सतगुरु देव की जय।
बंदी छोड़ कबीर साहेब जी की जय।
बंदी छोड़ गरीबदास जी महाराज जी की जय।
स्वामी रामदेवानंद जी गुरु महाराज की जय हो।
बंदी छोड़ सतगुरू रामपाल जी महाराज जी की जय।
सर्व संतो की जय।
सर्व भक्तों की जय।
धर्मी पुरुषों की जय।
श्री काशी धाम की जय।
श्री छुडानी धाम की जय।
श्री करोंथा धाम की जय।
श्री बरवाला धाम की जय।।
सत साहेब।।।।
कबीर दंडवत्तम गोविंद गुरु, बंधु अविजन सोए। पहले भये प्रणाम तिन, नमों जो आगे होए।।
कबीर गुरु को कीजै दंडवतम, कोटि-कोटि प्रणाम। कीट न जाने भृंग कूं ,यों गुरु कर हैं आप समान।।
कबीर सतगुरु के उपदेश का, सुनिया एक विचार। जै सतगुरु मिलते नहीं ,जाते नरक द्वार।।
नरक द्वार में दूत सब, करते खैचांतान। उनसे कबहूं नही छूटता ,फिरता चारों खान।।
कबीर चार खानि में, भरमता कबहूं ना लगता पार। सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।।
जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से बसियो, अमरपूरी के डेरे की।।
जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से बसियो, सतलोक के डेरे की।।
निर्विकार निर्भय तूही ,और सकल भयमान। ऐजी साधो और सकल भयमान।
सब पर तेरी साहेबी, सब पर तेरी साहेबी तुझ पर साहब ना।। निर्विकार निर्भय।।
बच्चों! परमपिता परमात्मा कबीर जी की असीम कृपा से आज आपको कबीर परमेश्वर की परमपिता परमात्मा सक्षम भगवान समर्थ परमात्मा की शरण प्राप्त हुई है। पुण्य आत्माओं! कितने कितना संसार भरा पड़ा है। साढे सात अरब आबादी है पापुलेशन है पूरे विश्व की। इनमें से आप परमात्मा की शरण में आए हो। आपकी किस्मत इतनी अच्छी है जिसकी कोई तुलना किसी के साथ नहीं की जा सकती।
तीन लोक का राज, जै जीव को कोई देय। लाख बधाई क्या करे, जै नहीं नाम से नेह।।
बच्चों! तीन लोक का राज, तीन लोक के राजा हैं ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश। तीन लोक का राज है ब्रह्मा, विष्णु, महेश। ऊंचा धाम कबीर का, सतलोक प्रदेश ||
यदि सच्ची भक्ति नहीं करते। भक्ति तो देखो सभी कर रहे हैं ऋषियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। परमात्मा पाने के लिए समर्पित हो गए। बिल्कुल शरीर गला दिया। लेकिन घन से जांडी नहीं कटै। जांडी काटने के लिए तो तीखी कुल्हाड़ी चाहिए। या आरी हो। इसलिए साधन बिना जो उल्टा काम करते हैं वह कितने दिन लगे रहियों उसमें कोई सफलता नहीं मिले। सत्य साधना के बिना अन्य कितने ही प्रयत्न कर लो भगवान प्राप्ति नहीं हो सकती। यही कारण रहा इन ऋषि लोगों ने साधनाएं खूब करी। लेकिन काल ने इनको अधूरा ज्ञान दे रखा है इनकंप्लीट। और भ्रमित ज्ञान है। जैसे चारों वेदों में एक ही मंत्र है जो ब्रह्म साधना का है। बाकी और किसी की भक्ति का जिक्र भी नहीं है। ना ही कोई और मंत्र है। यजुर्वेद अध्याय नंबर 40 श्लोक 15 में-:
ओम करतू समर, किलवे समर और कर्तुं समर।
उसमें लिखा है ओम नाम का जाप काम करते - करते विशेष कसक के साथ और अपने जीवन का मूल कार्य कर्तुं काम समझ कर करो। अब ओम नाम से क्या प्राप्ति होगी?- श्रीमद देवी भागवत पुराण छठे स्कंद में देवी दुर्गा जी हिमालय राजा को स्पष्ट कर देती है। क्योंकि हिमालय राजा देवी का पुजारी था। और वह मोक्ष की डिमांड कर रहा था। क्योंकि धन राजा के पास बहुत होता है। सब सुविधाएं होती हैं। लेकिन वह आखिर में वह भी थोथी ।
अच्छी नहीं लगती। मोक्ष मांगता है। तब दुर्गा जी कहती हैं कि राजन! तू और सब बातें छोड़ दे। सब पूजा त्याग दे। ओम नाम का जाप कर। ओम नाम के जाप से तू ब्रह्म को प्राप्त होगा। जो दिव्य आकाश रुपी ब्रह्म लोक में रहता है। तेरा कल्याण हो। अब बताओ ओम नाम के जाप से ब्रह्म प्राप्ति होती है। ब्रह्मलोक प्राप्ति होती है। गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में स्पष्ट किया है कि गीता बोलने वाला यह ब्रह्म है काल है।
ओम इति एकाक्षारं ब्रह्म व्यवाहरणं माम अनुसुमरण य: प्रयाति तदन देहम स: याति प्रमाम गतिम।
मुझ ब्रह्म का केवल ओम एक अक्षर है। इसका अंतिम स्वांस तक जो सिमरन करता हुआ शरीर छोड़कर जाता है वह मेरे वाली परम गति,ओम से होने वाली परम गति को प्राप्त होता है। जिस समय ब्रह्मा जी और विष्णु जी का आपस में युद्ध हो जाता है। यह काल शिव रूप में वहां प्रकट होता है। इन दोनों को समझाता है, कि तुम भगवान नहीं हो। कहां अपने आप को ईश मान बैठे। और सुन लो तुम्हारे तप के प्रतिफल में मैंने तुम्हे एक - एक job दी है। ब्रह्मा को उत्पत्ति, तेरे को स्थिति पालन। इसी प्रकार शंकर को संहार। और मेरा पांच अव्यय से तैयार होकर के यह एक ओम अक्षर बना है यह मेरा मंत्र है। इसका जाप करो। तुम्हारा कल्याण हो। एक तो यह सिद्ध हो गया, कि वह ब्रह्म था जो ब्रह्मा, विष्णु, महेश को मिला था शिवजी के रूप में। बच्चों यह है तत्वज्ञान। निष्कर्ष। सारे अध्यात्म का।
अब प्रसंग चल रहा है कि ऋषियों ने साधनाएं बहुत की। शरीर गला दिए। दिन- रात एक कर दिया। बच्चों! ओम नाम तो इन्होंने ले लिया वेद से। क्योंकि पहले वेद थे। पुराण इनके ऋषियों की रचना है बाद की बातें है। इनका अनुभव होता गया जिससे सुनी सुनाई दंत कथा इसमे लिख दी। कुछ सच्ची कुछ झूठी। कुछ वेदों से कुछ अपना अनुभव। यह पुराणों का एक संग्रह है। उधर से देवी महापुराण तीसरे स्कंद में नारद जी अपने पिता ब्रह्मा जी से प्रश्न्न करते हैं। हे पिता! कृपा मेरा एक प्रश्न का शंका का समाधान करो। यह सृष्टि किसने रची? कैसे रची गई ? तो ब्रह्मा जी कहते हैं बेटा नारद! इसका क्या उत्तर दूं? जब मैं सचेत हुआ। होश में आया। मैं एक कमल के फूल पर बैठा था। और उस आघात जल में और कुछ भी नहीं था। पानी ही पानी था। अब मैंने सोचा यहां मैं कैसे उत्पन्न हो गया? और मेरा जनक कौन है? मैं किसने पैदा किया? तो उसी समय आकाशवाणी हुई बेटा! तप करो, तप करो। मैंने 1000 वर्ष तक तप किया। फिर आकाशवाणी हुई अब सृष्टि करो। गरीब दास जी ने कुछ पंक्तियों में एक चौपाई में सीधा स्पष्ट कर दिया है कि
तपो- तपो कर वाक्य सुनाया।
सृष्टि रचो बल मेरी माया।। लोक बल कर तो मेरी माया।।
तो ओम जाप तो ऋषियों ने ले लिया वेदों से। और ब्रह्मा जी इनका फर्स्ट गाइड है। प्रथम गुरु है। इसी से वेद इन्होने सीखे समझे हैं। यह इन ब्राह्मणों का पिता है जनक है। ऋषि इसी की संतान है। तो इन्होंने ब्रह्मा जी से तप ले लिया। कि ब्रह्मा जी को आकाशवाणी हुई है भगवान की। इसलिए तप भी करते रहे। फिर ओम नाम का जाप यह खिचड़ी करके इन्होंने साधनाएं की। यह आकाशवाणी की थी काल ब्रह्म ने। इनका भ्रम था, कि परमात्मा यह इसी को परमात्मा मान रहे है वह दिखता नहीं बस। तो इस जाप से और इस तप से इनमें सिद्धियां आ गई। यह परमाणु बन गए । चमत्कार होने लग गए। तो इन्होंने इसी को अपना मोक्ष और भक्ति की अंतिम उपलब्धि मान ली। ओम नाम के जाप से यह ब्रह्म लोक में जाएंगे। वहां हजारों वर्षों तक अपना पुण्य भोगेंगे। मौज - मस्ती करेंगे। सारी बकवाद करेंगे जो धरती पर नहीं होती। वहां और क्या है स्वर्ग में यह बकवास ही है। यह नाचने गाने वाली, सारी वैश्यावर्ती। उसी को सुख मानता है यह मन। तो ऐसे ही तो यहां डले ढोए,ऐसे ही वहां ढोये जाकर। फिर वह पुण्य खत्म करके वहां मौज-मस्ती करके यह फिर पृथ्वी पर आते हैं। जैसे गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में स्पष्ट किया है, कि ब्रह्मलोक में गए हुए भी पुनरावृत्ति में है। वापस जन्म - मृत्यु में आते हैं। तो यह तत्वज्ञान है। सब ग्रंथों का सार निकल गया अब यह। ओम नाम के जाप से ब्रह्म लोक प्राप्ति । ब्रह्मलोक में गए हुए पुनरावर्ती जन्म मृत्यु भी होता है उनका। तो मोक्ष खाक हुआ ? यह क्या मुक्ति हुई? गरीब दास जी कहते हैं-
यह हरहट का कुआं लोई, या गल बंधा है सब कोई।। कीड़ी कूंजर और अवतारा, हरहट डोर बंधे कई बारा।।
अब तप से इनमें सिद्धियां आ गई। जैसे चुणक ऋषि में गरीबदास जी ने कहा इतनी गजब की सिद्धियां थी, वह चाहे तो पृथ्वी को नष्ट कर दे। और दूसरे क्षण में उसको as it is बना दे। इतनी सिद्धियां थी। और काल इनको भी देख कर प्रसन्न नहीं, कहीं यह भगवान बन बैठें। तेरी वैल्यू ना रहे। मानधाता चक्रवर्ती राजा था जिस का पूरी पृथ्वी पर शासन होता है। वह वर्ष, 2 वर्ष में, 10 वर्ष में एक परीक्षण करते हैं, कि कोई राजा मेरे विरुद्ध तो नहीं चल रहा है। मेरे पराधीन है कि नहीं? इसलिए घोड़ा छोड़ते हैं। उस पर लिख दिया जाता है जिसको मानधाता राजा चक्रवर्ती की पराधीनता स्वीकार न हो इस घोड़े को बांध ले। युद्ध के लिए तैयार हो जाए। तो सारी पृथ्वी पर घूम आए। किसी ने घोड़ा पकड़ा नहीं। उस पर लिखा हुआ था कि राजा की 72 क्षोणि सेना है। तो किसी की हिम्मत नहीं हुई।
चुणक ऋषि की कुटिया के पास से वह जा रहे थे हजारों सैनिक। आगे - आगे घोड़ा खाली। कोई बैठा नहीं उस पर। तो ऋषि ने पूछा, कि यह घोड़ा कैसा है? इस पर कोई सवार क्यों नहीं? बताया उन्होंने सैनिकों ने ऐसा- ऐसा कारण है। हम सारे घूम आए किसी ने राजा का घोड़ा नहीं पकड़ा। यानी किसी ने युद्ध नहीं स्वीकारा। दूसरा कहने लगा किसकी मां ने दूध पिलाया राजा का घोड़ा पकड़ ले। 72 क्षोणि सैना है यह कर दे, और वह कर दे। ऋषि बोला भाई! किसी ने नहीं पकड़ा तो मैं पकड़ लेता हूं। और कह दो आपके राजा को। चुणक ऋषि ने उसका युद्ध स्वीकार कर लिया। घोड़ा बांध दिया वहां। वहीं पर एक पेड़ के। सैनिक बोले अरे कंगाल! तेरे दाने खाने को नहीं ? क्यों मजाक कर रहा है। और युद्ध मानधाता चक्रवर्ती के साथ करेगा? क्यों तेरी मुश्किल बोल दे रही है। अपना भज ले राम। वह बोला भई मेरे भाग्य में ऐसा ही है। स्वीकार कर लिया यह मैंने जाओ। राजा ने 18 क्षोणि सेना। एक क्षोणि सेना में दो लाख के करीब सैनिक होते हैं। ऐसी कोई काउंटिंग उनकी होती थी पुराने समय में। यानी 36 लाख सैनिक भेज दिए एक ऋषि को मारने के लिए। ताकि भय बैठे जनता में। किसी की और हिम्मत ना हो। और ऋषि कहते हैं गरीब दास जी ने कहा है कि ऐसा जागरुक तपस्वी था उस ने चार अपनी सिद्धि शक्ति से चार परमाणु बना दिए। एक पुतली परमाणु छोड़ दिया। 18 क्षोणि को नष्ट कर दिया काट डाली बिल्कुल। कत्लेआम मचा दिया। फिर दूसरी, तीसरी ऐसे 72 क्षोणि सेना को खत्म कर दिया। राजा मूंदे मुंह गिर गया। अपनी जान बचाई। अब गरीब दास जी ने इनकी कैसे तुलना की है। कैसे इनकी धोती सी धोई है इन ऋषियों की।
गरीब 72 क्षोणि खा गया, चुणक ऋषिश्वर एक। देह धारें जोरा, फिरैं यह सभी काल के भेख।।
यह चलती फिरती मौत थी यह, जोरा मौत।
देह धारे जोरा फिरै , मनुष्य शरीर में यह मौत फिरे है यह ऋषि। यह सभी काल के भेख।।
72 क्षोणि खा गया, चुणक ऋषिश्वर एक। ऋषि, ऋषिश, ऋषिश्वर। सर्वश्रेष्ठ ऋषि माना जाने वाला। उसके यह कर्म। बच्चो! अब काल को कहां तक जीतोगे तुम ऐसी-ऐसी साधना कर सकते हो ? ऐसी साधना करने के बाद भी इसने घन से जांडी काटी। नहीं कटे। यह बकवास ले ली। और जितने वह जीव मरे, चाहे कोई हथियार से मार दे। चाहे अपनी सिद्धि से मार दे। वह पाप अलग लिखे जाते हैं। जब यह कभी स्वर्ग से वापिस आयेगा महास्वर्ग से यानी ब्रह्मलोक से क्योंकि ओम नाम के जाप से ब्रह्मलोक वहां भी जाएगा। काल का इतना जबरदस्त षड़यंत्र है आप सोच भी नहीं सकते। गरीब दास जी कहते हैं
सतगुरु आए दया करी, ऐसे दीनदयाल। बंदी छोड बिरद तास का, जठराग्नि प्रतिपाल।।
वह सतगुरु खुद आए परमात्मा सतगुरु रुप में, ऐसे दीनदयाल हैं। यह बंदीछोड हैं। कबीर साहेब ने आकर काल के इस षड़यंत्र को इस सारे जाल को समझाया। जब यह ब्रह्म लोक में भी सुख भोग कर फिर नीचे पटकेगें इसको। कुत्ता बनेगा चुणक ऋषि वाली आत्मा। और वह जितने जीव मारे थे इसके सिर में कीड़े पड़ेंगे। नोच - नोच कर बदला लेंगे।
एक समय की बात है एक गुरु - शिष्य चले जा रहे थे। एक मछियारा मच्छी पकड़ रहा था। और वह जाल पकड़ - पकड़ कर बाहर डाल रहा था। और वह तड़प-तड़प कर मर रही थी। शिष्य बोला गुरुदेव! इस पापी आत्मा को क्या सजा मिलेगी? कैसा जन्म होगा इसका ? गुरुजी बोले बतायेंगे कभी समय आएगा।
3, 4, 5 वर्ष के बाद क्या देखा-: एक हाथी का बच्चा उछल कूद कर रहा था। हाथी। और दो पेड़ों के बीच में फंस गया। फंसकर धकम धक्का होकर निकल तो गया लेकिन खाल जायदा छिल गई। बारिश के दिनों में उसके कीड़े पड़ गए। और इतने पड़ गए, की वह पड़ा - पड़ा चिल्लावै। और सारे शरीर में कीड़े चलें । शिष्य और गुरुजी उस रास्ते से जा रहे थे। शिष्य ने पूछा गुरुदेव! इस प्राणी ने कौन से जन्म में ऐसा पाप किया जो इतना कष्ट, इतने कीड़े पड़ गए ? तब बोला बेटा! अब सुन ले उत्तर उस मछियारे का। यह मछियारा था। जितनी मछली इसने तड़पा - तड़पा कर मारी आज इसको तड़पा तड़पा कर वह कीड़े बनकर खाने लग रही है। गरीब दास जी कहते हैं:
तुमने उस दरगाह का महल नहीं देखा, धर्मराज के तिल- तिल का लेखा।।
बच्चो! आंख खोल लो। कौन सी दुनिया में घूम रहे हो तुम ? दो दिन का जीवन है कल को मृत्यु हो जाएगी धक्के खाते फिरोगे। और यह राज और पाट यह महल और कोठी कोई साथ नहीं चलै।
तो बच्चों! तत्व भेद कोई ना कहे राई झूमकरा। यह पैसे ऊपर नाच सुनो राई झुमकरा।। कोट्यो मध्य कोई नहीं राइ झुमकरा। अरबों में कोई गर्क सुनो राइ झूमकरा।।
इस तत्वज्ञान को बताने वाला तुझे करोड़ों में नहीं मिलेगा।
अरबों में कोई गरक
कंप्लीट इन ऑल रिस्पेक्ट।
साढे सात अरब आबादी है आज वर्ल्ड की, सारे संसार की। दास के अतिरिक्त विश्व में इस ज्ञान का जानकार कोई नहीं। आपका सौभाग्य है बच्चों! आपको उस परम पिता का सच्चा मार्ग मिल रहा है। समर्थ परमात्मा कबीर जी की शरण प्राप्त हुई है। इसलिए दास कह रहा है। तो बच्चों! आपकी किस्मत के साथ यदि ब्रह्मा, विष्णु, महेश को तोलैं आपके पासंग नहीं वह। यह तो अपना कर्म मलाई खा रहे हैं भविष्य कुछ नहीं इनका। यह बात जिस दिन तुम्हारे समझ में आ जाएगी उस दिन तुम भगत बन गए पक्के। और बच्चों! कबीर साहिब सारी सृष्टि के रचने वाले । सबके पालक। सबके उत्पत्तिकर्ता। कर्म के लेख को मिटाने वाले परमपिता परमात्मा आपको प्राप्त हुए हैं। सारी सृष्टि में दास के अतिरिक्त इस अध्यात्म ज्ञान को जानने वाला कोई नहीं । तो पुण्य आत्माओं! बच्चों! आपको समर्थ परमात्मा और पूर्ण सतगुरु और कंप्लीट स्पिरिचुअल नॉलेज संपूर्ण अध्यात्म ज्ञान प्राप्त है। आपकी ऐसी किस्मत है,
लख वर शुरा झूझही, लख वर सांवत देह। लख वर जती जहान में, तब सतगुरु शरणा ले।।
आप इतनी अच्छी आत्मा हो। आप इसको हल्के में मत लेना। परमात्मा की देखो कृपा कैसे हो रही है आपके ऊपर। यह आपका पिता है। आपका अपना है। जहां हम आए हुए हैं यह हमारा शत्रु है दुश्मन है। इसने हमारी दुर्गति कर रखी है। और दुर्गति करवाने के लिए इसने बहुत व्यवस्था कर रखी है इतनी सूझ-बूझ से। जिनको हम परमात्मा की श्रेणी में लेते थे अवतार माना करते थे। आए थे वह श्री राम, श्री कृष्ण, श्री विष्णु जी, शंकर और ब्रह्मा जी। इनको भी आज तक पता नहीं, यह हो क्या रहा है? यह ऐसा क्यों हो रहा है ? और आज आपके समक्ष इसका दाना - दाना गिन दिया गया है। सच्चाई सौ की सौ है। आपकी बुद्धि कब काम करेगी वह अलग बात है। जैसे एक छोटा सा बच्चा होता है वह कोई चीज उठा लेगा और पूछेगा माँ या पापा भाई बड़ी बहन से यह क्या है? वह बताएगा यह पेन है।
वह पूछता है ऐं ..? पेन है। ऐं...? पेन है। वह ऐसे ऐं..- ऐं.. कहता- कहता उसको रख कर ही चला जाएगा। नही वह यह स्वीकार करता यह पेन नहीं है। पेन है। ना यह कहे पेन नहीं है। क्योंकि उसको पता है तु जिससे तू पूछ रहा है वह जानकार है। और अपना है। इसलिए इस प्रकार जब उसकी ऐं..मिट जाती है। कुछ स्याणा समझदार हो जाता है। उस समय वैसे भी कहदे बेटा या बेटी को भाई पेन लाइयो उठाकर बेटा - बेटी। भागा जाता है पेन उठा कर लाता है। वह समझ गया पेन कहां है, और कैसा है, और क्या काम आता है। इसी प्रकार अभी आपकी ऐं..बेशक नहीं मिटो, पर यह पेन पेन ही है। समर्थ परमात्मा सत पुरुष कबीर साहिब है। और विश्व में किसी के पास ज्ञान नहीं है पृथ्वी पर। और वह रजा आज आपके ऊपर हो चुकी है। आप इस भक्ति को करते रहो। बच्चो! बड़ी अच्छी किस्मत पाई इस संसार में सुख नाम की चीज नहीं है। आप खूब समझ लो। कबीर साहब कहते हैं
झूठे सुख को सुख कहे, यह मान रहा मन मोद। यह सकल चबीना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद।।
इसको सुख मान रहे है अब तो कोठी हो गई, कार हो गई, फैक्ट्री हो गई, संतान हो गई बस। कहते हैं
खाई खुराका, पहन पोशाका, यम का बकरा पलता है।
भाई तन धर सुखिया कोए ना देखा जो देख्या सो दुखिया हो। उदय अस्त की बात करत हैं, मैंने सबका किया विवेका हो।। सबका किया विवेका हो।।
घाटे - बाधै सब जग दुखिया, क्या गृहस्थी बैरागी हो। सुखदेव ने दुख के डर से, गर्भ में माया त्यागी हो।। गर्भ में माया त्यागी हो।।
जंगम दुखिया, योगी दुखिया,तपस्वी को दुख दूना हो। आशा तृष्णा सभी में व्यापै, कोई महल ना सूना हो।। कोई महल ना सूना हो।।
साच कहूं तो जग ना माने, झूठ कहीं ना जाई हो। ब्रह्मा विष्णु ये शिवजी दुखिया, जिन ये राह चलाई हो।। जिन ये राह चलाई हो।।
सुरपति दुखिया भूपति दुखिया, रंक दुखी बप्रीति हो। सुरपति दुखिया भूपति दुखिया, रंक दुखी बप्रीति हो। कह कबीर और सब दुखिया एक संत सुखी मन जीती हो।। संत सुखी मन जीती हो।।
तन धर सुखिया कोई न देखा जो देख्या सो दुखिया हो। उदय अस्त की बात करै मैंने सबका किया विवेका हो।। सबका किया विवेका हो।।
कबीर साहिब कहते हैं जो चक्रवर्ती राजा बने फिरैं थे। उदय और अस्त जहां से सूर्य निकले उदय, अस्त जहां छिपै वहां तक उनका राज था। किसी को भी स्वपन में भी सुख नहीं पाया। और यह ब्रह्मा, विष्णु दुखी। देवी पुराण में ब्रह्मा जी से नारद पूछता है कि आप किसकी भक्ति करते हो? कौन समर्थ है? ब्रह्मा जी कहते हैं मैं एक बार विष्णु जी के पास गया था। विष्णु जी तप कर रहे थे काफी देर की समाधि लगी थी। बहुत देर में उठे। तब मैंने उनसे पूछा हे भगवन! आप तो सारी सृष्टि के रचनहार हो पालनहार हो। आप किसकी भक्ति कर रहे हो? उसने कहा विष्णु जी बोले मैं देवी की पूजा करता हूं। और मेरे संज्ञान में मेरे विचार में देवी से ऊपर कोई शक्ति नहीं। कोई भगवान नहीं। आ गया इनके ज्ञान का अंत। और फिर क्या कहता है मैं तप करके राक्षसों के साथ युद्ध करता हूं। उनको मारता हूं। तप करता हूं। फिर शक्ति प्राप्त करके उनसे युद्ध करता हूं। कभी थोड़ा बहुत समय मिलता है तो सुखपूर्वक लक्ष्मी के पास समय बिता पाता हूं।
साच कहूं तो जग नहीं मानै, झूठ कहीं ना जाई हो। ब्रह्मा ,विष्णु यह शिवजी दुखिया जिन यह राह चलाई हो।। जिन यह राह चलाई हो।।
तो पुण्य आत्माओं! आपकी किस्मत परमात्मा ने अलग लेखनी से लिखी है। आपको ऐसे समय में मनुष्य जीवन प्राप्त हुआ है, कि आपको अब मूल ज्ञान प्राप्त हुआ। और संपूर्ण मोक्ष भक्ति विधि वह प्राप्त है। यानी आप चल रहे हो प्रथम नाम लिया है फिर सतनाम लोगे, फिर सारनाम लोगे। सार शब्द लेकर भगवान के घर चले जाओगे। जैसे बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं तो उनको सब सर्टिफिकेट मिलते चले जाते हैं। सब डिग्रियां प्राप्त होती है तो सफल हो जाते हैं। अब के आपने सफल होना है। असफल बहुत हो लिये। बहुत फैल हो चुके है । बहुत बार फैल हो चुके है । एक तो पिछली गलतिया आपको याद रहनी चाहिए। जैसे कबीर साहेब कहते हैं कि-:
मानुष जन्म पाय कर खोवै, सतगुरु विमुखा युग- युग रोवै।।
एक तो होता है गुरु द्रोही, एक होता है गुरु से विमुख हो जाना। जिस समय परमेश्वर कबीर जी काशी में एक लीला कर रहे थे कमल के फूल पर शिशु रूप धारण करके प्रगट हुए सतलोक से आकर। नीरू नीमा नामक एक पूर्व संस्कारी हंस उनको घर ले गए जो जुलाहे थे। मुसलमान जुलाहे थे। और वहां उनके कल्याण के लिए आए थे परमात्मा। नीरू और नीमा यह सुपच सुदर्शन जी के माता-पिता थे। और परमात्मा ने वायदा किया था बच्चा! तू दुख मत माने। तेरे मात - पिता को मैं पार करूंगा। इसलिए उनके पास मालिक आए उनके कर्म बनवाए। एक बच्चे की तरह उनका पालन- पोषण उन्होंने किया। जिससे उनके संस्कार प्रबल होते चले गए। तो बच्चों! उस समय 5 साल की आयु से ही परमेश्वर कबीर जी ने इस तत्वज्ञान और अपनी शक्ति- भक्ति से और अपने ज्ञान के तर्क से बड़े-बड़े मंडलेश्वरों को फिट्टे मुंह कर दिया। जो बड़े-बड़े सिद्ध पुरुष अपने आप को सिद्धि में उत्तम मान रहे थे उनकी सिद्धि फेल की। लेकिन हम इतने ढीठ हैं समर्थ को सामने देखकर भी हमने कदर नहीं की उसकी। हम अपने अहंकार में सड़ गए। 64 लाख शिष्य हुए थे उस परमपिता के। वह उनमें से आप ही हो। और ओर अब आ रहे हैं वह वही है।
और फिर इनके आपके जो आने वाली संताने होंगी वह तो अनमोल परमात्मा की विशेष आत्मा होंगी। क्योंकि उनका सीधा ही कबीर परमात्मा का मार्ग मूल ज्ञान गर्भ से ही सुनने को मिलना शुरू हो जाएगा। वह तो निश्चित पार होंगी। लेकिन वह आप पर निर्भर करता है आप कितने दृढ़ रहते हो, और कितने सफल होते हो। आपको कंप्लीट ज्ञान, भगवान और सच्चा सतगुरु पूर्ण गुरु प्राप्त है। तो 600 साल पहले हम सारी भक्ति करके थक चुके थे। बहुत दुखी थे। कोई सहारा नहीं मिल रहा था। जैसे ही कबीर साहेब की शरण में हम जाते रहे ऐसे सुख हुए, कि हम जुबान से बोल भी नहीं पाए। अपना सुख दूसरों को बतावै वह माने नहीं। उनको सुख होवै तो वह माने। ऐसे - ऐसे 64 लाख शिष्य बन गए। और सभी यह कहा करते कि कबीर साहेब तो भगवान है। हमारे गुरुजी परमात्मा आए हैं। देखो हमारे यह सुख कर दिया। हमारे यह सुख कर दिया। तो बच्चों! इस तरह 64 लाख शिष्य एक निर्धन और शुद्र जाति और अनपढ़ अशिक्षित जिसको कहा जा रहा था उसके 64 लाख शिष्य होना कोई सामान्य बात नहीं थी। लेकिन हम यह नहीं समझ पाए आत्मा से कि kabir is god यह जुलाहा The weaver The kabir is god
अब बच्चों! उस समय 64 लाख शिष्य जो हुए थे वह सभी कहा करते थे, कि हमारे भगवान कबीर साहब भगवान हैं। लेकिन दिल में नहीं समा रही थी। वह सिर्फ सुख होते दिख रहे थे। इसलिए मान लिए। फिर कुछ लोग ऐसे भ्रमित करने वाले थे ब्राह्मण लोग या कोई अन्य पीर मुसलमान पीर जिनकी रोजी-रोटी बंद होने जा रही थी। उन्होंने कहा, कि कबीर तो जादूगर है। जंतर - मंतर जानता है। और यह क्या, ब्राह्मण कहते थे, यह क्या जाने वेदों के बारे में। क्या जाने यह गीता के बारे में । सारे संस्कृत में लिखें हुए हैं। क्या जाने यह पुराणो के बारे में । तो बच्चों! हमने यह बात मान ली। हमारी आत्मा कमजोर थी। हम शिक्षित नहीं थे। कि यह बात तो सही है, कि कबीर साहब को वेदों का ज्ञान नहीं हो सकता। गीता का नहीं हो सकता। पुराण नहीं जानते। क्योंकि यह अशिक्षित है। संस्कृत भाषा में लिखे हुए यह लेख है। तो कबीर साहेब कहा करते।
वेद मेरा भेद है, मैं नहीं वेदन के माही। और जिस वेद से मैं मिलूं, यह वेद जानते नाहीं।।
तो यह बात हमारे यकीन नहीं हुई हमे विश्वास नहीं हुआ ? तो बच्चों ! जब तक हमें यह विश्वास नहीं होगा, कि हमारे मालिक जो है कबीर साहेब परमात्मा है। तो बच्चों! हम भगवान को पहचान नहीं सकते। अब हम शिक्षित हैं और इस शिक्षा का आपको अजब गजब लाभ यह मिला है, कि आप परमात्मा को पहचान चुके हो। छोटे-छोटे बच्चे भी शिक्षित है। बूढ़े बुजुर्ग भी शिक्षित है। और ग्रंथ आपके रूबरू दास ने कर दिए। तो पुण्य आत्माओं! आज आपको hundred percent यह विश्वास हो चुका है Kabir is god. जिनको यह विश्वास नहीं है उनके साथ वही बनेगी जो 600 साल पहले बनी थी।
पुण्य आत्माओं! वह परमात्मा उस दिन भी भगवान थे कबीर साहेब। और आज भी भगवान है। जब एक झोपड़ी में रहा करते थे और एक निर्धन जुलाहे की भूमिका किया करते थे। अभिनय करते थे। 120 वर्ष तक उसी कुटिया से झोपड़ी से उठकर मगहर चले गए। और वहां से सशरीर अपने सतलोक को चले गए। लोग यह कहा करते थे, यह जुलाहा यह धानक यह गरीब आदमी इस पर रोटी भी पूरी समय पर नहीं होती। इसको तुम भगवान कहते हो ? क्यों मूर्ख बन रहे हो। तो बच्चों! हमने भगवान मान लिए थे जो हाथ में धनुष रखें। जो बोले उसी को मार दे। राजा - महाराजा के जन्मे हो। बच्चों! उस दिन भी परमात्मा थे वह आज भी भगवान है। और आगे भी मालिक हैं। यह भूल अब मिट जानी चाहिए। इसी प्रकार आपको दास के विषय में बहुत कुछ कहने वाले मिलेंगे। तुम ऐसी - ऐसी बातें करते हो तुम्हारे को यह लाभ हो रहा है।
एक बार कबीर साहेब जा रहे थे कंधे पर चद्दर डालकर। कंधे पर चद्दर डालकर जब चलते थे तो सब समझ जाते थे, कहीं दूसरे शहर गांव में जा रहा है। एक शिष्य बोला गुरुदेव कहां चले ? परमात्मा बोले भाई नरक जा रहा हूं। नरक में। चलेगा ? वह बोला जी अभी चलता हूं। जरूर चलूंगा। क्या करेगा वहां ? दुख पाएगा। जहां आप होंगें वह नरक भी स्वर्ग बन जाएगा। बच्चों! वही प्रक्रिया आज यहां आपके सामने हो रही है। स्वर्ग से भी ऊपर हो गया जहाँ से मेरे बच्चों तक मेरा संदेश, मेरे भगवान का संदेश पहुंच रहा है। अब जैसे राम और कृष्ण को भगवान बताया करते थे। कबीर जी को नहीं बताते थे। कबीर जी उस समय यह कहा करते सुन लो दो बात।
कहते है
समुद्र पाट लंका गयो, सीता को भरतार। और अगस्त ऋषि ने सातों पी लिए, इनमें कौन करतार ?
तुम यदि श्री रामचंद्र जी को इसी बात से भगवान मानते हो, कि उसने समुद्र पर पुल बनाकर और लंका पर चले गए। तो अगस्त ऋषि ने तो सातों को एक ही घूंट में पी लिया था। रामचंद्र जी की तो बात फिर समुंदर ने मानी भी नहीं थी। 3 दिन घुटनों पानी में खड़े रहे। जब यह बताया था नल - नील के हाथ में यह शक्ति है। और नल - नील से भी नहीं हुआ वह काम। फिर परमात्मा ने खुद जाकर वहां रेखा खींची। तब वह पत्थर समुद्र पर तिरे।
कबीर साहब कहते हैं
कबीर काटे बंधन विपत्ति में, कठिन कियो संग्राम। चिन्हो रे नर प्राणियो, यह गरुड़ बड़ो के राम ?
अब यह बताओ, गरुड़ बड़ा हुआ या तुम्हारा रामचंद्र जी ताकतवर हुआ ? रामचंद्र जी को नागफांस ने बांध लिया था। एक नागफांस हथियार था उसमे इतनी सिद्धि से लड़ाई होती थी पहले। । इतने नाग पैदा हो गए सारी सेना रामचंद्र जी की ऐसे बांध दी जैसे ईख बांध दिया करें। सबके हाथ नीचे बीच में डाल कर हिला जा, नहीं टहला जा पैरो तक बेड़ी लगा दी। ऐसे लिपट गए नाग। जब रामचंद्र ने गरुड़ बुलाया। अपना वाहन। गरुड़ पक्षी ने आकर वह नाग खाए।
कबीर साहेब कहते हैं:
कांटे बंधन विपत्ति में
तेरे राम के विपत में, आपत्ती में गुरुड़ ने बंधन काटे। अब समझ लो रे प्राणियों! गरुड़ बड़ा के यह राम ?
गोवर्धन श्री कृष्ण ने धारो, द्रोणागिरी हनुमंत। और शेषनाग तुम कहते हो सारी पृथ्वी उठा रहा, फिर इनमें कौन भगवंत ?
क्या यह लक्षण है तुम्हारे भगवानों के ?
एक ना भुला, दो ना भूली, भूली सब संसारी। मेरे साधो भाई मैंने सब जग भूल पाया।।
तो बच्चों! अब आपको इतना विश्वास हो जाना चाहिए कि जो ज्ञान भगवान ने दिया, आंखों देखे संतों ने बताया, वह गलत नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त अपने को जो सुनने को मिला था वह बिल्कुल लोक वेद दंत कथा, सारा झूठ थी। यह स्पष्ट हो गया।
तो अब क्या कहते हैं:
समझा है तो सिर धर पांव, बहुर नहीं रे ऐसा दांव।।
भक्ति के बिना यह प्राणी कैसे दुख पाता है। इस अनमोल जीवन को कैसे नष्ट करके चला जाता है। उसके बाद इसको कितना कष्ट उठाना पड़ता है। वह संत गरीबदास जी अपनी अमर वाणी में बहुत बार बहुत जगह बताते हैं। बच्चों! ध्यान दो। लग्न लगाओ। यह बात कहने - सुनने कि नहीं यह कर दिखाने की है। इनको ऐसे हल्के में मत लो। देखो दास 27 साल से तो प्रचार कर रहा है। और उससे पहले अपनी भक्ति करता था। प्रचार भी करता था। नाम दिलाता था अपने गुरुजी से। 1994 से दास को यह भार सौंप दिया। उसके बाद दास ने सिर पर पैर रख रखा है आज तक। तो यह बात दास को खटकी जो गरीब दास जी ने वाणी में बता रखी है।
साहब से चित लगा ले रे मन गर्भ गुमानी।
हे मन! अहंकारी! तू परमात्मा में ध्यान लगा परमात्मा की याद कर।
कहते हैं
नाभी कमल में नीर जमाया, तेरा दीन्हा महल बनाए। नीचे जठराग्नि जलै थी, वह दिन याद कराये। नैन नाक मुख द्वारा देही, नख शख साज बनाया।
नख, नाखून से लेकर शिखर तक। चोटी तक का। आपका सारा नैन, नाक, मुख यह सब देही सुंदर नाखूनों से लेकर शिखर चोटी तक का। आपकी सारी व्यवस्था कितनी प्यारी कर रखी है।
9 -10 मास गर्भ में रखा, वहां तेरी करी सहाई। दांत नहीं जब दूध दिया था, अमी महारस खाए। नीचे शीश चरण ऊपर को, वह दिन याद कराए। नीचे जठराग्नि जलै थी, तेरे लगी ना ताती बाय। बाहर आया भरम भूलाया, बाजे तूर शहनाय। तू ही, तू ही तो छोड़ दिया, चला अधम किस राह।
की मां के पेट में तुझे सब जानकारी थी। और डर था और सब यादाश्त थी। की मनुष्य जन्म बार-बार नहीं मिलता। और पूरे संत से दीक्षा लेकर अपना कल्याण कराऊंगा। कोई किसी का नहीं। बाहर जाकर भूल पड़ जाती है। अब के याद रखूंगा पूरा संत खोज करूंगा। पूरे गुरु से नाम लूंगा। बुराई नहीं करूंगा। काम करूंगा। लेकिन भगवान का ध्यान ज्यादा रखूँगा। अब कहते हैं तू ही,
तू ही तो छोड़ दिया चला अधम किस राह ?
अब तूने भगवान की जो याद थी वह तो छोड़ दी। हे भगवान! हे परमात्मा! दुख में तो याद करै था मां के पेट में। अब तू भूल गया। हे अधम! हे निकम्मी आत्मा! अब कौन से रास्ते चल पड़ा।
दाई आई घूंटी प्याई, माता गोद खिलाय। जो दिन आज सो काल नहीं रे, आगे है धर्मराय।।
की जैसे आज है मृत्यु के बाद फिर उसके धर्मराज के दरबार में जाएगा। वहां तेरी फिर दुर्गति होगी।
द्वादश वर्ष खेलते बीते, फिर लीन्हा विवाह करवाएं। तरुणी नारी से घरबारी, तु चाला मूल गवायं।।
यानी पहले 12 वर्ष की आयु में शादी हो जाती थी। विवाह हो जाता था। कहते हैं तू केवल इसी काम लग रहा। विवाह हो गया, हो गए पालन - पोषण में सारा जीवन खो दिया। भक्ति साथ-साथ करनी चाहिए थी वह नहीं करने से क्या दुख होगा तेरे साथ। वह बताया है। कहते हैं शादी करवा ली उसके बाद बच्चे हो गए। उनके पालन- पोषण में शादी विवाह करके फिर मर गया। फिर जो दिन आज सो काल नहीं रे, आगे फिर धर्मराय। फिर वहां जाकर फिर तू मुंह लटका कर खड़ा होता है, कि हे भगवान! गलती बन गई। अब के फिर मनुष्य जीवन देना भगवान। आगे गलती नहीं करूंगा। तब परमात्मा दिखाता है निकम्मे! ऐसी- ऐसी गलती तूने हजार - लाखों बार कर ली। यह देख। पिछले सारे जन्म दिखाए जाते हैं इसको। फिर रोता है। हे भगवान! गलती बन गई। परमात्मा कहते हैं, कि
अच्छे दिन पीछे गए, गुरु से किया नहीं हेत। अब पछतावा क्या करै, चिड़िया चुग गई खेत।।
क्या बताते हैं-:
द्वादश वर्ष खेलते बीता, फिर लीन्हा विवाह कराए। तरुणी नारी से घरबारी, चाल्या मूल गवायं। रातों सोवै जन्म बिगोवै, धूंदी खेत कमाए।
बिना बंदगी तेरा बाद जात है, तेरा जन्म अकारथ जाए। काले काग गए घर अपने, बैठे स्वेत बुगाए। दांत जाड़ तेरे उखड़ गए, अब रसना गई तुतलाए ।
कहते है, की रात को सो गया पड़ कर। सुबह उठते ही खेत में चला गया। भक्ति बिना तेरा जीवन नष्ट हो गया। और बुड्ढा हो गया। यह सफेद बाल हो गए। जुबान तेरी जीभ तुतलान लगी।
दांत- जाड़ उखड़ गए। जम किंकर सिराहने बैठा ,खर्च कदे का खाए। रसना बीच जो मेख मार है, सैनों दाम बताएं।
अब अंत समय में जब बिल्कुल निर्भाग आदमी जो होता है उसकी जुबान बंद हो जाती है। और सबसे पहले जुबान बंद करते हैं यम के दूत। की कहीं यह राम नहीं बोल दे। या बता नहीं दे यह यम के दूत खड़े हैं। और फिर उसके गिन - गिन के स्वांस पूरे करते हैं। क्योंकि स्वाँसो से जीवन बना हुआ है।
ऐसे सूम बहुतेरे जगत में, धरा ढक्या रह जाए।
कुल के लोग जंगल में ले जाके, फिर दीन्हा ठोक जलाए।
अब वही लोग, कुल के लोग उठाकर ले जाएंगे और शमशान घाट में जाकर फूंकेंगे। शरीर जहां से जलेगा नहीं, उसके फोड़ फोड़ कर फूकेंगें, उसकी छाती को।
फिर पीछे तू पशुवा कीजै, गधा बैल बनाय।
चार पहर जंगल में डोले, तो नहीं उदर भराय।
तो बच्चों! यह बातें कहने की नहीं। यह कोई सामान्य बातें नहीं है। बिल्कुल प्रमाणित बातें हैं , और सौ की सौ सत्य होती है ऐसे। तो कितना दुख होगा ? मनुष्य जीवन में हम देखो भूख लगती है, खाना खा लेते हैं। प्यास लगती है, पानी समय पर पी लेते हैं । कोई तकलीफ शरीर में होती है, डॉक्टर से इलाज करवा लेते हैं। जब चाहे लड्डू, जलेबी, जैसा सामर्थ्य है हलवा, खीर बनाकर खा लेते हैं। एक भक्ति न करने से कैसी दुर्गति होती है इस प्राणी की।
फिर पीछे तू पशुआ कीजै, गधा बैल बनाय।
चार पहर जंगल में डोले, तेरा तो नहीं पेट भरै।
यानी खेत में ले जाते हैं बैल को, हल में जोता जाता है। आस-पास उसका चारा होता है, भूख लग जाती है, खाने को दिल करता है, पर कौन खाने दे अब?
सिर पर सींग दिए मन बौरे, दुम से मच्छर उड़ाए।
कांधे जुआ, ज्योतै कुआं, कोंधों का भुस खाए।
कहते हैं तेरे को एक सिर पर सींग दे दिए एक पुंछ लगा दी। दुम। अब उससे मच्छर उड़ा, चाहे हवा कर ले। अब आज तो देखो पंखे, कूलर, AC क्या बात कही। लेकिन यह बच्चों का खेल नहीं है कि फिर भी तुम्हे ऐसे ही मिल जाएंगे। यह तो अब मेहनत अब मजदूरी करोगे, भगवान की सेवा करोगे, सिमरन करोगे, दान करोगे। मनुष्य जीवन प्राप्त हुआ तो फिर मिलेंगे। और बगैर भक्ति और गलत भक्ति करने वाले को तो मनुष्य जीवन भी नहीं देता। हमने तो पीछा छुड़वाना है, सतलोक चलेंगे।
फिर भी क्या बताते हैं कि
सिर पर सींग दिए मन बोरै, दुम से मच्छर उड़ाए।
एक पुंछ होगी आपके। दुम। उसको पंखा बना लेना और चाहे कूलर मान लेना। और कई कर्महीन पशुओं की वह पूंछ भी कट जाती है। डेढ़ फुट का डंडा हिलाता रहता है। इतने कर्म गिर जाते हैं इंसान के। खेतों में काम करें। जौ का भुस, उसमें बहुत कांटेदार उसका भुस होता है, भूखा मरता वह खाता है।
टूटी कमर पजावा चढ़े, कागा मांस गिलाय।
फिर पीछे तू खर कीजैगा, कुरड़ी चरने जाए।
खर - गधा। उसके बाद तु गधा बनेगा। और कुरडी चरने जाए।
टूटी कमर पजावा चढ़े, कागा मांस गिलाय।
ओह तेरा गजब होइयो।
उसके बाद गधा बनेगा। कुरडीयो पर चरने जाएगा। जो आज काजू और किशमिश, खीर और हलवे खाने वाला जो भक्ति नहीं करने से। और ऊपर से कमर टूट जाती है गधे की, गधी की। वह समान बोरा रखने से, इंटे रखने से। फिर उसको कुम्हार छोड़ देता है मालिक कि जा। वह पेट भर कर भी जंगल में आती है। घास खाती है, खाते हैं। और कौआ उसकी कमर पर बैठकर उसके चोंच मार -मार कर, उस फूटे हुए जख्म को, उस मांस को खाता है। और आंखों से पानी गिरता है, उसे गधे और गधी के। कोई पशु हो चाहे। यह कष्ट मोल ले लिया, इतना कहर टूट गया इस छोटी सी बात के बिना। भक्ति नहीं करने से रे कितना जुल्म होगा हमारे साथ। बच्चों! आंख खोल लो। (ओये होय)
फिर पीछे तू खर कीजैगा, कुरड़ी चरने जाय।
टूटी कमर पजावै चढ़ै, तेरा कागा मांस गिलाय।
सुखदेव ने 84 भुगती, कहां रंक कहां राय।
ऐसी माया काल बली की, नारद मुनि भरमाए।
ध्रुव प्रहलाद और कबीर नाम दे ,रहे निशान गुराय।
दास गरीब कबीर का चेरा, शब्दै शब्द समाय।
अब भगवान के बेटे गरीब दास जी बता रहे हैं, कि सुखदेव भी एक बार गधा बना। अब और किसको बख्शेगा यह ? ऋषियों की दुर्गति कर रखी है।
ऐसी माया काल बली की, नारद मुनि भरमाय।
ध्रुव प्रहलाद और कबीर नाम दे, रहे निशान गुराय।
यानी ध्रुव जी को, प्रहलाद जी को तो यह आम आदमी मानते हैं कि यह मुक्त हो गए। भक्ति करके यह अपना मोक्ष प्राप्त कर लिया। लेकिन कितना प्राप्त कर लिया। 1008 युग का ब्रह्मा का जो दिन है, यह इनको इतना राहत है। इस 1008 वर्ष का जो ब्रह्मा का दिन है, इतने दिन यह स्वर्ग में रहेंगे। उसके बाद फिर नीचे आएगें। इनमें भी भक्ति के ऊपर निर्भर करता है। जैसे ध्रुव को तो एक युग के लिए यानी वहां स्वर्ग में रहेगा। मुक्ति तो अब होगी। सारनाम, सारशब्द से।
धर्मदास मेरी लाख दुहाई, सारशब्द कहीं बाहर नहीं जाई। मूल ज्ञान कहीं बाहर नहीं जाई।।
अभी तक यह सारनाम, सारशब्द परमात्मा ने किसी को बताया नहीं था। अब यह खोला है। मोक्ष तो बच्चों अब होगा आपका। और सहज में होगा। आप नामदेव और ध्रुव प्रह्लाद से कम सौभाग्यशाली नहीं हो । उनसे ज्यादा सौभाग्यशाली हो। क्योंकि आप को सीधा मोक्ष मिलेगा। उनको फिर से जन्म लेना पड़ेगा। कभी इसी कलयुग में। यह सत कर मान लेना तुम। बालको की बच्चों की बात ना समझना इसको। मैं कोई डूमभाट नहीं हूं। व्यर्थ की जुबान घीसाता हो। बिल्कुल कांटें की बात कह रहा हूं। लेकिन इसको हल्के में लोगे तो फिर दुर्गति शुरू हो जाएगी। यह चक्कर फिर शुरू हो जाएगा।
यह हरहट का कुआं लोई। यह गल बंधा है सब कोई।। कीड़ी कूंजर और अवतारा। हरहट डोर बंधे हैं कई बारा।।
बच्चों! विचार करो जैसे आज मनुष्य जीवन है मान ले अगला मनुष्य जीवन होगा। फिर वही प्रोसीजर। जन्म हुआ, पढ़े - लिखे, बड़े हुए फिर विवाह हो गया। फिर बच्चे हो गए। फिर पालन - पोषण। फिर मर गए। फिर मान लो एक आधा जन्म फिर भी है तो। फिर हो गए। फिर मर गए। बुड्ढे हो गए कभी बीच में मर गए। कोई बालक मर गए। कभी हम मर गए ऐसी दुर्गति हो रही है इस से पीछा छुटवालो। और वह अब समय आ गया है बच्चों! परमात्मा के प्रति दृढ़ता से लगो। कबीर साहेब कहते हैं- :
नाम सुमरले सुकर्म कर ले कौन जाने कल की। खबर नहीं पल की।।
ऐसे निकम्मे लोक में हम रह रहे हैं जिसका कोई दीन धर्म नहीं। यहां कोई न्याय नहीं। और एक सेकंड का भरोसा नहीं, एक सेकंड में क्या हो जाए। और फिर भी हम फूले फिरे। क्यों? किसी के दुर्घटना हो जाती है तो हम यह सोचते हमारे नहीं होगी। काल सबके साथ धोखा कर रहा है। अब हम भगवान शरण में आ गए कबीर साहेब की। अब हम कह सकते हैं यदि मर्यादित है। तो अब हम भगवान की शरण में हैं। काल के इन अटैक से बाहर हो गए। लेकिन जिस दिन नाम खंड हो गया क्योंकि जब सुख हो जाता है यह मन बकवाद की तरफ अवश्य चलता है। और गफलत करवाता है। नाम सबसे पहले नाम खंड करवाकर फिर चोट मरवाता है। यह ध्यान रहे हमारा।
नाम सुमरले, सुकर्म कर ले, कौन जाने कल की। खबर नहीं पल की।।
यह बात कांटे की है। भक्ति कर अच्छे कर्म कर। कल का क्या भरोसा। एक पल का भरोसा नहीं ? अब देखो माचे- माचे फिर रहे थे। हमने देखे और ऐसे मारे गए उनको पानी भी पिलाने वाला कोई नहीं मिला। एक्सीडेंट में मरे ऐसी बातें बनाया करते बड़ी-बड़ी। और बड़ी डींग मारा करते थे हमने देखे कई लोग ऐसे। और उसके बाद जब नाम मार्ग पर हम लगे भक्ति का ज्ञान हुआ इस यथार्थ भक्ति ज्ञान से वह बातें सारी याद आने लग गई। हे भगवान! क्या बनती। हे परमात्मा! बिल्कुल जुल्म हो गया था। मैं तो ऐसा हो गया था जैसे पागल का हाल हुआ करै। जब यह सच्चा ज्ञान समझ में आया।
ओह तेरा गजब होईयो।
देख क्या माचे- माचे फिर रहे थे। धरती तोल रखी थी। लेकिन काम जो करने का था स्टार्ट भी नहीं था । हे बंदी छोड़! मतलब मेरे दिल से यह बहुत दिन तक नहीं निकली यह बात। जैसे कोई एक्सीडेंट में बच जाए ऐसे बाल- बाल। और फिर ऐसे भय सा कई दिन तक रहा करै। तो दास की यह दशा हो गई थी। हे परमात्मा! बड़ी दया करी। हे मालिक! कैसे शरण में लिया। देख कितना बड़ा कहर टूट जाता कुत्ता बनता, गधा बनता सिर में कीड़े पड़ते। गली में बैठता कोई समय पर संभालने वाला नहीं। कोई रोटी नहीं, कोई कपड़ा नहीं, कोई लत्ता नहीं। बच्चों! जब तक यह भय नहीं आपके शरीर में होगा आप भक्ति नहीं कर सकते। मुक्ति नहीं पा सकते। भय बिन भक्ति नहीं होगी। और भय भी सच्चा है। कोई झूठ नहीं कोई वैसे डराने वाली बात नहीं। इसलिए
यह संसार समझता नाहीं, कहन्दा शाम दोपहारे नु।
गरीबदास यह वक्त जात है, रोवोगे इस पहरे नु।
गरीबदास यह वक्त जात है, रोवोगे इस पहरे नु।
बच्चों! चूक मत जाइयो। यह बातें कहने- सुनने की नहीं, यह कर दिखाने की हैं।
यह संसार समझदा नाहीं, कहन्दा शाम दोपहरे नु। गरीबदास यह वक्त जात है, रोवोगे इस पहरे नु।
बच्चों! बस आज इतना ही। परमात्मा आपको मोक्ष दे सदा सुखी रखे। आपकी तड़प, आपकी लगन मलिक में और अधिक बने।
सत साहेब।।
FAQs : "विशेष संदेश भाग 5: काल ब्रह्म की अधूरी पूजा"
Q.1 इस लेख में "ॐ" मंत्र का क्या महत्व बताया गया है?
गीता जी में कहा गया है कि "ॐ" मंत्र का जाप करने से ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। लेकिन इसके जाप से पूर्ण मोक्ष नहीं मिलता क्योंकि शास्त्र अनुकूल साधना न करने से व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र में ही फंसा रहता है।
Q.2 इस लेख में ऋषि चुणक के बारे में क्या बताया गया है?
ऋषि चुणक के पास अपार आध्यात्मिक शक्तियां थीं लेकिन फिर भी वह पूर्ण मोक्ष को प्राप्त करने में असफल रहे क्योंकि उन्हें अपने कर्मों का फल भोगना पड़ा और वह जन्म-मरण के चक्र में फंसे रहे।
Q. 3 इस लेख में श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी और श्री शिव जी की भूमिका के बारे में क्या बताया गया है?
श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी और श्री शिव जी तीनों लोकों के मुखिया हैं। यह सृजन, पालन और संहार का कार्य करते हैं और यह पूर्ण परमेश्वर नहीं हैं।
Q.4 सच्ची भक्ति न करने से क्या नुकसान होता है?
सच्ची भक्ति न करने से जीवन में कठिनाईयां आती हैं और व्यक्ति मोक्ष से वंचित रह जाता है। जिसके कारण साधक जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसा रह जाता है और फिर दुख भोगता रहता है।
Q.5 मोक्ष प्राप्ति करवाने में सच्चा गुरू क्या भूमिका निभाता है?
एक सच्चा गुरू वह होता है जो हमारे सभी पवित्र शास्त्रों का पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान रखता हो। पूर्ण मोक्ष और सच्ची भक्ति प्राप्त करने के लिए सच्चे संत की शरण ग्रहण करना ज़रूरी है क्योंकि वे ही सच्ची भक्ति और मोक्ष मंत्र प्रदान करने का एकमात्र अधिकारी संत होता है।
Q.6 इस लेख में कबीर साहेब जी की शिक्षाओं का पालन करने वालों के बारे में क्या बताया गया है?
इस लेख में बताया गया है कि जो लोग कबीर साहेब जी की शिक्षाओं का पालन करते हैं और उनके द्वारा बताई सच्ची भक्ति करते हैं, उन्हें पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस तरह वे जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाकर सतलोक यानि कि अमरलोक को प्राप्त करते हैं।
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मेरा मानना है कि ॐ सर्वोच्च मंत्र है और इसी का वर्णन वेदों में भी किया गया है क्योंकि वेदों में किसी अन्य मंत्र को श्रेष्ठ नहीं माना गया है। ऐसे में ॐ मंत्र को निम्न कैसे माना जा सकता है?
Satlok Ashram
प्रारंभ जी, आप जी ने हमारे लेख पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की इसके लिए आपका बहुत धन्यवाद। देखिए ॐ मंत्र के जाप से ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है, जहां जाने के बाद साधक पुनः लौट कर जन्म-मरण के चक्र में आता है। इसी कारण पवित्र गीता जी में ॐ मंत्र के जाप को निम्न श्रेणी का बताया गया है। पवित्र गीता जी के अध्याय 17 के श्लोक 23 में यह भी कहा गया है कि पूर्ण परमेश्वर का मंत्र "ॐ तत् सत्" है, जो कि सांकेतिक है। केवल एक पूर्ण संत ही इस मंत्र के भेद को प्रकट करने और देने का अधिकारी होता है, जिससे पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है। हम आप जी से विनम्र निवेदन करते हैं कि आप आध्यात्मिक पुस्तक "ज्ञान गंगा" को पढ़िए तथा तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को यूट्यूब चैनल पर भी सुनिए।