स्वर्ग की क्या परिभाषा है


Definition of Heaven by Saint Rampal JI

उदाहरणार्थ स्वर्ग को एक होटल (रेस्टोरेंट) जानों। जैसे कोई धनी व्यक्ति गर्मियों के मौसम में शिमला या कुल्लु मनाली जैसे शहरों में ठण्डे स्थानों पर जाता है। वहाँ किसी होटल में ठहरता है। जिसमें कमरे का किराया तथा खाने का खर्चा अदा करना होता है। दो या तीन महीने में बीस या तीस हजार रूपये खर्च करके वापिस अपने कर्म क्षेत्र में आना होता है। फिर दस महीने मजदूरी मेहनत करो। फिर दो महीने अपनी ही कमाई खर्च कर वापिस आओ। यदि किसी वर्ष कमाई अच्छी नहीं हुई तो उस दो महीने के सुख को भी तरसो।

ठीक इसी प्रकार स्वर्ग जानों:- इस पृथ्वी लोक पर साधना करके कुछ समय स्वर्ग रूपी होटल में चला जाता है। फिर अपनी पुण्य कमाई खर्च करके वापिस नरक तथा चैरासी लाख प्राणियों के शरीर में कष्ट पाप कर्म के आधार पर भोगना पड़ता है।

जब तक तत्वदर्शी संत नहीं मिलेगा तब तक उपरोक्त जन्म-मृत्यु तथा स्वर्ग-नरक व चैरासी लाख योनियों का कष्ट बना ही रहेगा। क्योंकि केवल पूर्ण परमात्मा का सतनाम तथा सारनाम ही पापों को नाश करता है। अन्य प्रभुओं की पूजा से पाप नष्ट नहीं होते। सर्व कर्मों का ज्यों का त्यों (यथावत्) फल ही मिलता है। इसीलिए गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में कहा है कि ब्रह्मलोक (महास्वर्ग) तक सर्वलोक नाशवान हैं। जब स्वर्ग-महास्वर्ग ही नहीं रहेंगे तब साधक का कहां ठीकाना होगा, कृपया विचार करें।


 

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Harikesh Yadav

मैं भगवान विष्णु जी का उपासक हूं और स्वर्ग प्राप्त करना चाहता हूं। इसलिए मैं 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः' मंत्र का जाप करता हूं। क्या मैं सही साधना कर रहा हूँ?

Satlok Ashram

'ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः' कृत्रिम मंत्र है अर्थात यह कोई मंत्र ही नहीं है। इस मंत्र का किसी भी पवित्र ग्रंथ में कोई प्रमाण नहीं है। यहां तक कि पवित्र गीता जी में कृत्रिम मंत्रों के जाप की मनाही की गई है। फिर इस कृत्रिम मंत्र के जाप से स्वर्ग की प्राप्ति की आशा करना भी व्यर्थ है। गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में केवल एक ओम मंत्र काल का बताया गया है जिसके जाप से ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है। गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में वर्णित असली मंत्रों 'ओम तत् सत् ' की प्राप्ति के लिए तत्वदर्शी संत की खोज करनी चाहिए। तत्वदर्शी संत ही विष्णु जी और अन्य भगवानों को प्रसन्न करने का असली मंत्र देते हैं। प्रत्येक आत्मा को स्वर्ग से भी ऊपर अमरलोक यानि कि केवल सतलोक प्राप्ति का लक्ष्य रखना चाहिए तथा मनुष्य को केवल पूर्ण परमेश्वर कबीर जी की पूजा करनी चाहिए।

Dheerendra Singh

स्वर्ग की याद मुझे सुकून देती है इसलिए मैं स्वर्ग को पाने के लिए दिन-रात पूजा करता हूं। क्या स्वर्ग वाकई में सुखमयी स्थल है?

Satlok Ashram

स्वर्ग कोई सुखमय स्थान नहीं है। यह एक होटल की तरह है जहां सुख-सुविधाएं प्राप्त करने के लिए आत्मा को अपने पुण्य जमा करने पड़ते हैं। स्वर्ग नाशवान स्थान है और कोई भी स्वर्ग में स्थाई तौर पर नहीं रह सकता है। जब पुण्य समाप्त हो जाते हैं तो उसके बाद आत्मा को नरक और फिर 84 लाख योनियों में कष्ट भोगने के लिए फेंक दिया जाता है। स्थाई सुख प्राप्त करने के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर कबीर जी की पूजा करनी चाहिए ताकि असली सुखमय सतलोक की प्राप्ति हो सके।

Sadhna Tiwari

व्यक्ति को भगवान विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए। उसके बाद वह स्वर्ग में चला जायेगा और हमेशा के लिए सुख की प्राप्ति होगी। क्या मृत्युपर्यन्त ऐसा ही होता है?

Satlok Ashram

मरते समय जिस साधक की जिस भी ईष्ट में आस्था होती है वह उसी के लोक में चला जाता है और स्वर्ग वह अस्थायी निवास स्थान है यहां ज्यादा पुण्य वाला साधक ही जाता है। उसके बाद वह साधक स्वर्ग में अपने पुण्यों के आधार पर सभी सुखों का आनंद लेता है। जब उसके पुण्य समाप्त हो जाते हैं तो उसके बाद नरक में कष्ट भोगने के लिए वापस लौटता है। फिर 84 लाख योनियों में जन्मता और मरता है। इस तरह स्वर्ग और सुख प्राप्त करने का लक्ष्य रखकर पूजा करना गलत है। स्थाई सुख और शांति प्राप्त करने के लिए संपूर्ण ब्रह्मांड के रचयिता परमेश्वर कबीर साहेब जी की भक्ति करनी चाहिए। उसके बाद मोक्ष प्राप्त करके अमरलोक यानि कि सतलोक जाया जाएगा। सतलोक में न तो बुढ़ापा है, न जन्म और मृत्यु और न ही कोई दुख तकलीफ है।