पहले श्री नानकदेव जी एक ओंकार(ओम) मंत्र का जाप करते थे तथा उसी को सत मान कर कहा करते थे एक ओंकार। उन्हें बेई नदी पर कबीर साहेब ने दर्शन दे कर सतलोक(सच्चखण्ड) दिखाया तथा अपने सतपुरुष रूप को दिखाया। जब सतनाम का जाप दिया तब नानक जी की काल लोक से मुक्ति हुई। नानक जी ने कहा कि:
इसी का प्रमाण गुरु ग्रन्थ साहिब के
शब्द - एक सुआन दुई सुआनी नाल, भलके भौंकही सदा बिआल
कुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार।।1।।
मै पति की पंदि न करनी की कार। उह बिगड़ै रूप रहा बिकराल।।
तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहो आस एहो आधार।
मुख निंदा आखा दिन रात, पर घर जोही नीच मनाति।।
काम क्रोध तन वसह चंडाल, धाणक रूप रहा करतार।।2।।
फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।
खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।3।।
मैं कीता न जाता हरामखोर, उह किआ मुह देसा दुष्ट चोर।
नानक नीच कह बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।4।।
इसमें स्पष्ट लिखा है कि एक(मन रूपी) कुत्ता तथा इसके साथ दो (आशा-तृष्णा रूपी) कुतिया अनावश्यक भौंकती(उमंग उठती) रहती हैं तथा सदा नई-नई आशाएँ उत्पन्न(ब्याती हैं) होती हैं। इनको मारने का तरीका(जो सत्यनाम तथा तत्व ज्ञान बिना) झुठा(कुड़) साधन(मुठ मुरदार) था। मुझे धाणक के रूप में हक्का कबीर (सत कबीर) परमात्मा मिला। उन्होनें मुझे वास्तविक उपासना बताई।
नानक जी ने कहा कि उस परमेश्वर(कबीर साहेब) की साधना बिना न तो पति(साख) रहनी थी और न ही कोई अच्छी करनी(भक्ति की कमाई) बन रही थी। जिससे काल का भयंकर रूप जो अब महसूस हुआ है उससे केवल कबीर साहेब तेरा एक(सत्यनाम) नाम पूर्ण संसार को पार(काल लोक से निकाल सकता है) कर सकता है। मुझे(नानक जी कहते हैं) भी एही एक तेरे नाम की आश है व यही नाम मेरा आधार है। पहले अनजाने में बहुत निंदा भी की होगी क्योंकि काम क्रोध इस तन में चंडाल रहते हैं।
मुझे धाणक(जुलाहे का कार्य करने वाले कबीर साहेब) रूपी भगवान ने आकर सतमार्ग बताया तथा काल से छुटवाया। जिसकी सुरति(स्वरूप) बहुत प्यारी है मन को फंसाने वाली अर्थात् मन मोहिनी है तथा सुन्दर वेश-भूषा में(जिन्दा रूप में) मुझे मिले उसको कोई नहीं पहचान सकता। जिसने काल को भी ठग लिया अर्थात् दिखाई देता है धाणक(जुलाहा) फिर बन गया जिन्दा। काल भगवान भी भ्रम में पड़ गया भगवान(पूर्णब्रह्म) नहीं हो सकता। इसी प्रकार परमेश्वर कबीर साहेब अपना वास्तविक अस्तित्व छुपा कर एक सेवक बन कर आते हैं। काल या आम व्यक्ति पहचान नहीं सकता। इसलिए नानक जी ने उसे प्यार में ठगवाड़ा कहा है और साथ में कहा है कि वह धाणक(जुलाहा कबीर) बहुत समझदार है। दिखाई देता है कुछ परन्तु है बहुत महिमा(बहुता भार) वाला जो धाणक जुलाहा रूप में स्वयं परमात्मा पूर्ण ब्रह्म(सतपुरुष) आया है। प्रत्येक जीव को आधीनी समझाने के लिए अपनी भूल को स्वीकार करते हुए कि मैंने(नानक जी ने) पूर्णब्रह्म के साथ बहस(वाद-विवाद) की तथा उन्होनें (कबीर साहेब ने) अपने आपको भी (एक लीला करके) सेवक रूप में दर्शन दे कर तथा(नानक जी को) मुझको स्वामी नाम से सम्बोधित किया। इसलिए उनकी महानता तथा अपनी नादानी का पश्चाताप करते हुए श्री नानक जी ने कहा कि मैं(नानक जी) कुछ करने कराने योग्य नहीं था। फिर भी अपनी साधना को उत्तम मान कर भगवान से सम्मुख हुआ(ज्ञान संवाद किया)। मेरे जैसा नीच दुष्ट, हरामखोर कौन हो सकता है जो अपने मालिक पूर्ण परमात्मा धाणक रूप(जुलाहा रूप में आए करतार कबीर साहेब) को नहीं पहचान पाया? श्री नानक जी कहते हैं कि यह सब मैं पूर्ण सोच समझ से कह रहा हूँ कि परमात्मा यही धाणक (जुलाहा कबीर) रूप में है।
भावार्थ:- श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि यह फंसाने वाली अर्थात् मनमोहिनी शक्ल सूरत में तथा जिस देश में जाता है वैसा ही वेश बना लेता है, जैसे जिंदा महात्मा रूप में बेई नदी पर मिले, सतलोक में पूर्ण परमात्मा वाले वेश में तथा यहाँ उतर प्रदेश में धाणक(जुलाहे) रूप में स्वयं करतार (पूर्ण प्रभु) विराजमान है। आपसी वार्ता के दौरान हुई नोक-झोंक को याद करके क्षमा याचना करते हुए अधिक भाव से कह रहे हैं कि मैं अपने सत्भाव से कह रहा हूँ कि यही धाणक(जुलाहे) रूप में सत्पुरुष अर्थात् अकाल मूर्त ही है।
जी हां, कबीर साहेब ही श्री नानक देव जी के गुरु थे। इसका प्रमाण पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब जी में पृष्ठ 24 व 721 में भी है।
कबीर साहेब जी ने अपने तत्वज्ञान द्वारा हमेशा यह बताया कि ईश्वर एक है और अविनाशी है। वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर कभी मां के गर्भ से जन्म नहीं लेता है। वह ईश्वर अपने भक्त के बुरे कर्मों और पापों को भी नष्ट कर देता है। वह ईश्वर बहुत से चमत्कार भी करता है और वह कोई और नहीं बल्कि पूर्ण परमेश्वर कबीर जी स्वयं आप ही हैं क्योंकि परमात्मा का ज्ञान भी परमात्मा स्वयं अपने आप ही बताते हैं। पुत्र के जन्म के बारे में दादा जी बता सकते हैं कोई और नहीं।
परमेश्वर कबीर जी ने कभी भी किसी भी प्रकार के धर्म का प्रचार नहीं किया था। बल्कि कबीर जी तो मानवता के धर्म से ऊपर किसी भी धर्म को नहीं मानते थे क्योंकि ईश्वर ने कभी कोई धर्म बनाया ही नहीं। मनुष्य ने स्वयं ही धर्म बनाए और विभिन्न धर्मों में लोगों को बांटना शुरू कर दिया जो गलत है।
कबीर साहब जी ने समाज में मौजूद हर प्रकार के अंधविश्वास, छुआछूत, पाखंवाद आदि का विरोध किया था। यह सामाजिक बुराइयां हमें परमेश्वर कबीर साहेब जी की पहचान करने और मोक्ष की प्राप्ति करने से भटका रही थीं। इसके अलावा कबीर जी ने मूर्ति पूजा, व्रत रखना, भूत और पितृ पूजा करना, झाड़ फूंक, मनमाने ढंग से पूजा-पाठ करना, श्राद्ध कर्म आदि प्रथाओं का भी विरोध किया था।
कबीर साहेब जी ने हमेशा अपनी शिक्षाओं के द्वारा सभी धर्मों के लोगों आपस में मिलजुल कर रहने को कहा था। उन्होंने लोगों के बीच भाईचारे और मानवता को बढ़ाने का भी उपदेश दिया था।
कबीर साहेब जी ने कहा था कि मानवता से ऊपर कोई भी धर्म नहीं है इसीलिए सभी को केवल मानवता के धर्म का पालन करना चाहिए।
कबीर साहेब जी अपने दोहों, शब्द, वाणियों और कविताओं के लिए जाने जाते हैं। कबीर साहेब जी ने अपने साहित्यिक ज्ञान द्वारा हम मनुष्यों को सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान दिया था। जबकि कहते हैं कि कबीर साहेब जी अशिक्षित थे। परमात्मा तो ज्ञान का भंडार हैं, वे हमें ज्ञान देने आते हैं। शिक्षा की ज़रूरत तो हमें है क्योंकि परमात्मा तो परमज्ञानी और विद्वान हैं। इसका प्रमाण पवित्र ऋग्वेद मंडल 9 सुक्त 96 मंत्र 18 में भी है, इसके अनुसार परमेश्वर कबीर जी एक कवि के रूप में अपना सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान कविताओं के रूप में देते हैं ताकि सभी मनुष्य अपने परमपिता को पहचान कर सतभक्ति करें।
कबीर शब्द एकमात्र सर्वशक्तिमान परमेश्वर का नाम है। कबीर शब्द का अर्थ है सबसे बड़ा होना। यह इस सृष्टि का सबसे पवित्र नाम है।
भगवान कबीर साहेब जी दया और करूणा के सागर हैं उनकी सर्वोच्चता उनके स्वभाव में झलकती है। परमेश्वर कबीर जी अन्य देवताओं की तरह नहीं हैं जो लोगों को मारकर शांति स्थापित करना चाहते हैं। श्री राम जी, श्री कृष्ण जी और श्री विष्णु जी ने अन्य अवतारों के रूप में आकर लोगों को मारकर शांति स्थापित की थी। लेकिन अंत में इससे और भी अधिक विनाश और हानि हुई थी। इसके उल्ट कबीर परमेश्वर जी ने एक को भी श्राप नहीं दिया और न ही मारा था। बल्कि परमेश्वर कबीर जी ने अपने सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान द्वारा सदैव शांति स्थापित की है।
कबीर साहेब जी अपने सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार करने के लिए इस पृथ्वी पर चारों युगों में आते हैं। यहां आने के बाद उन्होंने कई संतों से प्रश्न पूछे क्योंकि वे धर्म के नाम पर गलत ज्ञान का प्रचार कर रहे थे। नकली धर्म गुरू व पंडित, ब्राह्मण भोले भाले लोगों को गलत ज्ञान देकर मूर्ख बना रहे थे। जब परमेश्वर कबीर जी ने इनसे आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा की तो वह संत हमारे पवित्र ग्रंथों का ज्ञान न होने के कारण सही उत्तर नहीं दे पाए। वैसे भी धर्म कभी भी हमें बांटने की शिक्षा नहीं देता। इसके अलावा कबीर साहेब जी हमें जागरूक करके एकजुट करने के लिए ही यहां आते हैं।
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Heena Kalra
श्री नानक देव जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब में सर्वशक्तिमान परमेश्वर कबीर जी की महिमा सब जगह लिखी है। इसका प्रमाण दीजिए?
Satlok Ashram
पूरे श्री गुरु ग्रंथ साहिब में सर्वशक्तिमान कविर्देव यानी कि कबीर जी की महिमा लिखी हुई है। आप प्रमाण (राग) "सिरी" मेहला 1, पृष्ठ संख्या 24, शब्द संख्या 29 , 721 ,731 पर देख सकते हैं।