विशेष संदेश भाग 6: संपूर्ण सृष्टि रचना


The-Complete-Srishti-Rachna-Hindi-Photo

जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के विशेष संदेश एपिसोड 6 संपूर्ण सृष्टि की रचना कैसे——

सत साहेब।।

 सतगुरु देव की जय।

 बंदी छोड़ कबीर साहेब जी की जय।

 बंदी छोड़ गरीबदास जी महाराज जी की जय।

 स्वामी रामदेवानंद जी गुरु महाराज जी की जय हो।

बंदी छोड़ सतगुरू रामपाल जी महाराज जी की जय।

 सर्व संतो की जय।

 सर्व भक्तों की जय।

धर्मी पुरुषों की जय।

श्री काशी धाम की जय।

श्री छुडानी धाम की जय।

 श्री करौंथा धाम की जय।

श्री बरवाला धाम की जय।।

 सत साहेब।।।।

कबीर दंडवत्तम गोविंद गुरु, बंधु अविजन सोए। पहले भये प्रणाम तीन, नमों जो आगे होए।।

कबीर गुरु को कीजै दंडवतम, कोटि-कोटि प्रणाम। कीट न जाने भृंग कूं ,यों गुरु कर हैं आप समान।।

 कबीर सतगुरु के उपदेश का, सुनिया एक विचार। जै सतगुरु मिलते नहीं ,जाते नरक द्वार।।

नरक द्वार में दूत सब, करते खैचांतान। उनसे कबहूं नही छूटता ,फिरता चारों खान।।

कबीर चार खानि में, भरमता कबहूं ना लगता पार। सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।।

जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी  सुख से बसियो, अमरपूरी के डेरे की।।

जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी  सुख से बसियो, सतलोक के डेरे की।।

 निर्विकार निर्भय तूही ,और सकल भयमान। ऐजी साधो और सकल भयमान।

सब पर तेरी साहेबी, सब पर तेरी साहेबी तुझ पर साहब ना।।

 निर्विकार निर्भय।।

बच्चों! परमपिता परमात्मा कबीर जी की असीम रजा से कलम तोड़ रजा से आपको परमात्मा की शरण प्राप्त हुई। आपकी किस्मत आपकी तकदीर आपके luck का कोई एस्टीमेट नहीं लगाया जा सकता आप कितने पुण्यों से भरे हुए हो। आपको उदाहरण दिया जाता है ,कि आज आप कितने ही निर्धन हो ,या धनवान हो परमात्मा की शरण में आ चुके हो। आपके भक्ति संस्कारों का मोक्ष प्राप्त करने वाले भक्ति धन का कोई अभाव नहीं है ,कोई कमी नहीं। लेकिन इस समय में इस मनुष्य जीवन में जो शरण में नहीं आएंगे इस भक्ति काल में, भक्ति युग, भक्ति युग है यह। एक नया युग शुरू हो गया इसको मोक्ष युग ,भक्ति युग, कलयुग का यह सतयुग  शुरू हो चुका है। यह सतयुग उनको होगा जो समर्थ की शरण आ जाएंगे। बच्चों! आपको उदाहरण दिया जाता है आप आज के नहीं लगे हो। बहुत युगों से परमात्मा की भक्ति में लगे हुए हो। वैसे तो जिस दिन से अपने भगवान को छोड़कर अपने पिता को छोड़कर हम इस काल के साथ आए थे  कुछ दिन के बाद इसकी स्वभाव और बकवादों का एहसास हो चुका था। हम जो धन लाए थे वह लूट लिया था। और फिर हमारे से मजदूरी करवाता है। पृथ्वी पर जाओ, भक्ति करो, सर्वग मे आओ। महास्वर्ग ब्रह्मलोक में आओ। वहां इनके होटल हैं। हमारी भक्ति के धन से यह  अपना कारोबार चल रहे हैं। यह 21 ब्रह्मांड ऐसे चल रहे हैं। जैसे उदाहरण दिया था दास जब जूनियर इंजीनियर की नौकरी करता था अपने काम पर था। लेबर लगी हुई थी। दोपहर के समय एक पेड़ के नीचे बैठे थे। वह खाना खा रहे थे। हम भी और कहीं आसपास छाया थी नहीं उसी के नीचे चले गए। एक बहन रो रही थी। उससे पूछा तो उसने बताया मैं एक भरे पूरे घर की लड़की थी। जिसके साथ मैंने विवाह कर लिया मैंने खुद किया लव मैरिज। यह हमारे वहां नौकर था। जब तो यह ठीक सा लगा था। प्रसन्न होकर बोला करता , बहुत प्यार से बोलता था। जब मैं इसके साथ आ गई घर वालों ने भी त्याग दी। जो मैं धन लेकर भाग कर आई थी घर से निकाल कर लाई थी। वह सारा इसने शराब में उड़ा दिया। अब मुझे कहता है मजदूरी कर। मैं मजदूरी करती हूं वह शराब पीता है। पैसे नही दूं तो पीटै। एक बालक वहीं अढाई साल का, 3 साल का होगा, उसके साथ ही रेत में सो रहा था। एक को सीने से लगाकर दूध पिला रही थी छोटा ही था, 1 साल का होगा। अब भी मैं मजदूरी करने आई हुई हूं। अब  हमारे  पास क्या समाधान था। अब एहसास होता है ,कि हमारे साथ यह जुल्म हुआ। हम इसके साथ आ गए । तब तो यह हमने हीरो दिख रहा था। एक पैर पर खड़ा होकर तपस्या कर रहा था। और हम इस पर आकर्षित हो गए। और यहां आकर यह दुर्गति कर दी इसने। सारा धन लूट लिया हमारा। अब हम अपने घर उतना ही धनी होकर जा सकते हैं। और उतना ही लगाव जितनी तड़प इस नालायक के साथ हमने यहां आने की थी इतनी तड़प वहां जाने की होगी। तब वह स्वीकार करेगा। तो यह परमात्मा आपको तभी स्वीकार करेगा इतनी ही तड़प बनेगी  वापस उस घर जाने की।

बच्चों!  इस गंदे लोक मे आ गए हम। परमात्मा उस समय बताया करते थे  धर्मदास जी को बताया ,कि तुम गलत जगह आ चुके हो। आपको यहां भ्रमित कर दिया। इस अधूरे ज्ञान में आपको उलझा कर खड़ा कर दिया। आपको रस्ते का पता नहीं आपका घर भुला दिया। तो बच्चों! आप बहुत उसी दिन से जिस दिन से भगवान से बिछड़े हो आपको एहसास हो रहा है ,कि वह सुख है नहीं , जिसकी हमें खोज है। सुख मतलब परम शांति। अब जैसे हम वेद पढ़ते हैं गीता पढ़ते रहे, वेद पढ़ते रहे। इनमें स्पष्ट किया है 40 वें अध्याय के दसवें श्लोक में, की कोई तो परमात्मा को साकार कहता है। कोई निराकार कहता है। कोई तो कहता है ,की वह प्रकट होता है जैसे अवतार धार कर। कोई कहता है वह कभी प्रकट नहीं होता कभी जन्म नहीं लेता। पूर्ण परमात्मा कैसा है? कैसी लीला करता है? इसका ज्ञान तुम तत्वदर्शी संतों से पूछो। गीता अध्याय 4 श्लोक 34  में भी कहा है ,की उस परमपिता परमात्मा के तत्वज्ञान को परमात्म तत्वज्ञान को किसी संतों के पास जाकर उनको दंडवत प्रणाम करके निष्कपट नम्र भाव से प्रश्न करने से वह तत्वदर्शी संत तुझे तत्वज्ञान का उपदेश करेंगे। गीता अध्याय 4  श्लोक 32 में स्पष्ट कर दिया है ,कि सच्चिदानंद घन ब्रह्म जो अपने मुख कमल से वाणी बोलकर ज्ञान सुनाता है वह तत्व ज्ञान है। उसके जानने के बाद जन्म- मरण फिर नहीं होता। बच्चों! गीता अध्याय 15 के प्रथम श्लोक में कहा है ,की उल्टा लटका हुआ संसार रूपी वृक्ष जानों। ऊपर को उसकी जड़ है नीचे को तीनों गुण रूपी शाखा है । जो संत इसके सभी विभाग भिन्न-भिन्न बता दे सवेदवित: वह वेद  यानी वैसे वेद का अर्थ ज्ञान होता है। यह चार वेद यानी चार प्रकार का ज्ञान यह चार वेद हैं। सवेदवित: यानी वह तत्वज्ञान के जानने वाला है।  वेद के तात्पर्य को समझता है। तो बच्चों! परमात्मा खुद सतगुरु रूप में आए थे। और उन्होंने यही तत्वज्ञान अपने मुख कमल से बोलकर वाणी मे बताया  था।

कबीर अक्षर पुरुष एक पेड़ है, क्षर पुरुष यानी ज्योति निरंजन वाकी डार। और तीनों देवा शाखा है, पात रूप संसार।।

आज यह ज्ञान दास को प्राप्त हुआ मेरे गुरुदेव की कृपा से आशीर्वाद से परमात्मा कबीर साहेब की रजा से। तो बच्चों! यह क्लियर हो गया, कि यह ज्ञान किसी के पास नहीं था। दास के पास है। या परमात्मा के पास था। मेरे गुरुदेव के पास था। संत गरीब दास जी के पास था। आगे यह विस्तार से नहीं बताया गया। अब हम सुख खोजते हैं। धनी को सुखी मानता है। धनवान राजा को। स्वर्ग के राजा इंद्र को। इंद्र, ब्रह्मा, विष्णु ,महेश को। और ब्रह्मा, विष्णु ,महेश स्वयं दुखी हैं। स्वंय सुखी नहीं। वह भी उस सुख की खोज में साधना करते हैं तप करते हैं। उनके पास भी अध्यात्म ज्ञान संपूर्ण नहीं है। वह भ्रमित ज्ञान है। गीता अध्याय 18 श्लोक 62  में कहा है ,कि अर्जुन! तो सर्वभाव से उस परमात्मा की शरण में जा। उसकी कृपा से ही तू परम शांति को यानी  सुख को परम सुख को ,शांति मतलब सुख। परम शांति को और सनातन परमधाम को प्राप्त होगा।

तो बच्चों! सबसे पहले आपको यह ज्ञान होना चाहिए ,कि हम कौन हैं ? कहां से आए हैं ? और इस मनुष्य जीवन का उद्देश्य क्या है ? यदि मनुष्य जीवन का उद्देश्य आपने इतना ही  मान रखा है- : जन्म हो गया शिक्षा ग्रहण करी, या नहीं करी। शादी हो गई। बच्चे हो गए। पाल -पोष दिए। इनका विवाह कर्म कर दिया। फिर इनके संतान की आस लगाई। चलो जो भी है ठीक है हुआ। अच्छा! इस दौरान पता नहीं क्या-क्या घटना घट लेती है? कोई मरता है, कोई बचता है, कोई रोगी ,कोई कोढ़ी हो जाता है। और फिर मर गए क्या यही काम था? यह तो पशु - पक्षी भी करते हैं। फिर मनुष्य जीवन की क्या आवश्यकता थी ? यह अब पता चला। तो सबसे पहले हम सतलोक में थे। सत्पुरुष एक सिंहासन पर विराजमान थे। वहां से उन्होंने चार लोक रचे ऊपर के। अकह लोक, अगम लोक, अलख लोक, नीचे वाला सत्यलोक। प्रत्येक में चार सिंहासन इसी प्रकार तैयार किये। उन सिंहासन पर विराजमान हुए अलग-अलग नाम से, अलग-अलग रूप से। सतलोक में विराजमान होकर सत्पुरुष ने हमारे पिता ने वहां सतलोक के अंदर की अन्य रचना की। सबसे पहले 16 द्वीप एक वचन से किये। 16 वचनों से 16 पुत्रों की उत्पत्ति की। आपको सृष्टि रचना में बहुत बार सुनाया है। अचिंत नाम का उनका एक पुत्र है उनका भ्रम खत्म करने के लिए ,कि यह बीच में पैर फंसावे उससे कहा, कि शेष सृष्टि आप रचो। अचिंत ने अपनी शब्द शक्ति से एक व्यक्ति उत्पन्न किया लड़का नौजवान। वह अक्षर पुरुष कहलाया।

अक्षर पुरुष मस्ती में जाकर उस मानसरोवर में सो गया। वहां स्वांस से शरीर नहीं है। अमृत जल है उसमें डूब कर मरते नहीं। सतलोक में मृत्यु नहीं है, यह शरीर ऐसा है। काफी वर्षों तक वह उठा नहीं, काफी समय तक। तब अचिंत ने परमात्मा से अर्ज लगाई। की अक्षर पुरुष निंद्रा में है। सृष्टि रची नहीं जा सकती। कृपा उसे जगाओ। तब परमात्मा बोले बच्चा! जिसका काम उसी को साजै। और करें तो मूर्ख बाजै।। यह तुम्हारे वश का नहीं है। आगे से ऐसी गलती मत करना। हाथ जोड़े माफी मांगी की प्रभु! गलती नहीं होगी। हमें अपनी औकात का पता चल गया । तब परमात्मा ने उस अमृत जल से एक जल लिया सरोवर से अपनी शक्ति से एक अंडा तैयार करके उसमें छोड़ दिया बहुत बड़े आकार का हो गया जैसे जादूगर करते हैं। तो बच्चों! वह अंडा जो जल में छोड़ा परमात्मा ने उसमें ज्योति स्वरूपी निरंजन की आत्मा यानी अपनी आत्मा डाली। वह गढ़ ,गढ़ ,गढ़, गढ़ करता हुआ नीचे गया। अक्षर पुरुष की निंद्रा खुल गई उस गडगड़ाट से। उसने जैसे इंसान सोये हुए को जगाता है थोड़ा सा उसके मन में कुछ मतलब  सोये हुए को जगा दे जो मन मस्ती से सोता है जिसको किसी का डर नहीं तो एकदम गुस्सा सा होता है। उसने देखा तेरी नींद किसने खोल दी। क्रोध से देखा। वह क्रोध उस अण्डे में प्रवेश कर गया। उससे वह अंडा पककर फट गया। ज्योति निरंजन निकला। वहां इसका नाम कैल है कैल। तब परमात्मा ने कहा , तुम दोनों बाहर आओ। दोनों बाहर आए। जाओ अचिंत के लोक में रहो। उस दिन के बाद इस ज्योति निरंजन के मन में खुरापात पैदा हुआ। कि हम तीन एक द्वीप में। और हमारे अन्य भाई सब एक-एक द्वीप में। मैं अलग से राज लूंगा। तप से राज मिलेगा। इसने तप किया शुरू में 70 युग। तब परमात्मा ने कहा भाई क्या चाहता है? उस दौरान परमात्मा ने हम सब आत्माओं को उत्पन्न कर दिया । उसके बाद तुरन्त सतलोक भर दिया। हम वहां मस्ती से रहने लगे। हमारा परिवार सब कुछ बन गया। उस दौरान हमने वहां सारा सुख था।

जब सुख होता है तब बकवाद अच्छी लगती है। आज जैसे बच्चे स्कूल में पढ़ते है और पैसे वालों के बच्चे हैं वह फिल्म देखेंगे। और बकवाद करेंगे। और गरीबों के जो बच्चे है वह बेचारे  हैंड टू माउथ है स्कूल कालेज जाएंगे, अपने घर आ जाएंगे। इसी प्रकार हमें वहां सुख था सुख हमारे को सुहाया नहीं हमने। हम पर उटा नहीं। बकवाद मन मे आई यह नंगड़ पसंद कर लिया। यह स्वयं भिखारी था भगवान के सामने। और हम इसको चाहने लगे। जैसे उदाहरण दिया था वह लड़की अपने नौकर को चाहने लगी और  बाप की व्यवस्था को भूल गई जिसने इतना सुख दिया जन्मी पाली- पोषी। यह बीमारी हमें हमारे वहां से लगी है। और यह हमारे दुख का मूल है। रूट है। तो हम इसको चाहने लगे। परमात्मा ने आकाशवाणी की बच्चों! इसकी बातों पर ध्यान मत दो।  इसकी क्रिया को मत देखो मस्त रहो। यह ठीक नहीं कर रहा है। हम ऊपर से तो सावधान हो गए और अंदर से जबरदस्त चाह बन गई। यह एक छूत का रोग है ऐसे लग जाता है। मोह - ममता किसी के साथ ज्यादा जुड़ जाओगे ऐसे बन जाएगी। फिर क्या होता है-: हम परमात्मा के दिल से उतर गए। और  हमें रिजेक्ट कर दिया। इतना कहने के बावजूद भी यह ऐसी ही बकवास कर रहे हैं। इसने 70 युग तप करने के बाद परमात्मा ने पूछा कि अब क्या चाहता है बोल ? इसने कहा पिताजी! हे भगवन! हमें अलग राज दे दो। मुझे अलग स्थान दो। सब एक -एक स्थान पर है और हम तीन एक में है। सबके पास एक -एक द्वीप है। परमात्मा ने उसको 21 ब्रह्मांड दे दिए जैसे 21 प्लाट दे दिए जाते हैं। यह वहां चला गया। अब देखा ,इसमे खाली प्लाटो का करूंगा क्या? इसमें कंस्ट्रक्शन चाहिए। बनाऊं नंगड़ है इसके पास है कुछ नहीं।  फिर तप किया।

परमात्मा से फिर मांगा 70 युग तप करके। मुझे यह कंस्ट्रक्शन रचना करने की सामग्री दे दो। परमात्मा ने कहा यह सामग्री तेरे बड़े भाई कुरम्भ के पास है। उससे विनम्रता पूर्वक प्रार्थना करके और लेना। और कहना कि परमात्मा ने कहा है। यह वहां गया। कुरम्भ अपना ध्यान लगाए बैठा था। क्योंकि वहां भी भगवान की चाह बहुत जल्दी  प्यार आता है आनंद आता है वहां आत्मा को मालिक के ध्यान लगाने में। इसने आवाज़ लगाई। ध्यान से उठा नहीं। उसने उसका मुकुट पकड़ कर हिला दिया। खड़ा हो मेरी बात सुन। वह बोला बोल क्या चाहता है? उसने कुरम्भ से कहा कि मुझे सृष्टि रचना की सामग्री दे, पिताजी ने कहा है। कुरम्भ बोला भई मैं पिताजी से पूछूंगा फिर दूंगा ऐसे मैं दे नहीं सकता। यह अधिकार नहीं है मुझे । वह बोला निरंजन की क्या मैं झूठ बोलता हूं? मेरे पर विश्वास नहीं है? पिताजी ने कहा है। उसका मुकुट पकड़ कर हिला दिया। वह हिलने से पांच तत्व तीन गुण निकले। वह लेकर भाग लिया। कुरम्भ ने शिकायत कि की पिताजी ऐसे ऐसे इसने मेरे से शरारत की। आप बताओ मैं इसके छीन कर लाऊंगा। परमात्मा बोले इसने तो गलती कर दी तू मत करिए। इसके लोक में यह  शांत नहीं रहेगा इसने यहां से ही  बकवाद शुरू कर दी। इसके लोक में 21 ब्रह्मांड में ऐसे ही हाहा- कार रहेगी। आपस में लड़ाई रहेगी घर-घर में रहेगी। और जिन्होंने मेरे से मन तोड़कर इस काल के साथ जुड़े इनकी दुर्गति ऐसे ही रहेगी। यह घर-घर में लड़ाई रहेगी। कहीं शांति इनको नहीं होगी। क्योंकि वह शांत स्थान है ही नहीं। कुरम्भ  शांत हो गया। इसने फिर 64 युग तप किया। फिर परमात्मा बोले यह रोज-रोज क्या कर रहा है तू क्या मांगता है बोल ? यह बोला जी मुझे जीव दे दो अकेले का मन नहीं लगता। इसने वहां थोड़ी बहुत  कंस्ट्रक्शन भी कर ली। परमात्मा बोले भाई आत्मा नहीं दे सकता मैं। यह तो मेरी आत्मा मेरे वचन से उत्पन्न है।

मेरा एक विशेष लगाव है इनसे। हां एक बात है यदि यह खुद जाना चाहे तेरे साथ अपनी मर्जी से तो यह जा सकती हैं। मैं भेज दूंगा। यह हमारे पास आया और हम तो इसको चाह ही रहे थे। अंदर से तड़प थी। जैसे हम बच्चों को मना भी करते रहते है फिल्म नहीं देखोगे। वहां हीरो हीरोइन आ रही है। वहां नहीं जाओगे। वहां जरूर जायेंगे फिर। तो कहने का भाव यह है हम इसके आते ही हम चारों तरफ झूम गए। ऐसे दूर तक।

जैसे यहां कोई फिल्मी नाचने - कूदने वाला लड़की और लड़का आ जाते है। यह नए बच्चे ऐसे खड़े हो जाते हैं जैसे बल्ब के ऊपर यह पतंगे आ जाया करे । लेना एक न देने दो। यह वहां बीमारी लगी हुई है इसको एंटीबायोटिक तत्वज्ञान से काटा जाएगा। तो इसने कहा ,कि मैंने ऐसे ऐसे अलग से स्थान प्राप्त किये है 21 ब्रह्मांड। और वहां ऐसे स्वर्ग बनाऊंगा , महास्वर्ग बनाऊंगा। ठाट करेंगें। बड़े-बड़े बाग लगाएंगे। मेरे साथ चलोगे? वह कहने लगे हम तैयार हैं यदि पिताजी आज्ञा दे दे तो। काल फिर पिताजी के पास गया। जी कुछ आत्मा मेरे साथ चलने को तैयार हैं आपकी आज्ञा चाहते हैं। परमात्मा बोले चल मेरे साथ, मेरे सामने कहलवा। तो बच्चों! परमात्मा इसके साथ हमारे पास आ गए। और परमात्मा ने कहा भाई बताओ कौन-कौन इसके साथ जाना चाहता है  ? हाथ खड़े करो। हम सुन्न हो गए शर्मिन्दे भी हो गए। की अब कैसे ? और इसके बिना रह भी नहीं सकते इतनी आग लग गई हमारे। ऐसे ही जो प्रेम कर लेते है प्रेमी यह वही आग है इस अध्यात्म ज्ञान की कमी से ऐसा नाश करते है यह।  लड़का लड़की शादी कर लेते हैं। फिर दुर्गति होती है। कोई गलत स्थान पर शादी हो जाती है फिर  मारे जाते हैं। दो घरों का नाश करते हैं। तब कोई नहीं बोला सारे सुन्न हो गए। सबसे पहले एक आत्मा ने बेशर्मी करी खड़ी हुई। और दोनों हाथ खड़े करे। मैं जाना चाहता हूं। वहां तो लिंग स्त्री पुलिंग तो बाद में बनाए परमात्मा ने।

तब परमात्मा उसके हाथ खड़े करते ही हम सबने हाथ खड़े कर दिए। हमने सोचा ,की यह तो गया हम रह गए। तो बच्चों! परमात्मा बोला भाई ठीक है ज्योति निरंजन आप जा अपने उस लोक में द्वीप में । मैं इनको अपने हिसाब से भेजूंगा तेरे साथ। हम सबको सूक्ष्म रूप बनाकर उस लड़की की आत्मा में फीड कर दिए। जैसे आप देखते हो एक छोटे से स्थान पर करोड़ों कीटाणु सूक्ष्म रूप से हो जाते हैं। ऐसे उसके कीटाणु रूप में हमें उसके अंदर प्रवेश कर दिया। इसको एक लड़की का रूप दिया। और कहा बेटी जाइये! अपने पुत्र सहज दास से कहा की जा अपनी बहन को वहां छोड़ कर आ निरंजन के पास। कैल के पास। और उसको बता देना ,की इसके अंदर वह सब जीव है जिन्होंने Yes किया है। और यह वचन से जितने जीव तू कहेगा स्त्री- पुरुष लड़का- लड़की Male - Female पैदा कर देगी। सहज दास गया लड़की को वहां छोड़ आया। और उसको सब बता दिया। लड़की के युवा शरीर को देखकर इसके अंदर दोष आया। इसने उसका नाम "आदि माया , अध्य माया " और फिर बाद में "दुर्गा अष्टंगी"  कहलाई। "त्रिदेव जननी" कहलाई। तो इसने जब बदतमीजी करनी चाहिए तब देवी ने कहा की , हे ज्योति निरंजन! तू मेरा बड़ा भाई परमात्मा के वचन से पहले पैदा हुआ। बाद में मैं उत्पन्न हुई। तेरी छोटी बहन हुई। यह गंदा कर्म अच्छा नहीं लगता।

मेरे पास  ऐसे- ऐसे शब्द शक्ति है जितने जीव तु कहेगा मैं पैदा कर दूंगी वचन से । उसके अंदर दोष था ।  बकवाद करनी चाहिए तो उसने बकवाद के लिए मुंह खोला उसने सूक्ष्म रूप बनाया उसके पेट में चली गई। पेट से परमात्मा को पुकारा। मेरी रक्षा करो। परमात्मा सहज दास का रूप बनाकर फिर वहां  आए। और उसको लड़की को उसका पेट चाक कर काटकर नाखून से जैसे हाथी के ऐसे कोई गंडासा मार दे तो उसके तुरंत बाद उसका जख्म भर जाता है। ऐसे यह तो  और दूसरा शरीर है उनका , नूर का शरीर है ऐसे तुरंत भर गया। और वह लड़की बाहर निकाल दी। जैसे आजकल बच्चों को किसी कारण से ऑपरेशन से निकाला जाता है। तब उससे कहा ,कि आज के बाद तेरा नाम काल होगा। सुन ले वचन पिता के। पिता तो खुद ही थे पर रोल सहज दास का कर रहे थे जोगजीत का कर रहे थे। उसको जोगजीत भी कहते हैं। सहज दास भी उसी का नाम है। आज से तेरा नाम काल होगा। एक लाख मानव शरीर धारी प्राणी नित खाएगा। और तेरे इस सृष्टि में कोई सुखी नहीं रहेगा। तुम दोनों निकल जाओ यहां से। यहां से निकल जाओ।  16 संख कोस की दूरी पर जाकर रुके। तो यह वहां से चल पड़े जैसे जहाज चला करे  21 ब्रह्मांड। अब बच्चों! अब यहां आने के बाद हमारी दुर्गति शुरू हुई। तब हम दुखी हुए। फिर भगवान पुकारने लगे। भगवान ! हे परमात्मा! फिर जैसे नकली ज्ञान दिया वह भक्ति करने लगे। तो बच्चों! अब इसने ऐसा चक्रव्यूह बना दिया। यहां से तुम कभी भी नहीं निकल सकते। आप निकलोगे परमात्मा कबीर जी की शरण में आने के बाद। अब क्या हुआ-:  जब हम यहां साधना करते हैं सबसे पहले यह करते हैं ,या नहीं करते हैं। पापी है चाहे कोई  पुण्यी है सबको एक बार तप्तशिला बना रखी है इसने ऊपर वाले 21 वें  ब्रह्मांड में। उस तप्तशिला वह अपने आप जलती रहती है। जैसे सूर्य अपने आप प्रकाशित रहता है। उसके ऊपर एक तई सी रखी है लंबी चौड़ी सुंदर।

वह इतनी गरम है उसके ऊपर जाकर जीव पटक दिए जाते हैं। वहां पर हाहाकार मची हे भगवान! बचा ले, हे परमात्मा! हे पिताजी! हे सुखदाई परमात्मा! अब यह दयालु है। हम इसकी आत्मा है दुःख देखा नहीं जाता। वहां आकर खड़ा हो गया। परमात्मा अपने पुत्र सहजदास के रूप में जोगजीत के रूप में वहां आया। एक ही के दो नाम हैं। वहां उनके आते ही हमारी तप्तशिला यानी वह जीवों की तप्तशिला की आंच आग की आंच एकदम बंद हो गई। आंच जलती रही, आग जलती रही। वह तप्तशिला ऐसी की ऐसी जलती रही उनको कष्ट नहीं रहा। आंखें खोली देखी सुंदर सी मूरत तेजोमय शरीर उससे बोले हे परमात्मा! हमारी रक्षा करो। हे मालिक! हम किस कर्म का दंड यहां भोग रहे हैं ? क्योंकि यहां बताया जाता है अपने कर्मों का फल प्राणी भोगता है शुभ और अशुभ का। परमात्मा बोले यह जो तुम्हे कष्ट है यह यहां के किसी कर्म का नहीं है। यह तुमने सतलोक में बकवाद करी थी। वह चंद घंटों में सारी कहानी सुना दी जो दास ने आपको सुनाई। फिर कहते हैं हे भगवान! हमने तो भगवान समझ के इस काल की पूजा कर ली। हे परमात्मा! हमारी रक्षा करो। हे भगवान! हमारे से बड़ी गलती हुई। परमात्मा बोले

जब तुम जाए धरो जग नर देहा। तब तुम करना मम शब्द स्नेहा।।

जोर करूं तो मेरा वचन नसाई। मैं जबरदस्ती नहीं कर सकता। अब यह थोड़ा सा प्रकरण और बताना होगा, की परमात्मा जब  तप्तशिला पर आए। तो उसी समय यह काल भी आ गया इनको खाने के लिए। वहां इनको बताया ,की देखो यह है जिसको तुम निराकार कहते हो। वह आ गया। यह तुम्हें भूनकर खाता है। इसके लिए इसलिए ही तुम्हे जन्म - मरण के चक्कर में डाल रखा है। और यदि इसको यह श्राप नहीं लगता तो यह मनुष्य जीवन भी नहीं देता तुम्हारे को। यह भी तुम्हारे को वरदान है, की इस कारण से यह तुम्हें मानव शरीर दे रहा है। और इस मानव शरीर में मैं आपको समझा कर, बुझा कर ज्ञान देकर वापस ले जा सकता हूं। पर अब कुछ नहीं बनेगा। जब जाओ धरो जग नर देहा। तब तुम करना मम सत शब्द स्नेहा।।

जब तुम संसार में कभी मनुष्य जीवन प्राप्त करो मेरे उस सच्चे ज्ञान को मूल ज्ञान पर विश्वास करना। और जैसे मेरा संत बताएं उस तरह  क्रिया करके अपना जीवन सफल करना। भक्ति धन जोड़ना। तब मैं तुम्हें लेकर आऊंगा। बच्चों! उसी समय काल आ जाता है ज्योति निरंजन। और परमात्मा जोगजीत रूप में देख कर अपने भाई के रूप में जिस रूप में काल को वहां से निकाला था तो एकदम काल भंयकर हो गया। और कहने लगा जोगजीत तू यहां क्यों आया? कोई पुरुष परमात्मा का आदेश लेकर आया है तो पहले तो वह बता दे। क्या मैसेज है मालिक का ? और फिर उसने बताया सहज दास मे या उसके रूप में परमात्मा ने की भाई मैं परमात्मा ने भेजा हूं। और आपने देख अपने भाई - बहनों की क्या दुर्गति कर दी। कोई कुत्ता बना रखा है ,कोई गधा बना रखा है, कोई कुतिया बना रखी है, मुर्ख बनाकर रखा हुआ है। तप्तशिला पर भून रहा है। तो वह कहने लगा , की तूने इस बात से क्या लेना देना है ? की मेरे को सहज दास रूप में परमात्मा बोले भगवान ने भेजा है। और मैं नीचे जाकर यह बताऊंगा ,कि जिसकी तुम भक्ति करते हो यह काल है।

यह तुम्हे खाता है तुम्हें तप्तशिला पर भूनता है। और इनको दिखा भी दिया। यह जो आ रहे थे फिर वह  उड़ा दिये सारे। ऐसे दिखाकर कि देख वह आया तुम्हारा भगवान। वह तो फिर याद ही  नहीं रहती अचेत कर देता है इसने सारा जुगाड़ कर रखा है। और बताऊंगा की तूने इनको रोक रखा है और सच्चा ज्ञान ,सच्ची भक्ति उनको बताऊंगा। और इनको काल के जाल से निकाल कर वापिस सतलोक ले जाऊंगा। तो कहते हैं उसी समय यह बात सुनकर भयंकर हो गया क्रोधित हुआ। धर्मदास को बताते हैं परमात्मा कि मुझे मारने के लिए दौड़ा। की अभी करता हूं तुझे ठीक। नीचे जाकर दिखा तू। हाथी रूप बनाया बहुत भयंकर। मुझे मारने के लिए सूंड उठाया। मैंने पहले तो सतनाम का जाप किया जिससे वह बिल्कुल कंडम हो गया। फिर उसका सूंड पकड़ कर पटक दिया वह पाताल में पड़ा जाकर।

फिर मैं भी साथ-साथ गया। वहां भी एक नकली कुरम्भ बना रखा है। वहां कूरम्भ ने हमारा बीच- बचाव करवा कर इसने माफी मांगी पैर पकड़ लिए। मैं कभी गलती नहीं करूंगा आपके साथ बदतमीजी नहीं करूं  मुझे माफ कर दो। परमात्मा बोले चल वहीं पर  इसके 21वें ब्रह्मांड में ऊपर वाले  ब्रह्मांड में  फिर ले गया। तब इसने पैर पड़कर छोड़े नहीं और बोला मुझे माफ करो। और कुछ अभी चार युगों में जीव मत ले जाओ वचनबद्ध हो जाओ। मेरी कुछ कमिया है वह पूरी कर दो। मैं तो आप को अपने पिता के समान मानता हूं बड़े भाई को। परमात्मा बोले Yes, हां बता क्या कहता है ? क्या मांगना चाहता है ? वचनबद्ध हो गया। की चार युग में जीव थोड़े ले जाना। परमात्मा बोले ठीक है। और पहले प्रत्येक युग में पहले मेरे मैसेंजर जाए ज्ञान के संत, दूत। और पीछे तेरा संदेश वाहक आए। परमात्मा बोले तथास्तु! और भी इसने कई चीजें मांगी। फिर बोला एक काम और बता दो। आप जाओगे या आपका कोई संत जाएगा। उसको जो तुम नाम दोगे न वह बता दो , वह सारनाम। जिसके पास वह होगा न मैं उसको छेडूं नहीं। उसको नहीं कुछ कहूंगा। परमात्मा बोले इतना मूर्ख मत बनावै। वह नाम तुझे बता दिया तो सबको मेसेंजरों द्वारा वह नाम भी सबको बताएगा फिर मेरा जाकर उसमे क्या भेद बताऐगा। यह नहीं दे सकता भाई मैं।

 फिर यह बोला ,की

जाओ जोगजीत संसारा। जीव ना माने कहा तुम्हारा।।

तुम्हारे संत के जाने से पहले आने से पहले मैं सबको इतना भ्रमित कर दूंगा। लाखों वर्षों के अंदर अज्ञान ठोक दूंगा। देवी- देवता पत्थर पूजा तीर्थ व्रत सब में फंसा कर धर दूंगा।

जाइयो जोगजीत संसारा। जीव ना मानै कहा तुम्हारा।। और द्वादश पंथ करुं मैं साजा। नाम तुम्हारा ले करूं आवाजा।। द्वादस पंथ नाम जो लेही। हमरे मुख में आन समोही।। और अनेक पंथ चलाऊं जैसे राधा स्वामी, धन धन सतगुरु, आदि इस विधि जीवों को भरमाऊं।।

परमात्मा इसका बाप है उनको पता था ,कि यह पहले जो इनके यह झूठी तो सारी कहानी बनवायेगा ही और गीता और वेदों को सत बताएगा। और फिर मैं मूल ज्ञान देकर अपने बच्चों को और अपना दास भेजूंगा कलयुग के अंदर उस समय तक यह सब ऊवा- बाई बोल चुके होंगे इनकी पुस्तक बन चुकी होंगी। इनकी विधि बन चुकी होगी। अब यह ऐसे कहने के लायक नहीं कि यह बात ऐसे नहीं कहीं थी। दास को भेजा। अब इन सबके मुंह पर टेप लगा दी। इनको सबको फेल कर दिया। तो बच्चों! यह आपके ऊपर उपकार किया है। परमात्मा 600 साल पहले बताया करते यह सृष्टि रचना जो आज दास ने सब ग्रंथों से सिद्ध कर दी।

 धर्मदास यह जग बौराना। कोई न जाने पद निरवाना।।

यही कारण में कथा पसारा। जग से कहिए राम नियारा।।

यही ज्ञान जग जीव सुनाओ। सब जीवों का भरम नसाओ।।

भरम गए जग वेद पुराना। आदि राम का भेद ना जाना।।

राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोई विरला जाने।।

ज्ञानी सुने सो हृदय लगाई। मूर्ख सुने तो गम ना पाई।।

अब मैं तुमसे कहूं चिताई। त्रिदेवन की उत्पत्ति भाई।।

कुछ संक्षेप्त कहूं गहुराई। सब संशय तुम्हारे मिट जाई।।

मां अष्टंगी पिता निरंजन। यह जग दारूंण वनशं अनजं।।

पहले कीन्ही निरजंन राई। पीछे से माया उपजाई।।

माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन  तन मन लोभा।।

काम देव धर्मराय सताए। देवी को तुरंत धरखाए।।

पेट से देवी करी पुकारा। हे साहेब मेरा करो उभारा।।

टेर सुनी हम तब  वहां आए। अष्टंगी को बंध छुड़वाएं।।

सतलोक में कीन्हा दुराचारी। काल निरंजन दीन्हा निकारी।।

माया समेत दिया भगाई। 16 संख कोस दूरी पर आई।।

अष्टंगी और काल अब दोई। मंद कर्म से गए बिगोई।।

धर्मराय यह काल, धर्मराय को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भग कर लीन्हा।।

धर्मराज कीन्हा भोग विलासा। माया को रही तब आसा।।

तीन पुत्र अष्टंगी जाए। ब्रह्मा, विष्णु, शिव नाम धराए।। बच्चों! 600 साल पहले मालिक बता कर गए थे। यह अमर वाणी हमारे समझ में नहीं आई।

तीन देव विस्तार चलावे  इनमें यह जग धोखा खाए।।

पुरुष गम कैसे कोई पावै। काल निरंजन जग भरमावै।।

तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सुन निरंजन वासा लीन्हा।।

अपने तीन लोक अपने तीनों पुत्रों को देकर दुर्गा से तीन पुत्र उत्पन्न हुए ब्रह्मा- विष्णु, शिव उनके नाम धरे। और यह तीनों देवता इसका विस्तार चला रहे हैं जैसे गीता अध्याय सात श्लोक 12 में कहा है ,कि यह तीनों गुणों के द्वारा जो कुछ भी हो रहा है उसका निमित्त मैं हूं।

तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सुन्न निरंजन वासा लीन्हा।। काल कहते हैं ऊपर गुप्त छिप गया जाकर।

अलख निरंजन सुन्न ठिकाना। ब्रह्मा, विष्णु ,शिव भेद नहीं जाना। की ब्रह्मा ,विष्णु, महेश को भी पता नहीं जहां पर यह छुप कर रहता है। निराकार बताते हैं यह। इसने कसम खाई है प्रतिज्ञा कर रखी है दुर्गा से ,कि मैं किसी के सामने नहीं आऊंगा। और स्वयं संभाल सारे काम को। तीन देव सो उसको ध्यावैं। निरंजन का वह पार नहीं पावे।। यह तीनों देवता भी समाधि लगाते हैं ध्यान लगाते हैं। लेकिन मार्ग ठीक नहीं होने से यह अपने चौथे पद ज्योति निरंजन को भी नहीं समझ पाए।

अब परमात्मा गरीब दास जी ने मालिक का ज्ञान बताया है।

दृष्टि पड़े सो धोखा रे। खंड पिंड ब्रह्मांड चलेंगे थिर नहीं रहसी लोका रे।। थिर नहीं रहसी लोका रे।।

रजगुण ब्रह्मा ,तमगुण शंकर ,सतगुण विष्णु कहावे रे। चौथे पद का भेद नियारा, कोई बिरला साधु पावै रे।।

यह चौथा पद यह काल निरंजन है। यहां कबीर साहेब कहते हैं कि यह ब्रह्मा, विष्णु ,महेश भी ध्यान लगाते हैं।

तीन देव सो उसको ध्यावै।

उसका ध्यान लगाते हैं।

निरंजन का वह पार नहीं पावे।।

और चौथे को छोड़, पांचवें को ध्यावै। कहै कबीर सो हम पर आवै।।

पांचवा खुद मालिक है। फिर क्या बताते हैं

अलख निरंजन बड़ा बटपारा। तीन लोक जीव कीन्ह अहारा।।

बटपारा ठग। यह काल बड़ा ठग है तीन लोक के जीवों को खा रहा है।

 ब्रह्मा ,विष्णु ,शिव नहीं बचाए। सकल खाए पुन धूर उड़ाये।।

की ब्रह्मा, विष्णु ,शिव जी को भी नहीं बक्शे इनको भी मारैगा। और खावैगा।  ( ओये होए)

तिनके सुत है तीनों देवा। अंधर जीव करते हैं सेवा।।

बच्चों! अमरवाणी।

इस काल के यह तीन पुत्र हैं ब्रह्मा, रजगुण ब्रह्मा, सत्गुण विष्णु, तमगुण शिवजी। और यह अंधे ज्ञान हीन नेत्रहीन इनकी पूजा ही करते हैं। गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 में यही स्पष्ट किया गया है। की यह तीनों गुणों रजगुण ब्रह्मा, सत्गुण विष्णु ,तमगुण द्वारा जो कुछ भी हो रहा है उत्पत्ति ,यहां रोक कर रखना, फिर मारना यह तीनों गुण रजगुण ब्रह्मा, सत्गुण विष्णु ,तमगुण शिवजी के द्वारा और जिनका ज्ञान  इन तीनो देवों की भक्ति मे दृढ़ हो  चुका है। उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी है । उनका ज्ञान हरा जा चुका है । वह राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच दुषित कर्म करने वाले मूर्ख यह काल कहता है मुझे भी नहीं भजते। और यहां परमात्मा यही बता रहे हैं,

तिनके सुत है इसके पुत्र है तीनों देवा। तिनके सुत है तीनों देवा। अंधर जीव करत हैं सेवा।।

इनकी पूजा करते हैं।

आकाल पुरुष काहू नहीं चीन्हा। काल पाए सबही गह लिन्हा।।

आकाल पुरुष, सत्पुरुष जिसकी मौत ना हो कभी ,उसको किसी ने नहीं समझा।

ब्रह्म काल सकल जग जाने। आदि ब्रह्म को ना पहचाने।

आदि ब्रह्म सनातन परमात्मा परम अक्षर ब्रह्म को कोई नहीं जानता।

तीन देव और अवतारा। ताको भजे सकल संसारा।।

तीन गुणों का यह विस्तारा। धर्मदास मैं कहूं पुकारा।।

तीन गुणों का रजगुण ब्रह्मा, सत्गुण विष्णु, तमगुण शिवजी के द्वारा फैलाया  जाल है काल का।

गुण तीनो  की भक्ति में, भूल-पड़ो संसार। कहै कबीर निज नाम बिना, कैसे उतरों पार।।

तीन गुणों की भक्ति।

गीता अध्याय 7 श्लोक 15 की त्रिगुणमई माया के द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है यही तक सीमित है। वह राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यो में नीच दुषित कर्म करने वाले मूर्ख मेरी भक्ति भी नहीं करते। कबीर साहेब कहा करते तीन देव की जो करते भक्ति। उनकी कभी नहीं होवे मुक्ति।। बच्चों! यह बात उस समय इतनी कड़वी लगा करती, कि परमात्मा के हम दुश्मन हो गए। की सारी झूठ बोलै है। और आज सारी सत्य कर दी इन्हीं सदग्रंथों से जिनको हम सच्चे माना करते थे। बच्चों! आत्मा फूट जाती है यह संसार मर रहा है भटक रहा है। अपने भगवान को पहचान नहीं रहा। आपके ऊपर जो कृपा  दाता ने की है यह अनहोनी अनमोल कर रखी है। मालिक की इस रजा को संभाल लो बच्चों। इसको बच्चों के लेख ना समझो। यह क्या होगा यह दो दिन का जीवन है। ऐसे ही पैर पीट कर मर जायेंगें। राजे - महाराजे चले गए जिनके इतिहास सुना करते। आज कोई नाम निशान नहीं उनका। ऐसे गंदे लोक में किस चीज को अपना समझोगे ?

अब जैसे आज शुरुआत हुई थी,

की दुविधा दुरमति चतुराई में, जन्म गया नर तोरा रे। अब भी आन मिलो सतगुरु से, करो गुरु ज्ञान पर गोरा रे।।

अब गुरु क्या बताते हैं सतगुरु क्या बताते हैं-: मन तू चल रे सुख के सागर। जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।

कोटि जन्म तुझे भरमत हो गए, कुछ नहीं हाथ लगा रे। कूकर सूकर खर भया बोरे, कौवा हंस बुगा रे।।

मन तू चल रे सुख के सागर। जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।

कोटि जन्म तू राजा कीन्हा, मिटी ना मन की आसा। भिक्षुक हो कर दर-दर घुमा, मिला ना निर्गुण रासा।।

मन तू चल रे सुख के सागर। जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।

इंद्र कुबेर ईश की पदवी, ब्रह्मा वरुण धर्मराया। विष्णु नाथ के पुर को पहुंचा, बहुर अपूठा आया।।

मन तू चल रे सुख के सागर। जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।

असंख जन्म तुझे  मरता हो गए ,जीवित क्यों नही मरै रे। द्वादस दर मध्य महल मठ बोरे, बहुर ना देह धरै रे।।

मन तू चल रे सुख के सागर। जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।

 दोजख भिश्त सभी तैं देखे ,राजपाट के रसिया। त्रिलोकी से तृप्त नाहीं ,यह मन भोगी खसिया।।

मन तू चल रे सुख के सागर। जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।

सतगुरु मिले तो इच्छा मेटै, पद मिल पदे समाना। सतगुरु मिले तो इच्छा मेटै, पद मिल पदे समाना। चल हंसा उस लोक पठाऊं, जो आदि अमर अस्थाना।।

मन तू चल रे सुख के सागर, जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।

 चार मुक्ति जहां चंपी कर है, माया हो रही दासी। चार मुक्ति जहां चंपी कर हैं, माया हो रही दासी। दास गरीब अभय पद परसै, मिलै राम अविनाशी।।

मन तू चल रे सुख के सागर। जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।

अब सतगुरु क्या बताते हैं,

मन तू सुख के सागर चल रे। चल रे सुख के सागर।

इस गंदे लोक में क्यों कष्ट उठा रहा है।

यहां कोटि जन्म तुझे भरमत हो गए, कुछ नहीं हाथ लगा रे। कूकर सूकर कुता गधा खर भया बोरे, कौवा हंस बुगा रे।।

कोटी जन्म तू राजा कीन्हा, मिटी ना मन की आसा।

क्या यही चक्कर में रहोगे? आज मनुष्य जन्म हुआ ठीक है संतान हुई संपत्ति हुई ना हुई और  इसमें फूले- फूले समावां। और फिर मर जायेंगे। कोई संस्कार मनुष्य का बचा, एक फिर जन्म हो जायेगा। फिर यही प्रोसीजर प्रोसेस फिर मर जायेंगे। फिर जन्म हो गया फिर यही प्रोसेस। यह खाक है कोई जीवन ? और वहां चलो जहां जन्म - मरण नहीं। बच्चों कुर्बान हो जाओ इस परमपिता पर। यह कोई बच्चों के लेख नहीं है। और परमात्मा कबीर साहेब ने कैसी कृपा कर रखी है आपके ऊपर। देखो कहां से आकाशवाणी हो रही है। कहां से आप तक अपने बच्चों तक यह अमृत पिला रहा है। इतने लाडले हो आप मालिक को। जैसे छोटा सा बच्चा मां को हुआ करै। सीने से लगाकर दूध पिलाती है दूधी से। और  फिर कभी सिर को देखेगी , कभी पैरो को,  कोई फुंसी आदि  तो नहीं है। तो बच्चों! आज इतने लाड कर रहा है तुम्हारा पिता। कहां से अमृत आपको घर बैठे पिला रहा है। और आपकी केयर टेक भी करता रहता है, मेरे बच्चों को कोई काल का दूत भूत -भैरव या  अन्य कोई देव कष्ट ना दे दे। बच्चों! विश्वास करो इस धनी पर। परमात्मा आपको शरण में रखें।

कहते हैं

साधा सेती मस्करी , यह चोरो नाल खुशहाल। मल अखाड़ा जीतेंगे, यह युगन- युगन के माल।।

आप युगन- युगन के माल हो। इस भक्ति रूपी अखाड़े में आप पहले से  एक्सरसाइज करते आ रहे हो। ठीक है नहीं सफलता मिली तो अब आपका फाइनल गेम है। और आपके आहार में ,खुराक में कोई कमी नहीं छोड़ी जाएगी। मालिक पर विश्वास करो। कुर्बान हो जाओ। जिसके तुम चिपके बैठे हो। यह संपत्ति और संतान तुम्हारे साथ नही जाएगी। नोट कर लो। आपको भी पता है लेकिन अब यह संतान आपकी होगी अगर यह शरण में रहेंगे कोई अटैक काल का नहीं होगा। काल की चोट तुम खुद खाओगे नाम तोड़कर। बकवाद करके। आपको ऐसे रखेगा जैसे टटीहरी के अंडों को महाभारत के युद्ध में रखा था। सौ कारण बना देगा। और यह कहां से मैं बोल रहा हूं पता है आपको। और यहां क्या हो रहा है। क्या अब भी नहीं समझोगे इस मलिक को? बच्चों धन्य! है आपके माता-पिता जिससे जन्म हुआ। कुर्बान हो जाओ। भूल जाओ संसार को। अपने मालिक में इतनी दृढ़ आस्था कर लो की उसके अतिरिक्त स्वप्न में भी किसी दूसरे का ध्यान आपको नहीं आवे। स्वप्न में भी कोई आन नहीं दिखे। पतिव्रता पद पर आने के बाद परमात्मा क्या करेंगे।  

गरीब पतिव्रता जमीं, पर ज्यों-ज्यों धर है पांव। समर्थ झाड़ू देत है, नहीं  कांटा लग जावै।।

इतना साथ हो जाएगा। साथ तो आज भी है पर हम बालक हैं हमने दिखते नहीं वह । आज भी इतने ही साथ हैं आपको बहुत दुखों से बचा रहे हैं। आप विश्वास करो। मालिक आपको मोक्ष दे। सदा सुखी रखे।

सत साहेब।।।।।