विशेष संदेश भाग 18: परमेश्वर कबीर जी के चमत्कार


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सत साहिब।

बंदी छोड़ कबीर साहेब की जय।

बंदी छोड़ गरीब दास जी महाराज की जय।

स्वामी रामदेवानंद जी गुरु महाराज की जय हो।

बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज की जय हो।

सर्व संतों की जय।

सर्व भक्तों की जय।

धर्मी पुरुषों की जय।

श्री काशी धाम की जय।

श्री छुड़ानी धाम की जय।

श्री करौंथा धाम की जय।

श्री बरवाला धाम की जय।

सत साहिब।।

गरीब नमों नमों सत्पुरुष कुं, नमस्कार गुरु कीन्हीं। सुरनर मुनिजन साधवां, संतों सर्वस दीन्हीं।। सतगुरु साहिब संत सब, दंडवत्तम प्रणाम। आगे पीछे मध्य हुए, तिंकू जां कुर्बान।।

कबीर सतगुरु के उपदेश का, सुनियां एक विचार। जै सतगुरु मिलते नहीं, जाते नरक द्वार।। नरक द्वार में दूत सब, करते खैंचातान। उनसे कभी नहीं छूटता, फिरता चारों खान।। कबीर चार खानी में भ्रमता, कबहूं ना लगता पार। सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।।

जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से बसियो, अमरपुरी के डेरे की।। जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहबी सुख से बसियो, सतलोक के डेरे की।।

निर्विकार निर्भय तू ही, और सकल भयमान। ऐजी साधो और सकल भयमान। सब पर तेरी साहिबी। सब पर तेरी साहबी, तुझ पर साहब ना।। निर्विकार निर्भय।।

परमपिता परमात्मा कबीर जी की असीम कृपा से बच्चों! आज हमारे अंदर अपने घर जाने की प्रबल प्रेरणा हुई है। बच्चों कोई भी काम है उसकी विशेष जानकारी होने के बाद उसमें रुचि बनती है तो इसी प्रकार अब हमें पता चला है कि इस लोक में हम गलत स्थान पर रह रहे हैं और आपको यह भी याद दिलाया जाता है, की यह शरीर नहीं रहेंगे। जिस परिवार को देखकर हम खूब खुश हैं और होना भी चाहिए पर यह साथ कितने दिन का है? यह तो कभी ध्यान देते ही नहीं। इसके ध्यान ना देने से हम जन्म और मरण के इस महान कष्ट को भोग रहे हैं। इस महान कष्ट को झेल रहे हैं। अभी तक कोई इस तरह सच्चाई कहने वाला नहीं था जैसे कोई यह कह देता ना भाई ऐसे-ऐसे हो सकता है मृत्यु हो जाएगी। तो ऐसे कहा करते कई तो भई यह बात ना बोले मृत्यु हो जाएगी। अच्छी बात बता।

यानी यह कहना बुरी बात मानते थे कि ऐसे मत कह मौत भी हो जाएगी कभी। संसार भी छोड़ना पड़ेगा। यानी इस सच्चाई को avoid (अवाईड) करने की चेष्टा करते थे। तो बच्चों कबूतर क्या करता है, जब बिल्ली निकट आ जाती है वह डर जाता है। उड़ने की बजाए आंखें बंद कर लेता है और सोच लेता है खतरा टल गया और वह उसकी गर्दन मरोड़ कर खा जाती है। अब आंखें बंद करे काम नहीं चलेगा यह तो खोलनी पड़ेंगी। हिम्मत करनी पड़ेगी। यहां से उड़ना पड़ेगा, काल से बचना पड़ेगा। पहले जैसे 12 कबीर पंथ चले हैं उससे पहले यह हिंदू समाज, हिंदू धर्म, उसके बाद यह यहुदी धर्म, ईसाई धर्म, फिर मुसलमान धर्म, जैन धर्म और यह 12 पंथ इनमें ज्ञान तो बताया जाता था की भक्ति कर लो। नहीं तो 84 लाख योनियों में जाना पड़ेगा। पशु-पक्षी बनना पड़ेगा और आत्मा डरती भी थी। भक्ति के लिए प्रेरित भी होती थी। लेकिन वह भक्ति शास्त्र विरुद्ध थी। शास्त्र में प्रमाणित नहीं थी और वह ज्ञान भी शास्त्र प्रमाणित नहीं था।

श्रीमद् भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में स्पष्ट किया है, की शास्त्र विधि को त्याग कर जो अपनी मर्ज़ी से मनमाना आचरण करते हैं अपनी इच्छा से, उनको न तो सुख होता है। न कोई सिद्धि प्राप्त होती है और न ही उनकी गति होती है। या तो यह कहो कि गीता गलत और यह झूठे गुरु सच्चे। इनमें से एक को रिजेक्ट करना पड़ेगा। लेकिन गीता को कोई रिजैक्ट कर नहीं सकेगा। आखिर में इन झूठे गुरुओं को त्यागना पड़ेगा।

बच्चों! परमात्मा के पाने के लिए उस सुख को प्राप्त करने के लिए कितने-कितने कष्ट झेले हैं महापुरुषों ने। हमने भी उठाए हैं, हम ऋषि बने, ऋषि बनकर कठिन साधनाएं कीं। जैसा लोकवेद, दंतकथाएं सुना करते थे उसके आधार पर सिद्धियां आ गईं। सिद्धियां दिखाकर फिर प्रसिद्धि हो गई। उस प्रसिद्धि के ऊपर हम प्रसिद्ध हो गए और खूब महर्षि प्रसिद्ध हो गए। अब पता चला वह प्रसिद्धि कैसी थी? जैसे आपको राबिया का प्रमाण बताया। 4 साल की ठीक साधना से ऐसे-ऐसे चमत्कार भी हो गए मक्का उठकर आ गया। लेकिन भविष्य ज़ीरो हो गया उसका। सिर भी काट दिया इतनी प्रेरित थी भगवान के प्रति। लेकिन Nothing. कुछ नहीं हुआ। काम तो अब बनेगा जै (जब) बनवाया जावे।

गरीब यह जीवन सत सफल है, जब लग राम रटंत। देह खोरी को जाने दे, भ्रम पड़े हैं पंथ।।

इस मनुष्य जन्म की सफलता उसी की है जो परमात्मा का भजन करते हैं। अन्यथा इसका कोई यूज़ नहीं। पशु-पक्षी का भी ऐसा ही जीवन है ऐसे ही कर्म वह करते हैं। खाना पीना, टट्टी जाना, बच्चे उत्पन्न करना, बच्चों के लिए फिर सारा दिन भटक कर उनका पोषण करना, फिर मर जाना। यह कोई जीवन है? इस ज्ञान से आपके अंदर जो गलत प्रेरणा भरी हुई है वह काल द्वारा भरी गई है। बहुत प्रबल है वो। सामान्य नहीं है। अब जैसे किसी को बुखार हो जाता है तो उसके बस की बात नहीं, वह नॉर्मल हो जाए।

तो बच्चों! अब के लगन लगानी पड़ेगी। जैसे बुखार हो जाता है उसके वश की बात नहीं की वह ठीक ठाक रहे, अपना ठीक क्रिया करे। तो उसके लिए ओषधि की आवश्यकता पड़ती है और जब नॉर्मल हो जाएगा फिर सारे काम ठीक करेगा। इसी प्रकार यह आपके बस की बात नहीं है जो आप इस व्यवस्था में लग रहे हो। यह इस ज्ञान से, इस भक्ति से, आपका यह अज्ञान हटेगा। यह जिससे प्रभावित हो बुखार हटेगा। फिर आपकी लगन अजब से बनेगी, अलग से बनेगी। अगर यह भाव नहीं बना, तो क्या यह जीवन अच्छा है जो आप जी रहे हो?

कोटी जन्म तने भरमत हो गए, कुछ नहीं हाथ लगा रे।।

कूकर- कुत्ता, सूकर- सूअर, खर- गधा, कौवा- बुगला बताओ इन प्राणियों के शरीरों में असंखों बार कष्ट उठा लिया आपने, बहुत असंखों बार, एक बार नहीं। तो क्या इस प्रोसीजर को जारी रखोगे? मेरी आत्मा तो मान नहीं रही, की आप इसको स्वीकार कर लोगे और अब भी आपकी आँख नहीं खुलेंगी और आपकी प्रेरणा नहीं बनेगी तो फिर इंसान नहीं, पत्थर हो तुम, पत्थर।

कोटि वर्ष करें संगत संतों की, पत्थर का जल में क्या भीजै। चंदन वन में रंग ला दे, एक बांस बिटबिं ना सीझै।।

पत्थर को जल में डाल दें। कितने ही गहरे जल में डाल दे और कितने ही दिन डालें रखें उस पर कोई असर जल का नहीं होता। नहीं जल, से तो नरम होता है पदार्थ। बाहर निकालते ही उसको घिसा दे दूसरे पत्थर से ज्यों का त्यों चिंगारी निकलेगी। तो पत्थर जैसे प्राणियों को किसी चीज का असर नहीं होता। यह अमृतवाणी उन पुण्य आत्माओं को झंझोंड़कर रख देंगी जिनकी आंखें काल ने अज्ञान से बंद कर रखी हैं। उस परमपिता के घर जाने के लिए, उस सुख को प्राप्त करने के लिए;

गरीब दास जी बताते हैं कि:

 मंसूर महसूर क्यों हो गया, शरीर फांसी प्रवेश। और जाकै ऊपर ऐती नौबत बीती, कैसा है वो देश।।

उस परमात्मा के सुख को, सतलोक को प्राप्ति के लिए, उसकी प्राप्ति के लिए टुकड़े-टुकड़े शरीर करवा लिया मंशूर अली जी ने। पीछे नहीं हटा। तो  गरीब दास जी कहते हैं; वह सुख कितना होगा जिसके लिए शरीर भी खत्म कर दिया No Problem (कोई दिक्कत नहीं) और यह शरीर तो आपका रहेगा नहीं गारंटीड है इसलिए बार-बार याद दिलाता हूं, कि हमारे ऊपर नशा ज़बरदस्त कर रखा है काल ने। यह आपके वश की बात नहीं। ये तो यह एंटीबायोटिक आपको प्रेरित रखेंगे। आप भक्ति भी करोगे बुराईयों से भी बचोगे और अपने घर जाने की प्रबल इच्छा बने।

जहां आशा तहां वासा होई। मन कर्म वचन  सुमारियो सोई।।

गरीब,नरसिंह रूप सतगुरु धरा, प्रह्लाद भगत के काज। हिरणाकुश को ले गया, ज्यों तीतर को बाज।।

परमात्मा कबीर जी ने ही नरसिंह रूप धारण किया। यह सारा श्रेय अभी तक श्री विष्णु जी ऊर्फ श्री कृष्ण जी को दिया जा रहा था। जो भी है परमात्मा चाहते हैं की किसी तरह इनकी भक्ति में आस्था बनी रहे। यह किसी को मानकर भक्ति कर रहे हैं करते रहो, उससे मिलना कुछ नहीं। पर पिछले संस्कार से मालिक उनकी मदद स्वयं करते हैं।

गरीब नामा का देवल फेरा, मूई जिवाई गाय। पीड़ा मेटी संत की, छान छवाई आए।।

कबीर साहब कहते हैं,

जो जन मेरी शरण है, ताका हूं मैं दास।।

दास मतलब नौकर गुलाम और

गैल- गैल लागा फिरूं, जब तक धरती आकाश।।

नामदेव नाम के महापुरुष पिछले संस्कारी थे। परमात्मा कबीर जी कहीं भी आश्रम बनाकर कुछ समय के लिए रह जाते हैं। एक गुरु की भूमिका करते हैं, अपने बच्चों को, वहां आसपास के क्षेत्र के बच्चों को ज्ञान सुनाते हैं। कोयल के बच्चे ज्ञान को सुनकर, आवाज़ को सुनकर उनकी तरफ खींचे आते हैं। काग वाले रह जाते हैं। तो उस समय रंका और बंका दोनों पति-पत्नी थे। एक उनकी बेटी थी वंका।

नामदेव भी उसी समय परमात्मा कबीर जी के शिष्य हुए थे, जब वहां संत रूप में लीला कर रहे थे। हम ज्ञान सुन लेते हैं। सारी बात करते हैं पर अपनी जो पूर्व प्रेरणा है पिछले जन्म के संस्कारों से भी हम बाज़ नहीं आते। अब नामदेव जी जा रहे थे, एक मंदिर में आरती हो रही थी। ब्राह्मण लोग आरती कर रहे थे और उसके ऐसी धुन चढ़ी, की वह भी मंदिर में पहुंच गया। हाथ में जूते निकाल लिए अपने जैसे यह बजाते हैं ताल। उस तरह बजाने लग गया। घंटी बजाते हैं और बजाता-बजाता आरती में मग्न होकर उनके ब्राह्मणों के बीच में पहुंच गया यानी पत्थर की मूर्ति के सामने पहुंचना चाहा। पंडितों ने पकड़ कर उसको मंदिर के पीछे फेंक दिया की यह शूद्र छोटी जाति का, समेत जूतों के आ गया। हमारा धर्म भ्रष्ट कर दिया। हमारे भगवान को इसने रुष्ट कर दिया।

तो परमात्मा, वह तो फिर भी पड़ा-पड़ा मालिक की आरती कर रहा था। लौ लगी थी दाता में। परमात्मा ने उस मंदिर का मुंह नामदेव की तरफ कर दिया और पंडित पिछली Side (तरफ) में खड़े घंटी बजा रहे थे। आश्चर्यचकित हुए। तो एक दिन नामदेव रंका बंका के घर गया। तो उस दिन वंका लड़की, रंका और बंका जंगल में लकड़िया लेने गए हुए थे। पीछे वह लड़की अकेली थी। वह कोई पट्टी तैयार करें थी जैसे किसी के चोट लग जाया करें। हल्दी वगैराह लगाकर। नामदेव बोला बहन किसको, क्या हो गया? किसको चोट लग गई? किसके लिए पट्टी बन रही हो? वंका बोली अरे नामदेव! तू गुरु जी को ज़्यादा दुखी ना किया कर। तू भाई मर्यादा में नहीं रहता। वहां क्या जरूरत थी तेरे को जाने की उस मंदिर में? अपना मंदिर में जाना भगवान ने allowed (अलाउड) थोड़ा ही कर रखा है। मानता नहीं तू। तेरे लिए, तेरी इज़्ज़त रखने के लिए गुरूजी तेरा मंदिर फेर कर आए थे। हाथों को चोट लग गई भाई। उनके पट्टी बांधु हूं।

नामदेव गया, देखा तो सचमुच गुरुजी के हाथों को चोट लगी हुई है और वंका ने पट्टी बांधी। हम भक्ति भी करते हैं पर अपने संस्कार फिर भी कोई ना कोई अड़ाए रखते हैं। यह परमात्मा को परेशान करते हैं। अब आ गया है बिल्कुल peak (पीक) टाइम अब यह बात नहीं चलेगी। पहले तो चलो, कोई रह गए, कोई बात नहीं, फिर पकड़ लिए भगवान ने। अब के फिसल गया पैर तो पता नहीं कहां पड़ोगे जाकर। ऐसा अजब-गजब का ज्ञान दे दिया। ऐसा समाधान आपको दे दिया और ऐसे समय में मानव शरीर आपका। तो आंखें खोल लो।

बच्चों! गरीब नामा का देवल फेरा, मूई जिवाई गाय। पीड़ा मेटी संत की, छान छिवाई आए।।

“अब, एक जिस समय नामदेव जी ने मंदिर घुमा दिया”, घुमाया तो मालिक ने था, लेकिन मालिक अपना नाम नहीं लेते।

दादू सिर धर जीव के, आप बगल हो जा।।

करै करावे साइयां, मन में लहर उठा। दादू सिर धर जीव के, आप बगल हो जा।।

उनकी महिमा ज़्यादा हो गई। मुसलमान धर्म के लोगों को दिक्कत हुई। उन्होंने राजा को कहा, “कि ऐसे-ऐसे काफिर है। वह दुनिया को गुमराह करता है कि मुर्दे जिंदे कर देता है। मंदिर घुमा दिया ऐसे कर दिया।” राजा ने पकड़ कर बुलाया और कहा, “यह गाय काट दी, वहां पर। इसको जिंदा कर।

जब जानें तु संत है, नहीं तो तेरेको, आज तेरी गर्दन यहीं काट दूंगा।” कबीर साहब कहते हैं, “हम फिर वहां गए बच्चे के लिए, अपने बच्चे के लिए और उस गाय को जीवित किया।”, जैसे पुराने समय में सब छान झोंपड़ी डाला करते थे घास, ग्रास की और वह साल भर में कंडम हो जाती थी तो बारिश आने से पहले उनको फिर से या तो नई डालते थे या उनमें कुछ रिपेयर किया करते थे। नामदेव की माता जी ने कहा बेटा! “अपनी छान ठीक कर ले, झोंपड़ी। बारिश आने वाली है, मौसम निकट है।” वह कहने लगा ठीक है! माताजी। जाता हूं, मैं जंगल से सर काट कर लाता हूं। वह सरकंडे से घास फूस।

रास्ते में सत्संग हो रहा था, सत्संग सुना, फिर वहां सेवा में लग गया। शाम हो गई वापस आ गया। उसकी मां बोली बेटा लाया नहीं कोई घास फूस? मां ऐसे- ऐसे सत्संग में चला गया। ध्यान नहीं रहा, अगले दिन फिर ऐसे ही। उसकी मां बोली, “भाई देख ले यह तो बारिश हो जाएगी कुछ दिन सारे कपड़े भीगेंगे अपने। भीगेंगे। बहुत नुकसान हो जाएगा।” अगले दिन भी ऐसे ही हुआ। तीसरे दिन उसने सोचा आधा सत्संग सुन लूं और फिर जाऊंगा। आधा सत्संग सुनकर चल पड़ा। सत्संग तो फिर पूरा ही सुनना पड़ा उसने, सेवा आदि नहीं करी।

अपना वह काम के लिए चल पड़ा। जल्दी-जल्दी घास-फूंस काटने लगा, पैर में कुल्हाड़ी लग गई। दांती लग गई और ज़्यादा चोट लग गई। पैर के पट्टी बांधी अपना कपड़ा, वही ले रखा, तो पाड़ के चद्दर और उसी दिन परमात्मा ने नामदेव का रूप बनाया और खूब यह सरकंडे सर पर रख के लाए। आकर छान बना दी और डाल दी। नामदेव शाम को लंगड़ाता-लंगड़ाता पहुंचा। मां बोली, “क्या लग गया बेटा?” उसने बताया, “मां ऐसे-ऐसे आज भी नहीं लाने पाया मैं तो।” मां उस झोपड़ी से आगे पहुंच गई, बेटे को तकलीफ सी देखकर, क्या लग गया बेटे को? माँ, “माफ करिये आज भी नहीं सामान लाने पाया मैं तो। ऐसे- ऐसे बन गई मेरे साथ। कोशिश करूं था, जल्दी-जल्दी काटूं, मां दुख पावैगी।

मेरे तो पैर में कुल्हाड़ी लग गई, दांती लग गई। चोट लग गई और चला भी नहीं जाता। मैं ठीक होते ही बनाऊंगा झोंपड़ी”, उसकी मां उसके मुंह की तरफ देखे और कहे बेटा क्या बोल रहा है तू? तू अभी तो आया था, झोंपड़ी खुद बनाकर गया। बेटा, क्या कह रहा है यह चोट कब लग गई तेरे? नामदेव निकट आया, देखा! ताज़ी झोंपड़ी बना रखी गज़ब के सरकंडे लाकर। ऐसे तो आसपास के, तो थे भी नहीं, ऐसा घास-फूस। नामदेव खूब रोया, खूब रोया बैठ कर। मां भगवान थे, परमात्मा थे वह तो।

बच्चों!

जो जन मेरी शरण है, ताका हू मैं दास। गैल गैल लाग्या फिरूं, जब तक धरती आकाश।।

यह किसी जन्म में भक्ति खूब करी थी, जैसे इस युग में और इस युग के फिसले हुए भक्ति गज़ब की रहती है क्योंकि यह साधना शास्त्र अनुकूल है। मोक्ष नहीं होता, तब तक परमात्मा इनके साथ ही रहते है। इनसे चमत्कार भी होते रहते हैं। नाम भी हो जाता है, पर काम तो नहीं बना। मोक्ष तो नही हुआ?

तो यह जो ज्ञान आपको सुनाया जा रहा है, यह  हर पहलू पर आपको सतर्क किया जा रहा है बच्चों। या तो इस भक्ति को छोड़ दो, या बिल्कुल दृढ़ हो जाओ। कमर कस लो अब के पीछा छुड़वाना है। यह ललो पतो बहुत होली। केवल हम सुख मांगते हैं, धन मांगते हैं, बेटा मांगे, बेटा मांगते हैं और धन संपत्ति मांगते हैं। यह तो बिना मांगे दे देगा, यदि दिल डट गया आपका दृढ़ रहे तो। कोई भी काम है, दृढ़ता के साथ होता है। “धीरे-धीरे रे मना”, कबीर साहेब कहते है;

कबीर, धीरे- धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय। माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए।।

“आज पौधा बोया है आम का, अगले ही दिन नहीं लगेंगे फल, उसके महीने, 20 दिन में भी नहीं लगेंगे, वर्षों उसकी सेवा करनी पड़ेगी। एक बार पेड़ बन जाने दो फिर देखना आपको छाया भी और फल भी इतने देगा, आप भी खाइयो, रिश्तेदारों को भी खिलाइयो। इसी प्रकार इस भक्ति रूपी पेड़ को, पौधे को, पेड़ बना लो। दास देख रहा है, दास ने शुरुआत जब की थी, उनकी क्या स्थिति थी, मेरे बच्चों की भक्तों की। वह डटे रहे, टिके रहे, आज हर तरह से उभारा है। संसार से न्यारा है और मोक्ष मिलेगा। यह जन्म-मरण का कोढ़ कटेगा।”

गरीब कबीर केशव बंजारा हुआ, आप भक्ति के हेत। कांकर बोई जान के, धन्ना भगत के खेत।।

धन्ना भगत जी, बहुत ज़बरदस्त लग्न लगी हुई थी उनकी। बहुत ज़बरदस्त भगत थे। दया भाव संत में होती है। बारिश हुई, बीज सभी किसान जवार बीजने चल पड़े। धन्ना की पत्नी ने भी जवार दे दी पांच किलो। “की लो खेत में बोकर आओ।” भगत जा रहा था, बैलों को साथ बैल लेकर के हल लेकर के। रास्ते में चार-पांच भगत भूखे थे, बैठे थे। अब भगत, स्वाभाविक साधु संत को देखकर राम-राम करी उसने। बैल खड़े कर दिए, बैठ गया, 2 मिनट भगवान का सुबह-सुबह। पता चला की उन्होंने 3 दिन से भोजन नहीं खाया था और मरने के कगार पर थे। कहने लगे भगत! “हम तो मृत्यु के निकट हैं, कहीं भोजन नहीं मिला क्योंकि रेगिस्तान, राजस्थान यानी पहले सारे ऐसी स्थिति थी नहीं बढ़िया वाली जनता की। बारिश होगी तो फसल होगी नहीं तो भूखे ही मरा करते। तो भगत जी ने, वह सारे के सारे वो जवार रख दी उनके आगे बीज।

वह मरैं थे भूखे, सारी खा गए। अब वो चल पड़े। भगत जी ने सोचा, अब घर वाले लड़ेंगे। पत्नी भी गर्म मिजाज़ की थी और इसमें तो भाई कोई भी बोल दे, बीज की भी कहां खा गया, कहां खो दिया? किसान का तो जीवन होता है बीज। लेकिन उसने परिवार न्यौछावर कर दिया। ककंर इकट्ठी की लोगों को दिखाने के लिए जैसे और बीज बो रहे थी ऐसे ही कंकर बखेरकर, हल बहाकर, शाम को घर आ गया। खेत में जाकर नहीं देखा। कुछ दिनों के बाद, औरों के तो ज्वार गजब की उग रही और भगत जी के खेत में तुुम्बे मतिरों की बेल उग गई। बिना गिनती के और मतिरे ही लग गए मोटे-मोटे,  यह तुम्बे। अब क्या होता है, कि भगत जी के खेत में, धन्ना भगत के खेत में, बहुत ज़्यादा बेल उग गई मतिरों की और मतिरे ऐसे मोटे-मोटे लग गए। ऊपर नीचे पड़े ऐसे भरी दिखै, उनका खेत भरा।

कुछ दिन के बाद क्या होता है की बारिश नहीं होने से उस क्षेत्र में अकाल जैसी स्थिति हो गई। जवार किसी के हुई, किसी के थोड़ी बहुत हुई, किसी के बिल्कुल नहीं हुई। तो वह तो बाद की बातें हैं। किसी ने जाकर धन्ना भगत की पत्नी को बता दिया कि तुमने जवार नहीं बोई? “वह बोली बोई। बीजकर आया हमारा भगत।” की नहीं आपके तो मतिरे उग रहे हैं, ज्वार है ही नहीं।  उसके दुख हुआ। ज्वार भी कहां खा गया यह। तो वह गई, देखा की सचमुच वहां तो मोटे-मोटे मतीरे भरे पड़े। एक मतीरा यानी एक तूम्बा लेकर चल पड़ी। धन्ना भगत को पता था की बात आज बिगड़ चुकी है। उसके बाहर जाते ही, भगत वहां आ जाते थे। उसके रहते नहीं आते थे। वह जल्दी वापस आ गई। धन्ना भगत ने सोचा था, शाम तक आएगी। तो भक्तों को कहा, “तुम जाओ बात आज गड़बड़ है, सिर पर मतीरा रख रखा।”

आते ही उसने मतीरा सिर में मारा धन्ना भगत के। धन्ना भगत जी ने थोड़ा बचाव किया तो धरती पर लगकर फूट गया। फूटते ही उसमें ज्वार निकली जैसी बीज की साफ सुथरी भेजी थी। अब भगत जी तो टेढ़ा पड़ा सिर बचाया और वह देवी देख रही थी, कभी धन्ना भगत को, कभी ज्वार को। तो वह बोली यह कहां से आ गई ज्वार इसमें ? धन्ना भगत नहीं बोला। वह फिर खेत में गई। वह ज्वार उठाकर अंदर रख ली। वहां जाकर देखा एक कपड़ा बिछाकर उसमें मतीरे फोड़ने लग गई। ढेर लग गया। गठरी बांध कर चल पड़ी। ढोने लगी ज्वार और औरों की ज्वार बिल्कुल कंडम सी हो गई। हुई ही नहीं। खड़ी तो रही पर उनमें बीज नहीं बना। सुखी-सुखी सी खड़ी। अब वह तीन-चार गठरी, 5-6 गठरी ले आई भर-भर के। भगत बोला जितनी आपने अपनी होनी चाहिए थी ना तेरे खेत में उतनी रखना और ज़्यादा मत लाना भगतमती। ऐसे बोली, “तू तो ऐसे ही किया करे, भगवान ने दी है सारी लाऊंगी।” वह गठरी भरकर चली जब उसका कोटा पूरा हो लिया वहां तक तो बोझ मरती आई भार खूब लगा। उतारी तो सारा फूंस बना पाया। एक फिर लाई वह भी ऐसे ही हो गया। हार के बैठ गई। फिर धन्ना भगत के खेत में ज्वार निकले, तुम्बो से ज्वार निकले। गाम (गांव) इकट्ठा हो गया। भगत बोला भाई अपनी बांट लो थोड़ी-थोड़ी, तुम सारे, भूखे मरने से बच जायेगा गांव। तो सबने अपने हिसाब का थोड़ा-थोड़ा ले लिया और फिर भी वो भरती रह गई।

बच्चों! यह बातें कोई बनावटी नहीं है। जिन्होंने भगवान के ऊपर समर्पण किया, जो भगवान पर समर्पित हुए, भगवान ने कभी उनका मारा नहीं।

चारों युगों में देख लो, हमने किसका राखा मार।। 

तो बच्चों! यह महापुरुषों की जो कथाएं हैं, आज अपने काम आवैंगी। आप एक बार लग कर देखो इस मार्ग पर। कोई जगह नहीं रहेगी आपको अगर-मगर करने की इस मन को बिल्कुल,  परमात्मा हर तरह से संतुष्ट कर देगा। दास अपनी एक कथा बतावेगा (बताएगा)। हम सुनते थे की, द्रोपदी का चीर बढ़ा दिया भगवान ने। पर यह नहीं पता था क्यों बढ़ाया था? वह तो अब इस तत्वज्ञान से निखार हुआ कि कबीर परमात्मा ने एक लीला करके, उसका लीर ग्रहण किया कपड़ा और उसके कारण बढ़ा था। तो इससे कोई किसी को कहते वह मानता नहीं था। यह कोई बात है? कैसे हो सकता है? ऐसे नहीं हो सकता, वैसे नहीं हो सकता।

हम भी मानते थे कि चल नहीं होगा, पर भगवान तो है और बहुत काम कर रखें हैं। मन मानता था भगवान कुछ भी कर सकता है क्योंकि आस्था तभी बनती है जब यह भावना बन जायेगी की परमात्मा जो चाहे सो कर सकता है। उसके सामने impossible word (इंपॉसिबल) नहीं है उसकी डिक्शनरी में। आपको बताता हूं नाम ले लिया। दो-तीन साल हुए थे बस। 1988 में नाम लिया। 1990 या 89 की बात है। 88 या 89 की।

तो एक मकान बनाया ऊपर, मकान बना रखा है, उसके ऊपर  एक गैलरी पर पूजा स्थल बनाया साढ़े 5 बाई 15 फुट का। उसमें एक गली में झांखी थी खिड़की window (विंडो) और एक अंदर आंगन की तरफ cross ventilation (क्रॉस वेंटिलेशन) बढ़िया था। तो जल्दी के कारण मैं बने बनाए वो ले आया जंगले। पूजा स्थल। धो-मांज कर उनको पेंट आदि करके लगा दिया उनमें। शीशे भी लगे हुए थे। एक शीशा टूटा हुआ था एक, सिर्फ खिड़की का, वह डबल होते हैं। मैंने सोचा यह चढ़वा लेंगे बाद में, जल्दी काम हो जाएगा। वहां मैंने, यह भक्ति बोध छपवाकर कर रखी। की  गुरुजी आएंगे उनको सौंप दूंगा वह आगे भक्तों को देते रहेंगे जब कोई दीक्षा लेगा। ऐसे सेवा दास करने लगा। क्या हुआ की, उस जो शीशा टूटा हुआ था उसमें से चूहे घुसकर उनको काटने लगे। और उस समय क्या था जब वह जंगले लगाए तो जाली लाया था, यह लोहे की जाली जो मच्छरो से बचाने के लिए खिड़कीयों में लगाई जाती है बाहर की साइड और वह गलती से, वह गलत काट कर दे दी। मैं वह size (साइज़) लिखकर उस लोहे की दुकान पर दे आया, की भाई यह काटकर तैयार करदे। इनका बिल बना दे। मैं और सामान लेकर वापस आया। उसने वह बांधकर, लपेटकर रख रखी थी, मैं उठाकर चला पैसे देकर।

आकर मैंने कहा ले भाई लगाओ तो यह बड़ा लड़का और एक वहां किराएदार रहता था। वह बोले हम लगा देंगे। कील आदि सारी ला रखी थी। उन्होंने सीढ़ी लगाई। मैं तो चला गया उनको कह कर। शाम को आया तो वह कोई नहीं लगा रखी। पूछा भाई कारण क्या था, क्यों नहीं लगाई ? उन्होंने बताया की यह छोटी है, बराबर में छोटी रह गई, कम से कम 9 इंच छोटी। वह लिखा था मैंने 3 फीट 9 इंच। उसने तीन फीट काट दी। या नौकर ने देख के काटी या उनको गलती लगी जैसे भी हुई। फिर मैंने सोचा इसे छोड़ो भाई। अब किसके साथ माथा मारैं जाकर। वो कहेंगे तेरी गलती है। आपने यही साइज़ बताया था। मैं इस चक्कर में नहीं पड़ा करता। मैंने वह उठवा कर स्टोर में डलवा दी। एक season (सीज़न) बारिश का ऊपर से उतर गया। हां, फिर वह नित्य नियम छपवाई पुस्तक फिर उसमें से चूहे घुसने लग गए। कपड़ा बांधा, कपड़ा काट दिया। यह मन में था कि वह जाली तो पूरी है नहीं। फिर दिमाग में आई, भाई ऐसे करो इस एक ही खिड़की मे दिक्कत है इस जाली को ऊपर नीचे करके दोनों को एक में सेट कर दो। तो वही दोनों, किराएदार, यह बड़ा लड़का यह छोटा ही था 12- 13 साल का, 14 -15 साल का।

तो मैं इनको कह कर अपनी ड्यूटी पर चला गया। इनकी माताजी ने, अनारो ने, वह वहां से निकाल कर जाली स्टोर से नीचे डाल दी भाई लगा दियो। इन्होंने शाम सी को लगाई। मैंने आकर पूछा की एक जाली लगा रखी वह पूरी। एक नीचे पड़ी। मैं ड्यूटी से आया शाम को 5:00 बजे। मेरे तो वही बात खटक रही थी, इन्होंने लगा दी होगी बच्चों ने ठीक से। नहीं, मैं स्वयं लगवाऊंगा साथ लगकर। मैंने देखा एक जाली नीचे पड़ी। एक ऊपर लगा रखी उसी पर जो शीशा टूटा हुआ था glass (ग्लास)। वह ग्लास लगवाने का टाइम नहीं मिल रहा था क्योंकि दूर मेरी ड्यूटी थी कोसली साइड में हेडक्वार्टर उनका। 77 किलोमीटर जाना था। यह अस्थाई जुगाड़ करना चाहा था की, कर दे फिर आराम से कर देंगे। तो मैंने अनारो से पूछा कि, “यह जाली लगा दी उन्होंने? की अब लगाकर गए हैं। सुबह की कह रही थी भाई लगा दे। पर ध्यान नहीं दे रहा था यह लापरवाह। अब इसने देखा की आने वाला है पापा अब फटाफट बुला कर, अनिल को लगवा दी।” “मैं बोला जाली यह और ले आए क्या यह?” “बोली नहीं, और तो नहीं है। यह तो वही है जो ऊपर डाल रखी थी स्टोर में। मैंने यह सुबह आपके जाते ही इनको कह दी थी भाई यह रखी, लगाओ जब लगा दियो।”

“मुझे विश्वास नहीं हो रहा, तू सच्ची बता, यह बदलवा तो नहीं लाए इसको? वह बोली बदलावे कहां थे, यह तो लगाई बड़ी मुश्किल से है। बदलवाने का कहां है ये। मैं हैरान, मेरे विश्वास नहीं हो रहा। एक पूरी हो ही नहीं सकती। पूरी होकर के भी 6-7 इंच ऐसे लटक रही बराबर में मुड़कर। 9 इंच वह बढ़ी, और 6 इंच और एक्स्ट्रा उसी साइड में। दूसरी देखी दूसरी भी ऐसे ही। फिर इसको, मैं लाया ढूंढ कर बड़े लड़के को खेल रहा था कीते (कहीं)। मैं बोला तू ये बता, यह जाली बदलवा के लाया है कि वही है? वही है, मेरी मां ने उतार के यहां डाल रखी थी हमने ला (लगा) दी। मैंने कहा, “मेरी कसम खा कबीर साहेब की?” कबीर साहेब की कसम, खा ली, वही है।

बच्चों! वह दिन है और आज इतना गज़ब का विश्वास कर दिया दाता ने। बात कुछ नहीं थी, वह तो और भी लाई जा सकती थी लेकिन यह दिखा दिया, कपड़ा छोड़ हम लोह बढ़ा दें। इस मालिक कबीर साहब ने, लोहे की जाली बढ़ा दी। वह आज भी विद्यमान है। एक तो, उनमें से वह मकान बेच दिया था इसने विरैंदर ने, मेरे यहां इस मार्ग पर आने के बाद। जिसने लिया वह भगत, उस भगत ने वापस डी डोनेट कर दिया कि ऐसी अनमोल पूंजी को मैं सुरक्षित नहीं रख पाऊंगा। आपको वापस दे रहा हूं। आज वह फिर वहीं है। वह जाली लगी हुई है। हमने अभी उसमें स्थायीपन किया नहीं है। अभी क्योंकि हमें थोड़ी सी फुर्सत सी होगी, यहां से निपटेंगे मिशन को पूरा करके उसको फिर याद के रूप में रखेंगे।

तो बच्चों! विश्वास रखो इस मालिक पर।

कहे कबीर सुनो भाई साधो, मैं तो हूं विश्वास में।।

और गलत साधना करने से कुछ नहीं मिलेगा। क्या बताते हैं;

गरीब, कबीर केशव बंजारा हुआ, आप भक्ति के हेत। कांकर बोई जान के, धना भगत के खेत।। वहां कांकर से अन्न हुआ, कंकर से। वहां कांकर से अन्न हुआ, वहां केशव से हुआ कबीर। वार पार पावै नहीं, गति कुछ गहर गंभीर।।

अब नकली गुरुओं के कारण यह सारा अध्यात्म ज्ञान नष्ट हुआ पड़ा था। उसके बारे में कबीर साहेब बताते हैं। गरीब दास जी बताते हैं।

गरीब, विष्णु त्रिलोकी नाथ के, पर्चे कोटी अनंत। भगत वच्छल भगवान हैं, क्यों निंदित है संत।।

यानि भगवान में आस्था बनाए रहने के लिए परमात्मा ने, इन ब्रह्मा, विष्णु जी को निमित्त बनाकर लीलाएं की। कहते हैं इनको विशेष, वह ना समझो यह भी अच्छी आत्मा हैं। तीन लोक के नाथ हैं। अब जैसे कोई मंत्री है उसकी भी पावर होती है, उसको यह कहना तू कुछ नहीं है, प्रधानमंत्री सब कुछ है। यह तो लड़ाई वाली बातें हैं। यह तो स्थिति बताई है, इनकी इतनी औकात है, इतनी ताकत है और इनकी इतनी है। इनसे हम दूर नहीं हो सकते और इनको as a ईष्ट पूज  भी नहीं सकते। की यह करतार बने हुए हैं अपने आप में। यह वो करतार नहीं जो होना चाहिए।

गरीब, कर्ता ऊपर चोट है, केते हैं करतार। मूल लहे नहीं मूर्खा, गिनते हैं क्यों डार।।

की जितने यह करतार अपने आप बना रखे तुमने रामकृष्ण और विष्णु यह पता नहीं कितने बना रखे हैं। कर्ता ऊपर चोट है, जो एक करतार को छोड़कर अन्य जो कर्ता बनते हैं उनकी दुर्गति होती है। रामचंद्र देख लो सारी उमर दुखी रहा। और कर्ता बन रहा था। लोग भगवान कहते थे वह भी मान लेता था। आजीवन कष्ट रहा, अंत में सरयू नदी में जल समाधी ली, डूब कर मरा। कृष्ण जी सारी उम्र दुखी रहा, सुख का सांस कभी नहीं। कभी कंस, कभी केसी, कभी चानौर, कभी कुछ पूतना और आखिर में दुर्वासा के श्राप से कुल उनके सामने नष्ट हो गया। जिसका कुल सामने मरे और बाद तक वह जीवै, सबसे निर्भाग आदमी होता है। सब कष्टों को देखकर रो-रो कर टाइम काटा। आखिर में एक विषाक्त तीर से मारा गया, विषाक्त। ज़हर से बुझे हुए arrow तीर से मारा गया। अब क्या बताते हैं,

गरीब, कर्ता ऊपर चोट है, केते हैं करतार। मूल लहे नहीं मूर्खा, गिनते हैं क्यों डार।।

की मूल की पूजा क्यों नहीं करते? इन डालियों को क्यों गिनते फिर रहे हो तुम, कितने भगवान हैं, कितनी टहनी हैं। मूल से सब कुछ होता है।

गरीब, सतगुरु साहेब एक हैं, दूजा भ्रम विरोध। बिन सतगुरु सूझे नहीं, चाहे पढ़ो 18 बोध।।

गरीब, गल घोटा गुरुवां घने, फांसी देय अड़ाए। द्वादश तिलक बनाए कर, जमपुर देय धकाए।।

की यह इंसान का नाश करने, मनुष्य जीवन को बर्बाद करने वाले, यह बाहिये दिखावा करके, द्वादश 12 तिलक बना लेंगे। कंठी, माला पहन लेंगे। लाल कपड़े, बड़ी-बड़ी दाढ़ी मूंछ रखा लेंगे या घोटम घोट हो जाएंगे, मुंड मुंडा लेंगे। यह गल घोटा है, यह काल की फांसी लिए फिर रहे हैं, झूठी साधना करवा कर। कहते हैं; द्वादश तिलक बनाए कर, लोग इन पर कुर्बान हो जावें, साधू हैं और जमपुर दे धकाए। यानी उस नर्क में धक्के से ठोक दें। यह साधना ही गलत है, आपै ही (स्वयं) जायेगा फिर वहां।

गरीब, झूठ गुरु का नाक ले, फिर श्रवन और नैन। सतगुरु बोलै साख ये, दूर कर फोकट फैन।।

इन नकली गुरुओं को जूते मारे नाक कांटे यानी कहने का भाव है इनसे बच जा, दूर हो जा फुंक दे। फूंकना मतलब यह नहीं आग लगा दे या उसको मार दे। ऐसे कहा करें, यह कहावत है हमारे यहां की,” इसको फूंक दे एक तरफ।” जैसे कोई सामान मंगाया इसकी ज़रूरत नहीं, क्यों उठा लाया इसको फूंक एक तरफ। यानी पटक दे दूर। अब गरीब दास जी कहते हैं, झूठे गुरु के नाक, कान काट दे। इसका अर्थ है कि उनको बिल्कुल वहां से अपने से दूर कर ले।

गरीब, झूठे गुरु को झटक दे, शिष्य स्वामी को फूंक। या मैं दोष जरा नहीं, शब्द कहा हम कूंक।।

गरीब दास जी बताते हैं, झूठे गुरु को झटक दे। और जो नकली शिष्य उनकी मानते हैं उनके ही चिपके बैठे उनको भी फूंक। फूंकने का मतलब यह नहीं उनको मार दे, की एक तरफ पड़े रहने दो।

गरीब, पीछे गई सो जाने दे, ले रहती कुं राख। उतरी लाव चढ़ाईयों, करो अपूठी चाक।।

गरीब दास जी कहते हैं, पीछे जो हुई सो हुई। उसको भूल जाओ। अब शेष बचे जीवन को संभाल लो।

उतरी लाव चढ़ाइयो, करो अपूठी चाक।। जैसे हम सतभक्ति नहीं करने से हमारे सारे काम बहुत खींच कर होते हैं। होते ही नहीं। परेशानी रहती है और जब सच्चा गुरु मिल जाता है, वही काम फटाफट होने लग जाते हैं। पुराने समय में कुएं से जल निकाला करते थे। सिंचाई का काम भी कुंओं से होता था। बैल जोड़े जाते थे। एक लाव होती थी लाव। वह डोल नीचे जाता था। एक लकड़ की पुली होती थी लोहे का इतना सिस्टम नहीं था। फिर लोहे की बनने लगी थी पुली। उसके ऊपर वह लाव यानी रस्सी, मोटी रस्सी होती थी बढ़िया मज़बूत। वह पुली से नीचे उतर जाती तो वह पुली घूमती नहीं। वह फिरकी सी होती थी वह घूमती नहीं और अड़कर खड़ा हो जाता, नीचे रस्सा गिर जाता जब साथ में। फिर उसको कहते हैं, ऊपर रख, फिर से पुली पर रख और फिर खींच आसानी से घूमेगी और फटाफट पानी निकल आयेगा। की शास्त्र विरुद्ध साधना करके भक्ति से दूर होकर भगवान से तुम दुख पा रहे हो। फिर से भक्ति शुरू कर दो, फिर आपको सुख होगा।

गरीब, पीछे गई सो जाने दे, ले रहती को राख। जो शेष बचा जीवन इसको संभाल ले रख। उतरी लाव चढ़ाइयो, करो अपूठी चाक।।

गरीब, बोवे बिन पावै नहीं, जीवित कैसा योग। 84 आसन करें, मिटै न संशय शोक।।

की जीवित मरे बिना परमात्मा प्राप्ति नहीं होगी तुम जैसे बकवादों में लग रहे हो। जीवित कैसा योग, ऐसे भक्ति नहीं बनेगी और जो 84 आसन कर कर के लोग दिखावा करते हैं इससे मोक्ष नहीं है।

गरीब, पंच अग्नि पाखंड है, मोनी तपे आकाश। झरने बैठे क्या हुआ, क्या जीमे पंच ग्रास।।

की पांच धूने लगाकर बीच में बैठ जाते हैं यह पाखंड करने के लिए। इनमें अकल ही इतनी है। ज्ञान नहीं इनको। कोई मौन रखता है, कोई तप करता है। मटके, घड़े के अंदर सुराख करवा कर एक तिपाई पर रखकर 40 दिन सर्दी के महीने में सौ मटके डेली पानी के अपने सिर पर डलवाता है और वह भोले भाले गांव के लोग, उस पाखंडी के चारों तरफ परिक्रमा करते हैं और कोई कहे, मैं सिर्फ पांच ग्रास खाया करूं ज़्यादा खाता नहीं। इस तरह की ड्रामा बाज़ी से attract (अट्रैक्ट-आकर्षित) करते हैं पब्लिक को। पल्ले कुछ नहीं।

गरीब, दूधाधारी सिद्ध है, पान फूल फल खाहीं। घट में नाम नहीं संचरे, ये बंधे जमपुर जांही।।

कई बताते हैं; एक बाबा है वह दूध, दूध पीता है बड़ा सिद्ध है। दूधाधारी बोलते हैं उसको और केवल कभी फल खा लेता है, कोई फूल फल ही खाता है।

तो गरीब दास जी कहते हैं;

गरीब, दूधाधारी सिद्ध हैं, यह पान फूल फल खांही। घट में नाम नहीं संचरे, ये बंधे जमपुर जांही।।

सच्ची भक्ति है नहीं, सीधे नर्क में जाएंगे यह।

गरीब, चुंडित मुंडित भद्रा, मोनी महल ना पावें। धूम्रपान ठडेसरी, यह दोजख धक्के खावें।।

गरीब, योग नहीं यह रोग है, जब लग निज नाम ना चीन्ह। घर घर द्वारे भटकते, भेख बिना यकीन।। गरीब, भेख लिया तो क्या हुआ, जब लग नहीं विवेक। तीन काल निपजै नहीं, नहीं मिटे कर्म रेख।।

की यह चुंडित मुंडित जैसे बड़े-बड़े सिर पर जटा रख रखी है। दाढ़ी बढ़वा रखी, माला वगैराह पहन कर बाहिये ड्रामा खूब कर रखा है। लाल कपड़े पहन रखे हैं या बिल्कुल घोट करवा रखा है, मूड मुंडवा रखा है। कहते हैं, इससे कुछ नहीं मिलना कोई मौन रखते हैं।

गरीब, चुंडित मूंडित भद्रा, मोनी महल ना पावे। धूम्रपान ठडेसरी, यह दोजख धक्के खावें।।

यह धूम्रपान करें, नशे करें, सुल्फे के मारैं, चिलम भर के डूंडा उठा दें। ठडेसरी खड़े होकर तप करते हैं। कहते हैं दोजख में धक्के खावेंगे। नर्क में जायेंगे ये।

बच्चों! यह मूल ज्ञान है। यह तत्व ज्ञान है और यह जो ज्ञान आपको अब दिया जा रहा है आपके लिए वरदान होगा, यह कबीर साहब की गिफ्ट है। इस रज़ा को संभाल कर रखियो। इसको हल्के में ना लियो बच्चों। कुर्बान हो जाओ। यह धंधे करते तो असंख जन्म हो गए। कहीं पूरा नहीं पटा। इसकी शरण में डट कर सत्संग सुना करो। सेवा करो और दान करो। मर्यादा का निर्वाह करो। भक्ति करो। देखना अलग ही रंग ला देगा दाता। मालिक आपको मोक्ष दे। सद्बुद्धि दे। आपको याद बनी रहे अपने घर की।

सत साहेब