हिन्दू धर्म एक पवित्र धर्म हैं जिसे मानने वाले लोग बहुसंख्या में है और इसी धर्म को वर्तमान समय में लोगों द्वारा सनातन धर्म तथा वैदिक धर्म भी कहा जाता है। इस धर्म के पवित्र धर्मग्रंथ चार वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) श्रीमद्भगवत गीता, 18 पुराण, महाभारत, श्रीमद्भागवत् अर्थात सुधा सागर तथा 11 उपनिषद माने जाते हैं जिनमें से एक पुराण है श्री शिवपुराण (शिव महापुराण)। आइए इस लेख में शिव पुराण का अवलोकन करते हुए निम्न बिंदु का अध्ययन करते हैं:-
- कौन हैं भगवान सदाशिव?
- ब्रह्म, रजोगुण-सतोगुण-तमोगुण प्रधान क्षेत्र में तीन रूपों में कौन रहता है?
- देवी दुर्गा को शिवा और प्रकृति भी कहा जाता है
- काल ब्रह्म (सदाशिव) और दुर्गा (शिवा) से विष्णु जी की उत्पत्ति
- ब्रह्मा और शिव जी की उत्पत्ति
- कबीर सागर में त्रिदेव की उत्पत्ति का प्रमाण
- शिव और सदाशिव दो भिन्न शक्तियां हैं
- श्रीमद्भगवद्गीता में तीनों देवताओं की उत्पत्ति का प्रमाण
कौन हैं भगवान सदाशिव?
भगवान सदाशिव/ब्रह्म-काल/क्षर पुरुष 21 ब्रह्माण्डों का प्रभु है। जिसका विकराल शरीर है और इसके एक हज़ार हाथ हैं तथा 1000 कलाएं हैं, जो कि सर्व सृष्टि रचनहार अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म/सतपुरुष कविर्देव (कबीर साहेब) का पुत्र है, इसकी उत्पत्ति अंडे से हुई है जिसका प्रमाण ऋग्वेद मण्डल नं. 10 सूक्त 90 मन्त्र 1 व 5 में है। गीता अध्याय 11 श्लोक 32 व 46, अध्याय 8 श्लोक 13 से स्पष्ट होता है कि गीता ज्ञान दाता भी ब्रह्म काल है, इसकी हजार भुजाएँ हैं, इसका ओम (ॐ) नाम है।
गीता अनुसार, ब्रह्म-काल/सदाशिव की उत्पत्ति
वहीं गीता ज्ञान दाता ब्रह्म काल, श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 3 श्लोक 14-15 में स्पष्ट करता है:
अन्नात्, भवन्ति, भूतानि, पर्जन्यात्, अन्नसम्भवः,
यज्ञात्, भवति, पर्जन्यः, यज्ञः, कर्मसमुद्भवः।।14।।
कर्म, ब्रह्मोद्भवम्, विद्धि, ब्रह्म, अक्षरसमुद्भवम्,
तस्मात्, सर्वगतम्, ब्रह्म, नित्यम्, यज्ञे, प्रतिष्ठितम्।।15।।
अर्थात प्राणी की उत्पत्ति अन्न से होती हैं, अन्न की उत्पत्ति वृष्टि से होती है, वृष्टि यज्ञ से होती है और यज्ञ विहित कर्मों से उत्पन्न होने वाला है। कर्म को तू ब्रह्म से उत्पन्न और ब्रह्म अर्थात् क्षर पुरुष को अविनाशी परमात्मा से उत्पन्न हुआ जान। इससे सिद्ध होता है कि सर्वव्यापी परमात्मा सदा ही यज्ञ में प्रतिष्ठित है अर्थात् यज्ञों का भोग लगा कर फल दाता भी वही पूर्णब्रह्म है। (इसी का प्रमाण पवित्र गीता अध्याय 4 श्लोक 13 में है कि गुणों के आधार से कर्म लगाकर चार वर्ण बनाने वाला मैं ब्रह्म ही हूं, परंतु वास्तव में करतार यानि सृष्टि का कर्ता मैं नहीं हूँ।)
सतपुरुष (परम अक्षर ब्रह्म) सत्यलोक में रहते हैं। पहले ब्रह्म-काल भी सनातन परम धाम सत्यलोक (सतलोक) का वासी था। लेकिन सतलोक में इसने और इसकी पत्नी प्रकृति/देवी दुर्गा ने भयंकर गलती की, जिसके कारण उसे उसकी पत्नी दुर्गा सहित सतलोक से परमेश्वर ने निकाल दिया था। तब से दोनों 21 वें ब्रह्मांड में रहते हैं। इसकी विस्तृत जानकारी जानने के लिए पढ़िये सृष्टि रचना।
ब्रह्म, रजोगुण-सतोगुण-तमोगुण प्रधान क्षेत्र में तीन रूपों में रहता है
सद्ग्रन्थों से पता चलता है कि ज्योति निरंजन (ब्रह्म-काल) केवल इक्कीस ब्रह्मांडों का स्वामी है। इसे क्षर पुरुष, क्षर ब्रह्म, कैल, ज्योति निरंजन, धर्मराज (धर्मराय) आदि नामों से भी जाना जाता है। एक ब्रह्मांड में, इस ब्रह्म ने परमेश्वर से प्राप्त शक्ति से एक 'ब्रह्मलोक' बनाया है। उसमें इसने तीन गुप्त स्थान बनाए हैं। रजोगुण प्रधान क्षेत्र में यह महाब्रह्मा, सतोगुण प्रधान क्षेत्र में महाविष्णु और तमोगुण प्रधान क्षेत्र में महाशिव/सदाशिव रूप में रहता है। जोकि देवी दुर्गा/माया/अष्टांगी/प्रकृति देवी का पति है। जिन्हें तीनों क्षेत्र में ब्रह्म क्रमशः महासावित्री - महालक्ष्मी - महापार्वती रूप में रखता है। जिसका स्पष्ट प्रमाण गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत (देवीपुराण) के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 1-3 में मिलता है। जिसमें लिखा है कि एक समय देवी दुर्गा ने तीनों पुत्रों ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी को एक विमान में बैठाकर ब्रह्मलोक का भ्रमण करवाया जहां ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी ने अपने से अन्य ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी को देखा जिनके साथ उनकी पत्नियां भी थीं।
संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत (देवीपुराण) के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 1-3
देवी दुर्गा को शिवा और प्रकृति भी कहा जाता है
संक्षिप्त शिवपुराण (गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित, संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार) के रुद्रसंहिता खंड अध्याय 6, पुराने संस्करण में पृष्ठ 99-100 (नए संस्करण में पृष्ठ 119-120) में लिखा है कि, एक समय अपने पुत्र नारद जी के प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री ब्रह्मा जी ने कहा कि हे पुत्र! आपने सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता के विषय में जो प्रश्न किया है, उसका उत्तर सुन। प्रारम्भ में केवल एक "तत्सद्ब्रह्म" ही शेष था। सब स्थानों पर प्रलय थी। उस निराकार परमात्मा ने अपना स्वरूप शिव जैसा बनाया। उसको "सदाशिव" कहा जाता है, उसने अपने शरीर से एक स्त्री निकाली, जो उनके अपने श्रीअंग (शरीर) से कभी अलग होने वाली नहीं थी। वह स्त्री दुर्गा, जगदम्बिका, प्रकृति देवी तथा त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) की जननी (माता) कहलाई जिसकी आठ भुजाएं हैं, इसी को शिवा भी कहा है।
संक्षिप्त शिवपुराण, रुद्रसंहिता अध्याय 6, नए संस्करण के पृष्ठ 119-120
काल ब्रह्म (सदाशिव) और दुर्गा (शिवा) से विष्णु जी की उत्पत्ति
संक्षिप्त शिवपुराण, रुद्रसंहिता अध्याय 6, पुराने संस्करण में पृष्ठ 100-102 (नए संस्करण के पृष्ठ 120-122) में ब्रह्मा जी बताते हैं कि वे जो सदाशिव हैं, उन्हें परमपुरुष, ईश्वर, शिव, शम्भु और महेश्वर कहते हैं। वे अपने सारे शरीर में भस्म रमाये रहते हैं। उन कालरूपी ब्रह्म ने एक ही समय शक्ति के साथ 'शिवलोक' नामक क्षेत्र का निर्माण किया था। जहां वे प्रिया-प्रियतम (पत्नी व पति) रूप में शक्ति (शिवा/दुर्गा) और शिव (ब्रह्म/सदाशिव) नित्य निवास करते हैं। एक समय उस आनन्दवन में रमण यानी पति-पत्नी व्यवहार करते हुए शिवा (दुर्गा) और शिव (ब्रह्म काल) के मन में यह इच्छा हुई कि किसी दूसरे पुरुष की भी सृष्टि करनी चाहिये। ऐसा निश्चय करके दुर्गा सहित सर्वव्यापी परमेश्वर सदाशिव ने अपने वामभाग के दसवें अंग पर अमृत मल दिया। फिर तो वहाँ से एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम विष्णु रखा।
संक्षिप्त शिवपुराण, रुद्रसंहिता अध्याय 6, नए संस्करण के पृष्ठ 121-122
ब्रह्मा और शिव जी की उत्पत्ति
फिर संक्षिप्त शिवपुराण, रुद्रसंहिता अध्याय 7, पुराने संस्करण में पृष्ठ 103 (नए संस्करण के पृष्ठ 123) में श्री ब्रह्मा जी ने बताया कि जिस प्रकार विष्णु जी की उत्पत्ति शिव (काल ब्रह्म) तथा शिवा (दुर्गा) के संयोग (भोग-विलास) से हुई है, उसी प्रकार सदाशिव और दुर्गा ने मेरी भी उत्पत्ति की।
संक्षिप्त शिवपुराण, रुद्रसंहिता अध्याय 7, नए संस्करण के पृष्ठ 123
लेकिन तत्वज्ञान के अभाव के कारण शिवपुराण का अनुवाद कर्ता विचलित हो गया कि अब शिव से शिव की उत्पत्ति कैसे लिखूँ। जिसके कारण अनुवाद कर्ता ने शिव की उत्पत्ति का आगे प्रकरण नहीं लिखा है। जबकि गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित देवी महापुराण (श्रीमद्देवीभागवत) के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 4-5 में श्री विष्णु जी ने अपनी माता दुर्गा की स्तुति करते हुए कहा है कि हे माता! आप शुद्ध स्वरूपा हो, सारा संसार आप से ही उद्भाषित हो रहा है, हम तीनों आपकी कृपा से विद्यमान हैं, मैं (विष्णु), ब्रह्मा और शंकर तो जन्मते-मरते हैं, हमारा तो अविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है, हम अविनाशी नहीं हैं। तुम ही जगत जननी, सनातनी और प्रकृति देवी हो। फिर शंकर भगवान बोले, हे माता! विष्णु के बाद उत्पन्न होने वाले ब्रह्मा जब आपका पुत्र हैं तो क्या मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर तुम्हारी सन्तान नहीं हुआ अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम्हीं हो।
देवी महापुराण (श्रीमद्देवीभागवत) के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 4-5
इस शिवपुराण और श्रीमद्देवीभागवत (देवी पुराण) के उल्लेख से सिद्ध हुआ कि श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शंकर जी को जन्म देने वाली माता दुर्गा जी हैं और इनके पिता क्षरपुरुष/काल ब्रह्म/सदाशिव हैं।
शिव और सदाशिव दो भिन्न शक्तियां हैं
● श्री मार्कण्डेय पुराण (सचित्र मोटा टाईप गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित) के अध्याय 25 में 131 पृष्ठ पर कहा गया है कि “रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शंकर, ये तीनों ब्रह्म की प्रधान शक्तियाँ है और ये ही तीन देवता हैं तथा ये ही तीन गुण हैं।”
● श्री देवी महापुराण संस्कृत व हिन्दी अनुवाद {श्री वेंकटेश्वर प्रैस बम्बई (मुंबई) से प्रकाशित} में तीसरे स्कन्ध अध्याय 5 श्लोक 8 में लिखा है कि शंकर भगवान बोले, “हे माता! यदि आप हम पर दयालु हैं तो मुझे तमोगुण, ब्रह्मा को रजोगुण तथा विष्णु को सतोगुण युक्त क्यों किया?”
● वहीं शिवपुराण, रुद्र संहिता अध्याय नं. 9, पुराने संस्करण के पृष्ठ नं. 110 (नए संस्करण के पृष्ठ 130) पर कहा गया है कि इस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र (शिव शंकर), इन तीनों देवताओं में गुण हैं, लेकिन शिव (काल-ब्रह्म) को गुणातीत यानी इन गुणों से परे माना जाता है।
इससे स्पष्ट है कि तीन गुण रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु और तमगुण शिव जी हैं और इनका पिता सदाशिव अर्थात काल ब्रह्म अलग है।
कबीर सागर में त्रिदेव की उत्पत्ति का प्रमाण
पवित्र कबीर सागर, अध्याय ज्ञानबोध के पृष्ठ 21-22 पर परमेश्वर कबीर जी ने अपने परम शिष्य धर्मदास जी को सृष्टि रचना के विषय में बताया है:
अब मैं तुमसे कहूं चिताई। त्रयदेवन की उत्पत्ति भाई।।
कुछ संक्षेप कहूं गोहराई। सब संशय तुम्हरे मिट जाई।।
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारूण वंशन अंजन।।
धर्मराय कीन्हें भोग विलासा। माया को रही तब आशा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
तीन देव संसार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।।
श्रीमद्भगवद्गीता में तीनों देवताओं की उत्पत्ति का प्रमाण
श्रीमद्भगवद्गीता गीता अध्याय 14 श्लोक 3 से 5 में गीता ज्ञान दाता ब्रह्म कहता है कि रज् (रजगुण ब्रह्मा), सत् (सतगुण विष्णु), तम् (तमगुण शंकर) तीनों गुण प्रकृति अर्थात् दुर्गा देवी से उत्पन्न हुए हैं। प्रकृति (दुर्गा) तो सब जीवों को उत्पन्न करने वाली माता है। मैं (गीता ज्ञान दाता ब्रह्म काल) सब जीवों का पिता हूँ। मैं दुर्गा (प्रकृति) के गर्भ में बीज स्थापित करता हूँ जिससे सबकी उत्पत्ति होती है। ये तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) ही जीवात्मा को शरीर में बाँधते हैं यानी सब जीवों को काल के जाल में फंसाकर रखने वाले ये ही तीनों देवता हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 14 श्लोक 3-5
इस विषय में सूक्ष्मवेद में कहा गया है:
ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, माया और धर्मराया कहिए।
इन पाँचों मिल प्रपंच बनाया, वाणी हमरी लहिए।।
इन पाँचों मिल जीव अटकाए। जुगन जुगन हम आन छुड़ाए।।
निष्कर्ष
शिवपुराण के इस लेख में दिए गए तथ्य निम्न बिंदुओं को सिद्ध करते हैं:
- सदाशिव ही काल ब्रह्म है जिसे ज्योति निरंजन, क्षरपुरुष आदि नामों से जाना जाता है।
- देवी दुर्गा को प्रकृति व शिवा नाम से भी जाना जाता है।
- रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु और तमगुण शिव (महेश / रुद्र) हैं।
- तीनों देवताओं का जन्म सदाशिव (काल ब्रह्म) और दुर्गा के संयोग से हुआ है। अर्थात तीनों देवताओं के पिता सदाशिव (काल-ब्रह्म) और माता प्रकृति देवी दुर्गा हैं।
- देवी दुर्गा के पति काल ब्रह्म (सदाशिव) हैं।
इसलिए प्रत्येक मानव को जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा प्रदान किये जा रहे सत्य आध्यात्मिक ज्ञान को समझना चाहिए। साथ ही, उनकी शरण ग्रहण करके अपने मानव जीवन का कल्याण करवाना चाहिए। क्योंकि आज पूरे विश्व में संत रामपाल जी महाराज के पास ही सत्य आध्यात्मिक ज्ञान व सच्ची भक्ति है जिसके करने से मोक्ष सम्भव है।
FAQs : "श्री शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी का जन्म"
Q.1 भगवान सदाशिव कौन हैं?
भगवान सदाशिव, काल-ब्रह्म है जिन्हें ज्योति निरंजन, क्षरपुरुष आदि नामों से जाना जाता है। इनकी प्रभुता 21 ब्रह्मांडों तक सीमित है।
Q.2 शिवपुराण अनुसार ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी के माता पिता कौन हैं?
शिवपुराण के रुद्रसंहिता खंड अध्याय 6, 7 व 9 के अनुसार, सदाशिव (ब्रह्म-काल) और दुर्गा (शिवा, प्रकृति) के पति-पत्नी व्यवहार से ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उत्पत्ति हुई जिससे ब्रह्म तो त्रिदेव के पिता हैं जबकि दुर्गा इन तीनों देवताओं की माता है।
Q. 3 प्रकृति देवी किसे कहते हैं?
शिवपुराण, रुद्रसंहिता अध्याय 6 से स्पष्ट है कि देवी दुर्गा को ही प्रकृति, त्रिदेवजननी, अष्टांगी, शिवा आदि नामों से जाना जाता है।
Q.4 माता दुर्गा के पति का क्या नाम है?
संक्षिप्त शिवपुराण, रुद्रसंहिता अध्याय 6 से सिद्ध है कि माता दुर्गा के पति काल-ब्रह्म, सदाशिव हैं।