यही गीता ज्ञान दाता प्रभु (श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तक में) कह रहा है कि तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) की पूजा करने वालांे का ज्ञान हरा जा चुका है, ये तो इनसे ऊपर मेरी भक्ति पूजा भी नहीं करते। तीनों प्रभुओं (ब्रह्मा-विष्णु-शिव) तक की साधना करने वाले राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दुष्कर्म करने वाले मूर्ख इन तीनों से ऊपर मुझ ब्रह्म की पूजा भी नहीं करते।
श्रीमद्भगवत गीता के ज्ञान दाता प्रभु ने अध्याय 7 श्लोक 18 में अपनी भक्ति को भी अनुत्तम (घटिया) कहा है।
इसलिए अध्याय 15 श्लोक 4 तथा अध्याय 18 श्लोक 62 व 66 में किसी अन्य परमेश्वर की शरण में जाने को कहा है।
जिस समय गीता जी का ज्ञान बोला जा रहा था, उससे पहले न तो अठारह पुराण थे और न ही कोई ग्यारह उपनिषद् व छः शास्त्र ही थे। जो बाद में ऋषियों ने अपने-अपने अनुभवों की पुस्तकें रची हैं। उस समय केवल पवित्र चारों वेद ही शास्त्र रूप में प्रमाणित थे और उन्हीं पवित्र चारों वेदों का सारांश पवित्र गीता जी में वर्णित है।
गीता अध्याय 7 श्लोक नं. 12-15 तथा 20-23 में तीनों गुणों यानि रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु, तमगुण शिव जी तथा अन्य देवी-देवताओं को ईष्ट मानकर भक्ति करने को व्यर्थ कहा है। इनकी भक्ति करने वालों को राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूर्ख कहा है।
श्रीमद्भगवदगीता जी में तीनों देवताओं की पूजा करने वालों के बारे में कहा गया है कि वे राक्षसी स्वभाव वाले, मनुष्यों में नीच, बुरे कर्म करने वाले और मूर्ख हैं। इसका प्रमाण गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में है। यह भी कहा है कि जो इन तीनों देवों की पूजा करते हैं वो ब्रह्म काल को भी नहीं पूजते।
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में गीता ज्ञान दाता ने अपनी पूजा को भी अनुत्तम कहा है, जिसका अर्थ है घटिया।इसका मतलब यह है कि पूर्ण परमेश्वर की भक्ति की तुलना में गीता जी में बताई ब्रह्म काल की भक्ति करना लाभकारी नहीं है। इसलिए पवित्र गीता जी अध्याय 18 श्लोक 62 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि हे अर्जुन! तू सर्व भाव से उस पूर्ण परमात्मा की शरण में जा। उस परमेश्वर की ही कृप्या से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम (सत्यलोक) को प्राप्त होगा।
श्रीमद्भगवद गीता जी में गीता ज्ञान दाता किसी अन्य परमेश्वर की शरण में जाने को कहता है। वह पूर्ण परमेश्वर तीन देवताओं यानि कि ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी से ऊपर परम शक्ति है। केवल वह पूर्ण परमेश्वर कबीर जी ही हमें पूर्ण शान्ति और मोक्ष दे सकते हैं। इसका प्रमाण गीता अध्याय 15 श्लोक 4 और अध्याय 18 श्लोक 62 और 66 में है।
नहीं, गीता जी का ज्ञान बोले जाने के समय न तो अठारह पुराण थे, न ग्यारह उपनिषद और न ही छह शास्त्र थे। बल्कि इन ग्रंथों की रचना बाद में ऋषियों ने अपने अपने अनुभव के आधार पर की थी।
जब गीता जी का ज्ञान बोला गया उस समय चार पवित्र वेद ही एकमात्र प्रमाणित ग्रंथ थे। गीता जी का ज्ञान इन वेदों में मौजूद ज्ञान का ही सारांश है। अधिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी का सत्संग यूट्यूब चैनल पर सुनें।
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Kavyam Singh
मानव जीवन को सफल बनाने और सुख प्राप्त करने के लिए किसकी पूजा करनी चाहिए?
Satlok Ashram
मानव जन्म को सफल बनाने और सुख प्राप्त करने के लिए सभी मनुष्यों को सर्वशक्तिमान कविर्देव यानि कि परमेश्वर कबीर जी की पूजा करनी चाहिए। इसका प्रमाण हमारे सभी पवित्र धर्म ग्रंथों और गीता जी अध्याय 15:4 और अध्याय 18:62 में भी है।