विशेष संदेश भाग 15: भगवान किस तरह अपने भगत की रक्षा करता है?


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सत साहेब।

सतगुरु देव की जय।

बंदी छोड़ कबीर साहेब जी की जय।

बंदी छोड़ गरीब दास जी महाराज जी की जय।

स्वामी राम देवानंद जी गुरु महाराज जी की जय हो।

बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय हो।

सर्व संतों की जय।

सर्व भक्तों की जय।

धर्मी पुरुषों की जय।

श्री काशी धाम की जय।

श्री छुड़ानी धाम की जय।

श्री करौंथा धाम की जय।

श्री बरवाला धाम की जय।

सत साहेब।।

गरीब नमो नमो सत् पुरुष कुं, नमस्कार गुरु कीन्ही। सुरनर मुनिजन साधवा, संतों सर्वस दिन्ही।1।

सतगुरु साहिब संत सब दण्डौतम् प्रणाम। आगे पीछै मध्य हुए, तिन कुं जा कुरबान।2।

नराकार निरविषं, काल जाल भय भंजनं। निर्लेपं निज निर्गुणं, अकल अनूप बेसुन्न धुनं।3।

सोहं सुरति समापतं, सकल समाना निरति लै। उज्ज्वल हिरंबर हरदमं बे परवाह अथाह है, वार पार नहीं मध्यतं।4।

गरीब जो सुमिरत सिद्ध होई, गणनायक गलताना। करो अनुग्रह सोई, पारस पद प्रवाना।5।

आदि गणेश मनाऊँ, गणनायक देवन देवा। चरण कवंल ल्यो लाऊँ, आदि अंत करहूं सेवा।6।

परम शक्ति संगीतं, रिद्धि सिद्धि दाता सोई। अबिगत गुणह अतीतं, सतपुरुष निर्मोही।7।

जगदम्बा जगदीशं, मंगल रूप मुरारी। तन मन अरपुं शीशं, भक्ति मुक्ति भण्डारी।8।

सुर नर मुनिजन ध्यावैं, ब्रह्मा विष्णु महेशा। शेष सहंस मुख गावैं, पूजैं आदि गणेशा।9।

इंद्र कुबेर सरीखा, वरुण धर्मराय ध्यावैं। सुमरथ जीवन जीका, मन इच्छा फल पावैं।10।

तेंतीस कोटि अधारा, ध्यावैं सहंस अठासी। उतरैं भवजल पारा, कटि हैं यम की फांसी।11।

कबीर, सतगुरु के उपदेश का, सुनिया एक विचार। जै सतगुरु मिलते नहीं, जाते नरक द्वार।।12

नरक द्वार में दूत सब, करते खैंचातान। उनसे कबहूं नहीं छूटता, फिरता चारों खान।।13

कबीर चार खानी में भ्रमता, कबहूं ना लगता पार। सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।।14

जय जय सतगुरु मेरे की। जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से रहियो, अमरपुरी के डेरे की।। जय जय सतगुरु मेरे की। जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से रहियो, अमरपुरी के डेरे की।।

निर्विकार निर्भय तूहीं, और सकल भयमान। ऐजी साधो और सकल भयमान। सब पर तेरी साहिबी। सब पर तेरी साहिबी। तुझ पर साहेब ना।। निर्विकार निर्भय।।

निर्विकार निर्भय तूहीं, और सकल भयमान। ऐजी साधो और सकल भयमान। सब पर तेरी साहिबी। सब पर तेरी साहिबी। तुझ पर साहिब ना।। निर्विकार निर्भय।।

परमपिता परमात्मा कबीर परमेश्वर जी की असीम रज़ा से बच्चों हमें अपने घर का ज्ञान हुआ। काल के लोक की पीड़ा कितनी भयंकर है इससे डर बना, इसका ज्ञान होने से और सतलोक के सुख की चाह बनी। आपको यह सच्चा मार्ग, सच्चा ज्ञान, सच्चा भगवान और सच्ची भक्ति, पूर्ण सतगुरु प्राप्त है। अपनी किस्मत को सराहया करो। हे बंदी छोड़! उस मालिक के गुण गाया करो। हे परमात्मा! हम इतने निकम्मे इंसानों पर आपने कैसे दया कर दी। हम कैसा ज़ुल्म करके आपको छोड़कर इस गंदे लोक में आए हैं। आप कितने दयालु हो। गरीबदास जी कहते हैं;

सतगुरु आए दया करी।

इस गंदे लोक में झांखै भी कोनी (नहीं), ऊपर जाने के बाद। गरीबदास जी कहते हैं,

सतगुरु आए दया करी।

ऐसे गंदे लोक में और उस सुख स्थान को छोड़कर। जैसे केशव और कबीर रूप में, जब मालिक दोनों रूप धारण करके आपस में चर्चा करते हैं हमें समझाते हैं। केशव कहता है;

कहो कबीर क्यों उतरे, ऐसे मुल्क मलिन।

ऐसे मलिन लोक में क्यों आए आप? और वो छोड़े हीरे मोती लाल। वहां ऐसी सुख सुविधा छोड़ आए आप। तो कबीर साहेब कहते हैं;

भवसागर में आए हैं, जीव हमारे लाल।

इनके लिए आया हूं।

गोता मारूं स्वर्ग में, जा पैठूं पाताल। गरीबदास ढूंढता फिरूं, अपने हीरे मोती लाल।।

देखो !

सतगुरु आए दया करी, ऐसे दीनदयाल। बंदी छोड़ बिरद तास का,

उसका गुण है बंदी छोड़, काल के लोक से छुड़वाने वाले और जठराग्नि प्रतिपाल।।

तुम्हारा पालन-पोषण, धारण-पोषण करने वाले वही हैं। आपको इतना ज्ञान सुना दिया और सुना रहे हैं। इस ज्ञान से आपके अंतःकरण में यह final (अंतिम) हो जाएगा एक दिन क्योंकि बार-बार कोई वस्तु सुनते हैं उसका धीरे-धीरे, धीरे-धीरे असर बनना शुरू होता है। तो बच्चों! परमात्मा प्राप्ति के लिए हम बहुत समय से प्रयत्न करते आ रहे हैं। युग बीत गए अपने को, युग।

अब आपको सरबंगी साक्षी के अंग की वाणी सुनाता हूं क्योंकि इस अमरवाणी से, अमर ग्रंथ से हमारे को यह पता चलेगा कौन सी साधना गलत है। हम किनको संत-साधु मानते थे वह कितने सफल रहे या असफल रहे?

गरीब चुंडित मुंडित भद्रा, मोनी महल ना पावैं। धूम्रपान ठडेसरी, यह दोजख धक्के खावैं।।

चुंडित बड़े-बड़े जटाधारी बाल रखे हुए हों। कंठी माला पहन रखी हो। कान कून (आदि) पड़वा रखा हो या वैसे ही मूंड मुंडवा रखे हों। गले में मालाएं हों। राख लपेट रखी हो या कति (बिल्कुल) सिर कोरा कचकोला कढ़वा रखा हो, उस्तरा फिरवा कर और गेरुए कपड़े भगवा कपड़े पहन रखे होते हैं। कुछ सुलफ़े पीवैं और ठडेसरी खड़े होकर तप करते हैं, ठडेसरी बोलते हैं उनको। तो कहते हैं;

गरीब, चुंडित मुंडित भद्रा, मोनी महल ना पावैं।

कुछ मौन रखते हैं। Drama (नाटक) करते हैं ढोंग करते हैं कि साधू बोलता नहीं भाई 6 साल से मौन बैठा है और संकेतों से काम करता है सारा। बात कहनी हो लिख कर दे दे। वैसे संकेत कर दे। पानी पीना है मुंह पर हाथ लगा दे। तो यह सिर्फ पाखंड है। भक्ति हीन इंसानों के यह कर्म हैं।

गरीब, चुंडित मुंडित भद्रा, मोनी महल ना पावैं। धूम्रपान ठडेसरी, दोजख धक्के खावें।।

दोज़ख़ माने (मतलब) नरक। यह महल नहीं पावैं सतलोक प्राप्त नहीं कर सकते। यह नर्क (नरक) में धक्के खाएंगे।

गरीब योग नहीं यो रोग है, जब लग नाम ना चिन्है। घर घर द्वारे भटकते, भेख बिना यकीन।।

यह योग माने (मतलब) साधना भक्ति नहीं है। यह तो मान बढ़ाई का रोग लगा हुआ है। जब तक सच्चा नाम निज नाम नहीं मिलेगा सच्ची भक्ति नहीं मिलेगी यह जन्म - मरण का रोग यूं (जैसे) का यूं (तैसा) बना रहेगा और घर-घर द्वारे भटकते भेख बिना यकीन।

गरीब भेख लिया तो क्या हुआ, जब लग नहीं विवेक। तीन काल निपजै नहीं, नहीं मिटे कर्म रेख।।

यह भेख लेना होता है किसी विशेष पंथ में उसकी वेशभूषा ग्रहण कर लेते हैं दीक्षित माने जाते हैं। जैसे वैष्णो परंपरा के व्यक्ति एक कंठी माला गले में डालते हैं। सफेद बाणा पहनते हैं। तिलक लगाते हैं। बड़ी-बड़ी दाढ़ी मूछ रखते हैं इनको वैष्णो साधु बोलते हैं। दूसरे कनपाड़े हैं कान पड़वा लेते हैं। उनमें माला जैसी मोटी मोटी मुद्रा डालते हैं। बड़ी-बड़ी जटा रखते हैं। सुल्फे पीते हैं चिमटे राखे (रखते) हैं।

गरीब, भेख लिया तो क्या हुआ, जब लग नहीं विवेक। तीन काल निपजै नहीं, नहीं मिटे कर्म रेख।।

की यह अलग से कोई वेशभूषा बनाकर बाह्य आडंबर कर भी लिया, बिना विवेक बिना ज्ञान के इससे कोई लाभ नहीं होगा। तीन काल निपजै नहीं। यानी कदे (कभी) भी लाभ नहीं होगा, कभी भी। नहीं मिटे कर्म रेख। यानी कर्म के दंड पाप कर्म नहीं कटेंगे।।

गरीब, अधय कपाली तपत है, तले सिर ऊपर पैर। दम का खोज न जान हीं, क्या देही सुं बैर।।

क्या बताते हैं कि कोई ऊपर ने (को) पैर करे, आसन पर नीचे सिर करके तपता है। कोई किसी प्रकार से कठिन साधना करता है कि;

तुम स्वांस के सिमरन का, दम का खोज न जान हीं, क्या देही सुं बैर।।

आप ठीक से भक्ति नहीं जानते जो स्वांस का सिमरन है उसका ज्ञान तुम्हें नहीं है। फिर इस शरीर के साथ क्यों दुश्मनी कर रखी है, इसकी दुर्गति कर रखी है इसको इतना कष्ट दे रहे हो।

गरीब, या देही सोंहंगी नहीं, महंगी रत्नों मोल। जै जाने तो राम जप, नहीं कुल कपाट न खोल।।

या देही, मनुष्य शरीर इतना सस्ता नहीं है। युगों-युगों अच्छे पुण्यों के कारण, धर्म भक्ति करने के कारण मानव शरीर प्राप्त होता है। इसको, यह बहुत कीमती है, इसको ऐसे बकवादों में मत खोवो। फिर तो साधना नहीं करते, करते हैं तो यह शास्त्र विरूद्ध करते हो। यह सब गलत बताई है।

गरीब, पर्वत डूंगर क्यों चढ़ो, बस्ती तजो न गांम। बन बस्ती में एक सा, जाकै हृदय राम।।

पर्वत डूंगर क्यों चढ़ो। कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है। परमात्मा की सच्ची भक्ति अपने घर पर करो। कहीं भी करो वह सच्ची भक्ति होनी चाहिए।

गरीब, सतपुरुष निर्गुण कला, सर्गुण कलप बिनोद। ओहं सोहं से भिन्न, नि:अक्षर को शोध।।

परमात्मा कबीर जी की भक्ति करो और ओम सोहं तो आपको बता ही रखा है इससे भी अलग एक मंत्र है। उस मंत्र को विशेष ध्यान से जाप करो।

गरीब, बिना साढ साढू नहीं, सुनो सियानी लोय। सारा बरसे भादवा, कारज सिद्ध ना होय।।

जैसे समय पर बारिश होती है तो उससे फसल अच्छी होती है। बगैर किसी समय के बारिश होती है तो उससे कोई लाभ नहीं होता।

गरीब, साध नदी और मेघ जल, कहीं कहीं है मौज। निंदत पापी मारिये, जिन घर दौड़ै फौज।। गरीब, दहत दल दरमले, असुर दल आसगे, मंढी मसानों निशंक फिरै। जीवै जब लग जोखिम नहीं, मरे जब निशंक मरे।।

यानी सच्ची भक्ति परमात्मा कबीर जी की सत साधना पूरे सतगुरु से लेकर जो साधना करता है भक्त, भक्तमति, बच्चे। वो कहते हैं मंढी, मसानों, श्मशान घाटों पर, मंढियों पर जो यह लोग जहां पूजा बकवाद करते हैं और राक्षसों के झुंड यह भूत-प्रेत घूमते फिरते हैं कि इनमें किते (कहीं) निशंक फिरो। निर्भय होकर घूमो।

जीवै जब लग जोखिम नहीं, और मरो जब निशंक मरो।

की परवाह ना करना। परमात्मा कबीर जी कहते हैं गरीबदास जी कहते हैं, परमात्मा कबीर जी इतने सक्षम हैं, अपने भगत को इतने जीवन रहेगा। इतने कोई tension (चिंता) नहीं होने देंगे, कोई दिक्कत नहीं आने देंगे। मरे जब, निर्भय होकर शरीर छोड़ देना। आपके लिए विमान तैयार मिलेगा tension (चिंता) ना लेना।

गुरु, चंद्र सूर्य की आयु लग, जै जीव का रहै शरीर। सतगुरु से भेटा नहीं, तो अंत कीर का कीर।।

चंद्र और सूर्य, चांद और सूरज की आयु लग, यदि जीव का शरीर रहे और सच्ची भक्ति पूरे सतगुरु से प्राप्त नहीं हुई तो कितनी ही साधना करता दिखता है अंत में कीड़ा - मकौड़ा है, कीर का कीर।।

गरीब, एक पलक जुग जीवना, जै सतगुरु भेंटा होए। रोम रोम तारी लगे, सुरति सुहंगम पोय।।

की एक पलक, एक पलक यानी कुछ समय के लिए भी सच्चे सतगुरु की आपने संगत, सत्संग सुन लिया तो धीरे-धीरे आत्मा उसको catch (पकड़) करती चली जाती है। रुचि बढ़ती चली जाती है और फिर अंत में दीक्षा लेकर अपना कल्याण कराता है।

गरीब, डेरे डांडै खुश रहो, खुसरे लहे ना मोक्ष। ध्रुव प्रह्लाद उदर गए, तो डेरे में क्या दोष।।

अब जैसे बहुत सी धारणाएँ गलत पैदा कर रखी हैं। कहाँ कहाँ से समझाएं आपको, इतनी उल्टी सीधी बातें घर कर रखी हैं। हमारे हृदय में डाल रखी हैं। प्रत्येक व्यक्ति को अज्ञान से भर रखा है कूट कूट के। कई कहते हैं कि गृहस्थी पार नहीं हो सकते बाल- ब्रह्मचारी रहो। उनकी मुक्ति होगी।

गरीबदास जी स्पष्ट करते हैं कि,

डेरे डांडै खुश रहो, खुसरे लहे ना मोक्ष।

यदि ब्रह्मचर्य का पालन करने मात्र से मोक्ष होता है तो यह हिजड़े तो पहले ही पार हो जाएं। इनको तो कोई दिक्कतें को (ही) नहीं, किसी प्रकार की। फिर कहते हैं;

ध्रुव प्रह्लाद उदर गए, फिर डेरे में क्या दोष।

डेरा माने (मतलब) गृहस्थी। ध्रुव ने 5 साल की आयु में कठिन साधना की। यह पिछले संस्कारों से ऐसे result (परिणाम) मिलते हैं। इनको परमात्मा मिले विष्णु रूप में। इसने राज मांगा। इसको राज मिल गया। इसके भाई उत्तम को राज दे दिया गया था, जो इसकी मौसी का बेटा था और वह किसी लड़ाई में मारा गया। इकलौता पुत्र शेष ध्रुव बच गया उत्तानपात का। तो वह राज जो मां ने कर्म फोड़कर, एक भगत को सता कर अपनी बहन को भी सताया था इस सुरीति ने, जो उत्तम की मां थी। ध्रुव का भाई उत्तम था, मौसी का बेटा।

तो उसने इतने कर्म खराब किये अपनी बहन को सताया। ध्रुव भगत को तंग किया। उसको लात मारी, धक्के मारे। अपने बेटे को राज दिलाया। परमात्मा की लीला देखो, उत्तम युद्ध में मारा गया, ध्रुव को फिर वह राज मिला। ध्रुव की अपनी भी शादी हो चुकी थी और उत्तम वाली पत्नी भी ध्रुव के साथ लगाई गई। तो कहने का भाव यह है बकवाद नहीं चले, व्यभिचार परमात्मा को कति (बिल्कुल) पसंद नहीं। पर शादी-विवाह कभी मना नहीं किया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों शादीशुदा और इनके उपासक न्यों (यह) कहे ब्रह्मचारी रहना चाहिए। अच्छी बात है बकवाद नहीं करनी चाहिए। लेकिन यह एक गलत धारणा बनाना अच्छी बात नहीं।

डेरे डांडै खुश रहो, खुसरे लहे ना मोक्ष। ध्रुव प्रहलाद उदर गए, तो डेरे में क्या दोष।।

प्रह्लाद को 10 साल की उम्र में भगवान प्राप्ति हुई थी। यानी नरसिंह रूप धारण करके परमात्मा उसके लिए आए और उसके बाप राक्षस को मारा। प्रह्लाद को राज दिया। प्रह्लाद का विवाह हुआ। प्रह्लाद का पुत्र बैलोचन हुआ और बैलोचन के राजा बलि हुए। यह प्रह्लाद का पोता था राजा बलि जिसने 100 अश्वमेध यज्ञ की और परमात्मा बावना बनकर आए और उसका वह यज्ञ खंड किया, पाताल का राज दिया। तो कहने का भाव यह है कि जब तुम मानते हो ध्रुव और प्रह्लाद पार हो गए, तो जब यह पार हो गए तो गृहस्थी में क्या दिक्कत है? यदि जिस तरह यह लोग दिखावा करते हैं जगंल मे चले गए, तपस्या करते हैं, एक टांग (पैर) पर खड़े हैं। कोई ऊपर ने (को) पैर करके तपस्या कर रहा है, कोई पांच धुणे लगा रहा है, कोई पानी में खड़ा है। अगर ऐसे ही भगवान प्राप्ति हो तो हमारा नंबर तो कभी नहीं आवे गृहस्थियों का। जबकि साधना यही थी।

डेरे डांडै खुश रहो, अपने घर रहो, भक्ति करो धन्धा करो, निर्वाह करो। निर्वाह के लिए काम करो। जैसे गीता अध्याय 3 श्लोक 9 में कहा है कि अर्जुन यदि तू एक स्थान पर बैठकर भक्ति करेगा तो तेरा निर्वाह कैसे चलेगा? कर्म सन्यासी की बजाय कर्म योगी बन। काम भी कर और राम भी रट। 8वें अध्याय के 7वें श्लोक में कहा है कि तू युद्ध भी कर और मेरी भक्ति भी कर। यानी काम, युद्ध से कठिन तो काम होता ही नहीं। तो यहां बताते हैं;

गरीब, गाड़ी बाहो घर रहो, खेती करो खुशहाल। साईं सिर पर राखिए, तो सही भक्त हरलाल।। (ओए होए…)। गरीब, डेरे डांडै खुश रहो, खुसरे लहे ना मोक्ष। ध्रुव प्रहलाद उदर गए, तो डेरे में क्या दोष।

जैसे गलत धारणाएं पैदा कर रखी हैं कि मोक्ष तो उसको प्राप्त होगा जो घर छोड़ जाएगा। जंगल में कठिन तपस्या करेगा, परिवार का मोह त्याग देगा और ब्रह्मचारी जीवन जियेगा। तो यहां गरीबदास जी स्पष्ट करते हैं कि,

डेरे डांडै खुश रहो, यह खुसरे लहै ना मोक्ष।

अपने घर पर रहो आराम से, यदि ब्रह्मचर्य का पालन करने मात्र से और जंगल में बैठ जाने से मोक्ष होता है तो यह खुसरे-हिजड़े तो सारे ही पार हो जाएं। नहीं ऐसा नहीं है। आप मानते हो ध्रुव पार हो गया। आप मानते हो प्रह्लाद पार हो गया। ध्रुव 5 साल की उम्र में भक्ति के लिए निकला। कठिन साधना की। उनका विश्वास देखकर भगवान ने उनको दर्शन दिए।

ध्रुव को राज की चाह थी और कुछ नहीं मांगे था क्योंकि कारण क्या था? उत्तानपात राजा था और ध्रुव की मां उसकी पत्नी थी। यानी राजा की रानी थी। उसको कोई संतान नहीं हुई वृद्धा अवस्था हो गई थी। आधे से ज्यादा उम्र हो गई थी तो उसकी, ध्रुव की मां सुनीति थी। सुनीति ने अपने घर जाकर अपने माता-पिता से अपनी छोटी बहन सुरीति को राजा के लिए मांगा। कारण यह था कि एक दिन नारद जी आए। नारद जी ने बताया उस सुनीति को, ध्रुव की मां को कि राजा दूसरी शादी करे। उसके बाद आपको पुत्र पहले होगा। उसको बाद में होगा। वैसे संतान नहीं होगी यह संयोग है। रानी ने राजा को मनाया। अपने घरवालों से request (प्रार्थना) करी। आखिर में उस लड़की, छोटी बहन की राजा के (से) शादी करवा दी। अब सुरीति ने (को) यह ईर्ष्या हो गई कि मेरी बहन ने मेरा जीवन बर्बाद कर दिया।

एक बूढ़े के (से) ब्याह (विवाह) करवा दिया मेरा। मेरी किसी राजा से शादी होती, स्वतंत्र होती। जब विवाह करके राजा आ रहा था सीमा के ऊपर कहा, यहां लेकर आ रहा था अपनी सुरीति second (दूसरी) पत्नी को। राज की सीमा पर जाकर रथ रुकवा लिया और बोली वह सुरीति, मेरी condition (शर्त) है। यह मानोगे तो मैं आगे कदम रखूंगी नहीं तो मैं तेरे साथ नहीं जाऊंगी। राजा ने पूछा क्या बात है? कि जो मेरी बहन है उसको निकाला दे दे। उसको अलग रखेगा। उसको खाने का भी माप तोल कर देना होगा। दुहागन करेगा। इसमें काफी condition (शर्त) होती है। दुहागन के लिए अलग से मकान बनाया जाएगा। राजा ने मान लिया और दूसरा यह होगा कि जो मेरा पुत्र होगा, उसको राज मिले। मेरी बहन के पुत्र को राज ना मिले, इस तरह की शर्त सारी राजा ने मान ली और आ गए। फिर पहले ध्रुव हुआ। ध्रुव जब उत्पन्न हुआ उस समय मां वैराग्य में थी। घर से अलग दूसरी जगह रखा हुआ था और यह बहुत लंबी कहानी है।

इतना यहां नहीं बता पाऊंगा। तो उत्तम को राज दे दिया। ध्रुव को धिक्कार दिया। भगा दिया उसकी मां ने। तो यह लंबी कहानी है। यहां इतना समय नहीं मैं आपको बता पाऊंगा। तो ध्रुव, परमात्मा से राज लेने के लिए मां से पूछा ध्रुव ने मां उत्तम को राज किसने दिया है? बेटा भगवान देता है। परमात्मा ने दिया। उसके भाग्य में लिख दिया। तेरे भाग्य में नहीं है। तो ध्रुव बोला, मैं भगवान से राज लूंगा। न्यों (यह) कहकर छोड़कर चल पड़ा। 6 महीने तक एक पैर पर खड़ा होकर या जैसा भी तपस्या खूब की। जाप किया। पिछले संस्कार से होता है यह। वैसे तप तो दुनिया करती है। पिछले युगों का बहुत संस्कार भक्ति करते-करते आए हुए थे और वो काफी संग्रहित थी। उसके प्रतिफल में मालिक ने उनको ऐसा कुछ कर दिया। परमात्मा प्रकट हुए, बोले भाई क्या मांगता है बोलो? मुझे राज चाहिए भगवान! मुझे राज दो। ठीक है राज दे दिया कि पहले तू यहां कर फिर तुझे ऊपर एक अलग, अलग से ब्रह्मांड बनाके (तुझे अलग से एक नगरी बनाके) दूंगा द्वीप।

ध्रुव प्रह्लाद वापिस आ गया। उधर से यह दोनों बड़े हो गए उत्तम भी और ध्रुव भी। उत्तम का  विवाह भी हो गया, ध्रुव का विवाह भी हो गया। उत्तम मारा गया, एक राजा से युद्ध होने से। तो राज भी ध्रुव को मिल गया और उत्तम वाली जो पत्नी थी वो भी ध्रुव के साथ लगाई गई। तो कहने का भाव यह है,

गरीब डेरे डांडै खुश रहो, खुसरे लहे ना मोक्ष। ध्रुव प्रह्लाद उदर गए , तो डेरे में क्या दोष।।

जैसे ध्रुव ने शादी कराई, ध्रुव की भी संतान हुई और आप कहते हो यह पार हुआ तो यह डेरे में था, घर में था, गृहस्थी में था तो पार हुआ। तो भी पार हुआ। कितना पार हुआ? वह पार होना अलग-अलग stages (चरण) हैं एक तो स्वर्ग तक पहुँच गया। पार हो गया। यह स्वर्ग तक पहुँचने को ही पार मानते थे और प्रह्लाद, प्रह्लाद भगत की (को) 10 साल की उम्र में परमात्मा मिले नरसिंह रूप धारण करके उसकी रक्षा की।

उसके बाप राक्षस को मारा। प्रह्लाद को राज्य दिया और उसने शादी कराई। प्रह्लाद ने बड़ा होकर के, उसके एक पुत्र हुआ बैलोचन और बेलौचन का पुत्र हुआ राजा बलि। यानी प्रह्लाद का पोता राजा बलि था, जिसने 100 अश्वमेघ यज्ञ की थी और भगवान बावना रूप धारण करके उसकी 100वीं यज्ञ को खण्ड कराने के लिए गए थे। तो कहने का भाव यह है कि गरीब दास जी कहते हैं;

डेरे डांडै खुश रहो, खुसरे लहे ना मोक्ष। ध्रुव प्रह्लाद उदर गए।

यानी इनका उद्धार हो गया। कितना हो गया? वह उस भक्ति से (पर) निर्भर करता है। तो इस गृहस्थी में क्या दोष। बच्चों! यह वाणियां कैप्सूल रूप में बना रखी हैं। जैसे पुड़िया होती है। इस एक पंक्ति में बहुत बड़ी कथा इसके अंदर भर रखी है। यह सुनाता हूं।

गरीब, ज्ञानी को सतगुरु मिले, खोजी दे न ताड़। सिर पर सत्य कबीर है, उड़ी भ्रम की बाड़।।

हमारी यह भ्रम की बाड़, हमारी सब शंकाएं समाप्त कर दीं कबीर भगवान के अमृत ज्ञान ने।

कबीर, और ज्ञान सब ज्ञानड़ी, कबीर ज्ञान सो ज्ञान। जैसे गोला तोब का, करता चले मैदान।।

गरीब, दत्ता जीया को मिले, दक्षिण बीच दयाल। सूखा खूंट हरा हुआ, ऐसे दीन दयाल।।

दत्ता जीया को मिले, दक्षिण बीच दयाल। सूखा खूंट हरा हुआ, ऐसे दीनदयाल।।

एक दत्ता तथा जीया नाम के दो ब्राह्मण भाई थे। इनको तत्वा जीवा भी कहते हैं। यह अपने देशी भाषा में गरीब दास जी ने दत्ता जीया कहा है। यह गुजरात state (प्रांत) के अंदर एक भरूच शहर है भरूच। समुद्र के किनारे पर और उससे 12 किलोमीटर दूर एक मंगलेश्वर गांव है। हम खुद देखकर आए थे उसको, उस स्थान को, कई भक्त थे मेरे साथ। तो मंगलेश्वर गांव के पास एक शुक्ल तीर्थ नाम का गांव हुआ करता था।

जिसमें जीवा (जीया) और दत्ता यह दो ब्राह्मण भाई भी रहते थे। वह सारा ब्राह्मणों का ही गांव था। वह आसपास गांव में जाकर पंडिताई किया करते थे। दत्ता और जीया बहुत ही परमात्मा के चाहने वाले थे। वह सत्संग सुनने जाया करते थे, जहां भी कहीं साधु संत का सत्संग होता था। तो सभी यह कहते थे भाई मोक्ष के लिए पूर्ण सतगुरु की आवश्यकता होती है गुरु बिन मोक्ष नहीं होगा। गुरु बिन सच्चा ज्ञान भी नहीं होगा। जहाँ भी जाते थे वह मंडलेश्वर प्रवक्ता एक ही बात बताते थे। तो जीवा और दत्ता ने, जीवा और तत्वा ने, दोनों भाइयों ने विचार किया कि भई जहां भी हम सत्संग जिसका सुनते हैं वही हमें तो बहुत पूर्ण गुरु लागे (लगते) हैं।

जिसके विचार सुनते हैं वह उससे भी अच्छा लगता है और पूरे गुरु बिना बात नहीं बने। मोक्ष नहीं हो। यह तो असंख्य जन्म हमने जन्मते और मरता को हो गए। जैसे परमात्मा कबीर जी क्या करते हैं किसी भी रूप में आकर और कई जगह मेले आदि भरा करते इनके तीर्थों पर। वहां चले जाते थे। वहां खड़े होकर शब्द सुनाने लग जाते और 10, 20, 50 व्यक्ति भगवान के चाहने वाले उनकी बातें सुना करते थे। तो जीवा और दत्ता को किसी स्थान पर, परमात्मा उन्हीं के लिए जाते हैं क्योंकि वह भटक रहे हैं भगवान के लिए। यह बातें बताईं कि पूर्ण सतगुरु हो। सच्चा ज्ञान हो। तो, तब मालिक की राह मिलेगी, मोक्ष मिलेगा।

असंख्य जन्म भ्रमित हो गए, कुछ नहीं हाथ लगा रे।

इस तरह की जबरदस्त बातें बताईं। तो उनसे वह प्रेरित हुए। उनको नहीं पता था यह कौन है? उन्होंने तो एक भगत माना, गीत आदि शब्द आदि सुनाने वाला। फिर वह साधु संतों की तलाश में चल पड़े। जहां भी जावैं एक से बढ़िया एक लतीफेदार प्रवचन करें। बड़ी-बड़ी कथा सुनावैं। संस्कृत की भाषा में ज़बरदस्त बोलैं। Speech करें, प्रवचन करें। आखिर में उन्होंने सोचा, भई एक हम कैसे निर्णय करें यह संत पूरा है और यह नहीं? हम किसी को पूरा संत मानकर उसके आश्रित हो जावें और अंत में पता चले यह पूरा नहीं? मनुष्य जन्म तो गया, यह बार-बार नहीं मिलेगा।

आखिर में उन्होंने एक फैसला कर लिया कि हम एक बड़ के पेड़ की सूखी टहनी लगाएंगे, गमला बनाकर, धरती में गढ्ढा खोदकर। जैसे पौधा लगाया करें और जिस संत के चरणामृत से यह हरी हो गई हम उसको गुरु बनावेंगे। उन्होंने सब मंडलेश्वरों, जहां भी कोई चर्चित संत है वहां गए बेचारे दुख - सुख पाकर पैदल चला करते, उनके चरण धोए। महाराज चरणामृत दे दो। कौन मना करे चरणामृत को। लावें और डालें। कोई कुछ नहीं हुआ। न्यों (जैसे) के (का) न्यों (तैसा)।

अंत में उन्होंने कहा, हे परमात्मा! धरती पर संत नहीं है और संत नहीं है तो हमारा मोक्ष नहीं। इसलिए हे परमात्मा! हमारा जो मानुष जीवन शेष बचा है इसको खत्म कर दो। हम दोनों को मार दो। कभी पृथ्वी पर संत हो तब जन्म देना। न्यों (ऐसे) कहकर खूब फूट-फूट कर रोने लगे। काफी देर, बहुत ही tension (चिंता) में रहने लाग (लग) गए। खाना-पीना लगभग छूट गया कि इससे तो मर जाना अच्छा है।

यह तो पशुओं जैसा जीवन, बहुत बार जी लीए क्योंकि कबीर साहेब रह-रहकर उनको सुना गए थे। कहीं-कहीं  इकट्ठे होकर खड़े हो जाते थे। जाते थे, भटकते थे वहां मालिक भी किसी न किसी रूप में चले जाते थे। उनके यह प्रेरणा भर‌ दी थी। बाकी इन मंडलेश्वरों के बस में यह भी नहीं थी ऐसी प्रेरणा भर दे। इतना वैराग डाल दें। एक दिन परमात्मा पहुंचे उस शुक्ल तीर्थ गांव में। गली में जा रहे थे। तो दत्ता बाहर निकला और बोला जीवा देख एक संत घूम रहा है गली में, कहो तो बुला लूं? जीया बोला अरे! संत ऐसे-ऐसे मंडलेश्वर देख लिए इस सड़क छाप पर क्या पावैगा? क्यों जी दुखी करे हैं और कई दिन रोना पड़ेगा। कुछ ना (नहीं) इनके पल्ले (पास)।

दत्ता बोला मेरा तो ऐसा दिल करै है बुला लूं एक बार। भई साधु सा दिखै है। चेहरे से बहुत अच्छा लगा। देखते ही आत्मा खुश हुई। जीया बोला बुला ले, मैं क्यों मना करूँ? वह तो बुला लिया। एक बैठने का मूड्ढा सा दे दिया, स्टूल सा। बैठो महाराज, बैठो। दत्ता ला, जीवा ला परात निकाल कर। थाली। महाराज के चरण धो। चरण धोकर और जा जीया उसमें डाल दे, पौधों में डाला करे संतो के चरणामृत। इधर-उधर मत डालिए कहीं। गमले में डाल दे। अब जीवा डालने लग रहा है। डालते ही डालते वह कोपल फूट आई, बड़ के।

बड़ की डाली के। वट वृक्ष की टहनी के। जीया बोला, दत्ता भाग आईये आईये। क्या हो गया? दोनों देखकर सुन्न ह़ो गए। आते ही पैर पकड़ लिए। हे परमात्मा! हमने तो यह सोच लिया था, धरती पर संत नहीं है। कबीर साहेब बोले जिस दिन पृथ्वी पर संत नहीं होगा, आग लग जाएगी इस पर। यहां कोई नहीं बचेगा। काल फूंक देगा इस पृथ्वी को। हे मालिक! आप पहले क्यों ना आए हम तो बहुत भटक लिए थे। हमने तो सोच लिया था धरती पर कोई संत नहीं और हम तो अब मरा हों (मर जाते)। भूखे-प्यासे रहकर कति (बिल्कुल) ना जीने के रहे थे, ना मरने के। तो परमात्मा से काफी लिपटकर, सीने से लगकर, कभी चरणों में गिरकर और सौ-सौ शुक्र मनावैं (मनाते हुए)। हे परमात्मा! आप पहले क्यों नहीं आए हम तो मर लिए कति (बिल्कुल) सारे घूम लिए उन मंडलेश्वरों के। किसी के पास कुछ नहीं पाया।

परमात्मा बोले बच्चों! यह संत की पहचान नहीं थी जो तुम कर रहे थे। यह तो सिद्ध भी करते हैं थोड़ी बहुत चमत्कार, जादूगर कर देते हैं। हथेली पर गेहूं हरे कर देते हैं। यह कोई पहचान थोड़ी है जो तुमने यह क्या तरीका अपनाया था? संत की पहचान ज्ञान से होती है।

समाधान से होती है और मैं पहले भी आ सकता था। लेकिन आपके कति (बिल्कुल) विश्वास नहीं रहा हो। मेरे पर कति विश्वास नहीं बनना था क्योंकि मैं तो आपको ऐसा लग रहा हूं जैसे हांडनिया (घुमने फिरने वाला)- फिरनिया (घूमने -फिरने), मांगनिया - खानिया (मांगने - खाने) और वह मंडलेश्वर जिसके लाखों हजारों बड़े-बड़े सेठ साहूकार शिष्य। तुम न्यों (यह) सोचो (सोचते) कि और भी कोई होगा ज़रूर। इसने सड़क छाप ने (को) छोड़। उनके पास जाते वहां कुछ मिलना था नहीं? तुम मेरे ते (से) भी चले जाते। गुरु के प्रति नाम दीक्षा लेने के बाद स्वप्न में भी दोष नहीं आना चाहिए, आन कोई नकली संत। लेकिन कबीर साहेब यह भी कहते हैं कि

जब लग गुरु मिले नहीं सांचा। तब तक गुरु करो दस पाँचा।।

पूरा गुरु ना मिले इतने चाहे 100 को छोड़ दो। 10 - 20 चाहे कितने ही छोड़ने पड़ो त्याग दो। लेकिन मेरे प्रति तुम्हारा अविश्वास हो जाता तो तुम मेरे से खत्म हो जाते आप। इसलिए मैं last (अंतिम) में आया हूं तुम्हारी सारी फड़क निकल ली। तुम कति (बिल्कुल) थक कर और छक कर बैठ चुके थे कि अब कोई किते (कहीं) कुछ नहीं किसी के पास। यह सिद्धि भी कोई ना इनके पास। यह मैंने ही इनकी फेल कर दी। ना कोई ना कोई चमत्कार भी कर देते थारे (तुम्हारे) लिए। इसलिए फेल करी कि यह पहचान संत की नहीं होती। लेकिन तुम मेरे पिछले संस्कारी थे। इसलिए मैं काल के मुंह में तुम्हें नहीं जाने दे सकता। ईब (अब) भक्ति करो।

अब उन्होंने सब वह बकवाद पूजाएं जो यजमान बना रखे थे, वह छोड़ दिए। कोई किसी के झाड़े झुड़े लाना या किसी के मृत्यु पर, जन्म होने पर किसी के नहीं, नहीं सब जाना छोड़ दिया। सत साधना करने लगे। ज़मीन थी। अपना खेती करें और परमात्मा की कृपा से बढ़िया गुजारा हो गया। ब्राह्मणों को इस बात की ईर्ष्या हो गई। इन्होंने तो धर्म बदल लिया और हमारी सब क्रियाएं छोड़ दीं। उनको जाति से  निकाल दिया। फिर क्या होता है चलो निकाल लिया। जाति से कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने तो अपना कमा कर खाना था और भक्ति करनी थी मोक्ष पाना था। एकै लड़का था, एकै लड़की थी दोनों भाइयों के। जवान हुए। ब्राह्मणों के यहां शादी के लिए जावैं (जाते थे)।

रिश्ते के लिए लड़की का, सब मना कर दें (देते थे)। तुम तो जाति से बहिष्कृत हो। हम तुम्हारी कन्या का विवाह नहीं लेंगे। रिश्ता नहीं लेंगे। दोनों tension (चिंता) में आ गए। कबीर साहेब बोले ऐसे करो। तुम यह अफवाह फैला दो कि भाई जीवा का लड़का और दत्ता की लड़की की शादी करेंगे उस दिन और तो हमारे बच्चों को कोई उठता (लेता) नहीं। हमने तो यह आपस में ही ब्याह (विवाह) करना पड़ेगा इनका।

यह सारे सुरसुराहट फैला दिया। पंडितों की पंचायत हुई। उन्होंने कहा भाई विचार किया कि यह तो निकम्मे हो गए सो हो गए। पर बच्चों का क्या दोष है? बच्चों ने (को) हम ब्याहवेंगे (विवाह) करेंगे भाई। यह तो ज़ुल्म हो गया। कति (बिल्कुल) दीन भ्रष्ट हो जाएगा। बहन भाई का विवाह कदे (कभी) हुआ करें? अरे! कति दुनिया थूकैगी हमारे गांव के गांव को। पंचायत होने के बाद 10-20 आदमी आए न्यों (यह) बोले, भाई सुन लो यह कदम नहीं उठाओगे तुम। यह बेटी हमारी है। बेटा हमारा है। हम इनका रिश्ता करेंगे। दोनों का रिश्ता हो गया। परमात्मा बोले देखा बेटा, भांग लगी ना फिटकरी रंग भी आया चोखा। होगा ब्याह (विवाह) भी हो गया और सारे काम हो गए। टेंशन ना (मत) लो। तो बच्चों!

मुश्किल से आसान करेगा आन कर। एक केशव बंजारा उतरा जान कर।।

तो कहते हैं ऐसे कोई दिक्कत आवेगी तो मालिक सौ समाधान निकालेगा। पर निकालेगा तब, जब आप उसके प्रति आप पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओगे।

गरीब, आसन अचल कबीर का, सबका सतगुरु एक। ब्रह्मंड ईक्कीसों समझले, या धूमें कैसी रेख।।

की 21 ब्रह्मांड को देख ले यह धूमें कैसी रेख यानी कति नाशवान बिल्कुल अस्थायी इनका कोई अस्तित्व नहीं है। अब science (विज्ञान) ने यह सिद्ध कर दिया scientisto (वैज्ञानिकों) ने खगोल - भगोल के जानने वालों ने, खगोल - भगोल के जानने वालों ने यह सिद्ध कर दिया है पृथ्वी भी घूमती है, सारे लोक घूमते हैं।

यहां तक भी सिद्ध हो गया कि सूर्य भी चले (घूमता) है। लेकिन पूरे ब्रह्मांड के साथ चलने से इसका पता नहीं लग रहा यह घूमता है। कहने का भाव यह है यह सारे ऐसे लटके हुए हैं जैसे पतंग। गरीब दास जी ने कहा सर्व लोक ऐसे हैं जैसे पतंग आकाश में लटके पड़े हैं और जिस दिन भी इसका अंत होगा सारे एक-दूसरे से टकरा टकराकर आग लग जाएगी। यहां कोई ठीक ठिकाना नहीं है। अब क्या बताते हैं परमात्मा गरीब दास जी ने बताया अपने भगवान के बारे में

गरीब, आसन अचल कबीर का, सबका सतगुरु एक। ब्रह्मंड ईक्कीसों समझले, यह धूमें कैसी रेख।।

21 ब्रह्मांड को कहते हैं सब नाशवान धूमें कैसा, धूल सी उठ रही है। Nothing else (और कुछ नहीं)। बच्चों! इस शरीर ने (को) देखो अपने ने (को) देख कितना सुंदर लगा (लगता) है। कितना अच्छा, कितना प्यारा और कति (बिल्कुल) खूब exercise (व्यायाम) इसमें करें, कुश्ती इसमें करें, छलांग इसमें लगा लें। यह मालिक की कृपा से सारा कुछ हो रहा है। उसने इसमें शक्ति दे रखी है और ज़रा सी भी ऊक-चूक हो जा, हाथ ना उठे आदमी का अधरंग मार जा जब, वही पहलवान। तो परमात्मा कहते हैं इस कच्चे शरीर में इतना मत फुले। भगवान को ना भूले। यह लोक अच्छा नहीं है। यहां कोई भी ठीक नहीं है। यहां जो दिखाई देता है यह सब नाशवान है। गरीबदास जी कहते हैं;

दृष्टि पड़े सो फ़ना है, यह धर अंबर कैलाश। यह कृत्रिम बाजी झूठ है।

बनावटी, यह सारा कुछ बनावटी है।

सुरत समोवो स्वांस।।

कृत्रिमबाजी। यह बनावटी लोक हैं सारे। जैसे कर नैनों दीदार महल में प्यारा है एक शब्द है परमात्मा कबीर साहेब का। उसमें बताया है कि

आदि माया कीन्हीं चतुराई, और झूठी बाजी पिंड रचाई। ताका प्रतिबिंब डारया है।

सतलोक की जो व्यवस्था ऐसी ही है। उसमें भी बहुत द्वीप हैं और ऐसे ही मानव स्त्री-पुरुष शरीर हैं। लेकिन वह अमर हैं। यह नाशवान हैं। यह समझो मिट्टी के और वह स्टेनलेस, स्टील के, सोने के वहां का जो शरीर है, वह अमर है। वहां के देवता रूप हम सब देवी - देव रूप में हो जाते हैं, वहां पर। जो इस भक्ति की शक्ति से होते हैं। तो उसकी नकल कर रखी है, यह totally (पूरा) नकल। यह शरीर कितना सुंदर लग रहा है आपका, मृत्यु के बाद इसको फुकतें हैं। 1 किलो राख हो जाती है और ईब (अब) देखो क्या था यह? बच्चों! क्या बताया जा रहा है यहां का सब, सब व्यवस्था कति नकली और नाशवान है। चारों वेदों का ज्ञान नकली। जिनको हम भगवान मानते थे वह भगवान नकली।

हमारे को कति मूर्ख बना कर रख रखा है। हमारी ऐसी स्थिति है आज के दिन। आप इसने (इसको) मानो चाहे ना मानियो (मानो) सौ की सौ सांची (सच) है।  हमारे बस की बात नहीं है। यह याद तो राखनी (रखनी) पड़ेगी आपने (अपने को)। आपके बस का भी नहीं है कि इससे मन हटा लूँ।

इसके मन हटाने की विधि हमारे पास है। इस ज्ञान को ज़रूर सुनते रहो। सौ काम छोड़कर सुनो जब तक दाता ने यह रज़ा कर रखी है। यह आपको अंदर से मांज देगा आत्मा ने (को) कति (बिल्कुल)। आत्मा को इतनी प्रबल कर देगा न्यों (ऐसे) कति अड़के खड़ी हो जाएगी इस मन के साथ एक दिन। इसका डटकर मुकाबला करेगी। अब तो जब हाथ खड़े कर दे हैं, यह। मन डरा दे है, इसने। न्यों (ऐसे) हो जाएगा काम छोड़ देगा और न्यों हो जाएगा, नुकसान हो जाएगा। इस ज्ञान से यह इतनी मजबूत हो जाएगी, होने दे जो होगा और मर ही गए तो फिर इस काम ने (को) क्या चाटेंगे? ज्ञान बिना बात नहीं बना करती।

गोरख से ज्ञानी घने।

दुनिया ज्ञान बताती फिरे हैं और बहुत सी छोटी-छोटी बातों से प्रसिद्धि, पता नहीं कौन पा ले है। कोई कह दे बड़ा बाल ब्रह्मचारी है उसी से उसकी महिमा हो गई।

गोरख से ज्ञानी घने, सुखदेव जति जिहान। और सीता सी बहू भार्या, संत दूर अस्थान।।

इस ज्ञान को सुनते रहो और फिर यह भक्ति जो दे रखी है यह आपकी इस आत्मा को इतना प्रबल कर देगी ताकतवर बना देगी, wrestler (पहलवान)। जब वक्त आएगा यहां से जाने का, इस मन को पटक देगी उठाकर और सब मोह ममता से मन एकदम हट जाएगा। आपै (स्वयं) हट जायेगा। हटाए से नहीं हटता यह। इस ज्ञान से और इस भक्ति की ताकत से तब पीछा छूटेगा आपका। फिर यह बात बनाए से, बात नहीं बना करती। काम नहीं बनेगा। यहां सब कुछ झूठा। जैसे व्यापारी लोग क्या करते हैं भैंस का काटड़ू मर जा, बच्चा (मर जाता है) ।

उसकी खाल उतरवाकर उसमें तूड़ा भरवा दिया करें। ना उसका मुंह होता है एक पूछड़-पूछड़ और बाल वगैरा वैसे ही होते हैं और उस भैंस के सामने रख दें (देते हैं)। वह उसी को अपना बच्चा मान लेती है। उसको चाटती है। लाड करती है। उसको लेकर, टांग कर रस्सी में चलते हैं वो। उसके पीछे-पीछे रां रां रां करती भागती रहती है। इतना दिमाग है उसके अंदर। आज अपने अंदर इतना दिमाग छोड़ रखा है काल ने। बेशक यहां कोई engineer बना रहो, चाहे scientist बना बैठा रहो और कितना ही कुछ बातें बनाने वाला educated (शिक्षित) समझ ले। क्या हैं यह बच्चे? हाड़ चाम माँस के लोथड़े ऊपर चाम लपेट रखा है। क्या यह शरीर है? और इसमें इतना मोह बना दिया हमारे बस का नहीं।

हो ही नहीं सकता। उस भैंस ने कौन समझावे की यह ऐसा नहीं है। इसमें कुछ नहीं है। कोई बात नहीं। आप इस ज्ञान ने (को) सुनते रहो। आपको भी और इस सारे के सारे परिवार को भी परमात्मा वहां ले आवेगा धीरे-धीरे, धीरे-धीरे। आपै रांग (समस्या) कट जाएगी। कैसा ही यह शरीर हो, कैसा ही भी हो यह।

तो यह शरीर जो है ना परमात्मा की कृपा से आपको एक दिन एहसास हो जाएगा कि यहां से तो जाना पड़ेगा और बच्चों ने भी दीक्षा ले ली। सच्ची राह पकड़ गए क्योंकि हमारा line (पंक्ति/राह) पर आना कठिन था। बच्चों का तो बहुत आसान हो गया क्योंकि मात-पिता से ही राह पर चल रहे हैं, यह। अलग जाएंगे कित (कहां)? यह तो जन्म से ही इस मार्ग पर चल पड़े। इनकी तो मुक्ति guaranteed (निश्चित) है और है आपकी भी। आप दृढ़ रहो। इस संसार की व्यवस्था से पूरी तरह परिचित हो जाओ।

दृष्टि पड़े सो धोखा रे। खंड पिंड ब्रह्मंड चलेंगे, थिर नहीं रहसी लोका रे।। थिर नहीं रहसी लोका रे।।

गरीबदास जी जब यह वाणी लिखवाया करते ऐसे बोल-बोल के लिखवाया करते जैसे दास बोल रहा है। एक तो इसमें लिखने वाले को time (समय) मिल जाता और उनकी आंखों से आंसू निकलते थे कि देख यह कैसे मूर्ख बना रखे यहां पर। काल ने जुल्म कर रखा है परमात्मा के बच्चों के साथ।

दृष्टि पड़े सो धोखा रे। खंड पिंड ब्रह्मंड चलेंगे, थिर नहीं रहसी लोका रे।। थिर नहीं रहसी लोका रे।। रजगुण ब्रह्मा, तमगुण शंकर, सतगुण विष्णु कहावै रे। चौथे पद का भेद नियारा, कोई बिरला साधु पावै रे।।

बच्चों! कितना clear (स्पष्ट) ज्ञान यह सूक्ष्म वेद है, वेद। जैसे मार्कंडेय पुराण में आपको दिखाया। रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिव जी तीन प्रधान शक्ति हैं काल की और यही तीन गुण हैं और यही तीन देवता हैं। कबीर साहेब जी ने सूक्ष्म वेद में कहा है;

गुण तीनों की भक्ति में, भ्रम पड़ो संसार। कहे कबीर निज नाम बिना, कैसे उतरो पार।।

तीन गुणों का मतलब;

तीन देव की जो करते भक्ति, उनकी कबहू ना होवै मुक्ति।।

बताओ सीधी इस बात ने (को) कोई कहे कैसे विश्वास होता आपने? अब तो इतने प्रमाण धर (दिखा) दिये, उठा कर इस मन ने (को) गुंजाइश नहीं छोड़ी मन को, कि यह बकवाद कर दे यह झूठ है। यह आपकी किस्मत ज़ोर कर गई कि आपने इसको ध्यान से सुन लिया और समझ में आ गई। रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिवजी स्पष्ट कर दिया गरीबदास जी ने और चौथे पद का इनका पिता चौथा। इन्हें अपने पिता का भी नहीं पता आज तक? यह माया बहका दे है, इन्हें। इसने, उसको धमका रखा है कि मेरा भेद नहीं दे देगी। यह इसके वश पड़ गई। अब क्या करे बेचारी ऐसे। औरत को ऐसे ही दबा कर रखा जाता है, पुरुष प्रधान है यहां पर इसी कारण से। तो चौथा इनका पिता ज्योति निरंजन है और कबीर साहेब कहते हैं;

इन चारों ने (को) भूले, छोड़े और पांचवें को ध्यावैं। कहे कबीर सो मुक्ति पावै। हम पर आवै।।

ऋज्ञ यजु है साम अथर्वण, चारों वेद चित भंगी रे। सूक्ष्म वेद बांचे साहेब का, सो हंसा सत्संगी रे।।

यजुर्वेद अध्याय 40 श्लोक 10 में कहा है कोई तो परमात्मा को साकार अवतार लेकर रामकृष्ण के रूप में मानता है और कोई निराकार कहता है वह पृथ्वी पर आता ही कोई नहीं। परमात्मा साकार है या निराकार है? वह तत्वदर्शी संत बताते हैं। गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में यही कहा है कि तत्वज्ञान को उन तत्वदर्शी संतों के पास जाकर समझो। उनको दंडवत प्रणाम करो तब वह तत्वदर्शी संत तुम्हें उस परमात्म तत्व का ज्ञान कराएंगे। यह ज्ञान आता कहां से है? चौथे अध्याय के 32वें श्लोक में श्रीमद् भागवत गीता में स्पष्ट कर दिया - सच्चिदानंदघनब्रह्म " ब्रह्मणे मुखे" सच्चिदानंद घन ब्रह्म यानी परम अक्षर ब्रह्म अपने मुख कमल से जो वाणी बोलता है उस समय यह पूर्ण ज्ञान होता है और उस ज्ञान से मोक्ष होगा। वह ज्ञान कोई तत्वदर्शी संत बतायेगा। इससे सिद्ध है कि ना वेद में वह ज्ञान, ना वह गीता में। होगे चितभंगी। अब कित (कहाँ) ढूंढे उसने? भ्रमित ज्ञान है इनके अंदर। Incomplete (अधूरा) ज्ञान है।

ऋज्ञ यजु है साम अथर्वण, चारों वेद चितभंगी रे। सूक्ष्म वेद बांचै साहेब का, सो हंसा सत्संगी रे।।

आज आप वह सूक्ष्म वेद बांच रहे हो। सुन रहे हो, पढ़ रहे हो। आप हो वह सत्संगी।

सूक्ष्म वेद बांचै साहेब का, सो हंसा सत्संगी रे।।

बच्चों आप वह सूक्ष्म वेद सुन रहे हो, पढ़ रहे हो बांच रहे हो, आप वास्तव में सत्संगी हो।

अलंकार अघ है अनुरागी, दृष्टि मुष्टि नहीं आवै रे। अकह लोक का भेद ना जाने, फिर चार वेद कै गावै रे।।

जब तुझे ऊपर के अकह लोकों का ज्ञान नहीं अकह लोक। वह चारों अमर लोकों को अकह लोक भी कहते हैं और last (अंतिम) वाले को अनामी और अकह लोक भी कहते हैं, ऊपर वाले को। अकह का अर्थ होता है जिसने आज तक किसी ने ना बताया हो, ना कहा हो उसकी जानकारी। फिर ऊपर का ज्ञान तुम्हें है ही नहीं? इन चार वेदों ने (को) कितना ही पढ़ लो। कितना ही कंठस्थ याद कर लो और कितना ही इनके अनुसार साधना कर लो मोक्ष नहीं हो सकता। बच्चों! कमाल की बात देख लो, यह वेद ऋषि पढ़कर, झखमार कर चले गए किसी के समझ में नहीं आई। कबीर साहेब कहते हैं;

गुरु बिन वेद पढ़े जो प्राणी, समझे ना सार रहे अज्ञानी।

चारों वेदों में किते (कहीं) भी और मंत्र नहीं हैं। यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र नंबर 15 में एक ओम नाम है, स्पष्ट लिखा है उसमें ओम् क्रतो स्मर, क्लिबे स्मर, कृतुम् स्मर। ओम नाम का जाप काम करते-करते सुमरो, विशेष कर्तव्य समझकर, मनुष्य जीवन का और कसक के साथ सिमरन कर। Nothing else और कोई भी क्रिया। ऐसे ही गीता चारों वेदों का सारांश है। आठवें अध्याय के 13वें श्लोक में लिखा है

ओम इति एकाक्षरम्  ब्रह्म व्याहरन् माम् अनुस्मरन्।

यः प्रयाति त्यजन् देहम् सः याति परमाम्  गतिम्।।

मुझ ब्रह्म का केवल एक ओम मंत्र है इसका एक अक्षर का अंतिम स्वांस तक इसकी जो भक्ति करता है इससे प्राप्त होने वाली मुक्ति प्राप्त करता है ब्रह्म से। श्रीदेवी महापुराण के अंदर छठे स्कंध में हिमालय राजा को देवी final (अंतिम) कर देती है कि राजा तू और सब बात छोड़ दे। मुक्ति चाहता है तो मेरी साधना भी भूल जा। तू ब्रह्म की भक्ति कर उसका ओम नाम है। वह ऊपर दिव्य आकाश रूपी ब्रह्म लोक में रहता है तेरा कल्याण हो, वहां चला जाएगा। गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में कहा है कि ब्रह्मलोक में गए भी पुनरावृत्ति में हैं उनकी जन्म - मृत्यु सदा बनी रहेगी।

अलंकार अघ है अनुरागी, दृष्टि मुष्टि नहीं आवै रे। अकह लोक का भेद ना जाने, चार वेद क्या गावै रे।।

गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात परमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए। जहां जाने के बाद साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते।

आवै जावै सो हंसा कहिए परमहंस नहीं आया रे। पांच तत्व तीन गुण तूरा, या तो कहिये माया रे।। सुन मंडल सुख सागर दरिया, परम हंस परवाना रे। सतगुरु महली भेद लखाया, है सतलोक निदाना रे।।

वह परम पद, वह परम स्थान, वह सतलोक है, जहां जाने के बाद लौट कर नहीं आते।

अगमदीप अमरापुर कहिये, जहां हिलमिल हंसा खेलै रे। दास गरीब देश है दुर्लभ, सांचा सतगुरु बेलै‌ रे।। दास गरीब देश है दुर्लभ, सांचा सतगुरु बेलै रे।। अगमदीप अमरापुर कहिये।

अमरपुर अमरपुरी सतलोक अविनाशी परमधाम सनातन परमधाम जहां हिलमिल हंसा खेलै रे। वहां मौज मस्ती में रहते हैं, भक्त सारे बच्चे।

दास गरीब देश है दुर्लभ, सांचा सतगुरु बेलै रे।।

वह लोक वह देश बहुत दुर्लभ है। लेकिन सुलभ है सच्चे सद्गुरु से। तो बच्चों! आपके ऊपर दाता ने कसर नहीं छोड़ रखी। इस सत्संग ने (को) सुनते रहियो। इसकी यह थोड़े दिन की रज़ा है घनी (ज़्यादा) नहीं हुआ करती। काल ने (को) सुहानदें नहीं हम, आपको। अच्छी तरह ठीक से विचार करले बैठकर। कोई बात ना यह रिकॉर्ड हो रहे हैं। इनको बाद में आपको दिए जाएंगे। रोज़ daily (प्रतिदिन) सुनो और भक्ति करना और परमात्मा की कृपा से अब के बेड़ा पार होगा तुम्हारा। नोट कर लेना। सह परिवार सतलोक जाओगे। मालिक आपको मोक्ष दे। आपकी बुद्धि मालिक में दृढ़ करें। इस गंदे लोक की यथार्थता तुम्हारे सामने आंखों के आगे घूमने लग जा और सतलोक की चाह प्रबल हो जा (जाएं)।

जहां आशा तहां बासा होई। मन कर्म वचन सुमरियो सोई।

परमात्मा आपको मोक्ष दे। सदा सुखी रखे।

।।सत साहेब।।