सत साहेब।।
सतगुरु देव की जय
बंदी छोड़ कबीर साहेब जी की जय।
बंदी छोड़ गरीबदास जी महाराज जी की जय।
स्वामी रामदेवानंद जी गुरु महाराज जी की जय हो।
बंदी छोड़ सतगुरू रामपाल जी महाराज जी की जय।
सर्व संतों की जय।
सर्व भक्तों की जय।
धर्मी पुरुषों की जय।
श्री काशी धाम की जय।
श्री छुड़ानी धाम की जय।
श्री करौंथा धाम की जय।
श्री बरवाला धाम की जय।।
सत साहेब।
सत साहेब।
कबीर दंडवतम गोविंद गुरु, बन्दूं अविजन सोय। पहले भए प्रणाम तिन, नमों जो आगे होए।
गरीब, नमो नमो सतपुरुष कुं, नमस्कार गुरु किन्हीं। सुरनर मुनिजन साधवा, संतों सर्वस दीन्हीं।।
सतगुरु साहिब संत सब, दंडवतम प्रणाम। आगे पीछे मध्य हुए, तिन कूं जा कुर्बान।।
गरीब सतगुरु पूर्ण ब्रह्म हैं, सतगुरु आप अलेख। सतगुरु रमता राम है, या में मीन ना मेख।।
परमात्मा की प्यारी आत्माओं! परमात्मा के हंस आत्माओं, परमेश्वर कबीर जी की असीम रज़ा से आज आपके ऊपर ऐसी असीम कृपा हुई है। आज mean (मतलब) आपके वर्तमान में, मानव जीवन में, आपको इस काल के लोक के नर्क का ज्ञान हुआ। इस बात को बार-बार क्यों repeat (दोहराया) करता है दास क्योंकि आप बच्चे हो। बच्चे school (विद्यालय) में class (कक्षा) में बैठे हैं इतने तो सारी सुनते हैं, मानते हैं, पूरा ध्यान देते हैं। उसके बाद वो अपने सांसारिक जीवन में भी बहुत समय व्यतीत करते हैं तो वो रंग भी साथ चढ़ता है और यह भी अपना स्थान, शिक्षा भी, शिक्षा ही आध्यात्मिक class (कक्षा) है। Spiritual (आध्यात्मिक) classes (कक्षाएं) हैं। वह भौतिक क्लास हैं। वह ज्ञान प्राप्ति सिर्फ अक्षर ज्ञान सीखना, उसके अनुसार जीने का जो भी साधन वो उचित समझा जाता है, वह बताया जाता है। इसमें मोक्ष मार्ग बताया जाता है। जिसके लिए आप जीना चाहते हो। इस मनुष्य शरीर को प्राप्त किया है इसके प्राप्त होने का क्या उदेश्य है? यह इस आध्यात्म वाली क्लासों में, शिक्षा में, इस teaching (पढ़ाई) में आपको प्राप्त होता है। जैसे कबीर साहेब ने कहा है;
मन नेकी करले, दो दिन का मेहमान। मन नेकी करले, दो दिन का मेहमान।। कहां से आया, कहां जाएगा, तन छुटे तब कहां समायेगा। कहां से आया कहां जाएगा, तन छूटे तब कहां समायेगा।। आखिर तुझको कौन कहेगा, गुरु बिन आत्म ज्ञान।। मन नेकी करले, दो दिन का मेहमान। मन नेकी करले, दो दिन का मेहमान।।
अध्यात्म की classes में इस spiritual classes में यह बताया जाता है तू कौन है? कहां से आया था? और कित (कहां) आकर फंस गया। अब इसी अस्थायी संसार में, अस्थायी परिवार में कती (बिल्कुल) मस्त होकर बैठ गया। इसे final (अंतिम) समझ लिया। इतना ही सब कुछ है। कभी देखा है आपने, अखबारों में पढ़ते हैं, समाचार पत्रों में, एक परिवार में चार सदस्य थे। पांचवा बूढ़ा जीवे था यानी उसका बेटा, पुत्रवधु, पोता और पोती, पत्नी मर चुकी थी। Accident (दुर्घटना) में वह चारों मर गए, इकट्ठे ही। अरे! इस गंदे लोक में हे परमात्मा! जिसके ना लागदी (लगती) यह चोट इतने मन में सोचे कुछ नहीं हुआ।
जैसा दर्द आपने हो, ऐसा जान बिरानै।
इस गंदे लोक में रहोगे, क्या इतना ही सब कुछ है? परमात्मा केवल इतना ही बताने आए थे। जो इन चार शब्दों में दास ने आपको बता दिया। इनको पूर्ण रूप से define (विस्तार) करने के लिए इतने मोटे ग्रंथ बनाने पड़े।
कहां से आया कहां जाएगा, तन छूटे तब कहां समायेगा।
आज तो यह भी नहीं पता, तू आया था किते (कहां से)? किसी की 20 साल उम्र है, 21 साल पहले कहां था? क्या यही था तेरा सब कुछ? क्या यही परिवार था? पता नहीं कित (कहां) कुत्ते बनके वहां परिवार बना हुआ था। उसमें ऐसे फूल रहा था। धक्के खा रहा था। 10 साल पाछे (पीछे) यह छूट जाएगा 20-30 साल, 50 साल पाछे। फिर कुत्ते बनकर धक्के खाओगे।
आखिर तुझको कौन कहेगा, गुरु बिन आत्म ज्ञान।।
यह ज्ञान तुझे सतगुरु बिना कौन बतावैगा भले आदमी। संसार के लोग तो जीवन निर्वाह का। तो बच्चों! सांसारिक जो आपके साथी हैं, माता-पिता हैं और कोई रिश्तेदार हैं और कोई दोस्त हैं, वह निर्वाह की जानकारी बता सकते हैं कि भाई यह पढ़ाई करले, यह training (प्रशिक्षण) कर ले। यह course (कोर्स) कर ले या इस तरह का यह Business कर ले। इसमें घना (ज़्यादा) धन आवैगा (आएगा) और संत बताते हैं यह भक्ति कर ले इसते (इससे) भक्ति का धनी तो होगा ही होगा और भौतिक धन भी साथ मिलेंगे आपको। जैसे किसान गेहूं बीजता है। उसका गेहूं बीजने का मुख्य उद्देश्य है कि मैं और मेरा परिवार, आहार प्राप्त करें। भूखे ना मरैं। तो गेंहू का उद्देश्य उसका भूस बनाना नहीं होता। बहुत से किसान हैं जो पशु नहीं रखते क्योंकि ट्रेक्टर मशीनरी चल पड़ी, तो वह भी गेहूं बोते हैं उनके भी भूस होता है। तो कहने का भाव है कि जो यह सच्ची भक्ति है, सच्चा ज्ञान है किसकी साधना करने से, यह साधना करने से आपको भौतिक धन तो आपै होगा पहले यह होगा। उसके बाद मोक्ष मिलेगा यानी पहले गेंहू में, भूस तैयार होगा। ]
उसकी डंठल शुरू होगी, गेहूँ का पौधा जब उगेगा और बाली तो 3-4 महीने के बाद आवैगी (आएगी) ऊपर गेहूं जिसके लिए हमने उसको बोया है तो वो तो ना चाहते हुए पहले होगा। तो इसलिए यह जो साधना आपको दी गई है बच्चों! इस type (प्रकार) की है। लेकिन आप विश्वास नहीं करते वो अलग बात है। लेकिन इस ज्ञान के सुनने से और जो आपके, आपको दाता सुख देगा धीरे-धीरे क्योंकि तो उससे आपको विश्वास हो जाएगा। अब जैसे हमने आज कोई आम का पौधा बोया है। उसको समय दो वह धीरे-धीरे बड़ा होगा। उसकी रक्षा करो, सुरक्षा करो। सिंचाई करते रहो और वह एक दिन 5-10 साल के अंदर इतना बड़ा पेड़ बन जाएगा। फिर वह इतने फल देगा लदपद हो जाएगा। आप भी खाओगे। रिश्तेदारों तक भी दे-दे आओगे यानी आपको इतना सुख दे देगा। यह मालिक का सच्चा बीज जो बोया है। इसको एक बार तैयार करो। जल्दी ना करो। कल बीज बोया आज ही इच्छा कर ली। यह नहीं चलेगा। सत्संग का उद्देश्य यही होता है कि यथार्थ ज्ञान आत्मा को हो और सतगुरु का उद्देश्य यह होता है, इस काल के लोक की सब व्यवस्था दिखाकर सत्य के साथ आत्मा को यह सिद्ध कर दे कि कति (बिल्कुल) मूर्ख बना रखा है, अपने को। यहां क ख नहीं तेरे पल्ले। इस गंदे लोक में कब तक उलझे रहोगे, यही स्वांग जोड़-जोड़ कर? परिवार हो गया उनका पालन-पोषण करेंगे।
विवाह शादी करो अच्छी बात है। सारा कुछ कर दिया। भक्ति बनी नहीं तो फिर क्या होगा अगले जन्म में कुत्ते, गधे, सुअर के परिवार में जन्म लेंगे। वहां भी फिर यही काम शुरु हो जाएगा, यही। एक कुतिया 8-8 बच्चे पैदा करती है और उनको छिकाने (पेट भरने) के लिए आप (स्वयं) किते (कहीं) झूठे टुकड़े खा-खा कर आती है। उनको पालती है और पालने के बाद उसको क्या देते हैं, उसका टुक (रोटी) भी खा जाते हैं, कोई डाल दे तो आगे। जब बड़े हो जाते हैं उसको, मां ने (को) रोटी भी नहीं खाने देते और यह स्थिति ईब (अब) कलयुग में भी होने वाली है। मां-बाप की कोई कदर नहीं करता, लगभग हो चुकी है। तो यह हो क्या रहा है?
एक लेवा एक देवा दूतं, कोई किसी का पिता ना पूतं।। ऋण संबंध जुड़ा एक ठाठा, अंत समय सब बारंह बाटा।।
आज मर जाएंगे हम, कौन बेटा साथ मरेगा? और इकट्ठे मर भी गए किते (कहीं) accident (दुर्घटना) में तो पता नहीं कौन कहां जन्म लेगा? कोई कहां जन्म लेगा। तो क्या स्वांग है यह? तुम किस चीज के ऊपर आंख बंद करके बैठे हो? यह आंख खोलनी पड़ेगी। लल्लो-पत्तो का ज्ञान भतेरा (बहुत) दे लिया। अब खरी-खरी कहूंगा और इनको जो सहन कर गया उसका बेड़ा पार है और जिसके अंदर दोष होगा वह या तो ठीक हो जाएगा ना छोड़ जाएगा इस मिशन को। हमें ऐसों की जरुरत भी नहीं। बच्चों!
सतगुरु मिले तो इच्छा मेटै, पद मिल पदे समाना। चल हंसा उस लोक पठाऊं, जो आदि अमर अस्थाना।।
क्या यह बालकों के गीत हैं? या कोई नावल की बातें हैं? यह God given gift (भगवान की देन उपहार) है, आपके लिए। एक अनमोल ज्ञान है।
मन तू चल रे सुख के सागर, जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।
संत गरीबदास जी अपने उस निज स्थान को देख कर आए परमपिता के साथ जाकर और वहां की व्यवस्था देखी। वहां का सुख देखा। वहां का अजर अमर स्थान और देवी देवता रुपी स्त्री-पुरुष देखे। बेटा-बेटी देखे। फिर वह नीचे आया जब सारी बात बता दी।
मन तू चल रे सुख के सागर, जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।
जहां शब्द सिधूं रत्नागर। (ओहो!) अमर स्थान है और वहां पर अमरत्व का अमर, इतना सुख है जैसे समुंदर में समुंदर के पानी के अतिरिक्त कुछ नहीं दिखाई देता। जहां देखें वहां जल ही जल, जल ही जल। ऐसा वह सुख सागर स्थान सतलोक है। वहां चलो। अब तक हमने सिर्फ स्वर्ग सुना था। भाई स्वर्ग गया। स्वर्ग में यह है, यह सुख है। अब पता चला स्वर्ग तो हमारी जेब काटन (काटने) का होटल है। धरती पर, यहां पर पुण्य कमाओ, स्वर्ग के होटल में खाओ, खर्चों और जेब खर्च खत्म होते ही नरक में ठोको। नरक की पूरी प्रक्रिया पूरा पाप भोग लेगा फिर पृथ्वी पर पटको कुत्ता, गधा, सुअर बनो चाहे राजा-महाराजा बनो। फिर कर्म फोड़ो। अब क्या बताते हैं;
मन तू चल रे सुख के सागर, जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।
गरीब दास जी गाया नहीं करते थे विलाप करते थे। विलाप है यह गाना नहीं है। यह कोई रागिनी या फिल्मी गीत नहीं है। यह तो वाणी है मालिक की, अमर वचन।
कोटि जन्म तोहे भरमत हो गए, कुछ नहीं हाथ लगा रे। कुकर सूकर खर भया बौरे, कौवा हंस बुगा रे।।
मन तू चल रे सुख के सागर, जहां शब्द सिंधु रत्नागर।। (ओए होय) कोटि जन्म तुझे भरमत हो गए, कुछ नहीं हाथ लगा रे।।
आज फैक्ट्री का मालिक है लाखों करोड़ों की सम्पत्ति है एक सेकेंड में मर गया। भक्ति पल्लै (पास) है नहीं? करै है तो वह नकली कर रहा है शास्त्र विरुद्ध, उसका कोई लेखा नहीं। तो क्या हाथ लगा, उस नकली आदमी के? उस आत्मा के। कुत्ता बनकर उस कोठी के आसपास घुमेगा। कोई टूक (रोटी) भी ना मिलेगी या तो आप पत्थर हो चुके हो बच्चों! आपकी आत्मा पत्थर हो गई। इतनी, ऐसी बातें सुनकर भी और भय नहीं बनता और लगन नहीं बनती, बकवाद नहीं छूटती। तो आपका, पाप बहुत ज़बरदस्त छाती में जमा है, आपके मस्तिक में। उसका यही तरीका है। सत्संग ना (नहीं) चाहते हुए सुनो। सत्संग सुने बिना भक्ति भी ना बने आपसे।
दाता ने अभी थोड़ा सा समय आपको दिया है। इसलिए दिया है कि आप में फिर जागृति आवै, यह भूल ना पड़े। अभी तक तो तुम सत्संग सुनते थे। औपचारिकता से सुनते थे। अब आपके, पहले तो ऐसे ही सुनते थे बस ठीक है बहुत अच्छा, बहुत अच्छा। अब यह वचन आपकी आत्मा के अंदर जमे उस अंड़गें ने (को) फोड़ देगी। झाड़ देंगें उसको कती (बिल्कुल) यह वचन दाता के। यह इसलिए दाता ने समय दिया है कि मेरे बच्चों को काल फिर से ना उलझा कर बैठ जा। बड़ी मुश्किल से तो आपको रस्ते पर लाए हैं (रास्ते पर), मार्ग पर और यह काल के दूत दुष्ट आत्मा बीच-बीच में और अड़ंगा अड़ाने वाले बहुत घूमे हैं। पर आप इतने दृढ़ हो जाओ उन दुष्टों की बात को स्वपन में भी सच ना मानना। मैं सामने बोल रहा हूं। मैं कह रहा हूं, आपका गुरु हूं। वह दुष्ट आत्मा एक किते (कोई) वीडियो डाल दे। ले उसे की सांची मान ली सारी। दुष्ट आत्मा देखा ना, आस पास आया ना, मेरे से मिले नहीं कदे (कभी) वो। इतने बालक मत रहो ईब (अब)। समझदार हो जाओ।
अब मैं क्यों दुख पा रहा हूं, मेरे के (क्या) लागो (लगते) तुम। अब मुझे पता है आप मेरे क्या लगते हो। आप उस परमपिता की वह भोली-भाली संतान हो जिनको कोई भी मूर्ख बनाकर कहीं भी आपको भगा ले जाता है। आप परमात्मा की वह प्यारी आत्मा हो और जिसके कारण मेरी नौकरी बरकरार है। मेरी मजदूरी, मेरी दिहाड़ी आपके साथ है। आप ही मेरा जीवन हो, आप ही मेरे जीवन का उदेश्य, लक्ष्य हो चुके हो क्योंकि मुझे ज्ञान हो गया है। मुझे परमात्मा ने यह मज़दूरी सौंप दी है और आप के कष्ट को दास खूब जानता है, आप नहीं जानते। अब देखो कितने दिन हो गए। एक दिन, दो दिन, एक साल में 365 दिन होते हैं और 1994 से लेकर आज तक गिन लो कितने हो गए। केवल राम ही राम रटूं हूं। सारा दिन यही गीत गाऊं हूं और आपको सतर्क करता हूं। जगाता हूं। कुत्ते की तरह भौंक रहा हूं दिन-रात वफादार कुत्ते की तरह। आपको आंखें खोलनी पड़ेंगी। अब इस नींद में सोने नहीं दूंगा जब तक मेरे जीवन में स्वांस है क्योंकि आप नर्क में जाओगे। कुत्ते-गधे बनकर धक्के खाओगे। यह दुःख तुम्हें नहीं दिखता पर मेरे को साफ दिखाई देता है। मेरा कलेजा मुंह को आ जाता है जब देखूं यह कहां जाएंगे अगर इस मार्ग को छोड़ दिया। ठीक से नहीं लगे क्या हालत होगी आपकी? वह इसी में बताया जा रहा है।
कोटि जन्म तनै भरमत हो गए, कुछ नहीं हाथ लगा रे। कुकर सूकर खर भया बौरे, कौवा हंस बुगा रे।। मन तू चल रे सुख के सागर, जहां शब्द सिंधु रत्नागर।।
कुकर - कुत्ता, सूकर - सुअर, खर - गधा, कौवा, बुगला न्यारी (सारी) मछली माँस अडंगे खाएं। क्या यह आपको विश्वास नहीं कि सचमुच ऐसा आपके साथ बना है। यह विश्वास नहीं है तो आप एक आने के प्राणी नहीं। आप भक्ति के योग्य भी नहीं है। संस्कार भी नहीं आपके अच्छे। यह तो साफ दिखाई देता है भगवान बतावैं। आंखों देखा संत बतावैं। अंधे को दिखाई ना दे तो आंखों वाले की बात को मान लेने में हित है। अगर आपको यह विश्वास है कि सचमुच भक्ति ना करने से ऐसा ही होता है। फिर;
समझा है तो सिर धर पांव, बहुर नहीं रे ऐसा दांव।।
इससे बचाव का यही मार्ग है यही रास्ता है।
समझा है तो सिर धर पांव।
कति (बिल्कुल)
तन मन शीश ईश अपने पै, तन मन शीश ईश अपने पै। पहलम चोट चढ़ावै, जब कोई राम भगत गति पावै हो जी।। सिर साटे की भक्ति है,
गरीब दास जी कहते हैं;
और कछु नहीं बात। और सिर के साटे पाइये, अविगत अलख अनाथ।।
यदि सिर के साटे हरि मिले… तो भी सोंगा (सस्ता) जान और बात तो छोड़ दो। बात बनाने से नहीं बनता, कोई काम। अगर सिर जाने से भगवान मिल जा, तो इससे सस्ता कति (बिल्कुल) नहीं। लेकिन सिर तो हम सबसे कीमती मानते हैं। भई अपने रोग हो जाए शरीर में, उसका इलाज कराने के लिए जीवन रक्षा करने के लिए, जिंदा रहने के लिए, हम अपनी संपत्ति भी बेचकर इलाज कराते हैं। यह सोच के, जिंदा रहे तो संपत्ति तो फिर जोड़ लेंगे यानी यह शरीर कितना कीमती है। जीने की कितनी हमारी इच्छा है और यह बताया है कि इस शरीर के बदले, जान के बदले भी, मालिक मिल जाए तो सस्ता जानो। कहते हैं;
कोट जन्म तनै दे लिए। कोट शीश तनै दे लिए। यम राजा की फैंट।
काल ज़बरदस्ती कर देगा, काम। एक मिनट में मार देगा। बता बचाए जाओ, कहां तक खैर मनाओगे? लेकिन इसमें सिर देना नहीं।
सिर सौंपया गुरुदेव को, सफल हुआ यौह शीश। नितानंद इस शीश पर, आप बसै जगदीश।।
समर्पित होकर देखो। समर्पित हो जाओ। मालिक का काम पहले, सांसारिक बाद में। सौ काम छोड़कर दाता की सेवा और सत्संग में आपने रुचि बनानी चाहिए। फिर बताते हैं;
कोटि जन्म तू राजा कीन्हां।
जैसे महावीर जैन जी का इतिहास जैन धर्म के द्वारा लिखा हुआ, उनके लेखकों द्वारा पुस्तक आपको दिखाई। “आओ जैन धर्म को जानें” उसमें वह खुद लिखते हैं कि इतने लाख बार राजा बना। इतनी बार देवता बना और साठ करोड़ बार गधा। तीस करोड़ बार कुत्ता। गधा तो एक ही बार बना भतेरा (बहुत)। वह सारी अफलातूनी निकल जा, जो देवता या राजा महाराजा बने थे। तो क्या ख़ाक भक्ति है यह? और यह मानते हैं यह तो होगा ही होगा। इसको कोई बदलाव नहीं होगा, यह इनका मानना है। फिर उस भक्ति की क्या आवश्यकता है। यह ऐसे ही कर्म फोड़ने हैं ऐसे कष्ट, ऐसे उठाने हैं। तो बच्चों! अब इससे आपने समझ लेना चाहिए जो ज्ञान बताया जा रहा है यह 100 % सत्य है। यह भगवान की एक gift है, आपको एक पारितोषिक। कहते हैं;
कोट जन्म तू राजा कीन्हां, मिटी ना मन की आशा। भिक्षुक होकर दर दर घूमा।
यानी घर भी त्याग दिया। भीख मांगकर, जाकर जंगल में खाकर भक्ति भी कर ली। तो यह निर्गुण रासा यानी विशेष ज्ञान, विशेष भक्ति, पूर्ण सतगुरु ना मिलने से आपकी अभी तक यह भटकना मिटी नहीं। कहते हैं इंद्र कुबेर। ओहो! राजे-महाराजे तो छोड़, इंद्र स्वर्ग का राजा तू बना। एक बार मार्कण्डेय ऋषि एक चींटी कीड़नाल को देख रहा था। चीटियां जब चलती हैं उसकी एक लंबी कतार बन जाती है। उसमें कुछ आ रही हैं, कुछ जा रही हैं। उनको बैठा-बैठा निरीक्षण कर रहा था मार्कण्डेय ऋषि जंगल में। इंद्र ऋषि वहां पर पहुंच जाते हैं।
इंद्र स्वर्ग के राजा और बोले कि हे महाराज! आप इतना ध्यान से इन चींटियों में क्या देख रहे हो? मार्कण्डेय ऋषि ने कहा कि मैं यह देख रहा हूं कौन सी चींटी कितनी बार इंद्र की पदवी प्राप्त कर चुकी है। स्वर्ग की राजा रह चुकी है। स्वर्ग का राजा रह चुकी है। इंद्र ने पूछा भगवन क्या देखा आपने? कि इनमें एक चींटी ऐसी है जो केवल एक बार इंद्र की पदवी प्राप्त कर चुकी है, यह आत्मा। बाकी तो कई-कई बार इंद्र बन चुकी हैं। बच्चों! देख लो विचार करके। इंद्र का राज प्राप्त करके फिर चींटी कीड़े-मकोड़े बनकर धक्के खाती हैं, यहां। इंद्र, कुबेर धन का देवता इस तीन लोक का यानी वित्त मंत्री। इंद्र कुबेर ईश की पदवी, ब्रह्मा विष्णु, महेश के पद तक भी तुमने प्राप्त किए हैं।
ब्रह्मा वरुण धर्मराया।
वरुण जल का देवता। धर्मराय, यह न्यायधीश यह सारे मरते-जन्मते हैं और इनको भी फिर बार-बार कभी किसी नई आत्मा को यह पद मिल जाते हैं जिनके पुण्य ज़्यादा होते हैं। तप ज़्यादा होता है। अब कहते हैं;
असंख जन्म तनै मरतयां हो गए, जीवित क्यों ना मरै रे। द्वादस मध्य महल मठ बौरे, बहुर ना देह धरै रे।।
द्वादश दर मध्य, बारहवें द्वार के आगे, वो सतलोक है। वहां जाने के बाद फिर दोबारा जन्म आपका नहीं होगा। आप असंख जन्म मरतयां हो गए, एक बार जीवित मर कर देखो। जीवित मरने का आपको exampal (उदाहरण) बताया था। बताता रहता हूं, सत्संग भी आप सुनते हो कि सत्संग की तरफ चलो, काल खूब अड़ंगे अड़ावैगा और यह सोच लो जैसे यह सत्संग आपके घर पर हो गया, जाने की जरूरत ही नहीं। इसमें भी अडंगा अड़ावैगा। अगर इसमें भी नहीं सुनने देगा दृढ़ता नहीं आई तो आप में। कोई न कोई खुड़का-दुड़का आसपास कर ही देगा। कोई कहानी, कोई बात बना देगा वहां न्यों (यह) हो गया, ऐसे हो गया। वहां चलो फलान करो। तो जीवित मरना होगा। अब आज आप 3 time (समय) आधा पौना-पौना घंटा निकालो। यह तो भी किते (कहीं) गप्पे मार के, ताश खेल के, किते इधर-उधर की बकवास बतलाकर या कोई tension (चिंता) हो जाएगी, उसमें पड़े-पड़े सोचे जावेंगे (सोचते रहेंगे)। यह तो व्यर्थ में जाना था;
और बात तेरे काम नहीं आवै, संतों शरणा लाग रे। क्या सोवै गफ़लत में बंदे, जाग जाग नर जाग रे।।
तो ईब यह सत संग लगना यानी संत के पास जाओगे तो परमात्मा की कथा सुनावेगा। ईब (अब) कथा आपको घर-घर बैठे सुनने लग रही। यह जीवित मरो। सत्संग में जाते हो, सेवा के लिए जाते हो कोई समस्या महसूस होती है, होती रहो। सेवा मे चल पड़ो। यह सोच लो सत्संग में ना जाऊं और कल ऊक चूक हो जाती है वैसे मृत्यु हो जाए फिर? वह परमानेंट काम गया जो कदे भी नहीं कर सकता उसने आकर और सत्संग में जाने से वैसे तो नुकसान होता नहीं guaranteed बात है और मान लेते हैं हो गया, हो जाएगा। हो जाएगा तो एक दिन पाछे आकर फिर संभाल लेंगे और पक्की टिकट कट गई यहां से। मर ही गए तो फिर कब संभालोगे? फिर घर के रहे ना घाट के। ना भगवान के रहे और ना आपका घर रहा, ना बार रहा, ना वो कारोबार रहा। इतना आपने अपने मन को समझाना पड़ेगा। इतना नहीं समझाओगे, इतने भक्ति नहीं बन पावैगी। ठीक है जैसा करोगे सेवा, सुमरन, दान फल आपको मालिक ज़रूर देगा। लेकिन जो समस्या है, जो रोग है जन्म और मृत्यु का वह तो ज्यों का त्यों रह गया।
असंख जन्म तनै मरता हो गए, जीवित क्यों ना मरै रे। द्वादश दर मध्य महल मठ बौरे, बहुर ना देह धरै रे।।
दोजख भिस्त सभी तैं देखें, राज पाट के रसिया। तीन लोक से तृप्त नांहीं, यो मन भोगी खसिया।।
कहते हैं कि दोजख - नरक, भिस्त - स्वर्ग, तुने यहीं के चक्कर में जो साधना यहां करते रहे उससे स्वर्ग भी गए और फिर नरक भी गये। राजा भी बने और अंत में कुत्ते, गधे, सुअर भी बने।
दोजख भिस्त सभी तैं देखे, राज पाट के रसिया। तीन लोक से तृप्त नांहीं, यो मन भोगी खसिया।।
जिसको खाने के लिए रोटी नहीं है उन (वह) सोचै हे भगवान! दिहाड़ी मिल जा। मज़दूरी कर लूं, बच्चे पाल लूं और दिहाड़ी मिल जाती है तो शुक्र मनाता है। अपना ठीक गुज़ारा सा शुरू हो जाता है और इससे ज़्यादा धन हो जा तो बकवाद सोचने लगता है आदमी। यह बना दूं, वह बना लूं। यह कर लूं और ज़्यादा पैसा, सारी सुविधा होती हैं यह पिछले संस्कार से तो फिर सोचता है कोई सरपंच बनूं गांव का, फिर चेयरमैन। सरपंच से बात नहीं बनी। चेयरमैन बनूं फिर सोचै MLA बनूं। MLA से भी पेट नहीं भरता, संतोष नहीं होता, न्यों (ऐसे) सोचे मंत्री बनूं जब सब कुछ कमांड हो जा एक विभाग की। मंत्री बनने के बाद फिर मुख्यमंत्री की डांट खानी पड़ै। फिर न्यों सोचे हे भगवान! मुख्यमंत्री का दांव लगे जब बात बनें। मुख्यमंत्री बन जाता है तो सोचता है प्रधानमंत्री बनूं। सारा कमांड देश की हो। यह मन ऐसा दुष्ट है और इतने बनना बनाना कुछ नहीं और बन भी गया तो क्या किला टूटेगा? मृत्यु के बाद गधा बनेगा जब भक्ति ना (नहीं) करी तो। तीन लोक भी दे दे ना इस मन को तो भी इसको संतोष नहीं है। यह मन ऐसा दुष्ट है।
तीन लोक से तृप्त नाहीं, यौह मन भोगी खसिया।
इतनी निकम्मी वृति है हमारी इस मन की। अब क्या बताते हैं;
सतगुरु मिले तो इच्छा मिटे, पद मिल पदे समाना। चल हंसा उस लोक पठाऊं, जो आदि अमर अस्थाना।।
की सतगुरु मिले तो यह सब बातें याद दिलाकर यहां से मन हटावैगा। जब बात बनेगी। जैसे अब्राहिम सुल्तान अधम सुल्तान एक राजा था। सुल्तानी बलख बुखारे का। सर्व संपन्न राजा था। इतना धन था गिनती नहीं। अठारह लाख घोड़े और भी बकवास संसार जो राजा लोग ऐश मानते हैं वह भी खूब था। शादियां कई करवा रखी थीं। नौ लखा बाग सारे ठाठ थे। हम इसी ने (को) ठाठ मानें। आप लोग भक्ति करते हो क्योंकि आप भौतिक धन के कमज़ोर हो। लेकिन अध्यात्म धन आपका बहुत ज़बरदस्त है क्योंकि आपको मालिक की शरण मिल गई। ईब आपकी नियत यह रहै, हे भगवान! बढ़िया गुज़ारा हो जा। कार मिलै, कोठी मिलै। ईब इतना ज्ञान दिया जा रहा है और इतना कुछ ज़बरदस्त बातें बताई जा रही हैं तो यह इसलिए बताई जा रही हैं कि यौह मन हटै यहां से। आप यह साधना करते रहो जैसे आपको बताया था।
किसान जो गेहूं बोता है। उसका उदेश्य भूस प्राप्त करना नहीं होता। उसका उद्देश्य होता है गेहूं। बच्चों की जान बचे। खाने को पेट भरे हमारा सारे परिवार का। लेकिन वह भूस तो आपै (स्वयं) होगा जब गेहूं की फसल बोई है तो। जो भक्ति हम आपको दे रहे हैं इसमें आपको यह भौतिक धन तो आपै (अपने आप) होगा। यह प्रथम मंत्र जो दिया जाता है इसके बिना आगे के मंत्र नहीं चलें। गेहूं बोते हैं तो उसमें डंठल पहले आएंगे जो भूस होता है और डंठल अच्छी दो-दो, तीन-तीन फुट की खूब बढ़ेगी। जब जाकर बाली आवैगी, बाल। जिसमें गेहूं लागेंगे। जिसमें गेहूं होगें। तो इसी प्रकार यह जो भक्ति आपको दास दे रहा है परमात्मा की दी हुई, गुरुदेव के आदेश से उनकी बख्शी हुई, यह ऐसे काम करेगी। आपने भौतिक धन तो ना मांगोगे तो भी देगा। यह मिलेगी इसमें बस की बात नहीं। लेकिन इतना सब्र करना पड़ेगा। इतना संतोष करना पड़ेगा ताकि यह फसल तैयार हो। आज बोया और कल फसल में ना भूस होवै और ना कनक (गेहूं) होवै। तो आपको इसमें घनी (ज़्यादा) हाथ-पांव मारने की आवश्यकता नहीं, ज्यादा tension (चिंता) लेने की आवश्यकता नहीं थोड़े सब्र की आवश्यकता है और भक्ति में मर्यादा में रहना पड़ेगा। अब गरीबदास जी कहते हैं;
कल्पे कारण कौन है, कर सेवा निहकाम।
निष्काम भाव से, बगैर किसी मनोकामना के तू सेवा करता रह। भक्ति करता रह और
मन इच्छा फल देवेगा जब पड़े धनी ते काम।।
अब जैसे आप सफर में जा रहे हो और accident (दुर्घटना) हो जाता है वहां धनी का काम है। वहां ना कोई राष्ट्रपति, ना प्रधानमंत्री, ना आपकी संपत्ति और संतान आपकी रक्षा कर सकता है। ना आप अपनी संतान की कर सकते हैं।
कल्पै कारण कौन है, कर सेवा निहकाम। मन इच्छा फल देत है, जब पड़े धनी तें काम।।
अब जैसे द्रोपदी ने एक 6-7 इंच चौड़ा, 8 इंच चौड़ा, तीन फुट का एक कपड़ा फाड़ कर साड़ी में से दिया था। उसने नि:इच्छा दिया था। उसको न्यों (यह) भी ना (नहीं) बेरा (पता) था, मैं क्यों दे रही हूं कि इससे मुझे फल मिले, इसलिए दे रही हूं। वह तो एक अपना धार्मिक और एक अपनी इंसानियत के नाते और साधु देखकर दान किया। जब धनी का काम पड़ा, जब उसको नंगा करने लगे वहां था धनी का काम। कहते हैं;
गरीब, कल्पै कारण कौन है, कर सेवा निहकाम। और मन इच्छा फल देत है, जब पड़े धनी से काम।।
वहां धनी का काम था।
खैंचत खैंचत खैंच कशीशा, सिर पर बैठे हैं जगदीशा।। द्रौपद सुता के चीर बढ़ाए, संख असंखों पार नहीं पाए।। द्रौपद सुता कूं दिन्हें लीर, जाके अनंत बढ़ाए चीर।।
अब क्या बताते हैं, बाद में श्रीकृष्ण उसके गुरु थे वह आए तो द्रोपदी ने उनसे पूछा कि हे गुरुदेव! हे भगवन! यह मेरे ऊपर कैसी कृपा हुई? कौन सा मेरा धर्म-कर्म ऐसा था कि मुझे इतना, परमात्मा ने ऐसा कुछ कर दिया। तब दिव्य दृष्टि से श्री कृष्ण ने देखकर बताया कि जब तू अपनी मां के घर थी, कुंवारी थी, तेने (तुने) ऐसे-ऐसे दरिया पर नहाने गई थी। एक साधू दरिया में स्नान कर रहा था। उसकी कोपीन एकै (एक ही) थी कपड़ा - लंगोट। वह बह गया था पानी में। शर्म के मारे खड़ा था और तने (तुने) अपनी साड़ी में से कपड़ा चीर फाड़ कर दिया था। उसके प्रतिफल में परमात्मा ने आपकी इज्ज़त राखी है। अब द्रोपदी की आंखों में पानी भर आया। हे भगवान!
एक लीर के कारणे, एक छोटे से टुकड़े के कारण मेरे बढ़ गए चीर अपार। जै मैं पहले जानती, तो सर्वस देती वार।।
ऐसे महापुरुष के लिए तो समर्पित हो जाती। चरण पकड़ लेती। अपना कल्याण भी करवा लेती। तो बच्चों! अब चूको मत। बाद में तुमने भी ऐसे ही झीखना (चीखना) पड़ेगा। जै (यदि) ईब (अब) ध्यान ना दोगे तो। इसको हल्के में ना (मत) लो। फिर क्या बताते हैं;
सतगुरु मिले तो इच्छा मेटै, पद मिल पदे समाना।
दास कहना चाहता था कि आप क्योंकि गरीब निर्धन तो धन मांगै। नि:संतान संतान की रट लाता है। इस ज्ञान से समझ में आ जाता है कै (क्या) मांगू? कबीर साहेब कहते हैं;
क्या मांगू कुछ थिर ना रहाई।
कोई स्थायी नहीं।
और देखत नैन चला जग जाईं।। एक लख पूत सवा लख नाती। उस रावण के आज दीवा ना बाती।।
एक लाख पुत्र सवा लाख नाती, आज उसके कोई दीपक लगानिया (जलाने वाला) नहीं। तो अब्राहिम सुल्तान के पास तो सब कुछ था। उस नर्क से मालिक ने उस प्यारी आत्मा को निकाला। जिसकी तुम झोली मांगन जाओ हो यह दे दे, धन दे दो, कार दे दो। यह मांगन की ज़रूरत कोनी (नहीं)। जैसे आपको विधि बताई है ऐसे भक्ति करो। निष्काम भाव से करो। सच्चे दिल से करो। एक दिन ऐसा आएगा आप सोच भी नहीं सकते इतना सुख देगा दाता। पर समय दो। कोई भी time (समय), कोई भी वस्तु है थोड़ा समय मांगता है।
सतगुरु मिले तो इच्छा मेटै, पद मिल पदे समाना। चल हंसा उस लोक पठाऊं, जो आदि अमर अस्थाना।।
गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि अर्जुन! तू सर्व भाव से उस परमेश्वर की शरण में जा। उसकी कृपा से ही तू परम शांति को और सनातन परमधाम को प्राप्त होगा। सनातन परमधाम सतलोक अविनाशी स्थान जहां जाने के बाद कोई कष्ट नहीं। कोई जन्म-मृत्यु नहीं। फिर और बताया है;
चार मुक्ति जहां चंपी करती, माया हो रही दासी। दास गरीब अभय पद परसै, मिलै राम अविनाशी।। चार मुक्ति जहां चंपी करती, माया हो रही दासी। दास गरीब अभय पद परसै, मिलै राम अविनाशी।। ओय होय!
की वहां चार मुक्ति वाला सुख सदा रहेगा। यहां तो खत्म हो जाता है, स्वर्ग से बाद आते ही और राम, अविनाशी भगवान मिलेगा जो गीता में बताया गया है।
दास गरीब अभय पद परसै, मिलै राम अविनाशी।।
जैसे गीता अध्याय 2 श्लोक 17 में कहा है कि अविनाशी तो उसको जान जिससे सारा संसार व्याप्त है। उसको मारने में कोई सक्षम नहीं है। गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में भी कहा है;
उत्तमः पुरुषः तु अन्यः परमात्मा इति उदाहृतः। यः लोकत्रयम् आविश्य विभर्ति अव्ययः ईश्वरः।।
अव्यय - अविनाशी परमात्मा है। उत्तम पुरुष तो अन्य, उत्तम यानी पुरुषोत्तम तो क्षर पुरुष, अक्षर पुरुष इन सबसे अन्य है। जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है वही परमात्मा कहा जाता है। वही वास्तव में अविनाशी परमेश्वर है। जैसे -
धर्मदास यह जग बौराना, कोई ना जाने पद निर्वाणा। यही कारण मैं कथा पसारा, सब से कहिये एक राम न्यारा।।
न्यारा अन्य।।
यही ज्ञान जगजीव सुनावो, सब जीवों का भ्रम नसाओ।
भ्रम गए जग वेद पुराना,
उस आदि राम का मर्म ना जाना।
वह आदि राम कौन है? गरीब दास जी कहते हैं;
गरीब अनंत कोटि ब्रह्माण्ड का, एक रति नहीं भार। सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सृजनहार।। गरीब सब पदवी के मूल हैं, सकल सिद्धि है तीर। दास गरीब सत पुरुष भजो, अविगत कला कबीर।। गरीब अजर अमर सत पुरुष हैं, सोहं सुकृत शीर। बिन दम देह दयाल जी, जाका नाम कबीर।।
वह कौन कबीर? Who Kabir?
गरीब हम सुल्तानी नानक तारे, दादू को उपदेश दिया। जाति जुलाहा भेद ना पाया, वो काशी माहे कबीर हुआ।।
बच्चों! यह स्पष्ट कर दिया संत गरीब दास जी ने परमात्मा के प्यारे बच्चे ने कि जो काशी में जुलाहा था। जुलाहे का काम किया करता था वह कबीर है सारी सृष्टि का मालिक। उसी ने हम सब, अब्राहिम सुल्तान अधम, बाबा नानक, संत दादू जी आदि को पार किया और जाति जुलाहा, उसका कोई भेद नहीं समझ सके की यह भगवान है। बच्चों! आज से 600 वर्ष पहले ना कोई मीडिया था, ना कोई speaker (स्पीकर) था, ना कोई साधन था यातायात का और उस समय परमात्मा एक स्थान पर खड़े होकर सत्संग करते थे या जैसे भी और हजारों जगह क्योंकि जनसंख्या थोड़ी थी, तब। वह तो करोड़ों जगह भी हो सकते हैं और अरबों जगह भी प्रगट हो कर सकते हैं।
हज़ारों स्थानों पर 5-10 हज़ार जगह खड़े हो जाते थे, ऐसे दिखते थे जैसे आजकल TV नहीं देखते आप जैसे एक जगह से प्रवक्ता बोलता है और आजकल TV के माध्यम से लाखों जगह उसकी बात वही सुनें। ऐसे ही वहां आध्यात्मिक, आध्यात्मिक जो विद्या है उससे ऐसे चलता था और वहां तो real (वास्तविक) खड़े हुए दिखाई देते थे जैसे यहीं खड़े हैं वो और सबको एक जैसा सत्संग सुना कर शरण में लिया। 64 लाख शिष्य हुए वह ज्ञान से। तो ज्ञान भी बहुत गज़ब का है, एक बार चाहे अनपढ़ हो वो भी सुन लेता है तो एक बार कसक जरूर बनती है। कबीर साहेब कहते हैं;
साथी हमारे चले गए, हम भी चालन हार। कोई कागज़ में बाकी रह रही, तांतें लगी है वार।।
इस तरह की बातें आम आदमी भी समझ जाता है सचमुच भई यह तो कोई time (समय) बच रहा नहीं तो सब गए और हम भी जाएंगे। फिर यह बता दिया करते इसमें यह कर लो और कोई इसका सहारा नहीं है और कोई चारा नहीं है। यह भक्ति करो। इससे आपका जन्म यह भी सुधरेगा और भविष्य भी आपका कल्याण होगा। आपको सतलोक प्राप्त होगा। तो इतनी ही बात भी समझ जाते हैं और परमात्मा के आशीर्वाद से उनको इतना सुख होने लाग गए। उनके मुंह का थूक सुख जाता दुसरों को बताते बताते। जैसे आजकल आपके साथ बनी हुई है।
वह दूसरे मानै नहीं कि कहें पागल हो गए। कैसी बात कर रहे हैं और यह भी कहा करते ऐसा यह भगवान है कबीर जुलाहा धाणक, निर्धन यह महल क्यों नहीं बना लेता? यह, मज़दूरी कर रहा है कपड़ा बुनता है। इस तरह की बातें करके भक्तों को भी भ्रमित कर दिया करते थे। बच्चों! 120 वर्ष रहे वह मालिक उसी स्थिति में। एक झोंपड़ी में, एक कति (बिल्कुल) poor man (गरीब आदमी) की भूमिका करके और 120 साल के बाद पैदल चलकर, मगहर स्थान पर जाकर दो राजाओं के सामने हज़ारों सैनिक और दर्शकों के सामने एक चद्दर नीचे बिछाई एक ऊपर ओढ़ ली। नीचे भक्तों ने थोड़ा दो-दो इंच फूल बिछाए थे, अपनी आदर सत्कार के लिए। दो मिनट के बाद कहा कि एक चद्दर ऊपर ओढ़ ली थी, ऊपर जाकर आकाशवाणी आई कि देखो चद्दर उठाकर There is nothing (वहां कुछ भी नहीं है)। सबकी नज़र ऊपर गई। परमात्मा जा रहे हैं।
सशरीर तेजोमय शरीर चमक-दमक पूरी, चद्दर उठाई तो शरीर के जितने फूल सुगंधित layer (ढ़ेर) लगा था और कह गए थे आधा-आधा बांट लेना। लड़ाई मत करियो (करना)। मूर्खों तुमने समझा क्या आज तक? अब भी हिंदू और मुसलमान दो बने बैठे हो तुम। राग, द्वेष गया नहीं तुम्हारा। ख़ाक हो तुम।
तो हमारे अंदर दोष देखकर मालिक हमको त्याग कर चले गए थे। एक लीला करी थी, हाथी पर बैठकर गंगा जल भर लिया लोग समझे थे शराब पीवै (पीना) और शहर की प्रसिद्ध वैश्या को हाथी पर बैठा लिया। उसके कंधे पर हाथ रख लिया मालिक ने। बता संसार तो कुछ भी कहे पर उनकी अक्ल तो ठिकाने आनी चाहिए थी। ऐसा महापुरुष इतना कुछ ज्ञान जानने वाला क्या ऐसी बकवास करेगा। शराब पियेगा और वेश्यावृत्ति करेगा। लेकिन हमारी अक्ल तो थी ही नहीं। काल ने हड़ रखी थी। हम सारे दूर हो गए और वह करना भी चाहवें (चाहते) थे।
गरीब भड़वा भड़वा सब कहैं, कोई ना जाने खोज। दास गरीब कबीर कर्म, बांटैं सिर का बोझ।।
की इतने शिष्य बना लिए यह सारा वज़न उठा कर नहीं ले जा सकता। इनकी भावना ही नहीं बन रही। तो इससे कहते हैं अपने सिर का बोझ बांट गए, पटक गए उठाकर उनको। लेकिन चार्ज कर गए। आप गुरु विमुख तो हो गए पर गुरु द्रोही नहीं हुए। आपको चार्ज कर गए। आपको मनुष्य जीवन मिलते आ रहे हैं और आप में चाह भी है भगवान की। अब आपको फिर से catch (पकड़) कर लिया। तो बच्चों! आज सब ग्रंथों से प्रमाणित कर दिया आंखों देखे eye witness (गवाह) संत गरीब दास जी, दादू श्री दादू साहेब जी संत आदि से स्पष्ट कर दिया Kabir is God (कबीर भगवान है)। Who (कौन)? वह काशी वाला जुलाहा कबीर। तो बच्चों! वह उस दिन भी भगवान था पर हमारी अक्ल काम नहीं करती। यह करनी चाहिए अब आपकी आंखें खुल जानी चाहिए। आज भी भगवान हैं। He will remain God. He is forever God, everlasting God. तो बच्चों! इस बात का सख्त ध्यान रखो। यदि आपने यहां से निकलना है। मर्यादा ना टूटे और मर्यादा यह पता नहीं कितने प्रकार से टूट जाती है। जैसे हमने किसी को सेवा दे दी, भई यह सेवा कर लो। शुक्रिया दाता का। मजदूरी मिली खुश हुए। फिर कह दिया यह त्याग दे। छोड़ दे। दूसरे को दे दी। बता फिर दुःख क्यों माना? फिर दुःख मानते हैं मैं यह समझा इतना ज्ञान होकर भी तुम ऐसी बातें करते हो। तो शुक्र मनाओ और सौ बार हाथ जोड़कर।
भई बहुत अच्छा गुरुदेव का आदेश है यह भाई सेवा कर लेगा। मुझे भी और सेवा दे दियो कोई। मेरी नियत है (है) सेवा करने की और ना मिले तो अपना सब्र करे भक्ति करे। सत्संग में जाओ सौ सेवा हैं, आश्रम में करने वाले को। बहुत सी सेवा होती हैं। एक बात के बंध कर नहीं बैठना चाहिए। यह प्रार्थनाएं आती हैं मेरे को, कोऑर्डिनेटर की सेवा फिर दियो। यह भी कमजोरी है।
जैसे एक डॉक्टर के पास बूढ़ा आदमी गया कमज़ोर सा, वृद्धावस्था में अस्थिपंजर बन ही जा शरीर का। जाकर बताया डॉक्टर जी मैं खड़ा होता हूं जब चक्कर आते हैं। क्या कारण है? डाॅक्टर बोला कमज़ोरी है। Weakness of body (शारीरिक कमज़ोरी)। बोला पिंडी दुखे, पिंडी। पैरों की। डॉक्टर बोला कमज़ोरी है। फिर वह वृद्ध बोला जी मेरे सारे शरीर में भड़कवा रहती है यानी सारे शरीर में दर्द सा बना रहता है। चभक-चभक नाड़ी करती है। डॉक्टर बोला कमज़ोरी है। वह वृद्ध गुस्से होकर बोला डॉक्टर ने (को) तू डॉक्टर है घनचक्कर? एकै बात जानै है कि कमज़ोरी है, कमज़ोरी है और भी बतावैगा। डॉक्टर बोला यह भी कमजोरी है। This is all due to weakness. यह क्रोध भी कमज़ोर आदमी ने घना (ज्यादा) आया करै। यह भी कमज़ोरी है। तो बच्चों! यह सारी ही कमज़ोरी है जो मर्यादा से न्यारी (अलग) हटकर करते हो। चाहे कुछ भी कर लियो। मर्यादा को हल्के में ना लो। जैसे हमने इतने सारे नियम बना दिए। भक्ति करनी है तो इनका पालन करना पड़ेगा। नहीं तो फिर गधे बनकर कुम्हार के नियम में चलना पड़ेगा। एक कदम भी अपनी मर्ज़ी से नहीं जा सकते बैल बनकर नाथ डल जाएगी। खच्चर बनकर बुग्गी में जोड़े जाओगे रेहड़ी में। फिर चलेगी क्या आपकी मर्ज़ी?
असंख जन्म तने मरता हो गए, जीवित क्यों ना मरे रे। द्वादश दर मध्य महल मठ बौरे, बहुर ना देह धरै रे।।
तो बच्चों! ईब (अब) जीवित मर लो। इन बातों को छाती में धर लो। हृदय में बिठा लो कती (बिल्कुल) मस्तिष्क में। आप विश्वास रखना या गलती फिर ना कर देना। इतनी आपकी अक्ल हो तो उसी टाइम ना ले जाते दाता साथ आए थे। बच्चों! यह अमर कथा, यह अमर वाणी आपको कहां से हो रही है यह आकाशवाणी। सतलोक से मान लो। यह सतलोक से आपके ऊपर ऐसी कलम तोड़ दी दाता ने। अपने बच्चों को सीने से लगा लिया यह सतकर (सच्ची) मान लेना और मालिक के चरणों में पड़े रहना।
द्वार धनी के पड़ा रहै, धक्के धनी के खावै। सौ काल झकझोर ही, द्वार छोड़ नहीं जाये।।
यह गांठ बांध लो, पल्लै। नोट कर लो।
कबीर द्वार धनी के पड़ा रहै, धक्के धनी के खावै। सौं काल झकझोर हीं, पर द्वार छोड़ नहीं जाये।।
गरीब यह संसार समझदा नाहीं, कहंदा शाम दोपहरे नूं। गरीब दास यह वक्त जात है, रोवोगे इस पहरे नूं।।
जो भक्ति नहीं करते वह तो रोवैंगे और भक्ति करके गलती करेंगे वह भी रोवेंगे इसलिए समझा है तो सिर धर पांव। बहुर नहीं रे ऐसा दांव।।
परमात्मा आपको मोक्ष दे। सदा सुखी रखे।।
सत साहेब।।