तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा श्रीमद्भगवद गीता का वास्तविक अर्थ


तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा श्रीमद्भगवद गीता का वास्तविक अर्थ

इसमें श्रीमद्भगवत गीता के ज्ञान का यथार्थ प्रकाश किया गया है। ऐसे आज तक किसी हिन्दू धर्म के गुरू ने तथा गीता के अनुवादकर्ता ने नहीं किया। सबने भोले हिन्दू समाज को भ्रमित करके उल्टा पाठ पढ़ाया है। मेरा मानव समाज से निवेदन है कि इन झूठे गुरूओं की मेरे साथ आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा करवाऐं। तब पता चलेगा ज्ञानी और अज्ञानी का। इस पुस्तक को ध्यानपूर्वक दिल थामकर पढ़ें। आप स्वयं समझ जाओगे कि माजरा क्या है? इसी पुस्तक में लिखी सृष्टि रचना में तथा गीता के सारांश में आप जी को श्री ब्रह्मा, विष्णु, महेश जी के माता-पिता तथा देवी दुर्गा के पति कौन हैं? आदि का ज्ञान भी होगा जिससे आज तक अपने धर्मगुरू नहीं बता पाए जो अपने ही ग्रन्थों में लिखे हैं।

श्रीमद्भगवत गीता चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) का संक्षिप्त रूप है। दूसरे शब्दों में गागर में सागर है। चारों वेदों में अठारह हजार (18000) श्लोक (मंत्र) हैं। उनको गीता में 574 श्लोकों में लिखा है। जिस कारण से गीता में सांकेतिक शब्द अधिक हैं। वैसे तो गीता में सात सौ (700) श्लोक हैं। जिनमें 574 काल ब्रह्म ने श्री कृष्ण के मुख से कहे हैं, शेष श्लोक संजय तथा अर्जुन के कहे हैं जो ज्ञान से संबंधित नहीं हैं। गीता के सांकेतिक शब्दों को हिन्दू धर्म के धर्मगुरू समझ नहीं पाए। जिस कारण से शब्दों के अर्थों का अनर्थ किया है। उदाहरण के लिए गीता अध्याय 18 श्लोक 66 में ‘‘व्रज’’
शब्द है। उसका अर्थ है जाना, जाओ, चले जाना, दूर जाना। सर्व गीता अनुवादकों ने व्रज का अर्थ ‘‘आना’’ किया है। आप प्रत्येक अनुवादक के किए अनुवाद में इस श्लोक को देखें। एस्कोन वालों ने तो कमाल कर रखा है। गीता अध्याय 18 श्लोक 66 के शब्दार्थ पहले लिखे हैं, नीचे अनुवाद किया है। ‘‘व्रज’’ शब्द का अर्थ तो किया है ‘‘जाओ’’, परंतु अनुवाद में कर दिया ‘‘मेरी शरण में आओ।’’

विचार करें:- अंग्रेजी भाषा के शब्द गो (Go) का अर्थ जाना, जाओ है। इस शब्द का अर्थ आना, आओ करना मूर्खता के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। इसी प्रकार गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित सर्व गीता अनुवादकों जैसे श्री जयदयाल गोयन्दका, श्री रामसुख दास जी, महामण्डलेश्वर गीता मनीषी जैसी उपाधि प्राप्त श्री ज्ञानानंद जी, अड़गड़ानंद जी ने तथा अन्य महानुभावों ने गीता के गूढ़ तथा सांकेतिक शब्दों के गूढ़ रहस्य को न समझकर अर्थ न करके अनर्थ किए हैं, गलत अर्थ करके भोली जनता को भ्रमित किया है। इनके द्वारा किए गए गीता के अनुवाद वाली गीता पर प्रतिबंध लगना चाहिए। जिन्होंने गलत अनुवाद किए हैं, उन सबकी अनुवादित गीता से समाज में गीता की गरीमा को ठेस पहुँच रही है तथा गीता का यथार्थ संदेश जनता को नहीं मिल रहा।

जैसे गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में भी गीता ज्ञान बोलने वाला अपने से अन्य परमेश्वर की शरण में जाने के लिए कह रहा है। उसी से संबंधित प्रकरण गीता अध्याय 18 श्लोक 66 में है जिसका अर्थ गलत करके गलत अनुवाद किया है। ऐसी-ऐसी अनेकों गलतियाँ गीता के अनुवाद में मेरे अतिरिक्त सबके द्वारा की गई हैं।

गीता के अनुवादक लिखते हैं कि श्री कृष्ण जी ने गीता का ज्ञान अर्जुन से कहा। श्री कृष्ण को विष्णु जी का अवतार यानि स्वयं विष्णु जी ही माता देवकी के गर्भ से उत्पन्न मानते हैं और श्री विष्णु जी उर्फ श्री कृष्ण जी को अविनाशी कहते हैं। जबकि गीता का ज्ञान कहने वाला गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5, अध्याय 10 श्लोक 2 में अपने को नाशवान कहता है। कहा है कि हे अर्जुन! तेरे और मेरे अनेकों जन्म हो चुके हैं। 

श्री देवी महापुराण के तीसरे स्कंद के अध्याय 4-5 पृष्ठ 138.  इसमें श्री विष्णु जी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि मेरा (विष्णु का) श्री ब्रह्मा का तथा श्री शिव का आविर्भाव यानि जन्म तथा तिरोभाव यानि मरण होता है। इसी फोटोकाॅपी में यह भी प्रमाणित है कि इन तीनों को जन्म देने वाली भी देवी दुर्गा जी यानि अष्टांगी है। हिन्दू धर्म के अज्ञानी धर्मगुरू कहते हैं कि इनके कोई माता-पिता नहीं हैं। सइ प्रकार की अनेक मिथ्या कथाऐं शास्त्रों के विपरित बताकर इन अज्ञानियों ने हिन्दू समाज का बेड़ा गरक कर रखा है।

हिन्दू धर्मगुरू कहते हैं कि श्री विष्णु जी सतगुण, श्री शिव जी तमगुण व अन्य देवी-देवताओं की पूजा करो जबकि गीता में अध्याय 7 श्लोक 12.15 तथा 20.23 में कहा है कि इनकी पूजा करने वाले राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच दूषित कर्म करने वाले मूर्ख हैं।

हिन्दू धर्मगुरू श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव जी को ईश यानि सर्व के स्वामी बताते हैं जबकि श्री शिव महापुराण में विद्यवेश्वर संहिता भाग-1 पृष्ठ 17.18 अध्याय 9-10 में स्पष्ट है कि सदाशिव यानि काल ब्रह्म श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा शिव जी के पिता जी हैं जो गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में कह रहा है कि मैं काल हूँ। उसने विद्यवेश्वर संहिता भाग-1 के पृष्ठ 17 पर आपस में लड़ रहे श्री ब्रह्मा जी तथा श्री विष्णु जी के मध्य में तेजोमय स्तम्भ खड़ा करके उनका युद्ध बंद करवाकर कहा कि तुम अपने को संसार का ईश यानि स्वामी कह रहे हो, इस बात पर लड़ रहे हो। तुम ईश (प्रभु=भगवान) नहीं हो। यह सब मेरा है। मेरा एक ॐ (ओम्) मंत्र भक्ति का है जो पाँच अवययों से एकीभूत होकर यानि अ,उ,म,नाद तथा बिंदु से मिलकर एक ॐ (ओम्) बना है। गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में भी इसी ने श्री कृष्ण में प्रेतवत् प्रवेश करके गीता ज्ञान कहा था। उसमें कहा है कि मुझ ब्रह्म का केवल एक ओम् (ॐ) अक्षर है उच्चारण करके स्मरण करने का।

श्री शिव पुराण का प्रकरण:- शिवपुराण के विद्यवेश्वर संहिता भाग-1 पर काल ब्रह्म जो उस समय अपने पुत्रा शिव के वेश में उपस्थित था, ने बताया कि हे पुत्रो! मेरे पाँच कृत्य हैं सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोभाव तथा अनुग्रह। हे पुत्रो ब्रह्मा, विष्णु! सृष्टि की उत्पत्ति ब्रह्मा तेरे को तथा पालन करना विष्णु तेरे को मैंने तुम्हारे तप के प्रतिफल में दिए हैं। संहार (सामान्य प्राणियों को मारना) रूद्र को तथा तिरोभाव (भक्तों तथा देवताओं आदि को मारना) महेश को दिए, परंतु ‘‘अनुग्रह’’ कृत्य को पाने में कोई भी समर्थ नहीं है।(1-12)

श्री शिव महापुराण के इस प्रकरण से सिद्ध हुआ कि श्री ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव ईश यानि संसार के स्वामी (प्रभु) नहीं हैं। इन तीनों का पिता काल ब्रह्म है तथा माता श्री देवी (दुर्गा) जी हैं जो श्री देवी भागवत पुराण यानि देवी पुराण में लिखा है। हिन्दू धर्मगुरूजन अपने शास्त्रों से ही परिचित नहीं तो ये गुरू पद के योग्य नहीं हैं। इन्होंने हिन्दू धर्म के श्रद्धालुओं के मानव जीवन का नाश कर दिया। शास्त्राविधि विरूद्ध भक्ति साधना करवाकर भिखारी, चोर, डाकू, रिश्वतखोर, मिलावटखोर बनाकर छोड़ दिया। गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में स्पष्ट किया है कि जो साधक शास्त्राविधि त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है यानि जो भक्ति की साधना शास्त्रों में वर्णित नहीं है, उसे करता है तो उसे न तो सुख प्राप्त होता है, न उसे भक्ति शक्ति यानि सिद्धि प्राप्त होती है तथा न उसकी गति यानि मुक्ति होती है। इसी
कारण से सर्व साधक तन-मन-धन से झूठे गुरूओं द्वारा बताई साधना, दान-धर्म भी करते हैं। फिर भी न तो घर-परिवार में सुख, न कारोबार में बरकत (लाभ) जिसके लिए प्रत्येक व्यक्ति भगवान की साधना से अपेक्षा करता है। साधना शास्त्राविरूद्ध होने से परमात्मा की और से कोई लाभ नहीं मिलता। जिसकी पूर्ति के लिए चोरी, हेराफेरी, रिश्वत, ठगी, मिलावट आदि अपराध करने लग जाते हैं। कुछ समय पश्चात् नास्तिक हो जाते हैं। ऐसे हिन्दू समाज का बेड़ा गरक शास्त्रा ज्ञान से अपरिचित हिन्दू गुरूओं ने कर दिया। मेरे (लेखक-रामपाल दास के) पास शास्त्रों का यथार्थ ज्ञान है तथा शास्त्रोक्त साधना के यथार्थ स्मरण मंत्रा हैं जो साधक को सुख यानि घर-परिवार में सुख, कृषि व कारोबार में बरकत (लाभ), आध्यात्मिक शक्ति (सिद्धि) तथा पूर्ण मोक्ष प्रदान करते हैं। इस पुस्तक ‘‘गरीमा गीता की’’ में आप जी को उन शास्त्रों में वर्णित यथार्थ साधना के मंत्रों की जानकारी पढ़ने को मिलेगी। शास्त्रों के अध्याय, श्लोक तथा पृष्ठ भी लिखे हैं जो आप अपनी संतुष्टि के लिए अपने शास्त्रों से मिलान करके जाँच सकते हो। 

श्रीमद्भगवत गीता चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) का सारांश है तथा यह पुस्तक ‘‘गरीमा गीता की’’ श्रीमद्भगवत गीता का यथार्थ सारांश है। प्रत्येक अध्याय से मक्खन निकालकर फिर उसको शुद्ध करके गीता रूपी गाय का घी बनाया है। आप जी इसे पढ़ें तथा गीता की गरीमा से यथार्थ रूप से परिचित होकर स्वयं तथा अपने परिवार को धन्य
बनाऐं। नाम दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त करें। विश्व के सर्व प्राणी एक परमेश्वर कबीर जी के बच्चे हैं यानि परमेश्वर द्वारा उत्पन्न आत्माऐं हैं जो काल ब्रह्म के लोक में जन्म-मरण तथा अनेकों कष्ट उठा रहे हैं। परमेश्वर कबीर जी चाहते हैं कि मेरी आत्माऐं मुझे अध्यात्म ज्ञान से पहचानें। फिर सत्य साधना करके सनातन परम धाम (सत्यलोक) में जाकर सदा सुखी जीवन जीऐं। उस परमेश्वर जी ने स्वयं यथार्थ भक्ति मंत्रों को बताया है जो सर्व शास्त्रों में प्रमाण मिला है। जिस कारण सत्य भक्ति की साधना की सार्थकता सिद्ध हुई है।

जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा। हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।

आप जी इस पवित्र गीता सार को पढ़ें तथा अन्य को पढ़ाऐं। भूलों को राह बताऐं। इससे बड़ा पृथ्वी पर कोई धर्म नहीं है। मेरे अनुयाई तथ्यों को आँखों शास्त्रों में देखकर आश्चर्यचकित हुए थे। सत्य को स्वीकार करके तुरंत झूठी साधना त्यागकर सत्य साधना दीक्षा मुझ दास (रामपाल दास) से लेकर जीवन धन्य कर रहे हैं। साथ-साथ इस अद्वितीय यथार्थ अध्यात्म ज्ञान का प्रचार करके पुण्य के भागी बन रहे हैं। झूठे गुरूओं से प्रभावित भोली जनता के द्वारा दी जा रही परेशानियों को झेलते हुए प्रचार में लगे हैं। ये आपको अपना भाई-बहन मानते हैं। आपके कल्याण का उद्देश्य रखते हैं। लेखक का उद्देश्य भी मानव समाज का कल्याण करना है। आप जी मेरे द्वारा बताया अध्यात्म ज्ञान समझें। पूर्ण रूप से जाँच करें। फिर हमसे जुड़ें। मर्यादा में रहकर भक्ति करें। तब देखना आपको प्रत्यक्ष लाभ होता महसूस होगा। आप अपने बीते मानव जीवन के समय को व्यर्थ साधना नष्ट होने का बहुत पाश्चाताप् करोगे। सत्य भक्ति मार्ग मिलने से परमेश्वर कबीर जी का कोटि-कोटि धन्यवाद करोगे। आप ऐसा अनुभव करोगे जैसे कोई मौत मुख से निकलने पर सुरक्षित तथा भय महसूस करता है। अविलंब आऐं और दीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाऐं।

Rig Veda


 

FAQs : "तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा श्रीमद्भगवद गीता का वास्तविक अर्थ"

Q.1 श्रीमद्भगवद्गीता किसने लिखी थी?

श्रीमद्भगवद्गीता ऋषि वेद व्यास जी ने लिखी थी, जिसमें महाभारत के ऐतिहासिक तथ्यों को भगवान कृष्ण के साथ जोड़कर पेश किया गया था।

Q.2 श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान किसने दिया था?

पवित्र गीता का ज्ञान भगवान ब्रह्म काल ने श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रेत की तरह प्रवेश करके दिया था। उसके बाद ब्रह्म काल ने ही अर्जुन से कहा था कि, "अर्जुन मैं बड़ा हुआ काल हूं और सबको खाने के लिए आया हूं।" इसी का प्रमाण गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में भी मिलता है , यहां ब्रह्म काल ने कहा है कि यह मेरा मूल स्वरूप है, जिसे न तो तुमसे पहले कोई देख सका और न ही भविष्य में कोई देख पाएगा।

Q. 3 श्रीमद्भगवद्गीता का मुख्य संदेश क्या है?

पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता में सर्वशक्तिमान ईश्वर के बारे में ज्ञान बताया गया है। लेकिन गीता जी का मुख्य उद्देश्य यह बताना है कि व्यक्ति केवल पूर्ण संत की शरण में जाकर और पूर्ण भगवान की भक्ति करके ही मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। इसका प्रमाण गीता अध्याय 15 श्लोक नं. 17 में लिखा है। इसमें ही अविनाशी परमेश्वर की महिमा भी बताई है कि वह परमेश्वर कबीर जी ही तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका पालन-पोषण करता है और उन्हें अविनाशी परमेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।

Q.4 पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान के बारे में क्या बताया गया है?

पवित्र श्रीमद्भगवदगीता में तीन देवताओं का वर्णन है , जिनको क्षर पुरुष, अक्षर पुरुष और परम अक्षर पुरुष के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा क्षर पुरुष को ईश यानि कि 21 ब्रह्माण्ड का स्वामी, परब्रह्म को ईश्वर यानि कि सात चतुर् ब्रह्माण्ड का स्वामी और पूर्ण ब्रह्म को अनन्त ब्रह्माण्ड का स्वामी या परमेश्वर कहा जाता है।

Q.5 पवित्र श्रीमद्भगवद गीता हमें क्या सिख देती है?

श्रीमद्भगवद गीता में हमारे बहुत से प्रश्नों का उत्तर छुपा है। इसमें ब्रह्म काल कहता है कि पूर्ण परमात्मा को पाने के लिए किसी तत्वदर्शी संत की शरण में जाना चाहिए और तत्वदर्शी संत पूर्ण भगवान के बारे में गहराई से जानकारी देगा। इसके अलावा वही तत्वदर्शी संत परमात्मा की बनाई हुई सृष्टि के बारे में बताएगा और वह ही सब देवताओं की स्थिति बताएगा। फिर श्रीमद्भगवद गीता को गहनता से समझने से यह भी पता चलता है कि सच्ची भक्ति करके जन्म और मृत्यु के दुष्चक्र से बचा जा सकता है।

Q.6 क्या मुझे श्रीमद्भगवद गीता पढ़नी चाहिए?

बिल्कुल पढ़नी चाहिए, बल्कि प्रत्येक मनुष्य को भगवद गीता पढ़नी चाहिए। श्रीमदभगवद गीता से ईश्वर के बारे में जानकारी मिलती है और सभी देवताओं की स्थिति भी पता चलती है। इसके अलावा श्रीमद्भगवद गीता से हमें सच्चे संत की जानकारी भी होती है और जिनकी बताई साधना करने से हम जन्म– मृत्यु के चक्र से मुक्ति पा सकते हैं।

Q.7 श्रीमद्भागवत गीता में किस भगवान के बारे में बताया गया है?

यह सच है कि पूर्ण परमात्मा कबीर जी ही हैं। इसी का प्रमाण भगवत गीता अध्याय 8 श्लोक 9 में भी मिलता है। वह ही अनादि, सब पर शासन करने योग्य, सूक्ष्म से भी सूक्ष्म और सूर्य के समान निरंतर प्रकाशमान है। यह वही कबीर परमेश्वर है, जिसे सच्चिदानंदघनब्रह्म के नाम से भी जाना जाता है।

Q.8 श्रीमद्भगवद गीता का निष्कर्ष क्या है?

पवित्र श्रीमद्भगवद गीता अध्याय 18 श्लोक 64 में सबसे महत्वपूर्ण वर्णन यही है कि केवल पूर्ण परमात्मा पूजा करने योग्य है। संसार रूपी उल्टे लटके वृक्ष का तना, बड़ी शाखा और छोटी शाखाएँ सभी का आधार यानि कि परमेश्वर कबीर जी हैं।


 

Recent Comments

Latest Comments by users
यदि उपरोक्त सामग्री के संबंध में आपके कोई प्रश्न या सुझावहैं, तो कृपया हमें [email protected] पर ईमेल करें, हम इसे प्रमाण के साथ हल करने का प्रयास करेंगे।
Chavi Gupta

गीता हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ है जो अर्जुन और हिंदू देवता विष्णु जी के अवतार कृष्ण जी के बीच की वार्तालाप है।

Satlok Ashram

गीता भगवान श्री कृष्ण जी और योद्धा अर्जुन के बीच की वार्तालाप नहीं है, बल्कि यह 21 ब्रह्मांडों के मालिक यानि कि ज्योति निरंजन काल द्वारा अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में दिया गया ज्ञान-संवाद है। इसके अलावा आध्यात्मिक गुरुओं में आध्यात्मिक ज्ञान की कमी होने के कारण उन्होंने इसे संवाद का नाम दे दिया। गीता की वास्तविक जानकारी प्राप्त करने के लिए कृपया हमारी वेबसाइट पर जाएं।

Geetanjali

कुछ लोगों का मानना है कि भगवद गीता भगवान गणेश द्वारा लिखी गई थी, जैसा कि उन्हें वेद व्यास जी ने बताया था।

Satlok Ashram

यह एक मिथक है, जबकि गीता का ज्ञान ब्रह्म काल ने दिया था। इसलिए गीता जी का ज्ञान देने और लिखने में भगवान गणेश जी की कोई भूमिका नहीं है।

Malvina Singh

भगवद गीता में श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को कर्म के आधार पर "धर्म को बनाए रखने के लिए, अपने क्षत्रिय कर्तव्य को पूरा करने" के लिए कहा था।

Satlok Ashram

सत्य आध्यात्मिक ज्ञान की कमी के कारण लोग आज ही गुमराह हैं और किए जा रहे हैं। वह भगवान श्री कृष्ण को ही गीता ज्ञान दाता मानते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि 21 ब्रह्मांडों के स्वामी भगवान ब्रह्म काल ने ही महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। इसी का प्रमाण गीता 11:32 में भी है।