सूत वर्ग से संबंधित और महर्षि वेदव्यास के शिष्य ऋषि रोमहर्षण (सूत जी) द्वारा संस्कृत में लिखित पवित्र श्री शिव महापुराण में बारह संहिता शामिल हैं। भगवान सदाशिव को ब्रह्म-काल / ज्योति निरंजन / क्षर पुरुष / धर्मराय / शिव / शंभू / महेश्वर / महाकाल के नाम से भी जाना जाता है, जो पवित्र श्री शिव महापुराण के केंद्रीय पात्र हैं। इसमें महाशिव / ब्रह्म काल और उनकी पत्नी देवी दुर्गा की विभिन्न जीवन घटनाओं और कहानियों को दर्शाया गया है, जिन्हें प्रकृति / प्रधान / शिवा / जगत जननी / त्रिदेवजननी / अंबिका / अष्टांगी आदि भी कहा जाता है। शिवपुराण में साक्ष्यों के साथ एक ज्वलंत विवरण का उल्लेख किया गया है कि ब्रह्म काल और दुर्गा के मिलन से त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और शिव का जन्म हुआ। इसी विवरण पर प्रकाश डालना इस लेख का उद्देश्य है। आइए शिवपुराण के साक्ष्यों के आधार पर निम्नलिखित बिंदुओं का अध्ययन करें:
- भगवान सदाशिव कौन हैं?
- शिव महापुराण- श्री ब्रह्मा जी द्वारा सुनाई गई कथा
- सूक्ष्म वेद और शिव महापुराण में काल-ब्रह्म और दुर्गा के जन्म के बारे में वास्तविकता
- शिव पुराण में श्री विष्णु जी का जन्म
- श्री ब्रह्मा और श्री शिव जी का जन्म
- सूक्ष्मवेद में काल और दुर्गा से ब्रह्मा, विष्णु, शिव की उत्पत्ति
- भगवान सदाशिव मुक्ति नहीं दे सकते
- शिव महापुराण का सार
भगवान सदाशिव कौन हैं?
भगवान सदाशिव/ब्रह्म-काल/क्षर पुरुष 21 ब्रह्माण्डों का स्वामी है। ब्रह्म-काल का विकराल शरीर है और उसके हजार सिर, आंखें, कान और पैर हैं (प्रमाण ऋग्वेद मंडल नंबर 10 सूक्त 90 मंत्र 1) जोकि सर्व सृष्टि रचनहार अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म/सतपुरुष कबीर साहेब (प्रमाण ऋग्वेद मण्डल नं. 10 सूक्त 90 मन्त्र 5) का पुत्र है, जिसकी उत्पत्ति अंडे से हुई है। जिसका विस्तृत विवरण सूक्ष्मवेद (पवित्र कबीर सागर) यानि सच्चिदानंदघन ब्रह्म की वाणी से इसी लेख में आगे पढ़ने को मिलेगा।
सतपुरुष परमधाम सतलोक में रहते हैं। पहले भगवान सदाशिव भी सच्चखंड/सतलोक का निवासी था लेकिन इसने पवित्र स्थान सतलोक में गलती की, जिसके कारण उसे उसकी पत्नी प्रकृति देवी/देवी दुर्गा सहित निष्कासित कर दिया गया। तब से दोनों 21 ब्रह्मांडों में रहते हैं जो नश्वर हैं। भगवान सदाशिव/ब्रह्म-काल द्वारा सच्चखंड में की गई कठोर तपस्या के फलस्वरूप सर्वशक्तिमान कविर्देव से 21 ब्रह्मांड समेत पांच तत्व और तीन गुण प्राप्त किये और उसने अपने 21 ब्रह्माण्डों में विभिन्न रचनाएं कीं। वह अपने 21 ब्रह्माण्डों पर पूर्ण नियंत्रण रखता है और स्वयं 21वें महा ब्रह्माण्ड में अलग क्षेत्र (निजलोक) में निवास करता है। इस काल भगवान को प्रतिदिन एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सूक्ष्म शरीर से निकलने वाले मैल को खाने का श्राप है। जिसके कारण इसने अपने तीन पुत्रों को तीन लोक (स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक और पाताल लोक) का प्रबंधन सौंप दिया है। ब्रह्मा जी रजोगुण हैं जिनके प्रभाव से हम सभी प्राणी संतान उत्पन्न करते हैं और सतोगुण श्री विष्णु जी के प्रभाव से हम सब एक दूसरे से मोह, ममता से जुड़े हुए हैं, बहुत सारा स्नेह हमारे अंदर समाया हुआ है, इससे हम ज्यादा दूर नहीं जा सकते तथा तमोगुण शंकर/शिव जो संहार करते हैं। उनका काम अपने पिता काल के लिए भोजन की व्यवस्था करना है।
लेकिन पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता में ब्रह्म (काल) कहता है कि जो कुछ भी होता है अर्थात ब्रह्मा जी (रजोगुण) से रचना, विष्णु जी (सतोगुण) से स्थिति और शिव जी (तमोगुण) से विनाश उन सबका एकमात्र कारण मैं ही हूं, लेकिन मैं अपनी योगमाया से छिपा रहता हूँ, किसी के सामने प्रत्यक्ष नहीं आता। ( प्रमाण - श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 श्लोक 12, 24-25)।
श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 7 श्लोक 12, 24, 25
शिव महापुराण - श्री ब्रह्मा जी द्वारा सुनाई गई कथा
संक्षिप्त शिवपुराण (संपादक-हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक-गीताप्रेस गोरखपुर) रुद्र संहिता, अध्याय 5, 6 पुराने संस्करण में पृष्ठ 98-99 (नए संस्करण में पृष्ठ 118-119): श्री नारद जी और उनके पिता श्री ब्रह्मा जी के बीच ब्रह्मांड के निर्माण के बारे में चर्चा हुई। अपने पुत्र नारद जी की बात सुनकर श्री ब्रह्मा जी ने कहा “ब्रह्मन्! देवशिरोमणे! तुम सदा समस्त जगत के उपकार में ही लगे रहते हो। तुमने लोगों के हितकी कामना से यह बहुत उत्तम बात पूछी है। जिस समय समस्त चराचर जगत् नष्ट हो गया था, सर्वत्र केवल अन्धकार-ही-अन्धकार था। कुछ भी शेष नहीं था। उस समय 'तत्सद्ब्रह्म' इस श्रुति में जो 'सत्' सुना जाता है, एकमात्र वही शेष था।
पुराने संस्करण में पृष्ठ 100 (नए संस्करण में पृष्ठ 120): ब्रह्मा जी ने कहा, “जिस परब्रह्म के विषय में ज्ञान और अज्ञान के माध्यम से पूर्ण उक्तियों द्वारा विकल्प किये जाते हैं अर्थात कुछ ज्ञान और कुछ अज्ञान। जो निराकार ब्रह्म है, उसने कुछ समय बाद द्वितीय की इच्छा व्यक्त की। उनके अंदर एक से अनेक होने का संकल्प उदित हुआ। तब उस निराकार ईश्वर ने अपनी लीला शक्ति से अपने लिए एक मूर्ति (आकार) की कल्पना की। जो मूर्ति रहित परम ब्रह्म है, उसी की मूर्ति भगवान सदाशिव हैं। अर्वाचीन और प्राचीन विद्वान उन्हें ईश्वर कहते हैं। उस समय एकाकी रहकर स्वेच्छानुसार विहार करने वाले उन सदाशिव ने अपने विग्रह से स्वयं ही एक स्वरूपभूता शक्ति की सृष्टि की, जो उनके अपने श्रीअंग से कभी अलग होने वाली नहीं थी। उस पराशक्ति को प्रधान, प्रकृति, गुणवती, माया, बुद्धितत्त्व की जननी तथा विकाररहित बताया गया है। वह शक्ति अम्बिका कही गयी है। उसी को प्रकृति, सर्वेश्वरी, त्रिदेवजननी (ब्रह्मा, विष्णु, शिव जी की माता), नित्या और मूलकारण भी कहते हैं। सदाशिव द्वारा प्रकट की गयी उस शक्ति की आठ भुजाएँ हैं। नाना प्रकार के आभूषण उसके श्रीअंगों की शोभा बढ़ाते हैं। वह देवी नाना प्रकार की गतियों से सम्पन्न है और अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र धारण करती है। एकाकिनी होने पर भी वह माया संयोगवशात् अनेक हो जाती है। वे जो सदाशिव हैं, उन्हें परमपुरुष, ईश्वर, शिव, शम्भु और महेश्वर कहते हैं।
संक्षिप्त शिवपुराण, रुद्रसंहिता अध्याय 5, 6 नए संस्करण के पृष्ठ 118-120
यह भी पढ़ें: पवित्र शिव महापुराण में सृष्टि रचना का प्रमाण
ब्रह्मा जी को काल ने किया भ्रमित
कबीर परमेश्वर जी ने कहा हे धर्मदास! मैं काल ब्रह्म के इक्कीसवें ब्रह्मण्ड से चलकर नीचे वाले ब्रह्मण्ड में आया। सर्व प्रथम ब्रह्मा जी के पास आया। मैंने ब्रह्मा जी से ज्ञान चर्चा की ब्रह्मा भी सर्व प्रमाणों को वेदों में देखकर चकित रह गया तथा मेरा शिष्य हुआ। ब्रह्मा को मैंने अपना नाम अग्नि ऋषि बताया। ब्रह्मा ने कहा हे अग्नि देव! आपका ज्ञान अद्वितीय है। जिसके उसके बाद उसने मुझसे प्रथम मन्त्र प्राप्त किया। ब्रह्मा तथा सावित्री को मैंने ओम् मन्त्र दिया। इसी तरह मैंने विष्णु जी को हरियम् और शिव जी को सोहं मंत्र दिया। परमेश्वर कबीर जी कहते हैं:
आदि अंत हमरा नहीं, मध्य मिलावा मूल।
ब्रह्मा ज्ञान सुनाईया, धर पिंडा अस्थूल।।
श्वेत भूमिका हम गए, जहां विश्वम्भरनाथ।
हरियम् हीरा नाम दे, अष्ट कमल दल स्वांति।।
हम बैरागी ब्रह्म पद, सन्यासी महादेव।
सोहं मंत्र दिया शंकर कूं, करत हमारी सेव।।
कबीर परमेश्वर ने बताया कि कुछ दिनों पश्चात् मैं फिर से ब्रह्मा के पास गया। लेकिन ब्रह्मा जी ने अरूचि दिखाई। क्योंकि जब काल ब्रह्म ने देखा कि मेरे ज्येष्ठ पुत्र ब्रह्मा को तत्वज्ञान से परिचित किया जा रहा है। उसने सोचा यदि मेरा पुत्र तत्वज्ञान से परिचित हो गया तो मेरे से घृणा करेगा तथा जीव उत्पत्ति नहीं हो पाएगी। फिर मेरा उदर कैसे भरेगा? क्योंकि काल ब्रह्म को एक लाख मानव शरीरधारी जीवों को प्रतिदिन खाने का शाप लगा है। इसलिए काल ब्रह्म ने अपने ज्येष्ठ पुत्र ब्रह्मा की बुद्धि को परिवर्तित कर दिया। ब्रह्मा के मन में विचार भर दिए कि काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ही पूज्य है। वह निराकार है। इससे भिन्न कोई अन्य परमात्मा नहीं हैं। जो तुझे ज्ञान दिया जा रहा है वह मिथ्या है। यह अग्नि ऋषि जो तेरे पास आया था वह अज्ञानी है। इसकी बातों में नहीं आना है। इसके बाद ब्रह्मा जी ने काल ब्रह्म के प्रभाव से प्रभावित होकर मेरे ज्ञान को ग्रहण नहीं किया तथा कहा हे ऋषिवर! जो ज्ञान आप बता रहे हो यह अप्रमाणित है। इसलिए विश्वास के योग्य नहीं है। वेदों में केवल एक परमात्मा की पूजा का विधान है। उसका केवल एक ओम् (ॐ) ही जाप करने का है। मुझे पूर्ण ज्ञान है। मैंने बहुत कोशिश की ब्रह्मा को समझाने की तथा बताया कि वेद ज्ञान दाता ब्रह्म किसी अन्य पूर्ण ब्रह्म की प्राप्ति के लिए तथा उसके विषय में तत्व से जानने के लिए किसी तत्वदर्शी सन्त (धीराणाम्) की खोज करने के लिए कह रहा है। जिसका यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 10 व 13 में स्पष्ट वर्णन है तथा गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में भी स्पष्ट कहा है। प्रमाणों को देख कर भी काल ब्रह्म के अति प्रभाव के कारण ब्रह्मा ने मेरे विचारों में रूचि नहीं ली। मैंने जान लिया कि ब्रह्मा को काल ने भ्रमित कर दिया है। इसी तरह विष्णु और शिव जी को भी काल ने भ्रमित कर दिया जिससे उन्होंने आगे मेरे सत्यज्ञान को सुनने में रुचि नहीं दिखाई।
यहीं वजह है कि ब्रह्मा जी ने शिवपुराण में परमेश्वर कबीर जी द्वारा दिये गए सत्यज्ञान और काल ब्रह्म द्वारा दिये गए गलत ज्ञान को आधार बनाकर कुछ ज्ञान और कुछ अज्ञान सुनाया है। जिसके तथ्यों का वर्णन आगे इसी लेख में किया गया।
सूक्ष्मवेद और शिव महापुराण में काल-ब्रह्म और दुर्गा के जन्म के बारे में वास्तविकता
श्री शिवमहापुराण में विवरण में ब्रह्मा जी ने सत्य आध्यात्मिक ज्ञान से अनभिज्ञ होने के कारण भगवान से सुने हुए ज्ञान को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया है। काल की प्रेरणा से ब्रह्मा जी ने अपना अनुभव जोड़ा तथा कुछ अन्य ऋषि-मुनियों की अज्ञानता के आधार पर कथा सुनानी प्रारम्भ कर दी। ब्रह्म/ज्योति निरंजन की उत्पत्ति का तथ्य सर्वशक्तिमान कविर्देव (कबीर परमेश्वर) जी की अमृतवाणी में अर्थात् सूक्ष्मवेद में वर्णित है कि काल तथा दुर्गा की रचना सतपुरुष ने शब्द शक्ति से की थी। ब्रह्म की दुर्गा पर बुरी नियत थी, जिसके कारण दुर्गा ने अपना सूक्ष्म रूप बनाया और उसके पेट के अंदर चली गई, जिसका अर्थ है कि काल ने दुर्गा को निगल लिया था। बाद में दुर्गा की प्रार्थना पर कबीर परमेश्वर जी ने उसे काल के पेट से निकाला। इसका उल्लेख सूक्ष्मवेद अर्थात पवित्र कबीर सागर अध्याय-ज्ञान बोध पृष्ठ 21-22 में ‘‘सृष्टि रचना की वाणी‘‘ में किया गया है जो निम्न है:
पहले कीन निरंजन राई। पीछे से माया उपजाई।।
माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।।
कामदेव धर्मराय सताये। देवी कूं तुरंत धर खाये।।
पेट से देवी करी पुकारी। हे साहब मोहे लेवो उबारी।।
टेर सुनि सतगुरू तहं आए। अष्टंगी को बंद छुड़वाये।।
धर्मराय ने हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भग कर लीना।।
पवित्र कबीर सागर के अध्याय "श्वांस गुंजार" पृष्ठ 15-21 में भी वास्तविक सृष्टि रचना की जानकारी परमेश्वर कबीर जी ने स्वयं दी है जिसकी कुछ वाणी निम्न हैं:
धर्मराय कही जब कुबानी। तब कामिनि चित शंका आनि।।
कामिनि कह धर्म सो बानी। काहे धर्म होऊ अज्ञानी।।
हम तुम एक पुरूष ने कीन्हों। तुम को दीन सो हम को दीन्हों।।
मैं लघु तुम जेठो रे भाई। हम से काहे करो ढ़िठाई।।
बहिन भाई की होत कुबानी। आगे चलि है यही सहिदानी।।
जब कामिनि कही असबानी। धर्मराय चित शंका आनी।।
भावार्थ है कि काल पुरूष के छल रूपी क्रियाओं को पहचानकर देवी दुर्गा को शंका हुई कि यह बकवास कर रहा है और उसके मन की बात जानकर देवी ने काल से कहा कि मैं तथा आप एक परमेश्वर ने उत्पन्न किए हैं। आप मेरे बड़े भाई हैं, मैं छोटी बहन हूँ। भाई-बहन का मिलन पाप का कारण है। आगे फिर तेरे लोक में यही गलत परंपरा प्रारम्भ हो जाएगी। जब देवी ने यह बात कही तो काल को लगा कि बात नहीं बनी।
संत गरीबदास जी की वाणी में दुर्गा और ब्रह्म/सदाशिव की उत्पत्ति
वहीं संत गरीबदास जी ने "सृष्टि रचना का प्रमाण" सद्ग्रंथ (अमरग्रन्थ) साहिब के अध्याय- आदि रमैणी पृष्ठ नं. 690-692 तक दिया है। उन्होंने बताया है कि:
आदि रमैंणी अदली सारा। जा दिन होते धुंधुकारा।।
सतपुरुष कीन्हा प्रकाशा। हम होते तखत कबीर खवासा।।
मन मोहिनी सिरजी माया। सतपुरुष एक ख्याल बनाया।।
धर्मराय सिरजे दरबानी। चौसठ जुगतप सेवा ठांनी।।
पुरुष पृथिवी जाकूं दीन्ही। राज करो देवा आधीनी।।
ब्रह्माण्ड इकीस राज तुम्ह दीन्हा। मन की इच्छा सब जुग लीन्हा।।
माया मूल रूप एक छाजा। मोहि लिये जिनहूँ धर्मराजा।।
धर्म का मन चंचल चित धार्या। मन माया का रूप बिचारा।।
चंचल चेरी चपल चिरागा। या के परसे सरबस जागा।।
धर्मराय कीया मन का भागी। विषय वासना संग से जागी।।
आदि पुरुष अदली अनरागी। धर्मराय दिया दिल से त्यागी।।
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि ब्रह्म (काल) और देवी दुर्गा की उत्पत्ति परमेश्वर कबीर जी ने की है। यहीं सृष्टि रचना परमेश्वर कबीर जी ने अग्नि ऋषि रूप में ब्रह्मा जी को सुनाई थी लेकिन काल ब्रह्म द्वारा भ्रमित किये जाने के बाद ब्रह्मा जी ने परमेश्वर कबीर जी द्वारा बताई गई सृष्टि रचना का कुछ अंश और कुछ अपनी मनगढ़ंत बातों को यानि कुछ ज्ञान और कुछ अज्ञान शिवपुराण में अपने पुत्र नारद जी को सुनाया है।
शिव महापुराण में श्री विष्णु जी का जन्म
संक्षिप्त शिवपुराण, रूद्र संहिता अध्याय 6, पुराने संस्करण में पृष्ठ नं. 101-102 (नए संस्करण में पृष्ठ 121-122) में ब्रह्मा जी ने कहा, "उस काल रूपी ब्रह्म यानि सदाशिव ने शक्ति अर्थात् दुर्गा के साथ मिलकर एक समय में 'शिवलोक' (तमोगुण प्रधान स्थान) नामक क्षेत्र का निर्माण किया। उस महान स्थान को काशी कहा जाता है। वह परम धाम या मोक्ष स्थान है जो सबसे ऊपर स्थित है। वे प्रिया-प्रियतमरूप शक्ति और शिव (पति और पत्नी के रूप में दुर्गा और काल-रूपी ब्रह्म), जो परमानन्द स्वरूप हैं, उस मनोरम क्षेत्र काशी में नित्य निवास करते हैं। मुने नारद! शिव और शिवा (ब्रह्म काल और दुर्गा) ने प्रलयकाल में भी कभी उस क्षेत्र को अपने सांनिध्य से मुक्त नहीं किया है। ब्रह्मा जी ने आगे कहा, “देवर्षे! एक समय उस आनन्दवन में रमण करते हुए शिवा और शिव (दुर्गा और काल) के मन में यह इच्छा हुई कि किसी दूसरे पुरुष की भी सृष्टि करनी चाहिये, जिस पर यह सृष्टि संचालन का महान भार रखकर हम दोनों केवल काशी में रहकर इच्छानुसार विचरें और निर्वाण धारण करें। ऐसा निश्चय करके शक्ति (दुर्गा) सहित सर्वव्यापी परमेश्वर शिव (काल रूपी ब्रह्म) ने अपने वामभाग के दसवें अंग पर अमृत मल दिया। फिर तो वहाँ से एक पुरुष अर्थात पुत्र प्रकट हुआ। तब शिव ने कहा, "वत्स (पुत्र)! व्यापक होने के कारण तुम्हारा विष्णु नाम प्रसिद्ध होगा।”
संक्षिप्त शिवपुराण, रुद्रसंहिता अध्याय 6, नए संस्करण के पृष्ठ 121-122
शिव महापुराण में श्री ब्रह्मा जी और श्री शिव जी का जन्म
संक्षिप्त शिव पुराण, रूद्र संहिता अध्याय 7 पुराने संस्करण में पृष्ठ नं. 103 (नए संस्करण में पृष्ठ 123) में ब्रह्मा जी कहते हैं “देवर्षे! तत्पश्चात् कल्याणकारी परमेश्वर साम्ब सदाशिव ने पूर्ववत् प्रयत्न करके जिस तरह उसने विष्णु को उत्पन्न किया था, उसी तरह मुझे अपने दाहिने अंग से उत्पन्न किया। फिर उन महेश्वर ने मुझे तुरंत ही अपनी माया से मोहित करके नारायण देव के नाभिकमल में डाल दिया और लीलापूर्वक मुझे वहाँ से प्रकट किया। इस प्रकार उस कमल से पुत्र के रूप में मुझ हिरण्यगर्भ का जन्म हुआ।" क्योंकि यहीं काल महाविष्णु रूप धारण करके अपनी नाभि से कमल उत्पन्न करता है। ब्रह्मा जी आगे कहते हैं कि तब मुझे चेतना प्राप्त हुई। कमल का आधार ढूंढने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहा। तभी एक आकाशवाणी हुई "तप (तपस्या)" करो। तब मैंने घोर तप (हठ योग) किया।
संक्षिप्त शिवपुराण, रुद्रसंहिता अध्याय 7, नए संस्करण का पृष्ठ 123
फिर शिवपुराण, रूद्र संहिता अध्याय 9, पुराने संस्करण के पृष्ठ नं. 110 (नए संस्करण के पृष्ठ 130) में कहा गया है कि - 'इस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु तथा रूद्र (शिव शंकर) तीनों देवताओं में गुण हैं, परंतु शिव (काल-ब्रह्म) को गुणातीत माना गया है। अर्थात ब्रह्मा रजगुण प्रधान हैं, विष्णु सतगुण प्रधान हैं तथा शिव तमगुण प्रधान हैं।
संक्षिप्त शिवपुराण, रुद्रसंहिता अध्याय 9, नए संस्करण का पृष्ठ 130
संक्षिप्त शिवपुराण, रुद्रसंहिता द्वितीय (सती) खण्ड अध्याय 1-2, पृष्ठ 157-158 में अपने पुत्र नारद जी के प्रश्नों का जबाब देते हुए ब्रह्मा जी कहते हैं "पूर्वकाल में भगवान् शिव (सदाशिव/ब्रह्म काल) निर्गुण, निर्विकल्प, निराकार, शक्तिरहित, चिन्मय तथा सत् और असत् से विलक्षण स्वरूप में प्रतिष्ठित थे। फिर वे ही प्रभु सगुण और शक्तिमान् होकर विशिष्ट रूप धारण करके स्थित हुए। उनके साथ भगवती उमा (दुर्गा) विराजमान थीं। मुनिश्रेष्ठ! उनके बायें अङ्ग से भगवान विष्णु, दायें अङ्गसे मैं ब्रह्मा और मध्य अङ्ग अर्थात् हृदय से रुद्रदेव (शिव शंकर) प्रकट हुए। मैं ब्रह्मा सृष्टिकर्ता हुआ, भगवान विष्णु जगत का पालन और रुद्र (शंकर) ने संहार का कार्य सँभाला।
यह भी पढ़ें: शिव पुराण में श्री ब्रह्मा जी और श्री विष्णु जी के बीच युद्ध
सूक्ष्मवेद पवित्र कबीर सागर में त्रिदेवों की उत्पत्ति
सूक्ष्मवेद में काल और दुर्गा से ब्रह्मा, विष्णु, शिव का जन्म
परमेश्वर कबीर जी ने अपने प्रिय शिष्य आदरणीय धर्मदास को बहुत सरल भाषा में बताया है कि देवी दुर्गा तथा इस काल ब्रह्म/क्षर पुरुष के संयोग से दुर्गा गर्भवती हुई। फिर ब्रह्मा, विष्णु, शिव इन तीन पुत्रों की उत्पत्ति हुई। सूक्ष्मवेद पवित्र कबीर सागर के अध्याय ज्ञानबोध पृष्ठ 21-22 की वाणी;
अब मैं तुमसे कहूं चिताई। त्रयदेवन की उत्पत्ति भाई।।
कुछ संक्षेप कहूं गोहराई। सब संशय तुम्हरे मिट जाई।।
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारूण वंशन अंजन।।
धर्मराय कीन्हें भोग विलासा। माया को रही तब आशा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
तीन देव संसार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।।
सूक्ष्मवेद कबीर सागर में कबीर परमेश्वर जी ने तीनों देवताओं ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी की जो वास्तविक जानकारी दी है उसका प्रमाण देवीभागवत (देवी पुराण) और श्रीमद्भगवद्गीता भी करती। आगे जानिए अपने पवित्र धर्मग्रंथों का गुप्त रहस्य।
त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, शिव की उत्पत्ति का अन्य प्रमाण
संक्षिप्त देवीभागवत (गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित, सम्पादक – श्री हनुमान प्रसाद पौद्दार, चिमन लाल गोस्वामी) के तीसरा स्कन्ध अध्याय 5 पृष्ठ 123 में श्री विष्णु जी ने अपनी माता दुर्गा की स्तुति करते हुए कहा है कि हे मातः! हम आपकी कृपा से विद्यमान हैं, मैं (विष्णु), ब्रह्मा और शंकर तो जन्मते मरते हैं, हम अविनाशी नहीं हैं। फिर शंकर जी बोले, हे माता ! विष्णु के बाद उत्पन्न होने वाला ब्रह्मा जब आपका पुत्र है तो क्या मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर तुम्हारी सन्तान नहीं हुआ अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम ही हो। शिवे! इस संसारकी सृष्टि, स्थिति और संहार में तुम्हारे गुण सदा समर्थ हैं। उन्हीं तीनों गुणों से उत्पन्न हम ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर नियमानुसार कार्य में तत्पर रहते हैं।
यह भी पढ़ें: तीन गुण रजगुण, सतगुण और तमगुण क्या हैं?
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 14 श्लोक 3-5 में भी प्रमाण है कि रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, और तमगुण शंकर इन तीनों गुण प्रकृति अर्थात् दुर्गा से उत्पन्न हुए हैं। प्रकृति अर्थात दुर्गा तो सब जीवों को उत्पन्न करने वाली माता है, मैं अर्थात गीता ज्ञान दाता काल ब्रह्म सब जीवों का पिता हूँ। मैं दुर्गा के गर्भ में बीज स्थापित करता हूँ जिससे सबकी उत्पत्ति होती है।
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 9 श्लोक 7-8 में गीता ज्ञान दाता काल ब्रह्म कहता है कि मैं अपनी प्रकृति (दुर्गा) को अंगीकार करके अर्थात पति पत्नी रूप में रखकर सम्पूर्ण भूत समुदाय यानि प्राणियों को कर्मों के अनुसार बार बार रचता हूँ।
सदाशिव यानि ब्रह्म काल का मंत्र क्या है?
भगवान सदाशिव/ब्रह्म (काल) का मन्त्र यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 17, गीता अध्याय 8 श्लोक 13, संक्षिप्त शिवपुराण विद्यवेश्वर संहिता अध्याय 10, संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत अध्याय 36 के अनुसार केवल एक शब्द ओम (ॐ) है और ओम मंत्र के जाप से ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।
सदाशिव अर्थात काल ब्रह्म की भक्ति से मोक्ष संभव नहीं
श्री शिव महापुराण के केन्द्रीय पात्र अर्थात् भगवान सदाशिव/ब्रह्म काल मोक्ष प्रदाता नहीं है। क्योंकि वे स्वयं जन्म और मृत्यु के चक्र में है। जिसका स्पष्ट प्रमाण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5 और अध्याय 10 श्लोक 2 में है। वहीं गीता अध्याय 8 श्लोक 16 के अनुसार ब्रह्मलोक तक गए प्राणियों का भी पुनर्जन्म होता है अर्थात देवी दुर्गा, ब्रह्मा, विष्णु और शिव सहित सभी प्राणी जो काल ब्रह्म के 21 ब्रह्मांडों में निवास करते हैं सभी जन्म और मृत्यु के चक्र में हैं। जिससे ब्रह्म साधना से जन्म मृत्यु के दुष्चक्र से मुक्ति नहीं मिल सकती। इसलिए पवित्र गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में गीता ज्ञान दाता ब्रह्म काल ने कहा है कि मेरे से प्राप्त मुक्ति अनुत्तम है।
वहीं गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में अपने से अन्य अविनाशी परम अक्षर ब्रह्म/पूर्णब्रह्म की शरण में जाने का निर्देश दिया है जिसकी भक्ति से परम शांति और सनातन परम धाम/सतलोक की प्राप्ति होती है, जहाँ जाने के बाद साधक वापस इस मृत लोक में नहीं आते। उन्हें पूर्ण मोक्ष प्राप्त हो जाता है। वहीं गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में उल्लेख है कि सर्वोच्च ईश्वर/सतपुरुष/परम अक्षर ब्रह्म की प्राप्ति के लिए तीन मंत्र 'ओम-तत्-सत्' के जाप करने का निर्देश किया गया है। जिसके माध्यम से मोक्ष होता है। इसमें ओम तो स्पष्ट है जोकि ब्रह्म का मंत्र है परंतु तत् व सत् सांकेतिक हैं। जिन्हें पूर्ण तत्वदर्शी संत ही प्रदान करता है और उसी पूर्णसंत से इन मंत्रों को प्राप्त करके जाप करने से फल प्राप्त होता है। वहीं तत्वदर्शी संत की पहचान यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्र 25, गीता अध्याय 15 श्लोक 1-4, 16, 17 में बताई गई है।
निष्कर्ष
शिव महापुराण के इस लेख में दिए गए तथ्य निम्नलिखित बिंदुओं को सिद्ध करते हैं:-
- पवित्र शिव महापुराण के केन्द्रीय पात्र भगवान सदाशिव हैं।
- भगवान सदाशिव तथा देवी दुर्गा दोनों की रचना सतपुरुष/परम अक्षर ब्रह्म/सर्वशक्तिमान कविर्देव की शब्द शक्ति से हुई है।
- ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी ब्रह्म-काल और अष्टांगी/देवी दुर्गा के तीन पुत्र हैं।
- भगवान ब्रह्मा सृष्टि रचना के सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान से अनभिज्ञ हैं, इसलिए शिवपुराण में किंवदंतियाँ सुनाई हैं।
- त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, शिव प्राणियों को माया के भ्रम में रखते हैं और प्राणियों को कसाई ब्रह्म काल के जाल से मुक्त नहीं होने देते हैं।
- भगवान सदाशिव/ब्रह्म-काल के सभी 21 ब्रह्मांड नाशवान हैं।
- सदाशिव/काल ब्रह्म का ओम मंत्र है जिसके जाप से ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।
- भगवान सदाशिव मोक्ष प्रदाता नहीं हैं।
- सर्वशक्तिमान कविर्देव (कबीर परमेश्वर) हैं जिनकी भक्ति से मोक्ष प्राप्ति होती है।
कहते हैं समझदार इंसान के लिए इशारा ही काफी होता है। चूँकि हम इतने समय से गलत आध्यात्मिक ज्ञान से रंगे हुए हैं, यदि एक छोटी सी शंका भी रह जाती है तो यह काल/शैतान भ्रमित कर देता है जैसा कि ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी को कर दिया था। इसलिए जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा पवित्र शिव महापुराण के बताए गए तथ्यों से मानव को परिचित होना चाहिए। सभी पाठकों को उनके द्वारा प्रदत्त सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान को समझना चाहिए और उनकी शरण में जाकर सच्ची भक्ति करके अपना कल्याण करना चाहिए, जिससे मुक्ति प्राप्त हो सके।
FAQs : "जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी द्वारा श्री शिव पुराण (महापुराण) का सार"
Q.1. शिवपुराण के मुख्य बिन्दु क्या हैं?
संपूर्ण शिव पुराण का केंद्र बिंदु भगवान सदाशिव हैं जो कोई ओर नहीं बल्कि शैतान काल रूप ब्रह्म है। वह अमर नहीं है। उसने और उसकी पत्नी दुर्गा ने तीन पुत्रों ब्रह्मा, विष्णु और शिव को जन्म दिया है। काल ब्रह्म तथा दुर्गा जी की रचना सर्वशक्तिमान परमेश्वर कबीर साहेब ने की थी। केवल कबीर परमेश्वर में ही हमें सुख देने की शक्ति है और ये परमेश्वर ही हमें हमारा भाग्य से अधिक देने में सक्षम हैं। अतः केवल कबीर साहेब ही पूजा के योग्य हैं।
Q.2 शिव महापुराण का महत्व क्या है?
शिव महापुराण जैसे पवित्र ग्रंथ हमें पवित्र चारों वेद और पवित्र गीता जी के सांकेतिक तत्वज्ञान यानि सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान को समझने में मदद करते हैं। जैसा कि हमें हमेशा बताया जाता है कि भगवान विष्णु सर्वशक्तिमान ईश्वर हैं और अमर हैं, लेकिन संक्षिप्त शिव पुराण, रुद्र संहिता अध्याय-6 पर लिखा है कि भगवान विष्णु का जन्म काल ब्रह्म तथा दुर्गा जी के पति पत्नी व्यवहार से हुआ।
Q. 3 शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव की पूजा कैसे करें?
शिव पुराण में दिए गए ज्ञान के अनुसार, भगवान शिव पूजा के योग्य नहीं हैं क्योंकि वे मनुष्यों की तरह जन्म और मृत्यु के चक्र में हैं। केवल पूर्ण परमात्मा कबीर ही पूजा के योग्य हैं जो अमर हैं और हमें मोक्ष प्रदान कर सकते हैं।
Q.4 शिव मंत्र का क्या लाभ है?
शिव पुराण से प्रमाणों से पता चलता है कि भगवान शिव सर्वोच्च देवता नहीं हैं इसलिए 'ओम नमः शिवाय' आदि शिव मंत्र का जाप करने से कोई लाभ नहीं होता है क्योंकि यह मंत्र किसी भी पवित्र सद्ग्रंथ गीता व वेद में नहीं है। हालांकि भगवान शिव का एक विशेष मंत्र है जिसे किसी तत्वदर्शी संत से प्राप्त करने के बाद जाप करने से साधकों को सभी लाभ मिलते हैं।
Q.5 कौन सा महाशिव मंत्र सभी रोगों का निवारण करता है?
ऐसा कोई महाशिव मंत्र नहीं है जो सभी रोगों को दूर कर सके। इस संसार में सभी सुखों की प्राप्ति तथा अंततः मोक्ष की प्राप्ति के लिए पवित्र गीता जी के अध्याय 17 श्लोक 23 में वर्णित मंत्रों का जाप तत्वदर्शी संत से लेकर करना चाहिए। वर्तमान में भारत के हरियाणा के संत रामपाल जी महाराज ही तत्वदर्शी संत हैं।
Q.6 भगवान शिव का वास्तविक मंत्र क्या है?
भगवान शिव को प्रसन्न करने का मंत्र केवल तत्वदर्शी संत ही बता सकते हैं। ओम नमः शिवाय, हर हर भोले, शिव शंभु आदि सही मंत्र नहीं हैं। इन मंत्रों का कोई आध्यात्मिक महत्व नहीं है। वास्तविक मंत्र जानने के लिए तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लें।
Q.7 शिव का शक्तिशाली मंत्र क्या है?
शिव का कोई शक्तिशाली मंत्र नहीं है। इसके अलावा भगवान शिव से लाभ लेने का मंत्र एक तत्वदर्शी संत द्वारा दिया जाता है, जो वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज दे रहे हैं।
Q.8 कौन सा मंत्र भगवान शिव को प्रसन्न करता है?
भगवान शिव को प्रसन्न करने वाले मंत्र कबीर साहेब के सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान में बताए गए हैं। उसे तत्वदर्शी संत द्वारा ही प्रकट किया जाता है। पृथ्वी पर वह तत्वदर्शी संत आज के समय में कोई और नहीं बल्कि संत रामपाल जी महाराज ही हैं।
Q.9 मंत्र के पीछे क्या शक्ति है?
एक सच्चा मंत्र जब तत्वदर्शी संत से लिया जाता है जिसे सतनाम कहा जाता है तो वह बहुत शक्तिशाली माना जाता है। तत्वदर्शी संत से प्राप्त सतनाम का एक जाप शैतान काल ब्रह्म के एक ब्रह्मांड में मौजूद 14 लोकों से भी अधिक शक्तिशाली है। संत रामपाल जी महाराज की शरण में जाने पर इस मंत्र की शक्ति हमें सतलोक ले जा सकती है। सच्चे मोक्ष मंत्र गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में बताए गए हैं जो सांकेतिक हैं।
Recent Comments
Latest Comments by users
यदि उपरोक्त सामग्री के संबंध में आपके कोई प्रश्न या सुझावहैं, तो कृपया हमें [email protected] पर ईमेल करें, हम इसे प्रमाण के साथ हल करने का प्रयास करेंगे।
Kailash Sahu
क्या शिवलिंग पूजा करने से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है?
Satlok Ashram
शिवपुराण में शिवलिंग की पूजा करने को व्यर्थ बताया गया है। भगवान शिव स्वयं जन्म और मृत्यु के चक्र में हैं और हमें मोक्ष प्रदान नहीं कर सकते।गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में बताए मंत्रों से ही आत्मा को मोक्ष प्राप्त हो सकता है।