जी ने 600 साल पहले यह गीता, वेद, पुराण का ज्ञान अपनी सिंपल लैंग्वेज में सूक्ष्म वेद में धर्मदास जी को बताया और उसने लिपिबद्ध किया बच्चों आज अपने सामने है। अब वह ठीक का समय आ गया है क्योंकि आप पढ़े लिखे हो सारे बच्चे बेटा बेटी। ग्रंथ आपके पास हैं और यह संसार का इतिहास आपके सामने है। यह कैसा लोक है? दिन में चैन नहीं रात में चैन नहीं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश तक परेशान हैं। आंख खोल लो बच्चों! फिर क्या बताते हैं,
पहले कीन्ह निरंजन राई। पीछे से माया उपजाई।।
पहले ज्योति स्वरुपी निरंजन की उत्पत्ति की एक अंडे में। पीछे से यह दुर्गा की उत्पत्ति की।
माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।। कामदेव धर्मराय सताए। देवी को तुरंत धर खाए।। पेट से देवी करी पुकारा। हे साहब! मेरा करो उभारा।। टेर सुनी तब हम वहां आए। अष्टंगी को बंध छुटवाए।।
परमात्मा कहते हैं काल निरंजन के मन में दोष आया उस माया के रूप को देखकर आसक्त हुआ। गंदे कर्म करने के लिए प्रेरित हुआ। वह भी तो उसी बाप की थी उसने अपनी इज्ज़त सुरक्षा के लिए छोटा सूक्ष्म बनाया उसके खुले मुंह के माध्यम से पेट में चली गई।
पेट से देवी करी पुकारा। हे साहब! मेरा करो उभारा।। टेर सुनी तब हम तहां आए। अष्टंगी का बंध छुटवाए।
उसको उसके पेट से निकला। उन दोनों को वहां से धक्के दे दिये भाग जाओ यहां से।
सतलोक में कीन्हा दुराचारी। काल निरंजन दीन्हा निकारी।। माया समेत दिया भगाई। 16 संख कोस दूरी पर आई।। अष्टंगी और काल अब दोई। मन्द कर्म से दिए बिगोई।।
की काल और यह देवी क्योंकि इसने सबसे पहले यह बकवाद करी। बेशर्म हुई खड़ी हो गई की मैं जाने के लिए तैयार हूँ। फिर हमने सोची यह अकेला ही ले गया लूट सारी। हम भी खड़े हो गए। जैसे स्कूल में बच्चे किसी बच्चे से अध्यापक प्रश्न करता है, कि यह प्रश्न का क्या उत्तर है किसी को याद है? हाथ खड़ा करो। फिर एक खड़ा करेगा पहले फिर देखा-देखी सारे कर ले। तो ऐसे हो गई हमारे साथ। याद किसी के मिले नहीं फिर सारे पिटै। तो ऐसे यह सारे उठा कर हम भी अपने गंदे कर्म के कारण यहां फंसे और इसने और भी और ज़्यादा पहले गलती फर्स्ट गलती करी। अब कहते हैं;
अष्टंगी और काल अब दोई। मंद कर्म से गए बिगोई।।
इस गंदे, मंदे काम से गलत काम से बिगोए गए। गिर गए परमात्मा की नज़रों से।
धर्मराय को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भग कर लीन्हा।। धर्मराय किन्हा भोग विलासा। माया को रही तब आसा।। तीन पुत्र अष्टंगी जाय। ब्रह्मा, विष्णु, शिव नाम धराए।। तीन देव विस्तार चलावे। इनमें यह जग धोखा खावे।।
अब देखो 600 साल पहले कहा था, कि यह काल इनका पिता है ब्रह्मा ,विष्णु, महेश का। दुर्गा इनकी मां है। और इन हमारे धर्मगुरुओं को आज तक पता नहीं ? हमारे ही साथ लड़ाई करें। मारे, विरोध करें तुम झूठ बोलो।
निरंजन धन तेरा दरबार। जहां पर तनिक ना न्याय विचार।।
वैश्या ओढ़ै मुलमुल खासा, गल मोतियन के हार। पतिव्रता को मिले ना खादी, सूखा नीरस आहार।।
निरंजन धन तेरा दरबार।।
पाखंडी की पूजा जग में, संत को कहे लबार। अज्ञानी को परम विवेकी, ज्ञानी को मूढ़ गंवार।।
निरंजन धन तेरा दरबार।। जहां पर तनिक ना न्याय विचार।।
कह कबीर सुनो भाई साधो, सब उल्टा व्यवहार। साचे को तो झूठा बतावै, इन झूठों का ऐतबार।।
निरंजन धन तेरा दरबार। जहां पर तनिक ना न्याय विचार।।
बच्चों! परमात्मा कहते हैं इन झूठों को तो सच्चा मान रहे हो तुम, परमात्मा 600 साल पहले कहा करते और आज से 20 साल पहले, 30 साल पहले बच्चों यही हालत थी। कोई भी मानने वाला नहीं था। दास के साथ कोई भी सहयोग नहीं कर रहा था। लेकिन मालिक का वचन है। गुरुदेव का आशीर्वाद फला। कहा था तेरे बराबर विश्व में कोई संत नहीं होगा। उस समय तो यह बात ऐसी लगी थी जैसे अपने बच्चे को सभी सरहाया करते हैं। लेकिन साधु बोले सहज स्वभाव। साधु का बोल मिथ्या नहीं जाता। आज वह सत्य हो गया। मालिक ने यह ठीक का समय रख रखा था। उस समय कहा था कि पांच हजार पांच सौ पांच, जब कलयुग बीत जाए। महापुरुष फरमान, तब जग तारण को आए।। और काल से कहा था, कि जा कलयुग इतना बीत जाएगा तब हम अपना अंश पठावें। की तेरहवां वंश अब दास आया है बच्चों। विश्वास कर लो।
कुछ भी हो यह ना देखो कबीर साहब धानक थे, जुलाहा थे। झोपड़ी में सारी उम्र रहे सारी सृष्टि के पालन कर्ता। सबके धारण पोषण कर्ता। और कहाँ थे। अब बताओ कौन माने कबीर इज़ गॉड (Kabir is god)? हमारे न मानने से क्या उनकी कोई महिमा में फर्क पड़ गया ? हमारी बुद्धि कमज़ोर थी। नहीं माने मत मानो। वहीं से दिखावा करने की जरूरत नहीं थी समर्थ को। 120 वर्ष उस झोपड़ी में रहे। जुलाहे का काम करते रहे। निर्धन की भूमिका करते रहे। शुद्र जाति में रह गए उस समय छुआछूत बहुत ज़्यादा थी। इसलिए हमारी बुद्धि काम नहीं कर रही थी कि यह भगवान हो सकता है। हां सिद्धि ज़रूर है हमारे को सुख बहुत हो रहे हैं इसलिए चिपक रहे थे। जब दाता ने एक लीला की। सब छोड़ कर भाग गए विमुख हो गए। गुरु द्रोही नहीं हुए शुक्र है। वहीं से 120 वर्ष रहकर परमात्मा मगहर से, मगहर शहर से मगहर से हज़ारों लोगों के बीच में, दो राजाओं की उपस्थिति में , सेना की उपस्थिति में, भक्तों की , पंडितों की भीड़ लगी थी। एक चद्दर नीचे बिछाई, एक ऊपर ओढ़ी और आकाशवाणी की ऊपर जाकर।
देखो उठाकर चादर क्या है इसके अंदर ? देखा तो फूल थे शव जितने, सुगंधित। जब देखा ऊपर को परमात्मा ऊपर जा रहे हैं। तो बच्चों! वह उस दिन भी भगवान थे। आज भी है। आगे भी यहीं है। लोग कहते थे भक्त कहते थे कि हमारे गुरुजी ने यह कर दिया भगवान है। कहते थे भगवान लेकिन दिल में जगह नहीं थी। जैसे जगत के लोग कह देते थे ऐसा ही भगवान है यह तो शुद्र है, अनपढ़ है, वेद ग्रंथ भी नहीं जानता वेद कतेब। शास्त्रों के बारे में कुछ ज्ञान नहीं इसको। ऐसा यह भगवान है इस निर्धनता में क्यों टाइम पास कर रहा है ? अपना महल एक सेकंड में बना सकता है । भगवान तो धन भर दे। अब संसार तो यही बोलेगा। भगत ने उसकी बातों पर कभी जाना नही चाहिए क्योंकि उसको ज्ञान होता है। इसी प्रकार आज कोई भी कुछ कहे आपको आप कहते हो हमारे यह लाभ हो रहा है गुरुजी हमारे ऐसे है, ऐसे है । इन चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ता। और समय का इंतजार करो। अभी तो गेम जारी है। हार जीत तो पीछे होवैगी।
आप विश्वास रखो। और यह विश्वास का एक और आपके लिए पॉइंट है कहां से क्या हो रहा है। हो सकता है यह ज्यादा समय तक नहीं रहा करें। क्योंकि यह अनहोनी है। कभी भूतो ना भविष्यति । हुआ ना होगा ऐसा। हो ही नहीं सकता। लेकिन दास आपके साथ रहेगा। पहले भी था 8 साल कोई बात नहीं रही। बताओ किसी को कोई कमी रही हो तो किसी बात की। यह तो इसलिए कि आपको फिर प्रेरित करना था। कहीं आपका दिल ना टूट जाए। आप समझ लेना जो हो रहा है परमात्मा की कृपा से हो रहा है। आगे जो होगा उसकी रजा से होगा। और जो होगा वह अच्छा होगा। बहुत ही अच्छा होगा। दास को अपने साथ समझना। विश्वास रखना। अब बच्चों! सुनो उस मालिक की महिमा। परमात्मा कबीर जी कहा करते निरंजन धन तेरा दरबार। यहां तनिक भी सच्ची बात की न्याय का काम नहीं। कह कबीर सुनो भाई साधो यहां सब उल्टा व्यवहार।। इन सच्चो को तो झूठा बतावै मुझे! कबीर साहेब कहते हैं और इन झूठो का ऐतबार।। सरेआम कहा करते पर कौन माने। उनको ज्ञान नहीं था। आज आप तो विद्वान हो। पढ़े लिखे हो शिक्षित हो। आप तो मानोगे। ऐसी गलती पहले वाली फिर मत कर दियो। सारे फाउल पॉइंट बता दिए आपको। परमात्मा की कृपा देखो कैसी रजा आपके ऊपर की है दाता ने। बच्चों! परमात्मा ने कसर नहीं छोड़ी कोई किसी प्रकार की। और बच्चों! विश्वास रखो दृढ़ रहो मालिक के नाम पर। इसके चरणों से दूर ना हो जाना। दुखी रहे तो इससे ज्यादा कोई सुखी नहीं कर सकता। हम कहां रहते थे? सतलोक में। वह सुख सागर है। वहां कोई कष्ट नहीं, कोई दुख नहीं।
यहां कोई सुख नहीं। स्वप्न में भी सुख नहीं बच्चो आपको। आपने उस सुख की झलक देखी नहीं है। चलो देखी नहीं है जो देखकर आए हैं उनकी बात पर तो विश्वास करना चाहिए। खुद परमात्मा आकर बतावै और फिर उन महापुरुषों ने बताया जो भगवान के घर गए थे। परमात्मा उनको साथ लेकर गए थे। फिर उनको वापस छोड़ा इसलिए की वह यहां के गवाह बने। और जैसे धर्मदास इतने बड़े सेठ थे वह झूठ नहीं बोल सकते। वह तो राम -कृष्ण के पक्के पुजारी थे। हमारी तरह पुजारी थे। जब उन्होंने आँखो देख लिया सतलोक को उसके बाद समर्पित हो गए। और कहा भक्ति दान गुरु दीजियो, देवन के देवा हो। जन्म पाया भूलूं नहीं, करहूं पद सेवा हो।।
तीर्थ व्रत मैं ना करूं, ना देवल पूजा हो। मनसा वाचा कर्मना, अब मेरे और ना दूजा हो।।
तो बच्चों! इन महापुरुषों ने जो बताई जैसे गरीब दास जी देख कर आए सेठ थे, लैंडलॉर्ड थे। इतनी ज़मीन थी बहुत धनी थे और वह झूठ क्यों बोले थे आंखों देखी बात बताई उन्होंने। अपना कीमती समय निकालकर इतना बड़ा अमर ग्रंथ लिखवाया। आपके ऊपर अजब उपकार करके गए संत गरीबदास जी। मानव जाति के ऊपर संत गरीबदास जी का ऐसा उपकार है की भूला नहीं जा सकता।
जब लग सूरज चांद रहेगा संत गरीब दास जी का नाम रहेगा।।
इतनी प्यारी वाणी, इतनी स्पष्ट और बिल्कुल तहदिल से शिरोधार्य। और बिल्कुल सच्चे सुच्चे इंसान संत थे। भक्ति के भरे पड़े थे। उनके मुख से उच्चरित होने से यह स्वसिद्ध वाणी है। सिद्धि डायरेक्ट असर करती है मैल पाप काटती है। और यह फिर उनके नुमाइंदे सच्चे गुरु के माध्यम से फिर तुमको सुनने को मिलेगी। यह सोने पर सुहागा हो गया। कहने का भाव यह है, कि आपके ऊपर परमात्मा ने इतनी रज़ा कर दी आप इतने लाडले, इतने प्रिय हो की शब्द नहीं मेरे पास जो मैं वर्णन कर दूं और आप किसके आकर फंस गए बिल्कुल षड्यंत्रकारी है यह काल। अब थोड़ी सी वाणी सुनाता हूं। जब परमात्मा कबीर जी के सामने उसकी कोई पेश नहीं चली जोगजीत रूप में मालिक प्रगट थे। सहज दास रूप में। सहज दास और जोगजीत एक ही के दो नाम है। परमात्मा अपने उस बच्चे के रूप में आए थे ताकि क्योंकि असली रूप में आ जाए तो यह पागल हो जा। बात भी ना करै मर जाए। इसलिए गुप्त रूप से आते हैं। तो जब पैर पकड़ लिए रोने लग गया। और पैर पकड़ कर छोड़ें नहीं। कहने लगा मैं तो आपको बाप के समान मानता हूं। पिताजी के समान परमात्मा के समान। आप बड़े भाई हो। मेरे इस लोक में कुछ कमी है, कुछ त्रुटि है वह आप पूरी कर दो। परमात्मा बोले ठीक है बोल क्या चाहता है ? वचनबद्ध हो जाओ जब बताऊंगा। की हो गया। एक तो उसने कहा की तीन युगों में सतयुग, त्रेता, द्वापर में थोड़े जीव पार करना। दूसरा जोर जबरदस्ती करके जीव मेरे लोक से ना ले जाना। तीसरा आप अपना ज्ञान समझाना। जो आपके ज्ञान को माने वह आपका और मेरे अज्ञान ज्ञान को माने वह मेरा। कलयुग में पहले मेरे दूत प्रगट होने चाहिए। मेरे मैसेंजर मेरे ज्ञान का प्रचारक करने वाले। पीछे आपका दूत संदेश वाहक आवै। त्रेता में समुद्र पर पुल बनवाना। उस समय मेरा पुत्र विष्णु रामचंद्र रूप में लंका के राजा रावण से युद्ध करेगा, समुद्र रास्ता नहीं देगा। छटा मांगा द्वापर युग में शरीर त्याग कर जाऊंगा। राजा इंद्रदमन जगन्नाथ नाम से समुद्र के किनारे मेरी आज्ञा से मंदिर बनाना चाहेगा, उसको समुद्र बाधा करेगा। यानी काल कहता हैं कि मेरा बेटा कृष्ण, विष्णु करेगा। वह मरेगा वह फिर मंदिर बनवाना चाहेगा। समुद्र बनने नहीं देगा। तो तब आप वह दया करियो और वह मंदिर बनवाना जगन्नाथ का। और भी अनेकों ऐसे उसने सारे मांग लिए। परमात्मा बोले तथास्तु! ठीक है। अब वाणी सुनाता हूं।
धर्मराय अस विनती ठानी। मैं सेवक द्वितीय नहीं जानी।। हाथ जोड़कर मीठा बोले ठग।
ज्ञानी विनती एक हमारा। सो ना कर हो जिससे होवे मेरा बिगाड़ा।।
पुरुष दीन्हीं जस मुझको राजू। तुम भी देयो हो मेरा काजू।।
तब मैं वचन तुम्हारो मानी। लीजो हंसा हमसे ज्ञानी।।
यानी काल कहता है मैंने मान ली आपकी बात। बेशक हंस ले जाइयो पर यह शर्त है।
बच्चों! कबीर सागर से अमृतवाणी सुना रहा हूं आपको। यह ऐसा जुल्म कर रखा है अपने साथ। इस बात को बिल्कुल सच्ची मान लेना यह मालिक का गोड गीवन ज्ञान है यह। अब काल कहता है कि हे दयावंत तुम साहेब दाता! यानी कबीर साहब अपने पुत्र जोगजीत सहजदास के रूप में आए थे। और वह कभी ज्ञानी रूप बना लेते हैं क्योंकि वहां एक ज्ञानी भी लड़का है परमात्मा का। तो यह ऐसे छलछिद्र करते हैं ताकि इसके समझ में नहीं आवे कि यह है कौन सा ? ताकि यह घबरा ना जा। और दिक्कत पैदा हो जाए इसको। क्योंकि यह भी भगवान का बच्चा है दुष्ट है अपने कर्म भोग रहा है। इसको श्राप लग रहा है कर्म फोड़ रहा है अपने। कहता है काल परमात्मा से चापलूसी करता है। दयावंत तुम साहब दाता। ऐति कृपा करो हो ताता।। परमात्मा! हे बड़े भाई! इतनी दया करो।
पुरुष श्राप मोकूं दीन्हा।
परमात्मा ने मुझे श्राप दे रखा है।
लख जीव नित्य ग्रासन कीन्हा।।
एक लाख रोज खाने पड़ते हैं।
जो जीव सकै लोक तब जावै। कैसे क्षुद्धा मोर मिटावै।।
अगर सारे ही जीव वहां चले गए आपके लोक में तो मेरी भूख कैसे मिटेगी।
रोवै, पापड़ बेलै, फंड कर रहा पूरा पाखंडी।
फिर कहता है
जैसे पुरुष कृपा मोह पर कीन्हा। भव सागर का राज मोहे दीन्हा।। तुम भी कृपा मोह पर कर हो। जो मांगू सोहे मोहे को देयो प्रभु।
एक वरदान दे दो वचनबद्ध होकर।
सतयुग त्रेता द्वापर मांहि। तीनों युग जीव थोड़े जांहीं।।
चौथा युग जब कलयुग आवे। तब तव जीव शरण बहू जावे।।
प्रथम दूत मम प्रगटे जाई। पीछे अंश तुम्हारा आई।।
ऐसा वचन हरि मोह दीजे। तब संसार गवन तुम कीजै।।
कबीर साहब बोले
अरे काल तुम प्रपंच पसारा। तीनों युग जीवन दुख डारा।।
विनती तोरी लीन्ह मोहे जानी। मोकुं ठगा काल अभिमानी।।
मैंने वचन कर लिए और मैं समझ गया तूने मेरे को ठग लिया। परमात्मा ठगे थोड़ी जानते थे वह तो, पता था उनको यह कितनी क्या मांगेगा है। वह तो उसको राजी कर रहे थे अरे अच्छा भाई! तू तो बहुत तेज निकला। वचन भरवा लिए। ठीक है
जस विनती तो मोह संग कीन्ही। सो बक्श अब तोही दीन्ही।।
चौथा युग जब कलयुग आवै। तब हम अपना अंश पठावै।।
कबीर साहब कहते हैं जोगजीत के रूप में-:
चौथा युग जब कलयुग आएगा तब हम अपना अंश अपना भक्त भेजेंगे। और एक ऐसा पंथ चलाएंगे जो सबको ज्ञान सत्य ज्ञान देगा। तो काल कहता है! हे साहब! तुम पंथ चलाओ। जीव उभार लोक ले जाओ।। एक काम करो मुझे वह नाम बता दो सारशब्द, जिसके पास सारशब्द होगा मैं उसके निकट नहीं जाऊंगा। छोड़ दूंगा उसको। परमात्मा बोले जायदा सयाना मत बन। जानू हूं तेरी चाल को मैं। यदि यह सारशब्द तुझे बता दिया तेरे दूत यह भी आगे गुण बकवाद करते पावेंगे। अधिकार उनके पास होगा नहीं। तो फिर हम भिन्न क्या बताएंगे।
संत संधिछाप सारशब्द मोहे दीजे ज्ञानी। जैसे दोगे हम सहदानी।।
वह सार शब्द मुझे बता दो जो तुम इन सबको दोगे।
जो जन मोको संधि सारशब्द बतावै।
ताकि निकट काल नहीं जावै।। मैं नहीं जाऊंगा उसके पास।
कह धर्मराय जाओ संसारा। आनो जीव नाम आधार।। जो हंसा तुमरे गुण गावै।
यानी आपके ज्ञान को मानकर आपकी महिमा सुने और सुनावै, गावें।
ताही निकट हम नहीं जावें।। जो कोई लेवै शरण तुम्हारी। मम सिर दे पग होवै पारी।।
जो आपकी शरण ले लेगा मेरे सिर पर पैर रख कर जाएगा मेरे वश की बात नहीं।
हम तो तुम संग कीन्ह ढीठाई। तात जान कीन्हीं डढकाई।।
कि मैंने तो आपके साथ मज़ाक किया था एक बड़ा भाई समझ कर। बचपना कर दिया आपके साथ वाद विवाद।
कोटिन अवगुण बालक करही। पिता एक चित नहीं धरही।।
यदि बालक करोड़ो गलतियां कर दे तो पिता उस गलती पर ध्यान नहीं देता। फिर कहता है बिल्कुल चापलूसी की हद कर दी जो पिता बालक देवै निकारी। तब को रक्षा करें हमारी।।
सारनाम देखूं जेही साथा। ता ही हंस मैं निवाउं माथा।।
तो बच्चों! कहता है जिसके पास यह सारनाम होगा उसके आगे तो मैं माथा रगड़ूंगा। कबीर साहब कहते हैं जै
तोहे संधि बताई। सारशब्द बता दूं तो जीवन को बहु दुख दाई।। कहो प्रपंच जान हम पावा। काल चलै नहीं तुमरा दांवा।
कबीर साहब बोले मुझे तेरी सारी बकवाद समझ में आ गई। तेरे चाल को तेरे षड्यंत्र को मैं समझ गया हूं।
धर्मराय तोहै प्रगट भाखा। गुप्त अंत वीरा हम राखा।। जे कोई लेवे नाम हमारा। तांही छोड़ तुम हो जाना न्यारा।।
की तुम मोर हंस को रोको भाई। तो तुम काल रहन नहीं पाई।
यदि मेरे हंस को तु रोकेगा देख ले तेरे साथ ऐसी करूंगा तू याद रखेगा। अब उसने देख लिया कि यह सार शब्द तो यह बताओ नहीं। आंख बदल गया।
बेशक जाओ ज्ञानी संसारा। जीव ना माने कहा तुम्हारा।। कहा तुम्हारा जीव ना माने। हमरी ओर हो वाद बखाने। दृढ़ फंदा हम रचा बनाई। जा में सकल जीव उलझाई।।
अब कहता है ऐसे षड्यंत्र में बांध रखे हैं सारे।
वेद शास्त्र समर्ती गुण गाना। पुत्र मेरे तीन प्रधाना। ब्रह्मा विष्णु महेश।। तीनों बहु बाजी रच राख्या। हमारी महिमा ज्ञान मुख भाखा।।
यानी मेरे तीन प्रधान देवता है और सभी जितने मेरे दूत गए हैं उन्होंने हमारी महिमा का ही गुणगान कर रखा है।
देवल देव पाषान पूजाई। तीर्थ व्रत जप तप मन लाई। देवल मंदिर और देव देवी- देवता, पाषाण पत्थर की पूजा कराऊंगा।
और तीर्थ व्रत यह झूठे जप तप इनमें उलझाकर रखूंगा।
पूजा जिसमें देव अराधी। यह मत जीवो को राखू मादी।। यज्ञ होम और नेम अचारा। और अनेक फंद में डारा।।
हमने कहा परमात्मा कहते हैं कबीर साहेब, उनको ज्ञानी भी बोल देते हैं।
हमने कहा सुनो अन्यायी। और काटूं फंद जीव ले जाई।। जेते फंद तुम रचे विचारी। सतशब्द से सबै बिडारी।।
इन सबको नष्ट कर दूंगा।
जिन जीव हम शब्द दृढावै। फंद तुम्हारा सकल मिटावे।।
जिसको हम नाम दे देंगे सच्चा तेरे सारे बंधन स्वयं ही कट जाएंगे।
जब ही जीव चीन्ही ज्ञान हमारा। तजे भ्रम सब पोल पसारा।।
की तेरे सारे इस षड्यंत्र को समझ जाएंगे। फिर क्या बताते हैं
पुरुष सुमिरन सार वीरा, नाम अंचल जनावो हो। शीश तुम्हारे पांव देकर, हंस लोक पठावो हो।
यानी मेरे भगत तेरे सिर पर पैर देकर के इस नाम का सिमरन करेंगे तू उनके सामने टिक नहीं पाएगा। तेरे सिर पर पैर रखके ऊपर जाएंगे। अब क्या कहता है। अब धर्मराय कहता है,
काल पंथ एक तुम आप चलाओ। जीवो को सतलोक ले जाओ। द्वादश पंथ करूं में साजा। नाम तुम्हारा ले करूं आवाजा।। द्वादस यम संसार पठाऊं।
12 अपने दूत काल संसार में भेजूंगा और
नाम कबीर ले पंथ चलाऊं।। प्रथम दूत मेरे प्रगटै जाई। पीछे अंश तुम्हारा आई।। यही विधि जीवों को भरमाऊं। आपन नाम पुरुष का बताऊं।।
मैं अपने आप को भगवान बताऊंगा।
द्वादश पंथ नाम जो लेही। हमरे मुख में आन समोही।।
बच्चों! परमात्मा कहते हैं
अरे काल प्रपंच पसारा। तीन युग जीवन दुख आधारा।। विनती तोर मान मैं लीनी। मोकूं ठगे काल अभिमानी।। चौथा युग जब कलयुग आई। तब हम अपना वंश पठाई।। काल फंद छूटै नरलोई। सकल सृष्टि परवानिक होई।।
की फिर तेरे जा लेंगे उसके बाद मै अपना दूत अपना हंस भेजूंगा अपना अंश।
चौथा युग जब कलयुग आई। तब हम अपना अंश पठाई।। काल फंद छूटे नर लोई।
सारी सृष्टि के जीव नाम ले लेंगे सबके काल का फंद छूटेगा।
और सकल सृष्टि परवानिक होई।
दीक्षित हो जाएगी सारी सृष्टि। उसके ज्ञान को सुनकर पूरा विश्व नाम लेगा।
घर-घर देखो बोध विचारा। सतनाम सब ठोर उच्चारा।
घर-घर मेरे ज्ञान पर चर्चा चलेगी।
घर-घर देखो बोध विचारा। सतनाम सब ठोर उचारा।। पांच हजार पांच सौ पांचा। तब यह वचन होगा साच्चा।।
की जब कलयुग बीत जावै जब ऐता। सब जीव परम पुरष पद चेता।।
कितनी गजब की बात करदी दाता ने जो आज सत्य हो गई बच्चों।
की घर-घर देखो बोध विचारा। चौथा युग जब कलयुग आई। तब हम अपना अंश पठाई।। काल फंद छूटे नरलोई। सकल सृष्टि परवानिक होई।।
सारी सृष्टि दीक्षा लेगी नाम लेगी।
घर-घर देखो बोध विचारा। मेरे ज्ञान की घर-घर चर्चा चलेगी।
और सतनाम सब ठोर उचारा।।
सतनाम सब जगह दे दिया जाएगा सब भजन किया करेंगे। और पांच हजार पांच सौ पांचा जो मैं बता रहूं हू यह, यह उस समय सच होगा। तब यह वचन मेरा होगा साच्चा।
कलयुग बीत जाए जब ऐता। सब जीव परम पुरुष पद चेता।।
सभी जीव सतपुरुष के उस परम पद के ज्ञानी हो जाएंगे, जानकार हो जाएंगे। जो गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है, कि तत्वदर्शी संत से तत्व ज्ञान प्राप्ति के उपरांत परमात्मा परमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए जहां जाने के बाद साधक फिर लौट कर संसार में नहीं आते। तो यहां परमात्मा कहते हैं
पांच हजार पांच सौ पांचा। तब यह वचन होगा साच्चा।। कलयुग बीत जाए जब ऐता। सब जीव परम पुरुष पद चेता।।
जब 5505 कलयुग बीत जाएगा तब यह हमारी मेरी वाणी सच्ची होगी। और सारा संसार परमात्मा के उस परम पद से परिचित हो जाएगा घर-घर सतनाम जाप किया करेंगे। बच्चों! यह अमर कथा सतनारायण कथा है। परमात्मा ने पूर्व निर्धारित कर रखा था।
पांच हजार और पांच सौ पांच जब कलयुग बीत जाए। महापुरुष फरमान, जगतारण को आए।।
पांच हजार पांच सौ पांच जब कलयुग बीत जाए।
महापुरुष फरमान तब जगतारण को आए।। हिंदू तुर्क आदि सब, जेते जीव जहान। सतनाम की साख गहै, पावै पद निर्वाण।।
हिंदू तुर्क जितने भी यानी सभी धर्मो के बच्चे जितने भी जीव संसार में है सब सतनाम लेंगे। और सतनाम की, सच्चे नाम की शक्ति से पूर्ण पद मोक्ष स्थान प्राप्त करेंगे। जैसे एक नया पंथ चलाएंगे हम, उस पंथ में सभी ऐसे आकर मिलेंगे जैसे सारे पंथ और सारे धर्म, यथा सरितगण आप ही, सरितगण दरियाएं अपने आप मिले सिंधु में धाए। जैसे दरिया नदियां, रिवर्स अपने आप समुद्रों से चलकर स्पीड के साथ समुद्र में जाकर गिर जाती हैं। कोई रोक नहीं सकता।
यथा सरितगण आप ही मिले सिंधु में धाए। सत- सुकरत के मध्य तिमि, सभी पंथ समाय।।
इस प्रकार यह सब जितने पंथ और धर्म बने हुए हैं मेरे उस सच्चे पंथ में जबरदस्ती आएंगे। कोई रोक नहीं सकेगा उनको। जब उनको ज्ञान होगा।
जब लग पूर्ण होवै नही, ठीक का तिथि बार। कपट चातुरी तब लो, और स्वसमवेद निराधार।।
हे धर्मदास! परमात्मा कहते हैं जो आज मैं यह विचार व्यक्त कर रहा हूं और तु स्वसमवेद अध्याय में लिख रहा है यह उस समय तक लोग सब बकवादी बने रहेंगे।
कपट चातुरी तब लग
और यह मेरा स्वसमवेद यह बातें बिल्कुल निराधार दिखेंगी टोटली झूठ कि यह हो ही नहीं सकता। देख बंदी छोड़ की कितनी गजब की बात बच्चों! बिल्कुल सच्ची बोल रखी, की जब लग पूर्ण होवे नहीं, ठीक का तिथि वार। यानी 5505 कलयुग की जो ठीक रख दी निर्धारित समय कर दिया उससे पहले तक तो यह मेरी बात सारी झूठी लगेगी। और सभी लोग ऐसे ही चतुर बने रहेंगे कपट किया करेंगे। लेकिन सब ही नारी नर शुद्ध तब, उस समय इस ज्ञान के आधार से सभी स्त्री - पुरुष सभी धर्मो के शुद्ध हो जाएंगे उस ज्ञान से जब ठीक का दिन आवंत। यानी वह ठीक का दिन आएगा
सब ही नारी नर शुद्ध तब जब ठीक का दिन आवंत। कपट चातूरी छोड़कर, शरण कबीर गहंत।।
बच्चों! वह ठीक का दिन आ गया अब। चारों तरफ डंका बोल गया दाता का। एक समय में चार - पांच लाख बच्चे सत्संग सुन रहे हैं। इतना बड़ा हम आश्रम बनाकर भी नहीं सुना सकते थे। हे बंदी छोड़! सारा संसार आश्रम बन गया मेरे बंदी छोड़ का। घर-घर आश्रम बन गया। और अपने बच्चों पर कैसी कृपा कर दी मेरे दाता ने। बच्चों! फिर क्या बताते हैं
एक अनेक हो गए
यानी पहले एक धर्म था सनातन धर्म। उससे पहले आदि सनातन धर्म । अब अनेकों धर्म बन गए, पंथ बन गए।
एक अनेक हो गए, पुनः अनेक हो एक। हंस चलें सतलोक सब, सतनाम की टेक।।
यानि सारे एक हो जाएंगे और सभी हंस इस सच्चे नाम की भक्ति की शक्ति से सतलोक चलेंगे।
घर-घर बोध विचार हो, दुरमति दूर बहाए। कलयुग में सब एक हो, बरतैं सहज सुभाएं।।
कहां उग्र कहां शूद्र हो,
चाहे कोई निकम्मा, डाकू, लुटेरा है, चाहे कोई छोटी जाति समझते हो आपको
हरे सब की भवपीर।
परमात्मा वह संत जो मेरा भेजा हुआ होगा भेजा हुआ आएगा वह सबके दुख दूर करेगा।
हरे सब की भवपीर। सो सामान समदृष्टि है , समर्थ सत कबीर।।
वह एक समान सम दृष्टि का है। सबको एक दृष्टि से एक समान प्यार देगा। सबको एक जैसा व्यवहार देगा। एक जैसा सच्चा नाम सतनाम सारशब्द देगा।। वह समर्थ सत कबीर ही होगा।
बोलो बंदी छोड़ कबीर साहेब की जय हो।।
बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज की जय हो।।।
बच्चों! किस्मत वाले हो आप। धन्य है आपके माता-पिता! जिससे जन्म हुआ। देखो मलिक ने कैसे उपकरण बनवा दिए। आपके लिए बनवाए। नहीं इस मनुष्य को पहले पशुओं के चारा काटने की मशीन बनाने की बुद्धि नहीं थी। हाथ में गंडासा लेकर ऐसे कटा ए कट रखा करते हमने देखे खुद। और अब 1997 के बाद देखो विज्ञान शिखर में चढ़ा दी। बकवाद करने वाले बकवाद करलो इनसे। और हम, हम अपना जीवन आबाद करेंगे। मोक्ष पाएंगे। इन उपकरणों से हमने ग्रंथ देख लिए। सारा सत्य पाया। और घर बैठे-बैठे बच्चों सत्संग सुनने लग रहे। गाड़ी में, गाड़ी में कान कै लगा लो। कार मे हो, कार में। घर बैठे घर पर, दुकान पर बैठे, दुकान पर, खेत में हों खेत में, ट्रैक्टर चल रहा है ट्रैक्टर में लगा लो। यानी इस दाता ने अजब गजब कर दिया बच्चों आपके लिए आज कलम तोड़ दी।
पुण्य आत्माओं! परमात्मा आपको मोक्ष दे। अपने चरणों में रखें। सदा सुखी रहो। इस मालिक को पहचान लो तुम। अब भी आपके पहचान में नहीं आएगा तो बता फिर कौन सी विधि अपनाऊं ? जो आपको यह समझा दूं की आप काल के जाल में बिल्कुल फंसे पड़े हो। आपकी खुब दुर्गति कर रखी है। आपको समझ नहीं है बच्चों। इस ज्ञान से आपकी आंखें खुल जानी चाहिए। जब कबीर साहेब कहते हैं तुम्हे को मूर्ख बना रखा है तुम सबको। यह बेटा है, यह बेटी। यह बड़ी कार और कोठी। भक्ति करलो चलो यह मालिक ने दे रखी है कोई बात नहीं। तेरे संस्कार थे अच्छी बात है। नहीं तो हिड़की दे दे रोवेगी हे सुरता! जब तू चालेगी अकेली। जब संसार छोड़कर जाओगे तुम्हारे कोई साथ नहीं होगा। और टक्कर मार कर रोवोगे। और यम के दूत घसीट कर ले जाएंगे आपको। और कबीर साहेब की शरण में आने के बाद
धर्मराय दरबार में, देई कबीर तलाक। मेरे भूले चूके हंस को, पकड़िए मत कजा़क।।
परमात्मा तुम्हारे साथ होगा। काल के दूत उसके निकट नहीं आ सकते। आपके पास ऐसा गजब नाम है काल भी निकट नहीं आ सकता। इस नाम का जाप करते ही सब यम दूत भाग जाएंगे। तो बच्चों! परमात्मा की इस रज़ा को बना कर रखना। दाता आपको मोक्ष दे। सदा सुखी रखे।
सत साहेब।।
FAQs : "विशेष संदेश भाग 7: कबीर सागर में सृष्टि रचना"
Q.1 इस लेख में वर्णित सर्वोच्च ईश्वर कौन है?
सर्वोच्च ईश्वर कबीर साहेब जी हैं। उन्होंने ही संपूर्ण ब्रह्मांडों की रचना की है।
Q.2 "सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान" का हमारे जीवन में क्या महत्व है?
सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान सर्वोच्च ईश्वर कबीर साहेब जी स्वयं प्रदान करते हैं। सच्चा ज्ञान मानव जीवन के उद्देश्य और मोक्ष प्राप्त करने के लिए बहुत ज़रूरी है। इससे ही जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल सकती है।
Q. 3 हमारे पवित्र शास्त्रों में वर्णित "भक्ति युग" क्या है?
"भक्ति युग" या "भक्ति का काल" कलयुग की बिचली पीढ़ी के समय को कहा गया है। इस समय में मोक्ष के एक नए युग की शुरुआत होती है और लोग सच्चे आध्यात्मिक मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त करते हैं।
Q.4 इस लेख के अनुसार ब्रह्मांड और जीवों की रचना कैसे हुई थी?
सतलोक से प्रारंभ हुई सृष्टि रचना की संपूर्ण जानकारी पवित्र सूक्ष्म वेद में वर्णित है। इसमें वर्णन है कि सर्वोच्च ईश्वर ने अपनी शब्द शक्ति से समस्त लोकों और प्राणियों की उत्पत्ति की थी। इस पवित्र ग्रंथ में अक्षर पुरुष और ज्योति निरंजन (काल) की रचना बारे में विस्तार से बताया गया है। इसमें काल के द्वारा जीव आत्माओं को भ्रमित करके सतलोक से अपने 21 ब्रह्मांडों में लेकर जाने का भी प्रमाण है।
Q.5 इस लेख में वर्णित "तप्तशिला" क्या है और इसका क्या महत्त्व है?
"तप्तशिला" 21वें ब्रह्मांड में रखी एक (रोटी सैंकने के तवे जैसी) चट्टान है, जो हर समय जलती रहती है। इस चट्टान पर मृत्यु के बाद जीव आत्माओं के सूक्ष्म शरीरों को भुना जाता है और उन्हें वहां अत्यधिक पीड़ा दी जाती है। फिर तिल-तिल करके जलते हुए सूक्ष्म शरीरों में से निकले मैल को कसाई ब्रह्म काल खाता है। केवल सर्वोच्च ईश्वर कबीर साहेब जी की पूजा करने वाले ही इस पीड़ा से बच सकते हैं।
Q.6 मानव के दुखों का कारण क्या है?
मानव दुखों की शुरुआत तब से हुई थी जब आत्माओं ने सतलोक में ज्योति निरंजन यानि कि ब्रह्म काल के प्रति आकर्षित होकर इसके साथ वहां से चलने का निर्णय लिया था। इसी कारण जीवात्माएं जन्म और मृत्यु के चक्र में फंस गईं और काल के लोक में दुख भोग रहे हैं।
Q.7 सृष्टि के कार्यों में देवी दुर्गा जी की क्या भूमिका है?
देवी दुर्गा जी, आदि माया और त्रिदेव जननी आदि नामों से जानी जाती हैं। उन्हें परमपिता परमेश्वर कबीर साहेब जी ने ब्रह्म काल की सृष्टि में उसकी सहायता करने के लिए बनाया था। परमेश्वर ने उन्हें जीवों को उत्पन्न करने की शब्द शक्ति भी प्रदान की थी और उन्हें काल के लोक में भेजा था। दुर्गा जी ब्रह्म काल के 21 ब्रह्मांडों में जीवों को उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
Q.8 परमपिता परमेश्वर कबीर साहेब जी ब्रह्म काल की सृष्टि में आत्माओं को उनके कष्टों के बारे में कैसे जानकारी देते हैं?
परमपिता परमेश्वर कबीर साहेब जी विभिन्न रूपों में प्रकट होकर जीव आत्माओं को सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं और उन्हें काल के लोकों के कष्टों के बारे में जानकारी देते हैं। वे मनुष्यों को बताते हैं कि वे तत्वदर्शी संत द्वारा बताई गई सच्ची भक्ति करके मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं और अपने निज धाम यानि कि सतलोक लौट सकते हैं
Q.9 जीव आत्माएं मोक्ष कैसे प्राप्त कर सकती हैं?
जीव आत्माएं परमपिता परमेश्वर कबीर साहेब जी की शरण ग्रहण करके, उनके द्वारा बताई सच्ची भक्ति और उनके बताए नियमों का अंतिम सांस तक पालन कर मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। इस सच्चे आध्यात्मिक मार्ग पर चलकर भक्ति धन संचय करके अपने निज धाम यानि कि सतलोक लौटा जा सकता है।
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Kavaya Ghosh
इस लेख में वर्णित सृष्टि की रचना के बारे में मैंने पहली बार जाना और मुझे यह एक काल्पनिक कहानी जैसी लग रही है। देखिए सृष्टि की रचना को समझने की मेरी तीव्र इच्छा है। लेकिन मुझे कभी किसी संत या गुरु से इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली।
Satlok Ashram
काव्या जी, आप जी ने हमारे लेख को पढ़कर अपने विचार व्यक्त किए, उसके लिए आपका बहुत धन्यवाद। देखिए पहली बार सृष्टि रचना के बारे में सुनने वाले को यह काल्पनिक ही लगती है। लेकिन सृष्टि की संपूर्ण रचना के बारे में हमारे लेख में जो वर्णन किया गया है, वह हमारे पवित्र शास्त्रों से प्रमाणित है। इसका प्रमाण सूक्ष्म वेद और संतों की वाणियों में मिलता है। प्रकृति की रचना के बारे में केवल ईश्वर व उनके द्वारा भेजे गए अधिकारी संत ही बता सकते हैं। इसी कारण अन्य अज्ञानी और नकली धर्म गुरु सृष्टि रचना के बारे में कभी कुछ नहीं बताते हैं क्योंकि वे ईश्वर द्वारा भेजे गए अधिकारी संत नहीं हैं। सृष्टि रचना की संपूर्ण जानकारी के लिए आप आध्यात्मिक पुस्तक “ज्ञान गंगा” पढ़ सकते हैं। आप विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध संत रामपाल जी महाराज जी के शास्त्र आधारित प्रवचनों को भी सुन सकते हैं।