आपे सचु कीआ कर जोड़ि। अंडज फोड़ि जोडि विछोड़।।
धरती आकाश कीए बैसण कउ थाउ। राति दिनंतु कीए भउ-भाउ।।
जिन कीए करि वेखणहारा।(3)
त्रितीआ ब्रह्मा-बिसनु-महेसा। देवी देव उपाए वेसा।।(4)
पउण पाणी अगनी बिसराउ। ताही निरंजन साचो नाउ।।
तिसु महि मनुआ रहिआ लिव लाई। प्रणवति नानकु कालु न खाई।।(10)
उपरोक्त अमतवाणी का भावार्थ है कि सच्चे परमात्मा (सतपुरुष) ने स्वयं ही अपने हाथों से सर्व सृष्टि की रचना की है। उसी ने अण्डा बनाया फिर फोड़ा तथा उसमें से ज्योति निरंजन निकला। उसी पूर्ण परमात्मा ने सर्व प्राणियों के रहने के लिए धरती, आकाश, पवन, पानी आदि पाँच तत्व रचे। अपने द्वारा रची सष्टी का स्वयं ही साक्षी है। दूसरा कोई सही जानकारी नहीं दे सकता। फिर अण्डे के फूटने से निकले निरंजन के बाद तीनों श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी की उत्पत्ति हुई तथा अन्य देवी-देवता उत्पन्न हुए तथा अनगिनत जीवों की उत्पत्ति हुई। उसके बाद अन्य देवों के जीवन चरित्र तथा अन्य ऋषियों के अनुभव के छः शास्त्र तथा अठारह पुराण बन गए। पूर्ण परमात्मा के सच्चे नाम (सत्यनाम) की साधना अनन्य मन से करने से तथा गुरु मर्यादा में रहने वाले (प्रणवति) को श्री नानक जी कह रहे हैं कि काल नहीं खाता।
आदरणीय श्री नानक देव जी को सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी ने सृष्टि रचना का ज्ञान दिया था। कबीर साहेब जी श्री नानक जी को सचखंड यानि कि सतलोक लेकर गए थे। उसके बाद उन्होंने श्री नानक जी को सृष्टि की शुरुआत से लेकर सारी रचना के बारे में बताया था। श्री गुरु नानक देव जी ने पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पृष्ठ 839 मेहला 1, राग बिलावलु (बिलावल), अंश 1 में इसका वर्णन किया था।
श्री नानक देव जी द्वारा सृष्टि रचना के बारे में कही गई बाणी के श्लोकों का अर्थ अन्य सिख गुरु नहीं समझ पाए क्योंकि न तो उन सिख गुरुओं को कोई तत्वदर्शी संत मिला और न ही सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान मिला इसलिए ज्ञान के अभाव के कारण उन्हें सही रास्ता नहीं मिल पाया।
सिख धर्म को मानने वाले लोग ईश्वर को निराकार मानते हैं। जबकि कुछ लोग श्री नानक देव जी को भगवान मानते हैं। लेकिन यह दोनों ही धारणाएं गलत हैं। श्री नानक देव जी ने स्वयं पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब के पृष्ठ 721 पर लिखा है कि कबीर साहेब जी सर्वोच्च सर्वशक्तिमान ईश्वर हैं। कबीर जी ने ही पूरे ब्रह्मांड की रचना की थी और श्री गुरु नानक देव जी ने उन्हें "परवरदिगार" , हक्का (सतगुरु/सच्चा गुरू) कबीर भी कहा था।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब में नानक देव जी द्वारा रचित सभी पंक्तियां , राग और शब्द केवल परमेश्वर कबीर जी की ही महिमा बताते हैं। गुरु ग्रंथ साहिब का सार संदेश यह है कि ईश्वर केवल एक है जिसका नाम कबीर है और वही मेरा यानी नानक देव का गुरु है। सभी को एकमात्र रब की भक्ति करके मोक्ष प्राप्त करना चाहिए।
पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में स्पष्ट रूप से यह प्रमाण है कि परमेश्वर कबीर जी पूरे ब्रह्मांड के निर्माता हैं। कबीर जी ने ही गुरू नानक देव जी को सृष्टि रचना का भेद सुनाया था और उन्हें तीन दिन तक सतलोक में रखा था। सचखंड से वापिस आने के बाद श्री गुरु नानक देव जी परमेश्वर कबीर जी से मिलने काशी गए थे। जहां कबीर साहेब जी को धानक रूप में कार्य करता देखकर श्री नानक देव जी के मुख से उत्साह में 'वाहेगुरू' शब्द निकला था। लेकिन अज्ञानता के कारण सिख धर्म को मानने वाले लोग वाहेगुरु नाम का ही जाप करने लगे। जबकि वाहेगुरु का अर्थ है कि ये वही गुरु हैं जो श्री नानक जी को सतलोक लेकर गए थे। उसके बाद कबीर जी ने श्री नानक जी को सतनाम मंत्र प्रदान किया था और जिसके जाप से उसकी मुक्ति हुई। श्री नानक देव जी ने खुशी प्रकट करने के लिए 'वाहेगुरु' कहा था। यह कोई मोक्ष मंत्र नहीं है, जबकि परमात्मा की महिमा में कहा गया शब्द है।
कबीर साहेब ने सबसे पहले अगमलोक, अलखलोक, सतलोक की रचना की तथा उसके बाद 16 द्वीप और अपने 16 पुत्रों की रचना की। इसका वर्णन श्री नानक देव जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब में किया हुआ है।
पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब जी में यह स्पष्ट लिखा है कि मोक्ष प्राप्त करना मनुष्य जीवन का एकमात्र मुख्य उद्देश्य है। मोक्ष प्राप्त करने के लिए पूर्ण संत या तत्वदर्शी संत की शरण लेनी चाहिए और उसके बाद पूर्ण परमेश्वर कबीर जी की पूजा आरंभ करनी चाहिए।
किसी भी धर्म व पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब में शराब पीने और मांस खाने का आदेश नहीं है। लोग अपनी अज्ञानता के कारण शराब जैसे नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं और मांस खाते हैं लेकिन यह पाप है और परमेश्वर के संविधान के बिल्कुल विरुद्ध है।
श्री नानक देव जी ने एक ओंकार शब्द के द्वारा अमर परमेश्वर कबीर जी की तरफ संकेत किया था। इसका मतलब ही भगवान है और वह मनुष्य सदृश्य है। सिक्ख धर्म पूरी तरह से एकेश्वरवादी है अर्थात केवल एक ईश्वर के अस्तित्व को मानते हैं। गुरु नानक जी ने एकेश्वरवाद के विचार पर जोर देने के लिए ओंकार शब्द के पहले "इक"(ੴ) का उपसर्ग दिया। इक ओंकार सत-नाम करत पुरख निरभउ, निरवैर अकाल मूरत अंजुनि सिभन गुर प्रसाद। यहां केवल एक ही परम पुरुष है, शाश्वत सच, हमारा रचनहार, भय और दोष से रहित, अविनाशी, अजन्मा, स्वयंभू परमात्मा। जिसकी जानकारी कृपापात्र भगत को पूर्ण गुरु यानि तत्वदर्शी संत से प्राप्त होती है।
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Baljeet Singh
ब्रह्मांड का रचियता कौन है और क्या इसका कोई गवाह है?
Satlok Ashram
सर्वशक्तिमान कविर्देव यानि कि कबीर जी सभी ब्रह्माण्डों के रचयिता हैं। श्री गुरु नानक देव जी परमेश्वर कबीर जी के गवाह थे। परमेश्वर कबीर जी श्री नानक देव जी को सतलोक यानि कि सच्चखण्ड लेकर गए थे, वहां उन्हें तीन दिन रखा और पूरी सृष्टि रचना के बारे में बताया। इसका प्रमाण श्री गुरु ग्रंथ साहिब में मेहला 1, राग बिलावलु (बिलावल), अंश 1 में पृष्ठ संख्या 838 पर है।