पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब आदरणीय श्री नानक देव जी द्वारा कही गई विभिन्न पवित्र वाणियों का एक संग्रह है जो सतगुरु और सच्चे नाम की महिमा करते हैं; सच्चा नाम अकाल पुरुष कबीर साहेब ने उन्हें प्रदान किया था जिसे 'सतनाम' कहा जाता है। यह सच्चा मोक्ष मंत्र है और केवल तभी काम करता है जब इसे तत्वदर्शी संत द्वारा प्रदान किया जाता है क्योंकि सतनाम का जाप करने का एक विशिष्ट तरीका है। सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान की कमी के कारण पूरा सिख समुदाय सिख धर्म में सतनाम क्या है? इससे अनजान है। इसलिए भूलवश वे 'सतनाम वाहेगुरु' का जाप करते हैं, जबकि आदरणीय श्री गुरु नानक देव जी ने इसे "इक ओंकार सतनाम" लिखा है, जिसका अर्थ है "केवल एक ही ईश्वर है और उसे प्राप्त करने का मंत्र सतनाम है"। श्री नानक देव जी ने बहुत कुछ गुप्त रखा है। भगवान की प्राप्ति में सतनाम के महत्व पर ज़ोर देते हुए वह राग सिरी, मेहला 1, श्री गुरु ग्रंथ साहिब में कहते हैं
'तेरा एक नाम तारे संसार, मैं इहो आस इहो आधार'
जिसका मतलब है कि भगवान को पाने का केवल एक ही मंत्र है। इसका जाप करने से आत्मा काल के लोक से पार हो जाती है। सतनाम ऐसा प्रभावी मंत्र है जो अमर लोक सचखंड को प्राप्त करवा सकता है। तो, वह 'एक नाम' क्या है जिसके बारे में गुरु नानक जी बताते हैं? आगे बढ़ते हैं, यह लेख श्री गुरु ग्रंथ साहिब के पवित्र ग्रंथ से प्रमाण प्रस्तुत करेगा जो सिख धर्म में सतनाम के बारे में प्रचलित अस्पष्टता को दूर करेगा।
आइये सबसे पहले समझते हैं कि सतनाम क्या है?
ईश्वर-प्रेमी आत्माएँ उस दिन से शाश्वत शांति की तलाश में भटक रही हैं जब से वे सुख देने वाले ईश्वर/परम अक्षर पुरुष/सतपुरुष से अलग हो गईं। पवित्र शास्त्रों और भगवान के चश्मदीदों की विभिन्न अमृत वाणियों ने साबित कर दिया है कि भगवान को पाने के लिए, मुक्ति पाने के लिए तीन गुप्त मंत्र है जो केवल तभी काम करते है जब वह एक तत्वदर्शी संत द्वारा तीन चरणों में प्रदान किया गया हो। यह प्रमाण पवित्र यजुर्वेद अध्याय 10 मन्त्र 25 में मिलता है जिसमें कहा गया है कि संसार का एक परोपकारी संत वेदों के अधूरे वाक्यों को, गुप्त मंत्रों को और एक चौथाई श्लोकों को पूरा करके विस्तार से बताएगा।
सच्चिदानंद घन ब्रह्म की अमृत वाणी अर्थात सूक्ष्मवेद, पवित्र कबीर सागर, अध्याय अमर मूल बोध सागर, पृष्ठ 265 भी मुक्ति पाने के लिए तीन चरणों में नाम जाप करने का प्रमाण देता है।
पूज्य गुरु नानक देव जी की पवित्र वाणी में भी यही कहा गया है कि वही सतगुरु है जो तीन चरणों में नाम दीक्षा देता है और उन मंत्रों के जाप की विधि श्वांस (श्वांस और उंश्वास) के माध्यम से बताता है जिसे जाप करने से आत्माएं वापस शाश्वत लोक, सतलोक में लौट सकती हैं।
चाहूँ का संग, चाहूँ का मीत, जामे चारी हटावे नित।।
मन पवन को राखे बंद, लहे त्रिकुटी त्रिवेणी संध।।
अखण्ड मण्डल में सुन्न समाना, मन पावन सच्च खण्ड टिकाणा।।
सतनाम दो शब्दों वाला (गुप्त) मोक्ष मंत्र है जिसका प्रमाण पवित्र श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में मिलता है जो 'ओम-तत्-सत्' है। दो शब्दों वाला मंत्र 'ओम-तत्' (गुप्त) सतनाम है। इसी मन्त्र का प्रमाण सामवेद मन्त्र नं. 822, सामवेद उत्तराचिक अध्याय 3 खण्ड नं. 5 श्लोक नं. 8, और पवित्र कुरान शरीफ सूरत-शूरा (सूरह-शूरा) 42 आयत 1 जैसे पवित्र ग्रन्थों में भी मिलता है।
जो 'ऐन-सीन-क़ाफ़' है उसमे पहले दो शब्दों वाला (गुप्त) मंत्र ''ऐन-सीन'' सतनाम है।
नोट: संपूर्ण तीन मंत्र 'ओम-तत्-सत्' प्राप्त होने का अर्थ है कि साधक को आदिनाम अर्थात सारनाम की प्राप्ति हो गई है। सारनाम परम अक्षर पुरुष का मंत्र है।
मोक्ष प्राप्त करने के लिए यह बताया गया है कि तीन देवताओं की साधना करना आवश्यक है और उनका मंत्र केवल तत्वदर्शी संत द्वारा प्रदान किया जाता है। वह वेदों और सभी पवित्र ग्रंथों के ज्ञाता होता हैं; तभी एक आत्मा कसाई ब्रह्म-काल के जाल से मुक्त हो सकती है जो इक्कीस ब्रह्मांडों का मालिक है।
आइए सबसे पहले जानते हैं कि वे तीन देवता कौन हैं जिनकी सही तरह से साधना करने से आत्मा को मुक्ति मिलती है।
ऋग्वेद मण्डल नं. 10 सूक्त 90 मन्त्र 2 व 3 तथा अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक नं.1 मंत्र नं.1, 3, व 4 में प्रमाण है कि तीन देवता हैं जिनकी साधना करने के लिए एक विशिष्ट मंत्र हैं। ये तीन भगवान अध्यात्म के आधार स्तंभ हैं। जैसा कि ऊपर गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में बताया गया है कि पूर्ण परमात्मा (अकाल पुरुष/सतपुरुष) की प्राप्ति केवल तीन मंत्र 'ओम-तत्-सत्' (कोडित/गुप्त) के जाप से संभव है। सूक्ष्मवेद परमेश्वर की अमृतवाणी है जिसमें बताया गया है कि तीन भगवान हैं।
1. क्षर पुरुष अर्थात ज्योति निरंजन ब्रह्म-काल है जिसका मंत्र 'ओम' है।
2. अक्षर पुरुष यानि परब्रह्म, इनका मंत्र 'तत्' (सांकेतिक) है।
3. परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् सतपुरुष/पूर्णब्रह्म (पूर्ण परमात्मा) है, उनका मन्त्र 'सत' (सांकेतिक) है।
नोट: इस लेख का मुख्य सार 'ओम-तत्' की व्याख्या करने पर होगा, जो कि सतनाम है जिसका संदर्भ पवित्र ग्रंथों से लिया गया है।
यह समझने के बाद कि तीन भगवान हैं और प्रत्येक का एक विशिष्ट मंत्र है, आइए हम आध्यात्मिक ज्ञान को गहराई से जानें और सतनाम के संबंध में पूज्य श्री नानक देव जी की पवित्र वाणियों में दिए गए कई साक्ष्यों पर प्रकाश डालें।
गुरु नानक देव जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब में कई स्थानों पर अपने आध्यात्मिक गुरु, सतगुरु की महिमा की है और बताया है कि उन्हें अपने गुरु से सच्चा मोक्ष मंत्र सतनाम मिला जिसने उन्हें मोक्ष की प्राप्ति के योग्य बना दिया। गुरु नानक देव जी अपनी एक पवित्र वाणी में कहते हैं:
जै पंडित तू पढ़िया, बिंन दो अखर दो नामा।
प्रणब नानक एक लघाएं, जै कर सच समाना।।
भावार्थ: गुरु नानक जी कहते हैं, 'हे पंडित! भले ही आपने कई पवित्र ग्रंथ, वेद आदि पढ़े हों और खुद को ज्ञानी मानते हों लेकिन सच तो यह है कि अगर आपके पास दो शब्दों वाला सच्चा नाम नहीं है यानी सतनाम तो तुम्हारा बाकी ज्ञान बेकार है। सतनाम का पहला मंत्र 'ओम' आपको काल के जाल से छुटकारा दिलाएगा और दूसरा 'तत्' (गुप्त) मंत्र आपको शाश्वत स्थान तक पहुंचने में मदद करेगा। मेरी बात पर भरोसा करो। पूर्ण संत 'सतनाम' प्रदान करता है।
राग बसंत महला 1 पौड़ी नं. 3 आदि ग्रथ (पंजाबी) पृष्ठ नं. 1188 में नानक जी कहते हैं कि सतनाम से उनका अहंकार नष्ट हो गया और तब मुझे भगवान के दर्शन हुए। मैंने भगवान को सतगुरु के रूप में देखा। कबीर साहेब/पूर्ण परमात्मा/अकाल मूरत ने मुझे सचखंड दिखाया और मुझे काशी, वाराणसी में सतनाम प्रदान किया, जहां वह एक जुलाहे की दिव्य लीला कर रहे थे। उन्होंने कहा:-
नानक हौमो शबद (सतनाम) जलाइयां, सतगुरु साचे दरस दिखाइयां ।।
अब सवाल उठता है:-
आइए इन सभी प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयास करें।
पुण्य आत्मा नानक जी का जन्म विक्रमी संवत 1526 (1469 ई.) कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को पश्चिमी पाकिस्तान के जिला लाहौर के तलवंडी नामक गाँव में एक हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता श्री कालू राम मेहता (क्षत्रिय) और माता श्रीमती तृप्ता देवी थीं। विद्वान पुरुष नानक जी फ़ारसी, पंजाबी और संस्कृत जैसी भाषाओं में पारंगत थे। पंडित श्री बृजलाल पांडे जी उनके गुरु थे जो उन्हे पवित्र श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन करवाते थे। प्रभु-प्रेमी आत्मा नानक जी ने युगों-युगों तक ब्रह्म-काल की पवित्र भक्ति की। वह 'ओम' मंत्र, हरे-कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण, राम-राम, राधे-राधे श्याम मिलादे का जाप भी करते थे और मानते थे कि उनकी भक्ति सर्वोच्च है। नानक जी की वही आत्मा सतयुग में राजा अम्बरीश, त्रेतायुग में राजा जनक (सीता जी के पिता) और कलयुग में नानक देव जी थे।
धर्मात्मा नानक जी प्रतिदिन सुल्तानपुर के पास बेई नदी पर स्नान करने जाते थे। एक दिन जब वह ध्यान अवस्था में थे और भगवान का स्मरण कर रहे थे; उस समय सर्वशक्तिमान कविर्देव जिन्दा बाबा का रूप धारण करके नानक जी से मिले। परमेश्वर कबीर साहेब ने अपने आप को एक साधारण मनुष्य बताते हुए नानक जी के साथ आध्यात्मिक चर्चा शुरू की और उन्हें बताया कि वह भगवान की खोज में भटक रहे हैं और भगवान के बारे में जानकारी प्राप्त करने की उनकी इच्छा है और कुछ प्रश्न हैं जिनका उत्तर अभी तक उन्हें कोई नहीं दे पाया है।
नानक जी ने जिंदा बाबा से कहा कि तुम्हें गुरु धारण करना चाहिए क्योंकि गुरु के मार्गदर्शन के बिना मुक्ति असंभव है। यह पूछने पर कि क्या जिंदा बाबा ने कोई गुरु धारण किया था; परमेश्वर कबीर साहेब ने उत्तर दिया कि वह काशी, वाराणसी के एक जुलाहा हैं। यद्यपि स्वामी रामानन्द जी उनके गुरु हैं; वह अपने आध्यात्मिक प्रश्नों का समाधान करने में भी असमर्थ है। कबीर साहेब ने चतुराई से नानक जी को गुरु बनाने की इच्छा प्रकट की। नानक जी अपने आध्यात्मिक ज्ञान के प्रति आश्वस्त होकर जिंदा बाबा के रूप में जुलाहा कबीर के गुरु बनने के लिए सहमत हुए और आश्वासन दिया कि अब आपका कल्याण निश्चित है।
नानक जी जिंदा बाबा रूप में आए कबीर साहेब को जिज्ञासु समझकर समझाने लगे कि श्री कृष्ण जी उर्फ विष्णु जी ही सर्वोच्च शक्ति हैं। श्रीमद्भगवदगीता में 'ओम' मंत्र का उल्लेख है जो मोक्ष प्राप्त करने का सबसे सरल तरीका है। इसलिए आपको 'ओम' मंत्र का जाप करना चाहिए। परमेश्वर कबीर और नानक जी के बीच संवाद हुआ जिसमें कबीर साहेब द्वारा प्रदान किए गए प्रमाणों के माध्यम से नानक जी को ज्ञान हुआ कि श्री कृष्ण जी पवित्र गीता जी के ज्ञान के वक्ता नहीं हैं और वह भगवान भी नहीं हैं।
कबीर साहेब ने पवित्र ग्रंथों से संदर्भ लेते हुए साबित किया कि ब्रह्म-काल ही गीता जी का ज्ञान दाता है और उसने सभी आत्माओं को अपने इक्कीस लोकों में फंसा रखा है और 84 लाख योनियों में उन्हें प्रताड़ित करता है। आत्माएं जन्म और मृत्यु के दुष्चक्र में फंसी हुई हैं और वे तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेकर सच्चे मोक्ष मंत्र सतनाम और सारनाम का जाप करके ही मुक्त हो सकती हैं।
कबीर साहेब ने नानक जी को सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया और बताया कि गीता जी को बोलने वाला अध्याय 18 श्लोक 62 में अर्जुन से कहता है कि 'तू हर प्रकार से उस अविनाशी परम शक्ति की शरण में जा, उसी की कृपा से तुझे परम शांति और शाश्वत निवास' स्थान प्राप्त होगा। कबीर साहेब ने कहा कि मैं उस परमेश्वर की खोज में हूँ। जिंदा बाबा के विचार सुनकर नानक जी आश्चर्यचकित हो गए और उन्होंने इस तथ्य को स्वीकार कर लिया कि वह अज्ञानी हैं लेकिन अहंकारवश नानक जी ने पहली बार में तो कबीर साहेब के शब्दों में ज़्यादा रुचि नहीं दिखाई क्योंकि उनका मानना था कि उनका ज्ञान श्रेष्ठ है।
इसके बाद कबीर साहेब वहां से अंतर्ध्यान हो गये। तब तक नानक देव जी के मन में भक्ति का बीज बोया जा चुका था और उनमें ईश्वर को पाने की तीव्र उत्कंठा पैदा हो गई थी इसलिए वे और अधिक जानने के इरादे से जिंदा बाबा से दूसरी बार मिलना चाहते थे। उन्होंने स्वयं गीता जी में कबीर साहेब द्वारा दिये गये प्रमाणों के अंशों का भी सत्यापन किया।
भगवान अपने सभी प्रिय आत्माओं की पुकार सुनते हैं जो उन्हें दिल से याद करते हैं। छह महीने के बाद, परमेश्वर कबीर साहेब ने नानक जी को बेई नदी के उसी तट पर दूसरी बार दर्शन दिए और फिर उन्हें ब्रह्मांड की संपूर्ण रचना के बारे में समझाया और उन्हें सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया।
इस बार नानक जी ने जिंदा बाबा के एक-एक शब्द पर भरोसा किया और अद्भुत शाश्वत लोक सतलोक/सचखंड को और सृष्टि के कर्ता यानी परम अक्षर पुरुष को देखने की इच्छा व्यक्त की। फिर कबीर जी, पुण्यात्मा नानक जी को अमर धाम लेकर गये। उन्होंने उन्हें अपनी बनाई सारी सृष्टि दिखाई और समझाया कि सतलोक ही सभी आत्माओं का मूल स्थान है। सभी अपनी गलती से ही ब्रह्म-काल की नकली दुनिया में फंसे हुए हैं। दिव्य प्रकाशमान अद्भुत सतलोक को देखकर नानक जी का मन आनंदित हो गया।
वहां उन्होंने अकाल पुरुष/परमेश्वर को अपने वास्तविक रूप में विराजमान देखा। उनका शरीर अत्यंत प्रकाशवान था। वह एक बड़े स्वप्रकाशित गुंबद के नीचे एक सिंहासन पर बैठे थे और उनके सिर पर एक चंवर स्वचालित रूप से लगातार घूम रहा था। तब तक नानक जी का मानना था कि भगवान निराकार हैं। वहाँ नानक जी ने अमर लोक सचखंड में सदैव रहने की इच्छा व्यक्त की। वह काल लोक में लौटना नहीं चाहते थे।
कबीर साहेब जी ने नानक जी से कहा कि तुम्हें पृथ्वी पर वापस जाना होगा और वहां जाकर भगवान को पाने के लिए सच्ची भक्ति करनी होगी। वहां परमात्मा उन्हें सच्चा मोक्ष मंत्र सतनाम और सारनाम प्रदान करेंगे जिसका जाप करने से उनकी आत्मा भक्ति युक्त हो जाएगी। तभी वह इस अद्भुत अविनाशी स्थान का स्थायी निवासी बनने के पात्र बनेंगे। आत्मा उस आध्यात्मिक शक्ति को किसी अन्य भक्ति विधि से प्राप्त नहीं कर सकती। कोई भी अन्य मंत्र, आत्माओं को उस हद तक आध्यात्मिक शक्तियाँ संचय करने में मदद नहीं कर सकता है जिससे उनकी मुक्ति संभव हो सके।
सतनाम का जाप करने और सच्ची भक्ति के नियमों में रहने से आत्मा को बहुत कम समय में वो आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त हो सकती हैं, जो लाखों मानव जन्मों में भी की गई किसी अन्य साधना से नहीं हो सकती है। यह बहुत ही प्रभावशाली मंत्र हैं। धर्मात्मा नानक जी संतों पर विश्वास किया करते थे इसलिए उन्होंने कबीर परमेश्वर के वचनों पर विश्वास किया कि वास्तव में यह इतने प्रबल मंत्र हैं।
इस पूरी प्रक्रिया में तीन दिन लगे, फिर परमात्मा कबीर साहेब ने श्री नानक जी की आत्मा को उनके शरीर में वापस छोड़ दिया और बाद में उन्हें मोक्ष मंत्र प्रदान किया। इस प्रकार नानक जी को सतनाम प्राप्त हुआ। पृथ्वी पर वापस आने पर जब नानक जी को होश आया और मानव रूप में परमेश्वर कबीर जी को सतलोक में देखा तो उन्होंने भगवान और सतनाम की महिमा गाई, उन्होंने 'वाहेगुरु सतनाम वाहेगुरु' कहा।
आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज ने अपनी अमृत वाणी में सूक्ष्मवेद में बताया है
“झाँकी देख कबीर की, नानक कीती वाह।
वाह सिखां के गल पड़ी, अब कौन छुटावे तां।”
मतलब पूरा सिख समुदाय गलती से 'सतनाम वाहेगुरु' का जाप करता है जो कि सच्चे मोक्ष मंत्र की ओर एक संकेत मात्र है लेकिन यह सही मंत्र नहीं है। सतनाम (ओम-तत्) सच्चे आध्यात्मिक गुरु द्वारा प्रदान किया जाता है और इसका जाप सांस (श्वांस-उश्वांस) के माध्यम से किया जाता है। सतनाम जपने का एक उचित तरीका है। तत्वदर्शी संत बताते हैं कि सतनाम का जाप कैसे करें? वर्तमान में केवल संत रामपाल जी महाराज ही तत्वदर्शी संत और सर्वोच्च परमेश्वर कबीर जी के अवतार हैं।
आइए आगे जानें कि नानक जी को सतनाम की प्राप्ति कब हुई?
जब नानक जी ने बेई नदी में डुबकी लगाई और तीन दिन तक नहीं लौटे तो लोगों ने मान लिया कि नानक जी अब जीवित नहीं हैं। परिवार में सभी बहुत दुखी हो रहे थे। लेकिन उन्हें आश्चर्य तब हुआ जब तीसरे दिन सुबह नानक जी को बेई नदी के तट पर ध्यान करते देखा। जब नानक जी घर लौटे तो उन्होंने नवाब के मोदीख़ाने की नौकरी छोड़ दी। वह अपने कार्यस्थल पर गए और उन्होंने मोदीख़ाने का दरवाज़ा खोल दिया।
उन्होंने गिनती शुरू की और 'तेरह' (13) पर आकर रूक गए और कहा कि सब कुछ 'तेरह' (तेरह/तुम्हारा मतलब भगवान का) है, इस दुनिया में कुछ भी हमारा नहीं है। नवाब को इसका पता चला तो वह नाराज़ हुआ। बाद में जब हिसाब-किताब किया गया तो पता चला कि सरकार पर श्री नानक जी के 760/रुपये बकाया हैं। उनसे नौकरी जारी रखने का अनुरोध किया गया लेकिन नानक जी परमपिता परमात्मा को पहचान चुके थे उन्होंने यह कहकर नौकरी करने से इंकार कर दिया कि अब मैं यह नौकरी नहीं करूंगा। मैं अब सच्चे दरबार (भगवान) की सेवा करूंगा। उन्होंने कहा;
ओंकार-सतनामु कर्ता पुरखु निरभउ निरवेर।
अकाल मूर्ति अजूनी सैभम गुरुप्रसाद।।
भगवान ने मुझे कोई और काम करने का आदेश दिया है। उन्होंने अपनी सचखंड यात्रा और अकाल पुरुष से मुलाकात का सच्चा वृतांत बताया। अब तक उन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त हो चुकी थी।
इसके बाद जैसा कि जिंदा बाबा रूप में सतलोक में कबीर साहेब जी ने नानक जी को बताया था; वैसे ही वह भगवान की खोज में काशी वाराणसी चले गए। उनकी पहली उदासी काशी की थी। यह प्रमाण "जीवन दास गुरु साहिब" पुस्तक में है। लेखक श्री सोढ़ी तेजा सिंह जी हैं। पृष्ठ संख्या 50 है और इसके प्रकाशक छत्तर सिंह, जीवन सिंह हैं।
नानक जी काशी, बनारस पहुंचे और कबीर जी के गुरु स्वामी रामानंद जी से मिले। दोनों ने सचखंड की अपनी यात्रा के बारे में चर्चा की क्योंकि कबीर साहेब ने दोनों को आशीर्वाद दिया था और उन्हें शाश्वत स्थान सतलोक दिखाया था। तब नानक जी को एहसास हुआ कि कबीर साहेब के अन्य शिष्य भी ये गूढ़ ज्ञान रखते हैं। इसलिए, नानक जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब में अपनी पवित्र वाणी राग तिलंग महला 1 पृष्ठ संख्या 721 में इसका उल्लेख किया है।
“हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदिगार
नानक बुगोयाद जन तुरा, तेरे चाकरां पाखाक”
नानक जी ने परमेश्वर कबीर साहेब को "हक्का कबीर" कहकर संबोधित किया है।
नानक जी ने काशी में उसी कबीर परमात्मा को देखा जो उन्हें सतलोक में मिले थे और बेई नदी के किनारे भी। वही अब एक झोंपड़ी में बैठे हुए, एक जुलाहे के रूप में दिव्य लीला कर रहे थे। उनकी आँखों में खुशी के आँसू बह रहे थे और उन्होंने कहा;
नीच जात प्रदेशी मेरा, खिन आवै तिल जावै।
जाकी संगत नानक रेहंदा, क्योंकर मौंडा पावे।।
उपरोक्त पवित्र वाणी, पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब के पृष्ठ 731 पर लिपिबद्ध है।
नानक जी ने परमेश्वर कबीर साहेब को दण्डवत प्रणाम किया। तब कबीर जी ने नानक जी को सच्चा मोक्ष मंत्र सतनाम प्रदान किया। इसके बाद श्री नानक देव जी ने अपने गुरु कबीर साहेब जी की स्तुति की। पहले नानक जी भूलवश 'ओम' मंत्र को सच्चा मोक्ष मंत्र समझकर उसका जाप करते थे। बाद में सतनाम (ओम+तत्) मंत्र प्राप्त कर उन्होंने सच्ची भक्ति की और मोक्ष प्राप्त किया। इस प्रमाण का उल्लेख गुरु ग्रंथ साहिब के "राग सिरी", महला 1 पृष्ठ संख्या 24 पर वाणी नं. 29 में किया गया है।
उपरोक्त प्रकरण से सिद्ध होता है कि परम अक्षर पुरुष/अकाल पुरुष/सतपुरुष कबीर साहेब ने नानक देव जी को सच्चा मोक्ष मंत्र सतनाम प्रदान किया, जिसका जाप करके नानक जी ब्रह्म-काल के जाल से मुक्त हो गए और अब सचखंड/अमर स्थान में सभी सुखों का आनंद ले रहे हैं, जहाँ भगवान रहते हैं। जहां जन्म और पुनर्जन्म के दुष्चक्र से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है।
आगे, पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब के साक्ष्य के कुछ और अंशों पर चर्चा की जाएगी।
संदर्भ: भाई बाले वाली जन्म साखी (पंजाबी भाषा में)। प्रकाशक डॉ. जवाहर सिंह कृपाल सिंह एंड कंपनी, प्रकाशक पुस्तकांवाली, गली नंबर 8, बाग रामानंद, अमृतसर हैं।
विषय: 'समुन्दर की साखी' पृष्ठ 547 पर
भाई बाले वाली जन्म साखी एक मान्य पुस्तक है जिसके ज्ञान को सिख समुदाय द्वारा अंतिम सत्य माना जाता है और गुरु ग्रंथ साहिब की तरह सच्चे ज्ञान का प्रतीक माना जाता है क्योंकि श्री नानक देव साहिब जी ने जो ज्ञान कहा था वह भाई बाला जी द्वारा सुना गया ज्ञान था जो इसके प्रत्यक्षदर्शी थे।
भाई बाले जी की वाणी - गुरु नानक देव जी के बाद गुरु अंगद देव जी अगले गुरु थे। उन्हें दूसरा गुरु कहा जाता है। मरदाना ने निवेदन किया कि मैंने समुद्र तो देखा है परन्तु श्रीलंका नहीं देखा है जहाँ रामचन्द्र जी ने रावण से युद्ध किया था। गुरु नानक जी ने उन्हें आंखें बंद करने को कहा और उनके अनुरोध पर बाला और मरदाना दोनों को लंका ले गए। जब उनकी आँखें खुलीं तो उन्होंने देखा कि वे समुद्र तट पर खड़े हैं। गुरु नानक जी ने बाला और मरदाना को अपने पीछे चलने और 'वाहे गुरु-वाहे गुरु' का जाप करने को कहा। उन्होंने वैसा ही किया।
वहीं गुरु नानक जी ने सतनाम का जाप शुरू किया। वे सभी समुद्र पर ऐसे चल रहे थे मानो पृथ्वी पर चल रहे हों। तब मरदाना ने भी उसी मंत्र सत्नाम का जाप करने के बारे में सोचा जो गुरु नानक जी जाप कर रहे थे लेकिन ऐसा करने पर वह समुद्र में डूबने लगे। तब नानक देव जी ने मरदाना से कहा कि वह गुरु जी की नकल न करे बल्कि उनके वचनों पर अटल रहे। तभी मरदाना ने फिर से ‘वाहे गुरु-वाहे गुरु’ का जाप करना शुरू कर दिया और वह पानी पर ऐसे चलने लगा जैसे वह धरती पर चल रहा हो।
नोट: कबीर परमेश्वर ने जिन भी महापुरुषों से मुलाकात की, उन्हें सतनाम दिया, उन्हें निर्देश दिया कि इस सच्चे मोक्ष मंत्र को उजागर न करें।
विषय: 'साखी कूना पर्वत की चाली'-पृष्ठ 299-300, "गोष्ठी सिद्धां नाल होई"
बाला जी ने सुनाया है और दूसरे गुरु श्री अंगद जी ने लिखा है। जन्म साखी में पेज नं. 299-300 में "साखी कूना पर्वत की चाली" में एक वार्तालाप है "गोष्ठी सिद्धां नाल होई"। इसमें एक प्रसंग है कि गुरु नानक जी पर्वत कूना पर गए। उनके साथ भाई बाला जी और मर्दाना जी भी थे। कूना पर्वत की गुफा में नाथ पंथ के कुछ संत रहते थे। उनसे हुई आध्यात्मिक चर्चा में प्रश्न के उत्तर में नानक देव जी ने कहा था कि “ऐकंकार हमारा नाबं अपने गुरु की बलि जाऊँ”। मरदाना ने गुरु जी से पूछा! क्या आपका कोई गुरु है? तब नानक जी ने उत्तर दिया मरदाना! मेरे पास ऐसे महान गुरु हैं जो करतार (भगवान) की कृपा के बिना नज़र में नहीं आते। उस गुरु ने ही मुझे सच्चा मोक्ष मंत्र सतनाम दिया है।
विषय: 'सिद्धां नाल गोष्ठी होई' पृष्ठ 252 पर- 'आगे साखी होर चाली'
"आगे साखी होर चाली" में बताया गया है कि वे मीना पर्वत पर गये थे। तब मरदाना ने पूछा कि गुरु जी! उस गुरु का नाम क्या है जो आपसे मिला था? तब गुरु नानक जी ने कहा मरदाना, उसका नाम बाबा जिंदा है। जहाँ तक पानी और हवा की बात है, वे सभी उसकी आज्ञा से चलते हैं, यहाँ तक कि आग और कीचड़ भी उसकी आज्ञा में हैं। तब मरदाना ने पूछा हम तो आपके साथ ही हैं फिर वो गुरु जी आपसे कब मिले थे? गुरु नानक जी ने उत्तर दिया कि 'मरदाना! जब हम मिले उस वक्त तुम मेरे साथ नहीं थे। मरदाना ने पूछा 'कब मिले थे?' नानक जी ने कहा 'उस समय, जब मैंने सुल्तानपुर में, बेई नदी में डुबकी लगाई थी। फिर मैं तीन दिन तक उनके (कबीर परमेश्वर/अकालपुरुष) पास रहा।
इसकी जानकारी भाई बाला को है। मरदाना! वह ऐसे गुरु हैं जिनकी सत्ता से संपूर्ण ब्रह्मांड को आश्रय मिल रहा है। वह सबका स्वामी है। उन्हें जिंदा बाबा कहा जाता है। हे मर्दाना! जिंदा वह है जो कसाई ब्रह्म-काल के आधीन नहीं है बल्कि काल उसके आधीन है। तब मरदाना ने पूछा, उनका रंग क्या है? और वह कहाँ विराजमान है? तब गुरु जी ने कहा कि उनका रंग लाल है परन्तु उस लाली से कोई लाली मेल नहीं खाती और उनके रोम-रोम सुनहरे रंग के हैं परन्तु सोना भी उनसे मेल नहीं खाता और वह बोलता भी नहीं; और फिर भी रोम-रोम शब्द गाता है "गेहर गंभीर-गेहर गंभीर"। तब मरदाना ने कहा, "आप महान हैं गुरु जी! आपके अलावा और कौन हमारा संदेह दूर कर सकता है?" अब चलें पहाड़ की ओर.......
महत्वपूर्ण: उपरोक्त से यह साबित होता है कि नानक जी अपने गुरु से मिले थे जो जिंदा रूप में थे। वही बाबा जिंदा नानक जी को शाश्वत लोक सचखंड ले गए और बाद में उन्हें सतनाम प्रदान किया। वह कोई और नहीं बल्कि सृष्टि रचयिता परम अक्षर पुरुष कविर्देव थे।
परमेश्वर कबीर ने नानक जी को भाई बाला वाली जन्म साखी में सतनाम को गुप्त रखने को कहा
संदर्भ: पृष्ठ संख्या 309: "सचखंड की साखी"
ऊपर बताए अनुसार जिंदा बाबा नानक जी को सचखंड ले गए। उन्होंने अद्भुत, अत्यंत प्रकाशमय सनातन लोक 'सतलोक' को देखा जहाँ सतपुरुष एक बड़े सुन्दर जगमगाते सिंहासन पर विराजमान थे। अनेक सतलोकवासी उनके चारों ओर हाथ जोड़े कतार में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। सतपुरुष के शरीर के एक रोम कूप की चमक करोड़ों सूर्य और चन्द्रमाओं की सम्मिलित रोशनी से भी अधिक थी। नानक जी ने अकाल पुरुष को साष्टांग प्रणाम किया। परमपिता परमेश्वर अकाल पुरुष ने नानक जी का हार्दिक स्वागत किया और कहा 'आप मेरा ही अंश हैं, आप में और मुझमें कोई अंतर नहीं है। आपको उस दुनिया में सतनाम का प्रचार करने के लिए भेजा गया है, उस पर कायम रहें।' अकाल पुरुष के वचन सुनकर नानक जी ने कहा कि 'मैंने आपकी इच्छा के अनुसार सतनाम का खुलासा किया है और आपकी अनुमति से ही इसे आगे भी बताऊंगा।’
इससे सिद्ध होता है कि कबीर साहेब ने नानक जी को सतनाम गुप्त रखने का निर्देश दिया था। अब भक्तों के लिए मुख्य प्रश्न यह होगा कि परमेश्वर कबीर साहेब ने नानक जी को सतनाम गुप्त रखने के लिए क्यों कहा था?
सच्चे मोक्ष मंत्र (सतनाम और सारनाम) आत्माओं को ब्रह्म-काल के जाल से मुक्ति दिलाने में मदद करते हैं। जब पहली बार कबीर परमेश्वर अपने पुत्र जोगजीत का रूप धारण करके ब्रह्म-काल के लोक में आए और उसे डांटा कि वह अपने इक्कीस ब्रह्मांडों में उनकी प्रिय आत्माओं को प्रताड़ित क्यों करता है? और परमात्मा उन्हें जाकर उसकी असलियत बता देंगे कि तू (काल) भगवान नहीं, शैतान है।
उस समय, काल ने जोगजीत रूप में आए परमात्मा के साथ दुर्व्यवहार करने की व्यर्थ कोशिश की। लेकिन वह उनका कुछ नहीं बिगाड़ सका और उसे आत्मसमर्पण करना पड़ा। तब उसने परमेश्वर कबीर (जोगजीत रूप) से प्रार्थना की कि पहले तीन युगों (यानी सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग) में कम आत्माओं को मुक्त करा कर लें जाएं और कलयुग में जितनी चाहें उतनी आत्माओं को मुक्त कराएं। उसने सोचा था कि वह कलयुग में आत्माओं को गुमराह करके, मनमाने ढंग से धर्मग्रंथों के आदेशों से विपरित पूजा करवाएगा, जिससे आत्माएं कभी मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाएंगी और उसके जाल में फंसी रहेंगी। काल ने कहा कि वह तीर्थयात्रा, मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारों में जाना और गलत धार्मिक पूजा करने जैसी कई गलत धार्मिक प्रथाओं को शुरू कर देगा, उनके (कबीर) नाम पर कई पंथ जो गलत मंत्रों का जाप करेंगे और मानेंगे कि वे सर्वोच्च भगवान की पूजा कर रहे हैं और मुक्ति प्राप्त करेंगे। वे अज्ञानी बने रहेंगे और अपना बहुमूल्य मानव जन्म बर्बाद कर देंगे। इस तरह वे नास्तिक बन जायेंगे।
जब कलयुग में भगवान का प्रतिनिधि भक्ति काल के निश्चित समय पर आकर सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान बताएगा तो उसके (काल के) एजेंट और उनके द्वारा गुमराह किए गए निर्दोष भक्त उसकी बात नहीं सुनेंगे, बल्कि विद्रोह करेंगे। यही कारण है कि नानक जी को कबीर परमेश्वर ने निर्देश दिया था कि वे सतनाम और सारनाम का खुलासा न करें अन्यथा समय आने पर वह कैसे अंतर कर पाएंगे कि भक्ति का सही तरीका क्या है क्योकि काल के नकली पंथ भी यही भक्ति बताना शुरू कर देंगे।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय कबीर वाणी, जीव धर्म बोध पृष्ठ नं. 137 और 1937
भक्त धर्मदास साहेब जी को मोक्ष का पूरा कोर्स यानि तीनों मंत्र देने के बाद परमेश्वर कबीर जी ने निर्देश दिये।
धरमदास मेरी लाख दुहाई, सारशब्द कहिं बाहर न जाई।
सारशब्द बाहर जो पढ़ही, बिछली पीढ़ी हंस न तरही।।
धर्मदास मेरी लाख दुहाई, मूल (सार) शब्द बाहर न जाई।
पवित्र ज्ञान तुम जग में भाखो, मूल ज्ञान गोई (गुप्त) तुम रखो।।
मूल ज्ञान तब तक छुपाई, जब तक द्वादश पंथ न मिट जाई।।
सार: दयालु परमेश्वर कबीर साहेब ने धर्मदास जी से कहा कि सतनाम और सारनाम के रहस्य को उजागर न करें नहीं तो जब प्राइम टाइम यानी भक्ति युग आएगा और कलयुग 5505 वर्ष बीत जाएगा तब हंस आत्माओं को मुक्ति नहीं मिल पाएगी। इस सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान और सच्चे मंत्रों को गुप्त रखें। भगवान जिन अन्य महापुरुषों से मिले उन्हें भी यही निर्देश दिये थे।
नानक जी ने सतनाम प्राप्त किया इसका प्रमाण श्री गुरु ग्रंथ साहिब के प्राण सांगली में है
संदर्भ: प्राण सांगली, भाग 1, प्रकाशक बेलविडियर प्रिंटिंग वर्क्स, 56-ए/13, मोतीलाल नेहरू रोड, इलाहाबाद है। गुरुमुख जानो का सेवाभिलाषी, सतीपद उल्थकर, संपूर्ण सिंह, तरनतारन, पंजाब पेज नं. 15.
गुरु नानक जी के जीवन वृत्तांत में वर्णन है कि संवत 1554 में एक बार गुरु नानक देव जी बेई नदी में स्नान करने गये। वहां उनकी मुलाकात एक संत से हुई; उन्होंने नानक जी को यह अहसास कराया कि 'तुम्हें इस संसार में क्यों भेजा गया है? सच्चे दरबार से आपके लिए क्या आदेश है और आप क्या कर रहे हैं?’ तब नानक जी ने बेई नदी में डुबकी लगाई और छुपे रहे। लोगों ने मान लिया कि नानक जी इस दुनिया को छोड़कर चले गए हैं। वह अब जीवित नहीं हैं लेकिन वास्तविकता यह थी कि नानक जी ध्यान में चले गए और सचखंड में सतपुरुष के चरणों के पास रहे। उन्होंने उनसे सच्चे मोक्ष मंत्र सतनाम की नाम दीक्षा ली। उसके बाद तीन दिन बाद वह वापस लौटे। फिर वह अपने कार्यस्थल यानी मोदीख़ाने पर गए और पूरी दुकान लुटा दी। उन्होंने भौतिकवादी दुनिया को त्याग दिया और दुनिया भर में घूमते हुए भगवान की महिमा गाई।
गुरु जी की आज्ञा न मानने के कारण मरदाना डूबकर मर गया होता इससे सीख लेकर उस महापुरुष ने जिन्होंने श्री गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन किया था, उन्होंने भय के कारण दो शब्दों वाले मंत्र सतनाम का वर्णन करने वाले संदर्भों को इसमें शामिल नहीं किया। श्री गुरु नानक देव जी ने प्राण सांगली बनाकर सिंगलादीप के एक राजा शिवनाभ को देते हुए कहा था कि ‘इसे सुरक्षित रखना। यह ग्रंथ मेरा प्राण है और इसे केवल कुछ सिख बच्चों को दे रहा हूं। यदि यह किसी सामान्य व्यक्ति को मिल जाए तो वह इसका दुरुपयोग करेगा। इससे आत्माओं को इस संसार से मुक्ति मिलेगी। मैंने इसमें उस प्रक्रिया का उल्लेख किया है कि इस दुनिया से कैसे पार पाया जाए (सतनाम की ओर एक संकेत)। चूँकि आपने मेरे ज्ञान पर भरोसा किया है, इसलिये मैं यह आपको दे रहा हूँ।’
बाद में गुरु अर्जुन देव जी ने इस प्राण सांगली को भी पानी में बहा दिया था ताकि किसी को सतनाम का पता न चल जाए क्योकि गुरु जी की बात माननी थी। लेकिन एक संत के अनुरोध पर गुरु अर्जुन देव जी ने प्राण सांगली को नदी से बाहर निकाल लिया। उन्होंने उसे उस संत को दे दिया और उससे कहा कि इसे सबके सामने उजागर नहीं करना। इस प्रमाण का उल्लेख गुरु प्रताप सूरज प्रकाश के सिद्ध इतिहास तृतीय राशिगत के 32वें भाग में किया गया है। बाद में 5वें गुरु अर्जुन देव जी ने श्री नानक जी के सभी पवित्र भाषणों को संकलित किया, लेकिन उन्होंने यह प्रकरण पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल नहीं किया। गुरु अर्जुन देव जी ने अपने एक शिष्य भाई पेड़ा को राजा शिवनाभ के पोते से यह अनमोल ग्रंथ लाने के लिए भेजा।
संदर्भ: प्राण सांगली, प्रकाशक-डॉ. जगजीत सिंह खानपुरी, प्रकाशन ब्यूरो, पंजाब यूनिवर्सिटी पटियाला. भाग 1 पंजाबी संस्करण।
प्रस्तावना में बताया गया है कि संत संपूर्ण सिंह जी ने इस संस्करण को देवनागरी लिपि में प्रकाशित किया था जिसमें केवल 80 अध्याय थे और अंत में 113 अध्याय संकलित किये गये। संत संपूर्ण सिंह जी का मानना है कि इस प्राण सांगली में मूल रूप से 160 अध्याय थे लेकिन उनमें से बहुत से अध्याय नष्ट हो गए जिनमें सतनाम के बारे में जानकारी है। फिर भी बहुत सी जानकारी बरकरार है।
संदर्भ: प्राण सांगली (हिन्दी), भाग 2, "राग भैरव", मेहला 1, पृष्ठ 103
साध संगति मिलिया मनु मना । ना मैं ना हा-ओम-सोहम जाना ।।
सार: सतनाम मंत्र का स्पष्ट उल्लेख किया गया है लेकिन वे समझ नहीं पाए।
संदर्भ: प्राण सांगली, प्रकाशक-डॉ. जगजीत सिंह खानपुरी, प्रकाशन ब्यूरो, पंजाब यूनिवर्सिटी पटियाला। भाग 1, पंजाबी संस्करण पृष्ठ 614 पर
प्रश्न उत्तर श्रृंखला, मेहला 1
अजप्पा जाप सोहम हंसा जान, सुन महल जाका अस्थान।
पूरण पुरुख निरंजन करतार, अगम पुरुख का नहिं सुमार।।
नाम अमोलख सतगुरु तीन पाया, अनहद सूं महि जाए समाया।
सोहं हंस जपमाला, जपत जपत दीनदयाला।।
आवां जान रहे सुख पाई, नानक घट घट नादरी आई।।
निरंकार दी अचरज लीला, गुरमति दीए ता होए सुहेला।।
इस मंतर का करे जो जाप, तन को लगे ना कोई पाप।।
आतम राम तिस नादरी आवै, रामत राम विच लावे।।
उसके देख भये तुम सुध, सोहम हंस जाको जप एह जप वड्डे परताप।।
सोहम हंस जपो अभिमाला, तह रचिया जहां केवल बाला।।
नानक जी ने उपरोक्त वाणी में सतनाम का रहस्य उजागर किया है तथा अन्य कई स्थानों पर भी सतनाम का रहस्य उजागर किया है।
संदर्भ: प्राण सांगली, भाई चतर सिंह, जीवन सिंह अमृतसर से पृष्ठ संख्या 100 पर मुद्रित.
सोहम हंस जाका जाप, ई जप जप्पे हुए परताप।।
सोहम हंसा जप बिन माला, उह रचिया जेहेन केवल बाला।।
पृष्ठ 125 पर सतनाम का उल्लेख किया गया है
नानक सच्चे नाम बिना वो वर न पार।।
आइए हम पैंतीस अखरी-श्री गुरु ग्रंथ साहिब में सतनाम के प्रमाण खोजने के लिए आगे बढ़ें
श्री गुरु ग्रंथ साहिब के पैंतीस अखरी में सतनाम का साक्ष्य
संदर्भ: साखी भाई लालो जी, तेयीये ताप दी कथा, पैंतीस अखरी, हिदायत नामा। जवाहर पब्लिशर्स, 119/3, गली कलां, बाग जलियांवाला, अमृतसर से पृष्ठ संख्या 10 पर प्रकाशित
इसमें पेज नंबर 7 पर लिखा है कि 'ओम' के बारे में सभी जानते हैं। आत्मा शुद्ध का अर्थ है कि केवल एक ही शाश्वत सर्वोच्च शक्ति है। पेज नंबर 8 पर लिखा है कि सतगुरु के अलावा कोई भी आत्मा को मुक्ति नहीं दिला सकता क्योंकि वही सच्चा मोक्ष मंत्र सतनाम प्रदाता है। तभी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पेज नंबर 9 पर लिखा है कि वेद भी आपकी (ईश्वर की) महिमा करते हैं। पेज नं. पर 10 लिखा है कि वासुदेव अर्थात सर्वोच्च ईश्वर, निर्माता, जो समग्र नियंत्रक 'नानक ओम-सोहम् आतम सौ' है, उसके समान कोई नहीं है।
नोट: पैंतीस अखरी में सतनाम जाप करने की विधि का उल्लेख नहीं किया गया है। यह तत्वदर्शी संत बताते हैं; वह तभी काम करता है।
जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है कि तीन भगवान कौन हैं? एक अक्षर पुरुष है, जो कि दूसरा भगवान है जिसका मंत्र 'तत्' (सूचक) है। 'ओम्-तत्' ही सतनाम है। सच्चा उपासक जब शरीर छोड़ता है तो उसे प्रत्येक मानव शरीर के भीतर बैठे पांच भगवानों के क्षेत्रों से होकर गुज़रना पड़ता है। इसका मतलब यह है कि त्रिकुटी तक पहुंचने के लिए उन बाधाओं से मुक्ति आवश्यक है जो एक तत्वदर्शी संत द्वारा प्रदान किए गए उनके वास्तविक मंत्रों का जाप करने के बाद ही संभव है। फिर आत्मा क्षर पुरुष (काल) को 'ओम' मंत्र की भक्ति कमाई और अक्षर पुरुष को 'तत्' मंत्र की भक्ति देकर सतनाम की शक्ति से काल लोक से पार हो जाती है।
तब पूर्ण ब्रह्म/परमेश्वर कबीर साहेब का सत मंत्र (ओम-तत्-सत्) जीव को सतलोक पहुंचाने में मदद करता है। अक्षर पुरुष और क्षर पुरुष का क्षेत्र शाश्वत स्थान सतलोक के मध्य में है। इसलिए मोक्ष की प्राप्ति में सतनाम का अत्यधिक महत्व है।
उत्तर: हाँ। अन्य पवित्र ग्रंथों और भगवान के कई प्रत्यक्षदर्शियों की पवित्र वाणी में भी सतनाम का प्रमाण है, जिन्होंने मुक्ति प्राप्त की है और सतगुरु से सतनाम प्राप्त करने के अपने अनुभव को कलमबद्ध किया है।
सतनाम कुछ अन्य भक्त आत्माओं जैसे संत गरीबदास जी महाराज, संत दादूदास साहिब जी, संत घीसादास साहेब जी, धर्मदास साहेब जी आदि को भी प्रदान किया गया था। अधिक जानकारी के लिए सूक्ष्मवेद में सतनाम के बारे में भी पढ़ें।
परमेश्वर कबीर साहेब कहते हैं;
बड़े बढ़ाई ना करें, बड़े ना बोले बोल।
और हीरा कबहु कहे नहीं, मेरा लाख टका है मोल।।
महान तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज आज भी वही मोक्ष मंत्र सतनाम और सारनाम प्रदान कर रहे हैं जो पूज्य गुरु नानक देव जी और सभी महापुरुषों को दिए गए थे क्योंकि वह कोई और नहीं बल्कि परमेश्वर कबीर साहेब/अकाल पुरुष/सतपुरुष हैं। वह सतगुरु, तत्वदर्शी संत, सभी पवित्र शास्त्रों का ज्ञाता है। उनके पास मुक्ति का पूरा कोर्स है। उनकी शरण में जाइए और अपना कल्याण करवाइए ।
श्री गुरु नानक देव जी को सर्वशक्तिमान कबीर साहेब सतलोक से आकर स्वयं मिले थे। फिर उन्होंने श्री गुरु नानक देव जी को सतनाम मंत्र प्रदान किया था। साथ ही परमात्मा ने श्री नानक जी को यह भी कहा था कि इस मंत्र को अभी गुप्त रखना क्योंकि कलयुग में इस मंत्र को केवल तत्वदर्शी संत ही प्रदान करेगा। वर्तमान में वह तत्वदर्शी कोई और नहीं बल्कि संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी पवित्र बाणी में बताया था कि इस ब्रह्मांड की रचना केवल सर्वशक्तिमान ईश्वर कबीर साहेब जी ने की थी।
सतनाम वाहेगुरु शब्द श्री नानक देव जी ने तब कहे थे जब वह कबीर साहेब जी से काशी में मिले थे। उसके बाद कबीर साहेब जी ने श्री नानक जी को सतनाम मंत्र प्रदान किया था। तथा श्री नानक जी ने कबीर साहेब जी से सतनाम मंत्र प्राप्त करने के बाद उत्साह में सतनाम वाहेगुरु कहा था। इसका मतलब है कि मुझे सतनाम उसी भगवान से मिला है, जो सचखंड यानि कि सतलोक में भी है (वाहेगुरु शब्द का प्रयोग श्री नानक जी ने कबीर साहेब जी के लिए किया था )।
सत श्री अकाल उस सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी को याद करने का ही नाम है। सत का अर्थ है सत्य और श्री अकाल का अर्थ है अमर भगवान। इसके अन्य पर्यायवाची शब्द हैं सत् साहेब, सत्पुरुष, सत्यपुरुष आदि।
श्री नानक देव का जन्म विक्रमी संवत् 1526 (सन् 1469) कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को हिन्दू परिवार में श्री कालु राम मेहत्ता (खत्री) के घर माता श्रीमति तृप्ता देवी की पवित्र कोख (गर्भ) से पश्चिमी पाकिस्त्तान के जिला लाहौर के तलवंडी नामक गाँव में हुआ। कबीर साहेब से नामदीक्षा लेने के बाद श्री नानक देव जी ने केवल मानवता के धर्म को सबसे ऊपर माना। फिर श्री नानक जी ने परमेश्वर कबीर साहेब जी के बताए मार्ग का प्रचार किया था।
सिखों ने सतनाम का गलत अर्थ किया हुआ है। सतनाम एक गुप्त मंत्र की ओर संकेत है। सतनाम मंत्र को केवल तत्वदर्शी संत ही बता सकते हैं और वह संत रामपाल जी महाराज जी के अलावा कोई नहीं है।
मूल मंत्र मोक्ष मंत्र हैं जो सर्वशक्तिमान कबीर परमेश्वर द्वारा लिखे गए हैं।
श्री नानक देव जी आदि राम को मानते थे जो संपूर्ण ब्रह्मांड के रचयिता हैं। यही आदि राम श्री गुरु नानक देव जी के गुरु भी थे। वह आदि राम यानि कि पूर्ण परमेश्वर कोई और नहीं बल्कि स्वयं कबीर साहेब जी हैं।
परमेश्वर कबीर जी श्री नानक जी को मिलने सतलोक से चलकर आए थे। फिर श्री नानक जी की आत्मा को परमात्मा कबीर जी ने सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया था। उसके बाद परमात्मा कबीर जी श्री गुरु नानक देव जी की आत्मा को सतलोक यानि कि सचखंड लेकर गए थे और सतलोक में श्री नानक जी को तीन दिनों तक रखा था। यही कारण था कि श्री नानक जी तीन दिन के लिए गायब हो गए थे और उनके शरीर को परमेश्वर ने छिपा कर सुरक्षित रख दिया था।
श्री नानक देव जी भगवान कबीर जी के सत् ज्ञान उनकी शिक्षाओं के दूत थे न कि कोई पैगंबर। कबीर परमेश्वर द्वारा बताई गई भक्ति विधि करने से उन्हें कुछ अलौकिक शक्तियाँ प्राप्त हो गई थीं जिसके कारण वे एक पैगम्बर लगते थे।लेकिन वे परमात्मा की विशेष प्रिय आत्मा और उनके भक्त थे।
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Ishu Randhawa
सच्चे मोक्ष मंत्र कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
Satlok Ashram
सच्चे मोक्ष मंत्र देने का आधिकारी केवल तत्वदर्शी संत होता है। वर्तमान में वह तत्वदर्शी संत केवल संत रामपाल जी महाराज जी हैं। केवल संत रामपाल महाराज जी शास्त्र अनुकूल साधना और मोक्ष मंत्र प्रदान कर रहे हैं।