सत साहेब।।
सतगुरु देव की जय
बंदी छोड़ कबीर साहेब जी की जय।
बंदी छोड़ गरीबदास जी महाराज जी की जय।
स्वामी रामदेवानंद जी गुरु महाराज जी की जय हो।
बंदी छोड़ सतगुरू रामपाल जी महाराज जी की जय।
सर्व संतों की जय।
सर्व भक्तों की जय।
धर्मी पुरुषों की जय।
श्री काशी धाम की जय।
श्री छुड़ानी धाम की जय।
श्री करौंथा धाम की जय।
श्री बरवाला धाम की जय।।
सत साहेब।
गरीब नमो नमो सतपुरुष कुं, नमस्कार गुरु किन्हीं। सुर नर मुनि जन साधवां संतों सर्वस दिन्हीं।।
सतगुरु साहेब संत सब, दंडवतम प्रणाम। आगे पीछे मध्य हुए, तीन कुं जा कुर्बान।
जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से रहियो, उस सत्यलोक के डेरे की।।
जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से रहियो, अमरपुरी के डेरे की।।
निर्विकार निर्भय तू हीं, और सकल भयमान। ऐजी साधो और सकल भयमान।
सब पर तेरी साहेबी, सब पर तेरी साहेबी। तुझ पर साहब ना। निर्विकार निर्भय।।
परमपिता परमात्मा कबीर जी की असीम रज़ा से मेरे गुरुदेव जी के आशीर्वाद से आज विश्व के मानव को अपने निज घर का ज्ञान हुआ। सब सद्ग्रंथों का सार परमात्मा के द्वारा बताया अध्यात्म ज्ञान प्राप्त हुआ। यह जन्म और मरण कुत्ते, गधे, सूअर की योनियों में, शरीरों में कष्ट क्यों? दुर्गति क्यों हो रही है? इसका ज्ञान हुआ और आपको यह भी ज्ञान हुआ हमारा भगवान कौन है? आपको यह भी जानकारी हुई कि यहां से छुटकारा होगा कैसे? यह सब ज्ञान सतगुरु से होता है। तो दास जब भी मालिक को याद करता है, अपने गुरु जी के एक-एक वचन जो मुख्यतौर पर सुनाए गए थे तुरंत आत्मा में लगते हैं जाके और उनकी विशेष याद बनती हैं और कबीर जी की यह बातें याद आती हैं, अमर वाणी:
कबीर, सतगुरु के उपदेश का, लाया एक विचार। जै सतगुरु मिलते नहीं, जाते नरक द्वार।।
नरक द्वार में दूत सब, करते खैंचा तान। उनसे कबहूं नहीं छूटता, फिर फिरता चारों खान ।।
कबीर, चार खानी में भ्रमता, कबहु ना लगता पार। सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।।
जय-जय सतगुरु मेरे की, जय-जय सतगुरु मेरे की । सदा साहिबी सुख से रहियो, उस अमरपुरी के डेरे की।।
गुरुदेव का जब यह उपकार याद आता है, उनके प्रति अनायास ही अपने आप उसकी जय-जयकार करने को आत्मा पुकार उठती है। बच्चों! यह जो ज्ञान दास सुना रहा है, सब सद्ग्रंथो, शास्त्रों से प्रमाणित है और खुद परमात्मा स्वयं परमेश्वर ने आकर के यह हमें ज्ञान बताया और फिर अपने बच्चों को ऊपर लेकर गए फिर नीचे छोड़ा। उन्होंने दिल खोल कर सच्चाई बताई। अपने समर्थ की जानकारी दी। उस घर का सुख और यहां के नरक का कष्ट याद दिलाया जो सत्य है। आज कोई सुखी नहीं, कोई सुखी नहीं धरती पर। इस बात को आप आसानी से समझ लेना। कबीर साहेब कहते हैं;
झूठे सुख को सुख कहे, यह मन मान रहा मनमोद।।
एक छोटा-सा गुज़ारा हो गया। अफसर बन गया, नौकरी लग गई, कार हो गई , कोठी हो गई माच्या-माच्या (मजे में) फिरै (घूमे)। कल को मृत्यु के बाद वही कुत्ता बनकर उस कोठी के बाहर बैठेगा। कोई टूक (रोटी) नहीं डालेगा। यह कष्ट याद राखो। जब यह भक्ति बनेगी। वैसे यह भक्ति हो ही नहीं सकती क्योंकि मनुष्य जीवन के अंदर इतनी राहत मालिक देता है। उसको वह सुविधा खूब मिलती है। जैसे बच्चे स्कूल जाते हैं, पढ़ाई करते हैं तो माता-पिता उनको पूरी सुविधा देते हैं। अपनी स्थिति से बढ़कर, अपनी औकात से भी ज़्यादा उन बच्चों के ऊपर खर्च करते हैं और वह बच्चे पढ़ाई ना करके, उन पैसों का दुरुपयोग करते हैं और समय का दुरुपयोग करते हैं। कहीं बकवाद करें, फिल्म देखें या खेल में लगे रहें तो अंत में वह फेल होकर के मजदूर लगते हैं।
दास हरियाणा की इरिगेशन डिपार्मेंट यानी (सिंचाई विभाग) में जूनियर इंजीनियरिंग की पोस्ट पर था। तो वहां काम चल रहा था हम खड़े थे, मज़दूर भी थे। हमारा माइनर इरिगेशन का काम था। एक रोड (सड़क) का निर्माण हो रहा था वहीं पर। रोड के निर्माण पर मज़दूर वहीं थे। हमारा भी काम उनकी पुली बनाकर पार करना था उस सड़क को, निकाल कर। वहीं खड़े थे। उनका एक्शीयन आया और फिर वह चला गया अपना देख दाख कर। उस एक्शीयन के जाने के बाद एक मज़दूर कहता है यह मेरा क्लासफैलो (क्लासमेट/सहपाठी) था। मेरा सहपाठी था। मैं बकवादों में लगा रहा। पढ़ा नहीं। खेलने जाता। बीच में स्कूल छोड़कर बाहर भाग लेते और मैं फेल हो गया, यह पास होया। देख आज इसकी कितनी मौज है। गाड़ी में चलता है। बढ़िया कोठी बना ली है और मेरे बच्चे, वहीं रेत में पड़े हैं। न्यों (ऐसा) कह कर उसकी आंखों में पानी आ गया। कबीर साहब कहते हैं;
आछे दिन पाछे गए, गुरु से किया ना हेत। अब पछतावा क्या करें, चिड़िया चुग गई खेत।।
इसी प्रकार बच्चों! आज आप इस परमात्मा के कॉलेज में, स्कूल में यदि आप ठीक से नहीं पढ़ोगे, नहीं सत्संग सुनोगे, सेवा नहीं करोगे, दान नहीं करोगे, मर्यादा का पालन नहीं करोगे, फिर ऐसे रोवोगे। कबीर साहेब कहते हैं;
हिड़की दे दे रोवेगी ऐ सुरता, जब तू चालैगी अकेली।
हे आत्मा! जिस परिवार को और जिस ठाठ-बाट को, जिस राज को, जिस पद को देखकर आज तुझे भगवान याद नहीं आता। नालायक! यह तेरे साथ नहीं जाएगा। जिस दिन यम के दूत घसीट कर ले जाएंगे, टक्कर मारेगी इधर-उधर। दडढावेगी (दहाड़ेगी) बुरी तरह। तेरी कोई नहीं सुनेगा।
हिड़की दे दे रोएगी ऐ सुरता, जब तू चालैगी अकेली।
बच्चों! यह साफ बातें हैं, कती (बिल्कुल) स्पष्ट हैं। 100 % सत्य हैं। 200 %, 1000 % सत्य हैं। पर यह आत्मा क्यों नहीं मानती? यह मन नहीं मानने देता, तो यह मनाना पड़ेगा। अब इसका तरीका यही है सत्संग सुनो। मनन किया करो। थोड़ी देर बैठ कर सोचा करो। यह नहीं कि बस सत्संग सुन रहे हो बस बंद हुआ और अपना भागे यह करूंगा, वह करूंगा। कर तो सारे लो उसके अंदर भी परमात्मा मदद करेगा, तुम्हें लाभ मिलेगा, नहीं कती (बिल्कुल) सिर पटक लियो, कोई राहत नहीं मिलेगी। अगर ऐसे सेठ बनते हो तो सारे बन जाते। सारे भाजे-भाजे (भागे भागे) फिरे और पास कुछ नहीं ।
बच्चों! आंखे खोल लो बस। मैं तो आखिरी सांस तक यही बोलूंगा क्योंकि मेरे अंदर तो यह फीड कर दिया मेरे दाता ने। मेरा कर्तव्य बना दिया। मैं अपने कर्तव्य कर्म को भूलूं नहीं। आगे आपकी किस्मत आपके कर्म आप कितना इसके ऊपर खरे उतरोगे। कितना इसको फॉलो करोगे।
गरीब, न्योल नाद सुभान गति, लड़ै भुजंग हमेश। जड़ी जान नाम जगदीश है, विष नहीं व्यापै शेष।।
एक वाणी में कितना गजब का ज्ञान भर दिया।
न्योल नाद सुभान गति, लड़ैं भुजंग हमेश।।
जड़ी जान जगदीश है, विष नहीं व्यापै शेष।।
एक छोटा-सा जानवर होता है। गिलहरी से थोड़ा बड़ा न्योल नेवला और सांप कितना बड़ा होता है? चाहे कितना ही बड़ा सांप हो, ताकतवर हो, नेवला उसको मार देता है। उसको वह पराजित कर देता है। कैसे करता है? उसको पता होता है वह सर्प को उस समय छेड़ता है, जब आसपास कोई वह बूटी होती है। कोई औषधि का पौधा होता है, उसमें से सुगंध श्वांस के द्वारा भर कर लाता है अपने फेफड़ों में और सर्प के सन्मुख होकर उसको छोड़ देता है। उस जड़ी की smell (सुगंध) से, उसकी महक से वह सर्प डगमग हो जाता है, उसको चक्कर आने लग जाते हैं। उस जड़ी में इतनी ताकत है। वह सर्प को कंडम कर देती है। उसको होश नहीं रहता। तो सर्प फिर भागने की चेष्टा करता है और नेवला उसके मुंडी (सिर) पर बैठकर, उसको पकड़कर ऐसे रगड़ देता है। बार-बार छोड़ता रहता है, वह मर जाता है। स्वांस छोड़ता रहता है। तो बच्चों! यहां परमात्मा के ज्ञान को, परमात्मा की शक्ति और इस नाम की महिमा को परम पूज्य आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज किस प्रकार Define (परिभाषित) करते हैं;
गरीब, न्यौल नाद सुभान गति, लड़ै भुजंग हमेश। जड़ी जानो नाम जगदीश है, विष नहीं व्यापै शेष।।
की जो यह मंत्र आपको दिए हैं, यह परमात्मा का नाम जो है। यह वह जड़ी है - नाग दमन जड़ी है यह।
न्यौल नाद सुभान गति, लड़ै भुजंग हमेश।।
की नेवला अपने से कई गुना ताकतवर सर्प के साथ उस जड़ी की ताकत से लड़ता है। उसको घुमा देता है। मार देता है। तो ऐसे ही सतनाम जो सच्चा नाम तुम्हें मिले हैं प्रथम, द्वितीय और सारनाम, यह समझो यह जड़ी हैं। इन भूत प्रेत और अन्य देवी देवता, पितर कुत्तर की तो बात छोड़ो, भैरव-भूत तो छोड़ो, इनकी तो गलां (बात) ही छोड़ो, अगर काल भी आ जाए न -
विष नहीं व्यापै शेष।।
शेषनाग तो सबसे ताकतवर हज़ार फन हैं उसके कि इतना ताकतवर काल है। आप इस मंत्र विधि से लिए हुए मंत्र को जैसे जिसका नाम खंड हो गया उस पर कोई असर नहीं होने का। मर्यादित भक्त बेटा या बेटी और कोई भी आपत्ति आती है। यम के दूत कोई कष्ट देना चाहते हैं। एक बार सिमरन करो इस सतनाम का। कहते हैं-
विष नहीं व्यापै शेष।।
काल भी मुरझा जायेगा।
केहरी नाम कबीर है, विषम काल गजराज। दादू भजन प्रताप से, सुनकर भागे गाज।।
तो बच्चों! इन बातों को ध्यान से रखो, याद रखो। आप इतने सुरक्षित हो गए हो, जैसे हाथी पर बैठा दिया जाए, तो कुत्ता उसको कोई हानि नहीं कर सकता। तो..
स्वान हाथी के असवार को, स्वान काल नहीं खाए।।
हाथी पर बैठे आप हो, आप परमात्मा की शरण में आ गए तो इतने सुरक्षित हो गए उसकी range (पहुंच) से, पहुंच से इतनी दूर हो गए काल से, जैसे कुत्ता हाथी पर बैठे व्यक्ति को कोई हानि नहीं कर सकता। उसके लिए आपने -
तन-मन शीष ईश अपने पे, तन-मन शीष ईश अपने पे। पैलम चोट चढ़ावै, जब कोई राम भक्त गति पावै, हो जी।। जब कोई राम भक्त गति पावै, हो जी।। लोक-लाज मर्याद जगत की, तृण ज्यों तोड़ भगावै। अष्ट सिद्धि की अटक ना माने, आगे कदम बढ़ावै।। जब कोई राम भक्त गति पावै, हो जी।। जब कोई राम भक्त गति पावै, हो जी।।
बच्चों! यह सारे फार्मूले लाने पड़ेंगे, जब यह Problem Solve (दुविधा का हल होगा) होगी, जन्म और मरण की। अब क्या बताते हैं -
गरीब हंस गवन करते नहीं, मानसरोवर छाड़। कवै उड़-उड़ जाते हैं, खाते माँसा हाड़।। गरीब, मानसरोवर मुक्ति फल, मुक्ताहल के ढेर केर। कौवा आसन ना बंधै, जे भूमि दीन सुमेर।। गरीब, कौवा रुपी भेख हैं, ना प्रतीत यकीन। अड़सठ का फल मेट कर, रहे दीन बे दीन।। गरीब, हंस दशा तो साध हैं, सरोवर है सत्संग। मुक्ताहल वाणी चुगे, चढ़त नवेला रंग।।
अब देखो कितनी अच्छी व्याख्या की है संत गरीब दास जी ने कमाल कर दिया।
गरीब, हंस गवन करते नहीं, मानसरोवर छाड़। कवै उड़ उड़ जाते हैं, खाते माँसा हाड।।
फिर बताया है-
गरीब हंस दशा तो साधु हैं, सरोवर है सत्संग। मुक्ताहल वाणी चुगे, चढ़त नवेला रंग।।
की जैसे हंस गवन करते नहीं, मानसरोवर छोड़।
हंस एक पक्षी होता है। हंस से तुलना की है, सधे हुए भक्त, निर्विकार भक्त, सच्चे भक्त की, कि जैसे हंस एक पक्षी होता है सरोवर के ऊपर, तालाब के ऊपर होता है, जिसमें मोती होते हैं और वहीं पर बुगला होता है, उसी जैसी शक्ल, same (हुबहू) शक्ल होती है उनकी पहचान नहीं कर सकते। उनकी पहचान इसी से होती है, जो मोती खाता है वह तो हंस और मच्छी (मछली) खाता है वह है बुगला। दोनों की same (एक जैसा) आकार शरीर का और ऐसे ही colour (रंग) सफेद होता है और कौवे भी वही होते हैं, मांस, मच्छी खाते हैं। हंस वो होता है जो भूखा मर जाएगा पर मांस, मच्छी, मेंढकी नहीं खाएगा। मेंढक नहीं खाएगा। इसी प्रकार भक्त वह होता है जो अपने धर्म-कर्म पर रहेगा, बकवाद नहीं करेगा। चाहे कुछ भी हो। तो..
हंस गवन करते नहीं, मानसरोवर छाड़।।
सरोवर तो सत्संग है। इस सत्संग को सरोवर मानो, तालाब, टैंक और भक्त हंस है। यह इसको छोड़ कर जाते नहीं। यानी परमात्मा की भक्ति त्यागते नहीं और कौवै उड-उड़ जाते हैं। यह कौवे जैसे विचारों के स्वभाव के व्यक्ति होते हैं, वह बकवाद किये बिना टिके (रुके) नहीं। उनको कितनी ही सुविधा मिल जाए आश्रम में। वह अपने गंदे कर्म बिना टिक (रुक) नहीं सकते, उनका स्वभाव इतना बिगड़ गया। तो यह कहते हैं-
गरीब, हंस गवन करते नहीं, मानसरोवर छाड़। कौवे उड़-उड़ जाते हैं, खाते मांसा हाड।।
यानी बकवादी विकारी लोग सत्संग में नहीं टिकते, छोड़ कर चले जाते हैं।
सत्संग और हंस दशा तो साधु हैं, भक्त हैं, सच्चे और सरोवर हैं सत्संग।
मुक्ताहल वाणी चुगैं
यह अमृत वाणी रुपी मोती खाते हैं
फिर चढ़त नवेला रंग।।
इस ज्ञान को सुनकर आत्मा में और कसक पैदा होती है, तड़प पैदा होती है। भगवान की तरफ और ज्यादा लगन लगती है।
मुक्ताहल वाणी चुगैं
यह मुक्त होने की मुक्ति रूपी वाणी चुनते हैं। खाते हैं, सुनते हैं आत्मा का आहार है यह।
फिर चढ़त नवेला रंग।
और अजब-गजब इस आत्मा के अंदर इसका असर होता है, प्रभाव पड़ता है। फिर बताते हैं -
गरीब, कोटि वर्ष करे संगत साधों की, पत्थर का जल में क्या भीजे। चंदन वन में रंग ला दे, एक बांस विटंबी ना सीझे।।
परमात्मा गरीब दास जी कितना प्यारी व्याख्या करते हैं कि,
कोटि वर्ष करें संगत संतों की, सतगुरु की, पत्थर का जल में कै भीजे।।
पत्थर को पानी में डाल दो, कितने में और चाहे 100 वर्ष के बाद निकाल लो उसको कती (बिल्कुल) असर नहीं। उसको एक-दूसरे के साथ घिसा दो तभी अग्नि निकलेगी, चिंगारी फटेगी। जबकि पानी से तो सब नरम हो जाते हैं। इसी प्रकार बताया है कि जो निकम्मी आत्मा हैं, पत्थर हो चुके हैं काल की बकवास कर करके। वह सत्संग में कितने ही दिन रहो, उनको कती (कोई) असर नहीं हो। उन्होनें बकवाद करनी ही करनी है।
गरीब, कोटि वर्ष करो संगत साधों की, पत्थर का जल में क्या भीजै। और चंदन वन में रंग ला दे, एक बांस विटंबी ना सीझै।।
चंदन का एक पेड़ होता है। उसमें से Smell (खुशबू) निकलती है बहुत सुंदर Good Smell (अच्छी खुशबू) और आसपास के जितने पेड़, उसके पास होते हैं, उनको भी उनकी Smell (खुशबू) से, उनमें भी smell (खुशबू) आनी शुरू हो जाती है। अगर उनको काट दिया जाता है दूसरे वृक्ष को और उसकी लकड़ी कहीं ले जाते हैं बाहर, तो उसमें से smell आती है लोग चंदन समझते हैं और कुछ नकली व्यापारी उनको चंदन के रूप में बेचते भी हैं। कहने का भाव यह है कि सतगुरु के पास रहने से, सत्संग सुनने से अच्छी आत्माओं को तो असर पक्का होगा। लेकिन
बांस विंटबी ना सीझै।
बांस का जो होता है पेड़ ईख जैसा। बांस देखा आपने, यह पेड़ होता है इसके लंबे-लंबे पेड़ होते हैं। इस पर चंदन का कोई असर नहीं होता। तो जो बांस जैसे कट्टर इंसान हैं, जिनकी आत्मा गिर चुकी है, मर चुकी है। उन पर इनका असर नहीं होता। वह ऐसे लोग हैं-
संगत मांही कुसंगत उपजै, जैसे वन में बांस। आपा घिस-घिस आग लगावै, करे बनखंड़ का भी नास।।
अब क्या बताते हैं जो सत्संग में आकर भी बकवादी हैं और उनके असर नहीं हो रहा, वही कर्म बकवादों वाले करते हैं। नाम तोड़ते हैं। सारनाम लेकर भी बकवाद करते हैं। बच्चों! आप सुन रहे हो अमृत वचन, अमर ज्ञान। अब जैसे कई भक्त हैं, दिखे ऐसे हैं जैसे बहुत बड़े भक्त हैं। बहुत निकट रहते हैं हमारे और अंत में उनके कर्म ऐसे गंदे पावैं (मिले), हम सोच भी नहीं सकते। तो यह गलतियां हैं। इनको सुधारना पड़ेगा, आपने।
भाई और बात तेरे काम ना आवै, संतों शरणा लाग रे। के सोवै गफलत में बंदे, जाग जाग नर जाग रे।। जाग जाग नर जाग रे।। उठ सवेरे हुक्का भर लिया, के जागा निर्भाग रे। शुकर्म किया ना करी रे बंदगी, फूटे तेरे भाग रे।। फूटे तेरे भाग रे। इस तन सराय में जीव मुसाफिर, करता रहे दिमाग रे। रात बसेरा कर ले डेरा, चलै सवेरा त्याग रे। चलै सवेरा त्याग रे।।
बगैर सच्चे ज्ञान के इंसान सारे जीवन में अपनी मनमुखी अटपट करके यह कर दूंगा, वह कर दूंगा, कोठी बना दूंगा, उसको ऐसे ठग लूंगा। यह ऐसे कमा लूंगा। यहां जमीन इतनी सस्ती मिल रही है ऐसे कर लूंगा। कर ले, लेकिन भक्ति भी तो साथ कर ले। बरकत तो दाता ने देनी है, कर्म से ज़्यादा मिले नहीं। कितनी ही कोशिश कर लो। कर्म से अधिक लेना है तो धनी की शरण में आना होगा। इस परमात्मा कबीर जी के हाथ में वह कलम है जो पाप कर्म को काटकर शुभ कर्म लिख देता है। आपके भाग में ना (नहीं) है उसको भी लिख देता है। आपके संस्कार ठीक कर देता है।
इस तन सराय में जीव मुसाफिर, करता रहे दिमाग रे। रात बसेरा करले डेरा, चलै सवेरा त्याग रे। चलै सवेरा त्याग रे।।
यह जीवन आपका न्यूं (ऐसे) सोच लो एक स्वप्न है और यह नींद जब खुलेगी, मृत्यु होगी, जब आंख खुलेगी। जब यह नींद टूटेगी, सवेरा होगा कुछ नहीं पावैगा (मिलेगा) आपको हाथ में। एक भगत बता रहा था। नाम लेने से पहले मैं रिक्शा चलाया करता। यूं ही कल्पना हुई गाड़ी लूंगा और मैं खूब टींटीं करके चलाया करूंगा। सपना भी वही आ गया। जैसे मैंने बढ़िया गाड़ी ले ली और किराए पर ला रखी है। खूब ज़ोर से चला रहा हूं। बढ़िया रोड (सड़क) है। आगे एकदम ब्रेक मारन लागया ऐसे ज़ोर से पैर मारा और वह फटी पुरानी short (छोटी) रज़ाई थी, उसमें से आर-पार पैर निकल गया। वह भी फाट गई। उठा तब देखा ना कोई कार, ना गाड़ी। उस झोपड़ी में पड़ा हूं। तो बच्चों!
यह सपना-सा जा टूट, उठकर तु मूंड पकड़ के रोवै।
तो यह स्वप्न है। जो तुम टीं टीं करके चल रहे हो। कितने दिन चलोगे?
इस तन सराय में जीव मुसाफिर, करता रहे दिमाग रे। रात बसेरा करले डेरा, चलै सवेरा त्याग रे।। चलै सवेरा त्याग रे।। ऊमदा चोला बना अनमोला, लगे दाग़ पे दाग़ रे। दो दिन की गुजरान जगत में, क्यों जलै बिरानी आग रे। क्यों जलै बिरानी आग रे। कुबुद्ध कांचली चढ़ गई चित पे, तू होया मनुष्य से नाग रे। (ओये होय)
यानी जिसका, जितना सामर्थ्य है। जब तक उसको ज्ञान नहीं है कोई ना कोई ऐसा दुख दे राखेगा दूसरे को। ताकतवर है वचन से, ऐसी गलत बात कह देगा वह निर्बल, दुर्बल, असहाय व्यक्ति की आत्मा रोती रह जाएगी या किसी को लूट लेगा। बड़ा अफसर है, ऐसी कलम चला देगा, मरो चाहे जीयो। कोई अन्यायी जज है, अन्याय कर देगा, मरो चाहे जीयो। तो यहां कहते हैं-
कुबुद्ध कांचली चढ़ गई चित्त पे, तू होया मनुष्य से नाग रे।
आदमी से नाग बन गया, नाग। जैसे दुर्वासा ने श्राप दे दिया, 56 करोड़ यादव मर गए। चुनक ऋषि ने तपस्या करी थी। यह खाक तपस्या थी? तो ऐसे डले वह ढोए और जो आम व्यक्ति है जो भक्ति नहीं करता और कुछ पद प्राप्त है या ताकत है गांव में या शहर में या खेत, अनाज का हिस्सा है। उसको कह रहे हैं गरीब दास जी-
कुबुद्ध कांचली चढ़ गई चित्त पे, तू होया मनुष्य से नाग रे। सूझे नहीं सजन सुख सागर, बिना प्रेम बैराग रे।। बिना प्रेम बैराग रे।। हर सुमरै सो हंस कहावै, कामी क्रोधी काग रे। भंवरा ना भरमै इस विष के बन में, चल बेगमपुर बाग रे।। चल बेगमपुर बाग रे।। शब्द सैंन सतगुरु की पिछानी, पाया अटल सुहाग रे।।
शब्द सैंन- संकेत
शब्द सैंन सतगुरु की पिछानी, पाया अटल सुहाग रे। नितानंद महबूब गुमानी, प्रगट पूर्ण भाग रे।। प्रगट पूर्ण भाग रे।।
हर सुमरै सो हंस कहावै, मर्यादा में रहकर जो भक्ति करता है वह हंस कहलाता है और कामी क्रोधी काग रे। भंवरा ना भरमै, इस विष के वन में। हे आत्मा! जो तू यह नकली सुख लेता फिरता है बकवादों के किते (कहीं) शराब पी ली, किते (कहीं) सुल्फा पी लिया, किते कोठी के लालच में, कार के लालच में दुनिया को लूट रहा है, बकवास कर रहा है। कि
हर सुमरै सो हंस कहावै, कामी क्रोधी काग रे। भंवरा ना भरमै इस विष के वन में,
यह ज़हर का वन है तेरे जीवन को नष्ट कर रहे हैं यह नकली सुख। फिर बताया है, कि
शब्द सैंन सतगुरु की पिछानी।
अपने गुरुदेव का संकेत समझा। सैंन - इशारा और इशारा समझना चाहिए भक्तों को तो क्या हाल होगा? मरने के बाद दुर्गति हो जाएगी। दो दिन का जीवन है। खाक है यह? इसमें माचे माचे फिरो। यह है सैंन और हमने तो खोल कर बता दी। समझदार को तो संकेत प्रयाप्त होता है।
शब्द सैंन सतगुरु की पिछानी, पाया अटल सुहाग रे।
यह है तो कबीर साहेब का शब्द फिर भी चलो जैसा भी है।
नितानंद महबूब गुमानी, प्रगटे पूर्ण भाग रे।
अब सतगुरु से बात शुरू हुई थी। यह नितानंद जी भी कहते हैं कि मेरा महबूब सतगुरु गुमानी दास मेरे कोई अच्छे भाग थे जो मुझे इनका मिलन हुआ।
नितानंद महबूब गुमानी, प्रगटे पूर्ण भाग रे।।
बच्चों! आप इन बातों पर ज़्यादा ध्यान दिया करो, जो सत्संग के अंदर बताई जाती हैं। जो सत्संग है यह एक Teaching (पढ़ाई) है, बच्चे इस Teaching को सुनते हैं ध्यान से। इस पढ़ाई को ध्यान से सुनते हैं, इस पर अमल करते हैं इसका अनुसरण करते हैं जो Teacher (शिक्षक) बताता है क्योंकि टीचर Syllabus (पाठ्यक्रम) से बताता है और सिलेबस से बताया हुआ जो भी ज्ञान है तो उसको Student (विद्यार्थी) ठीक से याद करते हैं, उसका अभ्यास करते हैं तो जब परीक्षा होती है, वह सफल होते हैं। अब यह आपकी जो Class (कक्षा) लग रही हैं, यह उस कबीर भगवान की आप पर एक न्यारी (अलग) रज़ा और है। अलग से हुई है और समय अनुसार जहां भी आवश्यकता पड़ रही है, परमात्मा समय पर अपने बच्चों को उसी तरह वह सुविधा दे रहा है।
आप सत्संग के दौरान बहुत एकाग्रचित से सुना करो। यह समझो कि गुरुजी सामने खड़े हैं, देख रहे हैं। जैसे क्लास के अंदर टीचर खड़ा होता है, पढ़ा रहा होता है, प्रोफेसर पढ़ा रहा होता है। तो बच्चे बहुत सावधानी से और शिष्टाचार से एक-एक बात को ध्यान से सुनते हैं। फिर teaching (पढ़ाई) के बाद अपना सामान्य बातें भी करते हैं। नहाना-धोना, खाना-पीना सारा कुछ करते हैं। खेत का काम भी करते हैं। माता-पिता का हाथ भी बंटाते है। करते हैं, लेकिन जो टीचिंग के दौरान उसने सुना है वह भूला नहीं जाता। वह उनको अलग से कुछ देगा और उसके सुनते सुनते सुनते वह एक दिन Msc (एमएससी), Mtec (एमटेक), Engineering (इंजीनियरिंग), Doctary (डॉक्टरी) पता नहीं क्या-क्या पढ़ाई पढ़कर विद्वान बन जाते हैं। इसी प्रकार आप इस ज्ञान को सुनते रहोगे, सुनना पड़ेगा। अब तो दास सुना रहा है यहां से direct (सीधा), फिर हज़ारों से ज़्यादा सत्संग भर रखें हैं। उनको ऐसे ही सुना करो। एक घंटा अवश्य लगाओ।
दिन में 1 घंटा भी लगाओगे तो भी बहुत कुछ मिलता रहेगा, भूल नहीं पड़ेगी। काल का आपके ऊपर बहुत भयंकर दबाव है, बहुत pressure (दबाव) है। इतना ज्ञान सुनते हो जितना दास चाह रहा है आपके अंदर वह प्रेरणा अभी बनी नहीं है। पर बहुत कुछ बात लवै लगी है। निकट हो और सुनते रहो। यह देखो बहुत बड़ी बात है आप तीन समय सुन रहे हो और यह समय निकालना भी मालिक की कृपा है ना तो काल पता नहीं इस समय को कहां बिरान माटी में (व्यर्थ में) दुर्गति के अंदर लगवा दे। कोई और समस्या खड़ी कर देगा। सारी tension (तनाव) वहीं दिमाग वहाँ घूमता रहेगा या कोई बीमारी हो जाएगी, उसका टेंशन। Hospital (अस्पताल) में पड़े रहेंगे। तो यह परमात्मा की असीम रजा आपके ऊपर है, एक कलम तोड़ कृपा है और यह बातें कहने सुनने की नहीं यह कर पाड़न (दिखाने) की है। ध्यान दो। इस गंदे लोक की स्थिति से आपको पूर्ण रूप से परिचित करा दिया गया है। यहां एक पल का भरोसा नहीं, तुम क्यों आंख बंद करके बैठे हो इस गंदे लोक में? इसी व्यवस्था में उलझे रहोगे क्या?
ठीक है अपने निर्वाह के लिए करना पड़ेगा, करते रहो। पर भगवान की कसक दिल में अलग से रहनी चाहिए आपके। एंवैं (ऐसे) नहीं सुन लिया, हमने सुना दिया, तुमने सुन लिया। थोड़े बहुत मंत्र कर लिए, सुबह, दोपहर, शाम की आरती कर ली अच्छी बात है लेकिन यह कसक पैदा नहीं हुई तो बात फिर अधूरी रह जाएगी। अब क्या बताते हैं -
गरीब, दरस परस नहीं अंतरा, रूमी वस्त्र बीच। पारस लोहा एक डिग, पलटै नहीं अभीच।।
उदाहरण देते हैं कि जैसे कई भक्त ऊपर से इतने परम भक्त दिखाई देते हैं और गुरु जी के कती (बिल्कुल) ज्यों (जैसे) बहुत निकट, बहुत पहुंचे, बहुत अच्छी आस्था वाले हैं। लेकिन इससे बात बनेगी नहीं जब तक दिल से नहीं चाहोगे गुरुदेव को और मालिक को। एक उदाहरण दिया है कि-
दरस परस नहीं अंतरा, रूमी वस्त्र बीच।
पारस एक पत्थर होता है लोहे को Touch (स्पर्श) करते ही सोना बना देता है, ऐसे छूते ही और कहते हैं लोहे और पारस साथ-साथ रखे हैं। यदि एक रूमी वस्त्र, एक रूमी वस्त्र, बाल जितना पतला कपड़ा। यदि इतना भी बीच में gap (खाली स्थान) रह गया पारस पत्थर और लोहे के, कितने ही दिन रखा रहो उसमें कोई change (परिवर्तन) नहीं होगा। कोई परिवर्तन नहीं होगा। इसी प्रकार अपने गुरु और भगवान के प्रति जब तक आपकी आस्था कती (बिल्कुल) दिल से नहीं जुड़ेगी, बिल्कुल दिल से वह कसक आपको अपने आप महसूस होगी कि इस संसार में आपका कोई नहीं है। जितना भी परिवार, रिश्तेदारी है यह हमारे संस्कार पूर्व जन्म के लेनदेन, यह ऋण उलझा पड़ा है। इस ऋण को भी अब दाता आसानी से सुलझाएगा।
आपको पता भी नहीं लगने देगा। आपके संस्कार चेंज करेगा। आपके संस्कार बदल देगा। करेगा उसके जो दिल से जुड़ जाएगा। तन-मन-धन, मन-कर्म-वचन से मालिक पर समर्पित हो जाएगा। आपको प्रमाण देता हूं जैसे बेटा है, बेटी है यह हमारे कुछ पिछले संस्कार कोई ऋण हैं। जैसे आजकल बेटी का विवाह करना पड़ता है कितना खर्च होता है। आपको बताता हूं, एक व्यक्ति कह रहा था। न्यों (ऐसे) बोला मेरे तीन कन्या हो गईं और हमारे यहां तो बहुत खर्च करते हैं। विवाह पर तो खर्च करे ही करें। 10-20 लाख तो कम से कम हैं और फिर लड़की को बालक होता है तो अपने घर बुलाते हैं मां के घर और उसके ऊपर फिर कम से कम 10 लाख रुपए यह खर्चा और होता है। यह एक ब्याह (विवाह) और होता है हमारे यहां। यह ऐसी परंपराएं हमने आप सिर पर रख रखी हैं और भी दूसरे समाजों मे देख लो बहुत खर्च होते हैं और लड़की को हमने अपने आप बोझ बना रखा है।
बच्चों! अब परमात्मा ने कैसी कृपा की है। दास ने मालिक का आदेश और गुण-अवगुण सारे clear (साफ) कर दिए कि भाई ऐसा करने से ऐसी हानि। यह करने से ऐसे लाभ। अब जैसे उदाहरण दिया आपको बच्चों का विवाह करने के लिए प्रारंभ के अंदर, श्रीदेवी पुराण के अंदर लिखा है कि देवी ने अपने तीनों पुत्रों की शादी ऐसे simple way (साधारण तरीका) से की। वचन से। तीन पुत्री उत्पन्न की। तीन वह पुत्र पहले हो रहे थे। वह वचन से पैदा की। वह अपने सांसारिक क्रिया से पैदा किए और तीनों को बुला-बुला कर कह दिया ले बेटा! यह तेरी पत्नी, यह तू इसका पति जाओ अपना घर बसाओ। ना कोई बराती था। ना कोई भाती था। ना कोई कढ़ाई चढ़ाई, ना बाजे बजाए।
यह बाद की बकवाद शुरू कर दी। संस्कार ऐसे जोड़ दिए जाते हैं। तो अब हम इसी तरह कर रहे हैं और पता नहीं कई हज़ार बेटियों का विवाह ऐसे simple way (साधारण तरीके) से कर दिया। यह संस्कार बदल गए। यह लेन-देन कर्ज़ मालिक ने कलम से काट दिया और आप बच्चों ने भी इस बात को एहसास कर लिया कि सचमुच यह व्यर्थ की बकवाद है। एक पवित्र नाते को, बेटी को, गऊ कैसा धन होती है बेटी। मां बाप के रहेगी वहां कमावे। आगे जाएगी वहां उसको ऐसे सारे तान कर राखैं कुछ दिन तो और कभी ना नहीं करती। तो ऐसी पवित्र आत्मा को अपने लेन-देन कर्ज के कारण हमने दुश्मन बना रखी थी। पेट में मारने लाग गए गर्भ के अंदर। “अब बेटी बोझ नहीं” परमात्मा की कृपा से। तो यह संस्कार बदल गए। यह कलम से काट दिये दाता ने। वह लेन-देन खत्म कर दिया अपना। अब हम भक्ति करेंगें। अब भी जो लोग भक्ति नहीं करेंगे और इन बकवादों में रहेंगे। मालिक ने इतने हल्के कर दिए। तो उनको भगवान कैसे पसंद करेगा?
तो बच्चों! अब इस समय को संभालो और इस परमात्मा की समर्थता से परिचित हो जाओ। इस गंदे लोक ने (को) अच्छी तरह समझ लो। यहां तुम नहीं रह पाओगे और एक अंदर कसक बनाए राखो अलग कि ठीक है, जब तक यहां हैं खूब परिवार में मिल-जुल कर रहो और सबको अपने मालिक की बातों में उलझा कर रखो और गप्पे कम मारो और गप्पे मारने की बकवाद बेमतलब की है। अपना जब ही टाइम लगे अपने मालिक की चर्चा शुरु करदे। कोई कथा देख ले। कोई वैसे भाई-बहन की चर्चा करो देखो उनको इतना दुख था मालिक की दया से इतना सुख हो गया। इससे यह मन के लगाम डली रहेगी। यदि तुम सत्संग सुनने के बाद फिर बाद में वहीं अपने गृहस्थी और बेतुकी बातें करते हो, फोन पर बैठकर करते रहते हो। फलाने से मिल ले, धकने कर ले। तो इनसे मालिक राजी नहीं होगा। आपको कष्ट शुरू हो जाएगा।
गरीब, स्वर नाद न देह दिल, तन मन नहीं मुकाम। कौन महल हंसा गए, कहां लिया विश्राम।। गरीब, चार मुक्ति बैकुंठबट, सप्त पूरी सैलान। आगे धाम कबीर का, हंस ना पावै जान।।
अब क्या बताते हैं कि यह जैसे चार मुक्ति बैकुंठ, सप्तपूरी, ब्रह्म लोक, काल का 21 ब्रह्मांड का क्षेत्र लोक, अक्षर पुरूष का सात संख ब्रह्मांड का लोक, इन सबसे परे कबीर भगवान का स्थान है।
गरीब, चार मुक्ति बैकुंठबट, सप्तपुरी सैलान। आगे धाम कबीर का, हंस ना पावै जान।।
की वहां सामान्य साधना से या काल तक की भक्ति से वहां नहीं पहुंचा जा सकता। उसके लिए क्या बताते हैं इस परमपिता परमात्मा की शरण में आना होगा, कबीर साहेब की शरण में।
गरीब, काया काशी मन मगहर, दोहूं के मध्य कबीर। काशी तज मगहर गया, पाया नहीं शरीर।। गरीब, काया काशी मन मगहर, अर्श कुर्श बीच मुकाम। जहां जुलैदी घर किया, आदि अंत विश्राम।।
बच्चों! परमात्मा कहते हैं कि वह जुलाहा सतलोक में निवास करता है और वहां जाने के लिए आपको पूर्ण गुरु की आवश्यकता पड़ती है और अपने मन का दोष दूर करना होगा। जैसे नाम भी ले लिया और खूब सेवा भी करते हो। भक्ति भी करते हो, अच्छी बात है और मन में वही उठा-पटक और दोष-द्वेष, लालच-लोभ भरा है तो क्या भक्ति करी?
एक समय की बात है गोपीचंद तथा भरथरी यह दोनों राजा थे और राजाओं के पास कोई कमी नहीं होती धन की। सारा सुख होता है पैसे, हीरे, मोती, लाल। परमात्मा पाने के लिए उस सारे सुख को छोड़कर और गोरखनाथ जी के शिष्य बन गए। कती (बिल्कुल) त्यागी वैरागी हो गए। तन पर एक लंगोट राखें। हाथ में करमंडल, जैसा उनकी वेशभूषा होती है वह रखते। एक दिन गोपीचंद और भरथरी जा रहे थे रात्रि में। चांद की रोशनी अच्छी थी। किसी ने रस्ते में पान खाकर थूक रखा था और उसका बुलबुला-सा बन गया। यह दोनों वहां जा रहे थे तो चांद की रोशनी में वह बुलबुला-सा चमकया।
भरथरी को लगा कि यह लाल पड़ा है। लाल - हीरा। उसने एकदम उस पर हाथ मारा उठाने के लिए, उसका हाथ धंस गया थूक में और गोपीचंद हसै। गोपीचंद बोले, नाथ जी क्या मिल गया ऐसा? कैसे बैठ गए चलते-चलते? हाथ न्यों (ऐसे) बोला अरे! थारा (तुम्हारा) गजब होइयो। बोला किसी ने थूक रखा था। मैंने सोचा लाल है। गोपीचंद बहुत हंसया। न्यों (ऐसे) बोला जी लाल छुटे नहीं अभी तक? बोला भाई यह मन बड़ा निकम्मा है। मैंने सोचा उठा ले यहां पड़ा क्या काम आएगा? कहीं भंडारे करेंगें खर्च कर देंगे। ऐसे बोला ठीक है। तो गरीब दास जी कहते हैं। एक उदाहरण और देते हैं गरीब दास जी।
गरीब बेरा सांटै बेचिया, बैरागर सुल्तान। मालिन को जाना नहीं, बेबुद्धि खैंचातान।। गरीब, सेर बेर पलड़ै चढ़े, एक पड़ा भौ मांही। मालिन और सुल्तान कूं, हिलकारे ले जांही।। ढाई लाख की पावड़ी, एक पैसे का बेर। देख अधम सुल्तान कूं, कैसी डारी मेर।।
कहते हैं, देख ढाई लाख की जूती थी। जिसमें लाल और हीरे, पन्ने जुड़े हुए थे और एक पैसे का बेर। यानी मालिन ने कहा कि बेर जो है ढाई आने का सेर दूंगी। दो आने के सेर। भूख लाग रही थी सुल्तान अधम को जब घर छोड़कर चला और सब त्याग दिया थे, कंबल लपेट रखी थी। साल (शाल) सा शरीर पर और जूती पहन रहा था, वह एक कीमती। भूखा मरै था तो उसने कहा मुझे बेर दे दे और यह दोनों जूती रख ले तू। यह ढ़ाई लाख कीमत है इसकी। वह दो आने के बेर एक सेर तुलवा लिये और जूती रख दी। तोलते समय एक बेर पालड़े से नीचे गिर गया। तराजू से। सुल्तान ने उठाया फटदे (जल्दी) से और मालिन ने उसके ऊपर हाथ रख दिया कि मेरा है। सुल्तान कहे मेरा। अब परमात्मा कहते हैं-
यह देख अधम सुल्तान ने, कैसे छोड़ी मेर।।
यानी क्या लालच छोड़ा? अरे! लालच तो न्यों (जैसे) का न्यों (तैसा) रखे बैठा है तू तो अंदर मन में वह बकवाद। बता यह नहीं विचार किया कि ढ़ाई लाख की पावड़ी जूती डाल दी। एक पैसे के बेर के ऊपर क्यों बकवाद कर रहा है? तो यह सारा दोष आपने निकालना पड़ेगा। इतना ऊंचा उठाना पड़ेगा अपनी बुद्धि को। सांसारिक लोगों की तो वृत्ति ऐसी होती ही है। पर सब कुछ त्याग कर। तब परमात्मा कहते हैं उसको एक लगाया थप्पड़। असली रूप में आ गए। बोला भले आदमी! क्या राज त्यागा तूने? तू तो राज अंदर ही लिए फिर रहा है। अपनी भूल का एहसास हुआ। महाराज बहुत नीच है यह मन। देख कितनी बकवाद भरी है। बहुत बड़ी गलती हो गई। दाता! दया करो।
तो बच्चों! इस प्रकार आपने भी थोड़ा-सा ऊंचा उठना पड़ेगा। परमात्मा के लिए छोटी-मोटी बातों पर अड़ंगा नहीं अड़ाना चाहिए। सांसारिक लोगों की रीती कैसी ही हो पर अपने धर्म नीति को आगे रखे। उसके कारण आप ऊपर उठ जाओगे।
गरीब, नौलख नानक नाद में, दस लख गोरख तीर। लाख दत्त संगी सदा, चरणों चर्च कबीर।। गरीब, नौलख नाद में, दस लाख गोरख पास। अनंत संत पद में मिले, कोटि तरे रविदास।। गरीब, रामानंद से लक्ष्य गुरु, त्यारे शिष्य के भाए। चेलों की गिनती नहीं, पद में रहे समाए।। गरीब, खोजी खालिक को मिले, ज्ञानी के उपदेश। सतगुरु पीर कबीर है, सब काहू उपदेश।। गरीब, दुर्वासा और गरुड़ से, कीन्हां ज्ञान समोद। अरब रामायण मुख कहीं, बाल्मिक कूं शोध।।
परमात्मा, जो भी भक्ति पर लगे हुए हैं उनको अपने बच्चों को सबको मिलता है। दुर्वासा से मिले, गरुड़ से मिले, कागभूषण्ड से मिले, शिवजी से मिले, विष्णु जी से मिले, ब्रह्मा जी से मिले सबको मिलते हैं। देवी जी से मिले। यह नहीं छोड़ते किसी को भी। हमारी बुद्धि काल ने कती (बिल्कुल) घुमा रखी है। यह बात हमारे समझ में आई ही नहीं। अब क्या बताते हैं कि वाल्मिक के रूप में पांडवों की अश्वमेघ यज्ञ में परमात्मा ने कैसा कमाल किया।
गरीब, फिर पंडौं की यज्ञ में, शंख पंचायन टेर। द्वादश कोटि पंडित जहां, पड़ी सबन की मेर।।
यानी सबकी मरोड़ (अकड़) निकल गई। जब पांडवों की अश्वमेध यज्ञ में परमात्मा ने सुपच रूप में वाल्मीक रूप में जाकर शंख बजाया। उसमें 12 करोड़ पंडित बैठे थे।
गरीब, 33 कोटि यज्ञ में आए, सहंस अठासी सारे। द्वादश कोटि वेद के वक्ता, सुपच का शंख बजा रे।।
कहते हैं पांडवों की यज्ञ में 33 करोड़ देवता, 88 हज़ार ऋषि और 12 करोड़ वेद के कंठस्थ याद करने वाले daily (प्रतिदिन) पढ़ने वाले पंडित वहां थे। उनसे वह काम सिद्ध नहीं हुआ और सुपच, उस हरिजन शुद्र बाल्मिक से वह शंख बजा। यानी भक्ति। यह बताते हैं मनुष्य जीवन प्राप्त करके जाति से कोई लिंक नहीं मालिक का, ना किसी मजहब धर्म से। वह परमात्मा की भक्ति सच्ची हो उससे सब कुछ प्राप्त होता है।
गरीब, फिर पंडौं की यज्ञ में, शंख पंचायन टेर। द्वादश कोटि पंडित जहां, पड़ी सबन की मेर।।
गरीब, करी कृष्ण भगवान कूं, चरणामृत से प्रीत। शंख पंचायन जब बजा, लिया द्रौपदी सीख।।
कहते हैं उस वाल्मिक के चरण धोकर श्री कृष्ण जी ने पिया और द्रौपदी ने पिया जब जाकर शंख बजा।
गरीब, द्वादश कोटि पंडित जहां, और ब्रह्मा, विष्णु, महेश। चरण लिए जगदीश कूं, जिसको रटता शेष।।
गरीब दास जी कह रहे हैं कि 12 करोड़ पंडित थे वहां पर , ब्रह्मा, विष्णु, महेश और कृष्ण जी ने उस वाल्मिक के चरण छुए चरणामृत पिया, जिसको शेषनाग भी जिसकी पूजा करता है। इनके सबके चौंध (धोखा) लाग रही है। शेषनाग भी श्री कृष्ण को भगवान मान रहा, विष्णु जी को और ईब आपको पता है भगवान है कौन? तो जैसे भी जिसको तुम संपूर्ण शक्ति मान बैठे हो उससे भी काम ना बना और एक वाल्मिक छोटी जाति वाले से और वह शंख बज गया। अनमोल काम हुआ।
अब बच्चों! यह विचार करो कि जिनको हम भगवान मानते थे, यह सारे फेल हो गए परमात्मा कबीर जी के सामने। कहते हैं -
गरीब, द्वादश कोटि पंडित जहां, और ब्रह्मा विष्णु महेश। चरण लिए जगदीश ने, जिसको रटता शेष।।
गरीब, बाल्मीक के बाल सम, नाहीं तीनों लोक। सुरनर मुनिजन कृष्ण समेत, पंडौं पाई पोख।।
बच्चों! यह आप महाभारत में भी सुना करते पहले हम खूब और यह कहा करते, प्रश्न तो उठा ही करते कि भई श्री कृष्ण जी से शंख नहीं बजा और उस वाल्मिक सुपच सुदर्शन से कैसे बज गया? तो वह हमारे धर्मगुरु जैसा उत्तर देते हम उसे सच्चा मान लिया करते कि यह सत्य है, क्योंकि स्वयं ज्ञान नहीं था। वह कहा करते थे कि सुदर्शन उनका परम भक्त था। भगवान अपने भक्त को महिमा देते हैं। यह तो अब आवे दिमाग में। 33 करोड़ देवता, 88 हज़ार ऋषि, ब्राह्मण 12 करोड़ क्या उनमें उसका कोई भक्त नहीं था? श्री कृष्ण ने खा ली रोटी। शिवजी ने खा ली, ब्रह्मा जी ने भोजन पा लिया। यह तो अब आवे बात समझ में यह कहानी क्या थी। तो यह तत्वज्ञान था। यह उलझा रखा था। नौ मन सूत। कबीर साहब कहते हैं-
नौ मन सूत उलझिया, ऋषि रहे झक मार। सतगुरु ऐसा सुलझा दे, उलझे ना दूजी बार।।
अब यह नौ मन सूत सुलझ गया। अब इस कलयुग में तो यह उलझेगा नहीं। तो बच्चों! अजब गजब कर दिया दाता ने, आपके ऊपर कलम तोड़ दी। ऐसा निर्णायक अध्यात्म ज्ञान आपको प्राप्त करवा दिया। देखो आप शिक्षा ग्रहण करते हो अच्छी बात है। इंजीनियरिंग कर ली, डॉक्टर बन गए। IAS, IPS बन गए या कोई और टीचर लाइन में चले गए। यह तो सिर्फ एक रोज़ी रोटी का काम है बस। इससे और कोई ज़्यादा लाभ नहीं होने का और यह रोज़ी रोटी भी सबको नहीं मिलती। पढ़ते तो पता नहीं कितने हैं, शिक्षा ग्रहण करते हैं, बच्चे। यह शिक्षा आपको इसलिए दिलाई है परमात्मा ने कि आप कल्याण करवा लो, नहीं तो परमात्मा कबीर, गरीब दास जी ने बताया है -
कोटि जन्म तुझे भरमत हो गए, कुछ नहीं हाथ लगा रे। कुकर सूकर खर भया बौरे, कौवा हंस बुगा रे।। कोटी जन्म तूं राजा कीन्हां, मिटी ना मन की आसा। भिक्षुक होकर दर-दर घूमा, मिला ना निर्गुण रासा।। इंद्र कुबेर ईश की पदवी, ब्रह्मा वरुण धर्मराया। विष्णुनाथ के पुर कुं जाके, तू फिर अपूठा आया।।
अब ठीक है तुम इसी को फाइनल मान बैठे। बहुत अच्छा पढ़ गए बेटा-बेटी बहुत बढ़िया नौकरी लग गई। वाह वाह वाह और यह कहे ..
इंद्र कुबेर ईश की पदवी, ब्रह्मा वरुण धर्मराय। विष्णुनाथ के पुर को जाके, फिर भी वापस आए।।
गरीब, तीन लोक का राज, जै जीव को कोई देय। लाख बधाई क्या करें, जै नहीं नाम से नेह।।
एक छोटी-सी पोस्ट या पद या मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री बन गया। छोड़ दें इन गल्ला ने (बातों को) कुछ ना धरा (रखा) इन बातों में। एक कौड़ी का जीव नहीं जिसके पास सच्ची भक्ति नहीं। आपके ऊपर जो मालिक ने कृपा कर दी पुण्य आत्माओं! आप सामान्य आत्मा नहीं हो। दास को 27 साल हो गए यही आवाज़ यही परमात्मा की महिमा का गुणगान करते-करते। परमात्मा का कुत्ता हूं। उसका निर्देश है, आदेश है इसलिए आप धनियों (सेठों) को जगा रहा हूं। भौंक रहा हूं और कुत्ता जब भौंकता है तो मालिक को समझ लेना चाहिए कोई आपत्ति है। उठ कर जागना चाहिए। इधर-उधर देखना चाहिए। अपना धन संभालना चाहिए। आंखें खोल लो। कुर्बान हो जाओ। यह बार-बार दास जो कह रहा है कोई मूर्ख नहीं। मुझे कोई स्वार्थ नहीं आपसे। लेकिन आपका भविष्य आपकी दुर्गति खड़ी दिखाई देती है दास को।
आपकी ऐसी दुर्गति असंखों बार हो ली। कुत्ते, गधे, सुअर बनकर धक्के खाए हमने और अब भी डर नहीं लगता? अब तो यह नशा उतर जाना चाहिए आप लोगों का। क्या यह मैं बोले जाऊं तुम सुने जाओ या भेड़ वाली बीन मत बनाना इसको। इस पर कुर्बान हो। जकड़े जाओ मालिक के साथ। लिपट जाओ। कुर्बान हो जाओ। यह कहन-सुनन की बात नहीं कर पाड़न (दिखाने) की है। क्या गरीब दास जी मूर्ख थे इतना मोटा ग्रंथ लिखा? क्या भगवान को कोई लालच था आपसे जो 120 वर्ष तक हमारे बीच में इस गंदे लोक में कष्ट उठाया। आप उसके बच्चे हो। आप उसकी आत्मा हो। वह हमारा बाप है, हमारी मां है। वह सब कुछ है। वह भाई है, वही बहन है।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधु च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या च द्रविणं त्वमेव।
विद्या और धन दाता तु ही है मेरा।
त्वमेव मम सर्वमं देव देव।
हे देवो के देव! हे मालिकों के मालिक! मेरे तो आप ही सब कुछ हो, यह भाव हो बच्चों तुम्हारा। यह वह पिता है, यह बाप भी यही है। मां भी हमारा यही है, यह हमारा भाई भी यही है। सच्चा साथी, सखा, फ्रेंड भी यही है अगर विचार करोगे तो। जिनके ऊपर मुंह धोये बैठे हो जिनके ऊपर तुम सहारा मान रहे हो। चाहे आपका प्रधानमंत्री मित्र है, प्रधानमंत्री ही मर जाता है क्या सहारा था उसका? खुद मौत हो गई। क्या रक्षा की प्रधानमंत्री ने? और यह परमात्मा यहां भी साथी, संसार छोड़कर जाओगे बच्चों तो भी साथी। ऐसे साथी को भूलकर आंख बंद करके बैठे हो। खोल लो इन आंखों को। खोल लो बच्चों! मर मिटो इस मालिक को पाने के लिए। परमात्मा आपको सद्बुद्धि दे। आपको इस गंदे लोक की याद सदा बनी रहे। आपका भविष्य नरक बनने से बचे। आपको मोक्ष दे दाता।
।। सत साहेब ।।
FAQs : "विशेष संदेश भाग 11: अध्यात्म मार्ग में हंस और कौवे के बीच अंतर"
Q.1 इस लेख के अनुसार मनुष्य का असली घर कहां है?
मनुष्य का असली घर सतलोक यानी अमरलोक है जो स्वर्ग और नरक से भी ऊपर उत्तम निजस्थान है। वहां जाने के बाद मनुष्य जन्म-मरण के चक्र से सदा के लिए मुक्ति पा लेता है। इस स्थान के बारे में परमेश्वर कबीर साहेब जी स्वयं बताते हैं।
Q.2 आत्मा को कुत्ते, गधे और सूअर जैसे प्राणियों के जीवन क्यों मिलते हैं?
सच्ची भक्ति न करने के कारण अगला जन्म कुत्ते, गधे और सूअर जैसे प्राणियों का जीवन मिलता है जिसमें दुख और तकलीफ पिछले पाप कर्मों के कारण होता है।
Q. 3 मानव जीवन अनमोल क्यों है?
मानव जीवन अनमोल इसलिए है क्योंकि यह चौरासी लाख योनियों को भोगने के बाद केवल एक बार मिलता है। मनुष्य जीवन में ही व्यक्ति सच्ची भक्ति करके मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
Q.4 एक भक्त के जीवन में सतगुरु का क्या महत्त्व है?
एक सच्चा सतगुरु भक्त को आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष प्राप्ति का सही मार्ग बताता है। सतगुरु ही भक्त को भौतिक धन के लालच और इच्छाओं को सहजता से त्यागने का ज्ञान भी देता है।
Q.5 क्या आध्यात्मिक शिक्षाओं का जीवन पर स्थायी प्रभाव पड़ता है?
आध्यात्मिक शिक्षाओं का जीवन में स्थायी प्रभाव अवश्य पड़ता है। शिक्षाओं को जीवन में अपनाए बिना केवल जानने से आध्यात्मिक मार्ग में सफलता नहीं मिल सकती। सभी मनुष्यों को तत्वदर्शी संत का सत्संग सुनना चाहिए, अपने गुरु की बताई शिक्षाओं पर चलना चाहिए और अपने दैनिक जीवन में उन्हें शामिल करना चाहिए।
Q.6 हंस का व्यवहार कौवे से अलग कैसे होता है?
हंस की तुलना एक सच्चे भक्त से की गई है क्योंकि उसने आध्यात्मिक ज्ञान और नकली ज्ञान तथा सत्य और असत्य के बीच के अंतर को जान लिया है। जबकि कौवे की तुलना एक सांसारिक व्यक्ति से की गई है क्योंकि वे भौतिक सुखों और इच्छाओं के पीछे भागता रहता है और आध्यात्मिक ज्ञान नहीं जान पाता।
Q.7 सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान से जीवन में कठिनाइयों पर विजय पाने में सफलता कैसे मिलती है?
सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान से जीवन के उद्देश्य और सांसारिक चुनौतियों का सामना करने का मार्ग प्राप्त होता है। इससे साधक को यह भी यकीन होता है कि वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
Q.8 जीवन के हर क्षण में ईश्वर को याद क्यों रखना चाहिए?
ईश्वर को सदैव याद रखना चाहिए ताकि हम अपने मनुष्य जीवन के उद्देश्य के साथ जुड़े रहें और भौतिक इच्छाओं का खत्मा हो सके। ईश्वर को सदैव याद रखने वाले, अपने भक्त को ईश्वर अपने से कभी दूर नहीं होने देता और उसकी पल पर रक्षा करता है।
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Ananya Sharma
जब भी मैं कबीर साहेब जी की वाणी पढ़ती हूं, तो मैं उनके प्रति आकर्षित क्यों हो जाती हूं? मुझे उनकी वाणी से बहुत गहरा जुड़ाव महसूस होता है। यह लेख भी मेरी आत्मा से जुड़ चुका है। लेकिन मैं इस लेख में कबीर जी को भगवान के रूप में बताए जाने पर बहुत परेशान हूं।
Satlok Ashram
अनन्या जी, आप जी ने हमारे लेख को पढ़कर अपने विचार व्यक्त किए, उसके लिए आपका हार्दिक धन्यवाद। अनन्या जी सच्चाई यह है कि कबीर साहेब जी ही वास्तव में सर्वशक्तिमान ईश्वर और हम सभी आत्माओं के जनक हैं। हमारे पवित्र शास्त्रों में भी प्रमाण है कि कबीर साहेब जी सर्वोच्च भगवान हैं। यही कारण है कि आप कबीर साहेब जी की वाणियों की ओर आकर्षित महसूस करते हैं क्योंकि उनकी वाणियों में संपूर्ण सत्य निहित है। अधिक जानकारी के लिए आप आध्यात्मिक पुस्तक “ज्ञान गंगा” पढ़िए। आप तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को यूट्यूब चैनल पर भी सुन सकते हैं।