सत साहिब।
सतगुरु देव की जय।
बंदी छोड़ कबीर साहिब जी की जय।
बंदी छोड़ गरीबदास जी महाराज जी की जय।
स्वामी राम देवानंद जी गुरु महाराज की जय हो।
बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय हो।
सर्व संतो की जय।
सर्व भक्तों की जय।
धर्मी पुरुषों की जय।
श्री काशी धाम की जय।
श्री छुड़ानी धाम की जय।
श्री करोंथा धाम की जय।
श्री बरवाला धाम की जय।
सत साहेब।
गरीब नमों नमों सत्य पुरुष को, नमस्कार गुरु कीन्हीं। सुरनर मुनिजन साधवा, संतो सर्वस दीन्हीं।। सतगुरु साहिब संत सब, दंडवत्तम प्रणाम। आगे पीछे मध्य हुए तिंकू जा कुर्बान।।
कबीर सतगुरु के उपदेश का, सुनियां एक विचार। जै सतगुरु मिलते नहीं, जाते नरक द्वार।। नरक द्वार में दूत सब, करते खैंचातान। उनसे कभी नहीं छूटता, फिरता चारों खान।। कबीर चार खानि में भ्रमता, कबहूं ना लगता पार। सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।।
जय जय सतगुरु मेरे की। जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहबी सुख से बसियो, अमरपुरी के डेरे की।। जय जय सतगुरु मेरे की। जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से बासियो, सतलोक के डेरे की।।
निर्विकार निर्भय तू ही और सकल भयमान। ऐजी साधो और सकल भयमान। सब पर तेरी साहिबी। सब पर तेरी साहिबी, तुझ पर साहब ना।। निर्विकार निर्भय।।
परमपिता परमात्मा कबीर जी की असीम रजा से बच्चों! आपको परमात्मा की अमर कथा अमर महिमा सच्चा ज्ञान और सच्ची भक्ति प्राप्त है। इसको सामान्य बात ना समझो। और आप सामान्य आत्मा नहीं हो। लख वर शूरा जूझही, लखवर सांवत देह। लख बर यति जहां में, तब सतगुरु शरणा ले।। और परमात्मा की दूसरी रजा यह है, कि गरीब गोता मारूं स्वर्ग में, जा बैठूं पाताल। गरीबदास ढूंढता फिरूं, अपने हीरे मोती लाल।। देखो आपको परमात्मा ने कैसे खोज लिया यह अपना पिता है। यह अपना सच्चा हमदर्द है। बाकी यहां संसार के जितने भी परिवार है नाते- रिश्ते है यह हमने अस्थाई अपना यहां जीने के लिए रास्ता निकाल रखा है की थोड़ा सा ठीक यह समय व्यतीत हो जाए। बहुत सी ऐसी परिस्थितिया है जिनको देखकर बड़ा दुख होता है सुनकर।
इस लोक का कोई भी ऐसा नाता हमारा साथ सदा नहीं देगा। अगर हम माता-पिता को अपना समझते हैं वह भी कभी भी हमारा साथ छोड़ सकते हैं। क्योंकि जिस लोक में जहां मृत्यु है वहां पर हम किसको साथी माने? की यह हमारे साथ रह जाएगा। तो हम उनको अपना तो मानते हैं और मानना चाहिए क्योंकि हमारे साथ रह रहे हैं। और उनमे प्रेम अपने आप हो जाता है। लेकिन इतना ध्यान जरूर रखना की कभी भी यहां से जाना हो जाएगा। और सब हम ऐसे सेट हो रहे हैं की अभी नहीं मरेंगे। अभी तो उमर छोटी है।
अभी तो 30 वर्ष के हुए हैं 40 के हुए है 50-60-70-80-90 के हो लिए वह भी ऐसे सोचते है अभी नहीं मरेंगे। चलो जब भी मालिक की दया होगी वह तो अलग बात है। परंतु इसका यह नही पता हो कब जाए? पर इसको याद रखोगे तो आप भक्ति कर पाओगे। नहीं तो भक्ति नहीं बनेगी। मोक्ष वाली नहीं बनेगी। सामान्य भक्ति कर रहे हो इसका फल तो इतना दे देगा। आपको संसार में अलग टाल देगा। इतना सुख देगा, इतनी संपत्ति दे देगा। लेकिन वह संपत्ति काम क्या आवेगी बताओ ? जैसे अब्राहिम सुल्तान अधम के कितने ठाठ थे।
राजा था उसको उस संपत्ति जो उसके गले पड़ रही थी उसकी जान का झाड़ बन गई थी। उसके जीवन को नष्ट कर देता वह ठाठ बाट उससे मुश्किल से निकाला उस दलदल से। तो बच्चों! थोड़ा सा हर तरह हर पहलू पर ध्यान दो। परमात्मा से इतना मांगो साईं इतना दीजिये, जिसमें कुटुंब समावे। हम भी भूखे ना रहे, अतिथि ना भूखा जावे।। ठीक है परमात्मा ने संपत्ति दे दी अच्छी बात है। मकान बढ़िया बना लो बहुत अच्छी बात है। आपका जुगाड़ है तो बनाओ। बेमतलब नहीं समस्या मोल ले।
किसी चोरी करके और तरह बकवाद करके दो नंबर का काम करके वह बनाया ना बनाया बराबर है। कभी भी नुकसान हो जाएगा। और जैसी भी सुविधा भगवान अब देगा आपको। औरों से अलग देगा। आपके मकान भी सबसे न्यारे होंगे। आपके यातायात के साधन भी सबसे प्यारे होंगे। और आप परमात्मा के विशेष भगत हो बेटा हो, बेटी हो। आप विशेष उनके लाडले हो लाडली हो। विचार करो इस संसार में कितनी जनता भरी पड़ी है और भक्ति करने वालों की कोई कमी नहीं । किसी के पास भक्ति सही नहीं है। तो वह भक्ति करके अपने आप को धोखा में बैठे हैं। उनके साथ धोखा हो रहा है।
और आपके ऊपर कैसी गजब कृपा है क्या आप सामान्य आत्माओं हो ? क्या आप सामान्य भगत हो भगतमति हो ? लेकिन इस रजा को बनाकर रखोगे जब बात बनेगी। इस ज्ञान को नहीं सुनोगे, इसके ऊपर अमल नहीं करोगे तो वैसे ही हो जाओगे जो आम संसार है। इस ज्ञान को सुनकर आप प्रेरित हुए, मालिक की चाह बनी। चाह बनी तो राह मिली यानी सच्चा मार्ग मिला। तो उनका दुर्भाग्य उन लोगों का जो गुरु बनाएं बैठे हैं। सुनते भी नहीं ।
तो वह अच्छी आत्मा नहीं है। इतनी अच्छी नहीं है जो मालिक की शरण में आ जाए। उनको मालिक ग्रहण करले। होंगी वह आ जाएंगी। और इतना कुछ ज्ञान सुना दिया। और स्पष्ट कह दिया तुम्हारे गुरु गलत बता रहे हैं। यह प्रमाण देखो, यह देखो उनके ऊपर कितना प्रेशर है उस काल का। उनकी आंख भी नहीं खुलती। ऐसे कहते है निंदा करें है यह तो। अरे तेरा गजब होइयो।। इतना गजब की भक्ति बता रहे हैं इतना सुंदर ज्ञान स्वच्छ साफ सुथरा। और हमने यह कहे वह तो निंदा करता है। ओह तेरा गजब होइयो।। तो बच्चों इसको कहते हैं बुरी किस्मत वाले।
आपकी किस्मत, आपकी किस्मत को दास शब्दों में ब्यान नहीं कर सकता। ऐसे कलयुग में जिसमे टाइम भी नहीं एक मिनट का भी सारी कितनी ही बकवास देख लो। मोबाइल घर घर हो गए। इनमें सबसे गंदे से गंदी पिक्चरें देख लो। और सारा दिन इधर-उधर की बकवाद सुन लो। सारा दिन अब और समस्या हो गई। पहले तो कभी-कभी रिश्तेदारों की बात हुआ करती। अब रोज कई कई बात होवे। और कोई ना कोई बात पर रोज लड़ाई हो लेती है उनकी। कहा -सुनी हो जाती है यह नई समस्या और हो गई इस तरह ।
और हम इसको भगवान के लिए प्रयोग करते हैं। हम परमात्मा की इन सुविधाओं को परमात्मा की भक्ति और उसके मंत्रों के लिए प्रयोग करते हैं। और सत्संग सुनते हैं। तो बच्चों! आपकी किस्मत और अन्य मानव की किस्मत में दिन और रात का अंतर है। इसलिए इस भक्ति से दूर ना होना।
गरीब अगम निगम को खोज ले, बुद्धि विवेक विचार। उदय अस्त का राज मिले, तो बिन नाम बेगार।।
बेगार की परिभाषा आपको बता दी। चाहे सारी पृथ्वी का राजा हो, सतभक्ति नहीं करता है वह बेशक आज फूला फिरता है चारों तरफ उसकी स्तुति तुति बोल रही है और खूब उसके सम्मान हो रहे हैं। खूब ठाठ हैं वह पिछले कर्म भोग रहा है। उनको खा खर्चकर करके बर्बाद खाली हाथ जायेगा। तप से राज, राज मदमानम। जन्म तीसरे सूकर सवानं।।
एक प्रियव्रत राजा था। उसने बहुत वर्षों तक तप किया। उसके बाद उसको पारखद लेने आए। धर्मराज के दूत लेने आए। तो उसने कहा मुझे एक कुछ स्वांस और देदो। मैं और सांस ले लूं। तो वह बोले खबरदार जो स्वांस लिया तो। तेरे को स्वांस लेने का अधिकार नहीं है आदेश नहीं है। आगे रख लें गए। वहां धर्मराज ने पूछा, की इतने वर्ष तो तूने तप किया, इतने वर्ष ही राज कर लिया। अब भविष्य के लिए भी कुछ लाए की खाली आए ? वहां जाकर उसको अकल ठिकाने आ गई। की बहुत बड़ी गलती बन गई या तो। और यहां तो तु कह कर गया था भक्ति करूंगा भगवान। दिन-रात तुझे याद करूंगा। पूरे संत की खोज करूंगा। वह सारी रील चला दी उसके आगे। बैकग्राउंड। तो बोला जी तकसीर हुई, गलती हुई। तो भगवान बोले भाई गलती हो गई तो सजा भोग। बन गधा। प्रियव्रत बोला मुझे गधा क्यों बनाया जा रहा है ? की तू भक्ति के लिए भेजा था और वह बंदगी करी नहीं। अपनी पिछली मलाई खाकर आ गया। भाग यहां से। उसके मारा धक्का दे दिया। गधे की योनि में गया।
गरीब ऐसा कौन अभागिया, करें भजन को भंग। लोहे से कंचन भया, पारस के सत्संग।।
गरीब दास जी कहते हैं
ऐसा कौन अभागिया करे भजन को भंग।
यानी नाम छोड़ै।
लोहे से कंचन भया पारस के सत्संग।।
यानी सत्संग सुनने से प्रेरणा हुई भक्ति करने की। और नाम ले लिया। नाम के सिमरन से बहुत कीमती बन गया तू। और नाम बीच में छोड़ दिया तो एक आने का नही। अब क्या बताते हैं गरीब ऐसा कौन अभागिया, करें भजन को भंग। लोहे से कंचन भया, पारस के सत्संग।।
गरीब पारस तुम्हरा नाम है, लोहा हमारी जात जड़ सेती जड़ पलटिया, तुमको केतिक बात।
हे परमात्मा! हे मालिक! जैसे पारस पत्थर लोहे को सोना बना देता है। और दोनों ही जड़ है ना बोल सकते, ना चल सकते, ना उनमें कोई और शक्ति। हे परमात्मा! जब जड़ से जड़ पलट गया। जड़ ने जड़ को कीमती बना दिया। आप तो मालिक हो। आप तो सक्ष्म हो। हमारे पार करने में आपको कितनी देर लगेगी। इसका यह अर्थ है।
गरीब पारस तुम्हरा नाम है, लोहा हमरी जात। जड़ सेती जड़ पलटिया, तुमको केतिक बात।।
बिना भक्ति क्या होत है, ध्रुव को पुछो जाए। सवा सेर अन्न पावते, स्वर्ग राज दिया तांही।।
की भक्ति बिना क्या होता है ध्रुव से बात कर लो। उससे पूछ लो। उसको जान लो। मां बेटे को सवा सेर अन्न मिलता था सारे दिन में। और भक्ति के कारण उसको स्वर्ग का राज मिल गया। पृथ्वी का तो मिला ही मिला। स्वर्ग में भी राज मिला।
गरीब भक्ति बिना क्या होत है, भावें काशी क्रोंत ले। मिटे नहीं मन वासना, बहु विधि भ्रम संदेह।।
पहले काशी के अन्दर एक गंगा के किनारे करौंत लगा रखा था। और भ्रम फैला रखा था, कि जो काशी में क्रोंत से जान दे देगा। कट के मर जायेगा क्रोंत, आरा यह लकड़ी चीरने के दोनों तरफ पकड़ के हैंडल से घुमाया करें। जो उससे कटकर मर जाएगा गर्दन कटवा लेगा। वह सीधा स्वर्ग जाएगा। तो भगवान के चाहने वालों की कभी कमी नहीं रही। और वृद्ध अवस्था में तो आदमी वैसे भी सोच ले है मरना तो है ही। और यह तो बहुत आसान। देखी जाएगी। कल को और बीमार वगेरा होकर दुर्गति होकर मरूंगा। तो पैसे दे दे जान दी। मोक्ष तो छोड़ो। मोक्ष तो भक्ति से होगा इन बकवादों से थोड़े होता है।
गरीब भक्ति बिना क्या होत है, भावें काशी करौंत ले। मिटै नहीं मनवासना, बहुविधि भ्रम संदेह।।
गरीब भक्ति के बिना क्या होत है, भ्रम रहा संसार। रति कंचन पाया नहीं, रावण चलती बार।।
रावण ने महल भी सोने के बना रखे थे सारी लंका अपना रेजिडेंस। बताओ चार योजन अटारी थी उसकी सबसे लास्ट वाली मंजिल चार। एक योजन चार कोस की। एक कोस तीन किलोमीटर । 48 किलोमीटर ऊपर रावण की अटारी थी। और ऐसे सिद्धि से ऊपर उड़ कर जाया करते थे। एक योजन 12 किलोमीटर ऊंचाई 12,000 फुट समझो। तो कहने का भाव यह है ,कि इन बकवादों से बात नहीं बने।
सर्व सोने की लंका होती, रावण से रणधीरं।
एक पलक में राज विराजी, जमके पड़े जंजीरं।।
एक पलक में मृत्यु हो गई। मारा गया युद्ध में। और काल के दूत उसको घसीट कर ले गए।
गरीब भक्ति बिना क्या होत है, भ्रम रहा संसार। रति कंचन पाया नहीं, रावण चलती बार।।
गरीब संगी सुदामा संत थे, दारिद्र का दरियाव। कंचन महल बक्श दिए, तंदुल भेंट चढ़ाए।।
सुदामा ब्राह्मण श्री कृष्ण जी के सहपाठी थे। क्लास फेलो थे। बचपन में एक ही पाठशाला में पढ़ा करते थे। और कहते हैं सुदामा का तंदुल थोड़े से चावल खाकर भगवान श्री कृष्ण ने उसका महल बना दिया। बच्चों! यह बात बहुत गहराई है आप इसको अब आसानी से समझने लग जाओगे कुछ दिन में। बच्चों! परमात्मा की असीम कृपा है आपके ऊपर।
गरीब संगी सुदामा संत थे, दारिद्र का दरियाव। कंचन महल बक्श दिए, तंदुल भेंट चढ़वाए।।
श्री कृष्ण जी के साथी थे सहपाठी थे सुदामा जी। और बहुत निर्धन थे। कई बार तो समय पर भोजन भी भूखे रह जाते, बच्चे भी भूखे रह जाते थे। उसकी पत्नी कहती थी, कि आप श्री कृष्ण जी को अपना साथी बताते हो, सहपाठी बताते हो। अब तो वो राजा बन गए हैं आप कुछ मांग लाओ। उस समय उनको कोई भगवान विशेष नहीं मानते थे राजा मानते थे। सुदामा जी कहते थे की भक्तमती! ब्राह्मण का काम मांगने का नही। और मैंने पिछले जन्म में कोई दान नहीं कर रखा इसलिए मेरी यह दशा होगी। उसके बार-बार कहने से अब बच्चों यह कोई भी है पिछले जन्म के परमात्मा बंदी छोड़ के हंस है ये। और बेशक दुखी होते हैं तो वहीं आकर मदद करता है। एक स्थिति ऐसी बीत गई थी की सारे बच्चे रो रहे थे। खाने को कुछ था नही।
दो दिन भूखा हो गया स्वयं भी। बच्चों को थोड़ा बहुत खिलाया वह रो रहे थे। 4 बच्चे बताते हैं उनके चार बच्चे थे। तो परमात्मा ने ऐसी दया करी किसी सेठ का रूप बनाया और बहुत सारा सामान रखकर चला गया। और सुदामा चल पड़ा। जब बिल्कुल अंत आ लिया, जब चल पड़ा श्री कृष्ण जी से मिलने। तो इतना दृढ़ थे वो परमात्मा के प्रति इतने नेक आत्मा के थे सुदामा जी। द्वारका के पास पहुंच गए। अब यह कहानी जो दास बताता है सारी उटपटांग और झूठ सी लगती है पर है सारी सच्ची। श्री कृष्ण जी उसके पहुँचने से 2 घण्टे पहले कही बाहर जाने के लिए निकले। अपने रथ वगैरा लेकर सारे सैनिक वगेरा 10-20 बॉडीगार्ड। वह चले गए अपने रिश्तेदारों के यहां।
सुदामा वहां पहुंचा तो परमात्मा ने खुद कृष्ण रूप बनाया। और वहां जाकर बैठ गए और कह दिया आज कैंसिल कर दिया कहीं नहीं जाते। सुदामा सात दिन रहा वहां पर। उसके चरण धोए सारा कुछ किया। तंदुल खाए। सुदामा ने भी यह नहीं कहा, कि मुझे कुछ दे दे। भगवान ने भी नहीं कहा कुछ ले जा। उधर से विश्वकर्मा को भेज दिया। और कहा वहां महल बना सुंदर और भर दे मकान अन्न धन से। उधर काम शुरू हो गया। सुदामा सातवें दिन चल पड़ा। वह आ गया वापस लंबी कहानी है कहने का भाव यह है। और परमात्मा भी पीछे से निकल गए। उधर से श्री कृष्ण वापस आ गए। तो वहां चर्चा चली, की आप तो अब तो यहां से गए हो कहां से आए हो ? तो उसने कहा मैं तो वहां से आया हूं अभी। तो वहां के लोग कहने लगे आप ऐसी ही लीला करते हो। आपकी लीला को कौन जान सके। इस तरह बात आई गई होगी।
बच्चों! यह सारे खेल कबीर साहेब ने किए थे। अब सारी बातें धीरे-धीरे आपके बिल्कुल समझ में आ जाएंगी। अगर आज से 2 साल - 4 साल पहले आपको यह बात बताता तो आप इसको बिलकुल झूठ मानते। अब आपको सारे प्रमाण मिल चुके हैं जो कुछ किया दाता ने किया। यह जो महाभारत का युद्ध करवाया यह काल ने करवाया। वह नाश करवाने के काम काल ने इसमें प्रवेश करके किये। और परमात्मा ने अच्छे काम इनके रूप में खुद किये आकर। गोवर्धन पर्वत खुद मालिक ने धारण किया इसका रूप बनाकर। यह तो बालक था बिल्कुल।
तो बच्चों! इन बातों को याद रखो सारा कुछ समर्थ सक्षम यही है। और इसके बिना पत्ता भी नहीं हिलना। अब क्या बताते हैं
गरीब संगी सुदामा संत थे, दारिद्र का दरियाव। कंचन महल बक्श दिये, तंदुल भेंट चढ़ाए।।
अब हम मान लो इसी के निमित्त कर दें की श्री कृष्ण जी ने ऐसा कर दिया। सुदामा का महल बना दिया। क्योंकि इसके नाम लिखी गई यह बातें।
करे करावे साईयां, मन में लहर उठा। दादू सिर धर जीव के, आप बगल हो जा।।
तो यह देखने वाली बातें है श्री कृष्ण जी ने तो एक महल बना दिया थोड़ा बहुत धन दे दिया जीविका का। और परमात्मा ने एक रोटी खाकर कबीर साहिब ने सात पीढ़ी का राज दे दिया तैमूरलंग को। और भक्ति दी। मुक्ति का बीज बो दिया। तो हमने अब इसको ज्यादा उस तरफ नहीं ले जाकर यही मानकर चलते हैं श्री कृष्ण ने कर दिया। तो कृष्ण इतने सक्ष्म थे। कबीर साहेब पूर्ण रूप से। वैसे करने वाला वही है। और कुछ भी कुछ नहीं कर सकते सब बच्चे है इसके सामने।
गरीब दो कोढ़ी का जीव था, सैना जाति गुलाम। भक्ति हेत घर आईया, धरया स्वरूप हजाम।।
एक सैन नाम का नाई था। उसकी आपको कथा बता रखी है बहुत बार। परमात्मा अपने भगत का रूप बनाकर राजा की हजामत करी। सिर में मालिश करी। और भगत उस दिन किसी कारण से ध्यान में ज्यादा देर बैठा रहा भक्ति में। राजा ने कंपलसरी कहा था कल इस टाइम जरूर आना चाहिए नौकरों को बोल दिया था। नौकरों ने उसको बता दिया था कल जल्दी आ जाना इस टाइम आ जाना। वह अपनी पत्नी को कहकर ध्यान भक्ति में बैठ गया। सैन नाई। वैसे नंदा नाम था उसका। और जैसे हरिजनो को सुपच कहते थे पहले। तो ऐसे सैन भगत बोलते हैं। सैन जाति। तो कहने का भाव यह है की उसकी पत्नी भूल गई। क्योंकि उसको इतना पता नहीं था इतना कंपलसरी है आज।
वह फिर उठा तो समय ज्यादा हो गया था। डरता डरता नाई राजा के पास गया। और रोवे माफी मांगै हे महाराज! बक्श दो। पहली बार गलती हुई बक्श दो। आगे से ऐसी गलती कभी नहीं होगी। मैं भक्ति में बैठ गया। अपनी पत्नी से कहा था मुझे उठा देना। हे महाराज! गलती होगी रोवै। मत्था टेकै। उधर से परमात्मा वह सारा काम करके जा चुके थे आधा मिनट पहले। सारे वह नौकर हैरान। राजा पूछ रहा है यह क्या कह रहा है ? बुलाओ। राजा बोला क्या कह रहे हो आप भगत सैन? अरे तू देख हजामत कर रखी। और सिर में मालिश करी तूने डटकर।
क्या तू पागल तो नहीं हो गया। क्या बोल रहा है तू अभी आया है ऐसा ऐसा ? तो सारे बोले अरे आप सचमुच तु अब तो सेवा करके गया है सारा काम करके गया। क्या पीकर आ रहा है तू भांग पी रखी है क्या तूने आज ? फिर वह फिर रोने लग गया। ओहो हे परमात्मा! हे बंदी छोड़! हे मेरे दाता! हे मेरे भगवान! हे मालिक! इतना कष्ट उठाया मुझ पापी के लिए। मालिक से तू नाई बन गया। खूब फूट-फूट कर रोया। तो बच्चों!
जो जन मेरी शरण है, ताक हूं मैं दास। गैल गैल लाग्या फिरूं, जब तक धरती आकाश।।
गरीब दो कोड़ी का जीव था, सेना जात गुलाम। भक्ति हेत घर आईया, और धरा स्वरूप हजाम।।
अब भगवान की महिमा सुनाते हैं।
गरीब ज्यों मेहंदी के पान में, लाली रही समाय। यो साहेब तन बीच है ,खोज करो सतभाय।।
जैसे मेहंदी के पत्ते हरे - हरे होते हैं। और जब उनको रगड़ा जाता है तो हाथ लाल हो जाते हैं। तो ऐसे बताया है, कि इस मिट्टी के महल में इस शरीर के अंदर परमात्मा की प्राप्ति ऐसे हो जाएगी दिखाई नहीं देता। भक्ति करोगे परमात्मा के नाम की, ज्ञान की, सेवा सुमरन दान की जब रगड़ा लगाओगे तो मालिक ऐसे ही प्रगट हो जावेगा। यो साहब तन बीच है, खोज करो सतभाय।। यानी सच्ची कह रहा हूं सचमुच।
गरीब कौन कमल में काल है, कौन कमल में राम। कौन कमल में जीव है, कौन कमल विश्राम।।
उत्तर दिया है -
गरीब कंठ कमल और संहंस कमल में काल है, शंख कमल दल राम। हृदय कमल में जीव है, अष्ट कमल विश्राम।।
गरीब सुरति सिंहासन लाइये, सुरती सिंहासन लाइये, निर्भय धुनि अखंड। चित्रगुप्त पूछे नहीं, जम का मिट है दंड।।
पूरे गुरु से नाम लेकर सच्चे ढंग से भक्ति करो। और फिर यहां से जब चलोगे निर्भय हो जाओ। यह तुम्हारी धूनी है। जो धूंना लगते हैं लोग उस धूने की नहीं। निर्भय हो, पूरा विश्वास रखो, और फिर कहते हैं चित्रगुप्त पूछे नहीं। कबीर साहेब की शरण में आने के बाद धर्मराज भी लेखा नहीं लेता कबीर साहेब के भगत का।
गरीब तारक मंत्र चित धरो, सूक्ष्म मंत्र सार। अजपा जाप अनादि है, हंस उतर है पार।।
गरीब सत्पुरुष साहब धनी, है सो अकल अमान। पूर्ण ब्रह्म कबीर का, पाया हम अस्थान।।
की तारक मंत्र चित धरो। जो मोक्ष मंत्र पूर्ण गुरु देता है। उसको सच्चे दिल से विश्वास के साथ भक्ति करो। और सूक्ष्म मंत्र सारनाम फिर आपको मिलेगा। वह सार है। वह निष्कर्ष है आपको यहां से निकालने का। अजपा जाप अनादि है यही मंत्र, यही विधि भक्ति की सदा से है। पर यह बीच में भूल पड़ गई थी। हंस उतर है पार। इससे जीव सतलोक चला जाएगा।।
गरीब सत्पुरुष साहब धनी, है सो अकल अमान। गरीब सतपुरुष साहिब धनी, है सो अकल अमान।
अकल अमान का अर्थ है अविनाशी। और उस पूर्ण ब्रह्म कबीर का, पाया हम अस्थान।। उस मालिक का हमने सतलोक स्थान प्राप्त हो चुका है। बच्चों! चेतावनी के अंग से कुछ वाणी आपको सुनाता हूं। संत गरीब दास जी के अमर ग्रंथ से।
गरीब पानी की जल बूंद से, साज बनाया जीव। अंदर बहुत अंदेश था, बाहर बिसरिया पिव।।
गरीब ओंधें मुख जब रह था, तलै सिर ऊपर पांव। राखन हारे रखिया, जठरग्नि की लाव।।
गरीब अस्थी चाम रग रोम सब, किसने कीन्हा गूद। उदर बीच पोषण किया, बिन जननी के दूध।।
गरीब तू ही तू ही तुतकार थी, जपता अजपा जाप। बाहर आकर भरमिया, बहुत उठाए पाप।। गरीब तू ही तू ही तुतकार थी, जपता अजपा जाप। बाहर आकर भरमिया, बहुत उठाए पाप।।
तू ही तू ही तूतकार थी, रंरकार धुनि ध्यान। जिन यो साज बनाईया, जाकूं ले पहचान।।
गरीब दास जी बताते हैं की आपकी बॉडी आपका शरीर परमात्मा ने जल की बूंद से तैयार किया। और जब तु मां के गर्भ में ऊपर को पैर नीचे को सिर थे वहां तेरी रक्षा करी। विचार कर यह ऊपर जो हाड अस्थि हड्डियां, चाम, रग रग नर्वस नाड़ी, रोम बाल और यह किसने कीन्हा गूद। गूद मतलब मांस। बच्चों! उस परमात्मा की देखो कितनी गजब की यह संरचना है बॉडी आपकी प्रत्येक प्राणी की। इसमें हाथ देखो कितनी जगह से मुड़ते हैं। खोवों में देखो, कोहनी में देखो, हाथ का पोंहचा कैसे घूमता है ऐसे वैसे। और पांचो उंगलियां कैसे मुड़ती हैं। कैसे जोड़ लगाएं। हाड, मांस, चाम ऊपर इसके चाम लपेटा।
बच्चों! हम खाना खाने के बाद हमें नहीं पता अंदर क्या हो रहा है? उसके बाद तो मालिक का ऑटोमैटिक सिस्टम जो फिट कर रखा है शरीर में वह इतना जबरदस्त है जैसे फैक्ट्री शुरू हो जाती है जिसमें बहुत से पदार्थ बनते है। तो अंदर खाना खाके बाद हम तो अपना नाचते - कूदते फिरे। कोई गप्पे मारे। और मालिक की मशीनरी उसके ऑटोमेटिक सिस्टम बनाए हुए उसको हजम करते हैं। अलग-अलग उसका अंड़गा निकालते हैं। रक्त मांस हड्डी में। और सारा कुछ उससे तैयार करके शरीर को सक्षम करते हैं। यह सारा कुछ परमात्मा की ऑटोमेटिक शक्ति कर रही है। और उसको हम भूलकर सारा दिन फूले- फूले फिरैं। उसको भूले- भूले फिरैं। यह हमारी बहुत बड़ी गलती है। यह याद दिलाई जाती है सत्संग इसी का नाम है।
गरीब अस्थि चाम रग रोम सब, अस्थि अस्थि मतलब हड्डियां। चाम ऊपर या खाल। रग नाड़ी।
रोम यह रोम बाल शरीर के बाल। यह किसने कीन्हा गूद । गूद मतलब मांस। उदर बीच पोषण किया, बिन जननी के दूध।।
मां के पेट में आपका पोषण किया। बिना दूध के अब उस मालिक की रचना को ध्यान से देखोगे तो सारै भगवान दिखाई देगा आपको। आपका स्वांस भी उसी से आ रहा है। हम गफलत करते हैं अज्ञान के कारण भगवान को भूलकर बकवादो में घुसे रहते हैं। आप रात को सो जाते हो स्वांस कैसे चलता है? आप तो पता नहीं कहां घूमते हो स्वपनों में। उस मालिक ने जितना समय भर रखा हैं यह अपने आप चलेगा। । आपका काम है यहां से निकलना। सच्ची भक्ति करना। उसको आप छोड़ चुके हो। बाकी काम तो सारा परमात्मा कर रहा है।
गरीब तू ही तू ही तुतकार थी, जपता अजपा जाप। बाहर आकर भरमिया, बहुत उठाए पाप।।
मां के पेट में जब संकट के अंदर था ऊपर को पैर थे नीचे को सिर लटक रहा था। वहां मालिक को याद कर रहा था। क्योंकि मां के पेट में इसको सारी भूत भविष्य और वर्तमान की सारी याद रहती है। बहुत लोचता है, तड़पता है। अपने पिछले पापों को देखकर रोता है। और कहता है है यह प्राणी हे मालिक! अबकी बार निकाल इस नरक से। बस मालिक संतो को खोजूंगा। सच्ची भक्ति करूंगा। निर्वाह के लिए काम भी करूंगा पर तेरी भूल कभी नहीं करूंगा। और यह काल ऐसा दूष्ट है बाहर आते ही बिल्कुल भूल पड़ जाती है स्वप्न में भी नहीं कोई भगवान भी है कहीं ? या हम कहीं पहले भी थे या रहेगें या नहीं रहेंगे।
हमने कुछ और भी करना है। तो वह काम भी दाता करवाता है आकर सत्संग के माध्यम से, प्रेरणा कर करके आपको सत्संग भी वही उपलब्ध वही करवाता है। संत से भी वही मिलाता है कोई कारण बनाकर। काल ने तो आपको तेली के बैल की तरह जोत रखा है। तेली का बैल पहले कोहलू चला करते थे। उसमें एक लंबा मोटा डंडा उसको पाट कहा करते थे लकड़ की। लगभग एक 20 - 25 फीट लंबा और डेढ़ फुट मोटा।
एक लकड़ सा जैसे किसी पेड़ का पौधे का पूरा तना ही काट लाया करते थे। उसकी पाट बनाया करते थे। वह कोहलू घूमाने के लिए एक बैल जोता जाता था। गन्ना पीड़ने के लिए तो दो बैल जोतते है। तेली वाले कोहलू में एक ही बैल जोता जाता था। तो वह तेली वाला बैल उसमें जोत कर कोहलू में और उसका रस्सा बांध दिया जाता था उस पाट के वह बाहर नहीं जा सकता था। ना अंदर आ सकता था। उसको ऐसे जकड़ दिया जाता था। वह उस चक्कर में घूमा करता। उस चक्कर के चारो तरफ। अब वह उससे बाहर नहीं निकल सकता था।
तो बच्चों! गरीब तू ही तू ही तुतकार थी, जपता अजपा जाप। बाहर आकर भरमिया, बहुत उठाए पाप।। अब मां के पेट में तो तू याद करता था उस परम पिता को। और बाहर आते ही भूल गए। अभी आपको संत की शरण में और सत्संग में भी मालिक लाते हैं खुद।
गरीब दास जी कहते हैं कबीर साहब ने बताया, कि
जो जन मेरी शरण है, ताका हूं मैं दास। और गैल - गैल लाग्या फिरूं, जब तक धरती आकाश।।
तो बच्चों! आज आपको शरण में लिया है दाता ने आपका कोई उद्देश्य नहीं था। आपका यह कोई इसमें इंटरेस्ट नहीं था, की ऐसी भी कोई भक्ति है ? और ऐसा भी कोई ज्ञान है ? और भगवान ऐसा है ? यह सारा काम दाता ने किया है आपके लिए। तो उस मालिक को छोड़कर हम और सांसारिक व्यक्तियों को, सांसारिक नातों को महत्व देते हैं वह हमारी भूल है। यह नहीं कहा जाता कि सांसारिक नाते मत निभाओ। या किसी को ठीक से व्यवहार ना करो भगत वह होता है सबसे एक नंबर का व्यवहार करें। और सबको मालिक के बच्चे माने। संसारिक जो संस्कार जहां हम निभा सकते हैं जो निभाते है उनको जरूर निभावै। रिश्तेदारी है चाचे, ताऊ है, मामा, बुआ, फुफे हैं सबको प्यार दो सम्मान दो। और नहीं तो फिर आपका अंतःकरण खराब हो जाएगा। किसी में राग द्वेष किसी को छोटा- बड़ा समझोगे तो।
तो बच्चों! यह सारा कुछ काम परमात्मा ने किया है। और जितनी भी यह लीलाएं हम सुना करते थे अब आपको धीरे-धीरे बिल्कुल विश्वास हो जायेगा, कि परमात्मा के बिना कबीर साहेब के बगैर किसी पर क- ख नहीं हुआ। जैसे समुद्र पर पुल बनाया तो दाता ने। और बच्चों! बहुत सी लीला हैं आपको क्लियर भी कर दी हैं। जगन्नाथ का मंदिर बनवाया तो दाता ने। काम तो सारे उसने किये कभी गुप्त, कभी प्रगट होकर। इसलिए आप उसको छोड़कर आन उपासना में लगे हुए थे। उससे हमें कोई हासिल नहीं हुआ ? कोई लाभ नहीं हुआ । अब आपको भगवान का सच्चा मार्ग और सच्ची भक्ति और परमात्मा की पहचान हुई।
गरीब तू ही तू ही तुतकार थी, रंरकार धुनि ध्यान। जिन यो साज बनाईया, जाकूं ले पहचान।।
कि उसकी पहचान कर। यह भगवान है वास्तव में कौन? हम दो ईंट लगा दी उसको भगवान मान लिया।
भैरव भूतों को भगवान मान लिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश को भगवान मान लिया। जगत का पेखना पेखा। धनी का नाम ना लेखा।।
बच्चों! गरीब इस माटी के महल में, मगन भया क्यों मूढ। कर साहब की बंदगी, उस साईं को ढूंढ।।
कि इस मिट्टी के महल में, इस मनुष्य शरीर के अंदर तु क्यों मगन हुआ फिर रहा है मूर्ख ? यह शरीर छूटते ही मिट्टी का ढेर है ये।
गरीब ओजूद ओंधे मुख जपै था, ररंकार धुनि धीर। जा तालिब को याद कर, जिन यो घड़ा शरीर।।
गरीब ओजूद ओंधे मुख जपै था, जूनी जिंद जहान। बाहर मूल गवाईया, पूजत है पाषाण।।
कि माँ के पेट में तो तू भगवान- भगवान कर रहा था। दूसरा था नहीं ? बाहर आकर भ्रम गया भ्रमित गुरुओं से दीक्षा ली। अब पत्थर पूजता फिरता है भगवान छोड़ दिया।
गरीब जठरग्नी से राखिया, ना साईं गुण भूल। वो साहब दरहाल है, क्यों बोवत है शूल।।
जिस मालिक ने ऐसे संकट में मां के पेट में तेरी रक्षा करी आज भी वह हाजिर है। और यह गलत साधना करके और पाप इकट्ठे करके क्यों कांटे बोने लग रहा है अपने भविष्य में।
गरीब आध घड़ी की आध घड़ी,आध घड़ी की आध। संतो सेती गोष्टी, जो कीजै सो लाभ।।
कहते हैं किसी भगत संत से 10 मिनट भी बात कर ली ना 10 मिनट आधी घड़ी की आधी घड़ी, आधी की पुन आध। 24 मिनट की एक घड़ी होती है। आधा 12 , 12 का आधा 6 यानी 5- 7 मिनट भी संत से पूर्ण संत से थोड़ी बहुत चर्चा हो गई तो आत्मा में गढ जागी वह बात। क्योंकी पूर्ण संत की तत्वज्ञान वाली बातें आत्मा को तुरंत पकड़ जाती है। खैंच लेती है ऐसे चुंबक की तरह।
गरीब आध घड़ी की आध घड़ी, आध घड़ी की आध। साधो सेती गोष्टी, जो कीजै सो लाभ।।
गरीब पाव घड़ी तो याद कर, निमा नाश ना खो। सतगुरु हेला देत है, विषय शूल ना बो।
गरीब अलह अलख कूं याद कर, कादर कूं कुर्बान। साईं सेती तोड़कर, अब राता कहां जिहान।।
की हे नालायक!
परमात्मा को छोड़कर अब किसमें आस्था बना ली तूने।
गरीब सूवे संबल सेईया, ऐसी नर या देह। जम किंकर तुझे ले जाएंगे, मुख में देकर खेह।।
की आपने इस संसार को, अपने परिवार को और इस शरीर को जो सब कुछ मान लिया तेरी ऐसी भूल है अंत समय तुझे ऐसा पछताना पड़ेगा भक्ति ना करके। भक्ति करो फिर सारा कुछ करो। शरीर भी संभाल कर रखो। बच्चों से भी प्यार करो। अच्छा खिलाओ पिलाओ पढ़ाओ प्यार दो इनको। लेकिन इसी काम लगा रहा और भक्ति नहीं करी तो अंत में जूते पड़ेंगे। जैसे तोता एक संबल के पेड़ पर आस लगाकर बैठ जाता है यह बड़ा होगा इसके फल लगेंगे। और खाया करूंगा। वह धीरे-धीरे बड़ा होता है 5-7-10 साल में।
उसके डोडे लगते हैं गजब के बहुत सुंदर फल नजर आते हैं। पर फल उसमें खाद्य पदार्थ नहीं होता उसमें रूई भरी होती है। और तोता उसपे चोंच मारता है खाने के लिए। उसकी चोंच में रूई फंस जाती है। फिर रोता है ओहो! यह तो फल नहीं था मेरे साथ धोखा हो गया। तो इसी प्रकार यह संसार और यह शरीर तेरा, आपका परिवार भक्ति नहीं करेगा अंत में तुझे कुछ नहीं मिलेगा ऐसे रोता हुआ जायेगा।
गरीब सुवे संबल सेया, ऐसी नर यह देह। जम किंकर तुझे ले जाएंगे, मुख में देकर खेह।।
अंत समय में तेरे को यम के दूत पड़कर घसीट कर ले जाएंगे।
गरीब आदि समय चेता नहीं ,अंत समय अधिकार। मध्य समय माया रता, पकड़ लिया गंवार।।
बालकपन में जवानी तक तो विशेष ज्ञान होता नहीं। और बीच के समय में जवानी में केवल माया जोड़ने के एक फिराग लगा हुआ था। अंत समय में तु फिर भक्ति करने लगेगा नहीं शरीर काम करें। नहीं दिमाग काम करे। और हे गंवार! अब यम के दूत घसीट ले गए तुझे।
बच्चों! इस काल ने आपके साथ इतना जबरदस्त धोखा कर रखा है आप सोच भी नहीं सकते। आपके तो सात जन्म के लाख जन्म भी समझ में नहीं आवै यह बात व्यवस्था है कैसी काल की ? जबरदस्त है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश के समझ में नहीं आई आपके कैसे आवेगी ? आपके अब आवेगी यह।
अब परमात्मा का निर्धारित समय है वह ठीक का समय आ चुका है। इसमें सब काम को एक सेकंड नंबर पर। और दाता वाले काम को सत्संग सुनो, भक्ति करो एक नंबर पर लाओ। और फिर देखो फिर देखना आपके घर में सुख, आपके घर में बरकत, सांसारिक सुख औरों से अलग देगा भगवान। आपको वह मोक्ष देगा जो ब्रह्मा, विष्णु, महेश को भी प्राप्त नहीं है। दास जो बात कह रहा है यह कोई डूमभाट के गीत नहीं है। यह परमात्मा कबीर जी द्वारा बताई बातें और उनके प्रत्यक्ष दृष्टा आई विटनेस संतों की बताई बातें हैं। आप बालक हो, काल प्रेरित हो।
आपके ऊपर काल का जबरदस्त प्रभाव है। आप इस पर इतना विश्वास जितना जैसे हम चाहते हैं अभी नहीं कर पा रहे हो। पर लगे रहो। इस ज्ञान को सुनते रहो। अपने आप आत्मा एक दिन इतनी दृढ़ हो जाएगी कि जो यह ज्ञान है यह सत और बाकी सब व्यर्थ है। जैसे आपको दास बताता रहता है। स्कूल में बच्चे जाते हैं अध्यापकों उनको डेल्ली पढ़ाता है। और सतर्क सावधान करता है ध्यान से सुनो। बैठो लाइन में। इधर क्यों देख रहे हो। तो वह सतर्क हो जाते हैं। फिर उनको शिक्षा देता है। और वह सारा साल सुनते-सुनते 15 - 16 साल सुनते हैं। और फिर वह परफेक्ट हो जाते हैं। उस क्लास के लेक्चर के बाद शिक्षा के गुरु जी से यानी शिक्षक से ज्ञान सुनने के बाद और काम सारे करते हैं बच्चे हैं। खेल- कूद भी मचाते हैं। खेत घर का काम भी मां-बाप के साथ हाथ बंटाते हैं बेटा- बेटी सारे ही। लेकिन जो शिक्षक से सुन कर आए थे वह भूला नहीं जाता। वह अलग छाप रखता है। इसी प्रकार आप इस सत्संग को और इस ज्ञान को परमात्मा की मर्यादा का ध्यान रखते हुए चलते रहियो। ऐसा गजब का हृदय में समा जाएगा यह। और आपने सब कुछ यही दिखाई देगा। और सब आपको बिल्कुल नकली दिखेगा बिल्कुल नकली। जबरदस्त धोखा।
दृष्टि पड़े सो धोखा रे, खंड पिंड ब्रह्मांड चलेंगे थिर नहीं रहसी लोका रे।। थिर नहीं रहसी लोका रे।।
गरीब दास जी आंखों में आंसू भरकर यह वाणी लिखवाया करते। जैसे लाखों लोग सुन रहे हो उनके विचार। उनको पता था एक दिन आयेगा उस परमात्मा के बच्चे लाखों भी सुनेंगे। महापुरुषों का कोई भी प्रयत्न निसप्रयोजन नहीं होता। 300 साल पहले कोई जानता भी नहीं था इस भक्ति को। और इस ग्रंथ को तो कोई पसंद भी नहीं करता था। अनपढ़ की वाणी बताते थे। उनको पता था, उनको मालूम था एक दिन आएगा उस परमात्मा के बच्चों में सुनाया जायेगा।
उनकी आंखें खुलेंगी वह रोएंगे, तरसेंगे उस मालिक को। की यह सब कुछ धोखा है। पहले तो यह शरीर धोखा। मृत्यु के बाद यह दो मुट्ठी राख बन जाएगी। क्या धोखा नहीं है? और यह कितना अच्छा, कितना प्रिय लगता है। प्रिय इसलिए लगना चाहिए कि इससे भक्ति करें। बस। नथिंग एल्स। बाकी काम तो करना ही पड़ेगा पेट नहीं भरेगा तो काम कैसे चलेगा। गुजारा भी करना है निर्वाह भी करना है। लेकिन इस मालिक को भूलना नहीं।
दृष्टि पड़े सो धोखा रे, खंड पिंड ब्रह्मांड चलेंगे, थिर नहीं रहसी लोका रे।।
स्थिर - स्थाई।
यहां नहीं रहेगा स्थाई सारे नष्ट होंगे ब्रह्मांड भी। 21 ब्रह्मांड में आग लगेगी एक दिन।
थिर नहीं रहसी लोका रे।
कि समझ जाओ आंख खोल लो।
बच्चों! क्यों बिरानमाटी करवा रहे हो। मालिक की शरण में पड़ जाओ। बिल्कुल नाक रगड़ो दिन - रात ऐसी तड़प बनाओ।
दृष्टि पड़े सो धोखा रे।
यह खंड पिंड, पिंड शरीर।
खंड पिंड ब्रह्मांड चलेंगे, थिर नहीं रहसी लोका रे।। थिर नहीं रहसी लोका रे।।
रजगुण ब्रह्मा, तमगुण शंकर, सतगुण विष्णु कहावै रे। चौथे पद का भेद न्यारा, बिरला साधु पावे रे।।
मार्कंडेय पुराण में स्पष्ट किया है, कि इस काल की ब्रह्म की तीन प्रधान शक्तियां है। रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिवजी यही सारी व्यवस्था कर रहे हैं।
यही तीन गुण है, यही तीन देवता है। और बच्चों! इस सूक्ष्म वेद में गरीब दास जी ने पहले ही क्लियर कर रखा है।
रजगुण ब्रह्मा, तमगुण शंकर, सतगुण विष्णु कहावै रे। चौथे पद का भेद न्यारा, कोई बिरला साधु पावे रे।।
चौथा इनका पिता। इनको भी नहीं पता अपने पिता का आज तक ? असमंझस में है यह। यह दुर्गा सच्ची नहीं बताती इनको काल के डर से। और पांचवा कौन है ? सत्पुरुष। कबीर साहेब कहते हैं चोथे को भी छोड़ पांचवे को ध्यावे। उसका सुमिरन करें। कह कबीर सो हम पर आवे।।
ऋग यजू है साम अथर्वन, यह चारों वेद चितभंगी रे। सुक्ष्म वेद बांच्चे साहब का, सो हंसा सत्संगी रे।।
देखो गरीब दास जी अकेले बैठकर गा रहे थे। और उसकी दृष्टि में लाखों करोड़ों लोगों की चिंता थी। की यह चारों वेद आपको धोखा दे रहे हैं। गरीब दास जी कहते है चार वेद और पुराण 18 यह एक उजड़ झेरा है। उजड़ झेरा कूंआ होता था जो किसी काम का नही। जिसमें पानी खत्म हो जाता था। बहुत गहरे होते थे कूएं। वह फट जाता था नीचे से। उसमें कोई गिर जावे तो नहीं मरै, नहीं जीवै। नहीं ऊपर आवाज आवे कहीं साइड में फिसल जाते थे। कहते है यह चारों वेद और पुराण 18 यह एक उजड़ झेरा है। यह तुम्हें यहां फंसाकर रखने का है। यह चारों वेद चित भंगी रे, इनमें भ्रमित ज्ञान है।
सूक्ष्म वेद बांच्चे साहेब का, सो हंसा सत्संगी रे।।
बच्चों! आप सूक्ष्म वेद पढ़ रहे हो सूक्ष्म वेद परमात्मा का। आप अपनी किस्मत सरहाओ। सत्संगी का अर्थ होता है जो सच्चे ज्ञान का साथ करता है। जिसको सच्चा अध्यात्म ज्ञान प्राप्त है।
ऋग यजू है साम अथर्वन, चारों वेद चितभंगी रे। सूक्ष्म वेद बांच्चे साहेब का, सो हंसा सत्संगी रे।।
यानी उसके पास सच्चा ज्ञान है, सच्चा अध्यात्म ज्ञान है जो सूक्ष्म वेद को पढ़ता सुनता है पूरे गुरु से।
गुरु बिन काहू नहीं पाया ज्ञाना। ज्यों थोथा भुस छड़े किसाना।। गुरु बिन वेद पढ़े जो प्राणी। समझे ना सार रहे अज्ञानी।।
यह सूक्ष्म वेद है जो दास पढ़ कर सुना रहा है। और वह दूसरे वेद हैं। तो नहीं तो यह समझ में आया किसी के सूक्ष्म वेद ? परमात्मा ने तो दिया ही था मेरे गुरुदेव को, संत गरीब दास जी को। इनके अतिरिक्त यह किसी के समझ में नहीं आया।
गुरु बिन वेद पढ़े जो प्राणी। समझे ना सार रहे अज्ञानी।।
तो आज आप पर जो कृपा हुई है बच्चों यह छोटी नहीं है। आप याद रखो यह सारा धोखा है। आपको कितना प्यारा लगे शरीर और फिर बालक और फिर यह संसार संपत्ति 1 मिनट में हवा निकल जा क्या खाक है यह ? ठीक है यह सब कुछ तेरा है मालिक की भक्ति करता रहे। फिर इसको कोई जोखिम नहीं। जीवै इतने निर्भय जीवै, मरै जब निशंक मरै।।
गरीब दास जी कहते भगवान की शरण में फिर कोई समस्या नहीं आएगी।
अलंकार अघ है अनुरागी, दृष्टि मुष्टि नहीं आवै रे। अकह लोक का भेद ना जाने, चार वेद क्या गावै रे।।
इन चारों वेदों में अधूरा ज्ञान है इसमें अकह लोक यह ऊपर के जो कभी वर्णित नहीं किए गए, किसी के द्वारा बताएं नहीं गए, कहे नहीं गए वह सारे भी अकह लोक हैं। सतलोक से लेकर अनामी लोक तक। और फिर वहां अकह लोक वह अनामी लोक भी अकह लोक कहलाता है। तो कहने का भाव यह है कि इनमे ऊपर के लोकों का विस्तृत ज्ञान नहीं है तो इनको पढ़ने वाला क्या बताएगा खाक ? इसमे केवल ओम का जाप है। दूसरा भक्ति नहीं। और सूक्ष्म वेद में अलग- अलग मंत्र सारे लिख रखे हैं।
आवै जावै सो हंसा कहिये, परमहंस नहीं आया रे। पांच तत्व तीन गुण तुरा, या तो कहिये माया रे।।
माया का एक अर्थ धोखा भी होता है जंजाल।
सुन मंडल सुखसागर दरिया, परमहंस परवाना रे। सतगुरु महली भेद लखाया, है सतलोक निदाना रे।।
वह सतलोक सर्व सुखदाई। वहां ना कोई रोग है ना शोग है। शोग मतलब टेंशन किसी प्रकार की। वहां नहीं फिर जन्म है, नहीं मृत्यु है। नहीं किसी चीज का अभाव। बच्चों! याद रखो इसमें तो तुम रह ही नहीं सकते गारंटीड बात है। जब आपको यह क्लियर हो रहा है, कि यहां तो हम रहेंगे नहीं। मरेंगे जरूर। कब मरेंगे ? No knowledge. उसका भी नहीं पता कब मर जायेंगे ? तो इस गंदे लोक में खाक आस लगाए बैठे हो । ठीक है जब तक रहो मालिक के चरणों में रहो। अपना यह सपना भी ठीक चलेगा आपका। कोई दिक्कत नहीं आने देंगे। नहीं परिवार में, नहीं शरीर में। नहीं कारोबार में Note कर लो। लेकिन भगवान की भूल पड़ गई, कर दी उसी दिन चोट खाओगे। इसकी तरफ ज्यादा कुर्बान होना पड़ेगा। यह सारा कुछ कहने का यह भाव है।
अगमदीप अमरापुर कहिये
देख क्या बताते हैं फिर लास्ट में गरीब दास जी जैसे वह सबको सुना रहे थे ऐसे।
अगमदीप अमरापुर कहिये, जहां हिलमिल हंसा खेलै रे। दास गरीब देश है दुर्लभ, साच्चा सतगुरु बेलै रे।। दास गरीब देश है दुर्लभ, साच्चा सतगुरु बेलै रे।।
अगमदीप सबसे आगे का सबसे आगे वाला द्वीप लोक अमरापुर कहिये वह अमरलोक कहलाता है। जहां हिलमिल हंसा खेले रे। जहां पूरी मौज मस्ती में भगत रहते हैं स्त्री - पुरुष। यहीं सृष्टि। यह नकल है उसकी, बिल्कुल नकल डुप्लीकेट। हमें मूर्ख बनाए रखने के लिए और बिल्कुल मूर्ख बना रखा है आपको। यह आपको आज समझ में आ जावे, या 10 दिन पीछे आवेगी यह लेक्चर सुनते रहना। और एक और बताने लग रहे है साथ की साथ - की आपका घर भी और आपका परिवार भी, आपके बच्चे भी और आप भी इस मालिक की शरण में बिल्कुल सुरक्षित रहोगे आखरी स्वांस तक। और दूसरी जगह तो कर्म का दंड कभी भी दुख दे जायेगा। यहां नहीं देगा। पर यहां कुर्बान हो जाओ उस दाता की तरफ ज्यादा तड़प जाओ। भूल ना किया याद करो। दिन में भी कई कई बार याद करो दाता। काम भी करो। काम तो हाथ शाररिक करते हो। लेकिन आत्मा में कसक एक अलग होती है।
जैसे ज्यों पतिव्रता पीहर में बसे। और अपनी सूरत प्रीतम माहीं।
अपने पति के अंदर वहां से भी ध्यान रखती है किसी को बताती नहीं। मां - बाप को भी प्रकट नही करती की मैं किसी को याद करती हुं। और वह सच्ची लगन होती है वह। ऐसी लगन उस मालिक प्रिय में अपने पति में बनाओ। आत्मा का पति एक ही है बस। तो ऐसी कसक बनी रहेगी ना इस ज्ञान से बन जाएगी। स्वयं ही बनेगी यह वश की बात नहीं। नहीं चाहते हुए भी बनी रहेगी फिर तो। अपने आप रह- रह कर आपकी इधर उमंग होगी। इस ज्ञान से होगी वैसे नहीं हो सकती। अब यह ज्ञान पहले तो आपको डिटेल बताई गई थी अब यह ज्ञान आपके हृदय के अंदर जमे उस अड़ंगे को फोड़ देगा। ऐसी चोट लगेगी आप बिल्कुल जग जाओगे। भगवान की शरण में लग जाओगे।
अगमदीप अमरापुर कहिये। हमें बताते हैं भाई एक ऊपर अमरलोक है सतलोक मैं देखकर आया हूं। जहां हिलमिल हंसा खेलै रे।
जहां बिल्कुल सुख ही सुख है। दुख नाम की चीज नहीं। और यहां सुख नाम की चीज नहीं। स्वपन में भी बिरानमाटी रहती है आपकी।
दास गरीब देश है दुर्लभ, साच्चा सतगुरु बेलै रे। दास गरीब देश है दुर्लभ, साच्चा सतगुरु बेलै रे।।
वह देश बहुत दुर्लभ है लेकिन सच्चे सतगुरु से बिल्कुल सुलभ है। बिल्कुल सुलभ। एक पलक में भक्ति करते रहो, सिमरन करते रहो, मर्यादा में रहो। बकवाद मत करो। आपको पता भी नहीं चलेगा मृत्यु कब हो गई ? मृत्यु का दुख भी नहीं महसूस होगा। अच्छी व्यवस्था में जब तुम चाहोगे स्वयं ही आत्मा मान जाएगी भगवान बेशक चलेंगे अपने लोक में। जहां आशा, तहां वासा होई। मन कर्म वचन सुमरियों सोई।।
तो बच्चों! आपको सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त, सूक्ष्म वेद प्राप्त, पूरा सतगुरु प्राप्त। धन्य है आपके माता-पिता जिससे जन्म हुआ। परमात्मा की तरफ तड़प जाओ। मालिक आपको सद्बुद्धि दे। आपको याद रहे उस परम पिता के घर की। और इस काल के दुख की। आपको मोक्ष दे दाता।।
सत साहिब।।