विशेष संदेश भाग 10: करनी बिना कथनी का अंग


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सत साहेब।।

सतगुरु देव की जय।

बंदी छोड़ कबीर साहेब जी की जय।

बंदी छोड़ गरीबदास जी महाराज जी की जय।

स्वामी रामदेवानंद जी गुरु महाराज जी की जय हो।

बंदी छोड़ सतगुरू रामपाल जी महाराज जी की जय।

सर्व संतों की जय।

सर्व भक्तों की जय।

धर्मी पुरुषों की जय।

श्री काशी धाम की जय।

श्री छुड़ानी धाम की जय।

श्री करौंथा धाम की जय।

श्री बरवाला धाम की जय।।

सत साहेब

गरीब नमों नमों सत्पुरुष कुं, नमस्कार गुरु किन्हीं। सुर नर मुनि जन साधवां संतों सर्वस दिन्हीं।।

सतगुरु साहेब संत सब, दंडोत्तम प्रणाम। आगे पीछे मध्य हुए, तीन कुं जा कुर्बान।

कबीर सतगुरु के उपदेश का, सुनिया एक विचार। जै सतगुरु मिलते नहीं, जाते नरक द्वार।।

नरक द्वार में दूत सब, करते खैंचांतान। उनसे कबहूं नहीं छूटता, फिरता चारों खान।।

कबीर चार खानि में भरमता, कबहूं ना लगता पार। सो फेरा सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।।

जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से रहियो, अमरपुरी के डेरे की।।

जय जय सतगुरु मेरे की, जय जय सतगुरु मेरे की। सदा साहिबी सुख से रहियो, सतलोक के डेरे की।।

निर्विकार निर्भय तू हीं और सकल भयमान। ऐजी साधो और सकल भयमान।

सब पर तेरी साहेबी, सब पर तेरी साहेबी। तुझ पर साहब ना। निर्विकार निर्भय।।

परमपिता परमात्मा परमेश्वर कबीर जी की असीम रजा से बच्चों! आपको आपके घर का ज्ञान हुआ सतलोक का। काल के षड़यंत्र से परिचित हुए। एक बात विशेष ध्यान से सुनो और इसको अपने हृदय में बैठाओ। बच्चों! जो यह परमात्मा की कृपा हो रही है न अब आज यह वैसे नहीं हुई और कहां से क्या हो रही है, काल ने तो जो ज़ुल्म करना था हमारे साथ वह कर दिया। लेकिन गरीब दास जी कहते हैं परमात्मा ऐसे रक्षा करता है अपने बच्चों की जैसे महाभारत के युद्ध में जहां अग्निबाण छूटै थे, सुदर्शन चक्र चालै (चले) थे और एक टटीरी के अंडे वह सुरक्षित रख दिए। कारण कुछ भी बनाया। तो बच्चों! आज जो आपको परमात्मा यह संदेश दे रहा है, यह कोई सामान्य बात नहीं है। अब जैसे आप स्कूल जाते हो टीचर आपको पढ़ाता है, आप स्कूल में जाते हो छुट्टी हो जाती है उस दिन तो मौज मचाते हैं बच्चे बड़े खुश होते हैं वाह वाह। तो इसका मतलब यह है कि स्कूल में जाना compulsory (अनिवार्य) तो है लेकिन खुशी वाली बात नहीं होती। खुशी होती है जिस दिन छुट्टी हो जाए। लेकिन जैसे-तैसे उस काम को भी हम करते रहें, जाते रहें टीचर प्रतिदिन हमें सतर्क करता है ध्यान से सुनो, बैठ जाओ, लाइन में बैठो, जो मैं कह रहा हूं इधर ध्यान दो। तो हम सतर्क हो कर बैठते हैं और उनकी एक-एक बात को सुनते हैं। वह अपना Lecture (भाषण) देकर जाता है हम उछल-कूद मचाते हैं।

कोई बात नहीं वह भी करो। लेकिन यह जो सुना था यह भी खाली नहीं जाता। यह जो Teacher (शिक्षक) ने बताया वह भी हृदय में अलग से जगह बनाता चला गया और बाकी जो क्रिया क्रम खेलना-कूदना काम करना भई वह भी हम करते रहे। इसी प्रकार बच्चों! वह ऐसे बच्चे पढ़ते-पढ़ते और इतनी गजब की विद्या प्राप्त कर ली। वह टीचर से ही सुनकर वह ज्ञान ग्रहण हुआ। जिसके कारण आज उसको बड़ी अच्छी नौकरी मिली और कोई व्यवसाय में उसका सहयोग मिला। इसी प्रकार जो Daily (प्रतिदिन) आपको सत्संग सुनाया जा रहा है यह इसलिए मालिक ने दया करी कि तुम Daily (प्रतिदिन) सत्संग सुनते नहीं थे। आपने यह मान लिया था कि हमने सारा ज्ञान हो गया बस।

आरती कर ली सुबह, शाम, दोपहर की। मंत्र कर लिए that’s all (बस इतना ही)। यह सारा करते-करते भी इस ज्ञान का हृदय में एक विशेष अलग से प्रकाश होना चाहिए। रहना चाहिए साथ ही साथ तब वह भक्ति सुरक्षित रहेगी नहीं तो यह मन कभी ना कभी आपको फिर से डगमग कर लेगा। तो बच्चों! जो यह आपको ज्ञान दिया जा रहा है यह उस परमपिता कबीर बंदी छोड़ की एक विशेष वीटो पावर विश्व में न्यारी वह कृपा है आपके ऊपर और यह एक नया ऐसा System (व्यवस्था) दे दिया बंदी छोड़ ने घर बैठे मलिक का प्रचार सुनो। अरे घर बैठे चारपाई पर बैठे-बैठे, सर्दी हो तो रज़ाई में बैठे-बैठे। हे भगवान! ऐसे दयालु, ऐसे दीनदयाल! हमें इतना सुख देते हैं और स्वयं इस गंदे लोक में 120 वर्ष रहे एक झोंपड़ी के अंदर टाइम पास किया। वह जो करते हैं उसमें कोई चूक नहीं छोड़ते, वह पूरे हीरो हैं पूरे अभिनय करने वाले अभिनेता हैं। जिस भी अभिनय के लिए वह आते हैं, बिल्कुल इतनी भी चूक नहीं छोड़ते। आज तक उसको जुलाहा, धाणक और कवि मानकर फाइनल कर रखा था। He was God, He is God और Remain God. वह परमात्मा था, आज भी हैं, आगे भी यही हैं। Nothing else इसके अतिरिक्त कुछ नहीं है। यह तो अब ज्ञान हुआ जब हमने परमात्मा को सारे ग्रन्थों से, आंखों देखे महापुरुषों ने जिन्होंने भगवान देखा ऊपर जाकर। उनके विचारों से, उनकी अमृतवाणियां एफिडेविट से आपको सिद्ध कर दिया कि वह काशी वाला भगवान कबीर भगवान है। वह जुलाहा।

गरीब अनंत कोटि ब्रह्मांड का, एक रति नहीं भार। सतगुरु पुरुष कबीर हैं, यह कुल के सृजन हार।। गरीब सब पदवी के मूल हैं, सकल सिद्धि हैं तीर। दास गरीब सतपुरुष भजो, अविगत कला कबीर।।

अनंत कोटि ब्रह्मांड का रचने वाला कबीर भगवान है रचने वाले।

अनंत कोटि ब्रह्मांड का एक रति नहीं भार।।

यानी इतने सारे ब्रह्मांड रचकर उनको ऐसे हवा में उड़ा रखा है जैसे वैज्ञानिक हवाई जहाज बनाकर रॉकेट बना करके जैसे चांद पर जाते हैं और गए हैं वहां पर। आदमी बैठे चले गए वह अपने आप चल रहा है। इसी प्रकार परमात्मा ने सारे ब्रह्मांडों की रचना करके आप(स्वयं) आराम से घूम रहे हैं इसके अंदर सारों पर।

अनंत कोटि ब्रह्मांड का, एक रति नहीं भार। सतगुरु पुरुष कबीर हैं, यह कुल के सृजनहार।। सब पदवी के मूल हैं, सकल सिद्धि हैं तीर। दास गरीब सतपुरूष भजो, अविगत कला कबीर।।

कि उस परमात्मा के ऊपर के पास सारी सिद्धियां हैं असंख सब सिद्धि। यहां तो आठ सिद्धि और नौ निधि, यह ऋद्धि और सिद्धि इतनी हैं बस इनके पास और इस भक्ति से, हमारी भक्ति से, सच्चे नाम से, सतनाम से आपको 24 सिद्धियां प्राप्त हो जाएंगी, चौबीस। लेकिन इन सीद्धियों की तरफ देखना भी नहीं है। इनका प्रयोग भी नहीं करना है।

कबीर साहेब, गरीबदास जी कहते हैं

शब्द महल में सिद्ध चौबीसां, हंस बिछोड़े बिसवे बीसा।। चौबिसों को ना मन चाहवे, सो हंसा सतलोक सिधावैं।।

जो इन 24 सिद्धिओं को भी नहीं चाहे वह सतलोक जाएगा।

यहां एक

सिद्धि सब सागर पीवैं।

वह अगस्त ऋषि ने प्राप्त कर ली। आज तक गुण गावैं हैं। सारे, सारे समुद्र को पी लिए वाह वाह वाह।

एक सिद्धि बहु जुग जीवैं। एक सिद्धि तन हंस न्यारा। एक सिद्धि जल पैर ना लाई। एक सिद्धि आकाशे उड़ जाई।

सुखदेव ऋषि के पास एक सिद्धि थी, आकाश में उड़ने की। उसी में चौधरी पाक् (बन) गया, बस तेरे बराबर कोई नहीं। तो यह अध्यात्म ज्ञान का टोटा है, जो आज तक दुख दे रहा था। अब आपको संपूर्ण अध्यात्म ज्ञान हुआ बच्चों! और इसके अनुसार चलना होगा। कबीर साहेब कहते हैं:

कबीर पीछे लागा जाऊं था, मैं लोकवेद के साथ। रास्ते में सतगुरु मिल गए, दीपक दे दिया हाथ।।

कि मैं भक्ति रुपी सफर में, दंत कथाओं के आधार से सफर कर रहा था यानी भक्ति करता हुआ चल रहा था। इसी भक्ति की राह में मुझे सतगुरु मिल गए। तो बच्चों! कबीर साहब कहते हैं आपको कि आप इस भक्ति मार्ग पर लगे हुए थे तो आपको सच्चा गुरु भी मिल गया। यदि आपकी रुचि भक्ति में नहीं होती तो आप भगवान की तरफ आते ही नहीं।

गरीब साधों सेती मसखरी, यह चोरों नाल खुशहाल। मल अखाड़ा जीतेंगे, युगन-युगन के माल।

आप युगों-युगों से परमात्मा की चाह में खूब प्रयत्न कर चुके हो। आप किसी भी जन्म में पीछे नहीं हटे। लेकिन यह अज्ञान का टोटा, यह अध्यात्म ज्ञान तत्वज्ञान की कमी हमें आज तक दुख दे रही थी। ऋषियों ने देखो कितनी कठिन साधनाएं की कती (बिल्कुल) मर मिटे, कुर्बान हो गए पर कुछ भी पल्ले नहीं पड़ा। आप अपनी किस्मत सराओ कितने सहज में भगवान मिलने जा रहा है आपको। काल के भ्रमित किए हुए। कबीर साहेब कहते हैं कि;

पीछे लागा जाऊं था, मैं लोकवेद के साथ।।

देखा देखी भक्ति कर रहा था जैसा भी सुना, सुनाया दन्त कथा थी उनके आधार से हमें बता रहे थे वह तो क्या करें थे। वह तो हमें बता रहे हैं कि तुम इस भक्ति मार्ग पर लग रहे तो तुम्हें सतगुरु भी मिल गए और मार्ग में सतगुरु मिले दीपक दे दिया हाथ। यह तत्वज्ञान रूपी टॉर्च दे दी, लैंप दे दिया, दीपक दे दिया। अब इसकी रोशनी में चलेंगे। बच्चों! तो अंधेरे में हम सीधे मार्ग चलेंगे, भटकेंगे नहीं। अज्ञान अंधेरे में नहीं भटकेंगे।

तत्व भेद कोई ना कहै रै झूमकरा।। पैसे ऊपर नाच सुनो राई झूमकरा।। कोट्यों मध्य कोई नहीं रै झूमकरा।। अरबों में कोई गर्क सुनो राई झूमकरा।।

गरीबदास जी ने बताया था रामराय उर्फ झूमकरा जी को कि भाई इस तत्व भेद को, तत्वज्ञान को कोई नहीं कहता। उनको पता ही नहीं? ऊवा-बाई बकते हैं। उनके पास कोई ज्ञान नहीं और यह पैसे ऊपर नाच सिर्फ माया जोड़ने के लगे रहे हैं अपना ढोंग रचकर और इस तत्वज्ञान को जो मैंने आपको बताया है करोड़ों में नहीं बताने वाला मिलेगा।

अरबों में कोई गर्क सुनो राई झूमकरा।।

अरबों में गर्क का अर्थ होता है Complete in all respect यानी सब तरह से संपूर्ण। कैसे? उसको अधिकार हो पूरे गुरुदेव से दीक्षा देने का। संपूर्ण अध्यात्म ज्ञान हो सब सदग्रंथों का और सब पूरी complete (संपूर्ण) विधि हो मोक्ष मार्ग की, भक्ति की और यह तत्वज्ञान हो। यह तुझे अरबों में एक मिलेगा अरबों में। लगभग साढे़ सात आबादी world (विश्व) की पापुलेशन (जनसंख्या) हो चुकी है दास के अतिरिक्त इस ज्ञान के जानने वाला वर्तमान में कोई नहीं। मेरे गुरुदेव थे, संत गरीबदास जी और मेरे कबीर भगवान थे।

बच्चों! यह आज परमात्मा का पूर्व निर्धारित ठीक का समय था जो आज आ चुका है। देखो यह ठीक के समय में,

घर-घर बोध विचार हो, दुर्मति दूर बहाए। कलयुग में सब एक हो, बरतैं सहज सुभाय।।

आज घर-घर बैठ गए परमात्मा स्वयं पहुंच गए। बच्चों को ऐसे Instrument (उपकरण) दे दिए, घर-घर मालिक की चर्चा होने लग रही है और किताबें बांटी जा रही हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से लोग पढ़ रहे हैं, सुन रहे हैं। चर्चा का विषय बना हुआ है। यह परमात्मा की कृपा है। आप उन्हीं के बच्चे हैं। हम भी उन्हीं के बच्चे हैं। तो बच्चों! जो काल के भ्रमित हैं, काल भगवान ने कहा था परमात्मा से कि जब आपका संदेश वाहक, आप अपना मैसेंजर भेजोगे उससे पहले मैं सारा उल्टा ज्ञान, उल्टी कथा, गलत साधना पर उनको आधारित कर दूंगा। आरुढ़ कर दूंगा। दृढ़ कर दूंगा। उनको कोई सच्चा राह दिखाएगा तो वह सुनने को तैयार नहीं होंगे। अब जैसे एक सर्वानंद नाम के ब्राह्मण पंडित विद्वान माने जाते थे। वेदों पुराणों को बैल के ऊपर लेकर चला करते, शास्त्रार्थ करने के लिए। उनकी मां से उसने कहा कि मां! मेरा अब सर्वाजीत नाम रख दे। मैंने सबको हरा दिया शास्त्रार्थ में। उनकी माता जी को बहुत भयंकर रोग था। वह ब्राह्मण थी। परमात्मा शूद्र जाति जुलाहा धाणक थे लेकिन कई उनके ब्राह्मण भी जो परमात्मा की शरण में आ चुके थे रिश्तेदारों ने भी समझाई। ना मानी। एक दिन पड़ोस में पहुंच गए दाता।

सौ छलछिद्र मैं करूं, अपने जन के काज। ।

अपनी बेटी के लिए वहां पहुंच गए। पड़ोस में सत्संग रख दिया। वह आई तो न्यों (ऐसे) थी सर्वानंद की मां कि मैं परीक्षा लूंगी। किसी की पहचान में नहीं आऊंगी। मैं ब्राह्मणी धाणक के पास आई हूं, मुंह पर पल्ला (घूंघट) घेरकर (निकाल) लिया। पर दुखी बहुत थी। कष्ट बहुत घना (ज़्यादा) था। सारे जंतर-मंतर अपने देवी देवता पूज लिए थे। उसके बेटे ने भी सिर पटक लिया था सर्वानंद ने। कोई लाभ नहीं मिला। वह आई घूंघट निकाल कर। उस समय पुराने-पुराने कपड़े नीचे तक के पहना करते कोई पहचान नहीं सकता। मुंह पर पल्ला रखा करते। परमात्मा सामने बैठे थे जैसे सत्संग करने वाला सामने बैठता है बाकी संगत आगे बैठ जाती है। वह गई। सब चरण छू-छू कर बैठने लग रहे थे।

वह भी गई सर्वानंद की मां शारदा। चरण छुए नीचे हुई थी और सिर पर हाथ धर (रख) दिया भगवान ने और बोले सर्वानंद की मां आज जुलाहे के पास कैसे आना हो गया तेरा? तू तो ब्राह्मण है। तेरा तो दीन भ्रष्ट हो गया। हाथ रखते ही उसको जो रोग था भयंकर वहां तक मुश्किल से चल कर आई थी और वह कती (बिल्कुल) स्वस्थ हो गई तभी मुंह का पर्दा हटा दिया और चरणों में गिर गई। उस दिन के बाद उसको कष्ट नहीं हुआ और नाम लिया भक्ति करी। तब उसकी मां को सर्वानंद कहने लगा मां मेरा सर्वाजीत नाम रख दे। मां बोली बेटा सर्वानंद क्या बुरा नाम है यह भी तो बहुत अच्छा नाम है। बोला, ना मैंने सबको हरा दिया शास्त्रार्थ में। सबको पता लग गया मैं सर्वाजीत हूं। वह बोली बेटा नाम रख दूंगी पर पहले तू मेरे गुरुजी ने (को) हरा दे। कौन है आपका गुरुजी? कि कबीर। कबीर वह अनपढ़ जुलाहा। Well known (प्रसिद्ध) मालिक हो ही रहे थे। सबको पता था। इनके छक्के छुड़ा ही रखे थे पर यह मानै नहीं थे। ढीठ हो रहे थे। न्यों (ऐसे) बोला उसने, तो अब गया और अब आया। बोली भाई देख ऐसे नहीं मानूंगी लिखवा कर लाइए या लिख कर लाइए, उनका अंगूठा लगवा कर लाइए। बोला हां पक्का ले। तब वह शास्त्रार्थ करने के उद्देश्य से बैल, बैलों के ऊपर बोरा जैसे गधे के ऊपर हुआ करे। ऐसे सारे ग्रंथ, वेद, पुराण, शास्त्र, उपनिषद सारे लेकर चला और परमात्मा ने ऐसी दया करी कि उसको इतनी भयंकर प्यास लग गई दोपहर के समय जब वह जुलाहों की कॉलोनी में प्रवेश करने लगा। वहां एक कुंआ था उस पर परमात्मा की वह मुंह बोली बेटी कमाली पानी भरै थी। जो शेखतकी की लड़की कब्र में मर के दबा दी गई थी। मरने के बाद उसको जीवित करके अपनी बेटी रूप में रखा था भगवान ने।

इतनी प्यास ला दी दाता ने उसकी मुंह जान निकलने को हो गई और जल्दी से कहा बेटी! जल पिला, मर गया मैं तो प्यासा। दोनों हाथ कर लिए लड़की ने पानी पिला दिया बाल्टी से निकालकर। पानी पीने के बाद उसने चारों तरफ देखा कि एक पंडित ब्राह्मण उस समय देवता माने जाते थे और शूद्रों से 10 फीट दूर रहते थे। वह कॉलोनी में आया तो चारों तरफ जुलाहे लोग निकल-निकल कर देख रहे थे। आज यह ब्राह्मण कैसे आ गया? उसने देखा तेरी तो बेइज्ज़ती हो गई क्या कहेंगे? जुलाहे खड़े-खड़े देखें। उसने सोचा इज्ज़त का नाश हो गया कती (बिल्कुल)। क्या कहेंगे लोग? धाणका के कुएं का पानी पी लिया जुलाहे का। शुद्र का। और इज्जत का नाश हो गया। तो लड़की को धमकाने लग गया अपनी इज्ज़त बचाने के लिए। ऐ लड़की! यह किस जाति वालों का कुआं है? लड़की बोली कमाली, महाराज जी! पंडित जी! जुलाहों की कॉलोनी में तो जुलाहों का ही कुआं हो सकता है। तूने पहले क्यों नहीं बताया यह जुलाहों का कुआं है? तूने मेरा दीन भ्रष्ट कर दिया। लड़की हंसी पहले तो। न्यों (ऐसे) बोली पंडित जी! जब तो तेरी जान निकलने वाली थी। तुझे कोई जाति वगेरा नहीं दिखै थी। जान दिखाई दे थी। अब पेट भर गया तुझे बात आ गई। आपने पहले पूछना चाहिए था। मैं क्यों कहूं पहले। तेरी जान निकलने वाली थी।

ओह पंडित! सुर ज्ञानी, पूछ पिया क्यों ना पानी।। ओह पंडित सुर ज्ञानी, तूने पूछ पिया क्यों ना पानी।। पाप करैं सो नीच कहावैं, यही बात प्रमानी।। दया धर्म है जिनके घट में, सोई ऊंचे प्राणी।।‌ हाड़ चाम मूत्र और बिष्टा, इनकी देह में खानीं।। ऐसे तन का मान करैं तू, तेरी बुद्धि कहां बिकानी।। चाम झरत और हाड़ झरत है, झर झर आवत पानी।। गाय के दूध की खीर जीम ली, जब ना करी ग्लानि।। जल की मच्छी जल में ब्याई, जल ही में मर जानी।। सूतक पातक माहीं घुल गए, ओ पिया तै पानी।। राह रास्ते की स्वच्छता होत है, कहै कमाली प्रमानी।। शुद्धि अशुद्धि कुछ न जानी, डूब मरे अभिमानी।।

कि हे पंडित जी! पहले पता कर लेना चाहिए था आपने, अगर इतना ज्यादा टेंशन लेता है जाति पाति मानता है और सुन ले;

पाप करैं सो नीच आत्मा। यही बात सत्य है और दया धर्म जिनके दिल में सो ऊंचे प्राणी।

सुन तेरे शरीर में हाड़ तेरे शरीर के ऊपर चाम, यह चाम लपेट रखा मूत्र, मांस, बिष्टा अंदर लिए फिरै तू और ऊपर से न्यों (ऐसे) कहे बहुत स्वच्छ बना फिरै है। तेरी बुद्धि कहां चली गई।

इस तन का तू मान करे, तेरी बुद्धि कहां बिकानी।।

और फिर बताया जैसे गाय भैंस के चाम, मांस, दूध, मूत, गोबर उस दूध के चारों तरफ होता है अलग-अलग कोथलियों में और उस दूध ने तू खीर खा गया। तो गाय और भैंस से तूने ग्लानि क्यों ना करी। तो इस तरह की बातें बहुत सी बताई। न्यों (ऐसे) बोली राह रास्ते की स्वच्छता होती है। बकवादों से कुछ नहीं धरा (रखा) पंडित जी। फिर बोला ऐ लड़की! सुन ज़्यादा बोलै हैं। कबीर कहां है? बोली कौन कबीर? कबीर। तो वह बोली;

कबीर का घर शिखर में, जहां सलैली गैल। पांव ना टिकै पपील के, तू पंडित लाद रहा बैल।।

कबीर का घर तो शिखर सबसे ऊपर के लोक में सतलोक में है। वहां तो चींटी भी ना जा सकी तू  बैल के ऊपर सारे ग्रन्थ लिए फिरै है। यह ऐसे जाएगा? बोला ऐ! तू बात कर ढंग से। बोली मैं तो ढंग से कर रही हूं और बता क्या कहूं?

कि यहां कॉलोनी में कहां है उनका घर? बोली आ जाओ मेरे पीछे-पीछे पंडित जी। मैं उनकी बेटी हूं। लड़की गई। गेट पर खड़ा हो गया कि एक बार वापस आना बेटी। की हां? मेरा लोटा भर पानी का। वह करमंडल ले रहा था। लड़की ने फुल कर दिया बोला और भर दे और भर दे। वह Full (पूरा) भर दिया। न्यों (ऐसे) बोल्या ले। लड़की ने जाकर बता दिया, जी एक पंडित जी आए हैं और ऐसे कह रहे हैं आपसे कुछ बात करेगा।

आपसे कोई वाद विवाद करने आया है लगता है। परमात्मा बोले बेटी! यह तो रोज़ का काम है इनका, आने दे। तो उसने लड़की से कहा, कमाली से, ले ये लोटा कबीर ने दे दे कि मेरे इस प्रश्न का उत्तर दे? वह लोटा लेकर सहज-सहज लड़की गई कि पानी नहीं गिर जाए इसका। गुरुजी के पास गई कि लो गुरुजी! ऐसे कह रहा, इसका उत्तर दे दे। परमात्मा ने एक मोटी सूई उसके अंदर डाल दी उठा कर। वह पानी बाहर निकल गया। सूई तली में गई लोटे के। कबीर साहेब जी बोले ले जा दे आ वापस, दे दिया उत्तर। वह वापस लेकर आई। क्या उत्तर दिया मेरे प्रश्न का? बोली जी मुझे तो उत्तर बैरा (पता) नही? प्रश्न का भी बैरा (पता) नहीं? एक सूई डाल दी इसमें और ऐसे बोले गुरुजी! पिताजी! कि जा दे दे बेटी दे दिया उत्तर। तो अंदर आ गया फिर। ऐ कबीर! मेरे प्रश्न का क्या उत्तर दिया? इतनी दूर खड़ा हो गया। आपका प्रश्न क्या था? परमात्मा बोले। वह बोला सर्वानंद, मेरा प्रश्न यह था कि मैंने अपनी मां से सर्वाजीत नाम रखवाना है मेरा और मैंने सब पंडित हरा दिए विद्वान। मेरी मां ने शर्त रख दी कि मैं आपको पराजित करूं शास्त्रार्थ में। तब वह मेरा सर्वाजीत नाम रखेगी। आप अपनी हार लिख दो। आप मेरे सामने नहीं टिक पाओगे। मेरा प्रश्न यह था कि मैं ऐसे भरा हूं ज्ञान से जैसे लोटा भरा है पानी का ऊपर तक। तेरा ज्ञान मेरे अंदर समाएगा नहीं यानी मैं Complete (सम्पूर्ण) ज्ञान रखता हूं। परमात्मा बोले मेरा उत्तर सुन ले मेरा ज्ञान ऐसा है तेरे इस अज्ञान को ऐसे बाहर फेंक देगा जैसे यह सूई डाली तेरे लोटे में यह लोटे की तली में जाकर बैठ गई तेरा पानी बाहर निकल गया। तो इस बात से बोला अच्छा! तो प्रश्न कर।

कबीर साहब बोले कौन ब्रह्मा का पिता है, कौन विष्णु की मां? शंकर का दादा कौन है, हमको दे बता?

अब लागा फिरर, फिरर,  फिरर करने। इनके कोई माता-पिता नहीं यह अजर अमर हैं। फलान हैं, यूं है। ये अजरो अमर हैं। सारी सृष्टि के मालिक हैं। परमात्मा बोले यह तू वेद लिये फिरै है इनमें किते (कहीं) लिखा है गीता और वेद में यह सारी सृष्टि के मालिक हैं? हां लिखा है, लिखा है तभी तो बोल रहा हूं। अब यहाँ समस्या अड़ रही थी। वह कह रहा है लिखा है। कबीर साहेब कह रहे हैं ऐसा नहीं है। तो यह उनको कौन समझावे। जो आज बात सूत में आई है वह। जब इसका उत्तर नहीं दिया तो गरीबदास जी ने इसके ऊपर एक टिप्पणी की है बड़ी सुंदर एक अंग बनाया है। 

करनी बिना कथनी का अंग

गरीब कथनी के सूरे घनें, कथैं अटंबर ज्ञान। यम के द्वारे जाएंगे, शब्द हमारा मान।। गरीब कथनी के सूरे घनें, कथैं अटंबर ज्ञान। पारख नहीं प्रेम की, सो कथनी पाहन जान।।

कथनी माने (मतलब) जो घोट (रट) रखे हैं शास्त्र ग्रंथ उनको सुनाते फिरै हैं और उनके विपरीत सारा कर्म करें।

गरीब कथनी के सूरे घनें, घर में कहते ज्ञान। बाहर जवाब नहीं आव ही, लीद करें मैदान।। 

ओये होय। जैसे पहले घोड़ों की रेस हुआ करती थी ना और कमज़ोर घोड़े, जब रेस होने लग गई तब लीद करने लग जाते बीच में खड़े होकर। क्यों भागने की हिम्मत नहीं थी उनमें। तो कहते हैं;

कथनी के सूरे घनें, घर में कहते ज्ञान।।

यानी अपने-अपने मंडल में विद्वान पाक (बन) रहे थे जब परमात्मा ने प्रश्न किया तो लीद कर गया वहाँ पर सर्वानंद। ट्यां ट्यां ट्यां ट्यां करे। इसके कोई माता-पिता नहीं। बोला यह है, वह है। परमात्मा बोले भाई ठीक है जब तू मानता ही नहीं है तो बोल क्या चाहता है? कि लिख दे हार गया तू कि हां! हार गया मैं तो। इन मूर्खा़ं के साथ कौन माथा मारै।

जो सच्चों को तो झूठा बतावैं इन झूठों का एतबार।।

तो सारे जो श्रोता थे ताली पीटने लग गए सर्वानंद की जीत सिद्ध कर दी कि कबीर क्या जानै वेदों के बारे में? झूठ बोलता है। माता - पिता हैं ही नहीं इनके। तो बच्चों! अब सर्वानंद कहने लगा कहीं नहीं लिखा वेदों और पुराणों में, कोई गीता में ऐसा नहीं लिखा है। झूठ बोलता है तू, ना पुराणों में लिखा है कि इनके माता-पिता थे। तो सब जो श्रोता थे विशेषकर वहां जुलाहे इकट्ठे हो गए देख कर भई आज क्या बात हो गई इनकी। सुनेंगे क्या बतलाएंगे, क्या बातें होंगी। सबने ताली पीट दी सर्वानंद के समर्थन में कि इनके माता-पिता हो ही नहीं सकते और सारे न्यों (ऐसे) ही गीत गावैं हैं। परमात्मा बोले भाई ठीक है। मैं हार गया आप जीत गए। बोल क्या चाहता है अब? आप जाओ अपना काम करो। तो न्यों (ऐसे) बोला नहीं लिख कर दे। मेरी मां जब मानेगी। बोला ठीक है लिख ले मैं तो अनपढ़ हूं। अशिक्षित हूं।

ब्राह्मण ने लिख लिया कि शास्त्रार्थ में सर्वाजीत जीत गया और कबीर हार गया। परमात्मा का अंगूठा लगवा लिया। अपनी मां के पास आया। ले माँ ! जाते हार गया वह तो कती (बिल्कुल)। ले बड़े-बड़े विद्वान हरा दिए तेरे बेटे ने। मां बोली भाई पढ़ कर सुना। पढ़ कर सुनाने लगा फटाफट कि शास्त्रार्थ में सर्वानंद हार गया, कबीर जीत गया। न्यों (ऐसे) कहदें मैं बोली रे तू तो हार कर आया बेटा। मैंने तो यह कहा था जीत कर आयेगा तब सर्वाजीत कहूंगी। उस लेख को देखै बार- बार असमंजस में पड़ गया। यह गलती कैसे हो गयी। ऐसे बोले मां मेरे से गलती हो गई। मैंने ही तो लिखा है गलती से लिखा गया उल्टा। अब जाता हूं फिर कि हां जा भाई। फिर गया जाते ही बोल्या कबीर मेरे से गलत लिखा गया उल्टा, फिर लिखूंगा। मेरी मां मानी नहीं। लिख लो जी मैं फिर अंगूठा लगा दूंगा। उसने फिर बिल्कुल पढ़कर दो-तीन बार पढ़ कर जब अंगूठा लगवाया। फिर आ गया बोला देख मां जब तो हो गई थी गलती। अब सुनाऊं कि हां सुना भाई। शास्त्रार्थ में सर्वानंद हार गया आगे ना पढ़ा। बोली भाई अगला, मैं समझ गई। कबीर जीत गया। बोला मां फिर गलती रह गई फिर जाऊं। फिर गया।

अब तीसरी बार जब लिखवा कर लाया वहीं। अपनी तरफ से तो लिखकर लाया, वह जब गेट में पढ़ने लगा न कि यहां तक तो ठीक होता है अंदर जाकर क्या हो जाता है इसके। ऐसे पढ़ता, पढ़ता, पढ़ता, पढ़ता मां के निकट गया उसकी आंखों के सामने अक्षर बदल गए। सर्वानंद हार गया, कबीर जीत गया। उसकी मां बोली अरे बोलता क्यों नहीं? पढ़ विद्वान। ना बोलै, ना सांस ऊपर ना नीचे। उसकी मां बोली बेटा भगवान आ रहा है भगवान। क्यों अपने कर्म फोड़ै है बेटा। जिंदगी बना ले मेरा जीवन सफल हो जाएगा।

मुझे उस दिन की टेंशन थी कि इतना परमात्मा का चाहने वाला बेटा और नरक में जाएगा। जाकर नाम ले ले बेटा। तो कहने लगा मां मुझे तो शर्म आवे है तू ही दिलाकर लाइये मुझे नाम। जब सर्वानंद की मां साथ लेकर गई उसको और बोली महाराज! अपने बेटे को स्वीकार करो। फिर सारे ब्राह्मण सर्वानंद के दुश्मन हो गए, विरोधी हो गए। तो बच्चों! यह आज तक यह ऐसे ही बिजली गिर रही थी। ऐसे उल्टे रस्ते लगे हुए थे। अब परमात्मा ने कृपा की है आपके ऊपर। आपको वह सच्चा ज्ञान मिला जो धरती पर नहीं था आज तक। बिल्कुल कहीं छींट भी नहीं थी। ओये होय। परमात्मा ने कसम खिला रखी थी।

धर्मदास मेरी लाख दुहाई, यह मूल ज्ञान कहीं बाहर नहीं जाई।।

ऐसा ज्ञान किते कहीं बताना नहीं अभी। यह मूल ज्ञान बाहर जो पड़ही। इन नकली संतों के हाथ में, यह राधास्वामी, धन-धन सतगुरु वाले, यह फिरै हैं न यह सारे जय गुरुदेव, यह सारे नकली हैं कती (बिल्कुल)। इनको क-ख भी पता नहीं अध्यात्म ज्ञान का और यदि यह ज्ञान पहले प्रचार होता कहीं ग्रंथ में तो यह इन्होंने तो इनको सिर्फ कबीर साहेब की वाणियों से लेकर के यह न्यारा (अलग) सांग जोड़ा है। उनको भी ठीक से समझ नहीं पाए यह। तो यह भी फिर यही ज्ञान सुनाते जो दास बता रहा है और यही नाम देते होते। तो आज कैसे आपको विश्वास होता कि मैं ठीक हूं, मैं अधिकारी हूं और यह अधिकारी नहीं हैं। अब उनका ज्ञान भी गलत, उनकी भक्ति भी गलत आपके सामने हो गई। तो बच्चों! आपके ऊपर मालिक ने जो कृपा की है इसका सौ-सौ शुकर मनाया करो। अब क्या बताते हैं कथनी के अंग की दो-चार वाणी और सुनाता हूं।

गरीब कथनी कथी तो क्या हुआ, शब्द ना चीन्हां चोर। ऊपर दिखत साध है, भीतर कठिन कठोर।।

कि बात तो याद करली। गीता घोट (रट) ली, वेदों को कंठस्थ याद कर लिया लेकिन उस नाम का तो पता नहीं जिससे मोक्ष होगा और जिसके कारण ना नम्रता आई। आधीनी आई नहीं। कोई ज़रा सा बोल पड़ा कटने-मरने को तैयार हो जा। गुस्सा कर देते हो।

गरीब कथनी कथी तो क्या हुआ, शब्द ना चीन्हां चोर। ऊपर दिखत साधु है, भीतर कठिन कठोर।। गरीब कथनी के सूरे घनें, यह करनी किरका नाहीं। मुझे अंदेशा बहुत है, यह अवधू कित को जाहीं।।

गरीब कथनी के यह शूरवीर बहुत से बकवाद करने वाले बहुत मिल जाएंगे। गरीब गोरख से ज्ञानी घनें और सुखदेव जति जहांन। सीता सी बहू भार्या, संत दूर अस्थान।।

गरीब कथनी के सूरे सुंदर-सुंदर प्रवचन खड़े होकर ऐसे लतीफेदार प्रवचन कर देंगे, सबको मंत्र मुग्ध कर लेते हैं, श्रोताओं को लगता है बस यही हैं भगत, संत तो और करनी किरका ना।

किरका माने (मतलब) एक कण भी नहीं सच्ची भक्ति का। मुझे अंदेशा बहुत है, यह अवधु कित को जाहीं।। यह कहां जाएंगे? नरक में जाएंगे।

गरीब कथनी से कारज नहीं, करनी क्रिया लोय। शब्द सिंधु में मिल रहो, आगा-पीछा खोय।। गरीब कथनी केला वृक्ष है, थोथा थूक बिलोय। जिस पैड़े सतगुरु गए, वह मग लीजै जोय।।

कि कथनी तो केले जैसा वृक्ष है एक पत्ता उतारो फिर, फिर उतारो। अंत में कुछ नहीं पत्ते ही पत्ते। थोथा। की व्यर्थ की बकवाद बोल रहे हो।

चौथा थूक बिलोवो और जिस मार्ग पर कबीर साहेब गए वह रास्ता लो जोय।।

उसको पकड़ो। भक्ति के बिना यह जीव इतना कष्ट पावैं और आत्मा सबकी भक्ति चाहती है पर रास्ता नहीं? मार्ग नहीं मिलता। गरीब दास जी कहते हैं,

सतगुरु आए दया करी, ऐसे दीनदयाल। बंदी छोड़ बिरद तास का जठराग्नि प्रतिपाल।।

उन्होंने आकर अपनी प्यारी आत्मा गरीब दास जी को अपना परिचय दिखाया, सतलोक लेकर गए। सारे ब्रह्मांड दिखाए। देखो बच्चों! यह देखो सबसे पहले विश्वास होना चाहिए कि हम जिसकी भक्ति कर रहे हैं वह समर्थ परमात्मा है और जो साधना कर रहे हैं वह साधना सही है और ज्ञान संपूर्ण है। इसके लिए प्रथम तो हमारे ग्रंथ, सदग्रंथ, वेद, गीता, पुराण और परमात्मा द्वारा दिया गया सूक्ष्म वेद यह चारों मिलकर हमें परमात्मा की जानकारी देते हैं। इनके साथ-साथ संत गरीब दास जी को गवाह बनाया परमात्मा ने अपना eye witness (गवाह)। ऊपर लेकर गए फिर नीचे छोड़ा। वैसे तो 6 बनाए eye witness (गवाह) और सभी ने एक ही बात कही Kabir is God (कबीर भगवान है)।

Who Kabir? (कौन कबीर?)  वह गरीब दास जी ने स्पष्ट किया है,

हम सुल्तानी नानक तारे, दादू को उपदेश दिया। जाति जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहें कबीर हुआ।।

वह कबीर। तो बच्चों! अब आपको इतना विश्वास हो जाना चाहिए कि जो ज्ञान भगवान ने दिया आंखों देखे संतों ने बताया वह गलत नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त अपने को जो सुनने को मिला था वह बिल्कुल लोकवेद, दंत कथा, सारा झूठ था। यह स्पष्ट हो गया। तो अब क्या कहते हैं;

समझा है तो सिर धर पांव, बहुर नहीं रे ऐसा दांव।।

भक्ति के बिना यह प्राणी कैसे दुख पाता है। इस अनमोल जीवन को कैसे नष्ट करके चला जाता है। उसके बाद इसको कितना कष्ट उठाना पड़ता है। वह संत गरीब दास जी अपनी अमरवाणी में बहुत बार, बहुत जगह बताते हैं। बच्चों! ध्यान दो, लगन लगाओ। यह बात कहने-सुनने की नहीं, यह कर पाड़न (दिखाने) की है। इनको ऐसे हल्के में ना लो देखो दास 27 साल से तो प्रचार कर रहा है और उससे पहले अपनी भक्ति करता था, प्रचार करता था। नाम दिलाता था अपने गुरुजी से। 1994 से दास को यह भार सौंप दिया। उसके बाद दास ने सिर पर पैर रख रखया है आज तक। तो यह बात दास को खटकी जो गरीब दास जी ने अपनी वाणी में बता रखी है;

साहिब से चित लगा ले रे, मन गर्व गुमानी।।

हे मन अंहकारी! तू परमात्मा में ध्यान लगा परमात्मा की याद कर। कहते हैं;

नाभी कमल में नीर जमाया, तेरा दीन्हां महल बनाए। नीचे जठराग्नि जलैं थीं, ओह दिन याद कराएं।। नैन नाक मुख द्वारा देही, नख शख साज बनाया।

नख, नाखुन से लेकर शिखर तक चोटी तक का आपका सारा नैन, नाक, मुख यह सब देही सुंदर नाखूनों से लेकर शिखा चोटी तक का आपकी सारी व्यवस्था कितनी प्यारी कर रखी है।

नौ दस मास गर्भ में राख्या, वहां तेरी करी सहाय। दांत नहीं जब दूध दिया था, अमी महारस खाएं। नीचे शीश चरण ऊपर कूं, ओह दिन याद कराए। नीचे जठराग्नि जलै थी, तेरे लगी ना ताति बाय। बाहर आया भरम भुलाया, बाजे तूर शहनाय। तू ही, तू ही तो छोड़ दिया चला अधम किस राह?

कि मां के पेट में तुझे सब जानकारी थी और डर था और सब याददाश्त थी कि मनुष्य जीवन बार-बार नहीं मिलता और पूरे संत से दीक्षा लेकर अपना कल्याण कराऊंगा। कोई किसी का नहीं। बाहर जाकर भूल पड़ जाती है अब के याद रखूंगा। पूरा संत खोज करूंगा। पूरे गुरु से नाम लूंगा। बुराई नहीं करूंगा। काम करूंगा लेकिन भगवान का ध्यान ज़्यादा करूंगा। अब कहते हैं;

तू ही, तू ही तो छोड़ दिया, चला अधम किस राह?

अब तूने भगवान की जो याद थी वह छोड़ दी। हे भगवान! हे परमात्मा! दुख में तो याद करै था मां के पेट में। अब तू भूल गया। हे अधम! हे निकम्मी आत्मा! अब कौन से रास्ते चल पड़ा?

दाई आई घुट्टी प्याई, माता गोद खिलाय। जो दिन आज सो काल नहीं रे, आगे है धर्मराय।।

कि जैसे आज है, मृत्यु के बाद फिर उसके धर्मराज के दरबार में जाएगा, वहां तेरी फिर दुर्गति होगी।

द्वादश वर्ष खेलते बीते, फिर लीन्हां ब्याह करवाए। तरुणी नारी से घरबारी, तू चालां मूल गवाएं।।

यानी पहले 12 वर्ष की आयु में शादी हो जाती थी, विवाह हो जाता था। कहते हैं तू केवल इसी काम लग रहा। विवाह हो गया बच्चें हो गए पालन-पोषण में सारा जीवन खो दिया। तो भक्ति साथ-साथ करनी चाहिए थी। वह नहीं करने से क्या दुख होगा तेरे साथ वह बताया है। कहते हैं,  शादी करा ली उसके बाद बच्चे हो गए उनके पालन-पोषण में। शादी विवाह करके फिर मर गया।

फिर जो दिन आज, सो काल नहीं रे आगे फिर धर्मराय।।

फिर वहां जाकर, फिर मुंह लटका कर खड़ा होता है। हे भगवान! गलती बन गई। अब के फिर मनुष्य जीवन देना भगवान। अब के गलती नहीं करूंगा। तो परमात्मा दिखाता है निकम्मे! ऐसी-ऐसी गलती तूने हज़ारों-लाखों बार कर ली। यह देख पिछले सारे जन्म दिखाए जाते हैं इसको। फिर रोता है। हे भगवान! गलती बन गई। परमात्मा कहते हैं कि:

आछे दिन पीछे गए, गुरु से किया नहीं हेत। अब पछतावा क्या करें, चिड़िया चुग गई खेत।।

क्या बताते हैं

द्वादश वर्ष खेलते बीते, लीन्हा ब्याह कराय। तरुणी नारी से घरबारी, चाला मूल गंवाए।। रातों सोवैं जन्म बिगोवैं, धून्दी खेत कमाए। बिना बंदगी बाद जात है, तेरा जन्म अकार्थ जाए। कारे काग गए घर अपने, बैठे स्वेत बुगाए। दांत जाड़ तेरे उखड़ गए, अब रसना गई तुतलाए।।

कहते हैं कि रात ने सो जा पड़ कर, सुबह उठते ही खेत में चला गया। भक्ति बिना तेरा जीवन नष्ट हो गया और बूढ़ा हो गया, यह सफेद बाल हो गए, ज़ुबान तेरी जीभ तुतलाने लग गई। दांत जाड़ उखड़ गए।

जम किंकर सिरहाने बैठा, खर्च कदे का खाए। रसना बीच जो मेख मार है, सैनों दाम बताए।।

अब अंत समय में जब कती (बिल्कुल) निर्भाग आदमी जो होता है उसकी ज़ुबान बंद हो जाती है और सबसे पहले ज़ुबान बंद करते हैं यम के दूत कि कहीं यह राम का नाम न बोल दे। यह बता नहीं दे कि यह यम के दूत खड़े हैं और फिर उसके गिन-गिन के स्वांस पूरे करते हैं क्योंकि स्वांसो से जीवन बना हुआ है और फिर कहते हैं;

ऐसे सूम बहुतेरे जगत में, धरा ढक्या रह जाए। कुल के लोग जंगल में लेकर, फिर दींन्हा ठोक जराए।।

अब वही लोग, जिसे कुल के लोग उठाकर ले जाएंगे और शमशान घाट पर जाकर फुकेंगे। शरीर जहां से जलेगा नहीं उसको फोड़-फोड़ कर फुकेंगे उसकी छाती को।

फिर पीछे तू पशुआ कीजै, गधा बैल बनाए। चार पहर जंगल में डोलै, तो नहीं उदर भराए।

अब बच्चों! यह बातें कहने की नहीं। यह कोई सामान्य बातें नहीं हैं। कती (बिल्कुल) प्रमाणित बातें हैं और सौ की सौ सत्य हैं। ऐसे तो कितना दुख होगा। मनुष्य जीवन में अब देखो, भूख लगती है खाना खा लेते हैं, प्यास लगती है पानी समय पर पी लेते हैं। कोई तकलीफ शरीर में होती है डॉक्टर से इलाज करवा लेते हैं। जब चाहे लड्डू, जलेबी जैसा जुगाड़ है, हलवा खीर बनाकर खा लेते हैं। एक भक्ति ना करने से कैसी दुर्गति होती है इस प्राणी की।

फिर पीछे तू पशुआ कीजै, गधा बैल बनाए। चार पहर जंगल में डोलै, तेरा तो नहीं पेट भरै।।

यानी खेत में ले जाते हैं बैल को, हल में जोता जाता है। आसपास उसका चारा होता है भूख लग जाती है खाने को दिल करे, पर कौन खाने दे।

सिर पर सींग दिए मन बौरे, दुम से मच्छर उड़ाए। कांधै जुआं, जोतै कुआं कोंधों का भुस खाए।।

कहते हैं तेरे को एक सिर पर सींग दे दिये। एक पूछड़ लगा दी दुम। अब उससे मच्छर उड़ा, चाहे हवा करले। क्यों आजकल तो देखो पंखे, कूलर,  AC क्या बात कही। लेकिन यह बच्चों का खेल नहीं है कि फिर भी तुम्हें ऐसे ही मिल जाएंगे। यह तो अब मेहनत, मजदूरी करोगे भगवान की सेवा करोगे, सुमिरन करोगे, दान करोगे, मनुष्य जीवन प्राप्त हुआ तो फिर मिलेंगे और बगैर भक्ति और गलत भक्ति करने वाले को मनुष्य जीवन भी नहीं देता। हमनें तो पीछा छुड़वाना है सतलोक चलेंगे। फिर भी क्या बताते हैं कि;

सिर पर सींग दिए मन बौरे, दुम से मच्छर उड़ाए। एक पूछड़ होगी आपके दुम उसने पंखा बना लिए और चाहे कूलर मान लिए और कई कर्महीन पशुओं के वह पूछड़ भी कट जाती है। डेढ़ फुट का डंडा हिलाता रहता है। इतने कर्म गिर जाते हैं इंसान के। खेतों में काम करें। जौं का भूस उसमें बहुत कांटेदार उसका भूस होता है भूखा मरता वह खाता है।

टूटी कमर पजावैं चढ़े, कागा मांस गिलाएं। फिर पीछे तू खर कीजैंगा, कुरड़ी चरने जाएं।।

खर गधा।

उसके बाद तू गधा बनेगा और कुरड़ी चरने जाएं। टूटी कमर पजावैं चढ़े, कागा मांस गिलाएं।।

अरे तेरा गजब। उसके बाद गधा बनेगा, कुरड़ियों पर चरने जाएगा जो आज काजू और किशमिश, खीर और हलवे खाने वाला जो भक्ति नहीं करने से और ऊपर से कमर टूट जाती है गधे की, गधी की वह सामान बोरा रखने से या ईंटै रखने से। फिर उसको कुम्हार छोड़ देता है मालिक कि जा वह पेट भर के भी जंगल में आती है। घास खाते हैं और काग उसकी कमर पर बैठकर उसकै चोंच मार-मार कर उस फूटे हुए ज़ख्म को, उस मांस को खाता है और आंखों से पानी गिरता है उस गधे के और गधी के। कोई पशु हो चाहे। तो यह कष्ट मोल ले लिया। इतना कहर टूट गया इस छोटी सी बात के बिना। भक्ति ना करने से।अरे! कितना ज़ुल्म होगा हमारे साथ। बच्चों! आंख खोल लो।

फिर पीछे तू खर कीजैंगा, कुरड़ी चुगने जाएं। टूटी कमर पजावैं चढ़े, तेरा कागा मांस गिलाय।

सुखदेव ने 84 भुगति, कहां रंक कहां राय। ऐसी माया कालबलि की, नारद मुनि भरमाएं। ध्रुव प्रहलाद और कबीर नाम दे, रहे निशान घुराएं। दास गरीब कबीर का चेरा, शब्दैं शब्द समाएं।।

अब भगवान के बेटे गरीब दास जी बता रहे हैं कि सुखदेव भी एक बार गधा बना। अब किस- किसको बख्शेगा यह। ऋषियों की दुर्गति कर रखी है।

ऐसी माया कालबलि की नारद मुनि भरमाये। ध्रुव प्रहलाद और कबीर नाम दे रहे निशान घुराए।।

यानी ध्रुव जी को, प्रहलाद जी को तो यह आम आदमी मानते हैं कि यह मुक्त हो गए भक्ति करके इन्होंनें अपना मोक्ष प्राप्त कर लिया। लेकिन कितना प्राप्त कर लिया? 1008 युग का ब्रह्मा का जो दिन है यह इनको इतना राहत है। इस 1008 वर्ष का जो ब्रह्मा का दिन है इतने यह स्वर्ग में रहेंगे। उसके बाद फिर नीचे आएंगे। इनमें भी भक्ति के ऊपर निर्भर करता है जैसे ध्रुव को तो एक युग के लिए यानी वहां स्वर्ग में रहेगा। तो इस प्रकार परमात्मा बताते हैं कि पूर्ण मोक्ष तो कबीर साहेब हुए मुक्ति तो इब (अब) होगी सारनाम, सारशब्द से।

धर्मदास मेरी लाख दुहाई, सारशब्द किते (कहीं) बाहर ना जाई।। मूल ज्ञान कहीं बाहर ना जाई।।

अभी तक यह सारनाम, सारशब्द परमात्मा ने किसी को बताया नहीं था। अब यह खोला है। मोक्ष तो बच्चों इब (अब) होगा आपका और सहज में होगा। आप नामदेव और ध्रुव प्रहलाद से कम सौभाग्यशाली नहीं हो। उनसे ज्यादा सौभाग्यशाली हो क्योंकि आपको सीधा मोक्ष मिलेगा। उनको फिर से जन्म लेना पड़ेगा कभी इसी कलयुग में यह सतकर (सत्य) मान लेना। तुम बच्चों की बात ना समझना इसको। मैं कोई डूम भाट नहीं हूं, व्यर्थ की थूक बिलोता हूं। कती (बिल्कुल) कांटे की बात कह रहा हूं। लेकिन इसको हल्के में लोगे तो फिर दुर्गति शुरू हो जाएगी। यह चक्कर फिर शुरू हो जाएगा।

यह हरहट का कुआं लोई, या गल बंधा है सब कोई।। कीड़ी कुंजर और अवतारा, हरहट डोर बंधे कई बारा।।

बच्चों! विचार करो जैसे आज मनुष्य जीवन है, मान लो अगला मनुष्य जीवन होगा फिर वही Procedure (प्रक्रिया) जन्म हुआ, पढ़े-लिखे, बड़े हुए फिर विवाह हो गया, फिर बच्चे हो गए, फिर पालन-पोषण, फिर मर गए। फिर मान लो एक-दो जन्म फिर भी हैं तो फिर हो गए। फिर मर गए, बुड्ढे हो गये, कभी बीच में मर गए। कोई बालक मर गए, कभी हम मर गए ऐसी दुर्गति हो रही है इससे पीछा छुटवालो और वह अब समय आ गया है बच्चों! परमात्मा के प्रति दृढ़ता से लगो। तो क्या कहते हैं बंदी छोड़;

चल हंसा सतलोक हमारे, छोड़ो यो संसार हो। इस संसार का काल है राजा, माया जाल पसारा हो।। माया जाल पसारा हो।। चौदह खंड जाके मुख में बसत हैं, सबका करत आहारा हो। जार-बार कोयला कर डारैं, फिर फिर दे अवतारा हो।। फिर फिर दे अवतारा हो।। ब्रह्मा विष्णु शिव तन धरिया और का कौन विचारा हो। ब्रह्मा विष्णु शिव तन धर धरिया और का कौन विचारा हो।। और का कौन विचारा हो।। सुर नर मुनि जन सब छल बल मारे, चौरासी में डारा हो। मध्य आकाश आप जहां बैठा, ज्योति स्वरूप उजियारा हो।। ज्योत स्वरूप उजियारा हो।। वाके पार एक और नगर है, जहां बरसे अमृत धारा हो। श्वेत स्वरुप फूल जहां फूले, हंसा करत विहारा हो।। हंसा करत विहारा हो। चल हंसा सतलोक हमारे, छोडो यो संसारा हो।। चल हंसा सतलोक हमारे, छोडो यो संसार हो ।। छोडो यो संसारा हो।। कोटि चंद्र सूर्य छिप जां, जाके एक रूम चमकारा हो। कहे कबीर सुनो धर्मदासा, लखो पुरुष दरबारा हो।। लखो पुरुष दरबारा हो।। चल हंसा सतलोक हमारे, छोडो यो संसारा हो।। चल हंसा सतलोक हमारे, छोडो यो संसारा हो।। छोडो यो संसारा हो।।

इस लोक का काल है राजा, कर्म जाल पसारा हो। चौदह खंड जाके मुख में बसत है, यह सबका करत आहारा हो।। सबका करत आहारा हो।।

कि परमात्मा कबीर जी कह रहे हैं बच्चों! इस गंदे लोक को छोड़ो। चल हमारे सतलोक में जहां कोई दुख नहीं है और यह क्या करता है कि तप्तशिला पर फूकैं, वहां उसमें से रस निकाले और फिर जन्म दे। कहते हैं;

ब्रह्मा, विष्णु, शिव तन धरिया और का कौन विचारा हो।।

और किस पर बताऊं यह तीनों भी जन्म-मृत्यु के अंदर हैं। इनको भी खाता है।

और सुरनर मुनिजन सब छलबल मारे…

छलबल यानी अपनी ज़बरदस्ती से इनसे गलत काम करवा कर ऋषि साधना करने जंगल में गए वहां दुर्गति कर दी। कोई अप्सरा भिजवा दी कर्म फोड़ कर फिर भाग गई । तो हमारे ही दुरुपयोग कर रहा है परमात्मा के बच्चों की स्त्री बनाई, उन्हीं में से पुरुष बनाए इनके अंदर ऐसी गंदी भावना भर दी और यह आपस में एक-दूसरे का नाश करन में तुले हुए हैं। संतानों उत्पत्ति by force (ज़बरदस्ती) करवाई जा रही है नोट कर लेना। कहीं आंखें बंद हों आपकी और किसके लिए? अपने खाने के लिए और कोई उद्देश्य नहीं इसका। लेकिन अब जब परमात्मा की शरण में आ गए बच्चों! वह इसकी रेंज से बाहर है। अब आपका यह परिवार है, आपका संसार यह है और फिर इसी में लीन नहीं रहना। वहां आगे के चलने की तैयारी करना। वह तड़प अलग से बना कर रखनी होगी बच्चों ने भी और आप में भी तब हम अपने घर जा सकेंगे इस गंदे लोक से बच सकेंगे। कहते हैं;

सुरनर मुनिजन सब छलबल मारे, चौरासी में डारा हो। मध्य आकाश आप जहां बैठा...

ऊपर ईक्कीसवें ब्रह्मांड ऊपर बैठा है यह। प्रत्येक ब्रह्मांड के अंदर ऊपर आकाश में बैठा है। फिर कहते हैं;

वाके पार एक और नगर है, इस काल के लोक से आगे कोई एक और नगर है जहां बरसे अमृत धारा हो। वह सतलोक है। श्वेत स्वरूप फूल जहां फूले, हंसा करत विहारा हो।।

कोटि चंद्र सूर्य छिप जाएं

यानी उसके एक रोम के बाल के प्रकाश के सामने करोड़ों चांद, करोड़ों सूर्य भी फीके हो जाते हैं उनका प्रकाश। ऐसा उस मालिक के एक रूम का बाल का प्रकाश है।

कह कबीर सुनो धर्मदासा, लखो पुरुष दरबारा हो।।

देखो उस परमात्मा का वह दरबार, वह सच्चा स्थान देखो।

अब गरीब दास जी कहते हैं इस मन को समझाते हैं,

चल सुखसागर ले जाऊं रे, तने मन अगह देश दिखाऊं रे।। कर सुखसागर आसनाना रे, चल देखो देश दीवाना रे।। चल देखो देश हमारा रे, जहां कोटि पदम उजियारा रे।।

परमात्मा हर तरह से समझाने की चेष्टा करते हैं। अपने मन को पात्र बना कर हमें समझाते हैं।

चल देखो देश हमारा रे, जहां तत् शब्द झनकारा रे।। चल देखो देश हमारा रे, जहां कोटि पदम उजियारा रे।। चल देखो देश हमारा रे, जहां कोटि पदम उजियारा रे।। चल देखो देश हमारा रे, जहां तत् शब्द झनकारा रे।। चल देखो देश हमारा रे, जहां उज्ज्वल भंवर गुंजारा रे।। चल देखो देश हमारा रे, जहां चंवर सुहंगम डारा रे।। चल देखो देश हमारा रे, जहां चंद्र सूर नहीं तारा रे।। चल देखो देश हमारा रे, नहीं धर अंबर गैनारा रे।। चल देखो देश हमारा रे, जहां अनंत फूल गुलजारा रे।। चल देखो देश हमारा रे, जहां भाठी चंवैं कलारा रे।। चल देखो देश हमारा रे, जहां घूमत है मतवारा रे।। अरे मन कीजैं दारमदारा रे, तुझे ले छोड़ूं दरबारा रे।। फिर भवसागर नहीं आवैं रे, सतगुरु सब नाच मिटावैं रे। चल अजब नगर विश्रामा रे, तुम छोड़ों दहना बामा रे।। चल देखो देश अमानी रे, जहां ना कुछ पावक पानी रे।। चल देखो देश अमानी रे, जहां झलके बारह बानी रे।। चल देखो देश अमानी रे, मैं सतगुरु पैं कुर्बानी रे।। चल देखो देश बिलंदा रे, जहां बसे कबीर जिंदा रे।। चल देखो देश अगाहा रे, जहां बसे कबीर जुलाहा रे।। चल देखो देश अमोली रे, जहां बसे कबीर कोली रे।। चल देखो देश अमाना रे, जहां बुनैं कबीरा ताना रे।।

बच्चों! परमात्मा के बच्चे, परमात्मा की प्यारी आत्मा गरीब दास जी भगवान के उस लोक को देखकर आए और वह हमें बता रहे हैं कि

चल देखो देश अगाहा रे, जहां बसे कबीर जुलाहा रे।।

ओय होय। चल देखो देश बिलंदा रे, जहां बसे कबीरा जिंदा रे।। चल देखो देश अमोली रे, जहां बसे कबीरा कोली रे।।

कोली माने (मतलब) जुलाहा होता है।

चल देखो देश अमाना रे, जहां बुने कबीरा ताना रे।।

अब वहां सतलोक में कबीर ताना बुनते हैं। ताना बुनना होता है जुलाहे जो कपड़ा बनाते थे एक-एक तार डालकर उसको ताना बोलते थे कि ताना बुन रहा है। कपड़ा बुन रहा है। तो सतलोक के अंदर कबीर साहेब सारी सृष्टि को रच रहे हैं। सारी सृष्टि बना रहे हैं इसलिए वहां इनको बताया है कि जहां बुने कबीरा ताना रे।।

वेदों में भी परमात्मा को जुलाहा कहा है जैसे जुलाहा कपड़ा बुनता है ऐसे परमात्मा सारी सृष्टि को रचता है।

चल अविगत नगर निवासा रे, जहां नहीं मन माया का वासा रे।। चल अक्षर धाम लखाऊं रे, मैं अविगत पंथ लखाऊं रे।। कर मकरतार पियाना रे, ज्यूं शब्दे शब्द समाना रे।। जहां झिलमिल दरिया नागर रे, जहां हंस रहे सुख सागर रे।।

कबीर साहेब कहते हैं;

नाम सुमरले, सुकर्म कर ले, कौन जाने कल की। खबर नहीं पल की।।

ऐसे निकम्मे लोक में हम रह रहे हैं जिसका कोई दीन धर्म नहीं। यहां कोई न्याय नहीं और एक सेकेंड का भरोसा नहीं। एक सेकेंड में क्या हो जाए? और फिर भी हम फूले फिरें। क्यों? किसी के साथ दुर्घटना हो जाती है तो हम न्यों (ऐसे) सोचते हैं हमारे नहीं होगी। काल सबकी रोल मार रहा है। अब हम भगवान शरण में आ गये कबीर साहेब की। अब हम कह सकते हैं, यदि मर्यादित हैं तो अब हम भगवान की शरण में है काल के in attacks (हमलों) से बाहर हो गए। लेकिन जिस दिन नाम खंड हो गया क्योंकि जब सुख हो जाता है यह मन बकवाद की तरफ अवश्य चलता है और गफलत करवाता है। नाम सबसे पहले नाम खंड करवा के फिर चोट मरवाता है। यह ध्यान रखना है।

नाम सुमरले, सुकर्म कर ले, कौन जाने कल की। खबर नहीं पल की।।

यह बात कांटे की है। भक्ति कर, अच्छे कर्म कर। कल का क्या भरोसा? एक पल का भरोसा नहीं। अब देखो माचे-माचे फिरैं थे। हमनें देखे और ऐसे मारे गए उनको पानी भी पिलाने वाला कोई नहीं मिला। Accident (दुर्घटना) में मरे। ऐसी बातें बनाया करते बड़ी-बड़ी और बड़ी डींग मारा करते थे हमने देखे कई लोग ऐसे और उसके बाद जब नाम मार्ग पर हम लगे, भक्ति मार्ग का ज्ञान हुआ। इस यथार्थ भक्ति ज्ञान पर वह बातें सारी याद आन लाग (आने लगीं) गई। हे भगवान! क्या बनती, हे परमात्मा! कती (बिल्कुल) जुल्म हो गया था। मैं तो ऐसा हो गया था जैसे पागल का हाल हुआ करें। जब यह सच्चा ज्ञान समझ में आया। ओह! तेरा गजब होइयो..।

देख क्या माचे-माचे फिरां थे। धरती तोल रखी थी और काम जो करने का था Start (चालू) भी नहीं किया। हे बंदी छोड़! मतलब, मेरे दिल से यह बहुत दिन तक नहीं निकली यह बात जैसे कोई एक्सीडेंट में बच जा ऐसे बाल-बाल और फिर न्यों (ऐसे) भय सा कई दिन तक रहा करें। तो दास की यह दशा हो गई थी। हे परमात्मा! बड़ी दया करी। हे मालिक! कैसे शरण में लिया। देख कौन कहर टूट जाता कुत्ता बनता, गधा बनता, सिर में कीड़े पड़ते। गली में बैठता। कोई समय पर संभालने वाला नहीं, कोई रोटी नहीं, कोई कपड़ा नहीं, कोई लत्ता नहीं। बच्चों! जब तक यह भय नहीं होगा आपके शरीर में आप भक्ति नहीं कर सकते। मुक्ति नहीं पा सकते। भय बिन भक्ति नहीं होगी और भय भी सच्चा है। कोई झूठ नहीं, कोई वैसे डराने वाली बात नहीं इसलिए,

यह संसार समझदा नांहीं, कहन्दा शाम दोपहेरे नूं। गरीबदास यह वक्त जात है, रोवोगे इस पहरे नूं।। गरीब दास यह वक्त जात है, रोवोगे इस पहरे नूं।।

बच्चों ! बस आज इतना ही। परमात्मा आपको मोक्ष दे। सदा सुखी रखे। इस मार्ग को ग्रहण करो। अपना कल्याण कराओ। आपकी तड़प, आपकी लगन मालिक में और अधिक बने।

।।सत साहेब।।


 


 

FAQs : "विशेष संदेश भाग 10: करनी बिना कथनी का अंग"

Q.1 इस लेख में सतलोक के बारे में क्या बताया गया है?

सतलोक सभी आत्माओं का निज स्थान है और वहां जाने के बाद आत्मा जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाती है। सतलोक में पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी रहते हैं।

Q.2 आध्यात्मिक मार्ग में काल कैसे बाधाएं डालता है?

ब्रह्म काल त्रिदेवों का पिता और 21 ब्रह्मांडों का स्वामी है। वे जीव आत्माओं को सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने और मोक्ष के मार्ग की खोज करने में बाधाएं उत्पन्न करता है। इतना ही नहीं ब्रह्म काल भोले भाले लोगों में गलत ज्ञान का प्रचार करने के लिए अपने प्रचारक भेजता है।

Q. 3 इस लेख में शास्त्र अनुकूल प्रमाणित आध्यात्मिक ज्ञान को सुनने का क्या महत्त्व बताया गया है?

सत्य आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए, प्रमाणित आध्यात्मिक ज्ञान को सुनना, पढ़ना और समझना बेहद ज़रूरी है। इसके अलावा मन को विकारों से बचाने के लिए भी शास्त्र अनुकूल प्रमाणित ज्ञान की जानकारी होना ज़रूरी है।

Q.4 सर्वानंद जी के अज्ञान को कबीर साहेब जी ने कैसे दूर किया?

सबसे पहले कबीर साहेब जी ने सर्वानंद की मां की लाइलाज बीमारी को ठीक किया। उसके बाद सर्वानंद के सभी आध्यात्मिक प्रश्नों का प्रमाण सहित उत्तर दिया।

Q.5 इस लेख में सुई और लौटे की उपमा का उदाहरण देकर क्या समझाया गया है?

सुई और लौटे की उपमा यह दर्शाती है कि परमेश्वर कबीर साहेब जी का ज्ञान सबसे ऊपर है। कबीर साहेब जी का ज्ञान सुई की तरह पानी के लौटे में भी खड़ा रहता है और अज्ञानता को बाहर निकाल कर मिटा सकता है तथा लोगों के दिल में उतर सकता है। ठीक वैसे ही जैसे सुई पानी से भरे लौटे में भी सीधी खड़ी रह गई।

Q.6 कबीर साहेब जी के ज्ञान को अद्भुत और शक्तिशाली क्यों माना जाता है?

कबीर साहेब जी के ज्ञान को अद्भुत और शक्तिशाली इसलिए माना जाता है क्योंकि इससे सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष का सच्चा मार्ग मिलता है। सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान मिलना बहुत ही दुर्लभ है और आसानी से प्राप्त नहीं हो सकता।


 

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Jitendra Gupta

मुझे पता है कि कबीर साहेब जी ने विभिन्न धर्मों में फैले पाखंड के खिलाफ आवाज़ उठाई थी। लेकिन हम इस बात पर कैसे यकीन कर सकते हैं कि कबीर साहेब जी सच बोल रहे थे? क्योंकि स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने के लिए कोई भी दूसरों की आलोचना कर सकता है।

Satlok Ashram

जितेंद्र जी, आप जी ने हमारे लेख में रूचि दिखाई, इसके लिए आपका आभार। सबसे पहले हम आपको बताना चाहते हैं कि हमारे सभी पवित्र शास्त्रों में प्रमाण है कि कबीर साहेब जी सर्वोच्च ईश्वर हैं। परमेश्वर कबीर साहेब जी द्वारा कही गई सभी बातें सच हैं और इसका प्रमाण हमारे पवित्र शास्त्रों में भी मिलता है। विचारणीय विषय यह है कि कबीर साहेब जी को सब अनपढ़ समझते थे, लेकिन फिर भी केवल उन्हें ही हमारे पवित्र शास्त्रों के गूढ़ रहस्यों के बारे में पता था। जिन महापुरुषों को कबीर साहेब जी मिले थे, उनके दोहों और वाणियों में भी परमेश्वर कबीर साहेब जी की महिमा का गुणगान है। इसके अलावा हमारे पवित्र शास्त्रों में ऐसे बहुत से प्रमाण हैं जो सिद्ध करते हैं कि कबीर साहेब जी ही सर्वोच्च ईश्वर हैं। कबीर साहेब जी ने कभी स्वयं को साबित करने के लिए दूसरों को नीचा नहीं दिखाया बल्कि जनता के सामने धार्मिक शास्त्रों से प्रमाणित ज्ञान बताया और नकली, अज्ञानी गुरुओं की पोल खोली। कभी किसी की निंदा नहीं की केवल उनके अज्ञान पर से पर्दा उठाया। अधिक जानकारी के लिए आप "ज्ञान गंगा" पुस्तक पढ़िए। आप संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सुन सकते हैं।

Ramansh Sharma

इस लेख में बहुत ही महत्त्वपूर्ण ज्ञान है और यह आत्मा को ईश्वर की भक्ति की ओर ले जाता है। मैं ईश्वर की खोज में पिछले 20 वर्षों से सच्चे आध्यात्मिक मार्ग की तलाश कर रहा हूं। मैंने कई गुरु बदले हैं लेकिन उनमें से किसी से भी मुझे संतुष्टि नहीं मिली है। मैंने कभी इतने गहन आध्यात्मिक प्रवचनों को इतनी व्याख्या के साथ नहीं सुना। इस लेख में वर्णित ज्ञान कुछ अलग है। अब मैं इसके बारे में और अधिक गहराई से जानना चाहता हूं।

Satlok Ashram

रामांश जी, आप जी ने हमारे लेख को पढ़कर अपने विचार व्यक्त किए, उसके लिए आपका हार्दिक धन्यवाद। देखिए वर्तमान में केवल संत रामपाल जी महाराज जी ही हमें शास्त्र-आधारित सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष के सच्चे मंत्र प्रदान कर रहे हैं। आप उनके सत्संगों को यूट्यूब चैनल पर सुनिए और उनके द्वारा लिखित आध्यात्मिक पुस्तकों को पढ़िए। शंका होने की स्थिति में अपने अन्य धार्मिक शास्त्रों से उनका मिलान कीजिए। यदि आप फिर भी संतुष्ट न हों तो अपने नज़दीकी सतलोक आश्रम में जाकर वहां अपनी आध्यात्मिक शंकाओं का समाधान करवा सकते हैं।