विशेष संदेश भाग 14: भक्ति मार्ग में मर्यादा का महत्व


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सत साहेब।

सतगुरु देव की जय।

बंदी छोड़ कबीर साहेब जी की जय।

बंदी छोड़ गरीब दास जी महाराज जी की जय।

स्वामी राम देवानंद जी गुरु महाराज जी की जय हो।

बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय हो।

सर्व संतों की जय।

सर्व भक्तों की जय।

धर्मी पुरुषों की जय।

श्री काशी धाम की जय।

श्री छुड़ानी धाम की जय।

श्री करौंथा धाम की जय।

श्री बरवाला धाम की जय।

 सत साहेब।।

गरीब नमो नमो सत् पुरुष कुं, नमस्कार गुरु कीन्ही। सुरनर मुनिजन साधवा, संतों सर्वस दिन्ही।1।

सतगुरु साहिब संत सब दण्डौतम् प्रणाम। आगे पीछै मध्य हुए, तिन कुं जा कुरबान।2।

नराकार निरविषं, काल जाल भय भंजनं। निर्लेपं निज निर्गुणं, अकल अनूप बेसुन्न धुनं।3।

सोहं सुरति समापतं, सकल समाना निरति लै। उज्ज्वल हिरंबर हरदमं बे परवाह अथाह है, वार पार नहीं मध्यतं।4।

गरीब जो सुमिरै ‌सिद्ध होई, गण नायक गलताना। करो अनुग्रह सोई, पारस पद प्रवाना।5।

आदि गणेश मनाऊँ, गण नायक देवन देवा। चरण कंवल ल्यो लाऊँ, आदि अंत करहूं सेवा।6।

परम शक्ति संगीतं, रिद्धि सिद्धि दाता सोई। 

अविगत गुणह अतीतं, सतपुरुष निर्मोही।7।

जगदम्बा जगदीशं, मंगल रूप मुरारी। तन मन अरपुं शीशं, भक्ति मुक्ति भण्डारी।8।

सुर नर मुनिजन ध्यावैं, ब्रह्मा विष्णु महेशा। शेष सहंस मुख गावैं, पूजैं आदि गणेशा।9।

इन्द्र कुबेर सरीखा, वरुण धर्मराय ध्यावैं। सुमरथ जीवन जीका, मन इच्छा फल पावैं।10।

तैंतीस कोटि अधारा, ध्यावैं सहंस अठासी। उतरैं भवजल पारा, कटि हैं यम की फांसी।11।

कबीर, सतगुरु के उपदेश का, सुनिया एक विचार। जै सतगुरु मिलते नहीं, जाते नरक द्वार।।

नरक द्वार में दूत सब, करते खैंचातान। उनसे कबहूं नहीं छूटता, फिर फिरता चारों खान।।

कबीर चार खानी में भ्रमता, कबहूं ना लगता पार। सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।।

जय जय सतगुरु मेरे की। जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से रहियो, अमरपुरी के डेरे की।। जय जय सतगुरु मेरे की। जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से रहियो, अमरपुरी के डेरे की।।

निर्विकार निर्भय तूही, और सकल भयमान। ऐजी साधो और सकल भयमान। सब पर तेरी साहिबी। सब पर तेरी साहिबी। तुझ पर साहेब ना।। निर्विकार निर्भय।।

निर्विकार निर्भय तूही, और सकल भयमान। ऐजी साधो और सकल भयमान। सब पर तेरी साहिबी। सब पर तेरी साहिबी। तुझ पर साहिब ना।। निर्विकार निर्भय।।

परमपिता परमात्मा कबीर जी की प्यारी आत्माओं, परमेश्वर की असीम रज़ा से अपने पिता की असीम कृपा से आज इस घोर कलयुग के अंदर अपने को धर्म कर्म करने का proper (उचित) ज्ञान हुआ। विशेष ज्ञान विधिवत और सच्चा ज्ञान, सच्चा भगवान, सच्ची भक्ति और आपको पूर्ण सतगुरु प्राप्त हुआ।

बच्चों! इस गंदे लोक में आकर हम परमात्मा को फिर भूल गए। भुला दिया हमारे को, भूले नहीं। यह त्रिगुणमयी माया (रजगुण ब्रह्मा से निकल रहा गुण, सतगुण विष्णुजी से, तमगुण शंकर जी से) हमारे ऊपर इतना ज़बरदस्त प्रभाव रखता है कि हम सब भूल जाते हैं और इनसे प्रेरित होकर के सारे उल्टे काम करें। ब्रह्मा जी के गुण से, यहां ठाठ-बाट की इच्छा होती है। राज-पाट की इच्छा होती है और संतानों उत्पत्ति by force (बलपूर्वक) कराई जाती है। जीव के वश का नहीं होता और फिर ममता-मोह एक ऐसा रोग लगा रखा है। यह स्वत: लग जाता है। किसी से 10 दिन ठीक से बात कर लो उसी में मोह हो जाता है और अपने परिवार में जन्म लेने वाले बच्चों से तो होना ही होना है। वहां तो आठ पहर सीने से लगाते हैं उनको, पर वह होता क्या है? यह काल का आहार तैयार करवाया जाता है।

गीता अध्याय 7 श्लोक 12 में कहा है कि अर्जुन! रजगुण, तमगुण, सतगुण। रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु और तमगुण शिव जी, इन तीनों गुणों के द्वारा जो कुछ भी हो रहा है उसका निमित्त मैं हूं। मैं इनमें नहीं यानी मैं इनसे अलग हूं, ऊपर हूं। रजगुण ब्रह्मा से उत्पत्ति, सतगुण विष्णु से मोह-ममता, एक दूसरे में जकड़ देना, स्थिति बोले (बोलते) हैं इसको और टीके (रुके) रहै यहां पर और तमगुण शंकर से संहार। यह है यहां का procedure (प्रक्रिया)। हमारी आंख कति (बिल्कुल) नहीं खुलती क्योंकि pressure (दबाव) ज़्यादा है इतना दबाव है कि जीव के बस का नहीं है यह। आपको इतना ज्ञान सुना दिया और सुना रहे हैं। इस ज्ञान से आपके अंतःकरण में यह final (अंतिम) हो जाएगा एक दिन क्योंकि बार-बार कोई वस्तु सुनते हैं उसका धीरे-धीरे, धीरे-धीरे असर बनना शुरू होता है। हम बातें सुनते हैं, सत्संग सुनते हैं, विचार मालिक के सुनते हैं, वाणी सुनते हैं तो एक बार तो कति (बिल्कुल) वैराग आ जाता है कि सचमुच बहुत गलत जगह फंस गए। यहां कुछ भी अपना नहीं है और उसके थोड़ी सी देर के बाद क्योंकि हमें और काम भी करने होते हैं यह व्यवस्था यहां की ऐसी है। तो फिर शाम तक कति (बिल्कुल) भूल पड़ जाती है बस मंत्र कभी-कभी याद आ जाते हैं, करने हैं। सुबह, दोपहर, शाम की वह नियमित स्तुति भी याद रह जाती है।

बाकी समय हम ज़्यादातर अन्य कारोबार के सिलसिले में, रोजगार के सिलसिले में बातें करते हैं। वह फिर से थोड़ी सी भूल पड़ जाती है। फिर जब सत्संग सुनते हो फिर जागृति आती है यह ऐसे ही चलेगा। चलने दो। जैसे आपको बताता हूं बार-बार दास बताता है कि आप बच्चे स्कूल में जाते हैं। अध्यापक आता है अपना उसका period (अवधि) लेता है। सबको सावधान करता है ध्यान से सुनो। लाइन में बैठ जाओ, तो हम बहुत सतर्क होकर उनकी एक-एक बातों को सुनते हैं। नोट करते हैं। लिखते हैं। फिर याद करते हैं।

उसके बाद हम फिर खेलते-कूदते भी हैं। बच्चे घर का भी काम करते हैं। मां-बाप का हाथ भी बंटाते हैं। लेकिन जो स्कूल के अंदर जो बातें सुनीं थीं, जो ज्ञान सुना था वह एक अलग कोने में मन के, हृदय के अलग कोने में deposit (जमा) होना शुरू हो जाता है। और उसके अतिरिक्त हम और भी काम सारे करते रहते हैं जो पहले भी कर रहे थे। एक दिन हम विद्वान बन जाते हैं। वह काम फिर भी कर रहे हैं। इस ज्ञान को रह-रह कर सुनने से एक दिन आत्मा कति (बिल्कुल) दृढ़ हो जाएगी कि इस संसार में एक दिन भी रहने का नहीं है, यह संसार। एक दिन भी और कभी भी फिर शरीर यहां से छूट जाए जाने का time (समय) आ जाए। No problem (कोई समस्या नहीं). हमारी आस्था सतलोक में जाने की होगी क्योंकि हमने वहां जाने का target (लक्ष्य) बना रखा है। पहले तो हमारा कोई target ही नहीं था मरे पाछे (पीछे) जाएंगे कहां? उस समय कोई बच्चों में मोह हो जाता। परिवार में मोह रह जाता। यहीं कुत्ते बनकर जन्म ले लेते। कबीर साहेब कहते हैं;

जहां आसा तहां बासा होई, मन कर्म वचन सुमरियो सोई।।

गीता अध्याय 7 श्लोक 6 में यही स्पष्ट किया है कि अर्जुन! अंत समय में, जो जिस भी भाव में भावित रहता है यानी जिसके ऊपर जिसमें आस्था रहती है वो उसी को प्राप्त होता है। जब तक हम भक्ति नहीं करते इस ज्ञान से परिचित नहीं होते तो हमारा सांसारिक, सांसारिक यानी परिवार में संपत्ति में, इसमें कती हम जकड़े बैठे होते हैं। एक उदाहरण दिया करते थे गुरुदेव एक बूढ़े की मृत्यु होती। किसान था पशु रखा करते थे। जब मृत्यु होने लगी उसकी ज़ुबान बंद हो गई। आस-पास परिवार के सदस्य आ गए भई पिताजी तो अंतिम टाइम में आ गए। तो थोड़ी देर के बाद वह, ऐसे संकेत करने लग गया। ऐसे इशारा हाथ से। उन्होंने सोचा भई पिताजी कुछ कहना चाहवे हैं। हो सकता है कोई धन दाब रखा हो और बताना भूल गया हो और अचानक मृत्यु हो गई। एक डॉक्टर बुलाया उसने (उसको) पता था कि एक बार यह बुलवा देगा 500 रुपए लेगा। ऐसा इंजेक्शन लगाता है। वह बुलाया गया। उसने इंजेक्शन लगा (लगा दिया)। पिताजी बताओ-बताओ जल्दी क्या कहना चाह रहे थे? एक गाय का बछड़ा झाड़ू मुंह में दे रहा था, उन्हें खराब कर रहा था। न्यों (ऐसे) बोला देख यह बछड़ा झाड़ू चाबे। तुम कित (कहां) मर गए? नाश करोगे मेरे जाए पाछे। नुकसान कर दिया। ढाई आने की झाड़ू ₹500 में पड़ गई वह, ईब (अब)।

जहां आशा तहां वासा होई।।

वहीं फिर कुत्ता, गधा, पशु बनकर वहीं जन्म लेगा। तो हमारी ईब (अब) वृत्ति यहां से हटेगी इस ज्ञान से, अंतिम समय आप यहां कुछ याद नहीं आवेगा। इस ज्ञान को सुनते रहे और भक्ति करते रहे, मर्यादित रहे। ज्ञान के साथ-साथ यह भक्ति आपको सहारा देगी अंतिम समय में, मन को उधर धकाने (हटाने) के लिए। वैसे नहीं धकता (हटता) यह बहुत ताकतवर है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश मन के आगे हार मान रहे। यह ज्ञान और इस भक्ति की शक्ति इस आत्मा को न्यों (ऐसे) धका देगी ऊपर ने (को), अंत समय में सैंकडों के अंदर सतलोक बैठे पावेंगे। इस पर लगे रहना, इस मार्ग से जैसे दास आपको बताता जा रहा है। 

अमर करूं सतलोक पठाऊं। तांतै बंदी छोड़ कहांऊं।।

कबीर साहेब कहते हैं; मैं अमर करूं, सतलोक पठाऊं, भेज दूं इसलिए बंदी छोड़ कहलाता हूं। अब यहां यह क्यों हो रहा है, क्या हो रहा है। आपको सब पता है। पहले तो नहीं था पर अब पता लग गया आपको बिल्कुल सही पता लग गया। मात-पिता के सामने बच्चे एक या दो तुरंत मर जाते हैं। टक्कर मारते रह जाते हैं। हाथ कुछ नहीं आना और कई महीनों, वर्षों तक उनकी याद सताती रहती है। हम कितने विवश हैं हम इतने बंद में हैं। हम कुछ नहीं कर सकते लाचार हैं। एक राष्ट्रपति किसी देश का या प्रधानमंत्री या अन्य कोई सक्षम मानता है अपने आपको। उसका एकलौता बेटा मर गया। प्रधानमंत्री। टक्कर मारै वह, टक्कर और उससे पहले न्यों (ऐसे) आकाश में बोल रही थी उसकी तूती। सातवें आकाश में रहे था उसका दिमाग। धरती पर पटक दिया।

एक बताते हैं महाभारत में प्रकरण आता है - द्रोणाचार्य, यह गुरु था, कौरव-पांडवों का और शिक्षा दिया करता मोह मत करो। मोह सबसे बड़ा खतरनाक है। द्रोणाचार्य का जब लड़का अश्वत्थामा मरा। मरा नहीं था उस समय तक। यह कह दिया गया अश्वत्थामा मर गया। वह झूठ बुलवाई गई थी श्री कृष्ण में प्रवेश काल द्वारा कि एक अश्वत्थामा नाम का हाथी था उसको मार दिया गया और युधिष्ठिर का बहुत विश्वास करते थे सब कि यह सत्यवादी है कभी झूठ नहीं बोलता। तो काल ने यह चाली कि द्रोणाचार्य पांडवों की सेना को मार डालेगा। बहुत ज़बरदस्त तीरंदाज़ है, बहुत ग़ज़ब का शूरवीर, निशानेबाज़ है। इसको कंडम किया जाए। तो उसको कंडम करने का तरीका अपनाया कि इसको यह झूठी खबर फैलाई जाए की अश्वत्थामा इसका बेटा मर गया युद्ध में।

फिर यह पागल हो जाएगा। ऊपर से दुनिया गीत गाती है, जब लागे आपने (अपने) तब पता लागे (लगे)। तो युधिष्ठिर से झूठ बुलवा दिया कि तू न्यों (ऐसे) कह दे कि अश्वत्थामा हिते:। अश्वत्थामा मर गया। तेरी झूठ भी ना होगी हाथी मर गया न्यों (ऐसे) यह हो जाएगा। तो पहले तो युधिष्ठिर माना नहीं फिर यह कहा गया कि हाथी मार दिया है यह झूठ थोड़ी है। झूठ तो थी ही वह न्यों (ऐसे) थोड़ा। पहले हम छोटे से थे तो न्यूं कहंदे अरे! झूठ बोली तूने पाप लागेगा। बोला ना उंगली पर उंगली चढ़ाकर बोली थी ईब (अब) नहीं पाप लगे। यानी यह अपने फार्मूले हैं। पाप तो आपे ही लागेगा (लगेगा)। तो सबने कहा कि आपका बेटा अश्वत्थामा मर गया द्रोणाचार्य। वह बोला नहीं, मेरा बेटा नहीं मर सकता। नहीं मर सकता। उसको मारने की हिम्मत किसी में नहीं है। युधिष्ठिर कह देगा तो मैं मान जाऊंगा। तब युधिष्ठिर ने कहा अश्वत्थामा हितेः। नर वा कूंजर। नर तो, ज़ोर से बोल दिया वा कूंजर कि हाथी, आदमी या हाथी यह नहीं कह सकता। वह मन-मन में बोल दिया, तो यह बात सुनकर अश्वत्थामा हितेः। अश्वत्थामा मारा गया। आगे कड़े (कहां) सुने था द्रोणाचार्य। नर वा कूंजर कहे गया वह। इतना पागल निढाल हो गया टक्कर मारै कति (बिल्कुल) कंडम हो गया। उसने हथियार भी नहीं उठा उसते (उससे)। तो पांडवों ने वह गढ ( गढ़) जीत लिया उस side (तरफ) का जहां वह मोर्चा डाटे खड़ा था। तो बच्चों! यह मोह इतना ज़बरदस्त है जीव के बस का नहीं है और बनता कुछ नहीं। बचाव कुछ नहीं। तो इसका बचाव अब है, एक तो ज्ञान हो।

यह ज्ञान जो दास बता रहा है यह आपके हृदय में जच जा कति (बिल्कुल) यह कुछ भी अपना नहीं है। सौ की सौ साच्ची है पर मन मानने को तैयार नहीं। आत्मा को दबा रखा है। यह सब काल आहार हमसे पैदा करवाया जाता है जैसे कसाई बकरे पालता है। कसाई बकरे पालता है उनके लिए चारागाह बनाता है। सुंदर तालाब बनाता है, पानी पीने के लिए। उनके लिए छाया गर्मी-सर्दी ओलों से बचने के लिए शैड डालता है। पहले झोंपड़ी डाला करते थे, कोई उस घास फूस से और लकड़ी से। अब टीनों का शैड बनाते हैं। पंखे लगा दिए जाते हैं और यह समझो कि जैसे कसाई ने 3 पाली रखे हैं, नौकर। एक बकरे मोल लाकर वहां छोड़ता है। दूसरा उनके पालन-पोषण करता है और तीसरा उनमें से निकाल कर और अपने कटवा देता है। बेच देता है, कसाई को सौंप देता है। यह procedure (प्रक्रिया) है यहां पर। जैसे कसाई कभी-कभी आता रहता है। बकरों को देखता है, संभालता है तो उनके कमर पर हाथ मारता, शरीर पर और वह उसको अपना एक बहुत हमदर्द मित्र मानते हैं। मालिक मानते हैं देखो हमारे को कितनी सुविधा दे राखी (रखी) है। पानी क्या, घास क्या, गर्मी-सर्दी से बचने क्या। वह देखता तो हाथ मारकर ऐसे है कि यह कितनी कीमत का हो गया? कितना मांस है इसमें? और वह समझते हैं यह प्यार करें हमारे से, कसाई लाड करता है।

वह भी उसको प्रतिफल में जीभ से चाटते हैं उसका हाथ, प्यार करते हैं और कई-कई तो उसके ऊपर पैर फैलाकर उसको प्यार देना चाहते हैं। सीने से लगाना चाहते हैं बकरे। ऐसा पशु भी प्यार देते हैं। उसको अपना मानते हैं। वह देख रहा है इसमें मांस कितना है? और नौकरों को बता देता है इन-इन को निकाल लो। उसको कोई रहम नहीं है कितना ही लाड करो। कितने ही उसके गुण गाओ। उसका उद्देश्य यही है, उसका मतलब यही था उनको पालने का। कबीर साहेब कहते हैं;

खाई खुराकां पहन पोषाखां, यहां यम का बकरा पलता है।

यहां बढ़िया-बढ़िया माल खाकर और सुंदर-सुंदर कपड़े dress (ड्रेस) अटबट फैंसी से कपड़े यह पहनेगें, वह पहनेगें। कहते हैं;

खाई खुराकां पहन पोषाखां, यम का बकरा पलता है। काल के बकरे पलने लग रहे हो तुम। इन बातों को बच्चों अच्छी तरह हृदय में बैठा लो एक कोने में। संसार में रहेंगे, रहना पड़ेगा‌ लेकिन परमात्मा की शरण में रहेंगे, मर्यादित रहेंगे, काल का कोई attack (आक्रमण) आप पर नहीं होगा। ना आपके परिवार पर होगा। ना किसी धन-संपत्ति, व्यवसाय पर होगा। यह सत् कर (सत्य) मान लेना। हम मर्यादा को हल्के में ले लेते हैं और यह हमारे विनाश का कारण बनता है। गलती हम करते हैं। कोई काल का ऐसा attack (आक्रमण/वार) आने का समय हो गया और वह नुकसान हो गया तो भक्ति और छोड़ देते हैं। हो गया सर्वनाश। भक्ति छोड़ दी। भगवान की शरण छोड़ दी। फिर और कहां ठिकाना रह गया? कटी पतंग हो गए। कटी पतंग का कोई अस्तित्व नहीं रहता। कुछ देर उड़ जरूर सकती है, अंत में पता नहीं कित (कहां) कीकर का पेड़, बबूल के पेड़ में उलझ कर फड़-फड़ करके फाटती (फटती)है। ऐसे फंसे रह जाओगे तुम इस काल के जाल, कांटेदार झाड़ियों में इस गंदे लोक में।

तो बच्चों! इस बात का सख्त ध्यान रखो। यदि आपने यहां से निकलना है। मर्यादा ना टूटे और यह मर्यादा, पता नहीं कितने प्रकार से टूट जाती है। जैसे हमने किसी को सेवा दे दी। भई यह सेवा कर लो। शुक्रिया दाता का। मज़दूरी मिली खुश हुए। फिर कह दिया यह त्याग दे। छोड़ दे। दूसरे को दे दी। बता फिर दुख क्यों माना? फिर दुख मानते हैं। मैं यह समझा, इतना ज्ञान होकर भी तुम ऐसी बातें करते हो, तो शुक्र मनाओ और सौ बार हाथ जोड़कर भई बहुत अच्छा गुरुदेव का आदेश है, यह भाई सेवा कर लेगा। मुझे भी और सेवा दे दियो कोई, मेरी नियत है सेवा करने की और ना मिले तो अपना सब्र करै, भक्ति करै। सत्संग में जाओ सौ सेवा हैं आश्रम में करने वाले को।

बहुत सी सेवा होती है। तो एक बात से बंध कर नहीं बैठना चाहिए। यह प्राथनाएं आती हैं, मेरे को कोऑर्डिनेटर की सेवा फिर दियो। तो यह भी कमज़ोरी है। जैसे एक डॉक्टर के पास बूढ़ा आदमी गया कमज़ोर सा, वृद्धावस्था में, अस्थिपंजर बन ही जा शरीर का। जाकर बताया डॉक्टर जी मैं खड़ा होता हूं चक्कर आते हैं। क्या कारण है? डाॅक्टर बोला कमज़ोरी है। Weakness of body. बोला पिंडी दुखे.. पिंडी। पैरों की। डॉक्टर बोला कमज़ोरी है। फिर वह वृद्ध बोला जी मेरे सारे शरीर में भड़कवा रहती है। यानी सारे शरीर में दर्द सा बना रहता है। चभक-चभक नाड़ी करती है। डॉक्टर बोला कमज़ोरी है। वह वृद्ध गुस्से होकर बोला डॉक्टर ने (को) तू डॉक्टर है घनचक्कर? एकै बात जाने, की कमजोरी है, कमजोरी है और भी कुछ बतायेगा। डॉक्टर बोला यह भी कमज़ोरी है This is all due to weakness. यह क्रोध भी कमज़ोर आदमी ने घना (ज्यादा) आया करै। यह भी कमज़ोरी है। तो बच्चों! यह सारी ही कमज़ोरी है जो मर्यादा से न्यारी (अलग) हटकर करोगे। चाहे कुछ भी कर लियो। मर्यादा को हल्के में ना लो। जैसे हमने इतने सारे नियम बना दिए। भक्ति करनी है तो इनका पालन करना पड़ेगा। नहीं, तो फिर गधे बनकर कुम्हार के नियम में चलना पड़ेगा। एक कदम भी अपनी मर्ज़ी से नहीं जा सकते, बैल बनकर नाथ डल जाएगी। खच्चर बनकर बुग्गी में जोड़े जाओगे, रेहड़ी में। फिर चलेगी क्या आपकी मर्ज़ी?

असंख जन्म तने मरता हो गए, जीवित क्यों ना मरे रे। द्वादश दर मध्य महल मठ बौरे, बहुर ना देह धरै रे।।

तो बच्चों! अब जीवित मर लो। इन बातों को छाती में धर लो। हृदय में बिठा लो कति (बिल्कुल) मस्तिष्क में। यह संसार आपका नहीं है। यह परिवार आपका नहीं है। यह संपत्ति, यह कार-कोठी तेरी नहीं है।

गरीब काया तेरी है नहीं, यह माया कहां से होय। चरण कमल में ध्यान रख, इन दोनों को खोय।।

इनको भूल जा। अपने गुरु जी के चरणों में ध्यान रख। उनके बताएं दिशा निर्देश के आदेश से, आधार से अपना जीवन निर्वाह कर। बच्चों! आंख खोल लो। बार-बार यह बातें बताई जाती हैं। जब ऊक चूक हो जाएगी फिर तो रोना ही शेष रहेगा। Nothing else (और कुछ नहीं). इस मार्ग में अहंकार इंसान को मारता है। किस चीज़ पर अहंकार करो। माया हो गई तो अहंकार होगा। कोई post पद ठीक सी हो गई तो अहंकार होगा। शरीर स्वस्थ है थोड़ी सी जान है अहंकार हो गया। एक परिवार में 5-4 लाठी उठानिये हो गए तो अहंकार हो गया और अपने body (शरीर) की ताकत का अहंकार और भी सैंकड़ों कारण हैं जो इंसान के मन में दोष पैदा हो जाता है। तो यह इंसान का सबसे बड़ा खतरनाक शत्रु है। परमात्मा को अहंकार पसंद नहीं और छोटी-मोटी गलती को माफ कर सकता है।

रावण था जिससे अहंकार नहीं छूटा। 10 मस्तक, सिर भी काट दिए, 10 बार काट दिए तो वापस दे दिए। ले भाई। यह सारा कुछ खेल कबीर साहेब का किया है सारा कुछ। यह आत्मा परमात्मा की हैं, चाहे आज राक्षस है, चाहे कोई कसाई है, चाहे देवता हैं, चाहे ब्रह्मा विष्णु महेश हैं, चाहे कीड़ी-हाथी छोटे जीव हैं। कोई स्त्री पुरुष है, बालक बच्चे, जीव जंतु सब उसके हैं। काल चाहता है भक्ति से खत्म हो जाएं या भक्ति में उनकी आस्था खत्म हो। मालिक चाहता है इनकी भक्ति में आस्था खत्म ना हो फिर तो यह कति (बिल्कुल) गए काम से। जो भी जैसी साधना मालिक के नाम पर बैठकर कहीं कर रहा है और उसके पिछले संस्कार से और उस भक्ति से जो उसको मिलना है उसके साथ-साथ परमात्मा उसको सहारा देते हैं। जैसे रावण ने सिर काट दिया शिवजी के निमित्त तो भगवान के नाम काटा उसने और भगवान की खोज में निकला था।

साधना,‌ गुरु गलत मिलने से उसको मार्ग गलत मिल गया। पिछले जन्म के संस्कारी ही इतने sacrifice कर सकते हैं। इतनी कुर्ब़ानी कर सकते हैं वैसे नहीं हुआ करते। तो पिछले जन्मों में वह भगवान का भक्त रहा है। फिर इतना बिगड़ गया कि राक्षस बन गया। तो उस मालिक ने ही उसको 10 शीष वापस दिए। लेकिन बकवाद करी तो अंत बुरा हुआ। उसके कर्म और जो रिद्धि सिद्धि दी थी उनसे धन दे दिया और वह धन भी यहीं छोड़ गया।

गरीब, सर्व सोने की लंका होती, रावण से रणधीरं। एक पलक में राज बिराजी, जम के पड़े जंजीरं।। मन तू सुख के सागर बस रे और ना ऐसा यश रे।। क्या मांगू कुछ थिर ना रहाई, देखत नैन चला जग जाई।  एक लख पूत, सवा लख नाती। उस रावण के आज दिया ना बाती।।

एक पुत्र मांगते फिरते हैं। एक बेटा दे दे, हे भगवान! बेटा हो गया। बेटियों की तो हम गिनती ही नहीं करते। बेटा चाहिए बेटा। वह किस लिए?  वह गलतफहमी पैदा कर रखी थी कि बेटा ना हुआ तो गति नहीं होगी मां-बाप की क्योंकि अंत समय में जेठा बेटा, बड़ा पुत्र मां बाप का अंतिम संस्कार करें यानी उसको फुंकै। फिर उसकी अस्थि डालकर आवैं (आते हैं)। फिर उसके क्रिया कर्म करावैं (कराते हैं)। तो उसकी गति होगी और जिसका बेटा नहीं उसकी गति नहीं हो सकती। उसको तो संतान वाला मानते भी कौ (को) नहीं। माना नहीं करते थे। अब तो यह चांदना हो गया, रोशनी हो गई, बेटा-बेटी, ओहो! कति मूर्खता का काम था। लेकिन काल ने तो उल्टी पढ़ाई पढ़ानी, उल्टे रास्ते डालना, वह एक परंपरा बनाकर बैठ गए। वह एक लकीर के फकीर बन गए।

जैसे राजा दशरथ का सबसे बड़ा बेटा रामचंद्र था। उसको राज दे दिया और बच्चों फिर उसको वनवास देना पड़ गया मजबूरी में। रामचंद्र जी वनवास में चल पड़े। राजा दशरथ का इतना मोह था अपने बच्चों में, रामचन्द्र मे विशेष और जो बिछुड़े उसमें ज़्यादा हुआ करे। तो न्यों (ऐसे) चल पड़ा। महल के ऊपर चढ़कर देखा। दिखता रहा, दिखता रहा, फिर नहीं दिखा, तो चौबारे की अटारी पर चढ़ गया। चौबारे पर। चौबारे पर चढ़कर जहां तक उसने दिखा, फिर मंडेर पर चढ़ गया। एड़ी उठाई गिर गया। वहां से ज़मीन पर गिर गया। गिरते ही मर गया। अब रामचंद्र वापस नहीं आया।

उसका अंतिम संस्कार किसने करा (किया)? कोई पूछने वाला हो इन मंदबुद्धियों ने (को) जो दुनिया को भ्रमित किया करते थे और किसी की अक्ल वहां नहीं गई, वहां तक। जेठा बेटा था ही नहीं फिर उसके अंतिम संस्कार किसने करे (किए)?  दूसरों ने करे होंगे, तो यह बात कहने की है तो इसका मतलब उसकी गति हुई नहीं? बेटा होते हुए भी अंतिम संस्कार नहीं कर सका। तो इन बांता ने‌ (को) छोड़कर सतगुरु कबीर साहेब द्वारा जो ज्ञान दिया है इस पर दृढ़ हो जाओ। देखो हमारी सारी बात उल्टी है। भक्ति मार्ग में बेटा है, बेटी है अच्छी बात है। परमात्मा के चरणों में लग गए दोनों तो हम तो बरी से हो गए। क्यों? भगवान आप (स्वयं) रखवाला हो गया और बेटा भक्ति नहीं करता, बेटी करती है, तो एक कोड़ी का नहीं वह बेटा किसी काम का। कबीर साहेब कहते हैं;

राम रटत कन्या भली, साकट भला ना पूत। छेरी के गल गलथना, छेरी के गल गलथना, जिसमें दूध ना मूत।।

बकरी के गले में एक खाल लटका करें (करती है) थन जैसा, व्यर्थ की खाल। कहते हैं वह बेटा तो गले का ऐसे वज़न है सिर पर। बेमतलब का व्यर्थ का दिखावा-दिखावा है और वह बेटी अच्छी।

राम रटत कन्या भली, साकट भला ना पूत।

तो बच्चों यह अध्यात्म मार्ग है। इसमें सारी बातें पहले से विपरीत हैं। देखो बेटा ना होगा बेटी-बेटी होगी तो यह सृष्टि नहीं चलेगी और बेटी-बेटी होगी बेटा नहीं हुआ तो भी दिक्कत। संसार, इस संसार की सृष्टि में आ सकती है। बाकी भगत का कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इन बातों को जो दास कहता है इनको एक सामान्य बातें ना समझना। निष्कर्ष है इस जीवन का। जिसके बेटा नहीं है उसको यह तड़प रह जाती है बेटा होता। यह भूलकर भी ना करना। इन बेटे वालों ने (को) देख लो कितने सुखी हैं? time (समय) पर रोटी नहीं। चाय ने (को) भी तरसैं बैठे-बैठे। वह सोचें बड्डा (बड़ा) दे देगा, छोटा सोचे बड्डा आप (स्वयं) दे देगा। बड्डा सोचे छोटा पिला देगा। पड़े-पड़े आँखों से आंसू आवैं बुड्ढा (बूढों) के और बेटी आखिरी स्वांस तक प्यार देती है अपने मां-बाप को। एकाध.. निकम्मी का तो कह नहीं सकते जो किसी की भी नहीं होती। वह तो आत्माएं ही दुष्ट होती हैं। आखिरी स्वांस तक, यहां भी हमने देखा जैसे लड़की रोटी खा रही है और लड़का वैसे बैठा था। मां ने कहा बेटा! वह सामान ला उठा कर यह रोटी तैयार बनाऊं भोजन। बैठा-बैठा ना लाऊं।

न्यों (ऐसे) कहे खो हिलावे। बेटी को कहा भी नहीं रोटी खाती-खाती छोड़कर उसी की उम्र की थी एक 10 साल की होगी, लड़का 12-13 साल का। उठकर, रोटी छोड़कर, हाथ धोकर और सामान लाकर मां को दे देगी। लेकिन फिर भी बेटे में मोह ज़्यादा और बेटी में नहीं। इसका कारण यह था? कि हमने बेटी को भार बना लिया। इस गलत रीति रिवाज़ से बेटी तो 15,16, 20 साल की मेहमान होती है आपकी। यह तो परमात्मा की बेटी दो घरों का सुधार करती है। आगे जाकर घर बसावै, उस परिवार को भी सुधारे और मां-बाप के अंदर मोह न्यारा (अलग) रहे, तो भाव यह है कहने का अगर बेटा नहीं है न और भगत है उस जैसा भाग्यवान धरती पर नहीं। प्रथम तो वह है जिसके कति (बिल्कुल) संतान नहीं। वह भाग्यवान। दूसरा वह है जिसके बेटा ना हो। बेटियों की करके शादी, वृद्धावस्था में, अपने लेकर माला जपे और बेटी वहां बैठी भी माँ-बाप की चिंता करेंगी और कोई ना कोई सुविधा उनको देती रहेगी और बेटा छाती पर रह कर भी खून फूकैं जावेंगे। कति (बिल्कुल) साफ दिखाई दे है। 

इसको कोई मानो चाहे ना मानो। लेकिन बेटे भी हैं ठीक है और उनमें वह भी भक्ति करो आप भी करो। कुछ दिन में उनको समझ आ जाएगी। पुत्रवधू भी भगवान से डरने वाली हो जाएगी। मां-बाप का ध्यान रखेंगी। वैसे कोई विकल्प नहीं इसका। लेकिन इस दुःख को हम अच्छा मानते हैं पुत्र ना (नहीं) होने से। हम तो काल ने गधे बना रखे हैं। जितना कष्ट बना रहे और वज़न लदा रहे तो हम सीधे चालैं (चलते हैं) और कम हो जाए तो हम माने कौ नहीं। हमारा तो जैसे एक माईं का पुत्र मर गया 15 -16 साल का, और भगत थी। टक्कर मारी। रोना पड़े यह क्या बस की बात है। पाला पोसा और ले जाता है काल। फिर उसको सब्र हुआ जैसे भी, तो दूसरे जो एक बिना भगत थे उनके पड़ोस में तो उनके लड़के की शादी हो गई और वह पत्नी थी बदचलन। उनको समझाने की चेष्टा करी की तू ऐसा ना कर लेकिन वह तो मानी नहीं। उसने वहीं फांसी खा ली। अब वह भी मर गई और वह बेटा भी जेल में और वह सारे जेल में। वह दहेज के कारण। एक बेटा था, ऐसे ही उसने बहू को प्रताड़ित किया दहेज लेने के लिए। गरीब घर की लड़की थी उसने सुसाइड कर लिया। वैसे सुसाइड करना कोई विकल्प नहीं है ऐसे गंदे आदमी को छोड़कर कुवांरी रह ले अपने घर पर बैठ जा तो उस बेटे के कारण मां-बाप ने (को) भी सजा हुई। बहनों तक भी जेल हुई। ऐसे बेटे ने (को) क्या फुंकै। ऐसा तो पहले मर जाता तो अच्छा था। लेकिन हम इस बात को मानने को तैयार नहीं हैं।

ना (नहीं) मानोगे जब क्या कर लोगे। काल तो खा गया। मारें जाओ टक्कर। तो कहने का भाव यह है कि इन विचारों से अपने मन को सेट रखो। परमात्मा जो करता है वह सही करता है। जैसे आपको बताते रहते हैं। एक बार हज़रत मूसा जी यहुदी धर्म के प्रवर्तक ने, से किसी ने पूछा सत्संगी ने, कि आज के दिन सबसे बड़ा इल्म वाला यानी ज्ञानी कौन है? उसने अपने आप को बताया। तो उसका अल्लाह बोला जिसको खुदा मानते हैं जिसने कुरान का ज्ञान दिया, बाइबल का दिया कि मूसा तूने यह बहुत गलत बात कही, मुझे अच्छा नहीं लगा। तूने अपने आपको कैसे कह दिया, मैं सबसे विद्वान हूं। अब मूसा जी भी अपनी जगह ठीक थे कि, जी यह ज्ञान आपसे प्राप्त हुआ। आप भगवान खुदा हो और खुदा जो ज्ञान देता है वह सबसे उत्तम होता है। मैंने उसी के आधार पर कह दिया। बोला, नहीं तेरा ज्ञान तो अल-खिज्र के ज्ञान के सामने पासंग भी नहीं है। कुछ भी नहीं है।

तो अल-खिज्र के पास मूसा जी पहुंच गए। अल-खिज्र जी ने कहा कबीर साहेब थे वो कि मेरी तू बातों को मानेगा नहीं। विश्वास नहीं करेगा। जो मैं कहूं वह तूने माननी पड़ेंगी। कोई objection (ऐतराज़) नहीं होना चाहिए और बोलेगा नहीं। सुन, देखता-देखता रहिए। वह बोला, मूसा जी बोले बिल्कुल महाराज! जैसा आप कहोगे मुझे सब्र करने वाला पाओगे। कति (बिल्कुल) मैं objection (ऐतराज़) नहीं करूंगा आपकी बातों पर। अगर तू खरा उतरा तो ज्ञान बताऊंगा। ना, बताऊं ना (नहीं)। उसने रस्ते में चलते एक जवान लड़का था 17-18 साल का। अल-खिज्र ने पकड़ कर और उसकी गर्दन पकड़ कर मार दिया। तो मूसा जी बोले तूने इस बेकसूर को मार दिया, तेरा दिमाग खराब है। यह क्यों मारा तूने? क्या बिगाड़ा तेरा इसने? तो अल-खिज्र बोला मैंने कहा था, मैं जो करूं तू देखता रहिए, बोलना नहीं है। मेरी क्रिया पर अविश्वास ना करना। मूसा जी ने अपनी गलती मानी। चल पड़ा। ऐसे-ऐसे 2-3 और कारण हुए। सब में उसने ऐसे objection किया। आखिर वह हार गया। मूसा कि मैं इस योग्य नहीं। मैं आपकी बातों को अविश्वास करता रहा हूं। Last (अंत) बता दिया कि इस क्रिया के बाद तू फिर objection (ऐतराज़) किया तो मैं तेरे से बात नहीं करूंगा, ना तुझे बताऊंगा ज्ञान। बोला जी ठीक है। उसमें भी हार गया वह। तब अल-खिज्र बोला सुन ले अब, ज्ञान तो तुझे बताऊं नहीं।

वह लड़का क्यों मारा था? वह ऐसा दुष्ट पैदा हो गया था इसके मां-बाप भक्त हैं और उनको इतना परेशान करता है वह रो-रो कर time (समय) काटते हैं। उसके स्थान पर भगवान ने उनके घर में 50 साल की उम्र में एक बेटी का जन्म दिया। उनका सुखी जीवन बना। यह प्रमाण है उसके अंदर बाइबल के अंदर। तो बच्चों! यह सतकर (सच्चा) मान लो मालिक जो करे उसको सही मानो। ऊक-चूक हो भी जाए तो भगवान से दूर ना हो जाना। वह जो करेगा, भगवान कभी गलत नहीं करेगा। यह तो आपने मानना ही पड़ेगा। गलत तो हम करे बैठे हैं। यह काल करवाने लाग (लग) रहा और रोज़ गलत होवे, एक दिन भी कौ नहीं। तो बच्चों! परमात्मा की प्रत्येक क्रिया पर विश्वास रखकर चलो तुम। हमें चाहे कितना ही नुकसान होता दिखे।

राजिक रमता राम की, रज़ा धरें जो शीष। दास गरीब दरस परस, तिस भेंटे जगदीश।।

हम अपनी विचारधारा को ऊपर रख्या (रखते) हैं, जो घिसी पिटी और बिल्कुल बकवादों से भरी होती हैं। इस कारण से हम भगवान पर अविश्वास, गुरुजी पर अविश्वास और सब क्रियायों पर अविश्वास करके अपने कर्म फोड़कर फिर काल के जाल में फंसे रह जाते हैं और वहां कुछ है ही नहीं? वह तो सारे उल्टे कर्म। Basic (प्रारंभिक) परंपरा बनावटी है। बच्चों! विश्वास करो अपने बंदी छोड़ पर। विश्वास नहीं करोगे तो मार खाओगे। गरीब दास जी कहते हैं;

गरीब, सर्जुन अर्जुन को सतगुरु मिले, मक्के मदीने माहीं। चौसठ लाख का मेल था, दो बिन सबही जांही।। गरीब, चंडाली के चौक में, सतगुरु बैठे आए। चौंसठ लाख गरत गए, दो रहे सतगुरु पाए।। गरीब सर्जुन अर्जुन ठाहरे, सतगुरु की प्रतीत। सतगुरु यहां ना बैठिये, यह द्वारा है नीच।। गरीब ऊंच-नीच में हम रहे, हाड़ चाम की देह। सर्जुन अर्जुन समझियो, रखियो शब्द स्नेह।।

बच्चों! सर्जुन और अर्जुन नाम के दो मुसलमान थे। इनके नाम तो मुसलमान पद्वति पर थे। परमात्मा मक्का मदीने में गए तो वहां बहुत से चमत्कार किए। इन दोनों आत्माओं को समझ में आई यह बात। फिर यह सारी संगत में वहां मुसलमान थे, दो भगत मुसलमान हुए। इन्होंने कहा, वैसे तो काफी थे मुसलमान भी, पर यह विशेष दृढ़ थे, सब नियमों का पालन करने वाले थे। तो इनका नाम बदलकर सर्जुन और अर्जुन रख दिया। परमेश्वर कबीर जी ने संगत की परीक्षा लेने के लिए एक लीला की, कि यह विश्वास करते हैं या नहीं करते हैं? क्योंकि भक्तों में गुरुदेव के आदेश का पालन कम होने लगा था। जैसे एक लड़की थी उसको ज्ञान हुआ वह गलत काम करती थी, वैश्या थी। अपना जीवन सुधारने के लिए मालिक से ज्ञान सुना, सत्संग में आने लगी, तो संगत वाले उसको धिक्कारने लगे। गुरुजी से बताया, गुरुजी ने सत्संग के माध्यम से कहा! भई आपने इस चीज़ से कोई लेना-देना नहीं।

कोई सत्संग सुनेगा नहीं, तो आत्मा कैसे साफ होगी। कपड़े को पानी, साबुन लगेगा नहीं, उसका मैल कैसे उतरेगा? फिर भी वह जैसे-तैसे अटपट करते रहते हैं। एक दिन मालिक ने परीक्षा ली एक लड़की उस वैश्या को हाथी पर बैठाया। हाथी किराए पर लिया। हाथ में गंगा जल, सफेद पानी बोतल में भर लिया जैसे शराब हो। लड़की के कंधे पर हाथ रख लिया, सारी काशी में घुमा दिया। साथ में रविदास जी थे, तो जितने भी सबको पता चलता गया लोग देखते गए शिष्यों को बुला-बुला कर लावें, देख! हम तो कहा करते वहां पर वैश्या तक जाती है। जुलाहा characterless (चरित्रहीन) है। पहले तो हम भगवान कहा करते उसको, इतने सुख दे दिए, जान निकली पड़ी थी। टोटा दुखी कर रहा था। शरीर में कष्ट थे। कहीं समय का (पर) रोटी भी नहीं थी और इतने ठाठ कर दिए गिने दिनों में, जब तो भगवान थे। आज वह शैतान लगे। यह हमारी कमज़ोर बुद्धि, जीव बुद्धि की सोच थी। सब परमात्मा को छोड़कर दूसरी साधना करने लग गए। गरीब दास जी कहते हैं;

भड़वा भड़वा सब कहे, कोई न जाने खोज।।

क्यों ऐसे किया था उस मालिक ने, इसको कोई नहीं समझ सका।

दास गरीब कबीर कर्म, बांटत सिर का बोझ।।

की वह इतने शिष्य बना लिए थे उसका भार गुरु पर होता है, उनको पार करने का और वह सारे ही निकम्मे हो गए थे। अविश्वास कर रहे थे। मर्यादा का पालन नहीं कर रहे थे, तो एकै झटके में सारे आपै (स्वयं) पड़ (गिर) गए। वह भार सारा उतर गया। तो उस समय, अर्जुन सर्जुन बाहर गए हुए थे उनका duty (सेवा) लगाई थी, तू जाया करो मुसलमान के मेला में, वहां समझाओ लोगों को। तो मक्का मदीना से यह आए उस समय सारी लीला हो चुकी थी और कबीर साहेब उनकी परीक्षा के लिए उस दिन भी उस लड़की के घर जा बैठे। वैश्या के आंगन में। अर्जुन सर्जुन को बताया कि गुरुजी तो भई कति (बिल्कुल) गिर गए। ज़ुल्म कर दिया सरे आम वैश्या के साथ हाथी पर घूम रहे थे। शराब पी रहे थे। अर्जुन सर्जुन को विश्वास नहीं हो रहा था कि ऐसी क्या बात कर रहे हो तुम। ऐसी बात कहने से भी पाप लगता है, गुरुजी के प्रति तुम, यह बोल क्या रहे हो।

तो एक बोला मैं अभी देख कर आया हूं। आज भी वहीं बैठे हैं ना (नहीं) यकीन है तो जा देख ले। देख लो जाकर। वह दोनों वहां गए परमात्मा बैठे थे। लड़की पैर दबा रही थी। गुरुजी बैठे चारपाई पर, बेटी बैठी नीचे, तो गुरु जी को शिक्षा देते हैं,

गरीब, सर्जुन अर्जुन ठाहरे, सतगुरु की प्रतीत।

यानी उन्होंने कोई दृढ़ता दिखाई थी फिर जाकर देखा तो वहां सतगुरु से बोले;

सतगुरु यहां ना, बैठिए यह द्वारा है नीच।।

हे सतगुरु! आप यहां ना बैठो। यह तो एक नीच औरत का घर है।

परमात्मा बोले; 

गरीब, ऊंच नीच में हम रहे, यह हाड़ चाम की देह।

तुम्हारी हाड़ चाम की देह है और इसकी भी वही है और

सर्जुन अर्जुन समझियो, रखियो शब्द स्नेह।।

तुम समझ जाओ, अपनी भक्ति कर लो, जो नाम दिया है। इन बांता (बातों) में कुछ नहीं धरा है। तुम गुरु को शिक्षा देते हो तुम तो मेरे गुरु हो गए।

ऊंच नीच में हम रहे, यह हाड़ चाम की देह। सर्जुन अर्जुन समझियो, रखियो शब्द स्नेह।।

तो उनकी आंखें जबै खुल गईं। पैर पकड़ लिए। माफ करो गुरुदेव! हम नीच आत्मा हैं। हमसे बड़ी भूल हो गई क्योंकि वह चाह थी अपनी भक्ति की। फिर परमात्मा ने कहा बेटा! कितनी बात बना लो ईब (अब) तुम मेरे प्रति वह भाव थारा (तुम्हारा) हो नहीं सकता तुम्हारे मन में मैल आ चुका है और ईब (अब) मेरे इस शरीर से, गुरु रूप से, तुम पार नहीं हो सकते। फिर रोए बुरी तरह, जी फिर उद्धार कैसे होगा? फिर बताया कि दिल्ली से 10 मील दूर, पश्चिम की ओर, किसी गांव में हम फिर आएंगे, हमारा एक भक्त आएगा। उसको दीक्षा देंगे। दीक्षा उससे लेकर तुम कल्याण को प्राप्त होगे।

तो वह कहते हैं, वहां से चलकर वृद्धा अवस्था में हुमायूं गांव है, खरखोदे के पास, वहां आकर रुके। कति (बिल्कुल) वृद्ध हो गए मालिक की कृपा से वह 200 साल जिए, ऊपर बेशक और फिर गरीब दास जी को परमात्मा मिले 10 साल की उम्र में उनको दीक्षा का आदेश दिया तब उन्होंने वहां से दीक्षा लेकर, वहीं शरीर छोड़ दिया छुड़ानी में ही। उनकी अभी तक हमारे सामने बतावैं थे (बताते हैं) हम जान लगे तब की यह दो-तीन साल पहले, 10 साल पहले यहां भूरी वाले महाराज आया करते गरीबदासी, उन्होंने वह मंढी फुड़वा दी। उनके दोनों की यादगार बनी हुई थी। इसलिए फुड़वा दी कि लोग इन्हें पूजन लाग (लग) जाएंगे। गरीब दास जी को छोड़ कर। तो कहने का भाव यह है बच्चों! आंख खोल लो। इन बातां (बातों) में कुछ नहीं धरा (रखा)। गुरु के प्रति कभी अविश्वास नहीं होना चाहिए और परमात्मा की प्रत्येक क्रिया को शिरोधारीय होना चाहिए। आंख खोल लो। परमात्मा बार-बार यह मौका नहीं देगा आपको।

समझा है तो सिर धर पांव, बहुर नहीं रे ऐसा दांव।। यह संसार समझदा नाहीं, कहन्दा शाम दोपहर नूं। गरीबदास यह वक्त जात है, रोवोगे इस पहरे नूं।।

भक्ति नहीं करते वह न्यों (ऐसे) रोवेंगे। गलत साधना कर रहे हैं वह रोवेंगे। यह सच्ची भक्ति करके मर्यादित ना रहे तो तुम रोवोगे। कति (बिल्कुल) सीधे हो जाओ। समर्पित हो जाओ। मालिक के चरणों में सदा ध्यान रखो। बुराईयों से बचो। सेवा, सुमिरन, दान करो। मर्यादा का निर्वाह करो। मलिक आपको मोक्ष दें।।

सत साहेब।।