विशेष संदेश भाग 12: अगर है शौंक अल्लाह से मिलने का तो हरदम लौ लगाता जा


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सत साहेब।।

सतगुरु देव की जय

बंदी छोड़ कबीर साहेब जी की जय।

बंदी छोड़ गरीबदास जी महाराज जी की जय।

स्वामी रामदेवानंद जी गुरु महाराज जी की जय हो।

बंदी छोड़ सतगुरू रामपाल जी महाराज जी की जय।

सर्व संतों की जय।

सर्व भक्तों की जय।

धर्मी पुरुषों की जय।

श्री काशी धाम की जय।

श्री छुड़ानी धाम की जय।

श्री करौंथा धाम की जय।

श्री बरवाला धाम की जय।।

सत साहेब।

कबीर दंडवतम गोविंद गुरु, बन्दूं अविजन सोय। पहले भए प्रणाम तिन, जिन नमों जो आगे होए।।

जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से रहियो, सत्यलोक के डेरे की।।

जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से रहियो, अमरपुरी के डेरे की।।

निर्विकार निर्भय तू हीं, और सकल भयमान। ऐजी साधो और सकल भयमान। सब पर तेरी साहेबी, सब पर तेरी साहेबी। तुझ पर साहब ना। निर्विकार निर्भय।।

निर्विकार निर्भय तू हीं, और सकल भयमान। ऐजी साधो और सकल भयमान। सब पर तेरी साहेबी, सब पर तेरी साहेबी। तुझ पर साहब ना। निर्विकार निर्भय।।

परमपिता परमात्मा कबीर जी की पुण्य आत्माओं! परमेश्वर कबीर जी की असीम रज़ा से, मेरे गुरुदेव जी के आशीर्वाद से आज बच्चों! हम अपने घर की खबर ठीक से समझ पाए हैं। उस सृष्टि के रचने वाले ने, उस कबीर परमेश्वर ने स्वयं धरती पर प्रकट होकर अपना भेद बताया। काल ने कती (बिल्कुल) नामोनिशान मिटा रखा था इस परमपिता के महिमा का। कहीं ज़िक्र भी नहीं छोड़ा था। 600 साल से पहले कोई नहीं जानता था, सतलोक कोई चीज़ है? उसके बाद परमात्मा आए, वो ज्ञान दिया, बहुत कुछ ज्ञान दिया। लेकिन इस तरह निर्णायक ज्ञान भी छुपा कर रख्या (रखा)। कबीर साहेब कहते हैं;

तैंतीस अरब ज्ञान हम भाख्या।

तैंतीस अरब और

मूल ज्ञान हमने गुप्त ही राख्या।।

आय हाय।।

धर्मदास मेरी लाख दुहाई, यह मूल ज्ञान कहीं बाहर न जाईं।।

यह सार ज्ञान बाहर जो पड़ही,

यह सार ज्ञान है, सार। सबका निष्कर्ष निकाल दिया।

सार ज्ञान बाहर जो पड़ही, बिचली पीढ़ी हंस नहीं तरही।। मूल ज्ञान तब तक छिपाई, जब तक यह द्वादश पंथ ना मिट जाई।।

काल ने कहा था कि -

द्वादश पंथ करूं मैं साजा, नाम तुम्हारा ले करूं आवाजा।।

कबीर नाम से 12 पंथ चलाऊंगा, नकली।

द्वादश पंथ नाम जो लेहिं , मेरे मुख में आन समोही। और अनेक पंथ चलाऊं, या विधि जीवों को भरमाऊं।। तीर्थ व्रत जप तप मन लाई, देवी देव और देवल पूजाई।। जाओ जोगजीत संसारा।

इसको ज्ञानी भी कहते हैं क्योंकि परमात्मा कभी अपने पुत्र ज्ञानी के रूप में, कभी जोगजीत के रूप में यह एक ही हैं जोगजीत और सहज दास। सहज दास के रूप में। तो उसने जो भी रूप देखा था काल वही बोले था। उसको धोखा-सा लग रहा था यह ज्ञानी है कि सहज दास है उनमें से? और थे वह खुद मालिक। तो कहते हैं-

जाओ जोगजीत संसारा, जीव ना माने कहा तुम्हारा। जीव तुम्हारा कहा ना माने, हमरी ओड़ हो बाद बखाने।।

यानी इतना गलत ज्ञान भर दूंगा उनके अंदर, कलयुग में जब तुम्हारा messenger (संदेशवाहक) जाएगा, मैसेंजर। आपका भेजा हुआ जो भक्त जाएगा, संत जायेगा प्रचारक, उससे पहले इतने खराब कर दूंगा इनको, तुम्हारे उसके साथ विवाद किया करेंगे। हमारा पक्ष लिया करेंगे गलत ज्ञान का। तो परमात्मा ने कहा था ठीक है, आप जानो और मैं जानूं। आप अपना काम करो। हम अपना करेंगे। उसी समय कहा था कि -

पांच हज़ार पांच सौ कलयुग बीत जाए, महापुरुष फरमान जग तारन को आए।।

घर घर बोध विचार हो, दुर्मति दूर बहाए। कलयुग में सब एक हों, बरतें सहज सुभाए।। एक अनेक हो गए, बहुर अनेक हों एक। हंस चलै सतलोक को, इस सच्चे नाम की टेक।। 

सच्ची भक्ति के सहारे ऊपर जाएंगे। तो बच्चों! परमात्मा कबीर जी ने स्पष्ट कर दिया है, संत गरीब दास जी ने भी मालिक की वाणी बड़ा ज्ञान और उनकी महिमा कलम तोड़ लिखी है के जो साधना यह 33 करोड़ देवता,

बंधे सभी निरंजन डोरी।

इनका मोक्ष नहीं हुआ। यह ब्रह्मा, विष्णु, महेश और यह सब देवता, ऋषि यह सब जन्म-मृत्यु के अंदर आते हैं। इनको काल से छुटकारा नहीं मिल सकता।

जट कुंडल ऊपर आसन है, सतगुरु की सैल सुनो भाई। जहां ध्रुव प्रहलाद नहींं पहुंचे, सुख देव को मार्ग ना पाई।। नारद मुनि मुस्काय रहे, दत्त गोरख से को सुच्चा है। बड़ी सैल अधम सुल्तान करी, सतगुरु तकिया टुक ऊंचा है।। धर्मराय जाका ध्यान धरै, अध्या अधिकार बतावत है। दो लिखवा चित्र गुप्त जिसके, सतगुरु तकिया नहीं पावत है।।

तकिया माने (मतलब) परमात्मा का निज स्थान। वह तख्त - सिंहासन। कहते हैं जट कुंडल ऊपर इस शिवजी के लोक को यह बहुत उत्तम लोक मानते हैं। जो जटा कुंडली वह सबसे अच्छा स्थान मानते हैं क्योंकि वहां गंगा आई, वहां से गंगा फिर आगे बहकर नीचे आई। यह सतलोक से आई थी। तो परमात्मा कहते हैं जट कुंडल से भी उत्तम स्थान, सबसे ऊपर कबीर साहेब का आसन यानी स्थान डेरा है।

जट कुंडल ऊपर आसन है, सतगुरु की सैल सुनो भाई। जहां ध्रुव प्रहलाद नहीं पहुंचे, सुख देव को मार्ग ना पाई।। कोई है रे परले पार का, जो भेद कहे झंकार का। कोई है रे परले पार का, जो भेद कहे झनकार का।।

ऐसा कोई है मुझे बता दो परले पार, सतलोक का कोई हो जिसको ज्ञान और बता दो वहां का जो अनहद, धुन जो वहां चलती है। जैसे यह राधा स्वामी वाले हैं, यह कहते हैं हम शरीर में न अनहद धुन सुनते हैं। धुन सुनते हैं, अंदर धुन सुनते हैं। परमात्मा कबीर जी ने स्पष्ट कर दिया है एक शब्द है "कर नैनो दीदार महल में प्यारा है" उसकी 32 कलि हैं। सारी detail (विस्तार से) बता कर last (अंत) मे यह बताया है कि -

आदि माया कीन्हीं चतुराई, और झूठी बाजी पिंड दिखाई। ताका प्रतिबिंब डारया है। इस अंड और पिंड के पार, सो देश हमारा है।।

अब जो इस शरीर के अंदर धुन जो सुनते हैं हम, वह सारी काल की धुन हैं और इस देवी ने, दुर्गा ने, आदि माया ने कीन्हीं चतुराई सतलोक की नकल बना रखी है सभी यह झूठी यानी वहां पर ऐसे ही स्त्री-पुरुष, ऐसे ही स्वर्ग। वहां तो सारा ही स्वर्ग है। इन्होंने अपनी यहां से भिन्न बनाकर और उसकी नकल कर रखी है और इसमें नकली सतलोक, अलख लोक, अगम लोक और अकह लोक, अनामी लोक बना रखे हैं। जो भूल भटक कर ऊपर जाएं तो उन्हें यहां बिठा दें। जैसे यह आप में से सतनाम, सारनाम का जाप करके भी रह जाओगे तो ऐसी दुर्गति करेंगे यह नकली सतलोक में बैठा देंगे। लो तुम आ गए सतलोक में। वहां आपकी पूंजी जब समाप्त हो जाएगी फिर पटक देंगे उठा कर। कुत्ते, गधे, सुअर बना देंगे। तो यहां आपने बहुत ध्यान से इस प्रत्येक point (बिंदु) को, प्रत्येक जो हमारे साथ धोखा होता है उसको भी साथ में याद रखना होगा। तो गरीब दास जी कहते हैं;

कोई है रे परले पार का, जो भेद कहे झंकार का।। वार ही गोरख, वार ही दत्त, वार ही ध्रुव प्रह्लाद अर्थ।

वार, इधर side (तरफ) में। काल के लोक में ही है, यह सारे। कौन-कौन? सबके नाम बताए हैं।

वार ही गोरख, वार ही दत्त (दत्तात्रेय), वार ही ध्रुव प्रह्लाद अर्थ। वार ही सुख देव वार ही ब्यास, वार ही पाराशर प्रकाश।। वार ही दुर्वासा दरवेश, वार ही नारद शारद शेष। वार ही भरथरी, गोपीचंद, वार ही सनक सनंदन बंद।। वार ही ब्रह्मा वार ही इंद्र, वार ही विष्णु सहंस कला गोविंद।।

विष्णु और सहंस कला गोविंद।

विष्णु भी और यह काल भी।

वार ही शिव शंकर जो शिंभ, वार ही धर्मराय आरंभ। वार ही धर्मराय धरधीर, परम धाम पहुंचे कबीर।।

ऋज्ञ यजु साम अथर्ववेद, परमधाम नहीं लह्या भेद। अलल पंख अगाध भेव, जैसे कुंजी सुरती सेव।। वार पार थेहा ना थाह, गरीबदास निर्गुण निगाह।।

अब बच्चों!

जट कुंडल ऊपर आसन है, सतगुरु की सैल सुनो भाई। जहां ध्रुव प्रहलाद नहीं पहुंचे, सुख देव को मार्ग ना पाईं।।

उसका सबका प्रमाण देते हैं, सारे काल के जाल में है। केवल एक मालिक गया है या उसकी लाइन पर जो चलेगा उसको लेकर जाएंगे। तो बच्चों! परमात्मा की असीम रज़ा है आपके ऊपर। जो ऐसी गजब अजब वाणी ईब (अब) समझ में आवेगी (आएगी) आपको यह। पहले आपको complete (सम्पूर्ण) ज्ञान समझाया। आपको विश्वास जंचा (करवा) दिया Kabir is God (कबीर भगवान है) और सारे प्रमाण दे दिए। अब दास जो बोलेगा सारी सत हृदय के अंदर जाएगी आपके।

गरीब, कस्तूरी नाम कबीर है, बिन छेड़े महकंत। आदि अंत की कहत हूं, पटतर कोई ना संत।।

गरीब दास जी कहते हैं कि नाम, कबीर साहेब का नाम, कबीर साहेब की शक्ति, कबीर साहेब की महिमा कस्तूरी की तरह है। अपने आप इसकी ताकत झलकती है और आदि अंत start (प्रारंभ) से लेकर आखिर तक बता देता हूं इस परमात्मा कबीर जी के बराबर कोई संत भी नहीं, कोई भगवान भी नहीं।

गरीब, नैनों मध्य निरखत रहे, अविगत नाम कबीर। बेड़ा पार लगाए हूं, सुरती सरोवर तीर।

यह "सरबंगी साक्षी का अंग” है। इसमें से वाणी सुना रहा हूं।

गरीब, संहस अठासी ना गए, चौबीसों पर चौख। तैतीसों पर तलब है, कोई बकरा कोई बोक।

हे बंदी छोड़ के बेटे गरीब दास जी! तेरी जय-जयकार हो। धन्य हैं तेरे मात-पिता जिससे जन्म हुआ। (ओये होय) जब लग (तक) सूरज -चांद रहेगा, बंदी छोड़ गरीब दास तेरा नाम रहेगा। बच्चों! कमाल कर दिया मालिक के बेटे ने।

गरीब, सहंस अठासी ना गए, चौबीसों पर चौख। तैतीसों पर तलब है, कोई बकरा कोई बोक ।।

यह तैंतीस करोड़, नौ और चौबीस अवतार, सहंस अठासी ऋषि और यह चौबीस अवतार, तैंतीस करोड़ देवता इनके ऊपर, सबके ऊपर काल का तलबाना है, सम्मन है तैयार इसके और यह कोई पार नहीं हुआ, ना (नहीं) होवे (होगा)। कोई बकरा बनेगा, कोई बोक बनेगा। बोक, जैसे एक तो बैल होता है (खागड़) यानी कहने का भाव यह है, यह 84 लाख योनियों में जाएंगे।

गरीब, दसवां भी यूं चलेगा, ज्यों हिमालय का नीर। बहुतक गोते खाएंगे, सतगुरु कहें कबीर।।

हे बंदी छोड़! यह नौ अवतार आ लिए और अब दसवां भी आएगा। दसवां भी ऐसे ही चला जाएगा जैसे यह चले गए कर्म खराब करके। बहुतक गोते खावेंगे। बहुत से जाकर ऐसे काल के जाल में फंस जाएंगे, सतगुरु कहें कबीर।

गरीब, ना सतगुरु जननी जन्या, जाके माई ना बाप। पिंड ब्रह्मांड से रहित है, ना वहां तीनों ताप।। गरीब, शब्द संदेशा कहत हूं, भिन्न- भिन्न भेद विचार। इसको माया जानियों, नौ दसवां अवतार।।

बच्चों! क्या कहते हैं-

गरीब, शब्द संदेश कहत हूं, भिन्न भिन्न भेद विचार। इनकुं माया जानियों, नौ दसवां अवतार।।

कहते हैं यह नौ-दस अवतार आए हैं, जिनको तुम भगवान मानते हो यह भी काल का जाल हैं। यह भी माया थी।

गरीब, कृष्ण कन्हैंया राम हैं, बली बावन अवतार। हिरण्याकुश नरसिंह हैं, यह सब माया विस्तार।। गरीब, ओह तो अचल अनूप हैं, नूरी देह शरीर। कर्ता हो हो अवतरे, यह माया के रघुवीर।।

यह कर्ता बन कर आवे, अंत में बिरानमाटी (दुर्गति) करवा कर मरें। श्री कृष्ण के पैर में तीर लाग कर मरा, विषैला। श्री रामचंद्र जी ने सरयू नदी में जल समाधि ली, डूब कर मरा। (ओए होए होए…)

गरीब, ओह तो अचल अनूप है,

अविनाशी है, वह तो।

नूरी देह शरीर। यह कर्ता हो हो अवतरे,

जन्म लें।

यह माया के रघुवीर।।

यह माया के भगवान बने घूमें काल के।

गरीब, धर्ता को कर्ता कहे, बड़ा अंदेशा मोह। पारस पद भेंटा नहीं, जिसको कहिए लोह।।

कहते हैं जो जन्म धारण करके आए हैं तुम्हारे राम, कृष्ण जितने भी विष्णु, ब्रह्मा, शिव तुम इनको कर्ता कहते हो, भगवान कहते हो मुझे बड़ा दुख है और एक बात बताओ जो तुम नाम जाप करते हो उन्होंने जाप किया, जो यहां आये थे भगवान बनकर। वह नाम मोक्ष का है ही नहीं। किसी भी ऋषि के पास यह सच्चा नाम, सतनाम, सारनाम नहीं है। तो कहते हैं यह मुक्ति कैसे होगी? उदाहरण दिया जैसे लोहे से पारस पत्थर लगा नहीं। उस लोहे को कैसे सोना कह रहे हो तुम? वह सोना हो ही नहीं सकता। लोहा का लोहा है।

गरीब, धर्ता को कर्ता कहै, बड़ा अन्देशा मोह। पारस पद भेंटा नहीं, जिसको कहिए लोह।।

पारस पद अब वह पद्धति, वह भक्ति जैसे पारस जैसी जीव के कर्म बदल दे, संस्कार बदल दे मोक्ष दे वह भक्ति मिली नहीं? तो उसको कैसे माना सोना हो गया यानी मोक्ष हो जाएगा।

गरीब, लोक अलोकम द्वीप सब, पूर्ण पद प्रकाश। धोल धरनी सब जाएंगे, थिर रहसी आकाश‌।।

यह महा प्रलय की बात बताई।

गरीब, आकाश नाश में है नहीं, और सभैं का नाश‌। शब्द अतीत सुभान है, तिथि बार ना बारह मास।

अब क्या बताते हैं, बंदी छोड़ गरीब दास जी महाराज कि तू लाल था सतलोक में।

मेरे हंसा भाई, हंस रूप था जब तू आया। अपना स्वरूप भूल में भूला, यह तातें जीव कहाया।। मेरे हंसा भाई, हंस रूप था जब तू आया।।

अब क्या बताते हैं, सतलोक से आकर तुम कितने गिर गए। कहां पहुंच गए। हे बंदी छोड़!

गरीब, लाल से हीरा भया, हीरे से भया मोत। मोती से शीशा भया, जो बिसरा जात और गोत।

की वहां तू लाल था। हंस था। भक्ति से परिपूर्ण, शक्ति से युक्त थे तुम और यहां आकर मोती हो गए। यानी ऐसी छोटी कीमत में आ गए। देवता बनकर बैठ गए, अपने कर्म फोड़ लिए। मोती से शीशा भया यानी कती (बिल्कुल) कमज़ोर हो गए तुम। जीव बनकर बैठ गए। तुम बिसरे जात और गोत का अर्थ है, तुम परमात्मा पूर्ण परमात्मा को भूल चुके हो और यहां 24 घंटे कोई जीव सुखी नहीं।

गरीब, घट में शोक सिलसिला, सूतक बड़ा अंधेर। यह दम गिनती के दिए, फेर सके तो फेर।।

परमात्मा कहते हैं तुम भक्ति करोगे कैसे? इतनी tension (चिंता) कर रखी है तुम्हारे दिमाग में। फिर भी यह कहा है भक्ति करो, मैं नाम देता हूं यह भक्ति करो। धीरे-धीरे तुम्हारे सारे यह कष्ट भी मिटेंगे और इनके अंदर शुरुआत होती है, दुख से ही शुरू करते हैं हम। इन दुख में भक्ति को ना (मत) छोड़ो, लगे रहो और यह गिनती के सासें (स्वांस) हैं इन्हें संभाल सके तो संभाल ले। भक्ति करके इनकी कीमत बना।

गरीब, घट में शोक सिलसिला, सूतक बड़ा अंधेर।

बड़ा, कैसे शोक कोई ना कोई कारण की टेंशन हो गई या फिर कोई इच्छा हो गई यह कर लूं, वह कर लूं, वह नहीं हुआ ओह तेरे की। ऐसा हो गया, वैसा हो गया। कहते हैं -

कल्पै कारण कौन है, कर सेवा निहकाम। मन इच्छा फल देत है, जब पड़े धनी ते काम।।

सतभक्ति पर लाग के (कर) फिर कोई कल्पना इधर-उधर नहीं, मालिक आगे से आगे आपकी मदद करेगा।

गरीब, पतिव्रता ज़मीं पर, ज्यों ज्यों धर है पांव। समर्थ झाड़ू देत हैं, ना कांटा लग जाए।।

ऐसी स्थिति में आ जाओगे आप, देख लेना।

गरीब, जित सेती दम उचरे, वही ठोंर तू खोज। हंस लोक कूं चालिए, बन मत भरमे रोज।।

की इस काल के स्वर्ग आदि की इच्छा मत रख। जो भक्ति हम बता रहे हैं उसको सांस के द्वारा कर। इस काल के बन में मत भटके। किते (कहीं) जाने की आवश्यकता नहीं घर में रहो भक्ति करो।

गरीब, बांके पर्दे हम गए, सतगुरु के उपदेश। शिव ब्रह्मा विष्णु रटत हैं, पार ना पावैं शेष।। गरीब, ज्यों गुठली में आम है, बटक बीज बड़ जाम। सतगुरु के उपदेश तैं, नीर क्षीर कूं छान।। गरीब, शब्द सिंधु में लोक हैं, ऐसा गहर गंभीर। राम कहो साहेब कहो, सोहं सत्य कबीर।। गरीब, ब्रह्म कहो अविगत कहो हो, कर्ता कहो करीम। कादर बेपरवाह है, रमता राम रहीम।। गरीब, जय गोपाल दंडवत कर, पैरों पड़ प्रणाम। दुआ करो दिल पाक से, असला असली सलाम।

की आप दंडवत प्रणाम करो लेकिन सच्चे दिल से करो, दुआ। मन में दोष ना रखो। जब उस सलाम का, उस प्रणाम का आपको फल मिलेगा। वैसे बार-बार दंडवत करते हो मन में दोष रखते हो व्यर्थ की exercise (व्यायाम) है वह।

गरीब, कुल का खाविंद एक है, दूजा नहीं गवार। दोए कहै सो दोजखी, पकड़ा जाए दरबार।।

क्योंकि कुल का मालिक एक है, कोई दूसरा नहीं है गवार। हे मूर्ख! अन्य कोई नहीं।

कुल का खाविंद एक है, दूजा नहीं गवार। दोए कहै सो दोजखी, पकड़ा जाए दरबार।।

की कुल का मालिक केवल एक कबीर है। इससे हटकर कोई दूर और बताता है वह परमात्मा के दरबार में फिर उसको दंड मिलेगा।

गरीब, सतवादी के चरणों की, सिर पर डारूं धूर। चौरासी निश्चय मिटैं, पहुंचे तख्त हजूर।।

सतवादी, जो केवल सच्चा ज्ञान दे। अब बच्चों! वर्तमान में इस दास के अतिरिक्त विश्व मे कोई सत ज्ञान देने वाला नहीं है।

गरीब, सतवादी के चरणों की, मैं सिर पर डारूं धूर। चौरासी निश्चय मिटैं, पहुंचे तख्त हजूर।।

यानी ऐसे संत का संग करो। उसके बताए अनुसार सेवा करो। अवश्य आप 84 लाख का चक्कर जन्म मरण मृत्यु, जन्म मरण का चक्कर समाप्त हो जाएगा।

गरीब, गुरु द्रोही की पैड़ पर, जै पग आवै बीर। चौरासी निश्चय पड़ैं, सतगुरु कहें कबीर।।‌ गरीब, सतवादी किसको कहो, कौ गुरु द्रोही जान। भिन्न-भिन्न कहै दीजिये, नीर अक्षीर कूं छान।। गरीब, भस्मागिरी भस्म हुआ, गुरु द्रोही को मेट। साहेब को भेग सिंघारिया, कुंभी कुंबन्द लेट।। गरीब, जोगजीत करुणामय, मुनींद्र कहो कबीर। बारह पंथ चलाईया, डींगे बंधावै धीर।।

अब गरीब दास जी कह रहे हैं कि भस्मागिरी जैसी जो हरकत करता है वह दुष्ट आत्मा है। ऐसा है वह गुरु द्रोही, ऐसे होते हैं। अपने गुरु को, उसी को ईष्ट मानें। वही उनका गुरु और उसी की पत्नी के ऊपर ऐसी गंदी नियत रखी। ऐसे ही जो गुरु के साथ अन्य बकवास करते हैं जैसे दो तीन दुष्ट लोगों ने अपनी बकवाद के कारण संगत को लूटना चाहा। मेरे, सारे मेरे खिलाफ काम किये इस संजय दिल्ली वाले ने और पवन जयपुर वाले ने। अगर यह सच्चे थे तो ईब (अब) क्यों नहीं आते माफी मांगने? गलती हो गई थी। तो बच्चों! ऐसे दुष्ट लोग हैं जो काल के भेजे हुए हैं और वह भोली आत्माएं इन दुष्टों के पीछे लग गईं थीं। अब क्या कहते हैं भस्मागिरी जैसे जो कर्म करते हैं वह गुरु द्रोही हैं।

गरीब, जोगजीत करुणामय मुनींद्र कहो कबीर। बारह पंथ चलाइयां, डींगे बंधावै धीर।।

बच्चों! कबीर जी के नाम से बारह पंथ चला दिए नकली काल ने। लेकिन वह आत्मा तो उसी की है। वह तो गई धोखे में। कबीर साहेब के धोखे में वहां पहुंच गई। वहां भी उनके जो कोई दिक्कत आती है, उनके पिछले संस्कार से उनको राहत भी कबीर भगवान देता है नहीं तो काल चाहता है यह सब नास्तिक हो जाएं। कोई नाम ले ना किसी का।

गरीब, सुल्तानी के सिर लगा, बलख बुखारा दिया त्याग। जिंदे के चोले मिले, दीन्हां सत वैराग।।

अब्राहिम सुल्तान को परमात्मा ने ऐसा ज्ञान दिया, उसके ऐसी चोट लागी बलख बुखारा राज त्याग दिया और जिंदा महात्मा के रूप में उनको मिले। फिर उनको सही ज्ञान दिया, जब वह घर छोड़कर जा चुके थे। अब जैसे वेद बताते हैं न कि परमात्मा ऊपर के लोक में रहता है, सतलोक में। सबसे ऊपर के लोक में विराजमान है। वहां से गति करके सशरीर नीचे आता है और अच्छी आत्माओं को मिलता है, जो भक्ति मार्ग पर लगे हुए हैं। उनके कष्ट दूर करता है। अपने मुख कमल से वाणी बोलकर सच्चा ज्ञान बताता है। दोहे, चौपाइयों के माध्यम से यानी काव्यना कविताओं में बोलता है, कवि की तरह। जिस कारण से एक प्रसिद्ध कवि भी होता है। तो बच्चों! यहां बता रहे हैं उसी गुण के आधार पर परमात्मा सबको मिलते हैं। जो भक्ति पर बेशक भ्रमित लगे हुए हैं। उनको राह दिखाना चाहते हैं। जैसे मोहम्मद साहब को भी मिले।

हम मोहम्मद को वहां ले गयो, सतलोक। हम मोहम्मद को सतलोक ले गए। इच्छा रुपी वहां नहीं रह्यो। उल्ट मोहम्मद महल पठाया, गुझ बिरज एक कलमा लाया। रोज़ा बंग नमाज़ दई रे, बिस्मिल की नहीं बात कही रे।।‌ गरीब, मोहम्मद के मुर्शिद सही, केवल कलमा दीन। मुसलमान माने नहीं, मोहम्मद के यकीन।।

यह हैं वो गुझ की बातां। गहरी बातें। कती निष्कर्ष। पहले मोहम्मद जी गये ऊपर। काल मिला उसको, पर्दे के पीछे से आवाज़ लगाई। वह किसी के समक्ष आता नहीं। उसने प्रतिज्ञा कर रखी है। मैं कभी किसी के सामने अपने वास्तविक रूप में नहीं आऊंगा। तो उसने तो क्या बताया, रोजा करना और बंग आवाज़ लगाना।

रोजा, बंग नमाज़ देई रे। उसने भी बिस्मिल की नहीं बात कही रे।।

फिर कबीर साहेब मिले, उसको मोहम्मद को। मोहम्मद साहेब को कबीर साहेब मिले जिंदा रूप में आकर पृथ्वी पर, उनको समझाया कि यह गलत है। इस नमाज से कुछ नहीं होना। केवल कलमा यानी मंत्र दिया, उसकी भक्ति कर। जिसके बाद हज़रत मोहम्मद अल्लाहू कबीर, अल्लाहू कबीर, अल्लाहू कबीर करने लग गया और सब भक्ति त्याग दी थी उसने। तो यहां गरीब दास जी कहते हैं;

गरीब, मोहम्मद के मुर्शीद सही, केवल कलमा दीन।

केवल मंत्र दिया फिर उसको।

मुसलमान माने नहीं, मोहम्मद के यकीन।।

अब उसके बाद मुसलमानों ने तो मोहम्मद जी की बात भी नहीं मानी। उसने खूब कोशिश की। यह और सब छोड़ दो, यह मंत्र जाप करो अल्लाहू अकबर। वह भी ले लिया और वह भी करते रहे मांस भी, बकरी भी सारे काटन-पीटन लाग (लग) गए। जैसे स्वामी रामानंद जी थे जब परमात्मा उनको मिले, फिर सतलोक लेकर गए, फिर वापस छोड़ा उसके बाद उन्होंने सारी पूजा त्याग दी। केवल जो दाता ने बताई वा करी। उसके सारे शिष्य, ऋषि उन्होंने कती (बिल्कुल) नहीं मानी। सब उससे विमुख हो गए। तो बच्चों! यहां वही बात बता रहे हैं गरीब दास जी;

गरीब, मोहम्मद को मुर्शीद सही मुर्शिद पीर, गुरु और केवल कलमा दीन। मुसलमान मानै नहीं, मोहम्मद के यकीन।।

गरीब, राज तबक चौदह सही, रापति कोटि असंख। जा हृदय नहीं नाम है, राव नहीं वह रंक।।

की जिसके चाहे चौदह लोक का राज हो जिसके पास और सारे ब्रह्मांडों का मालिक बना बैठा है। जिसके पास, जिसके हृदय में यह सच्चा नाम नहीं है वह राव नहीं, राजा नहीं वह तो रंक है। निर्धन आदमी है।

कबीर, सब जग निर्धना, धनवंता नहीं कोय। धनवान उसको जानियो, जिसपे राम नाम धन होए।। गरीब, तीन लोक का राज, जो कोई जीव को देय। लाख बधाई क्या करें, जै नहीं नाम से नेह।।

दो कौड़ी का जीव नहीं वह जिसके पास सच्ची भक्ति नहीं। तो जो दास आपको बताना चाहता है कि इस गंदे लोक के अंदर यह व्यवस्था अच्छी नहीं है। जहां जन्म है और मृत्यु है वह कैसा लोक है। यह गंदा लोक है। अब जैसे दास आपको बता रहा है बार-बार की यह जो रज़ा मालिक ने कर रखी है आपके ऊपर यह कलम तोड़ रखी है। भूतो ना भविष्यति, हुआ ना होगा। क्यों कर रखा है उसने? वह आपका बाप है, वह आपकी मां है। वह आपका असली भाई और बंधु, दोस्त है। उसने जो टेंशन (चिंता) आपकी है किसी को नहीं हो सकती। मान लीजिए माता-पिता, भाई-बहन को दुख तो होता ही है, टेंशन भी होती है। जैसे किसी घर के सदस्य को परेशानी होती है, तो वह कर क्या सकते हैं? रो ही सकते हैं बैठकर। टक्कर मार सकते हैं। लेकिन उस समर्थ की शरण में आने के बाद वह रक्षा करेगा। तो जैसे दास बता रहा था कि सारनाम लेकर एक ऐसी बुरी मौत मरा accident (दुर्घटना) हो गया, गाड़ी ले रहा था।

अब मैं देखता हूं जैसे यह बकवाद करी है 11-7 को। यह सारनाम प्राप्त ने करी है। यह बकवास उसने की है। अब वह कुत्ते वाली मौत नहीं मरेगा तो और क्या करेंगे यह बताओ? सारनाम ले लिया कोई permanent (परमानेंट) टिकट हो गई? अब उसके कुछ भी ना (नहीं) होगा, बकवास बेशक करता रहो। हिमाचल प्रदेश का मुझे पता चला बहुत विरोध करते थे। इसी management (प्रबंधक) के बारे में बकवास करते थे। उनके फोटो तक मुझे प्राप्त हुए। एक महीने के बाद उनको बुलाया गया कुरुक्षेत्र आश्रम में। भाई समझाओ। रोहतक में बुलाया। अपनी-अपनी बकवास करके चले गए। जो ठीक थे उनको भी गलत बताते रहे। वापस गए रास्ते में दो तो accident (दुर्घटना) में मर गए। एक की टांग टूट गई। जो बकवाद कर रहे थे। सारनाम भी ले रहे थे और सतनाम भी ले रहे थे। ख़ाक है वह सतनाम और सारनाम? और शिष्य भी गुरु जी के थे। भाड़ में जाओ ऐसे शिष्य और ऐसे काॅर्डिनेटर जो अपनी बकवास करते हैं। कर्म बना लो। बकवाद छोड़ दो। यह बार-बार कहने की बात नहीं है। अरे! मुश्किल से मानव शरीर मिला। इसने तुम वही चौधर में खो दियो और नष्ट करके चले जाइयो इस जीवन को। जो आदेश दास का हो भगत तो वह है।

कुत्ता हूं गुरुदेव का, रामपाल दास का नाम। गले प्रेम की जेवड़ी, जहां खैंचो वहां जाऊं मैं।।

तो तो करो तो बांवड़ू, वापस आ जाऊं, तो तो। दूर दूर करो तो जाऊं। ज्यों राखो त्यों ही रहूं, जो देवों सो खाऊं।।

की हे परमात्मा! इस भाव में आओगे न, भई बात तो बनेगी जब। वैसे ठीक है जैसा करोगे मालिक रखे नहीं। ठीक है वह मर गए भक्ति कर रहे थे वह तो उन्हें मिले ही मिलेगी और अगले जन्म में हो सके किते (कहीं) राजा-महाराजा भी बन जाए। फिर कर्म फोड़कर, फिर कुत्ते बन जाएंगे। तो ऐसे आधीन होना पड़ेगा आपको, जो निर्देश मिले भाई यह सेवा छोड़ दे तुरंत त्याग दे हाथ जोड़कर, खुश होकर। मुंह बनावे नहीं। कहीं देखा है। कॉर्डिनेटर हटा दिया, मैं इतने दिन ते (से) सेवा कर रहा था, मैं यह कर रहा था। वैसे उन दिनों में भी किया मैंने, जब दुख के दिन थे। आज मैं हटा दिया। तू क्या राजा था? तू क्या मंत्री लाग (लग) रहा था? भले आदमी। सेवा थी, मजदूरी थी। मालिक ने दी, मालिक ने ले ली। खुश होना चाहिए हाथ जोड़कर, भाई फिर दियो chance (मौका)। गुरु जी ने कहियो फिर मौका दें। कोई गलती हो तो सुधारूंगा/सुधारुंगी। यह तो है साधु के लक्षण और बकवाद करके मुंह चढ़ा कर बैठे किसका क्या बिगाड़ेगा? कल मरेगा कुत्ते वाली मौत फिर ऐसे ही घसीट कर मारेगा काल।

बच्चों! अपने ऊपर रहम ना करते दास पर करलो। मेरा संघर्ष देखो 27-28 साल हो गए दास ने (को)। 1994 से आज तक हिसाब लगा लो और किसलिए? कि आप घोर नरक में पड़े हो और इसको सुख माने बैठे हो और यह सुख है कितने समय का पता है आपको? यह स्वांस बेरा (पता) ना (नहीं) इस स्वांस का आवन हो के ना हो। ऐसे गंदे लोग में माचे-माचे फिरो हो। अहंकार में सड़ रहे हो। यह काल ने फुला कर रखा है आपको, तुम्हारे हवा भर रखी है और एकदम फाड़ देगा टायर सा तुम्हारा। आंख खोल लो।

आखिर तुझको कौन कहेगा, गुरु बिन आत्म ज्ञान। मन नेकी करले, दो दिन का मेहमान।। मन नेकी…

यह कबीर साहेब रो-रो कर गाया करते खड़े होकर, चौराहों पर। आंखों में आंसू होते थे, उनके। यह गाना नहीं था। यह विलाप था, विलाप। दास गाता नहीं, आत्मा से रोता है। ऊपर से गा रहा हूं। 120 साल आपके बाप, आपके पिता एक झोपड़ी में रहे। गर्मी-सर्दी, बारिश, ओले हमारे लिए पड़े रहे क्योंकि वह आते ही हमारे लिए हैं, सद्बुद्धि देने के लिए, पर हमारे ऊपर काल का प्रभाव ज़बरदस्त है। उस काल के प्रेशर को, इस आत्मा की अज्ञानता को हटाने के लिए यह सत्संग माध्यम है। भक्ति खूब कर ली। मर्यादा भंग होती रही तो खाक भक्ति? साथ पेंचर हो रहा। हवा भरे जाओ उधर से फूर्र-फूर्र होती रहेगी। पहले मर्यादित हो जाओ। पेंचर लगा लो सारे और फिर अपनी थोड़ी हवा आराम से भरो और देखना सारा काम ठीक हो जाएगा।

बच्चों! आखिर तुझको कौन कहेगा, गुरु बिन आत्म ज्ञान।

एक तो आत्म ज्ञान। अब परमात्मा ज्ञान पर बात आती है। जो हमारे अभी तक धर्मगुरु, सभी धर्मो के धर्म प्रचारक थे, उनको यही नहीं पता हम आए कहां से हैं? इतना जरूर कह देते भक्ति नहीं करोगे तो चौरासी लाख योनियों में भटकोगे। आए कहां से? चौरासी लाख योनियों में भटकने से बचने का उपाय क्या है? वह इनको नहीं पता था। कारण क्या था? कारण यह रहा कि जिन भी, जो भी धर्म के धर्मग्रंथ है वह incomplete हैं, अधूरे हैं। गरीब दास जी ने कहा है;

वेद कतेब का ज्ञान है धूर, वह संतों का मार्ग दूर।।

वेदों, चारों वेदों का और चारों कतेबों का। चार वेद ऋज्ञ, यजु, साम, अथर्व। ऋज्ञवेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्वेद और कतेब, जबूर, तोरेत, एंजिल और कुरान। कहते हैं;

वेद कतेब एक हैं भाई, वह मालिक का मार्ग इनमें नाहीं।। ऋज्ञ यजु है साम अथर्व, चारों वेद चितभंगी रे। सुक्ष्मवेद बांचै साहेब का, सो हंसा सत्संगी रे।। सो हंसा सत्संगी रे।।

अब चार किताबें जो हैं जबूर, तोरेत, इंजिल और कुरान इन चारों पाक़ पुस्तकों में और चारों पवित्र वेदों में incomplete (अधूरा) ज्ञान है। संपूर्ण ज्ञान नहीं है। वह मोक्ष मार्ग नहीं है। वह सच्चा ज्ञान नहीं है। प्रमाण के लिए पाक़ कुरान सूरत फुरकानी 25 आयत 52 से 59 में स्पष्ट कर दिया कि कबीर ना जो परमात्मा का है। वह सारी सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता है। सबको मोक्ष देने वाला है और सबके पापों को दूर करता है, नष्ट करता है। वो वही है जिसने 6 दिन में सृष्टि रची, सातवें दिन तख़्त पर जा बैठा। उसकी ख़बर क्योंकि पाना तो उसी को है। उसकी ख़बर, उस अल्लाह कबीर की ख़बर किसी बाख़बर, तत्वदर्शी संत से प्राप्त करो। इससे सिद्ध हो गया पाक़ कुरान के अंदर उस अल्लाहु अकबर और जिसने सारी सृष्टि रची जिसके बारे में कुरान ज्ञान दाता उनका खुदा मुसलमानों का, कह रहा है वह अल्लाह और है। उसका ज्ञान किताब में नहीं है। इसका और प्रमाण देता हूं। पहले जबूर दाऊद जी को दी पुस्तक, हज़रत दाऊद जी को। तोरेत पुस्तक, पाक़ पुस्तक हज़रत मूसा जी को और इंजिल पुस्तक, पाक़ पुस्तक हज़रत ईसा जी को दी। इन सबसे बाद में हज़रत मोहम्मद जी आए। हज़रत मोहम्मद जी को पाक़ कुरान दी।

इस पवित्र कुरान मजीद के अंदर सुरह काफ़ 18 यानी chapter (अध्याय) हैं 18 नंबर उसका नाम है काफ़ और उसकी आयत नंबर sixty‌ (60) से लेकर eighty two (82) तक एक गजब का प्रमाण दे रखा है और इस जो कुरान का ज्ञान दे रहा है वह हज़रत मोहम्मद जी को दे रहा है और उनको बता रहा है कि पहले जो तीन कतेबे हैं वह मैंने ही दाऊद को, मूसा को और ईसा को दी थी। वह ज्ञान भी मेरा दिया हुआ है और यह ज्ञान भी मैं ही आपको दे रहा हूं। एक प्रकरण है जैसे आपको बताया सूरह काफ़ eighteen (18) में इनकी आयात यानी दोहा नंबर, साखी नंबर 60 से 82 में। उसमें एक प्रकरण है कि एक समय हज़रत मूसा जी कहीं सत्संग कर रहे थे। सत्संगी ने पूछा हे मूसा जी! वर्तमान में सबसे ज्ञानवान ज्ञानी कौन है? भगवान के मार्ग का। मूसा जी बोले मैं हूं और मेरे अतिरिक्त पृथ्वी पर कोई विद्वान नहीं है। लिखा है कि उस समय अल्लाह को यह बात अच्छी नहीं लगी। खुदा ने उससे कहा, कौन से खुदा ने? जिसको यह खुदा मानते हैं, जिसने यह चारों किताब दी हैं कि मूसा तू बहुत गलत बोल रहा है। तेरी यह बात मुझे अच्छी नहीं लगी, मेरे को।

तूने कैसे कह दिया कि मैं सबसे बड़ा विद्वान हूं। हज़रत मूसा जी ने हाथ जोड़ कर, घुटनों के बल बैठकर कहा प्रभु! हे खुदा! हे रब! यह ज्ञान मैंने आपसे प्राप्त किया है। इस आधार से मैंने कहा है कि मेरे बराबर विश्व में कोई ज्ञान नहीं क्योंकि आपने जो ज्ञान दिया है यही तो ज्ञान मैं आगे सुना रहा हूं। वही ज्ञान दाता। यह सुन लो ध्यान से। यह मुसलमान भाई भी सुन लो सब भूले बैठे हैं। तत्वज्ञान नहीं है किसी के पास। तो उसने कहा कुरान ज्ञान दाता ने जिसने यह दाऊद जी को, हज़रत दाऊद को, हज़रत मूसा जी को, हज़रत ईसा जी को, हज़रत मोहम्मद जी को जो ज्ञान दिया चारों कतेब दी। वह कहता है कि अलखिद्र के ज्ञान के सामने तेरा ज्ञान तो कुछ भी नहीं है। तो हज़रत मूसा जी ने कहा हे खुदा! मैं उस ज्ञान को कैसे प्राप्त करूं? वह अलखिद्र मुझे कहां मिलेगा?

उसको बताया गया उस स्थान पर है और सफेद कपड़ों में। तो मैं पहचानूंगा कैसे? कि एक मरी हुई मछली ले जाना। जहां वह अपने आप जीवित होकर पानी में कूद जाए, वह समझ लेना आसपास है। मूसा अपने एक साथी को, एक सेवक को साथ लेकर चल पड़ा। वहां पहुंचा तो मछली, वहां जीवित होकर दरिया में कूद गई। वह मूसा जी सो रहे थे। सेवक ने देखा। देर से उठे मूसा जी, थक गए थे। फिर आगे चल पड़े। दिन में चलकर अगली रात्रि को सो के उठकर जब उसने कहा कि भाई कुछ खाने को दे। तब उसको याद आया सेवक को कि एक मछली लाए थे। वह तो ऐसे-ऐसे हम पिछले पड़ाव के ऊपर बैठे थे। वह जीवित होकर पानी में कूद गई। मूसा बोला हमने वहीं तो जाना था।

सेवक बोला मैं शैतान के प्रभाव से आपको बताना भूल गया। अपने पैरों चलते-चलते वापस आए। वहां देखा एक सफेद कपड़ों में, दाढ़ी और मूंछ वाला व्यक्ति बैठा है। तो उसने कहा कि हमें खुदा ने आपके पास भेजा है। मुझे वह ज्ञान बता दो, जो सबसे न्यारा (अलग) है। सबसे संपूर्ण और complete (पूरा) है, सत्य है। अलखिद्र जी ने कहा कि मूसा! तू मेरी शर्तों पर पूरा नहीं उतरा तो मैं आपको ज्ञान नहीं दूंगा। मूसा बोला मुझे पूरा विश्वास करने वाला मान। पूरा सब्र करूंगा। पूरा विश्वास करूंगा आपकी बातों पर। तो उसने कई शर्तें पूरी की।

लंबा सफर है, फिर बताऊं इतना अभी समय है। मूसा जी उनकी शर्तें पूरी नहीं कर सका। अलखिद्र बोला ईब (अब) बोल? मूसा जी खुद ही हार मानकर वापस आ गया यानी बिना वह तत्वज्ञान प्राप्त किए मूसा जी वापस आ गए। इससे सिद्ध हो गया कि वह अलखिद्र वाला ज्ञान यदि हज़रत मोहम्मद जी को होता, हज़रत मोहम्मद जी को बता देता कि ले इस सूरह में पढ़ ले वह मैं बताता हूँ। वही तो खुदा था, जो हज़रत मोहम्मद जी को ज्ञान दे रहा है। जिसको यह चारों धर्म मानते हैं। ईसा, मूसा, दाऊद और हज़रत मोहम्मद वाले। उसी ने कुरान मजीद सूरत फुरकानी 25 आयत 52 से 59 में स्पष्ट कर दिया, उस ज्ञान को जो मूसा भी प्राप्त नहीं कर सका और मैं भी नहीं बता पाया हूं किसी बाख़बर से पूछो। होगी clear (स्पष्ट) यह चार शब्दों में। समझदार को संकेत बहुत है। यह तो मुसलमान, ईसाई, यहूदी आदि धर्मों का निष्कर्ष निकाल दिया। कहते हैं;

यह झूठा ज्ञान, ध्यान कहां लाओ।

किस अल्लाह को पुकार रहे हो? तुम्हें अल्लाह ही का ना (नहीं) पता। अब यही बताता हूं। चारों वेदों का सारांश गीता। वेद यजुर्वेद अध्याय नंबर 40 के श्लोक 10 में कहा है कोई तो परमात्मा को साकार मानता है कि वह अवतार लेकर आता है। कोई निराकार बताता है। वह साकार है या निराकार है? कैसे आता है? कैसे जाता है? इसकी खबर तत्वदर्शी संत से पूछो। इति सिद्धं। चारों वेदों में ज्ञान नहीं है complete (सम्पूर्ण)।

फिर गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में कहा है कि ब्रह्मणे मुखे। सच्चिदानंद घन ब्रह्म, जो अपने मुख कमल से वाणी बोलकर ज्ञान बताता है। वह सूक्ष्म वेद तत्वज्ञान है। उस वाणी में वह संपूर्ण अध्यात्म ज्ञान है जिससे पूर्ण मोक्ष होता है। चौथे अध्याय के 34 वें श्लोक में श्री गीता जी में कहा है कि उस तत्वज्ञान को तू तत्वदर्शी संतों के पास विनम्र भाव से दंडवत प्रणाम करके पता कर। प्रसन्न कर, फिर वह तुझे बताएंगे। इति सिद्धं। वह तत्वज्ञान वह मूल ज्ञान किसी भी धर्म, मज़हब के ग्रंथ में नहीं है और बच्चों! आज आपको प्राप्त है। आपको सतगुरु प्राप्त है। आपको वह तत्वज्ञान प्राप्त है।

आपकी किस्मत का खोल कर देखो एक बार एक पन्ना, आप कितनी किस्मत वाले हो। यह संसार की व्यवस्था को भूल जाओ। चाहे कोई गरीब है कती (बिल्कुल)। मज़दूरी करके खा रहा है। पर भगवान के बहुत लाडले हो तुम और चाहे सेठ है, चाहे राजा है, उसने इस धन को नहीं देखना। वह तो आत्मा का सौदागर है, आत्मा का सौदा करता है। कुर्बान हो जाओ, कहने की बात नहीं यह कुछ करने से मिलेगा। गरीब दास जी कहते हैं;

गरीब, मंसूर, महसूर क्यों हो गया? एक तो है मशहूर। मशहूर होता है प्रसिद्ध। एक महसूर महरूम यानी क़ुर्बान। कहते हैं,

मंसूर, महसूर क्यों हो गया। क़ुर्बान क्यों हो गया? शरीर फांसी प्रवेश। और जाके ऊपर ऐती नौबत बीती कैसा है वह देश।।

वह कितना सुखदाई होगा जिसके लिए पूरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े करवा लिए। मरूं चाहे मिटूं मालिक के घर जाना है। अब इस ज्ञान को परमात्मा ने मंसूर अली जी को दिया था। उसके बाद उसने अपने ही धर्म के लोगों को समझाना चाहा जिसका परिणाम यह हुआ। कहा था;

अगर है, शौंक अल्लाह से मिलने का, तो हरदम नाम लौ लगाता जा। अगर है शौंक अल्लाह से मिलने का, तो हरदम नाम लौ लगाता जा।

न रख रोजा, न मर भूखा, न मस्जिद जा, ना कर सिजदा। न रख रोज़ा, न मर भूखा, न मस्जिद जा,  ना कर सिजदा। वजू का तोड़ दे कूजा, शराबे नाम पीता जा।। वजू का तोड़ दे कूजा, शराबे नाम पीता जा। अगर है शौंक अल्लाह से मिलने का, तो हरदम नाम लौ लगाता जा।। पकड़ कर इश्क का झाड़ू, सफा कर दिल के हुजरे कू। पकड़ कर इश्क का झाड़ू, सफा कर दिल के हुजरे को। दुई की धूल रख सिर पर, मुसल्ले पर उड़ाता जा। दुईकी धूल रख सिर पर, मुसल्ले पर उड़ाता जा। अगर है शौंक अल्लाह से मिलने का, तो हरदम नाम लौ लगाता जा। अगर है शौंक अल्लाह से मिलने का, हरदम नाम लौ लगाता जा। धागा तोड़ दे तस्बी, किताबें डाल पानी में। धागा तोड़ दे तस्बी, किताबें डाल पानी में।।

इनमें कुछ नहीं है। जो गुरु बताता है उसको ग्रहण करो।

धागा तोड़ दे तस्बी, किताबें डाल पानी में, धागा तोड़ दे तस्बी।

माला यह माल डाल रहे हो, फेंक दो इसने तोड़कर कुछ नहीं रखा इन बनावटी बातों में और यह किताबें डाल पानी में। इनको फेंक दो, इनमें incomplete knowledge (अधूरा ज्ञान) है।

धागा तोड़ दे तस्बी, किताबें डाल पानी में। धागा तोड़ दे तस्बी,किताबें डाल पानी में। मसाहिक बनकर क्या करना, मजीखत को जलाता जा। इस अहंकार ने फूंक ले।

अगर है शौंक अल्लाह से मिलने का तो हरदम नाम लौ लगाता जा। अगर है शौंक अल्लाह से मिलने का तो हरदम नाम लौ लगाता जा।।‌ कह मंसूर क़ाज़ी से निवाला कुफर का मत खा।

यह मांस मत खा और यह गलत साधना ना कर क़ाज़ी।

कह मंसूर क़ाज़ी से, निवाला कुफर का मत खा। अनल हक़ नाम बरहक है, यही कलमा सुनाता जा।। अनल हक़ नाम बरहक है, यही कलमा सुनाता जा।।

अब बच्चों! जिस भी संत को कुछ प्राप्त हुआ उसने सामाजिक परंपरागत जो अधूरी साधनाएं थी, उनको त्यागना पड़ा और काल से प्रेरित उसी के धर्म, मज़हब के, जाति के लोगों ने उसको कठिन यातनाएं दी, परेशानियां पैदा कीं क्योंकि यह काल प्रेरणा है। काल का जुगाड़ है। पहले कोई धर्म नहीं था। अब 2,000 वर्ष से इधर-इधर यह तीन-चार धर्म बन गए और बन गए। पहले तो एक सनातन धर्म था। शुरुआत आदि सनातन धर्म से हुई थी, जो परमात्मा आए, ज्ञान बताना चाहा पर माना किसी ने नहीं। परमात्मा मनु जी को मिले।

सब ऋषियों को मिले। उनको राह दिखाना चाहा क्योंकि उसके बच्चे हैं। पर उनके अंदर अहंकार था misguided (भ्रमित) थे। ब्रह्मा जी से अधूरा ज्ञान प्राप्त कर उन वेदों पर आश्रित रहे। अब वह दुर्गति होकर कलयुग में आ लिए। वह पिछले पुण्य खत्म करके ऋषि भी बन लिए। सारे पापड़ बेल लिए। कुछ हासिल हुआ नहीं। मोक्ष हो ही नहीं सकता। तो बच्चों! इसमें मंसूर अली जी ने सारी ही बात बता दी।

मंसूर कह क़ाज़ी से, निवाला कुफर का मत खा।

यह मांस मिट्टी मत खा। यह पाप ना कर और यह क्योंकि उनको जितना ज्ञान था जैसे संपूर्ण ज्ञान तो आपको ईब (अब) देना था दाता ने। कसम खवा रखी थी किसी को नहीं बताना। लेकिन मंसूर अली को खुद परमात्मा मिले। उनको यह मंत्र दिया। एक software (सॉफ्टवेयर) लगा दिया जैसे एक पशु का अपना पट्टा बांध देते हैं वह धनी का हो जाता है। इस प्रकार मालिक ने इनको अपना ज्ञान देकर और ऐसे ऐसे नाम दे दिए जिनसे कुछ राहत मिली। लेकिन मोक्ष तो ईब (अब) होगा इनका और जो उन्होंने किया।

क़ुर्बान हुए मालिक के नाम पर। उसको जीवन दे दिया। फूंक दिए थे मंसूर अली जी। फिर जीवित कर दिये हज़ारों की संख्या में वहां घूम रहे थे सब अपने घर बड़ गए, भाग भाग कर। उनके जाने के बाद उनकी महिमा करते हैं, यह लोग। समय पर उनको तंग किया। तो बच्चों! आपके ऊपर जो दाता ने कलम तोड़ी है इसका शब्दों में बयान नहीं कर सकता दास क्योंकि बहुत लंबा इतिहास है आपका। जैसे मंसूर अली जी ने एक नाम पर ही ज़ोर दिया। गरीब दास जी कहते हैं "सरबंगी साक्षी" के अंग की वाणी।

गरीब सुल्तानी के सर लगा, बलख बुखारा दिया त्याग। जिंदे के चोले मिले, दिन्हां सत बैराग।।

अब अब्राहिम सुल्तान भी मुसलमान था उसको भी सच्चा ज्ञान दिया। घर छोड़कर चले गए, फिर जिंदा बाबा के रूप में मिले, उनको सच्चा मंत्र सत् भक्ति दी।

गरीब मोहम्मद के मुर्शिद सही, केवल कलमा दीन। मुसलमान माने नहीं, मोहम्मद के यकीन।।

की बाद में हज़रत मोहम्मद जी को परमात्मा खुद मिले। वह मरी हुई गाय खुद जीवित की। केवल मोहम्मद जी को दिखे थे। उनको फिर सतलोक ले गए। सारा कुछ दिखा के आप यहां से गए हो। शंकर जी के लोक से गए हो आप। पिछले जन्म के पुण्यकर्मी थे। बचपन से भगवान की चाह थी इसलिए तो गुफा मे बैठ गए थे जाकर । जब तक तो कोई नबुयत भी ना मिली थी उनको, वह पिछले संस्कार प्रभावित। पिछले जन्मों के संस्कारी हो, अब काल तेरे कर्म फुड़वा रहा है आपके। तो यह साधना छोड़ दे और केवल यह मंत्र जाप केवल कलमा दीन। केवल एक मंत्र दिया जो अनल-हक़ बरहक है। तो हज़रत मोहम्मद जी को अल्लाहु अकबर दिया, अल्लाह कबीर कहते हैं मोहम्मद ने तो मान लिया कि सच में सही कह रहे हो। फिर उसकी बात सारे मुसलमान धर्म ने नहीं मानी जो आज तक बखेड़ा हो रहा है।

गरीब, मोहम्मद के मुर्शीद सही, मुर्शीद मोहम्मद के पीर गुरु बनकर गए परमात्मा। और केवल कलमा दीन। मंत्र दिया केवल मंत्र। मुसलमान माने नहीं मोहम्मद के यकीन।। अब क्या बताते हैं गरीब दास जी;

गरीब, राज तबक चौदह सही ,रापति कोटि असंख। जा हृदय नहीं नाम है, वह राव नहीं वह रंक। गरीब, सब रावण पति राव है ,जाकै रूम रूम धुनि होय। दम खाली नहीं नाम बिना, छत्रपति है सोए।।

स्पष्ट कर दिया और कबीर साहब कहते हैं;

कबीर सब जग निर्धना, धनवंता नहीं कोई। धनवान उसको जानियो ,जिस पे राम नाम धन होय।।

देखो अब क्रिया तो सारी करनी है, आपने। प्रथम मंत्र भी सारे कुछ करने हैं। आरती दोपहर की ये सारी करनी है क्योंकि हमारे पाप घने (ज़्यादा) बढ़ गए और यह आजकल सारे ऐसे उपकरण बना दिए परमात्मा ने। आरती लगाओ काम भी करते रहो बैठकर भी करलो। जैसे ज़्यादा समय नहीं मिलता है तो आप मोबाइल में लगाओ। ध्यान रखो,

जैसे हाली बीज धून, पंथी से बतलावे।

जैसे हाली बीज बोता हुआ रास्ते में कोई यात्री उससे रास्ता पूछता है। उसको भी बताता रहता है पर रुकता नहीं। हमने देखें कई बार। किसान के घर जन्म था। किसान को इतना टाइम नहीं होता किसी से खड़ा होकर बात करले। बीज बोना होता है। तो यहां गरीब दास जी बताते हैं;

राज तबक चौदह सही, चौदह लोक का राज हो और हाथी करोड़ो असंख हों। जिसके हृदय यह सच्चा नाम नहीं वह राव नहीं वह तो कंगाल आदमी है।

बच्चों! आप सतनाम सच्चे ज्ञान के धनी, सच्चे भगवान के धनी, सच्चे नाम के धनी। परमात्मा आपको मोक्ष दे। सदा सुखी रखे। कुर्बान हो जाओ। आपका भविष्य नर्क बनने से बचे। आपको मोक्ष दे दाता।

।।सत साहिब।।