धरती पर उपासना का प्राचीन और गौरवशाली इतिहास हमें गर्व महसूस करने का अवसर प्रदान करता है साथ ही साथ हमें एक सही रास्ते का भी ज्ञान कराता है जिससे हम भक्ति मार्ग में सफल हो सके। धार्मिकता और आध्यात्मिकता ही वह शक्ति है जिनसे मानवता ने सदैव अपने उद्देश्य को पूरा करने का मार्ग ढूंढा है। इस आध्यात्मिक यात्रा में ऐसे महत्वपूर्ण पहलु का परिचय होगा जिसने हमारे समय से पहले के महर्षियों और धार्मिक विचारकों के मनोबल को प्रेरित किया है। जी यहां बात हो रही है "शिवलिंग" की।
दुनियाभर में काफी बड़ी आबादी खासतौर पर हिंदुओं की बड़ी संख्या शिवलिंग की पूजा करती है। इसलिए शिवलिंग की उत्पत्ति, इसकी पूजा का कारण, इसकी पूजा से लाभ आदि महत्वपूर्ण विषय को जानें बिना अध्यात्म की यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी। इस लेख के माध्यम से, हम शिवलिंग के पूजा के पीछे छिपे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अर्थों की खोज करेंगे और उसके महत्वपूर्ण तत्वों का विश्लेषण करेंगे। साथ ही उन दावों की भी जांच करेंगे जिनके मुताबिक कहा जाता है कि शिवलिंग वास्तविकता में शिवजी और पार्वती के गुप्तांगों से बना है।
हम इस लेख के माध्यम से जानेंगे कि आखिर कैसे शिवलिंग की पूजा शुरू हुई। इस प्रकार, यह लेख हमें एक नए प्रकार से विचार करने, समझने और आध्यात्मिकता की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा प्रदान करेगा।
हम आपको निम्न बिन्दुओ पर जानकारी देंगे
- हिंदू धर्म के अज्ञानी धर्मगुरुओं के अनुसार शिव लिंग क्या है?
- शास्त्रों से जानें कि शिवलिंग क्या है?
- शिव लिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई?
- क्या शिवलिंग पूजा शास्त्रसम्मत साधना है?
- क्या शिवलिंग पूजा निष्फल है?
- कबीर साहेब द्वारा शिवलिंग पूजा का खंडन
- क्या ब्रह्मा विष्णु महेश के माता-पिता है? क्या त्रिदेवों की भक्ति करने से मुक्त होती है?
- क्या शिवलिंग पर ॐ नमः शिवाय मंत्र जाप सही है?
- क्या 'पंचाक्षरी मंत्र' से मुक्ति संभव है?
- यथार्थ भक्ति विधि क्या है?
- शिवलिंग को लेकर अन्य मान्यताएं
- निष्कर्ष: शिवलिंग पूजा से लाभ नहीं; करें शास्त्र सम्मत भक्ति
हिंदू धर्म के अज्ञानी धर्मगुरुओं के अनुसार शिव लिंग क्या है?
शिव लिंग हिन्दू लोगों की धार्मिक आस्था का प्रतीक है। शिव भक्तों के लिए यह भगवान शिव का प्रतिमा विहीन चिन्ह है। यह आमतौर पर हिन्दू मंदिरों में शिवभक्तों के लिए भगवान शिव की छवि को प्रकट करता है। शिव लिंग प्रायः छोटे और बड़े सभी शिव मंदिरों में पाये जाते हैं। कई स्थानों पर ये प्राकृतिक रूप से भी प्रकट होते हैं और बाद में आस्था का प्रतीक बन जाते हैं। आमतौर पर शिव लिंग का ऊपर का हिस्सा एक गोलाकार मूर्ति के रूप में होता है, जिसे परशिव कहते हैं और निचला हिस्सा जिसे पीठम पराशक्ति कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि पराशिव और पराशक्ति भगवान शिव की दो परिपूर्णताएं दर्शाती हैं। ये दोनों मिलकर सूक्ष्मब्रह्मांड और महाब्रह्मांड के मिलन के प्रतीक हैं। स्त्रीवादी और पुरुषवादी मिलन सम्पूर्ण अस्तित्व का पुनर्सृजन करती है।
"लिंगम" का मूल अर्थ "संकेत" है, जिसका वर्णन श्वेताश्वतर उपनिषद में किया गया है। लिंगम को निराकार ब्रह्म के "रूपरहित बाह्य प्रतीक" के रूप में माना गया है।
शास्त्रों से जानें कि शिवलिंग क्या है?
शिव लिंग के बारे बहुत से भ्रम समाज में व्याप्त हैं। बहुत तरह की किदवंतियाँ प्रचलित हैं। शिवलिंग क्या पुरुष अंग है? शिवलिंग पुरुष या महिला अंगों का मेल है? शिवलिंग शरीर का हिस्सा है या नहीं? भगवान शिव के लिंगम का ऐसा आकार क्यों है? शिवलिंग कौन से शरीर का हिस्सा है? शिवलिंग का असली मतलब क्या है? सभी प्रश्नों के उत्तर पवित्र शास्त्रों में निहित हैं, आगे के लेख में उन्हें खोजेंगे।
शिव महापुराण {जिसके प्रकाशक हैं ‘‘खेमराज श्री कृष्णदास प्रकाशन मुंबई (बम्बई), हिन्दी टीकाकार (अनुवादक) हैं विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद जी मिश्र} भाग-1 में विद्यवेश्वर संहिता अध्याय 5 पृष्ठ 11 पर नंदीकेश्वर यानि शिव के वाहन ने शिव लिंग के रहस्यों को उजागर किया -
विद्यवेश्वर संहिता अध्याय 5 श्लोक 27-30:- पूर्व काल में जो पहला कल्प जो लोक में विख्यात है, उस समय महात्मा ब्रह्मा और विष्णु का परस्पर युद्ध हुआ।(27) उनके मान को दूर करने के लिए उनके बीच में उन निष्कल परमात्मा ने स्तम्भरूप अपना स्वरूप दिखाया।(28) तब जगत के हित की इच्छा से निर्गुण शिव ने उस तेजोमय स्तंभ से अपने लिंग आकार का स्वरूप दिखाया।(29) उसी दिन से लोक में वह निष्कल शिव जी का लिंग विख्यात हुआ।(30)
शिव लिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई?
शिवलिंग की पूजा को लेकर मुख्य रूप से 2 घटनाए हमारे सद्ग्रंथो में मिलती है।
पहली घटना:
शिव महापुराण {जिसके प्रकाशक हैं ‘‘खेमराज श्री कृष्णदास प्रकाशन मुंबई (बम्बई), हिन्दी टीकाकार (अनुवादक) हैं विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद जी मिश्र} भाग-1 में विद्यवेश्वर संहिता अध्याय 5 पृष्ठ 11 पर नंदीकेश्वर यानि शिव के वाहन ने बताया कि शिव लिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई? निर्गुण शिव ने अपने पुत्रों ब्रह्मा और विष्णु को आगे समझाया -
विद्यवेश्वर संहिता पृष्ठ 18 अध्याय 9 श्लोक 40-43:- इससे मैं अज्ञात स्वरूप हूँ। पीछे तुम्हें दर्शन के निमित साक्षात् ईश्वर तत्क्षणही मैं सगुण रूप हुआ हूँ। (40) मेरे ईश्वर रूप को सकलत्व जानों और यह निष्कल स्तंभ ब्रह्म का बोधक है। (41) लिंग लक्षण होने से यह मेरा लिंग स्वरूप निर्गुण होगा। इस कारण हे पुत्रो! तुम नित्य इसकी अर्चना करना। (42) यह सदा मेरी आत्मा रूप है और मेरी निकटता का कारण है। लिंग और लिंगी के अभेद से यह नित्य पूजनीय है। (43)
विवेचन:- यह विवरण श्री शिव महापुराण (खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाश मुंबई द्वारा प्रकाशित) से शब्दाशब्द लिखा है। इसमें स्पष्ट है कि काल ब्रह्म ने शिवजी के रूप में जान-बूझकर शास्त्र विरूद्ध साधना बताई है क्योंकि यह नहीं चाहता कि कोई शास्त्रों में वर्णित साधना करे। इसलिए अपने लिंग (गुप्तांग) की पूजा करने को कह दिया। पहले तो तेजोमय स्तंभ ब्रह्मा तथा विष्णु के बीच में खड़ा कर दिया। फिर शिव रूप में प्रकट होकर अपनी पत्नी दुर्गा को पार्वती रूप में प्रकट कर दिया और उस तेजोमय स्तंभ को गुप्त कर दिया और अपने लिंग (गुप्तांग) के आकार की पत्थर की मूर्ति प्रकट की तथा स्त्री के गुप्तांग (लिंगी) की पत्थर की मूर्ति प्रकट की। उस पत्थर के लिंग को लिंगी यानि स्त्री की योनि में प्रवेश करके ब्रह्मा तथा विष्णु से कहा कि यह लिंग तथा लिंगी अभेद रूप हैं यानि इन दोनों को ऐसे ही रखकर नित्य पूजा करना।
दूसरी घटना:
शिव महापुराण कोटी रुद्र संहिता का अध्याय 12: शिव पुराण भाषा (ग्यारहों खंड) अनुवादक प० प्यारेलाल रग्घू, प्रकाशक तेजकुमार कुमार बुक डिपो (प्रा०) लिमिटेड लखनऊ पृष्ठ संख्या 144 से 147
ब्रह्मा जी अपने पुत्र देवर्षि नारद से सती के प्राण देने के बाद शिव जी की वियोग कथा बता रहे हैं। शिव अवधूत स्वरूप में पूरे संसार में वियोग के दुख से भ्रमण करने लगे। बाद में शिव ने नग्न होकर पूरे शरीर पर भस्म मल ली, जटा युक्त शीश में धार मुंडों की मला पहन ली, सांपों के कुंडल और हार पहने और कॉपीन बांधकर पर्वत की कन्दरा में बैठकर तप करने लगे। अनेक प्रकार के कष्ट सहते हुए एक दिन नग्न शरीर में दारुक वन में गए। शिव को नग्न अवस्था में देखकर मुनियों की स्त्रियाँ महा कामिनी होकर उनसे लिपट गई। उस समय मुनि वन में गए हुए थे।
दुख की अपार अवस्था में शिव का मनोहर रूप देखकर मुनियों की पत्नियां अपने मन को नियंत्रित नहीं कर सकी और सभी शिव को लिपट गईं। इतने में उनके पति वन से वापस आ गए और स्त्रियों की दशा देखकर क्रोधित हो गए। मुनियों ने शिव को अधर्मी बताकर कहा, तूने स्वयं तो वेद के विरुद्ध धर्म अंगीकार किया है और हमारा भी धर्म बिगाड़ा है इसलिए तुम्हारा लिंग पृथ्वी पर गिर पड़े। श्राप के फलस्वरूप शिव का लिंग पृथ्वी पर गिर पड़ा और पृथ्वी के अंदर पाताल में चला गया। अपने शरीर पर बिना लिंग के शिव बहुत लज्जित हुए। उन्होंने अपने रूप को प्रलय के सदृश बहुत भयानक बनाया, लेकिन किसी को भी पता नहीं चला उन्होंने ऐसा क्यों किया। लिंग गिरने के बाद तीनों लोकों में हाहाकार मच गया, लोग दुखी और चिंतित होकर कांप उठे। पर्वत जलने लगे, दिन में तारे गिरने लगे पर लिंग गिरने का भेद जग जाहिर नहीं हुआ। सबसे ज्यादा उत्पात मुनियों के आश्रमों में उठा।
ब्रह्मा ने नारद से आगे कहा, मनुष्यों को कोई भी काम जल्दी बाजी में अज्ञानवश नहीं करके सोच समझ कर करना चाहिए। पढे लिखे अहंकारी लोग शिव को पूरी तरह नहीं जानकर दुख उठाते हैं। सभी दुखी मुनि देवलोक में गए। वहाँ निदान नहीं होने पर मेरे (ब्रह्मा) पास आए। हम सब विष्णु जी के पास गए। विष्णु जी को प्रणाम करके उत्पात का कारण पूछा। विष्णु ने बताया, अहंकारवश मुनियों के द्वारा शिव को नहीं पहचानकर श्राप देने के कारण यह स्थिति उपजी। हम सभी विष्णु के साथ शिव के पास गए। उनसे स्तुति की, हम पर दया करें, लिंग पुनः धारण करें। लज्जित होकर शिव ने कहा इसमें किसी का कोई दोष नहीं है, यह सब हमने स्वयं किया है। वैसे भी बिना पत्नि के हमें लिंग की क्या आवश्यकता।
देवताओं ने कहा, सती ने हिमाचल के यहाँ अवतार लिया है। वह आपका तप करके आपसे विवाह करेगी। अतः आप लिंग को धारण करें, सृष्टि में आनंद होगा। शिव ने कहा, आप हमारे लिंग की पूजा करो, हम नया लिंग धारण करेंगे। विष्णु और अन्य उपस्थित देवताओं मुनियों ने कहा हम आपके लिंग की पूजा करेंगे। इतने में शिव अंतर्ध्यान हो गए। हम सब पाताल में जाकर उसी गिरे लिंग की पूजा करने लगे।
क्रम से सब ने लिंग की पूजा की पहले विष्णु, फिर मैंने (ब्रह्मा), इन्द्र और अन्य सभी देवताओं ने। इस पूजा से आकाश से पुष्प बरसे, नाना प्रकार के बाजे बजे। तब शिव अपने लिंग से तुरंत प्रकट हुए और हँसकर बोले, हम आपकी पूजा से प्रसन्न हुए, आप लोग वरदान मांगों। हम सबने प्रार्थना की कि तीनों लोक को आनंद देकर अपने लिंग को धारण करें। हमको अहंकार नहीं हो और हम आपकी भक्ति करते रहें। शिव ने कहा, ऐसा ही होगा और लिंग धारण कर लिया। विष्णु और हमने उत्तम और शुद्ध हीरा लेकर लिंग के समान एक सुंदर मूर्ति बनाई और शिव लिंग वाली जगह पर स्थापित किया और कहा जो भी इसकी पूजा करेगा वह लोक परलोक दोनों में सुख प्राप्त करेगा।
क्या शिवलिंग पूजा शास्त्रसम्मत साधना है?
बिल्कुल नहीं, यह बेशर्म पूजा सब हिन्दुओं में देखा-देखी चल रही है। आप मंदिर में शिवलिंग को देखना। उसके चारों ओर स्त्री इन्द्री का चित्र है जिसमें शिवलिंग प्रविष्ट दिखाई देता है। यह पूजा काल ब्रह्म ने प्रचलित करके मानव समाज को दिशाहीन कर दिया। वेदों तथा गीता के विपरीत साधना बता दी। आप जी ने ऊपर शिव पुराण भाग-1 में विद्यवेश्वर संहिता के पृष्ठ 11 पर अध्याय 5 श्लोक 27-30 में पढ़ा कि शिव ने जो तेजोमय स्तंभ खड़ा किया था। फिर उस स्तंभ को गुप्त करके पत्थर को अपने लिंग (गुप्तांग) का आकार दे दिया और बोला कि इसकी पूजा किया करो। पाठकों को विश्वास नहीं हो रहा होगा कि कैसे काल ब्रह्म यानि सदाशिव अपने लिंग की पूजा अपने पुत्रों ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश से करने को कह सकते हैं।
क्या शिवलिंग पूजा निष्फल है?
शास्त्रानुकूल भक्ति मोक्षदायक है इसके विपरीत मूर्तिपूजा, लिंगपूजा, तीर्थ, व्रत आदि शास्त्रविरुद्ध साधनाएं हैं। भगवद गीता में मूर्तिपूजा और लिंग पूजा भी कहीं वर्णन नहीं मिलता है। पवित्र गीता अध्याय 9 के श्लोक 23, 24 में कहा है कि जो व्यक्ति अन्य देवताओं को पूजते हैं वे भी काल जाल में रहने वाली पूजा ही कर रहे हैं।
श्रीमद्भागवत गीता, अध्याय 9 श्लोक 23, 24
भगवद गीता अध्याय 16 के श्लोक 23 में बताया है कि शास्त्रों में वर्णित विधि से अलग साधना जो करता है वह न सुख, न गति और न मोक्ष को प्राप्त होता है।
श्रीमद्भागवत गीता, अध्याय 16 श्लोक 23
पूर्ण सन्त न मिलने तक सर्व यज्ञों का भोग (आनन्द) काल (मन रूप में) ही भोगता है। विचारणीय है कि कौन पूर्ण परमेश्वर है जिसकी शरण मे स्वयं गीता ज्ञानदाता अर्जुन को जाने को अध्याय 18 के श्लोक 62 व 66 में कहता है। गीता अध्याय 3 श्लोक 14-15 में कहा है कि सर्व यज्ञों में प्रतिष्ठित अर्थात् सम्मानित, जिसको यज्ञ समर्पण की जाती है वह परमात्मा (सर्व गतम् ब्रह्म) पूर्ण ब्रह्म है। वही कर्माधार बना कर सर्व प्राणियों को प्रदान करता है।
कबीर साहेब द्वारा शिवलिंग पूजा का खंडन
इस शिवलिंग की पूजा अंध श्रद्धावान करते हैं जो शर्म की बात तो है ही, परंतु धर्म के विरूद्ध भी है क्योंकि यह गीता व वेद शास्त्रों में नहीं लिखी है। इसका खण्डन सूक्ष्मवेद में इस प्रकार किया है कि:-
वाणी:- धरै शिव लिंगा बहु विधि रंगा, गाल बजावैं गहले।
जे लिंग पूजें शिव साहिब मिले, तो पूजो क्यों ना खैले।।
शब्दार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने समझाया है कि तत्वज्ञानहीन मूर्ति पूजक अपनी साधना को श्रेष्ठ बताने के लिए गहले यानि ढ़ीठ व्यक्ति गाल बजाते हैं यानि व्यर्थ की बातें बड़बड़ करते हैं जिनका कोई शास्त्र आधार नहीं होता। वे जनता को भ्रमित करने के लिए विविध प्रकार के रंग-बिरंगे पत्थर के शिवलिंग रखकर अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं।
कबीर जी ने कहा है कि मैं उन्हें बताना चाहता हूँ कि यदि शिव जी के लिंग को पूजने से शिव जी भगवान का लाभ लेना चाहते हो तो आप धोखे में हैं। यदि ऐसी बेशर्म साधना करनी है तो खागड़ (Ox=Male Cow) के लिंग की पूजा कर लो जिससे गाय को गर्भ होता है। उससे अमृत दूध मिलता है। हल जोतने के लिए बैल व दूध पीने के लिए गाय उत्पन्न होती है जो प्रत्यक्ष लाभ दिखाई देता है। आपको पता है कि खागड़ के लिंग से कितना लाभ मिलता है। फिर भी उसकी पूजा नहीं कर सकते क्योंकि यह बेशर्मी का कार्य है।
इससे स्पष्ट है कि आप अंध श्रद्धावानों को यही नहीं पता है कि यह पत्थर का बना शिवलिंग व जिसमें यह प्रविष्ट दिखाया है, यह क्या है? यदि आपको पता होता तो इसको एक आँख भी नहीं देखते, पूजा तो बहुत दूर की कौड़ी है।
क्या ब्रह्मा विष्णु महेश के माता-पिता है? क्या त्रिदेवों की भक्ति करने से मुक्त होती है?
ब्रह्म काल (क्षर पुरूष) और प्रकृति ने तीन पुत्रों (रजगुण युक्त - ब्रह्मा जी, सतगुण युक्त - विष्णु जी तथा तमगुण युक्त - शिव शंकर जी) की उत्पत्ति की। पवित्र गीता अध्याय 14 श्लोक 20, में कहा गया है, जब शरीरधारी, जीवात्मा, प्रकृति से उत्पन्न इन तीनों गुणों अर्थात्, रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी से पार हो जाता है तब वह पूर्ण परमात्मा की शास्त्र विधि अनुसार भक्ति करके जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और सब प्रकारके दुःखों से मुक्त हो कर परमानन्द को, अर्थात् पूर्ण मुक्त होकर अमरत्व, आनन्द को प्राप्त करता है। अतः तीन गुणों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) की भक्ति सर्वोत्तम नहीं हैं। पूर्ण ब्रह्म (परम अक्षर ब्रह्म) की ही भक्ति करने से जीवात्मा त्रिगुण माया से मुक्त होती है और मोक्ष प्राप्त कर लेती है, अतः जरा-मरण (वृध्दावस्था और मृत्यु) और कर्म बंधन के इस घिनौने जाल में वापस नहीं आती।
क्या शिवलिंग पर ॐ नमः शिवाय मंत्र जाप सही है?
'ॐ' एकाक्षरी मंत्र ब्रह्मा, विष्णु, महेश के पिता भगवान सदाशिव का ही है। गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में भी इसका उल्लेख किया है। मूल संस्कृत में यह एक शब्द 'ओम' है लेकिन अनुवादकों ने इसमें ॐ नमः शिवाय जोड़ दिया है। यह गलत मंत्र है।
श्रीमद्भागवत गीता, अध्याय 8 श्लोक 13
क्या 'पंचाक्षरी मंत्र' से मुक्ति संभव है?
ब्रह्म-काल के ॐ मंत्र से ही ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। गीता जी अध्याय नं 8, श्लोक नं. 16 में गीता ज्ञान दाता अर्थात् भगवान सदाशिव ने कहा है कि 'अर्जुन! ब्रह्मलोक की प्राप्ति के बाद सभी आत्माएं पुनः लोकगमन करती हैं। वहां पहुंचने वाले प्राणी पुनः जन्म और मृत्यु को प्राप्त होते हैं। अपने अच्छे कर्म समाप्त होने के बाद वे पृथ्वी पर अन्य प्राणियों के जीवन में कष्ट भोगते हैं। अतः ब्रह्म की पूजा भी पूर्ण मोक्ष नहीं देती।
श्रीमद्भागवत गीता, अध्याय 8 श्लोक 16
'पंचाक्षरी मंत्र' का जाप करने से यानी 'ॐ' मंत्र से साधकों को कुछ सिद्धियाँ तो प्राप्त हो सकती हैं परन्तु पूर्ण मोक्ष नहीं मिलता। ऐसे साधक कुछ समय तक ब्रह्मलोक में सुख भोगते हैं और उनके अच्छे कर्म समाप्त होने के बाद वे पृथ्वी पर राजा बन जाते हैं। जब उनके अच्छे कर्म समाप्त हो जाते हैं तो उन्हें नरक और 84 लाख योनियों में भी पीड़ा सहनी पड़ती है। हमारे धर्मग्रन्थों ने यह सिद्ध किया है।
यथार्थ भक्ति विधि क्या है?
उस सच्चे आध्यात्मिक गुरु द्वारा बताये गए निर्देशों का पालन करते हुए जैसे कि नशीले पदार्थों के सेवन पर निषेध (यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्र 30) और मनमानी पूजा को त्यागना आदि और सच्ची साधना के नियमों में रहते हुए साधक अपनी वर्तमान जीवन में सभी लाभों को प्राप्त करता है और साथ ही इस नाशवान मनुष्य शरीर को छोड़कर असीम शांति को प्राप्त करता है। सांसारिक सुख सच्ची साधना करने से मिलते ही हैं।
इसलिए तत्वदर्शी सन्त की शरण मे जाकर गीता अध्याय 17 मन्त्र 23, यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्र 25 और क़ुरान शरीफ सुरह शूरा 42 आयत 1 में उल्लिखित सही मन्त्रों को ग्रहण करें और अंतिम स्वांस तक निर्देशानुसार नियमो में रहते हुए जाप करें।
पवित्र शास्त्रों से यह सिद्ध होता है कि तत्वदर्शी सन्त जिसकी पहचान गीता अध्याय 15 मन्त्र 1-4 में वर्णित की गई है सच्ची भक्ति प्रदान करता है; जिसे करते हुए आत्मा ब्रह्म काल के जाल से मुक्त हो जाती हैं। यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्र 26 में लिखा है कि वह तत्वदर्शी संत दिन में तीन बार की जाने वाली भक्ति प्रदान करता है।
मनुष्य जीवन में समय रहते संभल जाओ। यह अवसर हाथ से जाने के पश्चात् रोने के अतिरिक्त कुछ नहीं रहेगा। गीता व वेदों का ज्ञान परम अक्षर ब्रह्म का बताया हुआ है। इसलिए वह प्रमाणित व लाभदायक है।
शिवलिंग को लेकर अन्य मान्यताएं
- क्या विवाहित महिला शिवलिंग को छू सकती है?
- क्या कुंवारी लड़कियाँ शिवलिंग को छू सकती हैं ?
- क्या हम रात्रि में शिवलिंग को छू सकते हैं? क्या हम शिवलिंग को आलिंगन कर सकते हैं?
- क्या महिलाओं को शिवलिंग पूजा करना चाहिए?
- क्या महिलाओं को शिवलिंग पर जल चढ़ाना चाहिए?
- क्या कुवारी कन्या भगवान शिव की पूजा कर सकती है?
भगवान शिव या शिव लिंग की पूजा करने से कुछ भी लाभ नहीं है। अगर सभी तरह के लाभ ही लेने है तो क्यों ना परम पिता परमेश्वर की पूजा सही भक्ति विधि से की जाए। चूंकि शिवलिंग पूजा से कोई लाभ नहीं है। लेकिन यदि किसी साधक को शिवजी से मिलने वाले लाभ चाहिए तो उसे शिवजी के सही मंत्रों का जाप करना होगा। ये वही आदि मंत्र है जिसको पार्वती मां को शिवजी द्वारा अमरनाथ नाम के स्थान पर दिया गया था और इन मंत्रों से पार्वती मां को उतना अमरत्व प्राप्त हुआ था जितना कि शिवजी के पास है। वर्तमान में वह आदिमंत्र संत रामपाल जी महाराज द्वारा प्रदान किए जा रहे है। पूर्ण अमरत्व के लिए पूर्ण परमेश्वर कविर्देव यानी कबीर परमेश्वर के मंत्रों का जाप करना होगा जो भी संत रामपाल जी महाराज द्वारा प्रदान किए जाते है।
शिव लिंग पर दूध क्यों डाला जाता है? क्या शिव लिंग पर दूध डालना अव्यवस्था है?
शिवलिंग पर दूध डालना एक प्रकार की धार्मिक पूजा का कर्मकांड है। लेकिन यह पूजा भी पूर्ण रूप से व्यर्थ है और शास्त्रों के विपरीत होने से मनमाना आचरण है।
शिव लिंग को पानी में क्यों रखा जाता है?
शिवलिंग को कई बार पानी में रखा जाता है ताकि एक शांत और पवित्र माहौल बन सके। पानी को शुद्धता का प्रतीक माना जाता है और यह पूजा क्षेत्र में एक पवित्र स्थान बनाने में मदद करता है। लोकवेद के अनुसार पानी की शीतलता भगवान शिव की उच्चतम ऊर्जा को शांत करने का प्रतीक भी होती है। परंतु यह प्रथा आध्यात्मिक ग्रंथों के विपरीत है।
शिवलिंग के पास 12 शिवलिंग क्यों हैं?
कुछ मान्यताओं में, 12 शिवलिंग बारह ज्योतिर्लिंगों का प्रतीक हो सकते हैं, जो भगवान शिव की महत्वपूर्ण शृंगारिक स्थली होती हैं।
शिवलिंग के चारों ओर साँप क्यों होता है?
शिवलिंग के चारों ओर साँप की प्रतिमा को अक्सर वासुकी नाम से जाना जाता है। वासुकी का प्रतीक मूलत: कुण्डलिनी शक्ति की कुंडलिनी शक्ति की प्रतिनिधित्व करता है, जो मूलाधार चक्र में स्वतंत्र है। यह ऊर्जा के उद्घाटन और आध्यात्मिक परिवर्तन का प्रतीक माना जाता है। कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने की भी वास्तविक विधि संत रामपाल जी महाराज बताते हैं।
निष्कर्ष: शिवलिंग पूजा से लाभ नहीं; करें शास्त्र सम्मत भक्ति
शिवलिंग के रहस्य को समझते समय हमें यह जानने की आवश्यकता होती है कि इस पूजा के पीछे छिपे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अर्थ क्या हैं? यह एक प्रतीक के रूप में शिव और शक्ति के मिलन का संकेत देता है। जब शिव लिंग की पूजा से पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती, इसकी रचना कैसी भी हो, इससे कोई तात्पर्य नहीं रह जाता। चौरासी लाख योनियों में भटकते हुए, मनुष्य जीवन बड़ी मुश्किल से मिलता है, वो भी सीमित अवधि के लिए। इसे बहुत सावधानी से जीने की आवश्यकता है। पूर्ण परमात्मा स्वयं धरती पर अवतार लेकर सही भक्ति विधि बताते हैं। उन्हे पहचानकर, उनसे नाम दीक्षा लेकर, उसी भक्ति को पूरी मर्यादा में रहकर करना चाहिए और जन्म मरण के चक्र को तोड़कर पूर्ण परमात्मा के लोक में जाना चाहिए। शिवलिंग की वास्तविक स्तिथि से परिचित करवाने वाले कोई और नहीं बल्कि संत रामपाल जी महाराज है जिन्होंने अपनी पुस्तक अंधश्रद्धा भक्ति खतरा-ए-जान में इसके रहस्य को उजागर किया।