सत साहिब।।
सतगुरु देव की जय।
बंदी छोड़ कबीर साहिब जी की जय।
बंदी छोड़ गरीबदास जी महाराज जी की जय।
स्वामी रामदेवानन्द जी गुरु महाराज जी की जय हो।
बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज की जय हो।
सर्व संतों की जय।
सर्व भगतों की जय।
श्री काशी धाम की जय।
श्री छुड़ानी धाम की जय।
श्री करोंथा धाम की जय।
श्री बरवाला धाम की जय।
सतसाहेब
गरीब नमों नमों सत्पुरुष कूं, नमस्कार गुरु कीन्हीं। सुरनर मुनिजन साधवा, संतों सर्वस दीन्हीं।। सतगुरु साहिब संत सब दंडवत्तम प्रणाम। आगे पीछे मध्य हुए तिंकू जां कुर्बान।।
कबीर सतगुरु के उपदेश का, सुनिया एक विचार। जै सतगुरु मिलते नहीं, जाते नरक द्वार।। कबीर नरक द्वार में दूत सब, करते खैंचतान। उनसे कभी नहीं छूटता, फिरता चारों खान।। कबीर चार खानी में भरमता कबहू न लगता पार। सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।।
जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से बसियो, अमरपुरी के डेरे की।। जय जय सतगुरु मेरे की जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से बसियो, सतलोक के डेरे की।।
बच्चों! उस सतलोक की याद आती है और जिस कारण से यह वाणी याद आती है तो शुक्र मनाया जाता है आत्मा शुक्र मनाती है कि तुम तो सुख से जीवो। हमने तो कर्म फोड़ लिए। हम तो अपने कर्म भोग रहे हैं। तुम lucky (भाग्यशाली) थे। समझदार थे। इस दुष्ट की बातों में नहीं आए।
निर्विकार निर्भय तू ही और सकल भयमान। एजी साधो और सकल भयमान। सब पर तेरी साहिबी। सब पर तेरी साहिबी तुझ पर साहेब ना।। निर्विकार निर्भय।।
आप अमर कथा सुन रहे हो। सत्यनारायण कथा सुन रहे हो और आप कहीं भी बैठे हो दाता ने कैसी दया करदी। घूमते फिरते बैठकर परमात्मा का गुणगान सुनो। बच्चों! यह सत्संग जो है, यह आध्यात्मिक पढ़ाई है। यह आध्यात्मिक शिक्षा है इसको समझने के लिए भी काफी समय की आवश्यकता है। जैसे बच्चे स्कूल जाते हैं यानी 15- 16 वर्ष तक तो totally (टोटली) फ्री होते हैं अपनी पढ़ाई करो, ट्यूशन लगवाओ और क्लास में पढ़ो। तो ऐसे करते-करते वह विद्वान बन जाते हैं। डॉक्टर बन जाते, इंजीनियर बन जाते हैं और बड़ी-बड़ी शिक्षाएं प्राप्त कर लेते हैं। इसी प्रकार आपको यह आध्यात्मिक लैक्चर अटेंड करते रहना चाहिए। सांसारिक काम भी करो शिक्षा ग्रहण भी करो। लेकिन यह शिक्षा साथ ज़रूर ग्रहण करो। इसके बिना सब व्यर्थ है। वह तो सिर्फ पेट के लिए रोज़ी रोटी के लिए। जो भी कर्म हम करते हैं सब रोज़ी रोज़गार के लिए होता है और वह रोज़गार हमें करते-करते नुकसान हो जाता है।
सब कुछ करते-करते हानि हो जाती है कोई लाभ नहीं मिलता। इधर कमाते हैं उधर रोग हो जाता है। यहां से कमाया उधर खत्म हो गया। तो परमात्मा के चरणों में आने के बाद, इसकी शरण में आ जाने के बाद तो यह इस तरह के कष्टों को कम कर देगा। परमात्मा की महिमा भी ना सुनें, भक्ति ना करें और काम में ज्यादा ध्यान दें, कहीं नुकसान ना हो जाए और वह करते-करते हो जाता है फिर घर के रहते ना घाट के इसलिए काम अवश्य करो। पर इसमें नागा ना करो। परमात्मा की महिमा अवश्य सुनो और भक्ति डेली करो। सुबह, दोपहर, शाम के समय परमात्मा की स्तुति करो। आजकल तो अनपढ़ भी कर सकते हैं। मोबाइल घर-घर है। उसमें लगाओ आरती सुबह, दोपहर, शाम की। आराम से सुनो काम भी करते रहो।
खाना बना रहे हो आरती चल रही है बहुत बढ़िया। ध्यान आरती में रहेगा। जैसे ड्राइवर गाड़ी चलाते हैं, ड्राइविंग तो बहुत सावधानी का काम होता है लेकिन उसमें भी बात करते रहते हैं चलाता भी रहता है। इसी प्रकार इस समय का ऐसे सदुपयोग करो। सुमिरन भी करो। गाड़ी भी चलाओ। तो आरती भी लगा लो उसके अंदर। चलते रहो, सुनते रहो। तो परमात्मा ने आपके ऊपर रजा करने में कसर नहीं छोड़ रखी। अब आप भी चौकस हो जाओ, सतर्क हो जाओ। समर्पित और दृढ़ हो जाओ।
बच्चों! अपने को अपने घर का ज्ञान हुआ। अभी तक तो हमारे को अध्यात्म का सिर पैर भी ज्ञान नहीं था और जब तक बच्चों हमें यह विश्वास नहीं होता कि परमात्मा कौन है? इसका प्रमाण कहां है? कहां प्रूफ है? और हमारी आत्मा इस बात को नहीं स्वीकार कर लेती की हाँ सचमुच! यही सत्य है तब तक हम भक्ति भी करते रहते हैं और आत्मा अस्थिर रहती है। मन अस्थिर रहता है। कोई भी कोई साधना बताता है हम उसी को करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। वह पहली तो छोड़ते नहीं और भी शुरू कर देते है क्योंकि हमें चाह है परमपिता की। हमें इस बात का एहसास है कि एक शक्ति है जो हमारे दुखों का निवारण करती है। किस्मत से भी अलग देती है। किस्मत में दुख आया प्रारब्ध में कष्ट हुआ तो हम उसके निवारण के लिए कहीं झाड़ फूंक वालों के पास, कहीं हाथ दिखाने गए, कहीं पहाड़ों पर किसी ने बताया वहां गए। व्रत रखने को कहा वो रखा। हमने हर तरह से कोशिश की कि कोई सुख प्राप्त हो। ज़्यादा धन प्राप्त हो।
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। वैसे कभी इत्तेफाक से कोई दांव लग गया, कोई हटकर, कोई ऐसा लाभ होता दिखा, हो गया वह होना तो था कर्म का। प्रारब्ध में आ गया कोई और वह सूत बैठ गया और हम और दृढ़ हो गए उन्हीं पूजाओं पर। उन गलत साधनाओं पर जो गीता में मना कर रखा है। दास अपनी बताता है और यह आपके साथ भी अवश्य हुई है। आपको अब एहसास होगा। जैसे दास बचपन से रामकृष्ण और विशेषकर विष्णु जी का, कृष्ण जी का, विशेष भगत रहा है। इसके साथ हनुमान जी के प्रति भी लग्न में, तड़प में, चाह में कोई कमी नहीं थी। इस कारण से मंगलवार का व्रत रखना किसी ने बता दिया चुरु जिला राजस्थान में सालासर एक स्थान है जहां पर हनुमान जी का बहुत प्रसिद्ध मंदिर है और वहां जाने से सारे सुख हो जाते हैं। तो दास सिरसा सर्विस करता था। हरियाणा का एक शहर है पंजाब से सटा हुआ डिस्ट्रिक है। वहां से पता चला तो दास बैठकर ट्रेन में सालासर पहुंचा। चुरू उतरा वहां से अन्य साधनों से, वहां एक छोटा सा गांव सालासर है। वहां एक छोटा सा मंदिर और उसमें एक पत्थर की मूर्ति, उसकी शक्ल भी ठीक सी भी कोई ना (नहीं)। हनुमान का आईडिया सा लगाया जाता है। उस समय यह सन 1978 की बात है ऐसा कोई वहां पर ज़्यादा भीड़ नहीं होती थी। हम सुबह आराम से दर्शन कर लेते थे। हद से हद 500-400 आदमी जाते थे।
फिर देखते ही देखते 10 साल में वहां पर टेढ़ी-मेढ़ी लाइन बनने लगी। यानी चार-चार घंटे में नंबर आने लगा और उस दौरान जैसे भी कोई राहत मिली जैसे सर्विस लगी, पढ़ते थे पास होते चले गए हनुमान जी और श्री कृष्ण की जय जयकार। हम पढ़ते थे पास होते चले गए तो यह श्रेय अपने इन्हीं ईष्ट देवों को मानते थे जो एक से अनेक थे। श्री विष्णु भगवान, श्री कृष्ण, श्री राम जी और हनुमान जी, शंकर भगवान जी यानी शंकर भगवान जी को भी पीछे नहीं रखते थे और यह बता रखा था ब्रह्मा की भक्ति नहीं करनी इसको विशेष ध्यान नहीं देते थे, इसके ऊपर। फिर पास हुए, सर्विस लगी पुत्र प्राप्त हुआ, फिर पुत्री संतान होती चली गई और इतनी खुशी हुई कि सारा कुछ हनुमान जी ने, श्री कृष्ण जी ने, विष्णु जी ने कर दिया और यह देख रहा है दास की जो बिल्कुल नास्तिक हैं उनके भी यह सुख हो रहे थे। तो बात यह है अब पता चला, कि यह साधना वह सुख देने की थी नहीं जो हम इनके सिर कर रहे थे। की इनसे होगा, इनको श्रेय दे रहे थे।
तो बच्चों! कबीर पीछे लाग्या जाऊं था, मैं लोक वेद के साथ। मार्ग में सतगुरु मिले, दीपक दे दिया हाथ।। इस भक्ति के सफर में हम लोक वेद के आधार से इधर-उधर भटक रहे थे। सही मार्ग मिला नहीं था और कभी भी मंज़िल प्राप्त नहीं कर सकते थे। ठीक है हमारी तड़प थी तो भगवान भी मिले।
जैसे वेदों में प्रमाण है ऋग्वेद मंडल नंबर 9 सुक्त 54 मंत्र 3 में - की परमात्मा सबसे ऊपर के लोक में बैठा है। फिर ऋग्वेद मंडल नंबर 9 सुक्त 82 के 1 ,2 ,3 में। ऋग्वेद मंडल नंबर 9 सुक्त 86 के 26-27 में तो यह बताते हैं कि परमात्मा अच्छी आत्माओं को मिलता है। वहां से गति करके नीचे आता है। उनके संकट दूर करता है। उनको सच्ची राह दिखाता है अपने मुख कमल से ऋग्वेद मंडल नम्बर 9, सूक्त 96 के 16 से 20 तक। ऋग्वेद मंडल नंबर 9 सूक्त 94 का मंत्र 2, 95 का मंत्र नंबर 1 इन सबको मिलाकर एक निष्कर्ष निकलता है, की परमात्मा ऊपर से गति करके आते हैं और यहां अच्छी आत्माओं को मिलते हैं।
एक कवित्व, कावन्याओं यानी लोकोक्तियां, शब्दों, वाणियों, साखियों के माध्यम से अध्यात्म ज्ञान अपने मुख कमल से बोलकर सुनाते हैं और वो एक कवि की तरह आचरण करते हुए वृजम- घूमते फिरते हैं और अपने मुखकमल से वाणी बोल करके भक्ति की प्रेरणा करते हैं और गुप्त भक्ति के, परमात्मा की साधना के, गुप्त मंत्रों को आविष्कार करते हैं। मत्रों का आविष्कार करते हैं। जैसे गरीबदास जी ने बताया है, कबीर साहेब बताते हैं;
गरीब, सोहं मंत्र हम जग में लाए, सारशब्द हमने गुप्त छुपाए।।
यानी सोहं शब्द किसी भी ग्रंथ शास्त्र में, जिनको हम शास्त्र मानते रहे हैं 600 साल पहले-पहले उनमें नहीं है और सोहं नाम का प्रचलन बहुत पहले से चल रहा है पर इन किताबों में नहीं था क्योंकि कबीर साहेब कहते हैं;
हम बैरागी ब्रह्मपद सन्यासी महादेव। सोहं मंत्र दिया शिव जी को, करे हमारी सेव।।
उनको ज्ञान समझाया सबको, ज्ञान इतना गज़ब का है एक बार आत्मा ज़रूर पकड़ लेती है और नाम की भी इच्छा करती है। तो उस समय जब परमात्मा अपना ज्ञान सुना रहे होते हैं काल निकल जाता है उस आत्मा से और आत्मा ध्यान से सुनती है सत्य मान लेती है। तो इन्होंने ब्रह्मा जी ने, विष्णु जी ने, शिव जी ने सबने नाम ले लिए इनमें सॉफ्टवेयर लगा दिया परमात्मा ने। विष्णु जी में हरियम का, शिवजी में सोहं का, ब्रह्मा में ओम का और वही आज हमारे को लगा दिया। अब हम अपना काम इनसे डायरेक्ट ले रहे हैं। तो कहने का भाव यह है जिस समय परमात्मा अपना ज्ञान सुनाते हैं काल भाग जाता है। परमात्मा के वहां से आते ही काल प्रवेश कर जाता है उनकी बुद्धि को फेर देता है। इसी कारण से दोबारा इन्होंने परमात्मा की वाणी सुनी नहीं विचार नहीं सुना और यह धोखा खा गए। हमने भी बहुत बार धोखा खा लिया। अंसखों बार हम यह कष्ट उठा चुके हैं और यह धोखा खा चुके हैं। अपने भगवान को छोड़कर इन बकवादों में घुसे रहे।
मानुष जन्म पाय कर खोवै, सतगुरु विमुखा युग युग रोवै।।
बच्चों! गरीब सतगुरु संगत छोड़कर, लाख वर्ष जप कीन। इंद्री कर्म नहीं मोक्ष होवे, रहें काल के आधीन।।
जैसे आपको बार-बार समझाया जाता है की सतगुरु से विमुख होने के बाद, हम आज से 600 वर्ष पहले परमात्मा से विमुख हुए थे। उसके बाद हम पता नहीं किन-किन धर्मों में जन्मे? कभी भक्ति की, कभी नहीं की। भक्ति करते थे वह भक्ति ही नहीं थी। लेकिन मालिक फिर भी हमें उन प्रत्येक मानव शरीर में मिले हैं और सच्ची राह दिखाई है। हमने कुछ दिन उनकी साधना अवश्य की है फिर छोड़ दी और जिसके कारण परमात्मा हमें चार्ज कर गए। उस चार्जिंग के कारण आज तक आपके हृदय में मालिक की चाह और भक्ति की तड़फ बनी हुई थी और मनुष्य जीवन मिलते रहे क्योंकि आप हम 600 साल पहले गुरु द्रोही नहीं हुए थे। सतगुरु विमुख हो गए थे।
सतगुरु विमुखा युग युग रोवे, मानुष जन्म पाकर खोवै।।
एक उदाहरण देता हूं, एक राबि नाम की लड़की जिसको राबिया भी कहा है। मुसलमान धर्म में जन्मी, वो पिछले सतयुग से मालिक के, उनके साथ लगे थे, अपनी बेटी को, अपनी आत्मा के। गरीबदास जी ने बताया है की कबीर साहेब बताते हैं;
जो जन मेरी शरण है।
यानी एक बार किसी युग में चाहे वह 10 दिन भी नाम ले ले और फिर छोड़ दिया हो मालिक उसको अपने खाते में लिख लेता है और फिर उसको धीरे-धीरे, धीरे- धीरे देखो अपने पिता को देखो हमारे लिए कितना कष्ट उठा रहे हैं। उसको धीरे-धीरे चार्ज करते रहते हैं। चार्ज करते रहते हैं। भक्ति की तड़फ जन्म जन्मांतर बढ़ाते रहते हैं। उसी कर्म अनुसार उसी क्रिया में वह लड़की आत्मा राबि बनी हुई थी। एक लड़की मुसलमान घर में जन्म था 12- 13 साल की बेटी थी। भेड़-बकरियां चरा रही थी और वह सारी सृष्टि के रचनहार हमारे पिता अपनी बेटी के लिए उस जंगल में पहुंच गए। घास-फूस पर बैठ गए जाकर उस बेटी के पास। मुसलमान धर्म ज़िंदा का रूप बनाया। हमारे अंदर एक धर्म कर्म की यह भी एक समस्या है कि हम अपने धर्म वालों को महत्व देते हैं। दूसरों से नफरत करते हैं। यह काल की चाल है इसलिए दाता;
सौ छल छिद्र मैं करूं,अपने जन के काज। हिरणकश्यप ज्यूँ मार दूं, नरसिंह धर के साज।।
अब्राहिम सुल्तान अधम के बांदी बनकर चले गए, एक नौकरानी बनकर चले गए। क्या पड़ा था उनको। कोरड़े खाए। नौकर बने अपने बच्चे को नर्क से निकालने के लिए अब तुम बालक हो। बुद्धि छोटी है। बच्चे की बुद्धि इतना काम नहीं करती। इस ज्ञान से आपकी बुद्धि विकसित होवैगी (होगी)। आप कुछ दिनों में संकेत समझने लग जाओगे। अब जैसे राबि को मालिक ने समझाया।
तो बच्चों! परमात्मा अपनी उस बेटी, उस आत्मा के, राबिया के पास जाकर बैठ गए। जंगल में, गर्मी-सर्दी, घास फूंस के ऊपर बैठ गए और उसको समझाने लगे, बेटी! भक्ति किया करो। तो बच्ची थी जैसे उस धर्म में, उस धर्म के अंदर जन्मी थी उसमें जो साधना बताते थे उसको, कहती थी हम करते हैं। ऐसे करते हैं नमाज़ करते हैं, ईद - बकरीद मनाते हैं तो परमात्मा ने उनको काफी समझाया कई दिन लगातार जाते रहे। फिर चले जाते फिर आ जाते। अंत में लड़की ने स्वीकार कर लिया भगवन! मुझे वह सच्चा राह बता दो जिससे मोक्ष मिले।
परमात्मा ने उसको मंत्र दिए। यह मंत्र दे दिए पांचों लेकिन यह नहीं बताया यह किस-किस के हैं? क्योंकि इसके बताने की ज़रूरत भी नहीं है। यह तो चाबी है किसी भी खज़ाने की है या कोई और सामान वाले की है उस ताला के लगाओ, वह खुल जाएगा और उसमें जो सामान है आपको मिल जाएगा। फिर भी याद होना आवश्यक है कि इसमें यो सामान है, इसमें यो सामान है। उस लड़की ने कुछ दिन मालिक की साधना की। 4 वर्ष। उसके बाद, समाज के दबाव में सयानी हो गई। उसने यहां तक फैसला कर लिया कि यह तो संस्कार बढ़ते चले जाते हैं। शादी ही नहीं कराऊंगी। विवाह नहीं कराऊंगी। उसने निकाह करने से मना कर दिया। मां-बाप ने कोशिश की कि लड़की जवान हो गई। लेकिन उसने बिल्कुल स्पष्ट शब्दों में कह दिया मैं विवाह नहीं करूंगी। मैं अल्लाह खुदा को प्राप्त करूंगी। मां-बाप परेशान हो गए कि बच्ची है इसने तो ज़िद्द लगा ली और इसका जीवन कैसे पार होगा? कैसे पास होगा? यह तो हो ही नहीं सकता।
मां बाप ने कहा बेटी! या तो निकाह कर ले नहीं हम दोनों मरेंगे। लड़की ने सोचा मात - पिता की हत्या का क्यों सिर पर दोष लूं। आगे अपने पति से बात कर लूंगी। निकाह हो गया। मुसलमानो के अंदर लड़की से अपनी राय पूछी जाती है विवाह के समय कि क्या आपको यह विवाह मंज़ूर है? निकाह कबूल है? लड़की Yes (हां) कर देती है तो, विवाह होता है नहीं तो, नहीं होता। यह स्वतंत्रता बेटी को है। उसने Yes (हां) कर दी। विवाह हो गया। उनका पति बहुत बड़ा अधिकारी था, अफसर था, साहब था। मुसलमानों में एक से अधिक विवाह भी हो जाते हैं सामान्य बात है। तो उसने यही विचार किया था कि यह तो शादी और कर लेगा। वहां दबाव बनाऊंगी। नहीं तो मर जाऊंगी और क्या इलाज है। तो उसने अपने पति से अपना उद्देश्य बता दिया, मैं भक्ति करना चाहती हूं। मेरी बिल्कुल तमन्ना नहीं है कोई शादी और बच्चे पैदा करने की। यदि आप मेरे साथ ज़बरदस्ती करोगे तो मैं सुसाइड करूंगी। उसका पति भी भगवान से डरने वाला मुसलमान था। वास्तव में मुसलमान था। उसने कहा राबिया आपने निकाह कबूल क्यों किया यह बता? उसने कहा कि मेरी मजबूरी थी। मेरे माता-पिता मर जाते, मैं वह दोष नहीं लेना चाहती थी।
उनका भी काम बन गया। अब आप बताओ आपका क्या इरादा है? मेरा फाइनल है। या तो मौत या अपनी भक्ति करूंगी। इतना दृढ़ विश्वास देखकर उसने कहा कि राबिया कोई बात नहीं, आप भक्ति करो। मैं अल्लाह के मार्ग में बाधक नहीं बन सकता। मैं भी भगवान से डरने वाला हूं। लेकिन जैसे आपकी लोक लाज के कारण आपके पिता की समस्या प्रबल थी इसी प्रकार समाज हमारा भी है लोकलाज हमें भी है। आप मेरी दृष्टि में मेरी तरफ से तो मेरी सिस्टर (बहन) होगी। समाज की दृष्टि में मेरी वाइफ (पत्नी) बनकर रहना होगा। वह बोली मुझे मंजूर है। उसके लिए अलग व्यवस्था कर दी अपनी भक्ति कर। किसी चीज़ की कमी नहीं आने देंगे। उसने अपनी और शादियां कर ली। अब वह 50 साल की हो गई। सब देखा कि यह तो बिल्कुल देवी का रूप है। पलक भी उठा कर नहीं देखती। यह पिछले संस्कार थे, वह बैटरी चार्ज थी। उसमें चाह थी। आगे बैटरी लगी नहीं। यह धीरे-धीरे नष्ट हो गई।
यहां रोल मारे काल हमारी। यह बहुत बड़ा षड्यंत्र है। सतगुरु कबीर साहेब बिना इसको कोई खोल नहीं सकता। इससे बचा भी नहीं सकता। इसलिए सतगुरु की शरण नहीं छोड़नी चाहिए। उसने अपने पति जो सांसारिक दृष्टि के पति से कहा, कि मैं हज करने जाना चाहती हूं। उसने कहा अच्छी बात है जाओ और कोई व्यवस्था ऊंट-घोड़े की करवा देता हूं। उस पर आराम से बैठकर जाइयो। बोली नहीं मैं पैदल जाऊंगी क्योंकि यह आस्था है हमारी। भगवान के प्रति अंहकार में नहीं, ऐसे जावें तो और बढ़िया रहे यह शुरू से ही धारणा है। उस समय साधन भी नहीं होते थे। ऊंट-घोड़े होते थे। रेगिस्तान में ऊँट ही चलते थे बोली नहीं मैं पैदल जाऊंगी। राबिया पैदल जा रही थी। रास्ते में एक कुआं था। उस पर बाल्टी और रस्सा नहीं था। एक कुत्तिया वहां पर बहुत बुरी तरह रो रही थी। कभी कुएं की तरफ जा रही थी, राबिया के चरणों की तरफ आ रही थी। वह समझ गई की यह प्यासी है और साथ में जच्चा है मरे भी गी, बच्चे भी मरेंगे।
आव देख ना ताव देखा, दया बिना दरवेश कसाई।।
वह दरवेश थी, संत थी। दयालु थी, असली मुसलमान थी। उसने अपने बाल पाड़े सिर के, रस्सी बनाई लंबी। वह सौ-सौ फुट नीचे पानी होता था और फिर अपने कपड़े निकाल कर शरीर के, उसको बांधकर और नीचे भिगोकर बाहर टपकाए, निचोड़े एक मटके के टूटे हुए पात्र में। कुतिया ने जी भरकर पानी पिया और लड़की ने अपने जो सिर के बाल पाड़े। थोड़ा बहुत खून निकला था रक्त ब्लड को साफ किया कपड़े पहन लिए। मक्का के लिए चलने लगी वह मंदिर उठकर मक्का कुंएं के साथ आकर खड़ा हो गया। लड़की ने तो जाना ही मक्का में था। एक दम प्रवेश कर गई। उधर अब्राहिम सुल्तान अधम की पहले बॉडी (शरीर) में वह आत्मा गई हुई थी क्योंकि परमात्मा उनको भी प्रेरित करते हुए आ रहे थे। जो अब्राहिम सुल्तान अधम बाद में सम्मन बना। तो जिनको यह ज्ञान हो जाता था वह अपने धार्मिक मेलों में जरूर जाते थे औरों को समझने के लिए। तो अब्राहिम सुल्तान अधम वाली आत्मा, वहां गई हुई थी लोगों में चर्चा हुई, की भाई मक्का गया कहां? हद हो गई। मंदिर ही नहीं है यहां पर? तब अब्राहिम सुल्तान अधम कहता है गरीब दास जी बताते हैं-:
सुल्तान अधम मक्के गया, मक्का नहीं मकान। गया रांड के लेन को, यूं कहे अधम सुल्तान।।
वह बोले अरे क्या बोल रहा था? फिर इतने में वह मक्का वापस आ जाता है और उसमें से राबिया निकली। राबिया देखी लोगों ने भाग कर प्रवेश किया। देखा तो एक राबिया एक लड़की, उसने अपना परिचय दिया। पूरे मुसलमान समाज में यह बात फैल गई। चर्चा का विषय बना की भक्ति हो तो राबि जैसी। भक्ति हो तो राबि जैसी। जिसके लिए मक्का उड़कर चला गया जहाज़ के समान। एयरप्लेन के समान। तो वहां हज के लिए गए हुए व्यक्ति अब्राहिम सुल्तान से बोले, अरे! भले आदमी तु एक देवी को क्या कह रहा था,
गया रांड के लेने कुं, न्यूं कहे अधम सुल्तान?
एक निकम्मी आत्मा को यह मक्का लेने गया है। तेरा तो भाई, दिमाग खराब हो गया। ऐसी देवी के बारे में ऐसे शब्द बोलै, तुझे पाप लगेगा। दोजख (नरक) में जाएगा। तब उसने उनको बताया, ये अभी परमात्मा इसके लिए आए थे, इसको वहां मिले थे ऐसे ऐसे और इसने वो सतभक्ति छोड़ दी क्योंकि परमात्मा साधु रूप में कहीं भी प्रकट हो जाते हैं ये उनका एक नियम है, अच्छी आत्माओं को मिलते रहते हैं, तो उस अब्राहिम सुल्तान वाली आत्मा को बताया था कि ऐसे एक राबि नाम की बेटी है उसको भी मैंने ज्ञान दिया है, नालायक ने वो भक्ति छोड़ दी, दुख पाओगी, तब उसने बताया इसको सतभक्ति मिली थी, यह डले ढोन आई है यहां।
उस पिछली साधना के कारण यह सब कुछ हो रहा है। परंतु उन लोगों के मन में यह कहां समाने वाली थी, कि यह बात दो अक्षरों में। उस जीवन को पूरा करके वो लड़की, वह आत्मा अगले जन्म में बांसुरी नाम की लड़की बनी। जन्म हुआ, धार्मिक शब्द सुनाया करती थी। बड़ी प्रबल क्योंकि प्रेरणा थी। उस समय भी अनमैरिड रही वह और यहां तक विचार कर लिया की यह सुना है मक्के में जो मरता है वह सीधा जन्नत में जाता है। स्वर्ग में। तो इससे बढ़िया अवसर कहां मिलेगा वृद्धा अवस्था हो गई। मक्के में अपनी गर्दन काट दी और चढ़ा दी। सब जगह यह चर्चा हो गई भाई बांसुरी तो जन्नत में जाएगी सीधी। दरवाज़े खुले हैं। अब बताओ वह तो लोकवेद था। तत्वज्ञान क्या कहता है? उसके बाद वह लड़की अगले जन्म में फिर लड़की रूप में जन्मी, युवा होकर वैश्या का जीवन जिया। सारा जीवन गंदे कर्म करे। एक भी अच्छी सोच नहीं। फोड़ दिए कर्म काल ने।
मानुष जन्म पाए कर खोवे, सतगुरु विमुखा युग युग रोवे।।
वो फिर मर गई उस गंदे जीवन को भोगकर पाप इकट्ठे करके ढेर लगाकर। उस तीन-चार साल की साधना से उसको मनुष्य शरीर मिलते रहे। उस दौरान परमात्मा ने कोशिश की लेकिन वह रंग में रंग चुकी थी। बांसुरी वाले में, खुद गायक बन गई। लोग प्रशंसक हो गए। बड़े बढ़िया अल्लाह का ज्ञान सुनाती रही और वैश्या बनने के बाद उसके कर्म वैसे ही फुट लिए। अच्छी बात समझ में ही नहीं आई। वह फिर मृत्यु को प्राप्त हुई। वैश्या का जीवन, गणिका का जीवन भोगकर फिर वह शेखतकी नाम के एक धार्मिक मुसलमान पीर के घर जन्म लिया बेटी के रूप में। 11 वर्ष की, 12 वर्ष की आयु पूरी करके वह मर गई। समय संस्कार पूरा हुआ। परमात्मा कहते हैं,
सौ छल छिद्र मैं करूं अपने जन के काज।
उस आत्मा को फिर अपने चरणों में लेना था अपनी प्यारी आत्मा को।
जो जन मेरी शरण है, ताका हूं मैं दास। गैल-गैल लाग्या फिरूं, जब तक धरती आकाश।।
तो कारण बनाया, शेखतकी के मन में यह धारणा पैदा कि, की राजा सिकंदर लोधी से जो उसका धार्मिक पीर था शेखतकी। उसने कहा की आप कहते हो इसने कबीर ने रामानंद जी को जीवित कर दिया। गर्दन काट दी थी आपने और आपका जलन का रोग ठीक कर दिया। कमाल ज़िंदा कर दिया। वह तो वैसे ही उसमें सदमे में था। वह वैसे ही हो जाता इत्तेफाक उसको जीवित होना था, इसका कबीर का नाम बन गया। जब जानूं मैं, इसको, मेरी बेटी को ज़िंदा करदे जो कब्र में दबी हुई है। 15- 20 दिन हो गए। तो कबीर साहेब से कहा गया। कबीर साहेब ने कहा कि आसपास के लोगों को बता दो कि आ जाओ एक कमाल होयेगा।
उस शेखतकी ने ही ढिंढोरा पिटवा दिया, की इसकी बेइज्ज़ती होवे तो छिक के होवे। मूर्ख बना रहा। उधर कबीर साहेब ने कह दिया कि भाई खूब बुला लो आसपास जितने बुला सकते हो। सबके सामने देखते हैं परमात्मा की क्या रज़ा होती है। हज़ारों व्यक्तियों के सामने कबीर साहब ने कहा हे शेखतकी की बेटी! जीवित हो जा। कब्र फुड़वा दी। उसमें शव पड़ा था। कहा हे शेखतकी की बेटी ! जीवित हो जा। लड़की नहीं जीवित हुई। फिर दोबारा कहा। फिर भी जीवित नहीं हुई। शेखतकी नाचने लग गया। खुल गई पोल ढोंगी की। देखो यह बकवाद करता था। सुन लो भाई। ऐ ढोंगी, पाखंडी, झूठा। तब परमात्मा ने कहा की शेखतकी तू कोशिश कर ले। तो और दूसरे बोले जी! यह कुछ करने लायक होता तो अपनी बेटी को कौन मिट्टी में दाबै। आप ही दया करो। तब कहा हे कबीर की बेटी! जीवित हो और बाहर आ बेटा! इतना ही कहना था। सारा शरीर में कंपन हुई। डेड बॉडी जीवित हो गई और उठकर बेटी बाहर आ गई। मालिक के चरणों में मस्तिष्क टेका।
डेढ़ घंटा तक अपनी पिछली गलतियां और कबीर भगवान की समर्थता सबके सामने बताई और कहा कि ऐसे-ऐसे मुझे यह भगवान मिले थे अल्लाह। यह खुद अल्लाह अकबर हैं। पूरी सृष्टि के रचने वाले, सबके दुख दूर करने वाले मेरे कर्म फुट गए, मैं इनको छोड़कर ऐसे-ऐसे गंदे जीवन जीकर मैं, आज फिर इनकी कृपा हुई। मेरा कोई भी मनुष्य जीवन शेष नहीं था। पशु-पक्षी बनने वाली लाइन में खड़ी थी। यह परमात्मा वहां पहुंचे और धर्मराज के दरबार में मुझे पेश किया। वहां से मेरे कागज़ निकाल दिए और मुझे साथ लेकर यहां आकर छोड़ा है।
बोलो सतगुरु देव की जय हो।।
बंदी छोड़ कबीर साहेब की जय हो।
बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज की जय हो।
तो उसने कहा, बेटी जा अपने पिता के साथ कबीर साहेब ने कहा, शेखतकी के साथ। वह बेटी बोली मुझे अपना पिता मिल गया। अपना मालिक मिल गया। इसका और मेरा संस्कार इतना ही था। आप मेरे पिता हो, सारी सृष्टि के मालिक हो। मैं तो आपके साथ रहूंगी।
अपने गुरु के मैं संग-संग होली, अपने गुरु के मैं संग-संग होली। सखी री मोहे नेक ना आई लाज। आज मोहे गुरु दर्श दिखाए री।।
बच्चों! यह बात तो बनेगी ऐसे ही। पानी कहते हैं, एक देसी कहावत है; पानी तो झील में नीचे के स्थान पर आकर ही टिकेगा। वैसे flood (बाढ़) में कितना ही ऊंचा चढ़ जा लेकिन टिकेगा वहीं आकर। मन का तूफान, बकवादों का कहीं, धक्के खालो, आकर बात बनेगी सतगुरु शरण में। तो कहते हैं गरीबदास जी ने कहा है;
गरीब, सतगुरु संगत छोड़कर, लाख वर्ष जप कीन। इंद्री कर्म ना मोक्ष हो, रहे काल के आधीन।।
सतगुरु पूर्ण संत की संगत छोड़कर चाहे लाख वर्ष तक यह जाप करते रहियो चाहे यही जाप करते रहना इसका कोई यूज़ नहीं होगा क्योंकि कनेक्शन कट चुका होगा, मर्यादा भंग हो गई। गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान। गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, वह व्यर्थ जाएंगे।
बच्चों! परमात्मा हमारे लिए भटक रहे हैं। इन पिछली गलतियों से सबक लो। इनको फिर से ना दोहराना। जैसे आपको बताया है कि कबीर भगवान हैं। यह सारी सृष्टि के रचने वाले हैं। यह हमारे पिता, हमारे जनक हैं हमारे कष्टों को दूर करने वाले, संकटमोचन यही हैं। लेकिन हम इनको छोड़कर अन्य उपासना करते रहे हैं। जैसे गीता अध्याय 16 श्लोक 23 और 24 में स्पष्ट कर दिया है की शास्त्र विधि को त्याग कर जो अपनी मर्ज़ी से, इच्छा से, मनमाना आचरण करते हैं, मनमानी साधनाएं करते हैं जो शास्त्रों में प्रमाणित नहीं हैं उनको न तो कोई सुख हो, न कोई सिद्धि प्राप्त हो, कार्य सिद्ध हों जिससे और न उनकी गति यानी मोक्ष हो। तो भक्ति करते हैं इसी के लिए, यह तीनों नहीं हुए तो उस भक्ति का फायदा क्या? ढले ढोने वाली बात।
तो बच्चों! आपको बताया सभी वेदों और ग्रथों से सिद्ध कर दिया कि कबीर भगवान हैं। वेदों को तो पूरा विश्व मानता है और हिंदू समाज तो इस पर कुर्बान है। उसके बाद दूसरे नंबर पर गीता, वेदों से भी प्रथम आ चुकी है वर्तमान में क्योंकि इस समय ज्ञान बिल्कुल संक्षिप्त में और बहुत तृति वाइज़ सीरीज में। तो इसलिए इनमें सबसे आपको प्रमाणित कर दिया की कौन सी भक्ति करनी है, कौन सी नहीं करनी है। गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में, 16 के श्लोक 23 में तो बता ही दिया की शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करते हैं उनको कोई यूज़ नहीं। 24 में कहा है कि इससे तेरे लिए अर्जुन शास्त्र ही प्रमाण हैं। कर्त्तव्य जो साधना करने योग्य है और अकर्त्तव्य जो नहीं करने वाली है इन्हीं के आधार से करो। गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में कहा है कि भूत पूजने वाले भूतों को प्राप्त होंगे। पितर पूजने वाले पितरों को प्राप्त होंगे, देवताओं की भक्ति करने वाले देवताओं को प्राप्त होंगे और मेरी भक्ति करने वाला मुझे प्राप्त होगा। अपनी साधना का पूरी गीता में आठवें अध्याय के 13वें श्लोक में एक मंत्र बताया है;
ओम, इति, एकाक्षरम्, ओम, इति, एकाक्षरम्, व्याहरण, माम, मम, ब्रह्म, अनुस्मरण।
ओम इति, एकाक्षरम्, मम, ब्रह्म, यः, प्रयाति, त्यजं, देहम्, सः, याति, परमम्, गतिम्।।13।।
मुझ ब्रह्म का, केवल एक ही मंत्र है, जिसका जाप करना अंतिम सांस तक जो इसकी साधना करता है वो मेरे से, इस ओम से, प्राप्त होने वाली गति को प्राप्त होता है। वह गति कौन सी है? इसके लिए आपको, क्योंकि यह एक लेक्चर है, पीरियड है, जो दास आपको दे रहा है और इसमें टीचर पहले दिन से लेकर एक साल तक यही पढ़ाता है। तब जाकर के बच्चों के दिल में समावे, चाहे सौ बार पढ़ा ले तो भी पढ़नी पड़ती है। तभी उसके ऊपर विश्वास होता जाता है। वह हृदय में जम जाती है। श्रीदेवी भागवत के छठे स्कंध में हिमालय राजा को देवी, वह देवी का परम भक्त था। कुछ बातें नहीं हो रही थीं। तो उसने कहा कि मुझे मोक्ष दो। धन तो बहुत दे दिया आपने। तो उसने कहा, मोक्ष, यह झूठ बोले इनको ज्ञान तो है नहीं और उस भक्ति का भी ज्ञान नहीं इनको? क्योंकि इन्होंने वह खत्म कर दिया जो मूल ज्ञान था सूक्ष्म वेद का वह पार्ट हिस्सा।
तो इसने कहा कि ओम का जाप कर, राजा हिमालय से, श्री देवी ने कहा दुर्गा ने। ओम का जाप कर और सब बात छोड़ दे। वह ब्रह्म दिव्य, आकाश रूपी ब्रह्म लोक में रहता है। उस ब्रह्म को प्राप्त हो जाओगे तुम्हारा कल्याण हो। गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में बताया है, की ब्रह्मलोक में गए हुए भी सब पुनरावृत्ति में है। गीता चारों वेदों का सारांश है। यह वेद है। जितना इसमें वेदों वाला ज्ञान है वह सत्य है। कुछ काल ने अपना मिलावटी किया है वह अलग दिखाई देता है। वह केवल युद्ध करवाने के लिए अटकल बाजी इसने की है और बीच में अपना तड़का भी लगाया है। वह साथ निर्णय हो गया क्योंकि सूक्ष्म वेद सब कुछ है। उससे सभी छठ गया अलग-अलग से यह गलत है, यह ठीक है। तो ब्रह्मलोक में गए हुए भी पुनरावृत्ति में, पुनर्जन्म होता है। गीता अध्याय 4 श्लोक 5 में इसने स्पष्ट कर दिया, “अर्जुन तेरे भी, मेरे भी बहुत जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता मैं जानता हूं। गीता अध्याय 2 श्लोक 12 में यही 10 के 2 में बताया कि मेरी उत्पत्ति तो हुई है लेकिन यह ऋषि देवता नहीं जानते क्योंकि यह मेरे से उत्पन्न हुए हैं।” फिर उस ज्ञान को जैसे जहां से शुरुआत हुई थी, की परमात्मा सतलोक से सबसे ऊपर के लोक में रहता है। वहां से चलकर गति करके आता है।
अपना सच्चा अध्यात्म ज्ञान खुद बोलकर बताता है। गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में यह कोड वर्डों (शब्दों) में है गीता ज़्यादातर। उसमें बताया कि जो ज्ञान,
“ब्रह्मणें मुखे सच्चिदानंद घन ब्रह्म”
ने अपने मुख कमल से बोली वाणी में बोला है उस वाणी में संपूर्ण विस्तार के साथ लिखा है। उससे यह पूर्ण मोक्ष होगा। फिर कभी जन्म-मरण नहीं होता। उसके बारे में चौथे अध्याय के 34वें श्लोक में कहा है कि उस ज्ञान को तत्वदर्शी संतों के पास जाकर समझ। उनको दंडवत प्रणाम करने से कपट छोड़कर उनकी सेवा करने से वह तत्वदर्शी संत तुझे तत्वज्ञान का उपदेश करेंगे। गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में स्पष्ट कर दिया है, “जो इस उलटे लटके हुए संसार रूपी वृक्ष के सभी विभाग का न्यारा-न्यारा ज्ञान बता देता, सभी विभागों का, सभी पार्ट्स स: वेदवित् वह वेद के तात्पर्य को जानने वाला है।” गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है, की उस ज्ञान के प्राप्त होने के पश्चात उस तत्वज्ञान रूपी शस्त्र से इस अज्ञान को काटकर यानी तत्वज्ञान को ठीक से समझ कर उसके पश्चात परमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए जहां जाने के बाद साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते और उसी की भक्ति करो जिसने सारे संसार रूपी वृक्ष को बनाया। सृष्टि रची है।
बच्चों! यह है वो तत्वज्ञान, यह है वह मूल ज्ञान, सार ज्ञान, निष्कर्ष निकाल के रख दिया गया है। अब गीता बोलने वाले ने कहा है, की उस तत्वज्ञान के अंदर सब कुछ निष्कर्ष है। उसको समझो। यही कुरान शरीफ के अंदर, कुरान मजीद के अंदर, सूरत फुर्कानी 25 आयत नंबर 52 से 59 में यही स्पष्ट किया है कबीर नाम का परमात्मा है जिसने सारी सृष्टि रची। जिसने सब, आपको सन्तान, माता-पिता का रूप दिया। सबके कर्मों को वह काटने वाला है। सबके कर्मों को ठीक से जानता है। 6 दिन में सृष्टि रच के जो सातवें दिन तख्त पर जा विराजा। उसकी खबर किसी बाखबर से पूछो।
गरीबदास जी कहते हैं;
वेद कतेब एक है भाई। और वेद कतेब का ज्ञान है अधूर, वह संतों का मार्ग दूर।।
यह अधूरा ज्ञान है जब इसमें स्पष्ट है ही नहीं? जब इसमें कह दिया कोई और बतावेगा। तो वह और अब आपके सामने है। आपको प्राप्त हो चुका है। अब भी बच्चों नहीं समझोगे तो कौन सी विधि अपनाएं जो आपकी आंखें खुलें?
कबीर, द्वार धणी के पड़ा रहे, धक्के धणी के खावें। सो काल झकजोर ही, पर द्वार छोड़ नहीं जावें।।
अब आपने इतना करना है, इस ज्ञान को समझ कर मालिक से दूर ना होना। सतगुरु विमुखा मत हो जाना। इसमें आपको अच्छा लगे, चाहे कोई कष्ट लगे, वह कष्ट भी God Gift (तोहफा) होगी। हो सकता है, पता नहीं कौन सा पहाड़ सा कष्ट आपका हल्के में टल रहा हो। पर जल्दी ना किया करो और तो धरती पर कहीं जा लियो तुम्हें बिल्कुल राहत नहीं मिलेगी।
तो बच्चों!
मानत ना मन मोरा साधो, मानत ना मन मोरा रे। बार-बार मैं यह समझाऊं, जग में जीवन थोड़ा रे।। बार-बार मैं यह समझाऊं, जग में जीवन थोड़ा रे।। दुविधा दुरमति चतुराई में, जन्म गया नर तोरा रे। अब भी आने मिलो सत्संग में, करो गुरु ज्ञान पर गोरा रे।। अब भी आन मिलो सत्संग में, करो गुरु ज्ञान पर गोरा रे।।
शरण पड़े को गुरु संभाले, जान कर बालक भोला रे। कहे कबीर तुम चरण चित राखो, ज्यों सूई में डोरा रे।। कहे कबीर तुम चरण चित राखो, ज्यों सूई में डोरा रे।।
मानत ना मन मोरा साधो, मानत ना मन मोरा रे। बार बार मैं यह समझाऊं, जग में जीवन थोड़ा रे।।
बच्चों! जैसे धागा सुई में चिपका रहता है ऐसे लटके रहियो, परमात्मा के दास के चरणों में मोक्ष मिलेगा।
सतसाहेब