सत साहिब।
सतगुरु देव की जय।
बंदी छोड़ कबीर साहिब जी की जय।
बंदी छोड़ गरीबदास जी महाराज जी की जय।
स्वामी राम देवानंद जी गुरु महाराज की जय हो।
बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय हो।
सर्व संतो की जय।
सर्व भक्तों की जय।
धर्मी पुरुषों की जय।
श्री काशी धाम की जय।
श्री छुड़ानी धाम की जय।
श्री करोंथा धाम की जय।
श्री बरवाला धाम की जय।
सत साहेब।
गरीब नमों नमों सत्य पुरुष को, नमस्कार गुरु कीन्हीं। सुरनर मुनिजन साधवा, संतो सर्वस दीन्हीं।। सतगुरु साहिब संत सब, दंडवत्तम प्रणाम। आगे पीछे मध्य हुए तिंकू जा कुर्बान।। कबीर सतगुरु के उपदेश का, सुनियां एक विचार। जै सतगुरु मिलते नहीं, जाते नरक द्वार।। नरक द्वार में दूत सब, करते खैंचातान। उनसे कभी नहीं छूटता, फिरता चारों खान।। कबीर चार खानी में भ्रमता, कबहूं ना लगता पार। सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।।
जय जय सतगुरु मेरे की। जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहबी सुख से बसियो, अमरपुरी के डेरे की।। जय जय सतगुरु मेरे की। जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से बासियो, सतलोक के डेरे की।।
निर्विकार निर्भय तू ही और सकल भयमान। ऐजी साधो और सकल भयमान। सब पर तेरी साहिबी। सब पर तेरी साहिबी, तुझ पर साहब ना।। निर्विकार निर्भय।।
परमपिता परमात्मा कबीर जी की असीम कृपा से आप पुण्य आत्माओं को उस अमरलोक का अपने निज धाम का स्थान का अपने असली ठौर ठिकाने का ज्ञान हुआ। बच्चों! आपको परमात्मा की अमर कथा अमर महिमा सच्चा ज्ञान और सच्ची भक्ति प्राप्त है। इसको सामान्य बात ना समझो। और आप सामान्य आत्मा नहीं हो।
लख बर शूरा जूझही, लखवर सांवत देह। लख बर यति जहां में, तब सतगुरु शरणा ले।।
और परमात्मा की दूसरी रजा यह है, कि
गरीब गोता मारूं स्वर्ग में, जा बैठूं पाताल। गरीबदास ढूंढता फिरूं, अपने हीरे मोती लाल।।
देखो आपको परमात्मा ने कैसे खोज लिया यह अपना पिता है। यह अपना सच्चा हमदर्द है। बाकी यहां संसार के जितने भी परिवार है रिश्ते नाते है यह हमने अस्थाई अपना यहां जीने के लिए रास्ता निकाल रखा है की थोड़ा सा ठीक यह समय व्यतीत हो जाए। बहुत सी ऐसी परिस्थितिया है जिनको देखकर बड़ा दुख होता है सुनकर। की इस लोक का कोई भी ऐसा नाता हमारा साथ सदा नहीं देगा। अगर हम माता-पिता को अपना समझते हैं वह भी कभी भी हमारा साथ छोड़ सकते हैं। क्योंकि जिस लोक में जहां मृत्यु है वहां पर हम किसको अपना साथी माने ? की यह हमारे साथ रह जाएगा। तो हम उनको अपना तो मानते हैं और मानना चाहिए क्योंकि हमारे साथ रह रहे हैं। और उनमे प्रेम अपने आप हो जाता है। लेकिन इतना ध्यान जरूर रखना की कभी भी यहां से जाना हो जाएगा।
और सब हम ऐसे सेट हो रहे हैं की अभी नहीं मरेंगे। अभी तो उमर छोटी है। अभी तो 30 वर्ष के हुए हैं 40 के हुए है 50-60-70-80-90 के हो लिए वह भी ऐसे सोचते है अभी नहीं मरेंगे। चलो जब भी मालिक की दया होगी वह तो अलग बात है। परंतु इसको याद रखोगे तो आप भक्ति कर पाओगे। नहीं तो भक्ति नहीं बनेगी। मोक्ष वाली नहीं बनेगी। सामान्य भक्ति कर रहे हो इसका फल तो इतना दे देगा। आपको संसार में अलग टाल देगा।
इतना सुख देगा इतनी संपत्ति दे देगा। लेकिन वह संपत्ति काम क्या आवेगी बताओ ? जैसे अब्राहिम सुल्तान अधम के कितने ठाठ थे। राजा था उसको उस संपत्ति जो उसके गले पड़ रही थी जो उसकी जान का झाड़ बन गई थी। उसके जीवन को नष्ट कर देता वह ठाठ बाट उससे मुश्किल से निकाला उस दलदल से। तो बच्चों! थोड़ा सा हर पहलू पर ध्यान दो। बच्चों! बिन साहब की बंदगी कहीं ठोर ठिकाना ना।। साहिब कौन? भगवान। परमात्मा सारी सृष्टि का रचनहार। वह परमात्मा है कौन? समस्या यहां थी अभी तक। कौन वह सबका सृजनहार है ? कौन वह पाप नाशक है? कौन वह संस्कार बदलने वाला भगवान है? अभी तक यह बिल्कुल क्लियर नहीं था। किसी को भी नहीं था। आपके अतिरिक्त अब भी नहीं है। तो बच्चों! यह सब खेल परमात्मा कबीर जी की कृपा है। मेरे गुरुदेव का आशीर्वाद फला। उन्होंने अपने मुख से कहा था, कि तेरे बराबर विश्व में कोई संत नहीं होगा जब दीक्षा देने का अधिकार दिया। उसके बाद भी एकाध बार मिले यह शब्द उनके मुख से निकले। अब उस समय दास को संत की परिभाषा का भी ढंग से नहीं पता था। इतना जरूर था तड़प विशेष थी। और सन 1988 से लेकर 1994 तक 6 - 7 साल तक मालिक के अतिरिक्त मन में कुछ नहीं था। रात और दिन पागल जैसी स्थिति, पागल जैसी स्थिति नहीं था पर कम भी नहीं था।
दिन - रात उसी में लगा रहता था। कभी ज्ञान समझा आगे बताना खुद अपनी कैसेट भर भर के उनकी कॉपी करवा करवा कर भक्तों में बांटने लगा। खुद भर के। तो धीरे-धीरे हमारा कारवां बढ़ता चला गया। फिर गुरुजी ने पता नहीं क्या देखा एक दिन अचानक मैं लेकर तो गया था अन्य भक्तों को समझा बुझाकर दीक्षा दिलाने। जैसे पहले भी बहुतों को दिलाई थी ऐसे ही रूटीन में। अचानक ही उन्होंने आशीर्वाद दिया, कि आज के बाद तू नाम देगा। और तु ही इनका गुरु होगा। अपने जो पहले वाले थे उनको भी वहीं बैठे थे वो। सबको बोल दिया बहुत सारे थे वहां पर। आज के बाद यह तुम्हारा गुरु, मैं किसी का गुरु नहीं हूं। दीक्षा लेनी है इससे ले लो। मैं तो पसीनम पसीना हो गया। मैंने सोचा कोई गलती बन गई होगी। और किसी ने चुगली मार दी, की यह स्वयं ही गुरु बन रहा है। मैं बहुत कमजोर आदमी था। मेरी स्थिति कुछ और तरह की हो गई। तब उन्होंने सोचा यह घबरा गया। तो बोले मैं तेरे साथ रहूंगा अकेला मत समझना। और इनको दीक्षा दे। तो थोड़ी हिम्मत सी हुई की बात दूसरी टाइप की नहीं है सच्चे दिल से आदेश है।
उसके बाद से दास इस सेवा में लगा। प्रचार किया संघर्ष भी जबरदस्त करना पड़ा। शक्ति आशीर्वाद गुरुदेव का, शक्ति भगवान की इनके कारण आज तक दास जिंदा है। और आज भी इस मालिक के गुण गा रहा है। नहीं तो ब्रह्मा, विष्णु, महेश के और काल के विरुद्ध बोलना, जबान बंद कर देंगे। एक भूत सारे परिवार की घिग्घी बांध देता है यह तो परम शक्ति है। लेकिन इन परम शक्तियों से भी परम शक्ति हमारे साथ है। तो बच्चों! उस शक्ति का उस परम पिता परमात्मा का ज्ञान उसकी पहचान अब हुई है। एक तो वेद जैसे कबीर वाणी पहले से लिखी हुई हैं। आज कोई नई नहीं बनाई । धर्मदास जी से कहा करते थे, की
धर्मदास वेद कतेब झूठे नहीं भाई! झूठे हैं जो समझे नाहीं।।
और
वेद मेरा भेद है मैं नहीं वेदन के मांही। जिस वेद से मैं मिलूं, वह वेद जानते नाहीं।।
कहने का उनका तात्पर्य था, कि वेद चारों वेद मेरी महिमा बताते हैं। लेकिन उन वेदो में वर्णित विधि से मेरी प्राप्ति नहीं है। वह तो मैं अपना हंस भेजूंगा 5505 वर्ष जब कलयुग बीत जाएगा। उसके बाद इसको डिस्कलोज किया जाएगा। और तु भी इसको गुप्त रखना किसी को बताना नही। अब परमेश्वर कबीर जी की असीम रजा से सभी ग्रन्थों से वेदो से गीता से कुरान और पुराण से सिद्ध कर दिया है, कि यह काशी वाला जुलाहा यह वह परमात्मा है जो सारी सृष्टि का रचनहार हमारा सच्चा साथी, हमारे दुखों का निवार्ण करने वाला, हमारी रक्षा करने वाला अब इसके साथ-साथ 6 आई विटनेस आपके सामने पेश किये। जैसे संत गरीबदास जी, धर्मदास जी, संत धर्मदास जी, संत मलूक दास जी, दादू दास जी, संत नानक दास बाबा जी, संत घीसा दास जी।
इन छः के छः ने स्पष्ट कर दिया की यह परमात्मा धानक काशी वाला यहीं परमेश्वर है। और उसकी भक्ति क्या है ? वह भी स्पष्ट कर रखी है गरीब दास जी ने। और मेरे गुरुदेव के पास यह संपूर्ण मंत्र थे दास को खजाना दे गए। की खर्च और आगे बरत। सबको बता। तो इन आई विटनसो में से एक दादू साहब है संत दादू दास जी। अब आपको सर्वांगी साक्षी के अंग की कुछ वाणी सुनाता हूं।
गरीब जीवा दत्ता को मिले दक्षिण बीच दयाल। सुखा खूंट हरा हुआ, ऐसे दीन दयाल।।
गुजरात प्रांत के अंदर भ्रूच नाम का एक शहर है उससे 12- 13 किलोमीटर की दूरी पर एक मंगलेश्वर गांव है। वहां नर्मदा एक टापू को दो हिस्सों में कर देती है। तो उस टापू को पहले शुक्ल तीर्थ नाम दिया गया था। गांव शुक्ल तीर्थ वहां पर यह दत्ता और जीया दो ब्राह्मण भाई थे यह आपको बता रखा है कई बार। तो कहते हैं
सुखा खूंट हरा हुआ ऐसे दीनदयाल।।
तो अब वह गांव नहीं रहा क्योंकि उसका आना-जाना बंद हो गया। और रस्ते खत्म हो गए।
अब वहां वो जो परमात्मा कबीर जी के चरणों के जल से चरणामृत से वह सूखी वट वृक्ष की टहनी हरी हुई थी वह एक बहुत बड़ा पेड़ बन गया। और आज भी वह पेड़ उसका कुछ अंश शेष है। वहां हम गए बताया गया की यह कम से कम भी काफी क्षेत्र में फैल गया था। अब लोगों ने काट काट के और उसमे वहां बोने की जमीन बना ली।
अब भी वह लगभग तीन-चार एकड़ के अंदर आज भी फैला हुआ है। वहां कबीर पंथियों का एक आश्रम एक महंत वहां रहता है आश्रम बना हुआ है छोटा सा। यह आपके लिए प्रमाण है 600 साल पहले से और उससे भी पहले से यह वटवृक्ष वहां पर लगा हुआ है। तो बच्चों! इसके बारे में कुछो से पूछा जिकर चलते हैं कोई कहता है मारकंडे ऋषि दातुन कर रहा था उसने दातुन गाढ़ दी। बरगद की कोई दातुन किया करे ? और बोले उससे फिर पेड़ बन गया। फिर उसको कबीर वट क्यों कहते हैं? वहां कबीर वट से जाना जाता है वह। वह तो फिर मारकंडे वट होना चाहिए था। तो यह बकवास करने वाले तो ऐसे ही करते रहेंगे। सच्चाई यह है जो आपको बता दी।
गरीब नानक तो निर्भय किया, वाहे गुरु सत जान। अदली पुरुष पिछानिया, पूर्ण पद निर्वाण।।
उन छः आई विटनेस में से एक बाबा नानक जी भी हैं जो सिख धर्म के प्रवर्तक हैं। उनको परमात्मा उस समय मिले थे जब वह सुबह-सुबह स्नान करने के लिए सुल्तानपुर शहर के साथ-साथ बेई नदी बह रही है। वह डेढ़ किलोमीटर, 1 किलोमीटर के आसपास शहर से दूर थी। अब तो कम हो गई होगी। तो बेई नदी के ऊपर जब वह स्नान करने गए। वहां एक- दो बार उनकी वार्ता की। जिंदाबाबा रूप में परमात्मा गए। फिर बाबा नानक जी ने उस दरिया में डुबकी लगाई तो उनको अंतर्ध्यान कर दिया परमात्मा ने छुपा दिए। और उनको अपस्ट्रीम में ले गए। वहां जंगल के अंदर एक पेड़ के नीचे बैठे। फिर चर्चा हुई। फिर सतलोक लेकर गए उनकी आत्मा को। 3 दिन तक बाबा नानक जी ऊपर रहे। सारे ब्रह्मांड दिखाएं। अपना लोक दिखाया। अपनी समर्थता से परिचित करवाया। तो नानक साहब पहले रामकृष्ण के कट्टर पुजारी थे बाबा नानक जी। विष्णु जी की भक्ति करते थे गीता का पाठ किया करते थे। बृजलाल पांडे से वह गीता पढ़ा करते थे।
उसके बाद वापस आ गए वह। उसके बाद यह सभी यह सभी पूजाएं बंद कर दी। जिस कारण से उनके विरोध में सभी खड़े हो गए जितने भी हिंदू उनके आसपास, रिश्तेदार, घर के परिवार के सदस्य मां को छोड़कर पिताजी भी विरोधी हो गए। की तू क्या पैदा हो गया हमारे देवताओं को भी यह कहता है कि यह भगवान नहीं हैं। बहुत विरोध हुआ जो भी होता रहे आंखों देखा मक्खी नहीं खाई जा सकती। तो कहने का भाव यह है कि
झांकी वेख कबीर की, नानक कीती वाह। वाह सिखों के गल पड़ी, अब कौन छुटावै ताह।।
झांकी मतलब ऊपर का नजारा देखा। ब्रह्मा, विष्णु, महेश की स्थिति देखी। यहां के लोको की स्थिति देखी। और सतलोक में जब परमात्मा की झांकी देखी, सतलोक की झांकी देखी। झांकी क्या होती है ? - जैसे 26 जनवरी पर अपने देश में जब गणतंत्र दिवस मनाया जाता है तो प्रत्येक स्टेट एक लंबी-लंबी गाड़ियों के ऊपर अपने राज्य की जो बहुत अच्छी योजनाएं होती है उनके मॉडल बना बनाकर और प्रदर्शित करते हैं, कि हमारे यहां ऐसा कुछ विकास हुआ है। तो फिर ऊपर से माइक वाला बोलता है कि यह हरियाणा प्रदेश की झांकी है। यह गुजरात प्रदेश की झांकी है। यह ऐसे देश की झांकी है। यानी उनका नजारा। उनके क्या कुछ वहां पर है। क्या बना रखा है। तो
झांकी वेख कबीर की, नानक कीती वाह। वाह सिखों के गल पड़ी, अब कौन छूटावे ताह।।
नानक साहिब जी ने तो यह देखा था वहां परमात्मा को वाह! तेरे की वाहेगुरु! वाहेगुरु! वाह! वाह! की भगवान तो यह है। और यही सच्चा गुरु सतगुरु है। तो नीचे आकर भी उन्होंने यही रट लगाए रखी। तो उनके फॉलोवर ने नोट कर लिया गुरुजी वाहेगुरु वाहेगुरु कहा करते थे। तो यह सब वाहेगुरु वाहेगुरु कहने लग गए। दूसरा अवसर उस समय जब मर्दाना और बालाजी दोनों इनके साथ बाबा नानक जी के साथ रहा करते थे।
यह दोनों शिष्य इनके। ज्यादातर भ्रमण इनके साथ ही किया उन्होंने तकरीबन। एक दिन इन्होंने कहा मर्दाना ने और बाला ने की गुरुदेव! हमारे को लंका दिखाओ जहां रामचंद्र जी ने आक्रमण किया था चढ़ाई की थी। तो बाबा नानक जी ने कहा की आंखें बंद करो। फिर कहा खोलो। आंखें खोली तो समुंदर के किनारे खड़े थे। और उन दोनों से कहा कि आप मेरे पीछे-पीछे चलते आओ। वाहेगुरु वाहेगुरु बोलना। ऐसे करते हुए चल पड़े और तुम डुबोगे नहीं।
पानी पर ऐसे चल पड़े जैसे थल पर चलते हैं जमीन पर चलते हैं पृथ्वी पर। और नानक साहेब जी खुद सतनाम का जाप करने लग गए दो अक्षर का। तो मर्दाना नकल करने लगा। वह भी ओम- सोहं जपने लगा। जैसे बाबा नानक जी उच्चारण कर रहे थे मुंह से बोलकर। तो वह समुद्र में डूबने लगा। तब बाबा नानक जी ने कहा, की मर्दाना गुरु जो कह वह करो। गुरु की नकल नहीं करते। मर्दाना फिर वाहेगुरु वाहेगुरु करने लगा। तो वह ठीक हो गया। ठीक से चलने लगा। अब यहां पर परमात्मा ने इनको सबको कह दिया था जितने भी मालिक के शिष्य हुए, की इस मंत्र को सतनाम को और इस मूल ज्ञान को अभी किसी को डिस्क्लोज नही करना। तो बाबा नानक जी पांच नाम देते थे इनको सबको बस। वह पांच। जैसे हम सात नाम सात नाम देते हैं। बीच-बीच के पांच दिया करते थे। तो कहने का भाव यह है एक तो यह सतनाम कहीं बाहर नहीं जावे इसलिए झटका दे दिया। और बाला ने सब जगह बता दिया लिखवा दि एक जन्म साखी भाई बाले वाली में ऐसी- ऐसी घटना हुई। उसके बाद सिख समाज इस चीज से हिचक गया। डर गया, की जैसे मर्दाना जी ने गुरुजी के आदेश की उल्लंघना करके और सतनाम जाप करने लग गया था यह डूब गया। मर जाता। इसलिए हमने इस नाम का जाप नहीं करना। और वह मनाही इसलिए करी थी कि वह समय नहीं था इसके बताने का। झटका इसलिए दिया था कि उन्होंने लिखना था वाणी में। लिखना होता है जैसे गरीब दास जी ने सारा लिख रखा है।
ओम सोहं मंत्र जपिए,
योग युगत यह धूनी तपिये।। ओम सोहं मंत्र सारम। सुरती निरति से करो उच्चारं।।
तो बाबा नानक जी ने भी प्राण संगली के अंदर यह लिखा था। बाद में भी प्राण संगली इन्होंने ग्रंथ साहिब में बांईड नहीं किया अलग रख दी। बल्कि जल प्रवाह कर दी थी। खत्म कर दी थी। की कोई सिख बच्चा इसमें यह मंत्र ना पढ़ ले और गुरु जी की बात की अवहेलना हो जा। यह बात तो इस शक्ल में थी। अब तो गरीब दास जी कहते हैं
झांकी वेख कबीर की, नानक कीती वाह। वाह सिखों के गल पड़ी, अब कौन छूटावै ताह।।
अब इनको समझाना चाहे, कि यह उन परिस्थितियों में मना किया था। और यह नाम है जाप करने का। अब यह मानने को तैयार नहीं। अब वाहेगुरु, वाहेगुरु देखा हमने कई बार यह दो - दो, तीन- तीन दिन लगातार माइक लगाकर और पूरे शहर में कम से कम कुछ 1 किलोमीटर तक रोहतक में देखा वहां गुरुद्वारा है भिवानी स्टैंड पर। तो पूरे रेलवे स्टेशन पर एक रोड़ है रेलवे स्टेशन रोड़। कम से कम 1 किलोमीटर लंबा उस सारे जगह - जगह स्पीकर लगाकर के और बड़ी लै लगा करके पाठी बार-बार बदलते रहते। सारा दिन वाहेगुरु, वाहेगुरु, वाहेगुरु, वाहेगुरु, वाहेगुरु, वाहेगुरु और कुछ नहीं। तो गरीब दास जी कहते हैं:
झांकी वेख कबीर की, नानक कीती वाह। वाह सिखों के गल पड़ी ,अब कौन छूटावै ताह।।
अब क्या बताते हैं
गरीब नानक तो निर्भय किया ,वाहे गुरु सत जान। अदली पुरुष पिछानिया ,पूर्ण पद निर्वाण।।
की बाबा नानक जी ने उस समर्थ परमात्मा कबीर जी को पहचान लिया था। और वही उनका सतगुरु जानो जिन्होंने उनको दीक्षा दी।
गरीब अदली पुरुष कबीर है, सब सिर तपे लिलाट। सोदा करो तो इत करो, चल सतगुरु की हाट।
गरीब दादू कु सतगुरु मिले, देई पान की पीक। गरीब दादू कु सतगुरु मिले, देई पान की पीक। बुढ़ा बाबा जिसे कहे, यह दादू की नहीं सीख।।
दादू के सिर पर सदा, अदली असल कबीर। टक्कर मारी जद मिले, फिर सांभर के तीर।।
गरीब दादू ध्यान ऊंलघिया, तीन दिवस, तीन रात। आगे से आगे मिले, शब्द स्नेही साथ।।
दादू साहब जी 7- 8 साल के बच्चे थे। एकाधी पुस्तक में 11 वर्ष के बताएं जो भी थे। बच्चों में खेल रहे थे बनी में गांव से बाहर चारों तरफ बनी होती थी छोटा जंगल। उसमें खेल रहे थे। परमात्मा कबीर जी एक जिंदा बाबा के रूप में वहां आए। बैठकर परमात्मा की कथा सुनाने लग गए। और बच्चों ने ध्यान नहीं दिया वह बच्चा दादू बहुत निकट आकर बैठ गया। बाबा और बताओ। बाबा और बताओ। बहुत अच्छा अच्छा लग रहा है। फिर दीक्षा लेने का मन किया। फिर परमात्मा कबीर साहेब ने एक पान के पत्ते पर वहां आसपास पौधे उग जाते थे। पान के पत्ते पर एक मंत्रित जल डालकर उसको दे दिया और नाम दे दिया। तो बच्चे भी वह देख रहे थे थोड़ा दूर बैठे थे वह चले गए।
बातों में उनका इंटरस्ट नहीं था पर खेल रहे थे। थोड़ी दूरी पर जाकर खेलने लगे। तो दादू साहब जी अचेत हो गए। और कबीर साहब उनकी आत्मा को लेकर ऊपर घूमा कर लाए। जब दादू साहब लेट गए गिर गए बच्चों ने आकर देखा क्या हो गया इसको ? बाबा अंतर्ध्यान हो गया। तो उन्होंने गांव में आकर बताया ऐसे - ऐसे हो गया। एक बाबा ने पता नहीं कैसा पानी पिला दिया इसको यह बेहोश हो गया। तो घरवाले उठाकर ले गए। मरा नहीं था सांस चल रहे थे। लेकिन कोमा में जैसे चले जाते हैं ऐसे थे। तो दादू साहब जो है तीन दिन और तीन रात अचेत रहे। तो फिर उनको ऐसे झाड़े आदि लगवाए सारे कर्म कर लिए पर वह होश में नहीं आया।
फिर अपने आप बैठकर उठ गए। फिर उनसे पूछने लगे आपको क्या हो गया ? वह कौन था जो एक बूढ़ा बाबा आया था ? बच्चों ने बताया कि एक बूढ़ा बाबा था। और उसने ऐसे - ऐसे पता नहीं क्या मंत्र बोलकर जल पिला दिया। हम देख रहे थे दूर से। तो दादू जी ने बताया वह कौन था बताता हूं। गरीब दादू ध्यान उलंघिया, तीन दिवस तीन रात। आगे से आगे मिले, शब्द स्नेही साथ।।
गरीब आसन अचल कबीर का, सबका सतगुरु एक। ब्रह्मांड ईक्कीसों देख ले, धूमें केसी रेख।।
गरीब देही को सतगुरु कहे, यह सब धूंधर ज्ञान। चार दाग आवै नहीं, जिसको सतगुरु जान।।
की यह शरीर सतगुरु नहीं है इस शरीर के अंदर जो महान आत्मा है वह सतगुरु है। चार दाग आवे नहीं वह मरता नहीं।
गरीब दादू का पिंजर पड़ा, और नानक की देह। इनमें सतगुरु कौन सा, हमको बड़ा संदेह।।
की दादू जी की भी मृत्यु हुई और नानक जी की भी हुई। तो फिर कहते हैं यह शरीर कुछ नहीं है। यह तो एक कर्म बनाने के लिए दिया गया है। भक्ति करके मुक्ति पाने के लिए यह मिट्टी दी है। एक खेत दिया है इसमें जो अच्छी तरह ठीक व्यवहार करके इससे सोना उपजा लो मोक्ष प्राप्त करो। फिर कहते हैं कोई बात नहीं शरीर गया तो गया। शरीर तो जाएगा।
गरीब खोड़ पड़ी तो क्या हुआ, झूठी सबे पटीट। पंछी उड़ा आकाश कु ,चलते कर गया बीट।।
देखो इस ज्ञान से आपके हृदय में एक दिन ऐसा हो जाएगा आपको मृत्यु का डर बिल्कुल नहीं रहेगा। यह शरीर ऐसा है अंदर जो आत्मा है वह अलग वस्तु है। वह है मेन चीज । मेन मुख्य। और यह ऊपर एक कवर है कपड़ा पहना रखा है। संतों ने इसको खोड़ चोला वस्र भी कहा है।
गरीब खोड़ पड़ी तो क्या हुआ
शरीर पड़ा रह गया तो क्या हो गया कुछ नहीं हुआ।
झूठी सबे पटीट।
यह ऐसा है
पंछी उड़ा आकाश कुं, चलता कर गया बीट।।
जैसे पक्षी बीट कर दे तो बीट पक्षी नहीं है। वह तो टट्टी है। इसी प्रकार यह शरीर और आत्मा की तुलना करें तो आत्मा पक्षी समझो। शरीर एक बीट। बीट पक्षी की टट्टी गोबर। और नहीं समझ में आती हो तो यह मरने के बाद दो दिन घर पर रख के देख लो शरीर छूटने के बाद। इसमें कीड़े पड़ जां। बदबू उठ जा। सड़ जा बिल्कुल। तो इसको हम सब कुछ मान रहे हैं। क्यों मान रहे है? क्योंकी हम इसके छूटने को मृत्यु मानते है। और हम कभी हमारा ऊपर शरीर छूटता नहीं था। हम मरते नहीं थे सतलोक में। वह बात हमारे छाती में रखी हुई है कि मर क्यों रहे हैं ? यह गलत है। कष्ट वगेरा भी हम सहन कर ले कोई बात नहीं आदि हो गए गधे की तरह। तो यह काम और होगा कभी भी हो सकता है।
तो यहां बताते है
गरीब खोड पड़ी तो क्या हुआ, झूठी सबे पटीट। पक्षी उड़ा आकाश कुं, चलता कर गया बीट।।
यह तो ऐसी स्थिति है बस। और यह एक दिन जाएगी। इससे पहले पहले इसमें डट कर भक्ति करो। यह जो सत साधना मिली है और मर्यादा में रहो। और यह मालिक का चलाया कठपुतली है मिट्टी। यह इसी से चल रही है। इन्होंने अपनी वाणी में कहा कि जब तक हम नहीं कहेंगे मौत नहीं होगी तुम्हारी। चाहे कितनी ही लंबी आयु जीना चाहो जी लियो। लेकिन इस ज्ञान से अपने आप यह हो जाएगा कि बहुत हो लिया। क्योंकि शरीर तो छोड़ना पड़ेगा एक न एक दिन। इसलिए केवल इस शरीर को इसलिए ना रखना की जीवित रहे जीवित रहे । जीवित रहो तब तक इस मालिक के अमृत रस को पिते रहे। तब तो कुछ बात।
गरीब खोड़ पड़ी तो क्या हुआ, झूठी सबे पटीट। पक्षी उड़ा आकाश कुं, चलता कर गया बीट।।
गरीब नामा को सतगुरु मिले, देवल दीन्हा फेर। भगत वच्छल कबीर है, शब्द कहा हम टेर।।
गरीब दास जी कहते हैं जिसने नामदेव जी का मंदिर घुमाया था। उसका मुंह नामदेव जी की तरफ किया था। पंडितों की तरफ उसका पीछा कर दिया था back। वह कबीर साहेब हैं। वह भगत वच्छल कबीर हैं। शब्द कहा हम टेर । हम खुल्लम-खुल्ला कह रहे हैं ।
गरीब रहदास रसायन पीवते, चोले धरे अनंत। चलती बेर पाए नहीं, धन्य कबीर भगवंत।।
इन वाणियों में सैचुरेटेड ज्ञान है। बहुत कोड वर्डों के अंदर है। रविदास जी के बारे में बताया की पंडितों ने उनकी बेज्जती करनी चाही तो परमात्मा ने दया करी। 700 रूप बन गए थे। वह प्रकरण है। अब इतना नहीं सुनाऊंगा वह आपने पढ़ रखा है, सुन रखा है। फिर बताते हैं कि
चलती बार पाए नहीं धन कबीर भगवंत।।
जो मगहर से सशरीर गए। तो उनका शरीर नहीं मिला था।
गरीब तेज पुंज की सेल है, तेजपुंज के धाम। सेवक हैं तेजपुंज के, तेजपुंज के राम।।
सतलोक की जानकारी दे रहे हैं। सतलोक के अंदर सब अमर स्थिति है। सभी अविनाशी पदार्थ है। वहां तेजपुंज के सेवक हैं। तेजपुंज के धाम यानी नूरी सब कुछ नूर से बना है। और तेजपुंज के राम परमात्मा भी तेजपुंज का है।
गरीब आकार भार नहीं ठाहरे, पांचों तत मिल जाए। चार युग जै तन रहे, तो भी देह गिरे सत भाए।
की यह शरीर रहेगा नहीं किसी का भी। चार युग में अगर रहा तो भी एक दिन मरेगा।
गरीब कृष्ण कन्हैया राम कुं, जीव कहे करतार। पिंड पड़ा इन भगवानों का, इनको देख विचार।।
गरीब कृष्ण कन्हैया और राम कुं, जीव कहे करतार। पिंड पड़ा इन भगवानों का, इनको देख विचार।।
की इनके भी शरीर यही रहे थे। यह भी मरे।
गरीब कच्छ मछ कूरम्भं लग, शेष धोल कूं देख। इनकी देही भी ना रहे, जिनको कहें शब्द सुधा की टेक।।
अब स्पष्ट कर देते हैं, कि शरीर कितने ही दिन रहो मौज मालिक की।
गरीब यह जीवन सत सफल है, जब लग राम रटंत। देह खोरी को जान दे, भरम पड़े हैं पंथ।।
कहा है की यह शरीर जो है इसका तब तक लाभ है जब तक परमात्मा की भक्ति करते हो। सतभक्ति करते हो। तो इससे सफलता है, यह सफल है। और यह काम नहीं करते, सच्ची भक्ति नहीं करते इसके अतिरिक्त अन्य डले ढो रहे हो तो व्यर्थ है। यह सारे पंथ भ्रमित है किसी के पास भी सच्चा ज्ञान नही। अब बच्चों दादू साहेब जी को परमात्मा मिले। और आंखों देखा हाल उन्होंने किस तरह वर्णन किया। दादू साहेब जी की वाणी है।
जो जो शरण कबीर के, तिर गए अंत अपार। दादू गुण केता कहूँ, कहत ना आवे पार।।
कबीर कर्ता आप है, दूजा नहीं कोय। दादू पूर्ण जगत को, भक्ति दृढ़ावत सोए।।
ठेका पूर्ण होवे जब, सब कोई तजै शरीर। दादू काल गंजे नहीं, जपे जो नाम कबीर।।
कबीर कर्ता आप है जो-जो शरण कबीर के, तिर गए अनंत अपार।
दादू साहब कहते हैं क्या महिमा गांऊ अनंत महिमा।
कबीर कर्ता आप है दूजा नहीं कोई। दादू पूर्ण जगत को भक्ति दृढ़ावत सोए।।
अब बताते हैं ठेका पूर्ण होवे जब, सब कोई तजै शरीर । दादू काल चंपै नहीं, निकट नहीं आवै जपे जो नाम कबीर।।
आदमी की आयु घटै, तब यम घेरैं आए। सुमरन किया कबीर का, दादू लिया बचाए।।
की जब आदमी का समय पूरा हो जाएगा मरेगा सब एक दिन। सब मरेंगे जाएंगे जब ठेका पूरा हो यानी समय मृत्यु का आएगा तो काल के दूत आसपास मंडरा जाएंगे। और इस सच्चे नाम का सिमरन करने से काल निकट नहीं आएगा। अब जैसे यह वाणी है यह दादू साहेब के ग्रंथ में है। और उसके बाद दादू साहब को मना कर दिया था, कि वह मंत्र वगैरह नहीं बताना। तो उन्होंने फिर सारे अपनी वाणी का भाव अलग से बदल दिया।
अब बताते हैं
मेट दिया अपराध सब,आए मिले छिन माही। दादू संग ले चले, कबीर चरण की छाहिं।।
मेट दिया अपराध सब, आये मिले छीन माहीं
यानी सब पाप काट दिए मेरे।
दादू संग ले चले, कबीर चरण की छाहिं।।
जैसे गरीब दास जी को कबीर परमेश्वर लेकर गए धर्मराज के दरबार में सबसे पहले उनकी बही को पाड़ा। उनके पैड जिसमे वह लिखा था अकाउंट वह क्रॉस कर दिया। अब यहां दादू साहब भी कह रहे हैं
मेट दिया अपराध सब, आए मिले छिन माही।
सब पाप खत्म कर दिए। अपराध काट दिए।
दादू संग ले चले, कबीर चरण की छांही।।
सेवक देव निज चरण का, दादू अपना जान। भृंगी सत कबीर ने, कीन्हा आप समान।। सेवक देव निज चरण का , दादू अपना जान। भृंगीं सत कबीर ने, कीन्हा आप सामान।।
हे देव! हे परमेशवर! दास को अपना निज सेवक मान लो चरणों का। और ज्ञान सुना- सुना कर कबीर साहब ने अपने जैसा रंग चढ़ा दिया। जैसे भृंगी एक कीड़ा होता है पंख उड़ने वाली मक्खी जैसा। लंबा सा। और वह किसी कीड़े को उठा लाता है कीट को। जिसके पंख नहीं होती उनको बंद कर देता है तीन चारों को। उसके ऊपर मिट्टी लगा देता है। एक सुराख छोड़ता है उसमें बैठा बैठा अपनी भीं भीं भीं भीं करके आवाज सुनाता है। उससे उसका रंग भी बदल जाता है वह सफेद होता है, हरा हरा होता है। उसका रंग भी नीला हो जाता है पंख आ जाते हैं। तो कहते हैं गुरु ऐसे अपने सेवक को अपने जैसा रंग चढ़ा देता है। अपना ज्ञान बता - बता कर उसको भी उसी तरह बोलने के लिए तैयार कर देता है । यानी फिर शिष्य भी उस ज्ञान को सुनकर औरों को बताना शुरू कर देता है।
दादू अंतर्गत सदा, छिन छिन सुमरीन ध्यान। वारुं नाम कबीर पर, पल-पल मेरे प्राण।।
सुन कर साखी कबीर की, काल निवावै माथ। धन्य- धन्य हो तीन लोक में, दादू जोड़े हाथ।।
केहरी नाम कबीर का, विषम काल गजराज। दादू भजन प्रताप से, भागै सुनत आवाज।।
दादू साहब कहते हैं की कबीर साहब की महिमा साख चर्चा सुनकर भी काल हाथ जोड़ लेता है माथा टेक देता है। और धन्य- धन्य तीनों लोक में दादू जोड़े हाथ।। की धन्य है तीनो लोक के अंदर उनकी सत्ता उनकी शक्ति उनकी समर्थता। केहरी नाम कबीर का यह काल भी छोटा नहीं। हाथियों में जैसे हाथी हो हाथियों में भी सबसे बड़ा हाथी गजराज। इतनी ताकत है इसमें। लेकिन 21 ब्रह्मांड का मालिक है यह। परमात्मा कबीर जी के सामने कहते है उसकी आवाज सुनते ही सुमरन की आवाज सुनते ही भाग जाता है। जैसे
केहरी नाम कबीर का, विषम काल गजराज। दादू भजन प्रताप से ,भागे सुनत आवाज।।
दादू साहेब कहते हैं
पल एक नाम कबीर का दादू मनचित लाए। हस्थी के असवार को स्वांन काल नहीं खाए।।
की दादू साहब कहते हैं कबीर साहब की भक्ति किसी ने एक पल भी कर ली मर्यादित रहा। और कोई एकदम कोई दिक्कत आ जाती है उन क्षणों में एक बार भी नाम जाप कर दिया। तो
पल एक नाम कबीर का, दादू मन चित लाए।
हस्थी के असवार को, हाथी के ऊपर बैठे व्यक्ति को जैसे काल स्वांन जो है कुछ हानि नहीं कर सकता कुत्ता। तो यहां काल को तो कुत्ते की संज्ञा दी है। काल को जानो कुत्ता। कबीर साहब की शरण में आने के बाद और वह भगत, वह भक्तमती इतने सुरक्षित हो जाते हैं जैसे हाथी पर बैठ गए हों। यानी काल की पहुंच से बिल्कुल दूर हो जाते हैं। काल इतना भी चोट नहीं कर सकता किसी प्रकार की। यही संत गरीबदास जी बता रहे हैं। तो यहां बताते हैं पल एक नाम कबीर का, दादू मन चित लाए। हाथी के असवार को, स्वांन काल नहीं खाए।।
सुमिरत नाम कबीर का, कटे काल की पीड़ पीर। दादू दिन -दिन ऊंचा, परमानंद सुख शीर।।
दादू नाम कबीर की, जै कोय लेवै ओट। तिनको कबहूँ लागै नहीं, काल वजर की चोट।।
और संत सब कूप है, केते झरीता नीर। दादू अगम अपार है, दरिया सत कबीर।।
और संतों को तो समझो जैसे कुआं हो। और जिनको जायदा प्रसिद्ध मान रहे हैं उनको समझ लो झरने का जल। झरीता नीर झरना। छोटा-मोटा कोई नाला बन जा। और दादू अगम अपार है इतनी शक्ति समझो अपने कबीर भगवान में दरिया सत कबीर।।
अब ही तेरी सब मिटै, जन्म मरन की पीर। स्वांस उश्वांस सुमरले ,दादू नाम कबीर।।
कोई सर्गुण में रीझ रहा, कोई निर्गुण ठहराए। दादू गति कबीर की, मोपे कहीं ना जाए।।
दादू नाम कबीर का सुनकर कांपै काल। नाम भरोसे नर चले, बांका ना होवे बाल।।
जिन मोकूं निज नाम दिया, सतगुरु सोए हमार। दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजनहार।।
बच्चों! यही गरीब दास जी कहते हैं
गरीब अनंत कोटि ब्रह्मांड का, एक रति नही भार। सतगुरु पुरुष कबीर है , यह कुल के सृजनहार।।
गरीबदास जी ने तो यह भी स्पष्ट कर दिया कि कौन कबीर?-
गरीब हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कुं उपदेश दिया। जाति जुलाहा भेद ना पाया, वह काशी माहे कबीर हुआ।।
बच्चों! इन प्रमाणों से यह है वह मूल ज्ञान तत्व ज्ञान जो अभी तक किसी ने ऐसे निर्णय करके नहीं दिया था। और परमात्मा ने बैंन लगा रखा था।
धर्मदास मेरी लाख दुहाई। यह मूल ज्ञान कहीं बाहर ना जाई।। मूल ज्ञान बाहर जो पड़ही। बिचली पीढ़ी हंस नहीं तिरही।। मूल ज्ञान तब तक छुपाई। जब तक द्वादश पंथ ना मिट जाई।।
बारहवां पंथ संत गरीबदास जी का आपको खूब बता रखा है। 12 पंथ चल चुके बारहवें पंथ में दास का उपदेश हुआ। और वह परमात्मा कबीर जी ने स्पष्ट कर ही रखा है। की 12वें पंथ हम ही चल आवें। और सब पंथ मिटाकर एक पंथ चलावै। यह कब होगा?-
पांच हजार पांच सौ पांच जब कलयुग बीत जाए। महापुरुष फरमान जगतारण कुं आए।। घर घर बौद्ध विचार हो, दुरमति दूर बहाए। कलयुग में सब एक हो, बरतै सहज सुभाय ।। एक अनेक हो गए, पुनः अनेक हो एक। हंस चले सतलोक को, सतनाम की टेक।।
सच्चा नाम और सच्चा ज्ञान सतनाम। सतनाम का अर्थ होता है सच्चा सच्ची भक्ति तो हमने यह दो अक्षर के नाम का भी सतनाम रखा क्योंकि यह एक नंबर का मंत्र बन जाता है। इसके बाद इसका एक गठबंधन है और फिर यह सारशब्द में बदल दिया जाता है। सारनाम बदला जाता है।
तो ऐसे बच्चों आपका मोक्ष होगा। आपके ऊपर परमात्मा ने कलम तोड़ दी है। देखो यह क्या कमाल हो रहा है। आपको फिर से थोड़ा सा भूल पड़ गई थी। लग तो रहे थे बिल्कुल पूर्ण विश्वास भी था। लेकिन इससे बच्चों और ज्यादा चार्ज हो गये तुम। ऐसे मजबूत हो जाओगे काल के छाती में टक्कर मार दोगे तुम। डरोगे नहीं। और समर्थ के साथ रहोगे। मर्यादा का भी पालन जब होगा जब आपको चारों तरफ से दृढ़ता मिलेगी। ज्ञान सच्चा भगवान पूरा। समाधान तो होगा ही होगा जब भगवान सच्चा। यह हमारी मर्यादा की कमी रहेगी।
साहेब के दरबार में, कमी काहे की ना। हंसा मौज नहीं पावता, तेरी चूक चाकरी में।।
अपनी चाकरी वाली चूक को ठीक कर लियो। अब के बच्चों जहाज में वायुयान में बिठाकर लेकर चलेंगे आपको। नोट कर लेना यह डूमभाट के गीत नहीं है। दास ने जितने वचन बोले सारे सच्चे समझ लियो। और यह भी इतना ही सत्य है। परमात्मा आपको मोक्ष दे। सदा सुखी रखें।
सत साहिब।।।