वेदों में वर्णन है कि भगवान संपूर्ण शांतिदायक है। वह जो हमारे सारे पाप नष्ट करके हमें सुख प्रदान करता है। उसे ही सच्चा एवं सर्वोच्च भगवान कहा गया है।
यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 भगवान के निम्न गुणों का वर्णन करता है:
उशिगसी कविरंघारिसि बम्भारिसि...
उशिगसी = (सम्पूर्ण शांति दायक) कविरंघारिसि = (कविर्) कबिर परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक कबीर है। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर (असि) है।
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 5
गीताजी अध्याय 5 श्लोक 29 में गीता ज्ञान दाता काल–ब्रह्म कह रहा है कि अज्ञानी लोग जो मुझे जगत का स्वामी और संपूर्ण सुखदायी भगवान मानकर मेरी साधना पर आश्रित हैं, वह मेरे से मिलने वाली अश्रेष्ठ(अस्थाई) शांति को प्राप्त होते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप वे लोग पूर्ण परमात्मा से मिलने वाली शांति से वंचित रह जाते हैं, अर्थात् उनका पूर्ण मोक्ष नहीं होता। उनकी शांति समाप्त हो जाती है और अनेक प्रकार के कष्ट सहने पड़ते हैं। इसलिए अध्याय 18 के श्लोक 62 में गीता ज्ञानदाता ने कहा है –
“हे अर्जुन! पूर्ण शांति की प्राप्ति के लिए तू सर्वभाव से उस परमेश्वर की ही शरण में जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शान्ति को तथा सदा रहने वाला सत स्थान/धाम/लोक को प्राप्त होगा।”
इसका प्रमाण अध्याय 7 के श्लोक 18 में भी है।
महत्वपूर्ण: काल (ब्रह्म) भगवान तीनों लोकों के भगवानों (ब्रह्मा - विष्णु - महेश) के और इक्कीस ब्रह्मांडो के स्वामी हैं, वे देवताओं के देवता हैं। इसलिए उन्हें महेश्वर (महादेव) भी कहा जाता है। अज्ञानतावश, मूर्ख समुदाय इस काल को दयावान परमात्मा मानते हुए इससे शांति प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं।
उदाहरण के लिए एक कसाई अपने पशुओं को चारा और पानी उपलब्ध कराता है, और उन्हें आश्रय प्रदान करके गर्मी और ठंड से बचाता है। इसके कारण वे जानवर कसाई को दयालु मानकर उससे प्यार करते हैं। लेकिन वास्तव में कसाई उनका दुश्मन है। वह अपने स्वार्थ पूर्ण उद्देश्य के लिए उन सभी जानवरों को काटता है, मारता है।
इसी तरह, काल भगवान दयालु दिखाई देता है लेकिन सभी जीवों को खाता है। इसलिए, यह कहा गया है कि उनकी शांति समाप्त हो जाती है अर्थात वे अत्यंत कष्ट का अनुभव करते हैं।
गीताजी अध्याय 15 के श्लोक 17 में कहा गया है कि उत्तम पुरुष, अर्थात श्रेष्ठ ईश्वर तो कोई और है, जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सभी का धारण-पोषण करता है। वह वास्तविक अमर परमात्मा है। उसे ही भगवान कहा जाता है। अपने बारे में गीता ज्ञान दाता ने अध्याय 11 के श्लोक 32 में कहा है कि “अर्जुन, मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। सभी लोकों (मनुष्यों) को खाने के लिए प्रकट हुआ हूं।” जिसके दर्शन मात्र से अर्जुन जैसा पराक्रमी भी अपनी शांति खोकर थरथर कांपने लगा। इसलिए इसी अध्याय 5 के श्लोक 24 से 26 में, गीता ज्ञानदाता के अतिरिक्त एक अन्य शांतिदायक ब्रह्म का उल्लेख है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि गीता ज्ञान दाता शांति दायक ब्रह्म नहीं है, अर्थात् काल है।
विचार करें: वह, जो किसी को गधा बनाता है, किसी को कुत्ता बनाता है, जो किसी के पैर काट देता है (क्योंकि यहां सभी भक्तात्माओं का मानना है कि सब कुछ भगवान की कृपा से होता है। यहां तक कि एक पत्ता भी उनके आदेश के बिना नहीं हिलता है), जो सभी को खाता है, और अर्जुन जैसे योद्धा को डराकर युद्ध का कारण बनता है और फिर युद्ध में किए गए पापों के परिणाम स्वरूप युधिष्ठिर को बुरे सपने भी देता है, फिर जो कृष्ण जी के माध्यम से यह बताता है कि आपको यज्ञ करना चाहिए क्योंकि युद्ध में आपके द्वारा किए गए पाप कष्ट दे रहे हैं, जो उनसे हिमालय में तप करवा कर उनके शरीर गलवाता है और फिर उन्हें नर्क भी भेजता है; ऐसे प्रभु को शांति दायक परमात्मा नहीं कहा जा सकता। अब पाठक स्वयं चिंतन कर सकते हैं।
वो दयालु भगवान कबीर साहिब जी हैं, जो सतलोक के स्वामी हैं। वो सुख के सागर हैं। सतलोक में कोई भी आत्मा दुखी नहीं है। काल लोक में यदि कोई भक्त सुख चाहता है तो उसे परमपिता परमात्मा, पूर्ण ब्रह्म, सनातन प्रभु, कबीर परमात्मा की भक्ति करनी होगी और पूरा जीवन उनकी शरण में रहकर जीना होगा।
भगवद गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में बताए अनुसार दयालु भगवान पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर हैं। जिन्हें परम अक्षर पुरुष या परमात्मा कबीर भी कहा जाता है। वह सर्वोच्च भगवान, निर्माता, रचनहार, पालनकर्ता और अपने भक्तों के पापों को दूर करने वाले प्रभु हैं। परमात्मा प्रेम, करुणा और दया के प्रतीक हैं। इस का प्रमाण पवित्र श्रीमद्भागवत गीता जीे अध्याय 15 श्लोक 17 में भी है।
पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अपने भक्तों के ऊपर हमेशा दयालु रहते हैं। उनकी दयालुता के कारण ही उन्हें दयालु भगवान के रूप में जाना जाता है। केवल पूर्ण परमेश्वर ही मनुष्य के पापों का नाश करके मोक्ष प्रदान कर सकता है। इस का प्रमाण पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है। उशिगसी = (सम्पूर्ण शांति दायक) कविरंघारिसि = (कविर्) कबिर परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक कबीर है। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर (असि) है।
परमेश्वर सनातनकालीन अर्थात उसका अस्तित्व कभी समाप्त नहीं होगा। वह अमर है। परमेश्वर न्याय करने वाला है, वह किसी तरह का कोई पक्षपात नहीं करता। परमेश्वर सर्वशक्तिमान है; उसके पास सारी-सामर्थ्य है और वह कुछ भी कर सकता है। परमेश्वर अपरिवर्तनीय है, अर्थात वह कभी बदलता नहीं; इसका मतलब यह है कि परमेश्वर पूर्ण रूप से विश्वसनीय और भरोसेमंद है। परमेश्वर तुलना रहित है; अर्थात् कार्यों तथा अस्तित्व में उसके जैसा और कोई भी नहीं है; वह अतुल्य तथा सिद्ध है। परमेश्वर अबोधगम्य , अगम और अथाह है। परमेश्वर सर्वव्यापी है, अर्थात् वह हर समय, हर जगह उपस्थित रहता है; परमेश्वर सर्वज्ञानी है अर्थात् उसे भूतकाल, वर्तमान तथा भविष्य का ज्ञान है, वह सब कुछ जानता है, उसका न्याय सदैव निष्पक्ष ही रहेगा। परमेश्वर एक है;परमेश्वर सम्प्रभु है अर्थात् वह सर्वोच्च है। केवल पूर्ण परमेश्वर की भक्ति करने से ही सतलोक यानि की अमरलोक की प्राप्ति हो सकती है। इस का प्रमाण पवित्र श्रीमद्भगवत गीता जी अध्याय 18 श्लोक 62 में भी है।
पूर्ण ब्रह्म की सही और सच्ची भक्ति विधि जानने के लिए सच्चे संत यानी तत्वदर्शी संत की शरण में जाना चाहिए और उनसे मोक्ष मंत्र प्राप्त करने चाहिए। तत्वदर्शी संत के बताए अनुसार सच्चे मंत्रों का जाप करने से सर्वोच्च भगवान कबीर जी या पूर्ण ब्रह्म की प्राप्ति हो सकती है। इसका प्रमाण पवित्र श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में बताया गया है और अध्याय 2 श्लोक 15-16 में भी है।
पूर्ण ब्रह्म यानि पूर्ण परमेश्वर की पूजा करने से अनंत लाभ प्राप्त होते हैं। पूर्ण परमेश्वर की पूजा करने से ही मोक्ष प्राप्त होता है। मोक्ष प्राप्त व्यक्ति जन्म-मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति पा जाता है। इसके अलावा पूर्ण ब्रह्म की पूजा करने से ही इस लोक में भी परमात्मा की प्राप्ति होती है। पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में यह भी प्रमाण है कि पूर्ण परमेश्वर मनुष्य के सर्व पापों को नष्ट करके उसे सभी तरह के संकटों से बचाता है। परमात्मा की भक्ति और शरण सुरक्षा कवच का कार्य करती है।
यदि उपरोक्त सामग्री के संबंध में आपके कोई प्रश्न या सुझावहैं, तो कृपया हमें [email protected] पर ईमेल करें, हम इसे प्रमाण के साथ हल करने का प्रयास करेंगे।
Savitri Singh
देवी दुर्गा जगत जननी हैं। सृष्टि की रचनहार हैं और यही सर्वोच्च शक्ति हैं।
Satlok Ashram
सर्व सृष्टिकर्ता कबीर परमेश्वर हैं। सर्व पवित्र धर्म ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मांड के निर्माता यानी रचयिता सर्वोच्च और शक्तिशाली परमात्मा कबीर साहेब जी हैं। देवी दुर्गा कसाई ब्रह्म काल की पत्नी है। दुर्गा का पति ब्रह्म काल अपने लोक में फंस चुके जीवों को 84 लाख योनियों में फंसाए रखकर उन पर अत्याचार करता है। ब्रह्म काल और दुर्गा जी दोनों ही नाश्वान हैं। कबीर साहेब जी एकमात्र सर्वोच्च शक्ति हैं और सर्वशक्तिमान कबीर जी ही अमर यानि शाश्वत हैं। इसका प्रमाण गीता अध्याय 18:62 में गीता ज्ञान दाता ब्रह्म काल ने स्वयं दिया है।.